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BSEB Solutions for जनतंत्र का जन्म Class 10 Hindi Matric Godhuli

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BSEB Solutions for जनतंत्र का जन्म (Jantantra ka Janm) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

जनतंत्र का जन्म - रामधारी सिंह दिनकर प्रश्नोत्तर

Very Short Questions Answers (अतिलघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. दिनकर किस भावधारा के कवि हैं ?
उत्तर

दिनकर प्रवाहमान राष्ट्रीय भावधारा के प्रमुख कवि हैं।


प्रश्न 2. दिनकर ने काव्य के अतिरिक्त और क्या लिखा है ?
उत्तर
दिनकर ने काव्य के अतिरिक्त गद्य रचनाएँ भी की हैं जिनमें निबंध, डायरी आदि शामिल हैं।


प्रश्न 3. “जनतंत्र का जन्म’ कविता में किसका जयघोष है ?
उत्तर

‘जनतंत्र का जन्म’ शीर्षक कविता में भारत में जनतंत्र की स्थापना का जयघोष है।


प्रश्न 4. जनता की भृकुटि टेढ़ी होने पर क्या होता है ?
उत्तर

जनता की भकुटि टेढ़ी होने पर क्रांति होती है, राजसत्ता बदल जाती है।


प्रश्न 5. जनतंत्र में किसका राज्याभिषेक होता है ?
उत्तर
जनतंत्र में जनता का राज्याभिषेक होता है। वही स्वामी होता है।


प्रश्न 6. जनतंत्र के देवता कौन हैं ?
उत्तर
जनतंत्र के देवता हैं, आम लोग, किसान और मजदूर।


प्रश्न 7. दिनकर की काव्य-भाषा कैसी है ?
उत्तर

दिनकर की काव्यभाषा ओजस्वी है।


Short Question Answers (लघु उत्तरीय प्रश्न)


प्रश्न 1. कवि की दृष्टि में समय के रथ का घर्घर-नाद क्या है ? स्पष्ट करें।
उत्तर

पराधीनता की समाप्ति और स्वाधीनता की प्राप्ति कवि की दृष्टि में समय के रथ का घर्घर-नाद है अर्थात् जनता का समय आया अपना जनतंत्र को कायम करने का।

प्रश्न 2. कविता के आरंभ में कवि भारतीय जनता का वर्णन किस रूप में करता है?
उत्तर

कविता के आरंभ में कवि भारतीय जनता का वर्णन अबोध, मूक मिट्टी की मूरत के रूप में किया है जो सब कुछ सहती आ रही है। गहन वेदना में भी जो भूख नहीं खोल पाई।

प्रश्न 3. कवि जनता के स्वप्न का किस तरह चित्र खींचता है?
उत्तर

कवि जनता के स्वप्न का चित्र अजय जो अन्धकार का भी वक्ष-स्थल चीर डाले, इस प्रकार उमड़ता हुआ खींचा है।

प्रश्न 4. विराट जनतंत्र का स्वरूप क्या है? कधि किनके सिर पर धरने की बात करता है और क्यों ?
उत्तर

भारत के विराट जनतंत्र का स्वरूप 33 करोड़ जनता के हित काही कवि 33 करोड़ भारतीय जनता के सिर पर मुकुट धरने की बात करता है क्योकि प्रजातंत्र में प्रजा हो राजा होता है।

प्रश्न 5. कवि की दृष्टि में आज के देवता कौन हैं और वे कहाँ मिलेंगे।
उत्तर

कवि की दृष्टि में आज का देवता जनता है जो सड़क पर गिट्टी तोडते या खेल-खलिहानों में काम करते मिलेंगे

Long Question Answer (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)


प्रश्न 1. कवि के अनुसार किन लोगों की दृष्टि में जनता फूल या दुधमुंही बच्ची की तरह है और क्यों ? कवि क्या कहकर उनका प्रतिवाद करता है?
उत्तर

कवि के अनुसार राजनायक लोगों की दृष्टि में जन फूल या दुधमुंही बच्ची की तरह है। क्योंकि अब तक राजनायक सोचते आ रहे थे कि जनता पर राजा का अधिकार होता है। जब चाहो उससे अपना राजसिंहासन सजा लो। अथवा दुधमुंही बच्ची की तरह जनता को कुछ देकर उनका मन बहलाकर राज्य का उपभोग कर लो। जिसका प्रतिवाद कवि ने जनता को भगवान कहकर किया है जो सडक पर पत्थर तोड़ते या खेतों में काम करते मिलेंगे।

प्रश्न 2. 'जनतन्त्र का जन्म' कविता का सारांश लिखें।
उत्तर

सदियों से गुलाम भारत स्वतंत्र हो गया। जो भारतीय तुच्छ माने जाते थे वे अब ताज पहनने को तैयार हैं। उन्हें राह दो, समय के रथ के पहिए की आवाज सुनो और सिंहासन खाली करो अब सिंहासन पर आरूढ़ होने के लिए जनता स्वयं आ रही है।
जनता जिसको अबोध, मूक मिट्टी की मूरतें माना जा रहा था, जो सब कुछ सहने वाली, भयंकर तकलीफ काल में भी मुख नहीं खोलने वाली वही जनता तैयार है। जिसने बड़ी-बड़ी वेदना सहती रही है। सब ठीक है जनता सहती आ रही है लेकिन जनमत का भी कुछ अर्थ होता है।
जनता को राजनायक लोग फूल मानते आ रहे थे जब चाहो सजा लो या जब चाहे उतार दो। जनता को दूध मुंही बच्ची की तरह राजनायक लोग समझते आ रहे थे जिसे बहलाने के लिए कुछ देकर बहला दिया जाता था।
लेकिन जनता जब कोप से व्याकुल होकर भौंह चढ़ाती है तो धरती डोलने लगती है। आँधी आ जाती है। अब समय जनता का आ गया है उन्हें रास्ता दो, समय की चक्र को घूमने की आवाज सुनो, सिंहासन खाली करो, जनता अब स्वयं राज्य सत्ता संभालने आ रही है।
जनता की हुंकार से महलों की नींव भी उखड़ जाती है। जनता की साँस (आह) में ताज भी उड़ जाता है। जनता की राह कोई नहीं रोक सकता है। समय में भी वह शक्ति नहीं है। जनता जिधर जाती है समय भी उधर चल पड़ती है।
वर्षों, सदियों या हजारों साल की पराधीनता का अन्धकार समाप्त हो गया। आकाश का द्वार भी दहक जाता है जब जनता स्वतंत्रता का स्वप्न देखता है तो अन्धकार का भी वक्ष चीर देता है।
भारत में विराट जनतंत्र की स्थापना हो गई है। 33 करोड़ जनता को सिंहासन मिलने वाला है जो जनता के हित में होगा। आज प्रजा का अभिषेक होगा। तैंतीस करोड जनता भारत का राजा बनेगा।
कवि कहता है आज का देवता जनता होता है। जो मंदिर, राजमहल, तहखाना आदि में नहीं मिलते हैं वे रास्ते पर गिट्टी तोड़ते या खेत-खेलिहानों में मिलेगा। - कुदाल और हल का शासन पर अधिकार होने वाला है जो धूसरित सोने से शृंगार सजा लेती है। जनतंत्र का समय आ गया। जनता को राह दो, समय के रथ पर घर्घर की आवाज सुनो, सिंहासन खाली करो क्योंकि अब जनता स्वयं अपना सत्ता संभालने आ रही है।


काव्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर

1. सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

जनता? हाँ, मिट्टी की अबोध मूरतें वही,
जाड़े-पाले की कसक सदा सहनेवाली,
जब अंग-अंग में लगे साँप हो चूस रहे,
तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहने वाली।

जनता ? हाँ, लम्बी-बड़ी जीभ की वही कसम,
“जनता, सचमुच ही, बड़ी वेदना सहती है।”
“सो ठीक, मगर, आखिर, इस पर जनमत क्या है?”
“है प्रश्न गूढ़; जनता इस पर क्या कहती है ?”

मानो, जनता हो फूल जिसे एहसास नहीं,
जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में;
अथवा कोई दुधमुंही जिसे बहलाने के
जन्तर-मन्तर सीमित हों चार खिलौनों में।

लेकिन, होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढ़ाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

प्रश्न.
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखें।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) पद्यांश का काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर

(क)कविता-जनतंत्र का जन्म।
कवि-रामधारी सिंह दिनकर।

(ख) प्रस्तुत पद्यांश में ‘जनतंत्र’ की स्थापना के लिए जंगी प्रेरणा को उजागर किया गया है। सदियों से देशी-विदेशी, सत्तालोलुप लोग भारत की राज सत्ता पर अपना वर्चस्व कायम रखकर भारत की जनता को गुमराह रखें। अब क्रांति की घड़ी आ गई है। जनता में जागृति आ गयी है।। यहाँ की सहनशील जनता अपने सामर्थ्य का आभास कर चुकी है। इन्हीं बातों को उजागर करते हुए कवि ने इस पद्यांश में जनतंत्र-स्थापना की बात कही है।

(ग) प्रस्तुत पद्यांश में कवि कहते हैं कि भारत में सदियों से राजतंत्र रहा है। राज सत्ताधारी भोली-भाली जनता पर राज किये हैं और सुख भोग किये हैं। जनता चुपचाप शासक का अनुगामी बनकर जीवन व्यतीत करती रही है। हमेशा जनता शांत रही है। सत्ताधारी मनमानी करते रहे हैं। लेकिन अब कालचक्र क्रांति का संदेश लेकर आ चुका है। समय बदल चुका है। सोयी हुई जनता जाग उठी है। वह अपनी शक्ति का आभास कर चुकी है। अब राजतंत्र चलनेवाला नहीं है। जनता स्वयं राजेगद्दी पर बैठेगी। अब ऐसी व्यवस्था कायम होने का समय आ गया है जिसमें भारत कीतैंतीस करोड़ जनता राज करेगी कोई एक व्यक्ति राजा नहीं होगा। जनतंत्र स्थापित हेतु समय रूपी रथ आ रहा है जिस पर जनता आरूढ़ होकर आ रही है। नवीन क्रांति का बिगुल बज चुका है।
जनता को सिंहासन पर आसीन करने के लिए सिंहासन को खाली करना होगा। यही समय की पुकार है। जनता अबोध मूरत होती है, सहनशील होती है, जब अंग-अंग को साँप चूसते रहते हैं तब भी मुँह नहीं खोलती है, जनता के मेहनत पर राज करता है। जनता को बहला-फुसलाकर कुछ छोटे-मोटे प्रलोभन देकर स्वयं सत्ता-सुख भोग में लिप्त रहता है। देश की संपत्ति का उपयोग जनता की भलाई में न करके अपनी इच्छाओं, कामनाओं की पूर्ति में लिप्त रहता है। फिर भी जनता चुपचाप सब कुछ सहती रहती है। लेकिन जनता में वह शक्ति है जब वह कोपाकुल होती है, जब जाग जाती है, तब आँधी-तूफान की तरह चल पड़ती है जिसे रोकना मुश्किल है। जनता की जागृति बवंडर लानेवाली होती है जिसका सामना सत्ताधारियों के लिए करना मुश्किल होता है। इसलिए कवि कहते हैं कि अब भारत में समय की पुकार जनतंत्र स्थापना के पक्ष में है। राजतंत्र व्यवस्था समाप्त हो रही है। इसलिए जनता का स्वागत करते हुए राजगद्दी उसे सौंपने की तैयारी किया जाय।

(घ) प्रस्तुत पद्यांश में जनतंत्र की स्थापना की बात कही गयी है। साथ ही जनता की शक्ति का बोध कराया गया है। कवि रामधारी सिंह दिनकर ने ओजस्वी भाव में जनता की महत्ता का बोध कराते हुए उसकी सहनशीलता, धैर्य की बात बड़े ही सहज रूप में कहा है। साथ ही भारत की जनता को अपना अधिकार प्राप्त करने जनतंत्र स्थापित करने, राज सिंहासन पर आरूढ़ होने की प्रेरणा का भाव कवि ने जागृत कर सफल प्रयास किया है। इस पद्यांश में जनता की शक्ति का व्यापक चित्रण किया गया है जो ओज का भाव जगाता है।

(ङ) (i) कविता में खड़ी बोली का प्रयोग है।
(ii) इसमें ओज गुण की प्रधानता है साथ ही रूपक की विधा का प्रयोग है।
(ii) कविता में संगीतमयता विद्यमान है।


2. हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती
माँसों के बल से ताज हवा में उड़ता है;
जनता की रोक राह, समय में ताव कहाँ?
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है।
अब्दों, शताब्दियों, सहस्रब्द का अन्धकार बीता;
गवाक्ष अम्बर के दहके जाते हैं;
यह और नहीं कोई, जनता के स्वप्न अजय चीरते तिमिर का वक्ष उमड़ते आते हैं।
सबसे विराट जनतंत्र जगत का आ पहुंचा,
तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तैयार करो;
अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।
आरती लिए तू किसे ढूँढता है मूरख, मन्दिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में ?
देवता कहीं सड़कों पर मिट्टी तोड़ रहे, देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में।
फावड़े और हल राजदंड बनने का हैं,
धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

प्रश्न.
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखें।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) पद्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर

(क) कविता-जनतंत्र का जन्म।
कवि- रामधारी सिंह दिनकर

(ख) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने जनता की शक्ति का आभास कराने का पूर्ण प्रयास किया है। कवि ने कहा है कि राजतंत्र की समाप्ति की बेला आ गई है। अब जनतंत्र का उदय होनेवाला है। समय बदल चुका है। अब राजा का नहीं बल्कि प्रजा का अभिषेक होगा। भारत की मेहनती, खेतों में काम करनेवाली जनता, मजदूरी करनेवाली प्रजा ही राजा बनेगी। यही समय की पुकार है। यह अटल सत्य है।

(ग) प्रस्तुत पद्यांश में कवि रामधारी सिंह दिनकर ने जनता में निहित व्यापक शक्ति को उजागर किया है। इसमें कहा गया है कि जनता जब जाग जाती है, अपने शक्ति बल का अभ्यास करकं जब चल पड़ती है तब समय भी उसकी राह नहीं रोक सकती बल्कि जनता ही जिधर चाहंगी कालचक्र को मोड़ सकती है। युगों-युगों से अंधकारमय वातावरण में जीवन व्यतीत कर रही जनता अब जागृत हो चुकी है।
युगों-युगों का स्वप्न साकार हेतु कदम बढ़ चुके हैं जिसे अब रोका नहीं जा सकता। भारत में सबसे विराट जनतंत्र स्थापित होना तय हो गया है। कवि कहते हैं कि अब इस नवोदित व्यवस्था में राजा नहीं बल्कि प्रजा स्वयं राजगद्दी पर आसीन होगी। भारत की तत्कालीन तैंतीस करोड़ जनता राजा होगी। कवि संकेत करते हैं कि राज्याभिषेक हेतु एक सिंहासन और एक मुकुट नहीं होगा बल्कि तैंतीस करोड़ राजसिंहासन और उतने ही राजमुकुट की तैयारी करनी होगी।
भारत की प्रजा की महत्ता को उजागर करते हुए कवि कहते हैं कि आरती लेकर मन्दिरों और राजमहलों में जाने की आवश्यकता नहीं है बल्कि भारत में मजदूरी करते लोग, खेतों में काम कर रही प्रजा, मजदूर, किसान ही यहाँ के देवता हैं उन्हीं को आरती करने की जरूरत है। अब फावड़े और हल राजदंड होंगे, धूसरता स्वर्ण-शृंगार का रूप लेगा। अर्थात् अब मेहनती, परिश्रमी प्रजा को उसका वास्तविक हक मिलेगा। जनतंत्र की जयघोष होगी। समय की इस पुकार को समझते हुए जनता को आरूढ़ होने के लिए सिंहासन खाली करना होगा।

(घ) प्रस्तुत पद्यांश में जनमत की शक्ति के स्वरूप का प्रदर्शन है। इसमें ओज गुण की प्रधानता है। इसके माध्यम से जनमत की शक्ति का बोध कराया गया है। देश के राज सिंहासन का वास्तविक अधिकारी मेहनती, परिश्रमी, खून पसीना बहानेवाली जनता है। इस पद्यांश में जनता की शक्ति, उसकी महत्ता का यथार्थ चित्रण है। आज वास्तविक देवता, किसान एवं मजदूर है, सिंहासन अधिकारी भी वही हैं। ऐसा भाव इस कवितांश में निहित है।

(ङ) (i) कविता में खड़ी बोली में सहज, सरल एवं सुबोध है।
(ii) इसमें ओज गुण की प्रधानता है।
(iii) कविता में संगीतमयता विद्यमान है।


BSEB Solutions for हिरोशिमा Class 10 Hindi Matric Godhuli

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BSEB Solutions for हिरोशिमा (Hiroshima) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

हिरोशिमा - स० ही० वात्स्यायन अज्ञेय प्रश्नोत्तर

Very Short Questions Answers (अतिलघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. हिन्दी काव्य में ‘अज्ञेय’ ने क्या किया?
उत्तर

हिन्दी-काव्य में ‘अज्ञेय’ ने छायावाद की धारा को प्रगतिवाद में समाहित किया और प्रयोगवाद की शुरुआत की।


प्रश्न 2. ‘तार सप्तक’ क्या है ?
उत्तर

तार सप्तक’ सात प्रयोगधर्मी कवियों के काव्य का संकलन है।


प्रश्न 3. ‘काल-सूर्य’ का अर्थ क्या है ?
उत्तर
काल-सूर्य का अर्थ है मृत्यु का सूरज।


प्रश्न 4. ‘अज्ञेय’ किस-किस साहित्य-पुरस्कार से सम्मानित हुए ?
उत्तर
‘अज्ञेय’ को साहित्य अकादमी के अतिरिक्त ज्ञानपीठ सुगा (युगोस्लाविया) का अंतर्राष्ट्रीय स्वर्णमाल और अनेकों पुरस्कार से सम्मानित किया गया।


प्रश्न 5. ‘अज्ञेय’ ने किस साप्ताहिक पत्र का संपादन कर हिन्दी पत्रकारिता का हिमालय खड़ा किया?
उत्तर
‘अज्ञेय’ ने साप्ताहिक ‘दिनमान’ का संपादन कर हिन्दी पत्रकारिता का हिमालय खड़ा किया।


प्रश्न 6. “हिरोशिमा’ कविता किस छंद में लिखी गई है ?
उत्तर

‘हिरोशिमा’ कविता मुक्त छंद में लिखी गई है।


Short Question Answers (लघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. कविता के प्रथम अनुच्छेद में निकलने वाला सूरज क्या है ? वह कैसे निकलता है ?
उत्तर

कविता के प्रथम अनुच्छेद में निकलने वाला सूरज आण्विक हथियार है। जब वह निकलता है तो प्रलयंकारी दृश्य उपस्थित कर देता है। मनुष्य, जीव-जन्तु, पत्थर आदि सब कुछ भाप बनकर उड़ जाते हैं।

प्रश्न 2. छायाएँ दिशाहीन सब ओर क्यों पड़ती हैं ? स्पष्ट करें।
उत्तर

दोपहर में जब सूर्य पूर्व में होता है तो छायाएँ पश्चिम और अर्थात् विपरीत दिशा (दिशाहीन) की ओर पड़ती है।

प्रश्न 3. प्रज्वलित क्षण की दोपहरी से कवि का आशय क्या है?
उत्तर

जब किसी क्षेत्र पर परमाणु बम गिराया जाता है तो सब कुछ जलने लगता है। मानो प्रलयंकारी सूर्य दोपहर के समय प्रज्वलित जैसा होकर सबको सोख रहा है अर्थात् सब जल जाते हैं।

प्रश्न 4. मनुष्य की छायाएँ कहाँ और क्यों पड़ी हुई हैं ?
उत्तर

मनुष्य की छायाएँ हिरोशिमा क्षेत्र में पड़ी हैं। अर्थात् मानव की छाया (प्रतीक) चिह्न अभी भी देखा जा सकता है कि किस प्रकार की बर्बादी (त्रासदी) वहाँ मचाया गया। मानव तो भाप बनकर उड़ गये लेकिन उनकी छाया ( प्रतीक) अभी भी मौजूद है। एक साक्षी के रूप में।

प्रश्न 5. हिरोशिमा में मनुष्य की साखी के रूप में क्या है ?
उत्तर

हिरोशिमा में परमाणु बम गिराया सब कुछ भाप बनकर उड़ गया। मनुष्य उड़ गये । चारों ओर बर्बादी ही बर्बादी हुई। हिरोशिमा में उस नरसंहार की छाया अभी भी हिरोशिमा में देखी जा सकती है। अर्थात् वहाँ का दृश्य स्पष्ट बयान करता है मानव त्रासदी का। हिरोशिमा का वह दृश्य मनुष्य की साखी रूप में है।

Long Question Answer (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. 'हिरोशिमा' शीर्षक कविता का सारांश लिखें।
उत्तर

हिरोशिमा जापान का शहर है। जापान को उगते हुए सूरज का देश - कहा जाता है। एक दिन प्रलयंकारी सूर्य के समान हिरोशिमा शहर के चौक पर परमाणु बम का विस्फोट हुआ जो दिशाहीन मानव के मस्तिष्क की उपज थी। काल के प्रलयंकारी तांडव से जापान की रुक गईं। मानो उगते हुए सूर्य के रथ के पहिये का अरे (कील) टूट गया हो और रथ के हरेक पाट-पुर्जे दिशाओं में बिखर गये हों। वही स्थिति जापान की हुई।
क्षण भर में उदय सूर्य का देश कहलाने वाला अस्त हो गया। एक क्षण में सब कुछ जल गया। मानो प्रलयंकारी सूर्य अपने दोपहरी रूप में सबकुछ सोख लिया है। कितने मनुष्य भाप बनकर उड़ गये, कितने की लाशें धरती पर बिछ गई, पत्थरों पर सड़कों पर सब जगह लाश ही लाश।
जिस मानव ने उगते हुए सूर्य का देश जापान को बनाया, वही मानव, मानव को भाप बनाकर सोख लिया। जापान का यह विध्वंसकारी घटना दिशाहीन मानव के कुकृत्य का साक्षी (गवाह) है।


काव्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर

1. एक दिन सहसा
सूरज निकला
अरे क्षितिज पर नहीं,
नगर के चौक
धूप बरसी
पर अन्तरिक्ष से नहीं,
फटी मिट्टी से।
छायाएँ मानव-जन की
दिशाहीन
सब ओर पड़ीं-वह सूरज
नहीं उगा था पूरब में, वह
बरसा सहसा
बीचों-बीच नगर के
काल-सूर्य के रथ के
पहियों के ज्यों अरे टूट कर
बिखर गये हों
दसों दिशा में।

प्रश्न.
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर

(क) कविता–हिरोशिमा।
कवि-सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’।

(ख) प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश में प्रयोगवादी विचारधारा के प्रमुख कवि अज्ञेय ने आधुनिक सभ्यता का दुर्दात मानवीय विभीषिका का चित्रण किया है। जापान के प्रमुख शहर हिरोशिमा पर मानव जाति ने आण्विक तत्त्वों का क्रूरता के साथ दुरुपयोग करने से जो भीषणतम परिणाम सामने आया उसी का एक साक्ष्य है। इस साक्ष्य के माध्यम से कवि एक अनिवार्य चेतावनी दे रहे हैं।

(ग) सरलार्थ-प्रस्तुत पद्यांश में जापान के प्रमुख शहर हिरोशिमा पर अमरीका द्वारा क्रूरता से जब आण्विक आयुध का प्रयोग किया गया तो हिरोशिमा तो क्या संपूर्ण विश्व की सभ्यता कराह उठी। उस भीषणतम आण्विक शक्ति के प्रयोग के बाद जो हिरोशिमा की स्थिति हुई उसी स्थिति का वर्णन कवि साक्ष्य के धरातल पर करते हैं। कवि कहते हैं कि अचानक एक प्रचण्ड ज्वाला से प्रज्वलित धरातल को फोड़ता हुआ आण्विक बम रूपी सूरज निकला। हिरोशिमा नामक शहर के खबूसरत चौक चौराहे पर प्रचण्ड ताप लिये हुए धूप निकली।
यह धूप अंतरिक्ष के स्थल से नहीं निकलकर धरती की छाती को फोड़कर निकली और अपनी प्रचण्डता को बिखरती हुई पूरे हिरोशिमा को जलाने लगी। बम विस्फोट से चारों ओर इतनी ज्वाला फैली कि समस्त जन-जीवन क्रूरता के गाल में समाहृत हो गया। प्रकृति प्रदत्त सूरज जब पूरब से उगता है तब एक निश्चित दिशा में निश्चित छाया बनती है लेकिन इस आण्विक बम रूपी सूर्य के उगने से समस्त जीवों की छायाएँ जहाँ-तहाँ पड़ी हुई मिलीं। जैसे लगा कि पूर्व दिशा का एक सूरज नहीं उगा है चारों ओर सूर्य ही सूर्य उगा हुआ है। कवि साक्ष्य के आधार पर कहते हैं कि जैसे लगता है महाकाल-रूपी सूर्य के रथ के पहिये टूटकर दसों दिशाओं के साथ शहर के केन्द्र में बिखर गये हैं। अर्थात् चारों ओर हाहाकार और कोहराम की ध्वनि गुजित हो रही है। आधुनिक सभ्यता की दुर्दात मानवीय विभीषिका चित्र दिखाई पड़ रहे थे। विनाश का भीषणतम लीला का रूप मुंह बाये खड़ा था।

(घ) भाव-सौंदर्य – प्रस्तुत पद्यांश का भाव पूर्ण रूप से चित्रात्मक शैली में उद्धत है। प्रयोगवादी वातावरण स्पष्ट रूप से मिल रहे हैं। हिरोशिमा पर बम विस्फोट के बाद उभरे हुए नतीजे वर्षों तक मानव के, संवेदनाओं को झकझोर रहे हैं और जैसे उनसे प्रश्न पूछ रहे हैं कि क्या तुम्हारी सभ्यता की यही पहचान है?

(ङ) काव्य-सौंदर्य-
(i) कविता की भाषा पूर्णतः खड़ी बोली है।
(ii) यहाँ तद्भव के साथ तत्सम शब्दों का प्रयोग अर्थ की गंभीरता में सहायक है।
(iii) सम्पूर्ण कविता मुक्तक छंद में लिखी गयी है।
(iv) अलंकार योजना की दृष्टि से उपमा, अनुप्रास, दृष्टांत की छटा प्रशंसनीय है।
(v) इसमें वस्तु, भाव, भाषा, शिल्प आदि के धरातल पर प्रयोगों और नवाचरों की बहुलता है।
(vi) कविता में प्रयोगवाद की झलक मिल रही है।
(vii) ओजगुण में लिखी कविता भाव को सार्थक बना रही है।


2. कुछ क्षण का वह उदय-अस्त !
केवल एक प्रज्वलित क्षण की
दृश्य सोख लेने वाली दोपहरी।
फिर?
छायाएँ मानव जन की
नहीं मिटीं लम्बी हो-हो कर;
मानव ही सब भाप हो गये।
छायाएँ तो अभी लिखी हैं
झुलसे हुए पत्थरों पर
उजड़ी सड़कों की गच पर।
मानव का रचा हुआ सूरज
मानव को भाप बना कर सोख गया।
पत्थर पर लिखी हुई यह
जली हुई छाया
मानव की साखी है।

प्रश्न.
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखें।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ). काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर

(क) कविता-हिरोशिमा।
कवि- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’।

(ख) प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश में कवि अज्ञेय हिरोशिमा पर हुए बम विस्फोट के कठोरतम परिणाम का साक्ष्य प्रकट करते हैं। साक्ष्य इतना अमानवीय है कि आज भी इसके समस्त मानस पटल पर किसी-न-किसी रूप में उभरते रहते हैं।

(ग) सरलार्थ- इतिहास प्रसिद्ध हिरोशिमा की घटना आज भी राजनीति से उपजते संकट की आशंकाओं से जुड़ी हुई है। कवि कहते हैं कि यह घटना कुछ क्षण के उदयास्त में इस तरह का दोपहरी वातावरण निर्माण हुआ जिसमें केवल धूप की प्रचण्डता ही थी। वह प्रचण्डता उदय-अस्त के वातावरण को मिटाकर केवल ज्वलनशीलता रूपी दोपहर सामने उभरकर आया।
अनेक लोग जलकर राख हो गये। जो जहाँ था इस आण्विक बम प्रयोग से वहीं मरकर सट गया। जिसके दाग और निशान वर्षों तक अंकित रहे। मानवीय छायाएँ इतनी लम्बी और गहरी हुई कि अभी भी यह अंकित है। जैसे लगा कि सभी मानव भाप बनकर ब्रह्माण्ड में व्याप्त हो गये हैं। ज्वाला इतनी भीषण थी कि पत्थर भी झुलस गए। सड़कें क्षत-विक्षत हो गईं। मानव के द्वारा निर्मित बम रूपी सूरज खुद मानव को ही भाप बनाकर सोख गया। अर्थात् मानव के द्वारा रचित यह आण्विक बम मानव को ही विनाश कर बैठा। आज भी जहाँ-तहाँ मरे हुए मानव की छाया जो अंकित है वह आधुनिक सभ्यता की दुर्दात मानवीय विभीषिका की कहानी का गवाह है।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत अंश में अतीत की भीषणतम मानवीय दुर्घटना का साक्ष्य प्रकट किया गया है। साथ ही आण्विक आयुधों की होड़ में फंसी आज की वैश्विक राजनीति से उपजते
संकट की आशंकाओं से जुड़ी हुई है।

(ङ) काव्य-सौंदर्य-
(i) कविता खड़ी बोली में है।
(ii) सम्पूर्ण कविता में प्रयोगवाद की झलक मिलती है। स्वतंत्र छंद में लिखी कविता मुक्तक की पहचान करा रही है।
(ii) साहित्यिक गुण की दृष्टि से ओज गुण के अंश देखने को मिल रहे हैं।
(iv) इसमें वस्तु, भाव, भाषा, शिल्प आदि के धरातल पर प्रयोगों और नवाचरों की बहुलता है। अलंकार की योजनाओं से उपमा पुनरुक्ति प्रकाश एवं अनुप्रास की छटा प्रशंसनीय है।

BSEB Solutions for एक वृक्ष की हत्या Class 10 Hindi Matric Godhuli

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BSEB Solutions for एक वृक्ष की हत्या (Ek Vriksh ki Hatya) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

एक वृक्ष की हत्या - कुंवर नारायण प्रश्नोत्तर

Very Short Questions Answers (अतिलघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. कुँवर नारायण कैसे कवि हैं ?
उत्तर

कुंवर नारायण मनुष्यता और सजीवता के पक्ष में संभावनाओं के द्वार खोलने वाले कवि हैं।


प्रश्न 2. कुंवर नारायण ने काव्य के अतिरिक्त किन विधाओं को समृद्ध किया है ?
उत्तर
कुंवर नारायण ने काव्य के अतिरिक्त कहानी, निबंध और समीक्षा के क्षेत्र को समृद्ध किया है।


प्रश्न 3. कुंवर नारायण को कौन-कौन पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं ?
उत्तर

कुँवर नारायण को साहित्य अकादमी पुरस्कार, कुमार, आशान पुरस्कार, प्रेमचन्द पुरस्कार के अलावा व्यास-सम्मान, कबीर सम्मान और लोहिया सम्मान प्राप्त हुए हैं।


प्रश्न 4. कवि घर लौटा तो कौन नहीं था?
उत्तर

कवि अबकी बार घर लौटा तो चौकीदार की तरह घर के दरवाजे पर तैनात रहने वाला बूढ़ा वृक्ष नहीं था।


प्रश्न 5. “एक वृक्ष की हत्या’ कविता का वर्ण्य-विषय क्या है?
उत्तर

एक वृक्ष की हत्या’ का वर्ण्य-विषय है नाना प्रकार के प्रदूषण और छीजते मानव-मूल्या ।


Short Question Answers (लघु उत्तरीय प्रश्न)


प्रश्न 1. कवि को वृक्ष बूढ़ा चौकीदार क्यों लगता था ?
उत्तर

वृक्ष पुराना था, मोटा और मटमैला उसके छाल थे मानो खाकी वर्दी धारण कर रखा हो, एक सूखी डाल जो ऐसा लगता था मानो चौकीदार की राइफल हो। वृक्ष घर के आगे में था जो चौकन्ना जैसा सावधान होकर खड़ा दिखाई पड़ता था। इसलिए वृक्ष कवि को बूढा चौकीदार जैसा लगता था।

प्रश्न 2. वृक्ष और कवि में क्या संवाद होता था ?
उत्तर

वृक्ष में मानवीकरण कर कवि ने वृक्ष के साथ संवाद प्रस्तुत किया हैवृक्ष दूर से कवि को पूछता -"कौन ?" कवि जवाब देता "दोस्त !"

प्रश्न 3. इस कविता में एक रूपक की रचना हुई है। रुपक क्या है और यहाँ उसका क्या स्वरूप है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

रूपक एक अलंकार है। यहाँ उपमा के रूपक की रचना की गई है। जैसे-कविता में वृक्ष की उपमा वफादार चौकन्ना चौकीदार से किया गया है।

Long Question Answer (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. कविता का समापन करते हुए कवि अपने किन अंदेशों का जिक्र करता है और क्यों?
उत्तर

कविता का समापन करते हुए कवि को अंदेशा है घर के लुटेरों का, शहर के नदियों का, देश के दुश्मनों का, नदियों को नाला हो जाने का, हवा को धुआँ हो जाने का, खाना जहर हो जाने का, जंगल को मरुस्थल बनने का और मनुष्य को जंगली हो जाने का। क्योंकि वृक्ष के कटने से पर्यावरण दूषित हो जाएगी, लोग बीमार पड़ेंगे, गाँव-शहर बर्बाद हो जायेगा। नदियाँ सिमटकर नाला बन जाएगी। हवा में कार्बन डाइऑक्साइड की वृद्धि और ऑक्सीजन की कमी हो जाएगी। खाने का वस्तु जहर हो जाएगा। जंगल मरुस्थल का रूप ले लेगा। तब मनुष्य पाश्विक प्रवृत्ति को अपनाकर जंगली जानवर की तरह व्यवहार करेगा।

प्रश्न 2. घर, शहर और देश के बाद कवि किन चीजों को बचाने की बात करता है और क्यों?
उत्तर

घर, शहर और देश के बादक कवि नदियों को नाला होने से, हवा को धुआँ होने से, खाना जहर हो जाने से, जंगल को मरुभूमि बनने से तथा मनुष्य की मनुष्यता खत्म होने से बचाने की बात करता है क्योंकि वृक्ष के काटे जाने से पर्यावरण बिगड़ जाता है। वर्षा नहीं होगी तो नदियाँ सूखकर नाली जैसा रूप ले लेगी। हवा में कार्बन डाइऑक्साइड गैस की बाहुलता हो जएगी ऑक्सीजन नहीं रहेगी। खाने की वस्तु जहरीली हो जाएगी। जंगल मरुभूमि बन जाएगा तथा मानव सभ्यता ही समाप्त हो जाएगी।

प्रश्न 3. कविता की प्रासंगिकता पर विचार करते हुए संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर

"एक वृक्ष की हत्या" शीर्षक कविता प्रासंगिता विचारणीय है। क्योंकि आज के औद्योगिक काल में एक ओर जहाँ उद्योग-धंधे बढ़ रहे हैं उससे निकलने वाला दूषित गैस से पर्यावरण दूषित हो रहा है। वहीं दूसरी ओर वृक्ष दूषित गैस को ग्रहण कर ऑक्सीजन देता है। वन काटे जा रहे हैं, शहरों का निर्माणको है। वन कट जाएंगे तो वर्षा नहीं होगी। अन्न नहीं उपजेंगे तो महामारी फैलेगी । नदियाँ सख जाएंगी। भूमि मरुस्थल में परिवर्तन हो जाएगा। इस अवस्था में मानव सध्यता का अन्त हो जाएगा। अत: वृक्ष को बचाने से ही उपरोक्त सारी चीज बचेंगी।

प्रश्न 4. कविता के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

“एक वृक्ष की हत्या" शीर्षक सार्थक है। क्योंकि एक वृक्ष जो कवि को वफादार चौकन्ना चौकीदार सादृश्य लग रहा था। वृक्ष सबकी रक्षा करता है। अगर वह काटा जाता है तो वह उसकी हत्या है। हम जब वृक्ष की हत्या होने से बचाएंगे तो हमारा पर्यावरण वचंगा, भूमि मरुस्थली होने से बचेगा तथा मानव-सभ्यता नाश होने से बचेगा।

प्रश्न 5. काव्य का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर

कवि के घर के आगे एक पुराना वृक्षा था। कभी कवि घर से बाहर जाता है। वह जव घर लौटता है तो पेड़ कटा देखकर उसकी अंतर्व्यथा उबल पड़ती है।
पद-अबकी घर लौटा तो देखा ............... मनुष्य को जंगल हो जाने से।
अर्थात् इस बार जब घर आया तो देखा वह पेड़ नहीं था जो बूढ़ा चौकीदार के तरह हमेशा दरवाजे पर तैनात मिलता था। पुराने चमड़े (छाल) पहने लेकिन मजबूत था। मटमैला खुरदुरा उसका तन था। एक सूखी डाल भी उसमें लगा था। मानी वह उसका राइफल हो उसके ऊपर फूलपत्ती थी थे मानो वह उसका पगड़ी हो। पुराना जड़ ऐसा लगता था मानो वह उसका फटा पुराना जूता हो जो चरमराता प्रतीत होता है। लेकिन बल-बूते अक्खड़ जैसा।
धूप-बारिश, गर्मी-सर्दी हरेक अवस्था में वह चौकन्ना दिखाई पड़ता था। खाकी वर्दी पहने चौकीदार के तरह। ऐसा चौकीदार मानो जब भी मैं आता तो दूर से ललकारता "कोन" ? तब मैं जवाब देता "दोस्त"। और क्षणभर के लिए उसकी छाँव में बैठ जाता था।
दरअसल पेड़ कवि ने एक जानी दुश्मन से बचाने के लिए लगाया था। - यदि आपको भी अपने घर का बचाना है लुटेरों से, शहर को बचाना है नादरों से देश को बचाना है देश के दुश्मनों से, नदियों को नाला होने से। हवा को धुआँ होने से खाना को जहर बनने, जंगल को मरुस्थल होने से और यदि बचाना है मनुष्य को जंगली जानवर की तरह हिंसक हो जाने से तो पेड़ को बचाना होगा। वह हमारा आपका सबका रक्षक है ।


काव्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर

1. अबकी घर लौटा तो देखा वह नहीं था
वही बूढ़ा चौकीदार वृक्ष
जो हमेशा मिलता था घर के दरवाजे पर तैनात।
पुराने चमड़े का बना उसका शरीर
वही सख्त जान
झुर्रियोंदार खुरदुरा तना मैलाकुचैला,
राइफिल-सी एक सूखी डाल,
एक पगड़ी फूलपत्तीदार,
पाँवों में फटा पुराना जूता,
चरमराता लेकिन अक्खड़ बल-बूता
धूप में बारिश में
गर्मी में सर्दी में
हमेशा चौकन्ना
अपनी खाकी वर्दी में
दूर से ही ललकारता, “कौन ?”
मैं जवाब देता, “दोस्त !”
और पल भर को बैठ जाता
उसकी ठंढी छांव में

प्रश्न.
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर

(क) कविता-एक वृक्ष की हत्या।
कवि-कुँवर नारायण।

(ख) प्रसग-हिन्दी काव्य धारा के सुप्रसिद्ध कवि कुँवर नारायण ने प्रस्तुत कविता ‘एक वृक्ष की हत्या’ के इस अंश में पर्यावरण की व्यवस्था पर उठते अनेक सवालों की ओर प्रबुद्ध वर्गों को आकर्षित किया है। यहाँ कवि कहना चाहते हैं कि आज प्रबुद्ध वर्ग ही क्षणभंगुर, स्वार्थपरता की लोलुपता में वृक्षों को काटकर शाश्वतता के साथ खिलवाड़ कर रहा है।

(ग) सरलार्थ-कवि पूर्ण रूप से संवेदनशील हैं अत: ‘एक वृक्ष की हत्या’ के बहाने मनुष्य और सभ्यता के विनाश की ओर ध्यानाकर्षित करते हुए कहते हैं कि.मेरे घर के बाहर ठीक दरवाजे के सामने एक विशाल छायादार वृक्ष था। कुछ दिनों के बाद जब मैं अबकी बार घर लौटा तो देखा कि उस.वृक्ष को काट दिया गया है। वह बूढा वृक्ष चौकीदार के समान घर के दरवाजे पर तैयार रहता था। वह वृक्ष इतना बूढ़ा और पुराना हो गया था कि उसके तने के बाहरी भाग बिल्कुल काले पड़ गये थे, जैसे लगता था कि वह चौकीदार सख्त और पुराने चमड़े धारण करके खड़ा रहता है। जहाँ-तहाँ वृक्ष के तने में ऊबड़-खाबड़, ऊँच-नीच की स्थितियाँ उत्पन्न हो गयी थीं। कई डालियाँ सूख गयी थीं तो लगता था कि वह बूढ़े वृक्ष के शरीर से झुर्रियाँ लटक रही हैं और कंधे पर राइफल लेकर रखवाली कर रहा है। उसकी ऊँची टहनी पर सुन्दर-सुन्दर फूल के गुच्छे और हरे-हरे पत्ते उसकी पगड़ी के रूप में सुशोभित होते थे। उसके पुराने जड़ फटे-पुराने जूते के समान लगते थे। जैसे लगता था उसके जड़ चरमरा रहे हैं, फिर भी विपरीत परिस्थितियों में शक्ति सामर्थ्य के साथ डटा रहने वाला था। प्रचण्ड गर्मी, मूसलाधार बारिश, कड़ाके की ठंड में हमेशा चौकन्ना रहकर पुराने छाल रूपी खाकी वरदी पहनकर डटा रहता था।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत पद्यांश का भाव यह है कि एक तुरन्त काटे गये वृक्ष के बहाने पर्यावरण, मनुष्य और सभ्यता के विनाश की अंत:व्यथा को अभिव्यक्त करता है। मानव जो अपने आपको प्रबुद्ध वर्ग कहता है वही क्षणभंगुर स्वार्थ की लिप्सा में पड़कर शाश्वतता के साथ कैसा खतरनाक खिलवाड़ करता है। मानवीय संवेदनाओं और चिंताओं की अभिव्यक्ति अप्रत्यक्ष रूप में दिखाई पड़ती है।

(ङ) काव्य सौंदर्य-
(i) प्रस्तुत कविता खड़ी बोली में लिखी गई है। भाषा प्रतीकात्मक शैली में है जहाँ रूपक का वातावरण अति प्रशंसनीय है।
(ii) तद्भव, तत्सम, देशज और विदेशज शब्दों का सम्मिलित रूप कविता का सौंदर्य बोध स्पष्ट दिखाई पड़ता है।
(iii) बूढा, चौकीदार, खुरदरा, झुर्रियाँदार ये सभी बिम्बात्मक शब्द रूपक के रूप में कविता को सारगर्भित बना रहे हैं। मुक्तक छंद की कविता होते हुए भी कविता में संगीतमयता आ गई है।
(iv) भाषा परिष्कृत और साफ-सुथरी है। यहाँ यथार्थ का खुरदरापन मिलता है और उसका सहज सौंदर्य भी।


2. दरअसल शुरू से ही था हमारे अन्देशों में
कहीं एक जानी दुश्मन ।
कि घर को बचाना है लुटेरों से
शहर को बचाना है नादिरों से
देश को बचाना है देश के दुश्मनों से
बचाना है-
नदियों को नाला हो जाने से
हवा को धुआँ हो जाने से ।
खाने को जहर हो जाने से:
बचाना है – जंगल को मरुस्थल हो जाने से,
बचाना है – मनुष्य को जंगल हो जाने से।

प्रश्न.
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखें।
(ख) पद्याश का प्रसंग लिखें।
काव्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट कर की हत्या।

उत्तर

(क) कविता– एक वृक्ष की हत्या।
कवि- कुँवर नारायण।

(ख) प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने कहा है कि पर्यावरण, सभ्यता, संस्कृति, राष्ट्र एवं मानवता के दुश्मन की आशंका हमेशा है। इनके दुश्मन हमारे बीच विद्यमान हैं और हमें उन्हें बचाने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। इनकी रक्षा हेतु हमें आगे आना होगा। पर्यावरण की रक्षा करके या वृक्षों की रक्षा करके ही हम मनुष्य का बचा सकते हैं। इनके रक्षार्थ हमें इनके प्रति संवेदनशील होना होगा।

(ग) सरलार्थ- प्रस्तुत पद्यांश में कवि कुँवर नारायण जी आने वाले पर्यावरण संकट की और ध्यानाकर्षण कराते हैं। घर को लुटेरों का खतरा होता है। शहर को नादिरों से खतरा है। इन्हें बचाने की आवश्यकता है। देश को देश के दुश्मनों से रक्षा करने की आवश्यकता है। अर्थात् मनुष्यता और सभ्यता की रक्षा अनिवार्य रूप से होनी चाहिए और इसके लिए हमें सचेत होना होगा। कवि आगे कहते हैं कि आने वाले दिनों में पर्यावरण प्रदूषण की खतरा मँडरा रहा है। हम वृक्ष का महत्व नहीं देते हैं और उसे बिना सोचे-समझे काट रहे हैं। वृक्ष, पौधे, वनस्पतियों के बचाव से मनुष्य के स्वास्थ्य की रक्षा हो सकती है। हमें नदियों को नाला होने से, हवा को धुआँ होने से, खाने को जहर होने से, जंगल को मरुस्थल होने से एवं मनुष्य को जंगल होने से बचाना होगा। इस बचाव कार्य के सदुपायों पर चिंतन करते हुए पर्यावरण, सभ्यता एवं मनुष्यता की हर हाल में रक्षा करनी होगी। इसके लिए वृक्ष की महत्ता को समझना होगा। उसकी हत्या नहीं करनी होगी।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत पद्यांश में कवि समस्त प्रबुद्ध वर्गों के लिए गंभीर चिंता का सवाल खड़ा कर दिया है। यह पद्यांश आज के समय की अपरिहार्य चिंताओं और संवेदनाओं का रचनात्मक बोध कराता है। सहजता और स्वाभाविकता की अंत:कलह कासे पर्यावरण की सुरक्षा की ओर अग्रसर करता है। केवल कोरे कागज पर या खोखले नारेबाजी से पर्यावरण की सुरक्षा का चिंतन करने के बजाय प्रयोगवादी धरातल पर अंजाम देने की आवश्यकता पर कवि जोर दिया है। यदि प्रबुद्ध वर्ग ऐसा नहीं करता है तो शाश्वता के कोपभाजन का शिकार उसे निश्चित रूप से होना पड़ेगा।

(ङ) काव्य-सौंदर्य-
(i) प्रस्तुत कविता खड़ी बोली में लिखी गई है।
(i) भाषा सरल और सुबोध है। यहाँ अलंकार की योजना से रूपक, उपमा और अनुप्रास की छटा प्रशंसनीय है।
(iii) कविता में मानवीकरण की प्राथमिकता है।
(iv) शैली की दृष्टि से चित्रमयी शैली अति स्वाभाविक रूप में उपस्थित है।
(v) भाव के अनुसार भाषा का प्रयोग कविता में पूर्ण व्यंजकता उपस्थित करती है।
(vi) भाषा और विषय की विविधता कविता के विशेष गुण हैं।

BSEB Solutions for हमारी नींद Class 10 Hindi Matric Godhuli

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BSEB Solutions for हमारी नींद (Hamari Neend) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

हमारी नींद - वीरेन डंगवाल प्रश्नोत्तर

Very Short Questions Answers (अतिलघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. वीरेन डंगवाल का जन्म कहाँ हुआ है ?
उत्तर

वीरेन डंगवाल का जन्म उत्तरांचल के कीर्तिनगर में हुआ।


प्रश्न 2. वीरेन डंगवाल ने काव्य रचना के अलावा क्या कर हिन्दी को समृद्ध किया है ?
उत्तर

वीरेन डंगवाल ने काव्य-रचना के अलावा विश्व के श्रेष्ठ कवियों की कविताओं का अनुवाद कर हिन्दी को समृद्ध किया है।


प्रश्न 3. यथार्थ को डंगवाल किस प्रकार प्रस्तुत करते हैं?
उत्तर

यथार्थ को डंगवाल बिल्कुल नये अंदाज में प्रस्तुत करते हैं।


प्रश्न 4. वीरेन डंगवाल कैसे कवि हैं ?
उत्तर

वीरेन डंगवाल जनवादी परिवर्तन के पक्षधर प्रमुख सामयिक कवि हैं।


प्रश्न 5. ‘हमारी नींद’ कविता का संदेश क्या है ?
उत्तर

‘हमारी नींद’ कविता का संदेश है संघर्ष ही जीवन है।


प्रश्न 6. वीरेन डंगवाल की काव्य भाषा कैसी है ?
उत्तर
वीरेन डंगवाल की काव्य-भाषा में देशी ठाठ दिखाई देता है।


Short Question Answers (लघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. मक्खी के जीवन-क्रम का कवि द्वारा उल्लेख किए जाने का क्या आशय है?
उत्तर

मक्खी के जीवन क्रम का कवि द्वारा उल्लेख किए जाने का आशय है कि मानव जीवन क्रम में अनगिनत आशाएँ और इच्छाओं की उत्पत्ति होती है| उनमें से कुछ आशाएँ और इच्छा परिस्थिति के प्रतिकूलन के कारण समाप्त भी हो जाते हैं।

प्रश्न 2. कवि गरीब बस्तियों का क्यों उल्लेख करता है?
उत्तर

कवि गरीब बस्तियों का उल्लेख इसलिए करता है कि ग्रामीण परिवेश के लोग भी अब आराम और सुविधायुक्त जीवन जीना आरम्भ कर दिये हैं जिससे जीवन लापरवाही का शिकार हो जाता है।

प्रश्न 3. कविता में एक शब्द भी ऐसा नहीं है जिसका अर्थ जानने की कोशिश करनी पड़े। यह कविता की भाषा की शक्ति है या सीमा ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

किसी भी कविता में सरल शब्दों का प्रयोग करना भाषा की शक्ति नहीं बल्कि सीमा है। किसी भी कविता में या किसी भी भाषा की कविता में जटिल शब्दों की भी भाषा है लेकिन जब जटिलता की सीमा को पार कर सरल शब्द सीमा में रहकर हम कविता लिखते हैं तो सरल शब्दों का प्रयोग सीमा ही माना जाएगा।

Long Question Answer (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. कवि किन अत्याचारियों का और क्यों जिक्र करता है ?
उत्तर

कवि के द्वारा जिन अत्याचारियों का जिक्र किया गया है। वे हैं-आराम, सुविधा और लापरवाही। क्योंकि मानव जीवन में जब उपरोक्त आराम आदि अत्याचारियों का प्रभाव बढ़ जाते हैं तो मानव जीवन जो विकासशील है विकास की धारा कुछ अंशों में अवश्य शिथिल पड़ती है। अर्थात् अगर मानव जीवन में आराम, सुविधा और लापरवाही को जगह नहीं दी जाय तो अवश्य मानव जीवन के विकास की गति में अनुरूपता होगी।

प्रश्न 2. इन्कार करना न भूलने वाले कौन हैं ? कवि का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर
इन्कार करना न भूलने वाले हैं-आरामपसंद लोग, साधनसम्पन्न लोग और लापरवाह लोग। कवि का भाव यह है कि सभी लोग जानते हैं कि आराम, -सुविधा और लापरवाही को जीवन में स्थान देने से बहुत-सी इच्छाएँ, आकांक्षाओं आदि परिस्थिति के प्रतिकूलन के कारण से विनष्ट हो जाता है। लेकिन मनुष्य भी क्या चीज है जो विषम परिस्थिति को उत्पन्न करने वाले आराम, सुविधा और लापरवाही को इन्कारना भूलते ही नहीं।

प्रश्न 3. कविता के शीर्षक की सार्थकता पर विचार कीजिए।
उत्तर

“ हमारी नींद" अर्थात् हमारी लापरवाही या आराम पसंद जीवन आगे बढ़ने में बाधक है। अर्थात् ये सब चीजें गतिशील जीवन की गति को शिथिल करता हैं। परन्तु हमारा जीवन विषम परिस्थिति उत्पन्न करने वाली हमारी नींद की परवाह बिना किये भी आगे बढ़ता ही जाता है। कविता में "हमारी नींद" यदि जीवन का अवरोधक है तो जीवन भी "हमारी नोंद" से उत्पन्न बाधा का बिना परवाह किये आगे बढ़ता है। अत: इस कविता का शीर्षक "हमारी नींद" सार्थक है।

प्रश्न 4. कविता के प्रथम अनुच्छेद में कवि एक बिम्ब की रचना करता है। उसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

कविता के प्रथम अनुच्छेद में कवि ने एक बिम्ब की रचना करते हुए कहा है कि मानव जीवन एक बीज के समान है। जैसे बीज में अंकुरण का ग होता है उसी प्रकार मानव जीवन में भी आगे बढ़ने का गुण प्रकृति प्रदत्त है। बोली का अंकुरण अनुकूलन बीज के परतों को चीड़कर निकल जाता है। उसी प्रकार मानव जीवन के आगे बढ़ते गुण परिस्थितियों के घेरे को तोड़कर आगे बढ़ जाता है।

प्रश्न 5. हमारी नींद कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर

जैसे नींद के दौरान कुछ इंच छोटे-छोटे पौधे बढ़ जाते हैं। उसी प्रकार मनुष्य के बेपरवाही में भी जीवन आगे बढ़ जाता है। जैसे अंकुर अपने नाममात्र कोमल सींग से बीज के भीतर फूली हुई छत को भीतर से धकेलना शुरू करता है। उसी प्रकार मानव जीवन परिस्थितियों से लडकर आगे बढ़ने का प्रयास करता है।
एक मक्खी के जीवन क्रम में अनेक शिशु पैदा होते हैं, उनमें से कुछ मर भी जाते हैं-दंगे, आगजनी और बमबारी में।
उसी प्रकार मानव जीवन क्रम में अनेक आकांक्षाएँ उत्पन्न होती हैं और उनमें से कुछ आकांक्षाएँ परिस्थितिवश स्वयं समाप्त हो जाते हैं तो कुछ परे भी होते हैं। मनुष्य की लापरवाही के बावजूद। जैसे गरीब बस्तियों में भी जोरदार तरीके से लाउडस्पीकर पर देवी जागरण होता है। अर्थात् ग्रामीण परिवेश में भी लोगों ने आराम, सुविधा और लापरवाहीयुक्त जीवन जीना आरम्भ कर दिया है। यानी साधन तो सभी जुटा लिए हैं अत्याचारियों ने अर्थात् विभिन्न लापरवाही से जीवन घिर जाता है। मगर यह जीवन भी हठीला की भाँति आगे बढता जाता है बिना लापरवाही का परवाह किये बिना ही।
आरामतलब और लापरवाही जीवन मनष्य को आगे बढ़ने में परेशानी लाता है यह जानकर भी मनुष्य उसे जीवन बाधकों को इन्कार नहीं करना चाहते हैं।


काव्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर

1. मेरी नींद के दौरान
कुछ इंच बढ़ गए पेड़
कुछ सूत पौधे
अंकर ने अपने नाममात्र कोमल सींगों से
धकेलना शुरू की
बीज की फूली हुई
छत, भीतर से।
एक मक्खी का जीवन-क्रम पूरा हुआ
कई शिशु पैदा हुए, और उनमें से
कई तो मारे भी गए
दंगे, आगजनी और बमबारी में।

प्रश्न.
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखें।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर

(क) कविता-हमारी नींद।
कवि-वीरेन डंगवाल।

(ख) प्रसंग हिन्दी साहित्य के समसामयिक कवि वीरेन डंगवाल ने प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से सुविधाभोगी, आराम पसंद जीवन अथवा हमारी बेपरवाहियों के बाहर विपरीत परिस्थितियों से लगातार लड़ते हुए बढ़ते जीवन का चित्रण किया है।

(ग) सरलार्थ प्रस्तुत पद्यांश में कवि एक बिम्ब की रचना करते हैं जो मानव जीवन और मानवेत्तर प्राणियों के आंतरिक और बाह्य जीवन चक्र, संघर्षशीलता के साथ चल रहे हैं। कवि स्वयं कविता के केन्द्र में बिम्ब के रूप में उपस्थित होकर कहता है कि जब मैं सुविधाभोगी बनकर आराम की नींद में सो रहा था तो इधर प्रकृति अन्य प्राणियों के जीवनक्रम को आगे बढ़ा रही थी। प्रकृति के आगोश में पलने वाले पेड़-पौधे के बीज भी धरातल के अन्दर प्रवेश कर अपने अंकुररूपी कोमल सींगों से बीज की छत को धकेल कर कुछ इंच पौधे के रूप में आगे बढ़ आये हैं। उसी प्रकार मक्खी का जीवन-क्रम पूरा हुआ तो इस जीवन क्रम में कई शिशु उत्पन्न हुए, उनमें से कई मारे गये। कई जगह दंगे-फसाद, आगजनी और बमबारी से मानव और मानवेत्तर प्राणियों का जीवनक्रम चलता रहा।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत पद्यांश में कवि आराम तलबी, विलासिता में लिप्त जो मानव जीवन-यापन करते हैं और उनके ही इर्द-गिर्द घूमने वाले अन्य प्राणियों का जीवन-चक्र किस तरह से चलता है इसी का यहाँ दार्शनिक आकलन किया गया है। कवि मानवीय जीवन की लधुता और विधाता के समय की व्यापकता के माध्यम से कहता है कि मानव जीवन अति लघु है। इस लघु जीवन दुःख-सुख, जुल्म-अत्याचार, सहते हुए जीवन को विकास क्रम में ले जाना है। अतः विलासितापूर्ण जीवन को छोड़कर जीवन की यथार्थता को समझना चाहिए।

(ङ) काव्य-सौंदर्य-
(i) सम्पूर्ण कविता खड़ी बोली में रचित है।
(ii) छंद मुक्त होते हुए भी कहीं-कहीं कविता में संगीतमयता आ गयी है।
(iii) कवि की भाषा सरल और सुबोध है।
(iv) बिम्ब-प्रतिबिम्ब की झलक कविता की लाक्षणिकता पूर्णरूप से प्रकट होती है।
(v) भाव के अनुसार भाषा का वर्णन कविता की परिपक्वता दिखाई पड़ रही है।


2. गरीब बस्तियों में भी ।
धमाके से हुआ देवी जागरण
लाउडस्पीकर पर।
याने साधन तो सभी जुटा लिए हैं अत्याचारियों ने
मगर जीवन हठीला फिर भी
बढ़ता ही जाता आगे
हमारी नींद के बावजूद
और लोग भी हैं, कई लोग हैं
अभी भी
जो भूले नहीं करना
साफ और मजबूत
इनकार।

प्रश्न.
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखें।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) दिये गये पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर

(क) कविता- हमारी नींद।
कवि- वीरेन डंगवाल।

(ख) प्रसंग-पस्तुत पद्यांश में कवि काल-क्रम की व्यापक एवं संघर्षशील गतिविधियों के दार्शनिक रूप का वर्णन करता है। जीवन-क्रम में जीव-जंतु से लेकर मानवीय जीवन जो प्रभावित होता है उनमें विपरीत परिस्थितियाँ जीवन को कुछ कहने-सुनने के लिए बाध्य करती है। यहाँ कवि यह बताना चाहता है कि सर्वदा सामंतशाहियों के चक्र में कमजोर और ईमानदार पिसता रहा है।

(ग) सरलार्थ-कवि मानव जीवन-क्रम का चित्रण करते हुए कहता है कि जहाँ झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले गरीब लोग हैं जो केवल किसी तरह से अपने पेट की ज्वाला शांत करने की अपेक्षा कुछ नहीं जानते हैं। वहाँ भी विलासी लोग भगवती जागरण तथा अन्य ढोंगी कार्यक्रम के आड़ में लाउडस्पीकर बजवाकर ठगने का कार्य करते हैं। साथ ही समाज के कुछ लोग सुशिक्षित होकर भी मानवता की परिभाषा को झुठलाते हुए अत्याचारियों के द्वारा जुटाये गये साधनों को मूक होकर देखते रहते हैं। हम आराम तलबी जिंदगी में कर्महीनता का परिचय देकर मानवता को कलंकित करने में पीछे नहीं हट रहे हैं। इनमें आज भी ऐसे लोग हैं जो अपने सामने कमजोर, बेबस, मजबूर लोगों पर अत्याचारियों के द्वारा होते अत्याचार को देखकर केवल यह सोचकर चुप रह जाते हैं कि यह मेरे अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत कविता का भाव यह है कि आज के परिवेश में मनुष्य केवल स्वार्थपरता पर केन्द्रित है। साथ ही साथ कहा जा रहा है कि जमाना बाह्य जगत से काफी खतरनाक पैमाने पर टूट रहा है। लोग सच्चाई से मुख मोड़ रहे हैं।

(ङ) काव्य-सौंदर्य-
(i) सम्पूर्ण कविता खड़ी बोली में है।
(ii) तद्भव तत्सम के साथ-साथ कहीं-कहीं उर्दू शब्दों का भी समागम हुआ है।
(iii) पूरी कविता लक्षण शक्ति पर आधारित है।
(iv) भाव के अनुसार कविता में ओज गुण के लक्षण दिखाई पड़ रहे हैं।
(v) अलंकार और छंद के विशेष परिस्थितियों से दूर रहने पर भी कविता के उद्देश्य में अंतर नहीं आया है।

BSEB Solutions for अक्षर-ज्ञान Class 10 Hindi Matric Godhuli

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BSEB Solutions for अक्षर-ज्ञान (Akshar Gyan) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

अक्षर-ज्ञान - अनामिका प्रश्नोत्तर

Very Short Questions Answers (अतिलघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. अनामिका को अब तक कौन-कौन पुरस्कार प्राप्त हुए हैं?
उत्तर

अनामिका को अबतक राष्ट्रभाषा परिषद पुरस्कार, भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, ऋतुराज साहित्यकार सम्मान और गिरिजा कुमार माथुर पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।


प्रश्न 2. अनामिका की रचनाएँ किस लिए जानी जाती हैं ?
उत्तर

अनामिका की रचनाएँ समसामचिक बोध और समाज के वंचितों के प्रति सहानुभूति
के लिए जानी जाती हैं।


प्रश्न 3. किस अक्षर को लिखने की अनवरत् कोशिश में बालक के आँसू निकल आते हैं ?
उत्तर
‘ङ’ लिखने की अनवरत् कोशिश में बच्चे के आँसू निकल आते हैं।


प्रश्न 4. बच्चे की आँखों में आँसू क्यों निकलते हैं ?
उत्तर

बच्चे की आँखों से आँसू न लिखने की विफलता पर निकलते हैं।


प्रश्न 5. कवियत्री की दृष्टि में विफलता के आँसू क्या हैं ?
उत्तर

कवियत्री की दृष्टि में विफलता के आँसू सृष्टि की विकास-कथा के प्रथमाक्षर हैं।


Short Question Answers (लघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. कविता में तीन उपस्थितियाँ हैं। स्पष्ट करें कि वे कौन-कौन सी हैं?
उत्तर

कविता में तीन उपस्थितियाँ हैं - बच्चा, माँ और बेटा। क्योंकि बच्चा लिखता है तथा ङ में ड को माँ तथा (.) को उसकी गोदी में बैठा बेटा मान लेता है। इस प्रकार तीनू उपस्थितियाँ हैं।

प्रश्न 2. कविता में 'क' का विवरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

"क" चौखट में नही अँटता। कबूतर ही तो है। पंक्ति से उतरकर फुदक जाता है अर्थात् नहीं लिखता है।

प्रश्न 3. खालिस बेचैनी किसकी है ? बेचैनी का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर

खालिस बेचैनी खरगोश की है। बेचैनी का अभिप्राय है अविरल (लगातार) बिना चैन, लिए हुए।

प्रश्न 4. बेटे के लिए क्या है और क्यों ?
उत्तर

बेटे के लिए ङ का "ड" माँ है तथा (.) माँ की गोद में बेटा। क्योंकि ड के आगे (.) का उपयोग किया जाता है अर्थात् माँ की गोद में बेटा को बैठाया जाता है।

प्रश्न 5. बेटे के आँसू कब आते हैं और क्यों ?
उत्तर

जब माँ बेटा दोनों को साधने (लिखने) की बात हुई तो अनवरत कोशिश करता है। कोशिश के बावजूद विफलता आने पर आँसू छलक जाते हैं। क्योंकि एक बेटा को एक माँ गोद में रखती है तो दूसरी माँ उसे लिखने के लिए बाध्य किए।

प्रश्न 6. कविता के अंत में कवयित्री 'शायद' अव्यय का क्यों प्रयोग करती हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

"शायद" अव्यय का प्रयोग कवयित्री सम्भावित को दर्शाने हेतु करता। है। हुआ होगा ऐसा ही जब सृष्टि के विकास में उसी प्रकार की विफलता पर रान के बाद मनुष्य को और कुछ सोचने का अवसर मिला होगा। अर्थात् विफलता में चिन्तन शक्ति का विकास हो जाता है।

प्रश्न 7. कविता किस तरह एक सांत्वना और आशा जगाती है ? विचार करें।
उत्तर

कविता में बताया गया है कि विफलता के बाद मनुष्य चिन्तनशील होता है। उसे कुछ अधिक सोचने पर मजबूर होना पड़ता है जो उसके बौधिक विकास करने में सहायक बनता है जो एक सांत्वना आशा जगाती है कि विफलता के बाद मिलने वाली सफलता का रूप विकसित होता है।

Long Question Answer (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. अक्षर ज्ञान कविता का सारांश लिखें।
उत्तर

अक्षर-ज्ञान एक प्रारंभिक शिक्षण प्रक्रिया है जो बच्चों के लिए आप नहीं। कोई इधर भागा तो कोई उधर। कोई नीचे लुढ़का तो कोई पहेली बनकर असा हो जाता है। बच्चे अपने विफलता पर रोने लगते हैं।
उपरोक्त सारी बातों को कवयित्री ने कौतुकपूर्ण तरीके से कविता के माधान से दर्शाते हुए कहा है कि बच्चों की प्रारंभिक विफलता से ही सृष्टि विकास की कहानी बनी है।
बच्चा क ख ग घ ङ को लिखना प्रारम्भ करता है, नहीं लिख पाता है लगता है उसके माथा में नहीं अँटता है। अँटे कैसे "क" से कबूतर होता है पंक्ति से वाहा होकर फुदकने लगता है।
"ख" भी उससे नहीं लिखाता है क्योंकि ख से खरगोश होता है जिसमें खालिस - (भागने) की बेचैनी जो होती है। "ग" भी नहीं लिखाता है मानो गमला का टूटा हुआ ग होता है।
"घ" भी उसका घड़े जैसे लुढ़कने लगा। अब बचा ङ। ङ में ड को माँ मान लेता (.) को गोदी में बैठा बेटा।
अब माँ बेटे दोनों संभाल नहीं पाते लगातार कोशिश में उसकी आँखों में आ -गये आँसू। शायद ये आँसू ही प्रथमाक्षर हैं। सृष्टि की विकास कथा की।


प्रश्न 2. व्याख्या करें “गमले-सा टूटता हुआ उसका ‘ग’ घड़े-सा लुढ़कता हुआ उसका ‘घ’
उत्तर

प्रस्तुत व्याख्येय पक्तियाँ हमारी हिन्दी पाठ्य-पुस्तक के ‘अक्षर-ज्ञान’ शीर्षक से उद्धृत है। प्रस्तुत ‘अंश में हिन्दी साहित्यं के समसामयिक कवयित्री अनामिका ने अक्षर-ज्ञान की प्रारंभिक-शिक्षण प्रक्रिया में संघर्षशीलता का मार्मिक वर्णन किया है।
कवयित्री कहते हैं कि बच्चों को अक्षर-ज्ञान की प्रारंभिक शिक्षण प्रक्रिया कौतुकपूर्ण है। एक चित्रमय वातावरण में विफलताओं से जूझते हुए अनवरत प्रयासरत आशान्वित निरंतर आगे बढ़ते हुए बच्चे की कल्पना की गई है। ‘ग’ को सीखना गमले की तरह नाजुक है जो टूट जाता है। साथ ही ‘घ’ घड़े का प्रतीक है जिसे लिखने का प्रयास किया जाता है लेकिन लुढक जाता है अर्थात् गमले की ध्वनि से बच्चा ‘ग’ सीखता है और ‘घडे’ की ध्वनि से ‘घ’ सीखता है।


प्रश्न 3. ‘अक्षर-ज्ञान कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर
समकालीन कवियत्री अनामिका ने ‘अक्षर-ज्ञान’ शीर्षक कविता में अक्षर-ज्ञान कः प्रक्रिया उसमें आने वाली बाधाओं, हताशाओं और अन्ततः संघर्ष कर असफलता को सफलता में बदलने के संकल्प के साथ सृष्टि की विकास-कथा में मानव की संघर्ष-शक्ति को रेखांकित किया है।
कवयित्री कहती हैं कि माँ ने बेटे की चौखट या स्लेट देकर अक्षर-ज्ञान देना शुरू किया लेखन और ज्ञान प्राप्ति की प्रक्रिया का सरल और रोचक बनाने के लिए उसने कुछ संकेता प्रतीक दिए। बेटे को बताया-‘क’ सं कबूतर, ‘ख’ से खरगोश, ‘ग’ से गमला और ‘घ’ से घड, आदि। बेटे ने लिखना शुरू किया। कबूतर का ध्यान करने के कारण ‘क’ चौखट में न अँटा, ‘ख भी खरगोश की तरह फुदक गया। इसी प्रकार गमला के चक्कर में ‘ग’ टूट गया और ‘घडा के ध्यान में ‘घ’ लुढ़क गया। लंकिन कठिनाई पैदा हुई ‘ङ’ को लेकर। माँ ने समझाया-‘ड’ और बिन्दु (.) उसकी गोद में बैठा बेटा। कोशिश शुरू हुई किन्तु ‘ङ’ सधता ही नहीं था। ब: कोशिश के बाद भी जब ‘ङ’ की मुश्किल हल न हुई हो तो बेटे की आँखों में आँसू आ : किन्तु ये आँसू ‘ङ’ को साधने के प्रयत्न छोड़ने के न थे, इन आँसुओं में ‘ङ’ को साधने का असफलता को धता बताने का संकल्प था।
इस कविता के माध्यम से सृष्टि-विकास-कथा को प्रस्तुत किया गया है। अक्षर-ज्ञान के क्रम __ में आने-वाली कठिनाइयाँ मानव-जीवन की कठिनाइयाँ हैं। मनुष्य जीवन-संघर्ष के शुरुआती दौर में डगमगाता है, लड़खड़ाता है, फिर भी चलता है। किन्तु कभी-कभी जीवन में ऐसे क्षण आत हैं जब आदमी बेहाल हो जाता है। उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं किन्तु मनुष्य हारता ना वह अपनी असफलता को सफलता में बदलने के लिए सन्निद्ध हो जाता है। ये आँसू ही सृष्टि-विकास-कथा के प्रथमाक्षर हैं अर्थात् संघर्ष ही मनुष्य की जिन्दगी की फितरत है। यही इस . कविता की भावना है, सार है।


काव्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर

1. चौखटे में नहीं अँटता
बेटे का ‘क’
कबूतर ही है न –
फुदक जाता है जरा-सा !

प्रश्न.
(क) कवयित्री तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) काव्यांश का प्रसंग स्पष्ट करें।
(ग) दिये गये पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर

(क) कविता-अक्षर-ज्ञान।
कवयित्री-अनामिका।

(ख) प्रसंग प्रस्तुत काव्यांश में कवयित्री ने अबोध बालक के द्वारा प्रारंभिक अवस्था में अक्षर बोध का मनोरम चित्रण किया है। अक्षर-ज्ञान के क्रम में बच्चा बार-बार गलती करता है, असफल हो जाता है इसकी झलक दिखायी गयी है। किसी प्रतीक के माध्यम से अक्षर बोध आसानी से होता है यह भी कबूतर की चर्चा करके बताया गया है।

(ग) सरलार्थ प्रस्तुत पद्यांश में शुरुआत में बच्चा अक्षर ज्ञान किस प्रकार प्राप्त करता है, क्या कठिनाइयाँ आती हैं, किस प्रकार असफल हो जाता है इन तथ्यों की अभिव्यक्ति है। कवयित्री कहते हैं कि माँ बच्चा को अभ्यास-पुस्तिका में बने खाने के अन्दर ‘क’ लिखना सिखा रही है। वह चाहती है कि ‘क’ को सुन्दरतम रूप में चौखट के अन्दर लिखे। इसके लिए प्रतीक स्वरूप कबूतर को उपस्थित करते हुए बालक को कबूतर के का लिखने को प्रेरित करती है। किन्तु प्रारंभिक अवस्था के कारण लिखित ‘क’ चौखट से बाहर तक छा जाता है। वह उसके अंदर ठीक से नहीं लिखता मानो कबूतर फुदक रहा हो।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत पद्यांश में बताया गया है कि बच्चों के अक्षर-ज्ञान की प्रारंभिक शिक्षण-प्रक्रिया कौतुकपूर्ण होती है। सीखने की उत्सुकता बच्चों को विभिन्न वस्तुओं के माध्यम से जागृत कराया जाता है। इन बातों का इस पद्यांश में मनोरम चित्रण है। बहुत ही सुन्दरतम भाव से इसका चित्रण किया गया है। इसमें बाल सुलभ भाव का दर्शन है।

(ङ) काव्य-सौंदर्य-
(i) प्रस्तुत कविता पूर्ण रूप से चित्रात्मक शैली में लिखी गयी है।
(ii) रस की दृष्टि से वात्सल्य रस की पुट देखी जा रही है।
(iii) बाल मनोविज्ञान का अनोखा सामंजस्य होने के कारण भाषा सरल और सुबोध है।
(iv) खड़ी बोली की इस कविता में तद्भव एवं देशज शब्दों का प्रयोग मार्मिकता ला देता है।


2. पंक्ति से उतर जाता है
उसका ‘ख’
खरगोश की खालिम बेचैनी में।
गमले-सा टूटता हुआ उसका ‘ग’
घड़े-सा लुढ़कता हुआ उसका ‘घ’

प्रश्न.
(क) कवयित्री तथा कविता का नाम लिखें।
(ख) प्रसंग लिखें।
(ग) सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर

(क) कविता- अक्षर-ज्ञान।
कवयित्री- अनामिका।

(ख) प्रसंग… इस पद्यांश में किसी प्रतीक के माध्यम से बच्चों को अक्षर का बोध आसानी से कराने की बात कही गयी है। साथ ही यह भी बताया गया है कि अक्षर-ज्ञान सीखने में बच्चा बार-बार असफल होता है।

(ग) सरलार्थ… प्रस्तुत पंक्ति में कवयित्री ने चित्रण किया है कि बालक प्रारंभ में बहुत प्रयास से अक्षर ज्ञान प्राप्त करता है। धीरे-धीरे उसे अक्षर का बोध होता है। वह बार-बार अपने मानस-पटल पर अक्षर अंकित करता है और साथ ही साथ बार-बार भूलता भी है। जिस तरह खरगोश अस्थिर होता है, गमला टूट जाता है, घड़ा लुढ़क जाता है उसी प्रकार बच्चा भी चंचलतावश ख, ग, घ इत्यादि अक्षरों के स्मरण-विस्मरण का खेल खेलते रहता है। माँ की गोद में जिस प्रकार बच्चा बैठता है उसी प्रकार किसी अक्षर पर अनुस्वार देने की कल्पना की गई है। इस तरह अनवरत प्रयास, लगातार कोशिश, बार-बार असफल होने के बावजूद विकास-क्रम को कायम करता है।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत कविता में कवयित्री ने बालक के अनवरत प्रयास, उसकी चंचलता एवं स्मरण-विस्मरण को बड़े ही सुन्दर भाव में प्रस्तुत किया है। खरगोश, गमला एवं घड़ा की प्रतीकात्मकता अक्षर-ज्ञान के लिए सरलतम मार्ग है। इस बात की झलक सहज भाव में कराया गया है।

(ङ) काव्य-सौंदर्य-
(i) इस कविता की शैली चित्रात्मक है।
(ii) वात्सल्य रस की पुट है।
(iii) भाषा सरल और सुबोध है।


3. ङ पर आकर थमक जाता है
उससे नहीं सधता है ‘ङ’।
“ङ’ के ‘ड’ को वह समझता है ‘माँ’
और उसके बगल के बिंदु (.) को मानता है
गोदी में बैठा ‘बेटा’
माँ-बेटे सधते नहीं उससे
और उन्हें लिख लेने की
अनवरत कोशिश में
उसके आ जाते हैं आँसू।।
पहली विफलता पर छलके ये आँसू ही
हैं शायद प्रथमाक्षर
सृष्टि की विकास-कथा के।

प्रश्न.
(क) कवयित्री एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) काव्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर

(क) कविता- अक्षर-ज्ञान।
कवयित्री- अनामिका।

(ख) प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश में कवयित्री बालक के अक्षर-ज्ञान के प्रयास का चित्रण करते हुए कहती है कि ‘ड’ माँ का प्रतीक है और (.) बिन्दु बेटे का साथ ही ‘ङ’ माँ की गोद में बैठे बेटे का। ‘ङ’ को सीखने का प्रयास कठिनतम लगता है और इस क्रम में आँसू आ जाता है। आँसू आ जाना कठिन मेहनत से जूझने का प्रतीक है। साथ ही विकास का क्रम की आशय को अभिव्यक्त करते हुए कहती हैं कि विकास की पहली सीढ़ी वही चढ़ता है जो आशा नहीं खोता, आशान्वित रहते हुए, असफलताओं को धक्का देते हुए, अनवरत प्रयासरत रहकर आगे बढ़ता रहता है।

(ग) सरलार्थ- प्रस्तुत पद्यांश में कवयित्री ने अक्षर-ज्ञान प्राप्त कर रहे बच्चे का मनोरम चित्रण किया है। बालक ‘ङ’ को साधने का प्रयास करता है लेकिन सधता नहीं है। फिर भी बालक रुकता नहीं भले ही उसे इसे साधने में आँसू आ जाएँ। अनवरत प्रयास सफलता का द्योतक है, विकास का सूत्र है ऐसा बताया गया है।

कवयित्री कहती है कि माँ-बेटे अर्थात् ‘ङ’ व अक्षर को सीखने में बार-बार असफलता हाथ लगती है। यहाँ तक कि उसे सीखने में असफल होने पर आँसू आ जाते हैं। फिर भी बालक सीखने हेतु जूझते रहता है और विकास-क्रम का प्रथम चरण को छू लेता है। इसमें कहा गया है कि बालक की ज्ञान प्राप्ति कौतुकतापूर्ण एवं कठिनतम होता है। फिर भी अनवरत प्रयास, जिज्ञासा उसे पीछे नहीं मुड़ने देती और विफलताओं का डटकर सामना करते हुए अपने साध्य को साध लेता है। जीवन के विकास कथा का यही मूल मंत्र है। केवल अक्षर ज्ञान नहीं बल्कि सृष्टि का विकास-कथा भी अनवरत प्रयास परिश्रम, विफलता, आशा और जिज्ञासा से युक्त रही है।

(घ) भाव-सौंदर्य– प्रस्तुत काव्यांश में बाल मनोविज्ञान का यथार्थ चित्रण हुआ है। छोटे बच्चों को अक्षर ज्ञान सीखने की प्रक्रिया में माँ की कोमलता और ममता का महत्त्वपूर्ण स्थान माना गया है। अक्षर ज्ञान छोटे बच्चों के निरंतर प्रयास को सम्पूर्ण सफलता का अंतिम चरण माना गया है।

(ङ) काव्य सौंदर्य-
(i) खड़ी बोली की इस कविता में तद्भव एवं देशज शब्दों का प्रयोग मार्मिकता ला देता है।
(ii) बाल मनोविज्ञान का अनोखा सामंजस्य होने के कारण भाषा सरल और सुबोध है।
(iii) यह कविता पूर्णरूपेण चित्रात्मक शैली में लिखित है।

BSEB Solutions for लौटकर आऊँगा फिर Class 10 Hindi Matric Godhuli

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BSEB Solutions for लौटकर आऊँगा फिर (Laut aaunga Fir) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

लौटकर आऊँगा फिर - जीवनानंद दास प्रश्नोत्तर

Very Short Questions Answers (अतिलघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. जीवनानंद दास ने जिस समय बाँग्ला काला-जगत में प्रवेश किया, उस समय क्या स्थिति थी?
उत्तर

जिस समय जीवनानंद दास ने बांग्ला काव्य-जगत में प्रवेश किया, उस समय रवीन्द्रनाथ ठाकुर शिखर पर विराजमान थे।


प्रश्न 2. बाँग्ला काव्य को जीवनानंद दास की देन क्या है ?
उत्तर

बाँग्ला काव्य को जीवनानंद दास की देन हैं-नयी भावभूमि, नयी दृष्टि और नयी शैली।


प्रश्न 3. ‘वनलता सेन’ को कब और क्यों पुरस्कृत किया गया?
उत्तर
जीवनानंद दास की काव्य-कृति ‘वनलता सन्’ को श्रेष्ठ काव्य-ग्रंथ के रूप में सन् 1952 ई. में निखिल बंग रवीन्द्र साहित्य सम्मेलन द्वारा पुरस्कार दिया गया।


प्रश्न 4. जीवनानंद दास के कुल कितने उपन्यास उपलब्ध हैं ?
उत्तर

जीवनानंद दास के लिखे कुल तेरह उपन्यास उपलब्ध हैं।


प्रश्न 5. बाँग्ला साहित्य में जीवनानंद दास की ‘वनलता सेन’ किस रूप में समाहित है ?
उत्तर

बाँग्ला साहित्य में जीवनानंद दास की कृति रवीन्द्रोत्तर युग की श्रेष्ठतम प्रेम-कविता के रूप में समाहित हैं। यह कविता बहुआयामी भाव-व्यंजना का उत्कृष्ट उदाहरण है।


प्रश्न 6. जीवनानंद दास ने कुल कितनी कहानियाँ लिखीं?
उत्तर

जीवनानंद दास ने कुल सौ कहानियां लिखीं।


Short Question Answers (लघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. कवि किस तरह के बंगाल में एक दिन लौटकर आने की बात करता है?
उत्तर

धान की फसल से युक्त और बहती नदी से युक्त बंगाल में कवि एक दिन लौटकर आने की बात करता है।

प्रश्न 2. कवि अगले जीवन में क्या-क्या बनने की संभावना व्यक्त करता है और क्यों?
उत्तर

कवि अगले जीवन में मनुष्य, अबावील (भांड की) पक्षी, कौवा, हंस, ल्ल सारस पक्षी आदि बनने की संभावना व्यक्त करता है क्योंकि कवि को बंगाल की भमि और वहाँ का पर्यावरण से अत्यधिक प्रेम है।


प्रश्न 3. अगले जन्मों में बंगाल में आने की क्या सिर्फ कवि की इच्छा है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

अगले जन्मों में बंगाल में आने की इच्छा केवल कवि की ही नहीं बल्कि कवित में कवि ने किसी किशोरी की भी चर्चा की है जो उसको जल-क्रीड़ा में आनन्द दें अथवा बंगाल की किसी किशोरी को जल-क्रीड़ा में वह (कवि) आनन्द दे हंस बनकर।

प्रश्न 4. कविता के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

कविता का शीर्षक है-"लौटकर आऊँगा फिर" जो सार्थक है क्योंकि सम्पूर्ण कविता में बंगाल भूमि और पर्यावरण के प्रति अटूट श्रद्धा और लगाव कवि को दिखाई पड़ता है। भला इतनी मनोरम भूमि को छोड़कर अन्यत्र जन्म लेने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। सम्पूर्ण कविता में विश्वास के साथ सम्भावना व्यक्त है कि “लौटकर आऊँगा फिर" जो यथार्थ है।

प्रश्न 5. कवि अगले जन्म में अपने मनुष्य होने में क्यों संदेह करता है ? क्या कारण हो सकता है ?
उत्तर

कवि अगले जन्म में अपने मनुष्य होने में संदेह करता है क्योंकि मनुष्य पुनर्जन्म में मनुष्य ही हो यह कोई जरूरी नहीं। दूसरी बात यह भी है कि कवि को पर्यावरण से अत्यन्त लगाव है। पक्षी भी पर्यावरण से सीधे जुड़े रहते हैं। अर्थात् पक्षी का लगाव पर्यावरण से ही होता है। अत: कवि सम्भावना व्यक्त करता है कि पक्षी में मेरा जन्म हो। जिससे हम पर्यावरण से जुड़े रहें।

Long Question Answer (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. कवि किनके बीच अँधेरे में होने की बात करता है ? आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

कवि सारसों के बीच अँधेरे में होने की बात करता है सारस पक्षा (क्रौच पक्षी) बहुत सुन्दर होता है जो प्रायः शाम के वक्त सूर्यास्त के बाद अपन निवास स्थल की ओर लौटते हुए झुण्ड में दिखाई पड़ते हैं। कवि सम्भावना व्यक्त करता है कि मैं उसे सारसों के बीच भी हो सकता हूँ।


प्रश्न 2. कविता की चित्रात्मकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर

सम्पूर्ण कविता चित्रात्मक है। धान का खेत, बहती नदी, भांड का, पक्षी का सुबह में फुदकना, कौवा का धान खेत से कटहल पेड़ तथा पेंग भरना किशोरी के साथ हंस का जल-क्रीड़ा, शामा के समय कपास के पेड़ पर उल्लू का बोलना। घासीली जमीन पर भात फेंकते बच्चा, नदी में पाल उड़ाते नावों को लड़कों दारा चलाना सायंकालीन रंगीन बादलों के बीच सारस का उड़ना इत्यादि दृश्य का बड़ा ही सुन्दर चित्रात्मक है।

प्रश्न 3. कविता में आए बिंबों का सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

कविता में अनेक बिंबों को चित्रित कर कविता के सौंदर्य में चार चाँद लगा दिया गया है। जैसे-धान का खेत, बहती नदी, भांड की पक्षी का फुदकना, सबह के समय में कौवा का धान के खेत से कटहल के पेड़ तक पेंग भरना, किशोरी के साथ हंस का जल-क्रीड़ा कपास के पेड़ पर सायंकाल में उल्लू का बोलना नदी में पाल युक्त नाव का चलना, सायंकाल में सारस पक्षी का समूह में उड़ना इत्यादि।

प्रश्न 4. जीवनंदन दास द्वारा लिखित लौटकर आऊँगा फिर काव्य का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर

यह कविता हिन्दी कवि प्रयाग शुक्ल द्वारा भाषांतरित कविता है। जीवनानंद की यह कविता अत्यन्त लोकप्रिय कविता है जिसमें मातृभूमि प्रेम की भावना उत्कृष्ट रूप में दिखाई पड़ता है। कवि मरने के बाद पुनः बंगाल में ही जन्म लेने की अभिलाषा करता है।
मरने के बाद पुनः मैं बंगाल की धरती पर जन्म लूँ। जहाँ धान के खेत हों बहती हुई नदियाँ हों उसी नदी के किनारे मेरा पुनर्जन्म हो।
यदि मेरा जन्म मनुष्य में नहीं हो तो सुन्दर अबाबील (एक छोटी कहाली चिडिया) या कौवा में ही जन्म हो। जब धान की नई बाली लगेगी, तो वहाँ के कटहल की छाया तक कुहरे के झूले पर पेंग भरता (दोलन करता) आऊँगा एक दिन। अथवा लाल पैरों में घुघरू बाँध हंस बनकर दिन भर पानी में तैरता रहूँगा और किसी किशोरी के जल-क्रीड़ा में मैं मदद करूँगा।
जहाँ हरी-हरी घास की गंध होगी मैं वहाँ फिर आऊँगा। यदि बंगाल की नदियाँ, मैदान मुझे बुलाएँगे तो मैं आऊँगा जिस किनारे को नदियाँ धोती है अपने पानी से उस किनारे पर मैं फिर आऊँगा| सम्भवतः तुम देखना शाम में उड़ते हुए उल्लू को और सुनना कपास के पेड़ पर उसकी बोली को वह मैं ही होऊँगा।
सम्भवतः कोई बच्चा दिखेगा मुट्ठी भर भरकर भात घास पर फेंकते हुए वह भी मैं हो सकता हूँ। या रूप सा नदी के गंदे पानी में फटे-उड़ते पाल युक्त नाव चलाते दिखाई पड़ेगा, वह भी मैं हो सकता हूँ। जब सायंकालीन रंगीन बादलों के बीच सारस (क्रौच पक्षी) लौटते दिखाई पड़ेंगे उसके बीच में भी मैं हो सकता हूँ।


काव्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर

1. खेत हैं जहाँ धान के, बहती नदी
के किनारे फिर आऊँगा लौट कर
एक दिन-बंगाल में; नहीं शायद
होऊँगा मनुष्य तब, होऊँगा अबाबील
या फिर कौवा उस भोर का-फूटेगा नयी
धान की फसल पर जो
कुहरे के पालने से कटहल की छाया तक ।
भरता पेंग, आऊँगा एक दिन !
बन कर शायद हंस मैं किसी किशोरी का;
घुघरू लाल पैरों में;
तैरता रहूँगा बस दिन-दिन भर पानी में
गंध जहाँ होगी ही भरी, घास की।
आऊँगा मैं। नदियाँ, मैदान बंगाल के बुलायेंगे
मैं आऊँगा। जिसे नदी धोती ही रहती है पानी
से-इसी हरे सजल किनारे पर।

प्रश्न.
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख)कविता का प्रसंग लिखें।
(ग) सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य लिखें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य लिखें।

उत्तर

(क) कविता – लौटकर आऊंगा फिर।
कवि – जीवनानंद दास।

(ख) प्रसंग-प्रस्तुत कविता में बँगला साहित्य के सुप्रसिद्ध दास का प्रकृति के प्रति उत्कृष्ट प्रेम का वर्णन किया है। इस कविता से कवि की नैसर्गिक प्राकृतिक प्रेम और देश भक्ति प्रेम के चित्र स्पष्ट झलक पड़े हैं। स्वछंदतावादी विचारधारा के महान कवि ने अपनी भूमि बंगाल में फिर लौटकर आने की बात कहकर अपने आपको मातृभूमि के प्रति अगाध प्रेम दर्शा रहे हैं।

(ग) प्रस्तुत कविता में बँगला साहित्य के सर्वाधिक सम्मानित कवि जीवनानंद दास ने अपनी मातृभूमि तथा परिवेश से उत्कट प्रेम का वर्णन किया है। यहाँ पर बंगाल के स्वाभाविक सम्मोहन प्राकृतिक वातावरण का सजीव चित्र खींचा गया है। कवि कहते हैं कि देश या विदेश के किसी कोने में रहूँ लेकिन एक बार मैं अपनी बंगाल की भूमि पर जरूर आऊँगा जहाँ हरे-भर धान के खेत हैं, उफनती हुई नदियाँ हैं तो उस नदी के किनारे फिर मैं लौटकर आऊँगा।

एक दिन ऐसा भी होगा कि बंगाल में कोई नहीं होगा सिर्फ एक छोटी चिड़िया रहेगी जो उजड़े और सुनसान मकानों को पसंद करती है या फिर सुबह में काँव-काँव करने वाला कौवा रहेगा तब पर भी मैं अपनी मातृभूमि को देखने के लिए जरूर आऊँगा। बंगाल की उपजाऊ मिट्टी पर जब धान की फसलों के ऊपर महीन-महीन कुहरे की बूंदें रहेंगी, कुहरे के पालने से कटहल की छाया तक आनंद की झूला झूलते हुए मैं जरूर इस सुन्दर प्रकृति को देखने के लिए आऊँगा। कवि की इच्छा है कि जब भी मैं जन्म लूँ तो अपने बंगाल में ही, इसलिए बार-बार यहाँ जन्म लेना चाहते हैं।

शायद यह भी इच्छा है कि मैं हंस बनकर और किसी किशोरी के पैरों की सुन्दर घुघरू बनकर उसके पैरों की सुन्दरता में चार चाँद लगा दूँ जहाँ दिन-दिन भर मैं पानी में तैरता रहूँगा, जहाँ की प्रकृति में हरी-भरी घास होगी और गंध ही गंध होगी वहाँ मैं जरूर आऊँगा। मुझे विश्वास है कि अगले जन्म में भी बंगाल की नदियाँ और मैदान मुझे जरूर बुलाएँगे। मैं उस नदी पर आऊँगा जो अपने पवित्र जल से हमेशा अपने तटों को धोती रहती हैं।

(घ) भाव-सौंदर्य–प्रस्तुत कविता में कवि अपनी मातृभूमि के प्रति असीम आस्था एवं प्रेम का भाव बोधन किये हैं। कवि की इच्छा है कि अगले जन्म में भी मैं इसी मातृभूमि पर उत्पन्न लूँ और यहाँ के खेतों, खलिहानों, नदियों, सभ्यताओं और संस्कृतियों की धारा में उसी प्रकार समाहृत हो जाऊँ जहाँ आज हूँ।

(ङ) काव्य-सौंदर्य-
(i) यह बैंग्ला भाषा की भाषांतरित कविता होने के कारण खड़ी बोली की समस्त रूप रेखा देखने को मिल रही है।
(ii) मूल रूप से तद्भव के प्रयोग के साथ देशज एवं विदेशज शब्दों का भी अच्छा प्रयोग है।
(ii) भाषा सरल, सुबोध एवं स्वाभाविक है।
(iv) कविता मुक्तक होते हुए भी कहीं-कहीं संगीतमयता का रूप धारण कर लिया है।
(v) भक्ति भावना की उत्कटता के कारण प्रसादगुण की अपेक्षा की गई है। कहीं-कहीं माधुर्य गुण की झलक प्रकृति प्रेम में दिखाई पड़ जाती है।


2. शायद तुम देखोगे शाम की हवा के साथ उड़ते एक उल्लू को
शायद तुम सुनोगे कपास के पेड़ पर उसकी बोली
घासीली जमीन पर फेंकेगा मुट्ठी भर-भर चावल
शायद कोई बच्चा – उबले हुए !
देखोगे, रूपसा के गंदले-से पानी में
नाव लिए जाते एक लड़के को-उड़ते फटे
पाल की नाव !
लौटते होंगे रंगीन बादलों के बीच, सारस
अँधेरे में होऊँगा मैं उनहीं के बीच में
देखना !

प्रश्न.
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखें।
(ख) पद का प्रसंग लिखें।
(ग) सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर

(क) कविता-लौटकर आऊँगा फिर।
कवि-जीवनानंद दास।

(ख) प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में बांग्ला साहित्य के सुप्रसिद्ध कवि जीवनानंद दास ने अपनी बंगाल भूमि के प्रति अंगाध प्रेम का वर्णन किया है। कवि की उत्कट इच्छा है कि इस जीवन के बाद जब भी जन्म लूँ तो इसी मातृभूमि की गोद में, क्योंकि यहाँ की संस्कृति सभ्यता प्राकृतिक सौंदर्य के एक-एक अंश कवि के हृदय में समाहृत है। अतः अपनी मातृभूमि का वर्णन चित्रात्मक
शैली में किया गया है।

(ग) सरलार्थ पुनः कवि अपनी मातृभूमि के प्रति अपनी जिज्ञासां व्यक्त करते हुए कहते हैं कि मैं उस मातृभूमि पर पुन: लौटकर आऊँगा, हे मानव जहाँ प्रकृति के अनुपम सौंदर्यमयी वस्तु हवा के साथ शाम के एक उल्लू के उड़ते हुए देखते हो। शायद कपास के पेड़ पर उसकी मधुर आवाज भी सुनोगे। हरी-भरी लहलहाती हुई घास की जमीन पर जब कोई बच्चा एक मुट्ठी चावल फेंकेगा तो उसे चुगने के लिए रंग-बिरंग के पक्षी वहाँ आएंगे, उबले हुए चावल भी वहाँ फेंके हुए मिल सकते हैं। जब तुम भी इस बंगाल की धरती पर पहँचोगे तो रूका गंदे पानी में नाव लिये जाते हुए उसी प्रकार देखोगे जैसे फटे हुए नाव की पाल उड़ते हुए जाते हैं। आकाश के स्थल पर रंगीन बादलों के बीच अनेक सारस संध्याकालीन लौटते हुए नजर आएंगे और उस समय आनंदमय अवस्था में अंधेरे में भी उनके साथ होऊँगा।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत अंश में मातृभूमि की सुंदरता एवं संभावना कवि के हृदय के कोने-कोने में समाहृत है। रंगीन बादलों की छटा स्वेत कपास की सुन्दरता, उफनती नदी की मोहकता का वर्णन बिम्ब-प्रतिबिम्बों के रूप में मुखरित हुआ है।

(ङ) काव्य-सौंदर्य बांग्ला भाषा से खड़ी बोली में भाषांतरित होकर कविता पूर्ण । योग्यता में आ गई है। यहाँ सरल, सुबोध और नपे-तुले तद्भव शब्दों का प्रयोग मिल रहे हैं। कहीं-कहीं बांग्ला तद्भव के प्रयोग से भाव में सौंदर्य बोध स्पष्ट है। यहाँ चित्रमयी शैली का प्रयोग भावानुसार पूर्ण सार्थक है।
कविता में बिम्ब-प्रतिबिम्बों का सौंदर्य अनायास ही पाठक को आकर्षित करता है और कविता मुक्तक होकर भी संगीतमयी है।

BSEB Solutions for मेरे बिना तुम प्रभु Class 10 Hindi Matric Godhuli

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BSEB Solutions for मेरे बिना तुम प्रभु(Mere Bina Tum Prabhu) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

मेरे बिना तुम प्रभु - रेनर मारिया रिल्के प्रश्नोत्तर

Very Short Questions Answers (अतिलघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. रेनर मारिया रिल्के कहाँ के निवासी थे ?
उत्तर

रेनर मारिया रिल्के जर्मनी के रहनेवाले थे।


प्रश्न 2. रिल्के ने किन क्षेत्रों में यूरोपीय साहित्य को प्रभावित किया?
उत्तर
रिल्के की प्रमुख काव्य-रचनाएँ हैं-‘लाइफ एंड साँग्स’, ‘एडवेन्ट’ और ‘लॉरेंस सेक्रेफाइस’।


प्रश्न 3. रिल्के के उपन्यास का क्या नाम है ?
उत्तर
रिल्के के उपन्यास का नाम है-“द नोटबुक ऑफ माल्टै लॉरिड्स ब्रिजे”।


प्रश्न 4. रिल्के कैसे कवि थे ?
उत्तर
रिल्के मर्मज्ञ ईसाई कवियों जैसी पवित्र आस्था के कवि थे।


प्रश्न 5. रिल्के की कविताएँ कैसी हैं ?
उत्तर

रिल्के की कविताओं में रहस्यवाद के आधुनिक स्वर की झलक मिलती है।


प्रश्न 6. ‘मेरे बिना तुम प्रभु’ कविता का वर्ण्य-विषय क्या है ?
उत्तर
मेरे बिना तुम प्रभु’ कविता का वर्ण्य-विषय है-विराट सत्य और मनुष्य एक-दूसरे पर निर्भर है।


Short Question Answers (लघु उत्तरीय प्रश्न)


प्रश्न 1. कवि अपने को जलपात्र और मदिरा क्यों कहता है ?
उत्तर

जैसे जलपात्र के बिना जल बिखर जाता है अथवा प्याला का मदिरा सूख जाय तो प्याला अस्तित्वहीन हो जाता है। उसी प्रकार भक्त के बिना भगवान बिखर जाते अथवा अस्तित्वहीन हो जाते हैं। यहाँ पर जलपात्र और मदिरा का प्रयोग भक्त के लिए हुआ है। कवि भी भगवान का भक्त है अत: अपने को जलपात्र और मदिरा कहता है।

प्रश्न 2. शानदार लबादा किसका गिर जाएगा और क्यों ?
उत्तर

शानदार लबादा ईश्वर का गिर जायेगा क्योंकि भक्त के नहीं रहने पर ईश्वरत्व ही समाप्त हो जायेगा। अर्थात् भगवान का अस्तित्व की रक्षा भक्त ही करता है।

प्रश्न 3. कवि किसको कैसा सुख देता था ?
उत्तर

कवि ईश्वर की कृपा-दृष्टि को अपने कपोल रूपी नर्म शय्या पर विश्राम देकर तथा दूर चट्टानों की ठंढी गोद में सूर्यास्त के रंगों में घुलने का सुख देता था।

प्रश्न 4. कवि को किस बात की आशंका है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

कवि को इस बात की आशंका है कि वह भक्त के बिना क्या कर पायेगा क्योंकि भक्त के बिना ईश्वर वेशहीन, वृतिहीन, गृहहीन, स्वागत-विहीन और सुखहीन हो जाते हैं वे भक्त के बिना कहाँ और क्या-क्या पा सकते हैं अर्थात् कुछ नहीं।

प्रश्न 5. कविता किसके द्वारा किसे संबोधित है ? आप क्या सोचते हैं ?
उत्तर
कविता कवि के द्वारा भगवान को संबोधित है। हमारे सोच से हैं कवि महान आस्तिक थे। भगवान पर उसे पूरा विश्वास है कि वो भक्त से अलग नहीं है तथा दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।

Long Question Answer (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. मनुष्य के नश्वर जीवन की महिमा और गौरव का यह कविता कैसे बखान करती है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

मनुष्य को जीवन नश्वर है। इस नश्वर जीवन की महिमा और गौरव भगवान की भक्ति करने से ही होता है। नास्तिक मनुष्य भक्त-कृपा दृष्टि का पात्र नहीं हो सकता। अथवा भगवतत्व की प्राप्ति से ही यह नश्वर जीवन सार्थक हो पाता है।
अतः स्पष्ट है कि यह कविता मनुष्य के नश्वर-जीवन की महिमा और गौरव का बखान करती है।

प्रश्न 2. कविता के आधार पर भक्त और भगवान के बीच के संबंध पर प्रकाश डालिए।
उत्तर

भक्त और भगवान के बीच अन्योन्याश्रय संबंध है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं जैसे जल और जलपात्र का संबंध है। प्याला और मदिरा का सम्बन्ध है। वही सम्बन्ध भक्त और भगवान के हैं। यदि जल के बिना जलपात्र सूना लगता है तो जलपात्र के बिना जल भी बिखर जाता है।
उसी प्रकार प्याला के बिना मदिरा और मदिरा के बिना प्याला अस्तित्वहीन हो जाता है।

प्रश्न 3. "मेरे बिना तम प्रभू' शीर्षक कविता का सारांश लिखें।
उत्तर
यह कविता महाँन जर्मन रेनर मारिया रिल्के द्वारा रचित कविता का हिन्दी कवि "धर्मवीर भारती" द्वारा भाषांतरित कविता संकलन "देशांतर" से उद्धत किया गया है।
इस कविता में कवि ने भगवान का अस्तित्व मक्त पर स्थापित करते हुए कहा - है कि बिन भक्त के भगवान निरुपाय होते हैं अर्थात् भगवान भक्त पर निर्भर हैं।
हे प्रभु ! जब मेरा (भक्त का) अस्तित्व नहीं रहेगा तो तुम क्या करोगे ?
में तुम्हारा जलपात्र टूटकर बिखर जाऊँगा, अथवा मैं तुम्हारी मदिश सूख जाऊँगा । या स्वादहीन हो जाऊँगा तो तुम क्या करोगा हे प्रभु ! मैं तुम्हारा वंश (आधार) हूँ, तुम्हारी वृति हूँ। मुझे खोकर तुम अपना अर्थ ही खो बैठोगे।
हे प्रभु ! मेरे बिना तुम गृहहीन, निर्वासित और स्वागत विहीन हो जाओगे। मैं तुम्हारी पादुका (खड़ाऊँ) हूँ मेरे बिना तुम्हारे चरणों में छाले पड़ जाएँगे, वे लहुलुहान । होकर भटकेंगे।
हे प्रभु ! तुम्हारा शानदार लबादा (चांगा) उतर जायेगा मेरे बिना।
हे प्रभु ! तुम्हारी कृपा दृष्टि जो कभी मेरे कपोलों (ललाटो) की नर्म शव्या (बिछावन) पर विश्राम करती थी, निराश होकर वह सुख खोजेगी। दुर की चट्टानों की ठंडी गोद में सूर्यास्त के रंगों घुलने का सुख जो मैं देता था वह कहाँ मिलेगा। है प्रभु ! मुझे आशंका होती है मेरे बिना तुम क्या करोगे |


काव्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर

1. जब मेरा अस्तित्व न रहेगा, प्रभु, तब तुम क्या करोगे?
जब मैं – तुम्हारा जलपात्र, टूटकर बिखर जाऊँगा?
जब मैं तुम्हारी मदिरा सूख जाऊंगा या स्वादहीन हो जाऊँगा?
मैं तुम्हारा वेश हूँ, तुम्हारी वृत्ति हूँ
मुझे खोकर तुम अपना अर्थ खो बैठोगे?
मेरे बिना तुम गृहहीन निर्वासित होगे, स्वागत-विहीन
मैं तुम्हारी पादुका हूँ, मेरे बिना तुम्हारे
चरणों में छाले पड़ जाएँगे, वे भटकेंगे लहूलुहान !

प्रश्न.
(क) कवि और कविता का नाम लिखें।
(ख) पद का प्रसंग लिखें।
(ग) पद का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर

(क.) कविता- मेरे बिना तुम प्रभु।
कवि-रेनर मारिया रिल्के।

(ख) प्रस्तुत पद्यांश में कवि नश्वर मनुष्य की महत्ता को बताते हुए भक्त और भगवान के संबंध को प्रकाशित किया है। कवि अपने को भक्त मानते हुए कहते हैं कि मैं भगवान के लिए सब कुछ हूँ। भगवान का जलपात्र एवं मदिरा मैं ही हूँ। इस पद में कवि कहते हैं कि भक्त भगवान का निवास स्थान है। उनके पैरों की पादुका है जो उनके पैर में छाले पड़ने से बचाता है। भक्त के बिना प्रभु को कैसे रहेंगे यह आशंका से कवि ग्रसित है।

(ग) प्रस्तुत काव्यांश में कवि कहते हैं कि हे प्रभु ! मैं तुम्हें अपने अन्तरात्मा में रखने वाला भक्त हूँ और तुम्हारे लिए मेरी अति महत्ता है। अगर मेरा अस्तित्व नहीं रहेगा तो तुम्हारा भी अस्तित्व उजागर नहीं रहेगा। तुम अदृश्य हो और तुम्हारी सत्ता को साकार करने में तुम्हारी सत्ता को जग जाहिर करने में मेरी ही अहम भूमिका है।
अगर मैं नहीं रहूँगा तो तुम कहाँ रहोगे। मैं तुम्हारा जलपात्र हूँ मैं तुम्हारी मदिरा हूँ और यह जलपात्र अगर टूटकर बिखर जाएगा, मदिरा स्वादहीन हो जाएगा तो तुम बेचैन हो जाओगे, उस अवस्था तुम कहाँ कैसे रहोगे यह मेरे लिए चिन्ता का विषय है। आगे कहते हैं कि हे प्रभु ! मैं तुम्हारा वेश, वृत्ति, गृह, पादुका सबकुछ हूँ। मेरे बिना तुम गृहहीन हो जाओगे। मैं नहीं रहूँगा तो तुम्हारा स्वागत कौन करेगा। मैं पादुका बनकर तुम्हारे पैर की रक्षा करता हूँ। इसके बिना तुम्हारे पैर में छाले पड़ जाएंगे। अर्थात् भगवान भक्त वत्सल है और भक्त के बिना नहीं रह सकते। भगवान का भक्त उनका अभिन्न अंग है।

(घ) प्रस्तुत कविता का भाव-सौंदर्य यह है कि भगवान और भक्त दोनों में घनिष्ठ संबंध है। भक्ति में भगवान के अस्तित्व के बिना भक्त का अस्तित्व जिस प्रकार शून्य है उसी प्रकार भक्त बिना भगवान की सत्ता को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। भक्त की उपासना की जटिलता में ईश्वर का साक्षात्कार होना या गौण रूप से भक्ति की महत्ता को दर्शाना एक दूसरे पर आश्रित है। भक्त ही भगवान की सत्ता को स्वीकार करके सम्पूर्ण वातावरण में बिखेरता है।

(ङ) (i) सम्पूर्ण कविता खड़ी बोली में है।
(ii) जर्मन भाषा से हिन्दी भाषा में यह कविता रूपान्तरित है। इसमें तद्भव के साथ तत्सम और अरबी शब्दों का एक अनूठा प्रयोग है।
(ii) भक्ति धारा में प्रवाहित यहाँ शांत रस के साथ प्रसाद गुण की झलक है।
(iv) कविता मुक्त होते हुए भी कहीं-कहीं संगीतमयता रखती है।
(v) भाव के अनुसार भाषा का प्रयोग पूर्ण सार्थक है।


2. तुम्हारा शानदार लबादा गिर जाएगा
तुम्हारी कृपादृष्टि जो कभी मेरे कपोलों की
नर्म शय्या पर विश्राम करती थी
निराश होकर वह सुख खोजेगी
जो मैं उसे देता था
दूर की चट्टानों की ठंढी गोद में
सूर्यास्त के रंगों में घुलने का सुख
प्रभु, प्रभुः मुझे आशंका होती है
मेरे बिना तुम क्या करोगे?

प्रश्न.
(क) कविता और कवि का नाम लिखें।
(ख) दिये गये पद का सरलार्थ लिखें।
(ग) पद का प्रसंग लिखें।
(घ) भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर

(क) कविता-मेरे बिना तुम प्रभु।
कवि-रेनर मारिया रिल्के।

(ख) प्रस्तुत काव्यांश में प्रभु की सत्ता को स्थापित करने का माध्यम भक्त को बताया गया है। भक्त स्वरूप मनुष्य पर भगवान गौरवान्वित होते हैं-भक्त विहीन होने से भगवान का शानदार चोगा (लबादा) गिर जाएगा। भक्त के कपोल भगवान के लिए नरम बिछावन के रूप में उनके कृपा दृष्टि को आश्रय देनेवाले हैं। भक्त अभाव में भगवद्-कृपा दृष्टि आश्रयविहीन हो जाएगा। भक्त से जो सुख भगवान को प्राप्त होता है अगर भक्त नहीं होगा तो सुख के बदले उन्हें निराशा हाथ लगेगी। कवि को आशंका होती है कि भक्त वत्सल भगवान भक्त से बिछुड़कर, भक्त के बिना कैसे रहेंगे? प्रभु और भक्त दोनों एक-दूसरे पर निर्भर हैं।

(ग) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने नश्वर मनुष्य के जीवन की महिमा और गौरव का वर्णन किया है। यह लघु मानवीय जीवन इतना महत्त्वपूर्ण है कि इस पर भगवान भी गौरव करते हैं। यह ब्रह्म के अस्तित्व को कायम करने का महत्त्वपूर्ण माध्यम है। यह शरीर भगवान का आश्रय है, उनके लिए सुखद है। प्रकृति के सानिध्य में रहनेवाला उनका ही एक स्वरूप है। मनुष्य के बिना, भक्त के बिना भगवान कैसे रहेंगे इसकी चिंता कवि को है और वह इन पंक्तियों के माध्यम से इसे अभिव्यक्त किया है।

(घ) प्रस्तुत काव्यांश में ईश्वर सत्ता की महत्ता को भक्त की भक्ति में जो समर्पण की जो भावना होती है उसी पर आश्रित है। मनुष्य के नश्वर जीवन और भक्ति की गौरव गाथा यहाँ गायी गई है। भगवान और भक्त में अन्योन्याश्रय संबंध है।

(ङ) (i) सम्पूर्ण कविता खड़ी बोली में है।
(i) इसमें तद्भव के साथ तत्सम और अरबी शब्दों का एक अनूठा प्रयोग है।
(iii)यहाँ भावबोध तथा संवेदनात्मक भाषा और शिल्प से काफी प्रभावित किया गया है।
(iv)कविता की शैली गीतात्मक है और भाव बोध में रहस्योन्मुखता व्याप्त है।

BSEB Solutions for दही वाली मंगम्मा Class 10 Hindi Matric Varnika

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BSEB Solutions for दही वाली मंगम्मा (Dahi Wali Mangamma) Class 10 Hindi Varnika Part 2 Bihar Board

दही वाली मंगम्मा - श्रीनिवास प्रश्नोत्तर

Very Short Questions Answers (अतिलघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. रंगप्पा कौन था और वह क्या चाहता था ?
उत्तर

रंगप्पा मंगम्मा के गाँव का जुआड़ी था और मंगम्मा से रुपये चाहता था।


प्रश्न 2. सास-बहू की लड़ाई में मंगम्मा के बेटे ने किसका साथ दिया ?
उत्तर

सास-बहु की लड़ाई में मंगम्मा के बेटे ने अपनी पत्नी का साथ दिया।


प्रश्न 3. मंगम्मा और उसकी बहू नंजम्मा में झगड़ा क्यों हुआ?
उत्तर

मंगम्मा और उसकी बहू नंजम्मा में पोते की पिटाई को लेकर झगड़ा हुआ।


प्रश्न 4. मंगम्मा की बहू नंजम्मा ने अपनी सास से क्यों समझौता कर लिया ?
उत्तर
मंगम्मा की बहू नंजम्मा ने अपनी सास से इसलिए समझोता कर लिया कि कहीं सास दूसरे व्यक्ति को रुपये न दं ।


प्रश्न 5. मंगम्मा कौन थी?
उत्तर

मंगम्मा बारी में दही बेचने वाली थी।


प्रश्नोत्तर (Questions and Answers)

प्रश्न 1. मंगम्मा का अपनी बहू के साथ किस बात को लेकर विवाद था ?

उत्तर
मंगम्मा का अपनी बहू के साथ स्वतंत्रता को लेकर विवाद थी, यह सत्य है, कि संसार में सास और बहू में स्वतंत्रता की होड़ लगी रहती है, मां बेटे पर अपना अधिकार जमाना चाहती है, तो मंगम्मा की बहू अपने पति पर अपना अधिकार जमाना चाहती है, मंगम्मा की बहू ने किसी बात को लेकर वह अपने बेटे को खूब पीटी मंगम्मा अपने पोते की पिटाई से दुखी होकर वह अपनी बहू को भला बुरा कह दी, बेटे पर


प्रश्न 2.  रंगप्पा कौन था और वह मंगम्मा से क्या चाहता था ?

उत्तर
रंगजा रंगप्पा के गाँव का आदमी था। बड़ी शौकीन तबीयत का। कभी-कभार जूआ भी खेलता था। जब उसे पता चला कि मंगम्मा बेटे से अलग रहने लगी है तो वह मंगम्मा के पीछे पड़ गया। एक दिन उससे हाल-चाल पूछा और बोला कि मुझे रुपयों की जरूरत है। दे दो लौटा दूँगा। मंगम्मा ने जब कहा कि पैसे कहाँ हैं तो बोला कि पैसे यहाँ-वहाँ गाड़कर रखने से क्या फायदा दूसरे दिन रंगप्पा ने अमराई के पीछे रोककर बाँह पकड़ ली और कहा- ‘जरा बैठो मंगम्मा, जल्दी क्या है ? दरअसल, रंगप्पा लालची और लम्पट दोनों ही था।


प्रश्न 3. बहू ने सास को मनाने के लिए कौन सा तरीका अपनाया ?

उत्तर
बहू ने अपने सास को मनाने के लिए अपने बेटे को ढाल बनाकर पैसे लेने की तरकीब सोचने लगी, वह जानती थी, कि उसकी सास अपने पोते से बहुत प्यार करती है, उसने अपने बेटे को दादी के पास ही रहने के लिए भेज दिया, ताकि दादी पोते के प्यार में घुल मिलकर एक साथ हो जाए |


प्रश्न 4. इस कहानी का कथावाचक कौन है ? उसका परिचय दीजिए ?

उत्तर

इस कहानी का कथावाचक लेखक की माँ है। लेखक की माँ प्रस्तुत कहानी का द्वितीय केन्द्रीय चरित्र है। कहानी की कथावस्तु लेखक की माँ के द्वारा ताना-बाना बुना गया है। मंगम्मा जब दही बेचने के लिए आती है तो लेखक के घर आती है और बढ़िया दही कुछ-न-कुछ बेचकर जाती है। धीरे-धीरे मगम्मा और लेखक की माँ में घनिष्ठता बढ़ती चली गई।

मगम्मा अपने घर-गृहस्थी का सारा हाल सुनाती है और लेखक की माँ उसे कुछ-न-कुछ सुझाव देती है। सास और बहू के अन्तर्कलह से परिवार बिखर जाता है। बेटे को समस्त सुख अर्पित करनेवाला माँ बहू के आते ही बेटे से अलग हो जाती है। मगम्मा के अन्तर्व्यथा को सुनकर लेखक की माँ का मन भी बोझिल हो जाता है। ममता की मूर्तिमान रहनेवाली नारी दुर्गा क्यों बन जाती है। इसका ज्वलंत उदाहरण लेखक की माँ को देखना-सुनना पड़ता है। जब कोई एक दूसरे को पसंद नहीं करता तब छोटी बातें भी बड़ी हो जाती है। मंगम्मा की बातें सुनते-सुनते लेखक की माँ का हृदय द्रवित हो जाता है।


प्रश्न 5. मंगामा का चरित्र चित्रण कीजिए ?

उत्तर
मंगम्मा इस कहानी के प्रमुख पात्र है, कहानी की कथावस्तु इसके इर्घ गिर्घ घूमती रहती है, पति के मरने के बाद मंगम्मा कभी या नहीं सोचती थी, कि उसका बेटा पत्नी के कहने पर उसको छोड़ देगा, मंगम्मा दही बेचकर अपनी जीवन यापन करती थी, वह एक भोली भाली भारतीय नारी थी, उसको अपने पोते से बहुत प्रेम था, वह एक दिन के लिए भी अपने पोते से अलग नहीं रहना चाहती है, जिससे स्पष्ट होता है, कि उसके अंदर मातृत्व और प्रेम की भावना थी, मंगम्मा संपूर्ण भारतीय नारी की नेतृत्व करती दिखाई पड़ती है, उसके अंदर प्रेम स्वभाव तथा ममता भरा पड़ा हुआ है |

प्रश्न 6. मंगामा कहानी का सारांश प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

प्रस्तुत कहानी कन्नड़ कहानियाँ (नेशल बुक ट्रस्ट, इंडिया) से सभार ली गयी है। इस कहानी का अनुवाद बी आर नारायण ने किया है। इस कहानी का प्रमुख केन्द्रीय चरित्र मंगम्मा और द्वितीय चरित्र लेखक की माँ है। मंगम्मा पति विरक्ता हो घर के अन्तर्कलह से दुःखी होकर वह जीवन-यापन करने के लिए दही बेचती है। वह गांव से शहर जाती है और दही बेचकर कुछ पैसे संचय करती है। संचय का सत्य है कि सास और बहू में स्वतंत्रता की होड़ लगी रहती है। माँ बेटे पर से अपना हक नहीं छोड़ती और बहू पति पर अधिकार जमाना चाहती है। पोते की पिटाई से क्षुब्ध मंगम्मा अपनी बहू को भला-बुरा कह देती है।

सास और बहू का विवाद घर में अन्तर्कलह को जन्म दे देता है। बहू-और-बेटे मंगम्मा को अलग रहने के लिए विवश कर देते हैं। दही बेचकर किसी तरह जीवन मापन करने वाली मंगम्मा कुछ पैसे इकट्ठा कर लेती है। जब बहू को यह ज्ञात हो जाता है कि उसकी सास रंगप्पा को कर्ज देनेवाली ही तो वह अपने को बेटे को ढाल बनाती है। वह बेटे को दादी के पास ही रहने के लिए उसकाती है। धीरे-धीरे सास और बहू में संबंध सुधरता जाता है। एक दिन मंगम्मा स्वयं बहू को लेकर दही बेचने के लिए जाती है।

लोगों से अपनी बहू का परिचय देती है और कहती है कि अब दही उसकी बहू ही बेचने के लिए आयेगी। वस्तुतः इस कहानी के द्वारा यह सीख दी गई है कि पानी में खड़े बच्चे का पाव खींचनेवाले मगरमच्छ जैसी दशा बहू की है और ऊपर से बाँह पकड़कर बचाने जैसी दशा माँ की होती है।


BSEB Solutions for ढहते विश्वास Class 10 Hindi Matric Varnika

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BSEB Solutions for ढहते विश्वास (Dhahate Viswas) Class 10 Hindi Varnika Part 2 Bihar Board

ढहते विश्वास - सातकोड़ी होता प्रश्नोत्तर

Very Short Questions Answers (अतिलघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. लक्ष्मी कौन थी?
उत्तर

लक्ष्मी उड़ीसा के एक गृहस्थ परिवार की स्त्री थी जिसका घर देवी बाँध के नीचे था।


प्रश्न 2. “उहते विश्वास” कहानी का वर्श्व-विषय क्या है ?
उत्तर
ढहतें विश्वास कहानी का वर्ण्य-विषय है उड़ीसा में सूखा, बाढ़ का तांडव और इन दोनों से जुझते लोगों का अदम्य साहस।


प्रश्न 3. सातकोड़ी होता के कथा-साहित्य की विशेषता क्या है ?
उत्तर

सात कोड़ी होता के कथा-साहित्य में उड़ीसा का जन-जीवन पूरी आन्तरिकता के साथ प्रकट हुआ है।


प्रश्न 4. हीराकुंद बाँध कहाँ और किस नदी पर बांधा गया है?
उत्तर

हीराकुंद बाँध उड़ीसा में है और महानदी पर बाँधा गया है।


प्रश्न 5. अच्युत कौन था?
उत्तर

अच्युत लक्ष्मण-लक्ष्मी का बड़ा बेटा था, कर्मठ और साहसी।


प्रश्न 6. बाढ़ का प्रभाव लोगों पर क्या पड़ा?
उत्तर
लोगों को किसी का भरोसा नहीं रहा। देवी-देवताओं पर से भी लोगों का विशवास उठने लगा।


प्रश्न 7. बाढ़ से घर छोड़ने की आशंका से लक्ष्मी ने क्या तैयारी की?
उत्तर
बाढ़ से घर छोड़ने की आशंका से लक्ष्मी ने एक बारे में थोड़ा-सा चिवड़ा, कुछ कपड़े और दो-चार बर्तन बाँध कर रख लिए। गाय-बछड़े का पगहा खोल दिया। बकरियों को खोल दिया।


प्रश्नोत्तर (Questions and Answers)

प्रश्न 1. लक्ष्मी कौन थी उसकी परिवारिक स्थिति का चरित्र प्रस्तुत कीजिए ?

उत्तर – लक्ष्मी ढहते विश्वास कहानी के प्रमुख पात्र है, इसके पति का नाम लक्ष्मण है, यह कलकत्ते में नौकरी करते थे, इनकी नौकरी से घर का भरण-पोषण पूर्ण रूप से नहीं होता है, जिसके कारण लक्ष्मी एक तहसील दार के घर छोटे-मोटे काम कर के घर का भरण पोषण करती है, तथा पूर्वजो द्वारा एक कठा खेत छोड़ जाने के कारण वह अपने खेत में भी काम करती है, और अपने घर का भरन पोषण करती है, तेज बर्षा होने के कारण उसको यह चिंता सताती रहती है, की कही गावं में बाढ़ ना आ जाए |

प्रश्न 2. कहानी के आधार पर प्रमाणित करे की उड़ीसा का जनजीवन बाढ़ और सूखा से काफी प्रवाहित रहा है ?

उत्तर
उड़ीसा का भौगोलिक स्थिति ऐसा है, कि वहां पर आए दिन बाढ़ और सूखा होता है, प्रकृति की विपताए उड़ीसा के लिए होता है, उड़ीसा में बहुत सारी नदियां है, जिसमें एक देवी नदी पर एक भले ही बांध बांधा हुआ है, जब पूरा गांव बाढ़ की चपेट में आ जाता है, लोग ऊंचे स्थानों पर अपना आश्रय लेते हैं, वहां लोग जीवन मौत से जूझने लगते हैं, फिर भी लोगों में अपनी मातृभूमि से बहुत प्रेम रहता है, जिसके कारण वह उसे छोड़ना नहीं चाहते, उस क्षेत्र के लोग बाढ़ और सुधार से परिचित हो गए हैं, धीरे-धीरे बाढ समाप्त हो जाती है, किंतु उसकी त्रासदी का दशाह उनके आज भी सहनी पड़ती है |


प्रश्न 3. कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर विचार करें ?

उत्तर
इस कहानी का शीर्षक कहानी के मुख्य चरित्र से जुड़ा हुआ है, पूरी कहानी में लक्ष्मी के व्यक्तित्व की वर्णन किया गया है, मेहनत करने वाली लक्ष्मी पति से दूर रहकर भी अपना भरण पोषण कर लेती है, देवी नदी के किनारे उसका घर होता है, लेकिन अति वर्षा के कारण उसके गांव में पानी प्रवेश कर जाता है, और आत्मविश्वास में लक्ष्मी ऐसी परिस्थिति के सामना करती है, इस कहानी का शीर्षक सार्थक सहि है, थोड़ी देर के लिए लक्ष्मी का विश्वास ढहता महसूस होता है, क्योंकि ऐसी परिस्थिति को समझने के लिए उसके पति भी उस समय नहीं थे, जिसके कारण लक्ष्मी का विश्वास डगमगा जाता है, इसी कारण से लेखक ने इस कहानी का शीर्षक ढहते विश्वास रखा है|

प्रश्न 4. लक्ष्मी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालें ?

उत्तर
लक्ष्मी प्रस्तुत कहानी की प्रधान नायिका है, यह एक नारी का जो रूप होना चाहिए, वह लक्ष्मी में झलकता है, जीवन रूपी पथ को एक चक्र होने वाली पत्नी का सही रूप लक्ष्मी धारण करती है, पत्नी पति के बाहर जाने पर भी वो अपने घर के पूरे काम को संभाल लेती है, गांव में आई आपदा के कारण लक्ष्मी का विश्वास थोड़े समय के लिए डगमगाने लगता है, परंतु यह तो विधि का विधान है, इसे कौन टाल सकता है, अचानक गांव में बाढ़ का पानी आ जाता है , और सब कुछ तबाह कर देता है,, परंतु लक्ष्मी एक सही नारी का रूप धारण करके अपने बाल बच्चे के साथ ऊंचा स्थान की ओर दौड़ती है,, किंतु पैर में ठेस लगने के वजह से वह रुक जाती है, तथा अपनी दोनों बेटियों को आगे जाने का आदेश देती है,, तब तक बाढ़ का सैलाब इसके करीब आ जाता है,, लक्ष्मी बरगद के पेड़ के सहारा लेना चाहती है,, और उसी में उसका छोटा बेटा बाढ़ के सैलाब में बह जाता है, इतना कुछ होने के बावजूद भी लक्ष्मी एक अन्य छोटे से बालक को दूध पिलाती है,, जिससे उसके अंदर एक सही मातृत्व का प्रेम उमड़ता है |

प्रश्न 5. बिहार का जनजीवन भी बाढ़ और सूखा से प्रभावित होता रहा है,, इस संबंध में आप क्या सोचते हैं,, लिखे ?

उत्तर
बिहार की भौगोलिक स्थिति यहां बाढ़ और सुखाड़ दोनों होता है, उत्तरी बिहार और दक्षिणी बिहार की कुछ ऐसी नदिया है,, जो हमेशा बरसात में उफान रूप ले लेती है,, यह नदियां हिमालय पर्वत से निकलती है,, और बिहार के मैदानी भागों को तबाह कर देती है,, जिससे फसल और जान-माल की काफी छती होती है,, बाढ़ और सूखा भी हम बिहार वासियों के लिए क्या आम बात हो गया है,, कुछ राजनेता इन के दुख दर्द को बांटने की बजाय राजनीति खेल शुरू कर लेते हैं,, परंतु बिहार की अभिशाप है,, कि इस पर कोई कड़ा फैसला नहीं हो पाता है |

प्रश्न 6. गुणनिधि का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर

गुणनिधि गाँव का नौजवान है। कंटक में पढ़ता है। वह साहसी है, उसे अपने सामाजिक दायित्व का बोध है और नेतृत्वगुण संपन्न है। जब गाँव आता है और बाढ़ का खतरा देखता है तो स्वयं सेवक दल का गठन करता है। स्वयं सदा उनके साथ रहकर उनका उत्साह बढ़ाता है-‘निठल्लों के लिए जगह भी नहीं है दुनिया में जिस मनुष्य ने काठ-जोड़ी का पत्थर-बाँध बाँध है, वह मनुष्य अभी मरा.थोड़े ही है’ खुद पैंट-शर्ट उतार कर काँछ. लगाकर कमर कस कर काम पर रात-दिन जुटा रहता है।

BSEB Solutions for माँ Class 10 Hindi Matric Varnika

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BSEB Solutions for माँ (Maa) Class 10 Hindi Varnika Part 2 Bihar Board

माँ - ईश्वर पेटलीकर प्रश्नोत्तर

Very Short Questions Answers (अतिलघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. मंगु कौन थी?
उत्तर

मंगु जन्म से पागल और गूंगी लड़की थी।


प्रश्न 2. मंगु की देख-रेख कौन और कैसे करता था? ।
उत्तर
मंगु की देख-रेख उसकी माँ बड़े यत्न से करती थी। वह उसे अपने पास सुलाती, खाना खिलाती और मल-मूत्र साफ करती थी।


प्रश्न 3. मंगु की माँ उसे अस्पताल में क्यों नहीं भर्ती कराना चाहती थी?
उत्तर

मंगु की माँ सोचती थी कि अस्पताल में मंगु की देख-भाल ठीक से न होगी। इसलिए उसे भर्ती कराना नहीं चाहती थी।


प्रश्न 4. अस्पताल में भर्ती कराकर आने के बाद मंगु के भाई ने क्या प्रण किया ?
उत्तर
अस्पताल में भर्ती कराकर आने के बाद मंगु के भाई ने प्रण किया कि वह मंगु पालेगा। बहू मल-मूत्र न धोएगी तो वह स्वयं धोएगा।


प्रश्न 5. मंगु को अस्पताल में भर्ती करा कर आने के बादं माँ की क्या दशा हई?
उत्तर
मंगु को अस्पताल में भर्ती कराकर आने के बाद माँ रात भर सिसकती रही और सवेरे चीत्कार सुनकर परिवार एवं पड़ोस के लोग घबड़ाकर वहाँ आए तो सबने देखा कि मंगु की माँ खुद पागल हो गई।


प्रश्न 6. ईश्वर पेटलीकर कौन हैं?
उत्तर

ईश्वर पेटलीकर गुजराती के जाने-माने कथाकार हैं।


प्रश्न 7. ईश्वर पेटलीकर के साहित्य की क्या विशेषता है ?
उत्तर

ईश्वर पेटलीकर के साहित्य में गुजरात का समाज, उसके मूल्य, दर्शन आदि साकार होते हैं।


प्रश्न 8. मंगु की माँ उसे अस्पताल में भर्ती कराने को कैसे राजी हुई ?
उत्तर
गाँव की लड़की कुसुम का पागलपन जब अस्पताल जाने से दूर हो गया तो मंगु की माँ मंगु को अस्पताल में भर्ती कराने को राजी हुई।


प्रश्न 9. मंगु को अस्पताल ले जाने के समय माँ की स्थिति कैसी थी?
उत्तर

अस्पताल ले जाने के पूर्व की रात माँ को नींद नहीं आई। उसे लेकर घर से निकलने लगी तो लगा कि ब्रह्माण्ड का भार उसके ऊपर आ गया। आँखों से सावन-भादो शुरू हो गया।


प्रश्नोत्तर (Questions and Answers)

प्रश्न 1. सदस्यों के व्यवहार में जो फर्क है, उसे अपने शब्दों में लिखें ?

उत्तर
मंगू जन्म से पागल और गूंगी बालिका थी, मां के लिए कोई भी कैसा भी संतान हो उसकी प्यार उमड़ ही पड़ती है, मंगू की देखरेख करने वाली मां को अपनी पुत्री एवं ईश्वर से शिकायत नहीं है, कि ममता की प्रतिमूर्ति मां स्वयं अपना सुख भूल कर पुत्री के लिए समर्पित हो जाती है,, वह रातों दिन अपनी पुत्री के बारे में सोचती रहती है,, मंगू के प्रति उनके परिवार के अन्य सदस्यों का व्यवहार कुछ अच्छा नहीं था, यह लोग मंगू को पागलखाने में रखने का निश्चित करते थे, मंगू परिवार के अन्य सदस्यों के लिए एक बहुत बड़ी बोझ बन गई थी, यही फर्क मां और परिवार के अन्य सदस्यों के बीच मंगू के प्रति थी |


प्रश्न 2. मां मंगु को अस्पताल में क्यों नहीं भर्ती करना चाहती थी, विचार करें ?

उत्तर
मां अस्पताल के व्यवस्था से मन ही मन कांप जाती थी, वह लोगों को अस्पताल के लिए गौशालाओं की उपमा देती थी, मंगू बिस्तर पर पाखाना पेशाब कर देती थी, खिलाने पर ही खाती थी, इसलिए मां को लगता था, कि मांगू की सेवा कोई नहीं कर सकता, जब एक मां सेवा नहीं कर सकती, तो अस्पताल वाले क्या करेंगे, इसलिए मां मंगू को अस्पताल में भर्ती नहीं करना चाहती थी |


प्रश्न 3. कुसुम के पागलपन में सुधार देख मंगु के प्रति परिवार और समाज के प्रतिक्रिया को अपने शब्दों में लिखें ?

उत्तर
कुसुम एक पढ़ने लिखने वाली लड़की थी, उसकी मां चल बसी थी, अचानक वह भी पागल की तरह आचरण करने लगती है, कुसुम को अस्पताल में भर्ती की बात सुनकर मां जी को लगा कि यदि उसकी मां जीवित होती तो, अस्पताल में भर्ती ना होने देती, कुसुम अस्पताल में भर्ती करा दी जाती है, वह धीरे धीरे ठीक हो जाती है, ठीक हो जाने के बाद जब वह घर लौटती है, तब उसे देखने के लिए उसके गांव के पूरे लोग जुट जाते हैं, सबसे आगे मां जी भी है, माँ जी सोचती है , कि जब कुसुम ठीक हो सकती है, तू मंगू भी क्यों नहीं ठीक हो सकती, या बात सुनकर मां जी को भी इच्छा हुई, कि मैं भी अपनी मंगू को अस्पताल में जरूर भर्ती कर आऊंगी |


प्रश्न 4. कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर विचार करें ?

उत्तर
किसी भी कहानी का शीर्षक धुरी होता है, जिसके इर्दगिर्द कहानी धूमती रहती है, इसमें एक गूंगी पागल मंगू नामक लड़की रहती है, जिसकी सेवा पूरी तन मन के साथ उसकी माँ करती है, जिससे यह स्पष्ट होता है, की संतान कैसा भी हो पर माता का प्रेम सभी पर बराबर होता है, संतान चाहे जैसा भी हो माता की मातुत्व में कोई कमी नहीं आती है, इससे स्पष्ट होता है, की प्रस्तुत कहानी का शीर्षक सार्थक सही है |


प्रश्न 5. मंगू जिस अस्पताल में भर्ती की जाती है, उस अस्पताल के कर्मचारी व्यवहार कुशल है, या संवेदनशील विचार करें ?

उत्तर
मंगू जिस अस्पताल में भर्ती की जाती है, उस अस्पताल के कर्मचारी संवेदनशील है, अस्पताल कर्मियों का काम मरीज के साथ अच्छे से अच्छे व्यवहार करना और सेवा करना है, किंतु इस अस्पताल के कर्मियों में व्यवहार कुशल ही नही संवेदनशील भी है |

प्रश्न 6. माँ का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर

‘माँ’ कहानी की नायिका अपने घर की मुखिया और सहनशील नारी है। वह सब कुछ करती है और लोग यदि उसकी आलोचना भी करते हैं तो चुपचाप सुनती है, कुछ कहती नहीं। वह अथक सेविका है। अपनी पागल पुत्री की देखभाल बड़ी लगन से करती है, उसे अपने पास सुलाती, नहलाती-धुलाती, खिलाती और उसका मल मूत्र भी खुशी-खुशी साफ करती है। वह ऊबती नहीं अपितु उसकी जुदाई की आशंका से व्याकुल हो उठती है। वह अपने सभी बच्चों को बहुत प्यार करती है। माँ व्यवहार-कुशल भी है। वह अपनी बहुओं की अपने प्रति शिकायत से परिचित हैं, किंतु परिवार को विखंडित होने से बचाने के लिए कुछ नहीं कहती। उसका व्यवहार सभी लोगों से सौहार्द्रपूर्ण है। माँ अत्यन्त ममतामयी है। ममता के अतिरेक में ही, मंगु की जुदाई सहन नहीं कर पाती और पागल हो जाती है।

BSEB Solutions for नगर Class 10 Hindi Matric Varnika

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BSEB Solutions for नगर (Nagar) Class 10 Hindi Varnika Part 2 Bihar Board

 नगर - सुजाता प्रश्नोत्तर

Very Short Questions Answers (अतिलघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. बड़े अस्पताल के डॉक्टर ने पाष्पाति को किस रोग से ग्रस्त बताया ?
उत्तर

बड़े अस्पताल के डॉक्टर ने पाष्पाति को मेनिनजाइटिस का रोगी बताया।


प्रश्न 2. सुजाता किस भाषा की कथाकार हैं ?
उत्तर
सुजाता तमिल की चर्चित कथाकार हैं।


प्रश्न 3. वल्लि अम्माल मदुरै के बड़े अस्पताल में क्यों गई थी?
उत्तर
वल्लि अम्माल अपनी बेटी पाप्पाति को दिखाने के लिए मदुरै के बड़े अस्पताल गई थी। गाँव के डॉक्टर ने उससे यही कहा था।


प्रश्न 4. अस्पताल के आदमी ने वल्लि अम्माल को चिट क्यों लौटा दिया।
उत्तर

अस्पताल में आदमी ने वल्लि अम्माल को यह कहकर चिट लौटा दिया कि इसपर डॉक्टर के दस्तखत नहीं हैं।


प्रश्न 5. भर्ती वाली जगह के आदमी ने वल्लि अम्माल से क्या कहा?
उत्तर
भर्ती वाली जगह के आदमी ने वल्लि अम्माल से कहा कि अभी जगह नहीं है। कल सबेरे साढ़े सात बजे आना।


प्रश्न 6. बड़े अस्पताल का डॉक्टर कैसा आदमी था ?
उत्तर

बड़े अस्पताल का डॉक्टर पेशे से कुशल और भला आदमी था। वह पाष्पाति को भर्ती कर उसका इलाज करना चाहता था किंतु भ्रष्टाचारियों के आगे उसकी एक न चली।


प्रश्नोत्तर (Questions and Answers)

प्रश्न 1. लेखक ने कहानी का शीर्षक नगर क्यों रखा, शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर
प्रस्तुत कहानी में नगरीय व्यवस्था का चित्रण किया गया है, यहाँ के रोगी जो इलाज के लिए गांव से शहर आता है, किंतु अस्पताल प्रशासन उसको टालमटोल कर देते हैं, उसकी भर्ती नहीं हो पाती है, नगरीय व्यवस्था से शुद्ध होकर ही इस कहानी का शीर्षक नगर रखा गया है, कहानी के शीर्षक में अस्पताल प्रशासन की कमजोरियों एवं मानवीय मूल्यों में निरंतर आने वाली कमी का चित्रण किया गया है, नगरों में रहने वाले लोग केवल अपनी सुख सुविधा में लगे रहते हैं, इन सिद्धांतों से स्पष्ट होता है, कि प्रस्तुत कहानी का शीर्षक सार्थक और सही है |

प्रश्न 2. पम्पाति कौन थी, और वह शहर क्यो लाई गई थी ?

उत्तर
पम्पाति वल्ली आमाल की बेटी थी, जो मेनिनजाइटिस नामक बीमारी से पीड़ित थी, वह शहर में इलाज कराने के लिए लाई गई थी |

प्रश्न 3. बड़े डॉक्टर ने अपने अधीनस्थ डॉक्टर से पम्पाति को अस्पताल में भर्ती कर लेने के लिए क्यों कहा विचार करें ?

उत्तर
बड़े चिकित्सक एक गरिमामय पद होता है, उन्हें अपने कर्तव्य का निर्वाह करना पड़ता है , यदि वे मरीजों से अनदेखी करने लगे, तो अधिनस्थ डॉक्टर इसकी अनदेखी करने लगेंगे, बडे डॉक्टर साहब इस बीमारी के बारे में बाहर के देश से पढ़ कर आए थे, इस बीमारी को देखकर उस पढ़ाई का लाभ उठाना चाहते थे, कि उनकी पढ़ाई सफल हुई है, या नहीं यही कारण है, कि वे अधीनस्थ डॉक्टरों से पम्पाति को भर्ती करने को कहा |

प्रश्न 4. बड़े डॉक्टर के आदेश के बावजूद पम्पाति अस्पताल में भर्ती क्यों नहीं हो पाती ?

उत्तर
अस्पताल के कर्मचारी खानापूर्ति करने में व्यस्त रहते थे, गरीब लोग पर उनका कोई ध्यान नहीं रहता है, और कर्मचारी अपना काम दूसरे को सौंप देते हैं, बेड खाली ना होने के बहाना बना कर पम्पाति को सुबह लाने को कहा जाता है, और अस्पताल प्रशासन की लापरवाही के कारण ही पम्पाति की अस्पताल में भर्ती नहीं हो पाती |

प्रश्न 5. वल्ली आमाल का चरित्र चित्रण करें ?

उत्तर
वल्ली अम्माल नगर शिक्षक कहानी की प्रमुख पात्र है, वह एक विधवा नारी है, जो बीमार बेटी की इलाज कराने के लिए उसे गांव से नगर ले जाती है, वह पढ़ी-लिखी नहीं है, अस्पताल में उसकी बेटी भर्ती नहीं हो पाती है, बीमार बेटी को देखकर चिंतित बल्ली अम्माल अंधकार में डूब जाती है, उसे लगता है, कि बेटी को केवल बुखार है, उसकी आस्था डॉक्टरों में नहीं झाड़ फूंक में है, बेटी को ठीक होने के लिए भगवान से मन्नत मांगती है, उसे विश्वास है, कि ओझा से ठीक हो जाएगी, इससे स्पष्ट होता है, बल्ली अम्माल में अशिक्षित और अंधविश्वास भरी हुई है |

BSEB Solutions for धरती कब तक घूमेगी Class 10 Hindi Matric Varnika

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BSEB Solutions for धरती कब तक घूमेगी (Dharati kab tak Ghumegi) Class 10 Hindi Varnika Part 2 Bihar Board

धरती कब तक घूमेगी - साँवर दइया प्रश्नोत्तर

Very Short Questions Answers (अतिलघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. ‘धरती कब तक घूमेगी’ कहानी की नायिका कौन है ?
उत्तर
‘धरती कब तक घूमेगी’ कहानी की नायिका तीन बेटों वाली सीता है।


प्रश्न 2. सांवर दइया की कहानियों की विशेषता क्या-क्या है ?
उत्तर

साँवर दइया की कहानियों की विशेषता है राजस्थानी समाज का यथा तथ्य वर्णन।


प्रश्न 3. ‘धरती कब तक घूमेगी’ कहानी के रचयिता कौन हैं?
उत्तर

‘धरती कब तक घूमेगी’ कहानी के रचयिता साँवर दइया हैं।


प्रश्न 4. ‘धरती कब तक घूमेगी’ कहानी का उद्देश्य क्या है?
उत्तर

प्रस्तुत कहानी का उद्देश्य है पुराने पारिवारिक मूल्यों का आज के युग में हो रहे क्षरण का चित्रण।


प्रश्न 5. सीता के प्रति उसके बेटों और बहुओं का व्यवहार कैसा था?
उत्तर
सीता के प्रति उसके बेटों और बहुओं का व्यवहार अत्यन्त उपेक्षापूर्ण था।


प्रश्न 6. सीता की आँखों के आगे अंधेरा कब छा गया?
उत्तर

बेटों ने जब तय किया कि वे तीनों हर माह पचास-पचास रुपये देंगे और माँ अपनी रोटी आप बनाएगी तो सीता की आँखों के आगे अंधेरा छा गया।


प्रश्नोत्तर (Questions and Answers)

प्रश्न 1. सीता अपने ही घर में क्यों घुटन महसूस करती है ?

उत्तर
सीता के पति के मरते ही घर की स्थिति दयनीय हो गई, भाइयों में आपसी भेद उत्पन्न हो गए, केवल अपनी पत्नी और संतान में ही सिमट गए, मां की देखरेख एवं भरन पोषण के लिए एक एक महीने का पारी बांध लिया, सीता किसी भी बेटे के साथ रहती, तो दुखी ही रहती थी, तथा अपने बहुओ के जली कोटि बाते सुनती ही रहती थी, वह अपने ही बेटो से तंग हो चुकी थी, और अपनी दर्द को किसी से कह भी नहीं सकती थी, यही कारण है, की सीता अपने ही घर में घुटन महसूस करने लगी |

प्रश्न 2. पाली बदलने पर अपने घर दादी मां के खाने को लेकर बच्चे खुश होते हैं, जबकि उनके माता-पिता नाखून बच्चे की खुशी और माता-पिता की नाखुशी के कारणों पर विचार करे ?

उत्तर
बच्चों का मन साफ सुथरा होता है, बच्चों को दादी दादा नाना नानी से बहुत लगाव होता है, अपनी पाली में दादी को पाकर वे खुशी से झूम उठते हैं, उनके माता पिता भले ही दुखी होते हैं, परंतु बच्चों में काफी खुशी झलकती है, बच्चों के माता-पिता खर्च से नाखुश हो जाती है, यही कारण है, कि पाली बदलने पर बच्चे खुश और उनके माता-पिता ना खुश हो जाते हैं |

प्रश्न 3. इस समय उसकी आंखों के आगे ना तो अंधेरा था, और ना ही उसे धरती और आकाश के बीच घुटन हुई, सप्रसंग व्याख्या करें ?

उत्तर
प्रस्तुत पंक्ति सांवर दइया द्वारा रचित धरती कब तक घूमेगी शीर्षक से लिया गया है, इस पंक्ति के माध्यम से लेखक यह बताना चाहते हैं, कि जब सीता के तीनों बेटे ने 50 रुपया देकर मां को अलग कर दिया, तो मां यह निर्णय लेती है, कि जब मजदूरी ही करना है, तो इन लोगों के घर क्यों करूं, और रात के अंधेरे में घर से निकल जाती है, अब उसके आंखों के सामने न ही अंधेरा था, और ना ही धरती आकाश के बीच घुटन महसूस हो रही हैं |

प्रश्न 4. सीता का चरित्र चित्रण करें ?

उत्तर
सीता एक ऐसी तीनों बेटों की माता थी, जो असहाय थी, पति के मरने के बाद उसके घर में कलह लग जाती है, और तीनों बेटे अलग अलग हो जाते हैं, बेटे और बहुओं की दूधकार वह मूल रूप से सहन कर लेती है, उसकी बहू समय-समय पर ताना मारती रहती है, जिस तरह धरती सब को सहन करने वाली मां होती है, उसी तरह सीता भी सब कुछ सहन करने वाली माता होती है, बच्चों द्वारा पचास रुपया देने का निर्णय लेने पर वह घर से सब कुछ त्याग कर निकल जाती है, वह सोचती है, कि भले ही दूसरे के यहां मजदूरी कर लुंगी बर्तन साफ करूंगी, परंतु इनके यहां एक पल भी नहीं रहूंगी |

प्रश्न 5. कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर

प्रस्तुत कहानी राजस्थानी भाषा में सावर दइया दवारा रचित धरती कब तक धुमेगी शीर्षक से लिया गया है, इस कहानी में सामजिक बिडम्वना का च्रित्रण किया गया है, इसकी प्रमुख पात्रा सीता थी, पति के मरने के बाद बच्चो के रहते हुए, भी वह असहाय हो गई थी, बच्चो की बहुए उसे हमेशा ताना मरती रहती थी, जिससे सीता अपने ही घर में घुटन महसूस करती थी, बेटो के इशारे पर वह कब तक इधर उधर भटकती, इसलिए एक दिन रात्री में वह घर छोड़कर निकल गई, इससे स्पस्ट होता है, की प्रस्तुत कहानी का शीर्षक धरती कब तक धुमेगी लेखक ने स्टिक रखा |

MCQ and Summary for श्रम विभाजन और जाति प्रथा Class 10 Hindi Matric Godhuli BSEB

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MCQ and Summary for श्रम विभाजन और जाति प्रथा (Shram Vibhajan Aur Jati Pratha) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

श्रम विभाजन और जाति प्रथा - भीमराव अम्बेदकर MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. श्रम विभाजन और जाति प्रथा के लेखक कौन हैं ?
(A) महात्मा गाँधी
(B) जवाहरलाल नेहरू
(C) राम मनोहर लोहिया
(D) भीमराव अंबेडकर
उत्तर
(D) भीमराव अंबेडकर


2. भारतीय संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका किसकी है?
(A) भीमराव अंबेडकर
(B) ज्योतिबा फूले
(C) राजगोपालाचारी
(D) महात्मा गाँधी
उत्तर
(A) भीमराव अंबेडकर


3. सभ्य समाज की आवश्यकता क्या है ?
(A) जाति प्रथा
(B) श्रम विभाजन
(C) अणु बम
(D) दूध पानी
उत्तर
(B) श्रम विभाजन

4. निम्नलिखित रचनाओं में से कौन-सी रचना डॉ. अंबेडकर की है ?
(A) द कास्ट्स इन इंडिया
(B) द अनचटेबल्स, यू आर दे
(C) हू आर शूद्राज
(D) इनमें से सभी
उत्तर
(D) इनमें से सभी

5. भीमराव अंबेडकर के चिंतन तथा रचनात्मकता के इनमें से कौन प्रेरक व्यक्ति माने जाते हैं ?
(A) महात्मा बुद्ध
(B) कबीर दास
(C) ज्योतिबा फूले
(D) सभी
उत्तर
(D) सभी

6. जाति प्रथा का प्रमुख दोष क्या है?
(A) इसमें व्यक्ति न चाहते हुए भी पेशे से जुड़ जाता है
(B) वह पेशा कर नहीं पाता
(C) पेशा उसपर हावी रहता है
(D) सभी गलत है
उत्तर
(A) इसमें व्यक्ति न चाहते हुए भी पेशे से जुड़ जाता है

7. भीमराव का जन्म कब हुआ था ?
(A) 14 जून, 1891 में
(B) 24 जून, 1891 में
(C) 14 अप्रैल, 1891 में
(D) 14 जनवरी, 1891 में
उत्तर
(C) 14 अप्रैल, 1891 में

8. "बाबा साहेब अंबेडकर : सम्पूर्ण बाङ्गमय, कितने खंडों में प्रकाशित की गई ?
(A) 1
(B) 10
(C) 21
(D) 11
उत्तर
(C) 21

9. अम्बेडकर का जन्म कहाँ हुआ था ?
(A) मध्य प्रदेश के महू में
(B) उत्तर प्रदेश के बलिया में
(C) मध्य प्रदेश के सतना में
(D) पंजाब के लुधियाना में
उत्तर
(A) मध्य प्रदेश के महू में

10. हिन्दू धर्म एवं भारतीय समाज की कुरीतियों और विसंगतियों पर निम्नलिखित में किसने प्रहार किया ?
(A) राम ने
(B) सुदामा ने
(C) श्रीकृष्ण ने
(D) भीमराव अम्बेदकर ने
उत्तर
(D) भीमराव अम्बेदकर ने

11. भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख व अप्रत्यक्ष कारण क्या है?
(A) सती प्रथा
(B) दहेज प्रथा
(C) जाति प्रथा
(D) बाल विवाह प्रथा
उत्तर
(C) जाति प्रथा

12. 'श्रम विभाजन और जाति प्रथा' पाठ बाबा साहेब के किस भाषण का संपादित अंश है ?
(A) द कास्ट्स इन इण्डिया : देयर मैकेनिज्म
(B) जेनेसिस एंड डेवलपमेंट
(C) एनीहिलेशन ऑफ कास्ट
(D) हू आर शूद्राज
उत्तर
(C) एनीहिलेशन ऑफ कास्ट


श्रम विभाजन और जाति प्रथा लेखक परिचय

बाबा साहेब भीमराव अंबेदकरका जन्म 14 अप्रैल 1891 ई० में मह, मध्यप्रदेश में एक दलित परिवार में हुआ था । मानव मुक्ति के पुरोधा बाबा साहेब अपने समय के सबसे सुपठित जनों में से एक थे । प्राथमिक शिक्षा के बाद बड़ौदा नरेश के प्रोत्साहन पर उच्चतर शिक्षा के लिए न्यूयार्क (अमेरिका), फिर वहाँ से लंदन (इंग्लैंड) गए । उन्होंने संस्कृत का धार्मिक, पौराणिक और पूरा वैदिक वाङ्मय अनुवाद के जरिये पढ़ा और ऐतिहासिक-सामाजिक क्षेत्र में अनेक मौलिक स्थापनाएँ प्रस्तुत की। सब मिलाकर वे इतिहास मीमांसक, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, शिक्षाविद् तथा धर्म-दर्शन के व्याख्याता बनकर उभरे । स्वदेश में कुछ समय उन्होंने वकालत भी की। समाज और राजनीति में बेहद सक्रिय भूमिका निभाते हुए उन्होंने अछूतों, स्त्रियों और मजदूरों को मानवीय अधिकार व सम्मान दिलाने के लिए अथक संघर्ष किया। उनके चिंतन व रचनात्मकता के मुख्यत: तीन प्रेरक व्यक्ति रहे – बुद्ध, कबीर और ज्योतिबा फुले ! भारत के संविधान निर्माण में उनकी महती भूमिका और एकनिष्ठ समर्पण के कारण ही हम आज उन्हें भारतीय संविधान का निर्माता कह कर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं । दिसंबर, 1956 ई० में दिल्ली में बाबा साहेब का निधन हो गया ।

बाबा साहेब ने अनेक पुस्तकें लिखीं । उनकी प्रमुख रचनाएँ एवं भाषण हैं – ‘द कास्ट्स’ इन इंडिया : देयर मैकेनिज्म’, जेनेसिस एंड डेवलपमेंट’, ‘द अनटचेबल्स, हू आर दे’, ‘हू आर शूद्राज’, बुद्धिज्म एंड कम्युनिज्म’, बुद्धा एण्ड हिज धम्मा’, ‘थाट्स ऑन लिंग्युस्टिक स्टेट्स’, ‘द राइज एंड फॉल ऑफ द हिन्दू वीमेन’, ‘एनीहिलेशन ऑफ कास्टआदि । हिंदी में उनका संपूर्ण वाङ्मय भारत सरकार के कल्याण मंत्रालय से ‘बाबा साहब अंबेदकर संपूर्ण वाङ्मय’ नाम से 21 खंडों में प्रकाशित हो चुका है।

यहाँ प्रस्तुत पाठ बाबा साहेब के विख्यात भाषण ‘एनीहिलेशन ऑफ कास्ट’ के ललई सिंह यादव द्वारा किए गए हिंदी रूपांतर ‘जाति-भेद का उच्छेद’ से किंचित संपादन के साथ लिया गया है । यह भाषण ‘जाति-पाति तोड़क मंडल’ (लाहौर) के वार्षिक सम्मेलन (सन् 1936) के अध्यक्षीय भाषण के रूप में तैयार किया गया था, परंतु इसकी क्रांतिकारी दृष्टि से आयोजकों की पूर्णत: सहमति न बन सकने के कारण सम्मेलन स्थगित हो गया और यह पढ़ा न जा सका । बाद में बाबा साहेब ने इसे स्वतंत्र पुस्तिका का रूप दिया । प्रस्तुत आलेख में वे भारतीय समाज . में श्रम विभाजन के नाम पर मध्ययुगीन अवशिष्ट संस्कारों के रूप में बरकरार जाति प्रथा पर मानवीयता, नैसर्गिक न्याय एवं सामाजिक सद्भाव की दृष्टि से विचार करते हैं । जाति प्रथा के विषमतापूर्वक सामाजिक आधारों, रूढ़ पूर्वग्रहों और लोकतंत्र के लिए उसकी अस्वास्थ्यकर प्रकृति पर भी यहाँ एक संभ्रांत विधिवेत्ता का दृष्टिकोण उभर सका है । भारतीय लोकतंत्र के भावी नागरिकों के लिए. यह आलेख अत्यंत शिक्षाप्रद है।


श्रम विभाजन और जाति प्रथा पाठ परिचय

रस्तुत पाठ ‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ ( Shram Vibhajan aur Jati Pratha) में लेखक ने जातीय आधार पर की जाने वाली असमानता के विरूद्ध अपना विचार प्रकट किया है। लेखक का कहना है कि आज के परिवेश में भी कुछ लोग ‘जातिवाद‘ के कटु समर्थक हैं, उनके अनुसार कार्यकुशलता के लिए श्रम विभाजन आवश्यक है, क्योंकि जाति प्रथा श्रमविभाजन का ही दूसरा रूप है। लेकिन लेखक की आपत्ति है कि जातिवाद श्रमविभाजन के साथ-साथ श्रमिक विभाजन का रूप लिए हुए है। श्रम विभाजन किसी भी सभ्य समाज के लिए आवश्यक है। परन्तु भारत की जाति प्रथा श्रमिकों का अस्वाभाविक विभाजन करती है और इन विभिन्न वर्गों को एक-दूसरे की अपेक्षा ऊँच-नीच भी करार देती है।
जाति-प्रथा को यदि श्रम-विभाजन मान भी लिया जाए तो यह स्वभाविक नहीं है, क्योंकि यह मनुष्य की रूचि पर आधारित नहीं है। इसलिए सक्षम समाज का कर्त्तव्य है कि वह व्यक्तियों को अपने रूचि या क्षमता के अनुसार पेशा अथवा कार्य चुनने के योग्य बनाए। इस सिद्धांत के विपरित जाति-प्रथा का दूषित सिद्धांत यह है कि इससे मनुष्य के माता-पिता के सामाजिक स्तर के अनुसार पेशा अपनाने के लिए मजबुर होना पड़ता है।
जाति-प्रथा पेशे का दोषपूर्ण निर्धारण ही नहीं करती, बल्कि जीवन भर के लिए मनुष्य को एक ही पेशे में बाँध भी देती है। इसके कारण यदि किसी उद्योग धंधे या तकनीक में परिवर्तन हो जाता है तो लोगों को भूखे मरने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता है, क्योंकि खास पेशे में बंधे होने के कारण वह बेरोजगार हो जाता है।
जाति-प्रथा से किया गया श्रम-विभाजन किसी की स्वेच्छा पर निर्भर नहीं होता। जिसके कारण लोग निर्धारित कार्य को अरूचि के साथ विवशतावश करते हैं। इस प्रकार जाति-प्रथा व्यक्ति की स्वभाविक प्रेरणारुचि व आत्म-शक्ति को दबाकर उन्हें स्वभाविक नियमों में जकड़कर निष्क्रिय बना देती है।
समाज के रचनात्मक पहलू पर विचार करते हुए लेखक कहते हैं कि आर्दश समाज वह है, जिसमें स्वतंत्रता, समता, भातृत्व को महत्व दिया जा रहा हो।


श्रम विभाजन और जाति प्रथा का सारांश (Summary)

प्रस्तुत पाठ में लेखक महोदय ने जाति प्रथा के कारण समाज उत्पन्न रूढ़िवादिता एवं लोकतंत्र पर खतरा को चित्रित किया है।

आज के वैज्ञानिक युग में भी “जातिवाद” के पोषकों की कमी नहीं है। उनका तर्क है कि आधुनिक समाज ‘कार्य-कुशलता’ के लिए श्रम विभाजन को आवश्यक मानता है। चूंकि जाति-प्रथा भी श्रम-विभाजन का दूसरा रूप है। परन्तु जाति-प्रथा के कारण श्रमिकों का अस्वाभाविक विभाजन, विभाजित वर्गों को एक-दूसरे की अपेक्षा ऊँच-नीच भी करार देती है, जो विश्व के किसी भी समाज में नहीं पाया जाता।

अस्वाभाविक श्रमविभाजन के कारण मनुष्य स्वतंत्र रूप से अपनी पेशा का चुनाव नहीं कर सकता। माता-पिता के सामाजिक स्तर के अनुसार पेशा निर्धारित कर दिया जाता है। मनुष्य को जीवन भर के लिए एक पेशे में बाँध भी देती है। भले ही पेशा अनुपयुक्त और अपर्याप्त होने के कारण वह. भूखों मर जाए। पैतृक पेशा में वह पारंगत नहीं हो इसके बाद भी चुनाव करना पड़ता है। जाति-प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि श्रम विभाजन की दृष्टि से भी जाति प्रथा गंभीर दोषों से युक्त है। आज के उद्योगों में गरीबी और उत्पीड़न इतनी बड़ी समस्या नहीं जितनी यह कि बहुत से लोग ‘निर्धारित कार्य को ‘अरूचि’ के साथ विवशतावश करते हैं। ऐसी परिस्थिति में स्वभावतः मनुष्य को दुर्भावना से ग्रस्त रहकर टालू काम करने और कम काम करने के लिए प्रेरित करती है। आर्थिक पहलू से भी जाति प्रथा हानिकारक प्रथा है।

लेखक की दृष्टि में आदर्श समाज स्वतंत्रता, समता, भ्रातृत्व पर आधारित होगा। भ्रातृत्व अर्थात् भाईचारे में किसी को क्या आपत्ति हो सकती है। आदर्श समाज में गतिशीलता होनी चाहिए कि वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे छोर तक संचारित हो सके। दूध-पानी के मिश्रण की तरह भाईचारे का यही वास्तविक रूप है। और इसी का दूसरा नाम लोकतंत्र मूलतः सामूहिक जीवनचर्या की एक रीति तथा समाज के सम्मिलित अनुभवों के आदान-प्रदान का नाम है। इसमें यह आवश्यक है कि अपने साथियों के प्रति श्रद्धा व सम्मान का भाव हो।

MCQ and Summary for विष के दाँत Class 10 Hindi Matric Godhuli

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MCQ and Summary for विष के दाँत (Vish ke Daant) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

विष के दाँत - नलिन विलोचन शर्मा MCQ and सारांश 

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. विष के दाँत कहानी के रचयिता कौन हैं?
(A) अमरकांत
(B) विनोद कुमार शुक्ल
(C) नलिन विलोचन शर्मा
(D) यतीन्द्र मिश्रा
उत्तर
(C) नलिन विलोचन शर्मा ,

2. खोखा का दूसरा नाम क्या था ?
(A) मदन
(B) गिरधर
(C) काशू
(D) आलो
उत्तर
(C) काशू

3. 'मदन' किसका पुत्र था ?
(A) सेन साहब
(B) गिरधर
(C) शोफर
(D) सिंह साहब
उत्तर
(B) गिरधर

4. विष के दाँत कैसी कहानी है ?
(A) सामाजिक
(B) ऐतिहासिक
(C) धार्मिक
(D) मनोवैज्ञानिक
उत्तर
(D) मनोवैज्ञानिक

5. 'विष के दाँत' समाज के किस वर्ग का मानसिकता उजागर करती है ?
(A) उच्च वर्ग
(B) निम्न वर्ग
(C) मध्य वर्ग
(D) निम्न-मध्य वर्ग
उत्तर
(D) निम्न-मध्य वर्ग

6. नलिन जी का जन्म कब हुआ था ?
(A) 18 फरवरी, 1916
(B) 18 मार्च, 1916
(C) 18 अप्रैल, 1916
(D) 18 मई, 1916
उत्तर
(A) 18 फरवरी, 1916

7. नलिन जी की भाषा कैसी है ?
(A) गठीली
(B) संकेतात्मक
(C) गठीली एवं संकेतात्मक
(D) सभी गलत है
उत्तर
(C) गठीली एवं संकेतात्मक

8. नलिन विलोचन शर्मा क्या हैं ?
(A) आलोचक
(B) कहानीकार
(C) भाषाविद्
(D) इनमें सभी
उत्तर
(D) इनमें सभी

9. नलिन विलोचन हैं
(A) नवीनता के आग्रही
(B) प्रयोगवाद के अग्रदूत
(C) श्रेष्ठ आलोचक
(D) इनमें सभी
उत्तर
(A) नवीनता के आग्रही

10. पटना के बदरघाट (भद्रघाट) मुहल्ले का संबंध निम्नलिखित में किसने जन्म स्थान से है ?
(A) दिनकर
(B) नलिन जी
(C) प्रभाकर माचवे
(D) प्रेमचंद
उत्तर
(B) नलिन जी

11. किसके अनुसार सेनों ने सिद्धान्तों को भी बदल दिया था. ?
(A) बेटियों के अनुसार
(B) खोखा के अनुसार
(C) मदन के अनुसार
(D) गिरधर के अनुसार
उत्तर
(B) खोखा के अनुसार

12. "ऐसे ही लड़के आगे चलकर गुण्डे, चोर, डाकू बनते हैं !" यह पंक्ति कहानी के किस पात्र ने कही है ?
(A) सेन साहब की धर्मपत्नी
(B) गिरधर
(C) सेन साहब
(D) शोफर
उत्तर
(C) सेन साहब


13. नलिन विलोचन शर्मा पटना विश्व विधालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष कब बने ?

(A) सन 1958 में 
(B) सन 1963 में 
(C) सन 1957 में 
(D) सन 1959 में 

उत्तर
(D) सन 1959 में 


14. आलोचकों के अनुसार प्रयोगवाद का वास्तविक प्रारंभ किसके कविताओं से हुआ ?

(A) नलिन विलोचन के कविता से 
(B) बद्रीनारायण के कविता से 
(C) रामधारी सिंह के कविता से 
(D) सुमित्रानंद पंत के कविता से 

उत्तर 

(A) नलिन विलोचन के कविता से


15. नलिन विलोचन शर्मा के कहानियों में किसके तत्व समग्रता से उभरकर आए ?

(A) राजनितिकता का 
(B) सामाजिकता का 
(C) मनोवैज्ञानिकता का 
(D) इनमे से सभी 

उत्तर 

(C) मनोवैज्ञानिकता का


16. विष के दांत कहानी किस वर्ग के अंतविर्रोधो को उजागर करती है ?

(A) निम्न वर्ग का 
(B) मध्यम वर्ग का 
(C) उच्च वर्ग का 
(D) व्यापारी वर्ग का 

उत्तर

(B) मध्यम वर्ग का 


17. खोखा - खोखी किस भाषा का शब्द है ?

(A) तमिल का 
(B) भोजपुरी का 
(C) बांगला का 
(D) हिंदी का 

उत्तर

(C) बांगला का 


18. सेन साहब की कितनी लडकियाँ थी ?

(A) तिन 
(B) पाँच 
(C) छह 
(D) चार

उत्तर

(B) पाँच 


19. शोफर शब्द का अर्थ है ?

(A) सभ्यता 
(B) संबंध 
(C) निर्ममता 
(D) ड्राइवर 

उत्तर

(D) ड्राइवर 


20. ऐसे ही लडके आगे चलकर गुंडे , चोर , डाकू बनते है ? यह पंक्ति कहानी के किस पात्र ने कही है ?

(A) सेन साहब की धर्मपत्नी 
(B) सेन साहब 
(C) गिरधर 
(D) शोफर 

उत्तर

(B) सेन साहब 


21. नलिन विलोचन शर्मा की मृत्यु कब हुई ?

(A) 12 सितम्बर 1961
(B) 16 सितम्बर 1961
(C) 14 सितम्बर 1961
(D) 14 सितम्बर 1961

उत्तर

(A) 12 सितम्बर 1961 


22. मदन अक्सर किसके हाथो से पिटता था ?

(A) माता 
(B) खोखा 
(C) पिता 
(D) सेन साहब 

उत्तर

(C) पिता 

23. गिरधरलाल कौन है ?

(A) काशु के पिता 
(B) रजनी का पिता 
(C) मदन का पिता 
(D) शेफाली का पिता 

उत्तर

(C) मदन का पिता 


24. खोखा का क्या नाम है ?

(A) किशु 
(B) कुशु 
(C) काशु 
(D) केशु 

उत्तर

(C) काशु 


25. सेन साहब अपने पुत्र खोखा को क्या बनाना चाहते थे ?

(A) बिजनेसमैन या इंजिनियर 
(B) वकील 
(C) प्रोफ़ेसर 
(D) डॉकटर 

उत्तर

(A) बिजनेसमैन या इंजिनियर 


26. मदन की उम्र क्या थी ?

(A) पांच - छह साल 
(B) सात - आठ साल 
(C) तीन - चार साल 
(D) दस - ग्यारह साल 

उत्तर

(A) पांच - छह साल


27. काशु मदन के साथ किस खेल में शरीक होना चाहता था ?

(A) फुटबॉल के खेल में 
(B) हौकी के खेल में 
(C) बैडमिन्टन के खेल में 
(D) लट्टू के खेल में 

उत्तर

(D) लट्टू के खेल में 


28. मदन ने काशु के कितने दांत तोड़ डाले ?

(A) तीन 
(B) एक 
(C) दो 
(D) चार 

उत्तर

(C) दो 


29. गिरधरलाल किसकी फैक्ट्री में किरानी था ?

(A) मुखर्जी साहब की फैक्ट्री में 
(B) सिंह साहब की फैक्ट्री में 
(C) सेन साहब की फैक्ट्री में 
(D) पत्रकार महोदय की फैक्ट्री में 

उत्तर

(C) सेन साहब की फैक्ट्री में 


30. सेन साहब किसके व्यंग्य से ऐंठकर रह गए ?

(A) पत्रकार महोदय के व्यंग्य से 
(B) मुखर्जी साहब के व्यंग्य से 
(C) गिरधरलाल के व्यंग्य से 
(D) सिंह साहब के व्यंग्य से 

उत्तर

(A) पत्रकार महोदय के व्यंग्य से 


31. मदन किसका पुत्र था ?

(A) सेन साहब 
(B) गिरधर 
(C) शोफर 
(D) सिंह साहब 

उत्तर

(B) गिरधर 


32. सेन साहब की कार की कीमत है ?

(A) साढ़े सात हजार 
(B) साढ़े आठ हजार 
(C) साढ़े दस हजार 
(D) साढ़े सात लाख 

उत्तर

(A) साढ़े सात हजार 


33. नलिन विलोचन शर्मा के पिता का नाम क्या था ?

(A) पंडित रामावतार शर्मा 
(B) पंडित मृत्युंजय शर्मा 
(C) पंडित कृष्णावतार शर्मा 
(D) पंडित दशावतार शर्मा 

उत्तर

(A) पंडित रामावतार शर्मा 


34. नलिन विलोचन शर्मा के माताजी का क्या नाम था ?

(A) पधमावती शर्मा 
(B) रत्नावती शर्मा 
(C) कलावती शर्मा 
(D) इन्द्रावती शर्मा 

उत्तर

(B) रत्नावती शर्मा 


35. लडकियाँ क्या है , कठपुतलियाँ है , किसे इस बात पट गर्व है ?

(A) भाई - बहन को 
(B) माता - पिता को 
(C) चाचा - चाची को 
(D) मामा - मामी को 

उत्तर

(B) माता - पिता को


36. सेन साहब की आँखों का तार है ?

(A) कार 
(B) खोखी 
(C) खोखा 
(D) उपर्युक्त सभी 

उत्तर

(C) खोखा 


37. खोखा के किसने तोडा ?

(A) मदन ने 
(B) मदन के दोस्त ने 
(C) सेन साहब ने 
(D) गिरधर ने 

उत्तर

(A) मदन ने 


38. सीमा , रजनी , आलो, शेफाली , आरती पांचो किसकी बहने थी ?

(A) मदन की 
(B) खोखा की 
(C) लेखक की 
(D) सेन साहब की 

उत्तर – खोखा की


विष के दाँत प्रथा लेखक परिचय

नलिन विलोचन शर्मा का जन्म 18 फरवरी 1916 ई० में पटना के बदरघाट में हुआ । वे जन्मना भोजपुरी भाषी थे। वे दर्शन और संस्कृत के प्रख्यात विद्वान महामहोपाध्याय पं० रामावतार शर्मा के ज्येष्ठ पुत्र थे । माता का नाम रत्नावती शर्मा था। उनके व्यक्तित्व-निर्माण में पिता के पांडित्य के साथ उनकी प्रगतिशील दृष्टि की भी बड़ी भूमिका थी। उनकी स्कूल की पढ़ाई पटना कॉलेजिएट स्कूल से हुई और पटना विश्वविद्यालय से उन्होंने संस्कृत और हिंदी में एम० ए० किया। वे हरप्रसाद दास जैन कॉलेज, आरा, राँची विश्वविद्यालय और अंत में पटना विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहे । सन् 1959 में वे पटना विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष हुए और मृत्युपर्यंत (12 सितंबर 1961 ई०) इस पद पर बने रहे।

हिंदी कविता में प्रपद्यवाद के प्रवर्तक और नई शैली के आलोचक नलिन जी की रचनाएँ इस प्रकार हैं – ‘दृष्टिकोण’, ‘साहित्य का इतिहास दर्शन’, ‘मानदंड’, ‘हिंदी उपन्यास – विशेषतः प्रेमचंद’, ‘साहित्य तत्त्व और आलोचना’ – आलोचनात्मक ग्रंथ; ‘विष के दाँत’ और सत्रह असंगृहीत पूर्व छोटी कहानियाँ — कहानी संग्रह; केसरी कुमार तथा नरेश के साथ काव्य संग्रह – ‘नकेन के प्रपद्य’ और ‘नकेन- दो’, ‘सदल मिश्र ग्रंथावली’, ‘अयोध्या प्रसाद खत्री स्मारक ग्रंथ’, ‘संत परंपरा और साहित्य’ आदि संपादित ग्रंथ हैं।

आलोचकों के अनुसार, प्रयोगवाद का वास्तविक प्रारंभ नलिन विलोचन शर्मा की कविताओं से हुआ और उनकी कहानियों में मनोवैज्ञानिकता के तत्त्व समग्रता से उभरकर आए। आलोचना में वे आधुनिक शैली के समर्थक थे । वे कथ्य, शिल्प, भाषा आदि सभी स्तरों पर नवीनता के आग्रही लेखक थे। उनमें प्रायः परंपरागत दृष्टि एवं शैली का निषेध तथा आधुनिक दृष्टि का समर्थन है । आलोचना की उनकी भाषा गठी हुई और संकेतात्मक है । उन्होंने अनेक पुराने शब्दों को नया जीवन दिया, जो आधुनिक साहित्य में पुनः प्रतिष्ठित हुए ।

यह कहानी ‘विष के दाँत तथा अन्य कहानियाँ’ नामक कहानी संग्रह से ली गई है। यह कहानी मध्यवर्ग के अनेक अंतर्विरोधों को उजागर करती है। कहानी का जैसा ठोस सामाजिक संदर्भ है, वैसा ही स्पष्ट मनोवैज्ञानिक आशय भी । आर्थिक कारणों से मध्यवर्ग के भीतर ही एक ओर सेन साहब जैसों की एक श्रेणी उभरती है जो अपनी महत्वाकांक्षा और सफेदपोशी के भीतर लिंग-भेद जैसे कुसंस्कार छिपाये हुए हैं तो दूसरी ओर गिरधर जैसे नौकरीपेशा निम्न मध्यवर्गीय व्यक्ति की श्रेणी है जो अनेक तरह की थोपी गयी बंदिशों के बीच भी अपने अस्तित्व को बहादुरी एवं साहस के साथ बचाये रखने के लिए संघर्षरत है । यह कहानी सामाजिक भेद-भाव, लिंग-भेद, आक्रामक स्वार्थ की छाया में पलते हुए प्यार-दुलार के कुपरिणामों को उभारती हुई सामाजिक समानता एवं मानवाधिकार की महत्त्वपूर्ण बानगी पेश करती है ।


विष के दाँत पाठ परिचय

प्रस्तुत कहानी ‘विष के दाँत’ में मध्यमवर्गीय अन्तर्विरोधों को उजागर किया गया है। आर्थिक कारणों से मध्यवर्ग के भीतर ही एक ओर सेन साहब जैसे महत्वाकांक्षी तथा सफेदपोशी अपने भीतर लिंग-भेद जैसे कुसंस्कार छिपाए हुए हैं तो दूसरी ओर गिरधर जैसे नौकरीपेशा निम्न मध्यवर्गीय है जो अनेक तरह के थोपी गई बंदिशों के बीच भी अपने अस्तित्व को बहादुरी एवं साहस के साथ बचाए रखने के लिए संघर्षरत है।
यह कहानी समाजिक भेदभाव, लिंग-भेद, आक्रामक स्वार्थ की छाया में पलते हुए प्यार दुलार के कुपरिणामों को उभरती हुई सामाजिक समानता एवं मानवाधिकार की महत्वपूर्ण नमूना पेश करती है।


विष के दाँत का सारांश (Summary)

सेन साहब एक अमीर आदमी थे। उनकी पाँच लड़कियाँ थी, एक लड़का था। लड़कियाँ क्या थी कठपुतलियाँ। वे किसी चीझ को ताड़ती-फोड़ती न थी। दौड़ती और खेलती भी थी, तो केवल शाम के वक्त। सेन साहब नयी मोटरकार ली थी- स्ट्रीमलैण्ड। काली चमकती हुई, खुबसूरत गाड़ी थी। सेन साहब को उस पर नाज था। एक धब्बा भी न लगने पाये- क्लिनर और शोफर को सेन साहब की सख्त ताकीद थी। चूँकि खोखा सबसे छोटा और सेन साहब के नाउम्मीद बुढ़ापे की आँखों का तारा था इसलिए मोटर को कोई खतरा था तो खोखा से ही।
एक दिन की बात है कि सेन साहब का शोफर एक औरत से उलझ पड़ा बात यह थी कि उसका पाँच-छः साल का बच्चा मदन गाड़ी को छुकर गंदा कर रहा था और शोफर ने जब मना किया तो वह उल्टे शोफर से ही उलझ पड़ी।
वह मामला अभी सिमटा ही था कि इस बीच खोखे ने मोटर की पिछली बती का लाल शीशा चकनाचुर कर दिया। लकिन सेन साहब ने इसका बुरा नहीं माना और अपने मित्राें से कहा- ‘देखा, आपलोगों ने ? बड़ा शरारती हो गया है काशु। मोटर के पिछे हरदम पड़ा रहता है। ‘ काशु ने मिस्टर सिंह साहब के अगले तथा पिछले पहीयां के हवा निकाल दी थी। जब मिस्टर सिंह विदा हो गये तो सेन साहब ने मदन के पिता गिरधर लाल को जो उनके फैक्ट्री में किरानी था। उसे सेन साहब ने खुब खरी-खोटी सुनाई और कहा कि बच्चों को सम्भाल कर रखो। उस रात गिरधारी लाल ने अपने बेटे मदन की खुब पिटाई की।
दूसरे दिन शाम को मदन, कुछ लड़कों के साथ लट्टू नचा रहा था। खोखा ने भी लट्टू नचाने के लिए, माँगा लेकिन मदन ने उसे फटकार दिया- ‘अबे, भाग जा यहाँ से ! बड़ा आया है लट्टू नचाने, जा अपने बाबा की मोटर पर बैठ।’
काशु को गुस्सा आ गया, वह इसी उम्र में अपनी बहनों पर, नौकरों पर हाथ चला देता था और क्या मजाल उसे कोई कुछ कह दे। उसने न आव देखा न ताव, मदन को एक घुस्सा कस दिया। मदन ने काशु पर टूट पड़ा। उसकी मरम्मत जमकर कर दी। काशु रोता हुआ घर चला गया। लेकिन मदन घर नहीं लौटा। आठ-नौ बजे रात को मदन इधर-उधर घूमते हुए गली के दरवाजे से घर में घुसा। डर तो यही है कि आज अन्य दिनों की अपेक्षा मार अधिक लगेगी। रसोई घर में घुसा। भरपेट खाना खाया। फिर बगल वाले कमरे के दरवाजे पर जाकर अन्दर की बात सुनने लगा।
उसे इस बात का ताज्जुब हो रहा था कि उसके पिता क्यों गरज-तरज नहीं रहे हैं, जबकि उसने काशु के दो-दो दाँत तोड़ डाले थे। इसका कारण यह था कि उसके पिता को नौकरी से हटा दिया गया था और मकान खाली करने का आदेश दिया जा चूका था। वह दबे पाँव बरामदे पर रखी चरपाई की तरफ सोने के लिए चला कि अँधेरे में उसका पैर लोटे पर लग गया, ठन्-ठन् की आवाज सुनकर गिरधर बाहर निकला।
और मदन की ओर बढ़ा, उसके चेहरे से नाराजगी के बादल छँट गए। उसने मदन को अपनी गोद में उठाकर बेपरवाही, उल्लास और गर्व के साथ बोल उठा, जो किसी के लिए भी नौकरी से निकाले जाने पर ही मुमकिन हो सकता है, शाबाश बेटा ! एक तेरा बाप है, और तु ने तो, खोखा के दो-दो दाँत तोड़ डाले। लेखक के कहने का तात्पर्य है कि कोई व्यक्ति स्वार्थवश ही किसी का अपमान सहन करता है, स्वार्थरहित ईंट का जवाब पत्थर से देता है। इसी मजबुरी के कारण गिरधर अपने पुत्र को निर्दोष होते हुए भी पीटता था, क्योंकि विष के दाँत लगे हुए थे, इसे टूटते ही दुत्कार प्यार में बदल जाता है।

MCQ and Summary for भारत से हम क्या सीखें? Class 10 Hindi Matric Godhuli

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MCQ and Summary for भारत से हम क्या सीखें? (Bharat se Ham kya Sikhe?) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

भारत से हम क्या सीखें? - मैक्समूलर MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. फ्रेड्रिक मैक्समूलर किस पाठ के रचयिता हैं ?
(A) श्रम विभाजन और जाति प्रथा
(B) नागरी लिपि
(C) भारत से हम क्या सीखें
(D) परम्परा का मूल्यांकन
उत्तर
(C) भारत से हम क्या सीखें

2. मैक्समूलर कहाँ के रहने वाले थे ?
(A) इंगलैण्ड
(B) जर्मनी
(C) अमेरिका
(D) श्रीलंका
उत्तर
(B) जर्मनी

3. भारत कहाँ बसता है ?
(A) दिल्ली के पास
(B) गाँधी में
(C) शहरों में
(D) लोगों के मन में
उत्तर
(B) जर्मनी

4. पारसियों के धर्म का क्या नाम है ?
(A) बौद्ध धर्म
(B) जैन धर्म
(C) वैदिक धर्म
(D) जरथुष्ट
उत्तर
(D) जरथुष्ट

5. मैक्स मूलर का जन्म कब हुआ था?
(A) 6 दिसम्बर, 1824
(B) 6 दिसम्बर, 1823
(c) 6 दिसम्बर, 1825
(D) 6 दिसम्बर, 1826
उत्तर
(B) 6 दिसम्बर, 1823

6. मैक्स मूलर का पूरा नाम क्या था ?
(A) फ्रेड्रिक मैक्स मूलर
(B) सॉड्रिक मूलर
(C) डॉन फ्रेड्रिक
(D) जॉन
उत्तर
(A) फ्रेड्रिक मैक्स मूलर

7. भारत की पुरातन भाषा कौन-सी है ?
(A) हिन्दी
(B) देवनागरी
(C) खड़ी बोली
(D) संस्कृत
उत्तर
(D) संस्कृत

8. मैक्समूलर का जन्म कहाँ हुआ था ?
(A) आधुनिक जर्मनी में
(B) प्राचीन जर्मनी में
(C) आधुनिक जर्मनी के डोसाड में
(D) प्राचीन जर्मनी के डेंस में
उत्तर
(C) आधुनिक जर्मनी के डोसाड में

9.भारतीय परातत्व सर्वेक्षण की वार्षिक रिपोर्ट किसने तैयार की ?
(A) मैक्स मूलर
(B) लॉर्ड कनिंघम
(C) कार्नवालिस
(D) वारेन हेस्टिंग्स
उत्तर
(B) लॉर्ड कनिंघम

10. हेस्टिंग्स को वाराणसी के पास कौन-से सिक्के मिले थे?
(A) दमस्क
(B) दारिस
(C) लाट
(D) मुद्रा
उत्तर
(B) दारिस

11. वारेन हेस्टिंग्स को दारिस सिक्के कहाँ मिले थे ?
(A) पटना में
(B) गया में
(C) वाराणसी में
(D) बोधगया. में
उत्तर
(C) वाराणसी में

12. दारिस नामक सोने के सिक्कों से भरा घड़ा किसे मिला था ?
(A) हेकल
(B) हकर्स
(C) वारेन हेस्टिंग्स
(D) विलियम जोन्स
उत्तर
(C) वारेन हेस्टिंग्स

13. किसके अध्ययन क्षेत्र में भारत के कारण नवजीवन का संचार हो चुका
(A) विधिशास्त्र
(B) नीति कथा
(C) भाषा विज्ञान
(D) दैवत विज्ञान
उत्तर
(B) नीति कथा

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर 

1. मेघदूत नामक पुस्तक का अनुवाद मैक्समुलर ने किस भाषा में किया ?

उत्तर 
जर्मन भाषा में 


2. संस्कृत भाषा और यूरोपियन भाषा का तुलनात्मक व्याख्या किसने दिया ?

उत्तर
मैक्समुलर ने 


3. महारानी विक्टोरिया ने नाईट की उपाधि प्रदान की ?

उत्तर
मैक्समुलर को 


4. मैक्समुलर को विदांतियो का वेंदानी किसके कहा ?

उत्तर
स्वामी विवेकानंद 


5. कंठ और केन उपनिषद का अनुवाद मैक्समुलर ने किस भाषा में किया ?

उत्तर
जर्मन में 


6. लिपजिंग विश्व विधालय में मैक्समुलर ने किस भाषा का अध्ययन किया ?

उत्तर
संस्कृत का 


7. इगिनस किस भाषा का शब्द है ?

उत्तर
लैटिन 


8. जनरल कर्निघम का सम्बन्ध किससे है ?

उत्तर 
पुरातत्व से 


9. 172 दारिस नामक सोने के सिक्का का घड़ा कहाँ मिला था ?

उत्तर
वाराणसी में


10. नालंदा विश्वविद्यालय कहाँ स्थित है ?

उत्तर
 बिहार में 


11. भारत से हम क्या सीखे के रचनाकार कौन है ?

उत्तर 
मैक्समुलर 


12. नृवंश विधा का सम्बन्ध किससे है ?

उत्तर 
मानव विज्ञान से 


13. वारेन हेस्टिंग्स था ?

उत्तर
भारत का गवर्नर जेनरल 


14. दारिस क्या है ?

उत्तर
सोने की प्राचीनकालीन सिक्का 


15. प्लेटो का संबंध किस देश से है ?

उत्तर
यूनान से 


16. शाहनामा का रचनाकाल है ?

उत्तर
दसवीं - ग्यारहवीं सदी 


17. मुण्डा किस देश की जाति है ?

उत्तर
भारत 


18. संस्कृत का अग्नि शब्द लैटिन में किस रूप में मिलता है ?

उत्तर
इंग्निश 


19. सर विलियम जोन्स ने भारत की यात्रा कब की थी ?

उत्तर
1783


20. भारत से हम क्या सीखे पाठ में नए सिकन्दर विशेषण किसके लिए प्रयुक्त हुआ है ? 

उत्तर
युवा अंग्रेज अधिकारियों के लिए

21. सब पुराने अच्छे नहीं होते , सब नए खराब नहीं होते , यह उक्ति है ?

उत्तर
कालिदास की 


22. मैक्समुलर ने .... वर्ष की अवस्था में लिपजिंग विश्विद्यालय में संस्कृत का अध्ययन प्रारम्भ किया ?

उत्तर
अठारह 


23. पारसियों के धर्म का नाम क्या है ?

उत्तर
जरथ्रुस्ट धर्म 


24. मैक्समुलर का जन्म कब हुआ ?

उत्तर
6 सितम्बर 1823


25. मैक्समुलर के पिता का नाम क्या था ?

उत्तर
विल्हेल्म मुलर 


26. नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना किसने किया था ?

उत्तर
कुमारगुप्त 


27. कौन प्राचीनतम भाषा है ?

उत्तर
संस्कृत 


28. मैक्समुलर की मृत्यु कब हुई ?

उत्तर
28 अक्टूबर 1900


29. किसके अध्ययन क्षेत्र में भारत के कारण नवजिन का संचार हो चूका है ?

उत्तर
नीतिकथा 


30. भारत से हम क्या सीखे क्या है ?

उत्तर
भाषण 


31. मैक्समुलर के अनुसार सच्चे भारत के दर्शन कहाँ हो सकते है ?

उत्तर
ग्रामीण भारत में


32. प्लेटो और कांट थे महान ?

उत्तर
दार्शिनिक


भारत से हम क्या सीखें? लेखक परिचय

मैक्समूलर जब चार वर्ष के हुए, तो इनके पिता की मृत्यु हो गई। पिता के निधन के बाद उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ही दयनीय हो गई, फिर भी मैक्समूलर की शिक्षा-दीक्षा बाधित नहीं हुई। बचपन से ही वे संगीत के अतिरिक्त ग्रीक और लैटिन भाषा में निपुण हो गये थे तथा लैटिन में कविताएँ भी लिखने लगे थे। 18 वर्ष की उम्र में लिपजिंग विश्वविद्यालय में उन्होंने संस्कृत का अध्ययन आरंभ कर दिया।

1841 ई0 में उन्होंने ‘हितोपदेश‘ का जर्मन भाषा में अनुवाद प्रकाशित करवाया। ‘कठ‘ और ‘केन‘ आदि उपन्यासों का भी जर्मन भाषा में अनुवाद प्रस्तुत किया। ‘मेघदूत‘ महाकाव्य का भी जर्मन पद्य में अनुवाद कर यश का भी काम किया।
पाठ परिचय
प्रस्तुत पाठ ‘भारत से हम क्या सिखें‘ भारतीय सेवा हेतु चयनित युवा अंग्रेज अधिकारियों के आगमन के अवसर पर संबोधित भाषणों की श्रृंखला की एक कड़ी है। प्रथम भाषण का यह संक्षिप्त एवं संपादित अंश है। इसका भाषांतरण डॉ0 भावानी शंकर त्रिवेदी ने किया है। इसमें लेखक ने भारतीय सभ्यता की प्राचीनता एवं विलक्षणता के विषय में नवागंतुक अधिकारियों को बताया है कि विश्व भारत की सभ्यता से बहुत कुछ सीखती तथा ग्रहण करती आई है। यह एक विलक्षण देश है। इसकी सभ्यता और संस्कृति से बहुत कुछ सीखा जा सकता है, नई पीढ़ी अपने देश तथा इसकी प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति, ज्ञान-साधना, प्राकृतिक वैभव आदि की महता का प्रामाणिक ज्ञान प्रस्तुत भाषण से प्राप्त कर सकेगी।


भारत से हम क्या सीखें? का सारांश (Summary)

प्रस्तुत पाठ ‘भारत से हम क्या सिखें‘ महान चिन्तक एवं साहित्यकार मैक्समूलर द्वारा लिखित है। इसमें लेखक ने भारत की विशेषताओं पर प्रकाश डाला है। भारतीय सविल सेवा के चयनित युवा अंग्रेज अधिकारी लोगों को प्रशिक्षण के लिए मैक्समूलर साहब द्वारा दिया गया भाषण का अंश है।

पश्चिम जगत् में भारत के संबंध में सही-सही ज्ञान एवं दृष्टि के प्रणेता विश्वविख्यात विद्वान फ्रेड्रिक मैक्समूलर पहला व्यक्ति थे। उन्होंने भारतीय सभ्यता-संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान, संस्कृत भाषा कला-कौशल आदि का गहराई से अध्ययन किया और दुनियाँ के सामने स्पष्ट किया। स्वामी विवेकानंद ने उन्हें ‘वेदांतियों का भी वेदांती’ कहा।

सर्वविध संपदा और प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण कौन-सा देश है, यदि आप मुझे इस भूमण्डल का अवलोकन करने के लिए कहें तो बताऊँगा कि वह देश है—भारत। भारत, जहाँ भूतल पर ही स्वर्ग की छटा निखर रही है। यदि यूनानी, रोमन और सेमेटिक जाति के यहूदियों की विचारधारा में ही सदा अवगाहन करते रहनेवाले हम यूरोपियनों को ऐसा कौन-सा साहित्य पढ़ना चाहिए जिससे हमारे जीवन अंतरतम परिपूर्ण अधिक सर्वांगीण, अधिक विश्वव्यापी, यूँ कहें कि संपूर्णतया मानवीय बन जाये, और यह जीवन ही क्यों, अगला जन्म तथा शाश्वत जीवन भी सुधर जाये, तो मैं एक बार फिर भारत ही का नाम लूँगा।

यदि आपकी अभिरूचि की पैठ किसी विशेष क्षेत्र में है, तो उसके विकास और पोषण के लिए आपको भारत में पर्याप्त अवसर मिलेगा।

यदि आप भू-विज्ञान में रूचि रखते हैं तो हिमालय से श्रीलंका तक का विशाल भू-प्रदेश आपकी प्रतीक्षा कर रहा है। यदि आप वनस्पति जगत में विचरना चाहते हैं तो भारत एक ऐसी. फुलवारी है जो हकर्स जैसे अनेक वनस्पति वैज्ञानिकों को अनायास ही अपनी ओर आकृष्ट कर लेती है। यदि आपकी रूचि जीव-जन्तुओं के अध्ययन में है तो आपका ध्यान श्री हेकल की ओर अवश्य होगा, जो इन दिनों भारत के कान्तारों की छानबीन के साथ ही भारतीय समुद्रतट से मोती भी बने रहे हैं। यदि आप नृवंश विद्या में अभिरूचि रखते हैं तो भारत आपको एक जीता-जागता संग्रहालय ही लगेगा। यदि आप पुरातत्व प्रेमी हैं, और यदि आपने यहाँ रहते हुए पुरातत्व के द्वारा एक प्राचीन चाकू या चकमक या किसी प्राणी का कोई भाग ढूंढ़ निकालने के आनन्द का अनुभव किया हो तो आपको जनरल कनिाम की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की वार्षिक रिपोर्ट पढ़ लेनी चाहिए और तब भारत के बौद्ध सम्राटों के द्वारा निर्मित (नालन्दा जैसे) विश्वविद्यालयों अथवा विहारों के ध्वंसावशेषों को खोद निकालने के लिए आपका फावड़ा आतुर हो उठेगा।

यदि आपके मन में पुराने सिक्कों के लिए लगाव है, तो भारतभूमि में ईरानी, केरियन, थेसियन, पार्थियन, यूनानी, मेकेडिनियन, शकों, रोमन और मुस्लिम शासकों के सिक्के प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होंगे। दैवत विज्ञान पर भारत के प्राचीन वैदिक दैवत विज्ञान के कारण जो नया प्रकाश पड़ा है, उसके फलस्वरूप संपूर्ण दैवत विज्ञान को नया स्वरूप प्राप्त हो गया है। ”

नीति कथाओं के अध्ययन क्षेत्र में भी भारत के कारण नवजीवन का संचार हो चुका है, क्योंकि भारत के कारण ही समय-समय पर नानाविध साधनों और मार्गों के द्वारा अनेक नीति कथाएँ पूर्व से पश्चिम की ओर आती रही हैं।

आपमें से कइयो ने भाषाओं को हीन नहीं, भाषा विज्ञान का भी अध्ययन किया होगा। तो आपको क्या भारत से बढ़कर दूसरा कोई देश दिखाई देता है जहाँ केवल शब्दों का ही नहीं, बल्कि व्याकरणात्मक तत्त्वों के विकास और लय से संबद्ध भाषावैज्ञानिक समस्याओं के अध्ययन का । महत्त्वपूर्ण अवसर प्राप्त हो सके यदि आप विधिशास्त्र या कानून के विद्यार्थी हैं तो आपको विधि-संहिताओं के एक ऐसे इतिहास की जाँच-पड़ताल का अवसर मिलेगा जो यूनान, रोम या जर्मनी के ज्ञात विधिशास्त्रों के इतिहास से सर्वथा भिन्न होते हुए भी इनके साथ समानताओं और विभिन्नताओं के कारण विधिशास्त्र के किसी भी विद्यार्थी के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है।

यदि आप लोगों को अत्यंत सरल राजनैतिक इकाइयों के निर्माण और विकास से संम्बद्ध प्राचीन युग के कानून के पुरातन रूपों के बारे में इधर जो अनुसंधान हुए हैं, उनके महत्त्व और वैशिष्ट्य को परख सकने की क्षमता प्राप्त करनी है, तो आपको इसके लिए आज भारत की ग्राम पंचायतों के रूप में इसके प्रत्यक्ष दर्शन का सुयोग अनायास ही मिल जाएगा। भारत में प्राचीन स्थानीय शासन प्रणाली या पंचायत प्रथा को समझने-समझाने का बहुत बड़ा क्षेत्र विद्यमान है। भारत ब्राह्मण या वैदिक धर्म की भूमि है, बौद्धधर्म जन्मस्थली है। पारसियों के जखुस्त धर्म की यह शरणस्थली है। आज भी यहाँ नित्य नये मत-मतान्तर प्रकट व विकसित होते रहते हैं।

संस्कृत की सबसे पहली विशेषता है इसकी प्राचीनता क्योंकि हम जानते हैं कि ग्रीक भाषा से भी संस्कृत का काल पुराना है। संस्कृत में चूहा को मूषः कहते हैं। ग्रीक में मूस, लैटिन में मुस, पुरानी स्लावोनिक में माइस और पुरानी उच्च जर्मन में मुस कहते हैं।

‘मैं हूँ’ जैसे भाव को व्यक्त करने के लिए भला किन्हीं दूसरी भाषाओं में ‘अस्मि’ जैसा । शुद्ध और उपयुक्त शब्द कहाँ मिल पाएगा। मैं इसे ही वास्तविक अर्थों में इतिहास मानता हूँ और यह एक ऐसा इतिहास है जो राज्यों के दुराचारों और अनेक जातियों की क्रूरताओं की अपेक्षा कहीं अधिक ज्ञातव्य और पठनीय है। हम सब पूर्व से आये हैं। हमारे जीवन में जो भी कुछ अत्यधिक मूल्यवान है, वह हमें पूर्व से मिला है और पूर्व को पहचान लेने से ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को जिसने इतिहास की वास्तविक शिक्षा कुछ लाभ उठाया है, भले ही वह प्राच्य-विद्या-विशारद न भी हो तो भी यह अनुभव अवश्य होगा कि वह नानाविध स्मृतियों से भरे अपने पुराने घर की ओर जा रहा है। यदि आप लोग चाहें तो भारत के बारे में वैसे ही सुनहरे सपने देख सकते हैं और भारत पहुँचने के बाद एक से बढ़कर एक शानदार काम भी कर सकते हैं।


MCQ and Summary for नाखून क्यों बढ़ते हैं? Class 10 Hindi Matric Godhuli

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MCQ and Summary for नाखून क्यों बढ़ते हैं? (Nakhun kyu Badhte hain) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

नाखून क्यों बढ़ते हैं? - हजारी प्रसाद द्विवेदी MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)


1. 'नाखून क्यों बढ़ते हैं' किस प्रकार का निबंध है ?
(A) ललित
(B) भावात्मक
(C) विवेचनात्मक
(D) विवरणात्मक
उत्तर
(A) ललित

2. हजारी प्रसाद द्विवेदी किस निबंध के रचयिता हैं ?
(A) नागरी लिपि
(B) नाखून क्यों बढ़ते हैं
(C) परंपरा का मूल्यांकन
(D) शिक्षा और संस्कृति
उत्तर
(B) नाखून क्यों बढ़ते हैं

3. अल्पज्ञ पिता कैसा जीव होता है ?
(A) दयनीय
(B) बहादुर
(C) अल्पभाषी
(D) मृदुभाषी
उत्तर
(A) दयनीय

4. दधीचि की हड्डी से क्या बना था ?
(A) तलवार
(B) त्रिशूल
(C) इन्द्र का वज्र
(D) कुछ भी नहीं
उत्तर
(C) इन्द्र का वज्र

5. "कामसूत्र' किसकी रचना है ?
(A) वात्स्यायन
(B) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(C) भीमराव अम्बेडकर
(D) गुणाकर मूले
उत्तर
(A) वात्स्यायन

6. हजारी प्रसाद का जन्म किस राज्य में हुआ था ?
(A) बिहार
(B) मध्य प्रदेश
(C) बलिया (उत्तर प्रदेश)
(D) राजस्थान
उत्तर
(C) बलिया (उत्तर प्रदेश)

7. हजारी प्रसाद का जन्म कब हुआ था ?
(A) 1907 में
(B) 1807 में
(C) 2007 में
(D) 1606 में
उत्तर
(A) 1907 में

8. पांडित्य एवं सहृदयता की प्रतिमूर्ति निम्नलिखित में कौन थे ?
(A) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
(B) बर्बर मानव
(C) आदि पुरुष
(D) आदि मानव
उत्तर
(A) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी

9. लेखक के अनुसार मनुष्य के नाखून किसके जीवंत प्रतीक हैं ?
(A) मनुष्यता के
(B) सभ्यता के
(C) पाशवो वृत्ति के
(D) सौन्दर्य के
उत्तर
(C) पाशवो वृत्ति के

10. सहजात वृत्तियाँ किसे कहते हैं ?
(A) अस्त्रों के संचयन को
(B) अनजान स्मृतियों को
(C) 'स्व' के बंधन को
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर
(B) अनजान स्मृतियों को


11. नाख़ून का इतिहास किस पुस्तक में मिलता है ?

उत्तर
कामसूत्र में 


12. हजारी प्रसाद द्रिवेदी ने डी. लिट. की उपाधि किस विश्वविद्यालय से प्राप्त की ?

उत्तर
लखनऊ विवि से 

13. खानी में चन्द्रकार त्रिकोण दंतुल वर्तुलाकार आकृतियों का संबंध मानव के किस अंग से है ?

उत्तर
नख से 


14. अलक्तक का अर्थ है ?

उत्तर
आलता 


15. द्रिवेदी जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार किस रचना पर मिला था ?

उत्तर
आलोक पर्व पर 


16. प्राचीन मानव का प्रमुख अस्त्र - शास्त्र था ?

उत्तर
नाख़ून 


17. आर्यों के पास था ?

उत्तर
घोड़े 


18. सब पुराने अच्छे नहीं होते और सब नए खराब नहीं होते , ऐसा किसने कहा ?

उत्तर
कालिदास ने 


19. नखधर मनुष्य आज किस पर भरोस कर रहा है ?

उत्तर
एटम बम पर


20. मनुष्य की मनुष्यता यही है की वह सबके दुःख - सुख को सहानुभूति के साथ देखता है | यह तथ्य किसका है ?

उत्तर
गौतम बुद्ध का 


21. नाख़ून क्यों बढ़ते है, के निबंधकार कौन है ?

उत्तर
आचार्य हजारी प्रसाद द्रिवेदी 


22. आचार्य हजारी प्रसाद द्रिवेदी जी का साहित्य की किस विधा में लेखन नहीं है ?

उत्तर
कहानी 


23. कौन सी रचना हजारी प्रसाद द्रिवेदी की नहीं है ?

उत्तर
माटी की मुरते 


24. द्रिवेदी जी ने निर्लज्ज अपराधी किसे कहा है ?

उत्तर
नाख़ून को 


25. कामसूत्र किसकी रचना है ?

उत्तर
वात्स्यायन की 


26. सिक्थक का अर्थ होता है ?

उत्तर
मोम 


27. महाभारत क्या है ?

उत्तर
पुराण


28. प्राचीनकाल में दक्षिण भारत के लोग कैसा नाख़ून रखते थे ?

उत्तर
छोटे - छोटे 


29. दधिची की हड्डी से क्या बना था ? 

उत्तर
इंद्र का व्रज 


30. हजारी प्रसाद द्रिवेदी का जन्म कहाँ हुआ ?

उत्तर
बलिया, उत्तर प्रदेश 


31. कौन मनुष्य का आदर्श नहीं बन सकती ?

उत्तर
बंदरिया 


32. देवताओं का राजा से किन्हें संबोधित किया जाता है ?

उत्तर
इंद्र

नाखून क्यों बढ़ते हैं? लेखक परिचय

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1907 ई० में आरत दुबे का छपरा, बलिया (उत्तर । प्रदेश) में हुआ । द्विवेदी जी का साहित्य कर्म भारतवर्ष के सांस्कृतिक इतिहास की रचनात्मक परिणति है । संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, बांग्ला आदि भाषाओं व उनके साहित्य के साथ इतिहास, संस्कृति, धर्म, दर्शन और आधुनिक ज्ञान-विज्ञान की व्यापकता व गहनता में पैठकर उनका अगाध पांडित्य नवीन मानवतावादी सर्जना और आलोचना की क्षमता लेकर प्रकट हुआ है। वे ज्ञान को बोध और पांडित्य की सहृदयता में दाल कर एक ऐसा रचना संसार हमारे सामने उपस्थित करते हैं जो विचार की तेजस्विता, कथन के लालित्य और बंध की शास्त्रीयता का संगम है । इस प्रकार उनमें एकसाथ कबीर, तुलसी और रवींद्रनाथ एकाकार हो उठते हैं। उनकी सांस्कृतिक दृष्टि अपूर्व है। उनके अनुसार भारतीय संस्कृति किसी एक जाति की देन नहीं, बल्कि समय-समय पर उपस्थित अनेक जातियों के श्रेष्ठ साधनांशों के लवण-नीर संयोग से विकसित हुई हैं।

द्विवेदीजी की प्रमुख रचनाएँ हैं – ‘अशोक के फूल’, ‘कल्पलता’, ‘विचार और वितर्क’, ‘कुटज’,’विचार-प्रवाह’, ‘आलोक पर्व’, ‘प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद’ (निबंध संग्रह); ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’, ‘चारुचंद्रलेख’, ‘पुनर्नवा’, ‘अनामदास का पोथा’ (उपन्यास); ‘सूर साहित्य’, ‘कबीर’, ‘मध्यकालीन बोध का स्वरूप’, ‘नाथ संप्रदाय’, ‘कालिदास की लालित्य योजना’, ‘हिंदी साहित्य का आदिकाल’, ‘हिंदी साहित्य की भूमिका’, ‘हिंदी साहित्य : उद्भव और विकास’ (आलोचना-साहित्येतिहास); ‘संदेशरासक’, ‘पृथ्वीराजरासो’, ‘नाथ-सिद्धों की बानियाँ'(ग्रंथ संपादन): ‘विश्व भारती’ (शांति निकेतन) पत्रिका का संपादन । द्विवेदीजी को आलोकपर्व’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार, भारत सरकार द्वारा ‘पद्मभूषण’ सम्मान एवं लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा डी० लिट् की उपाधि मिली । वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय, शांति निकेतन विश्वविद्यालय, . चंडीगढ़ विश्वविद्यालय आदि में प्रोफेसर एवं प्रशासनिक पदों पर रहे । सन् 1979 में दिल्ली में उनका निधन हुआ।

हजारी प्रसाद द्विवेदी ग्रंथावली से लिए गए प्रस्तुत निबंध में प्रख्यात लेखक और निबंधकार का मानववादी दृष्टिकोण प्रकट होता है । इस ललित निबंध में लेखक ने बार-बार काटे जाने पर भी बढ़ जाने वाले नाखूनों के बहाने अत्यंत सहज शैली में सभ्यता और संस्कृति की विकाम-गाथा उद्घाटित कर दिखायी है। एक ओर नाखूनों का बढ़ना मनुष्य की आदिम पाशविक वृत्ति और संघर्ष चेतना का प्रमाण है तो दूसरी ओर उन्हें बार-बार काटते रहना और अलंकृत करते रहना मनुष्य के सौंदर्यबोध और सांस्कृतिक चेतना को भी निरूपित करता है । लेखक ने नाखूनों के बहाने मनोरंजक शैली में मानव-सत्य का दिग्दर्शन कराने का सफल प्रयत्न किया है। यह निबंध नई पीढ़ी में सौंदर्यबोध, इतिहास चेतना और सांस्कृतिक आत्मगौरव का भाव जगाता है।


नाखून क्यों बढ़ते हैं? का सारांश (Summary)

बच्चे कभी-कभी चक्कर में डाल देने वाले प्रश्न कर बैठते हैं। मेरी छोटी लड़की ने जब उस दिन पूछ.दिया कि आदमी के नाखून क्यों बढ़ते हैं, तो मैं सोच में पड़ गया, हर तीसरे दिन नाखून बढ़ जाते हैं, बच्चे कुछ दिन तक अगर उन्हें बढ़ने दें, तो माँ-बाप अकसर उन्हें डाँटा करते हैं। पर कोई नहीं जानता कि ये अभागे नाखन क्यों इस प्रकार बढ़ा करते हैं। काट दीजिए वे चुपचाप दंड स्वीकार कर लेंगे पर निर्लज्ज अपराधी की भांति फिर छूटते ही सेंध पर हाजिर।

कुछ लाख ही वर्षों की बात है, जब मनुष्य जंगली था; वनमानुष जैसा। उसे नाखून की जरूरत थी। उसकी जीवन-रक्षा के लिए नाखून बहुत जरूरी थे। असल में वही उसके अस्त्र थे। दाँत भी थे पर नाखून के बाद ही उनका स्थान था। उन दिनों उसे जूझना पड़ता था, प्रतिद्वंदियों को पछाड़ना पड़ता था, नाखून उसके लिए आवश्यक अंग था। फिर धीरे-धीरे वह अपने अंग से बाहर की वस्तुओं का सहारा लेने लगा। पत्थर के ढेले और पेंड की डालें काम में लाने लगा। उसने हड्डियों के भी हथियार बनाये। मनुष्यं और आगे बढ़ा। उसने धातु के हथियार बनाए। पलीतेवाली बंदूकों ने, कारतूसों ने, तोपों ने, बमों ने, बमवर्षक वायुयानों ने इतिहास को किस कीचड़ भरे घाट पर घसीटा है, यह सबको मालूम है। नखधर मनुष्य अब एटम बम पर भरोसा करके आगे की ओर चल पड़ा है। पर उसके नाखून अब भी बढ़ रहे थे।

कुछ हजार साल पहले मनुष्य ने नाखून को सुकुमार विनोदों के लिए उपयोग में लाना शुरू किया था। वात्स्यायन के कामसूत्र से पता चलता है कि आज से दो हजार वर्ष पहले का भारतवासी नाखूनों को जम के संवारता था। उनके काटने की कला काफी मनोरंजक बताई गई है। त्रिकोण, वर्तुलाकार, चंद्राकार दंतुल आदि विविध आकृतियों के नाखून उन दिनों विलासी नागरिकों के न. जाने किस काम आया करते थे। उनको सिक्थक (मोम) और अलंक्तक (आलता) से यत्नपूर्वक रगड़कर लाल और चिकना बनाया जाता था। गौड़ देश के लोग उन दिनों बड़े-बड़े नखों को , पसंद करते थे और दक्षिणात्य लोग छोटे नखों को। लेकिन समस्त अधोगामिनी वृत्तियों को और नीचे खींचनेवाली वस्तुओं को भारतवर्ष ने मनुष्योचित बनाया है, यह बात चाहूँ भी तो भूल नहीं सकता।

15 अगस्त को जब अंगरेजी भाषा के पत्र ‘इण्डिपेण्डेन्स की घोषणा कर रहे थे, देशी भाषा के पत्र ‘स्वाधीनता दिवस की चर्चा कर रहे थे। इण्डिपेण्डेन्स का अर्थ है स्वाधीनता ‘शब्द का – अर्थ है अपने ही अधीन’ रहना। उसने अपने आजादी के जितने भी नामकरण किए, स्वतंत्रता, स्वराज्य, स्वाधीनता-उन सबमें ‘स्व’ का बंधन अवश्य रखा। अपने-आप पर अपने-आप के द्वारा लगाया हुआ बंधन हमारी संस्कृति की बड़ी भारी विशेषता है।

मनुष्य झगड़े-डंटे को अपना आदर्श नहीं मानता, गुस्से में आकर चढ़-दौड़ने वाले अविवेकी को बुरा समझता है और वचन, मन और शरीर से किए गए असत्याचरण को गलत आचरण मानता है। यह किसी भी जाति या वर्ण या समुदाय का धर्म नहीं है। यह मनुष्यमात्र का धर्म है। महाभारत में इसीलिए निर्वैर भाव, सत्य और अक्रोध को सब वर्गों का सामान्य धर्म कहा है –
एतद्धि विततं श्रेष्ठं सर्वभूतेषु भारत!
निर्वैरता महाराज सत्यमक्रोध एव च।

अन्यत्र इसमें निरंतर दानशीलता को भी गिनाया गया है। गौतम ने ठीक ही कहा था कि मनुष्य – की मनुष्यता यही है कि वह सबके दुःख-सुख को सहानुभूति के साथ देखता है।

ऐसा कोई दिन आ सकता है, जबकि मनुष्य के नाखूनों का बढ़ना बंद हो जाएगा। प्राणिशास्त्रियों का ऐसा अनुमान है कि मनुष्य का अनावश्यक अंग उसी प्रकार झड़ जाएगा, जिस प्रकार उसकी पूँछ झड़ गई है। उस दिन मनुष्य की पशुता भी लुप्त हो जाएगी। शायद उस दिन वह मारणास्त्रों का प्रयोग भी बंद कर देगा। .

नाखूनों का बढ़ना मनुष्य की उस अंध सहजात वृत्ति का परिणाम है, जो उसके जीवन में सफलता ले आना चाहती है, उसको काट देना उस ‘स्व’-निर्धारित आत्म-बंधन का पुल है, जो उसे चरितार्थता की ओर ले जाती है। कमबख्त नाखून बढ़ते हैं तो बढ़े, मनुष्य उन्हें बढ़ने नहीं देगा।

MCQ and Summary for नागरी लिपि Class 10 Hindi Matric Godhuli

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MCQ and Summary for नागरी लिपि (Nagiri Lipi) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

नागरी लिपि - गुणाकर मुले MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. गुणाकर मुले किस निबंध के रचयिता हैं?
(A) नाखून क्यों बढ़ते हैं
(B) नागरी लिपि
(C) परंपरा का मूल्यांकन
(D) आविन्यों
उत्तर
(B) नागरी लिपि

2. देवनागरी लिपि में मुद्रण के टाइप कब बने ?
(A) दो सदी पहले
(B) दो दशक पहले
(C) बीसवीं सदी में
(D) 11वीं सदी में
उत्तर
(A) दो सदी पहले

3. नागरी लिपि कब एक सार्वदेशिक लिपि थी?
(A) पन्द्रहवीं सदी में
(B) ईसा पूर्व काल में
(C) 8वीं-11वीं सदी में
(D) कभी नहीं
उत्तर
(C) 8वीं-11वीं सदी में

4. पहले दक्षिण भारत की नागरी लिपि क्या कहलाती थी?
(A) नदिनागरी
(B) कोंकणी
(C) ब्राह्मी
(D) सिद्धम
उत्तर
(D) सिद्धम

5. हिन्दी के आदिकवि का नाम क्या था?
(A) विद्यापति
(B) सरहदपाद
(C) कबीर
(D) दैतिदुग
उत्तर
(B) सरहदपाद

6. गुणाकर मुले का स्वर्गवास कब हुआ था ?
(A) 1909
(B) 1809
(C) 1935
(D) 2009
उत्तर
(D) 2009

7. गुणाकर मुले का जन्म किस राज्य में हुआ था ?
(A) बिहार
(B) उत्तर प्रदेश
(C) महाराष्ट्र
(D) राजस्थान
उत्तर
(C) महाराष्ट्र

8. गुणाकर मुले का जन्म कब हुआ था ?
(A) 1925
(B) 1915
(C) 1945
(D) 1935
उत्तर
(D) 1935

9. नागरी लिपि के आरंभिक लेख हमें कहाँ से मिले हैं ?
(A) पूर्वी भारत
(B) पश्चिमी भारत
(C) दक्षिणी भारत
(D) उत्तरी भारत
उत्तर
(C) दक्षिणी भारत

10. बेतमा दानपत्र किस समय का है ?
(A) 1020 ई.
(B) 1021 ई०
(C) 1022 ई०
(D) 1023 ई०
उत्तर
(A) 1020 ई.

नागरी लिपि लेखक परिचय

गुणाकर मुले का जन्म 1935 ई० में महाराष्ट्र के अमरावती जिले के एक गाँव में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्रामीण परिवेश में हुई । शिक्षा की भाषा मराठी थी। उन्होंने मिडिल स्तर तक मराठी पढ़ाई भी । फिर वे वर्धा चले गये और वहाँ उन्होंने दो वर्षों तक नौकरी की, साथ ही अंग्रेजी व हिंदी का अध्ययन किया । फिर इलाहाबाद आकर उन्होंने गणित विषय में मैट्रिक से लेकर एम० ए० तक की पढ़ाई की । सन् 2009 में मुले जी का निधन हो गया ।

गुणाकर मुले के अध्ययन एवं कार्य का क्षेत्र बड़ा ही व्यापक है । उन्होंने गणित, खगोल विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान, विज्ञान का इतिहास, पुरालिपिशास्त्र और प्राचीन भारत का इतिहास व संस्कृति जैसे विषयों पर खूब लिखा है। पिछले पच्चीस वर्षों में मुख्यतः इन्हीं विषयों से संबंधि तं उनके 2500 से अधिक लेखों तथा तीस पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। उनकी प्रमुख कृतियों के नाम हैं 

  • अक्षरों की कहानी
  • भारत: इतिहास और संस्कृति
  • प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिक
  • आधुनिक भारत के महान वैज्ञानिक
  • मैंडलीफ
  • महान वैज्ञानिक
  • सौर मंडल
  • सूर्य
  • नक्षत्र-लोक
  • भारतीय लिपियों की कहानी
  • अंतरिक्ष-यात्रा
  • ब्रह्मांड परिचय
  • भारतीय विज्ञान की कहानी

गुणाकर मुले की एक पुस्तक है ‘अक्षर कथा’। इस पुस्तक में उन्होंने संसार की प्रायः सभी प्रमुख पुरालिपियों की विस्तृत जानकारी दी है।

प्रस्तुत निबंध गुणाकर मुले की पुस्तक भारतीय लिपियों की कहानी’ से लिया गया है । इसमें हिंदी की अपनी लिपि नागरी या देवनामरी के ऐतिहासिक विकास की रूपरेखा स्पष्ट की गयी है। यहाँ हमारी लिपि की प्राचीनता, व्यापकता और शाखा विस्तार का प्रवाहपूर्ण शैली में प्रामाणिक आख्यान प्रस्तुत किया गया है। तकनीकी बारीकियों और विवरणों से बचते हुए लेखक ने निबंध को बोझिल नहीं होने दिया है तथा सादगी और सहजता के साथ जरूरी ऐतिहासिक जानकारियाँ देते हुए लिपि के बारे में हमारे भीतर आगे की जिज्ञासाएँ जगाने की कोशिश की है।


नागरी लिपि का सारांश (Summary)

प्रस्तुत पाठ ’नागरी लिपि’ गुणाकर मुले के द्वारा लिखित है। इसमें लेखक ने देवनागरी लिपि की उत्पति, विकास एवं व्यवहार पर अपना विचार व्यक्त किया गया है। लेखक का कहना है कि जिस लिपि में यह पुस्तक छपी है, उसे नागरी या देवनागरी लिपि कहते हैं। इस लिपि की टाइप लगभग 250 वर्ष पहले बनी। इसके विकास से अक्षरों में स्थिरता आ गई।

हिन्दी तथा इसकी विविध बोलियाँ, संस्कृत एवं नेपाली आदि इसी लिपि में लिखी जाती है। देवनागरी के संबंध में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि विश्व में संस्कृत एवं प्राकृत की पुस्तकें प्रायः इसी लिपि में छपती है।

देश में बोली जाने वाली भिन्न-भिन्न भाषाएँ तथा बोलियाँ भी इसी लिपि में लिखी जाती है। तमिल, मलयालम, तेलुगु एवं कन्नड़ की लिपियों में भिन्नता दिखाई पड़ती है, लेकिन ये लिपियाँ भी नागरी की तरह ही प्राचीन ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई है।

लेखक का कहना है कि नागरी लिपि के आरंभिक लेख हमें दक्षिण भारत से ही मिले हैं। यह लिपि नंदिनागरी लिपि कहलाती थी। दक्षिण भारत में तमिल-मलयालम और तेलुगु-कन्नड़ लिपियों का स्वतंत्र विकास हो रहा है, फिर भी कई शासकों ने नागरी लिपि का प्रयोग किया है। जैसे- ग्यारहवीं सदी में राजराज और राजेन्द्र जैसे प्रतापी चोल राजाओं के सिक्कों पर नागरी अक्षर अंकित है तो बारहवीं सदी में केरल के शासकों के सिक्कों पर “विर केरलस्य’।

इसी प्रकार नौवीं सदी के वरगुण का पलियम ताम्रपत्र नागरी लिपि में है तो ग्यारहवीं सदी में इस्लामी शासन की नींव डालने वाले महमूद गजनवी के चाँदी के सिक्कों पर भी नागरी लिपि के शब्द मिलते हैं।

गजनवी के बाद मुहम्मद गोरी, अलाउदीन खिलजी, शेरशाह आदि शासकों ने भी सिक्कों पर नागरी शब्द खुदवाए। अकबर के सिक्कों पर तो नागरी लिपि में ’रामसीय’ शब्द अंकित है। तात्पर्य है कि नागरी लिपि का प्रचलन ईसा की आठवीं-नौवीं सदी से आरंभ हो गया था।

लेखक ने लिपि के पहचान में कहा है कि ब्राह्मी तथा सिद्धम् लिपि अक्षर तिकोन है जबकि नागरी लिपि के अक्षरों के सिरों पर लकिर की लम्बाई और चौड़ाई एक समान है।

प्राचीन नागरी लिपि के अक्षर आधुनिक नागरी लिपि से मिलते-जुलते हैं। इस प्रकार दक्षिण भारत में नागरी लिपि के लेख आठवीं सदी से तथा उत्तर भारत में नौवीं सदी से मिलने लग जाते हैं।

अब प्रश्न यह उठता है कि इस नई लिपि को नागरी, देवनागरी तथा नंदिनागरी क्यों कहते हैं ? —नागरी शब्द के उत्पति के संबंध में विद्वानों का मत एक नहीं है। कुछ विद्वानों का मत है कि गुजरात के नागर ब्राह्मण ने इस लिपि का सर्वप्रथम प्रयोग किया था, इसलिए इसका नाम नागरी पड़ा, किंतु कुछ विद्वानों के मत के अनुसार अन्य नगर तो मात्र नगर है, परन्तु काशी को देवनगरी माना जाता है, इसलिए इसका नाम देवनागरी पड़ा।

अल्बेरूनी के अनुसार 1000 ई0 के आसपास नागरी शब्द अस्तित्व में आया। इतना निश्चित है कि नागरी शब्द किसी नगर अथवा शहर से संबंधित है। दूसरी बात यह है कि उत्तर भारत की स्थापत्य-कला की विशेष शैली को ’नागर शैली’ कहा जाता था। यह नागर या नागरी उत्तर भारत के किसी बड़े नगर से संबंध रखता था। उस समय उत्तर भारत में प्राचीन पटना सबसे बड़ा नगर था। साथ ही गुप्त शासक चन्द्रगुप्त (द्वितीय) ’विक्रमादित्य’ का व्यक्तिगत नाम ’देव’ था, संभव है कि गुप्तों की राजधानी पटना को ’देवनगर कहा गया हो और देवनगर की लिपि होने के कारण देवनागरी नाम दिया गया हो।

अन्ततः लेखक इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि ईसा के आठवीं से ग्यारहवीं सदी तक यह लिपि सार्वदेशिक हो गई थी, इसलिए इसके नामकरण के विषय में कुछ कहना संभव नहीं लगता।

मिहिर भोज की ग्वालियर प्रशस्ति नागरी लिपि में है। धारा नगरी का परमार शासक भोज अपने विद्यानुराग के लिए इतिहास प्रसिद्ध है। 12 वीं सदी के बाद भारत के सभी हिंदू शासक तथा कुछ इस्लामी शासकों ने अपने सिक्कों पर नागरी लिपि अंकित किए हैं।


MCQ and Summary for बहादुर Class 10 Hindi Matric Godhuli

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MCQ and Summary for बहादुर (Bahadur) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

बहादुर - अमरकांत MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. 'बहादुर' के कहानीकार कौन हैं?
(A) नलिन विलोचन शर्मा
(B) अमरकांत
(C) विनोद कुमार शुक्ल
(D) अशोक वाजपेयी
उत्तर
(B) अमरकांत

2. 'बहादुर' कैसी कहानी है ?
(A) ऐतिहासिक
(B) मनोवैज्ञानिक
(C) सामाजिक
(D) वैज्ञानिक
उत्तर
(C) सामाजिक

3. बहादुर अपने घर से क्यों भाग गया था?
(A) गरीबी के कारण
(B) माँ की मार के कारण
(C) शहर घूमने के कारण
(D) भ्रमवश
उत्तर
(B) माँ की मार के कारण

4. 'निर्मला' कौन थी ?
(A) शिक्षिका
(B) बहादुर की माँ
(C) कथाकार की पत्नी
(D) कथाकार की पड़ोसन
उत्तर
(C) कथाकार की पत्नी

5. अमरकांत का जन्म कब हुआ?
(A) 1925
(B) 1825
(C) 2015
(D) 1906
उत्तर
(A) 1925

6. निम्नलिखित में किसे 'व्यास सम्मान' से सम्मानित किया गया ?
(A) अमरकांत
(B) महादेवी वर्मा
(C) दिनकर
(D) प्रेमचंद
उत्तर
(A) अमरकांत

7. हिन्दी कहानी को नयी दिशा प्रदान करने वाले कलाकार हैं
(A) गुणाकर मूले
(B) राजेन्द्र प्रसाद
(C) अमरकांत
(D) सभी गलत है
उत्तर
(C) अमरकांत

8. बहादुर को कितने रुपये की चोरी का इल्जाम लगा था ?
(A) 10 रुपये
(B) 11 रुपये
(C) 12 रुपये
(D) 13 रुपये
उत्तर
(B) 11 रुपये

9. बहादुर लेखक के घर से अचानक क्या चला गया ?
(A) दूसरी नौकरी मिल जाने के कारण
(B) माँ की याद आने के कारण
(C) स्वयं के प्रति लेखक तथा उसके घरवालों के व्यवहार में आए परिवर्तन के कारण
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर
(C) स्वयं के प्रति लेखक तथा उसके घरवालों के व्यवहार में आए परिवर्तन के कारण

बहादुर- लेखक परिचय

हिन्दी के सशक्त कथाकार अमरकांत का जन्म जलाई 1925 ई० में नागरा, बलिया (उत्तरप्रदेश) में हुआ था। इन्होनें हाई स्कुल की शिक्षा बलिया में पाई। स्वाधीनता संग्राम में हाथ बटाने के कारण 1946 ई० में सतीशचन्द्र कॉलेज बलिया से इंटरमीडिएट किया। इसके बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी० ए० की परीक्षा पास करने के बाद आगरा के दैनिक पत्र ’सैनिक’ के संपादकीय विभागों से संबंध रहे।

रचनाएँ- जिन्दगी और जोंक, देश के लोग, मौत का नगर, मित्र-मिलन, कुहासा, सूखा पत्ता, आकाशपक्षी, कोले उजले दिन, सुखजीवी, बीच की दीवार, ग्राम सेविका। इन्होनं ’वानरसेना’ नामक एक बाल उपन्यास भी लिखा है।


बहादुर- पाठ परिचय

प्रस्तुत कहानी ’बहादुर’ में शहर के एक निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार में काम करने वाले एक नेपाली गँवई गोरखे बहादुर की कहानी वर्णित है। बहादुर एक नौकरी पेशा परिवार में आत्मीयता के साथ सेवाएँ देने के बाद परिवार के सदस्यों के दुर्व्यवहार के कारण अपने स्वच्छंद निश्छल स्वभाववश स्वच्छंदता के साथ नौकरी छोड़ देता है। उसकी आत्मीयता तथा त्याग परिवार के हर सदस्य में एक कसकती अन्तर्व्यथा पैदा कर देती है, क्योंकि घर के मुखिया के झूठी सान तथा क्रूर व्यवहार का पोल खुल जाता है।


बहादुर का सारांश (Summary)

प्रस्तुत पाठ ’बहादुर’ अमरकान्त के द्वारा लिखा है। इसमें लेखक ने बहादुर नामक एक नेपाली लड़का के रूप-रंग, स्वभाव कर्मनिष्ठा, त्याग तथा स्वाभिमान का मार्मिक वर्णन किया है।

एक दिन लेखक ने बारह-तेरह वर्ष की उम्र के ठिगना चकइठ शरीर, गोरे रंग तथा चपटा मुँह वाले लड़के को देखा। वह सफेद नेकर, आधी बाँह की सफेद कमीज और भूरे रंग का पुराना जूता पहने था। उसके गले में स्काउटों की तरह एक रूमाल बँधा था। परिवार के सभी सदस्य उसे पैनी दृष्टि से देख रहे थे। लेखक को नौकर रखना अति आवश्यक हो गया था। क्योंकि उनके भाई तथा रिश्तेदारों के घर नौकर थे।

उनकी भाभियाँ रानी की तरह चारपाइयाँ तोड़ती थी, जबकि उनकी पत्नी निर्मला दिन से लेकर रात तक परेशान रहती थी। इसलिए लेखक के साले ने उनके घर नौकर के लिए लाया था। वह नेपाल तथा बिहार की सीमा पर रहता था। उसका बाप युद्ध में मारा गया था। माँ ही सारे परिवार का भरण-पोषण करती थी। वह गुस्सैल स्वभाव की थी। वह चाहती थी कि उसका बेटा घर के काम में हाथ बटाए, किंतु काम करने के नाम पर वह जंगलों में भाग जाता था, जिस कारण माँ उसे मारती थी।

एक दिन चराने ले गये पशुओं में से उस भैंस को उसने बहुत मारा, जिसको उसकी माँ उसे बहुत प्यार करती थी। मार खाकर भैंस भागीदृभागी उसकी माँ के पास पहुंच गई। भैंस के मार का काल्पनिक अनुमान करके माँ ने उसकी निर्दयता से पिटाई कर दी।

लड़के का मन माँ से फट गया। उसने माँ के रखे रूपयों में से दो रूपये निकाल लिये और वहाँ से भाग गया तथा छः मील दूर बस-स्टेशन पहुँच गया। वहाँ उसकी भेंट लेखक से होती है। लेखक ने उसका नाम पूछा। उसने अपना नाम दिलबहादुर बताया। लेखक तथा उसकी पत्नी ने उसे काम के ढंग के बारे में बताया, साथ ही, मीठे वचनों से उसका दिल भर दिया। निर्मला ने उसके नाम से ’दिल’ हटा दिया। वह अब दिल बहादुर से बहादुर बन गया।

बहादुर अति हँसमुख तथा मेहनती लड़का था। वह हर काम हँसते हुए कर लेता था। लेखक की पत्नी निर्मला भी उसका पूरा ख्याल रखती थी। उसकी वजह से घर का उत्साहपूर्ण वातावरण था।

निर्मला ऐसे नौकर पाकर अपने-आप के धन्य समझती थी। इसलिए वह आँगन में खड़ी होकर पड़ोसियों को सुनाते हुए कहती थी, बहादुर आकर नास्ता क्यों नहीं कर लेते ? मैं दूसरी औरतों की भाँति नहीं हुँ। मैं तो नौकर-चाकर को अपने बच्चों की तरह रखती हूँ।

बहादुर भी घर का सारा काम करने लगा, जैसे- सवेरे उठ कर नीम के पेड़ से दातुन तोड़ना, घर की सफाई करना, कमरों में पोंछा लगाना, चाय बनाना तथा पिलाना, दोपहर में कपड़े धोना, बर्तन मलना आदि।

 बहादुर सिधा-साधा तथा रहमदिल बालक था। अपनी मालकिन की तबीयत ठीक नहीं रहने पर काम न करने का आग्रह करता था और दवा खाने का समय होने पर वह भालू की तरह दौड़ता हुआ कमरे में जाता और दवाई का डिब्बा निर्मला के सामने लाकर रख देता था।

वह कृतज्ञ बालक था। निर्मला के पूछने पर उसने कहा कि माँ बहुत मारती थी, इसलिए माँ की याद नहीं आती है, परन्तु माँ के पास पैसा भेजने के संबंध में उसका उत्तर था- माँ-बाप का कर्जा तो जन्म भर भरा जाता है। इससे स्पष्ट होता है कि वह मस्त और नेक इन्सान था।

उसकी मस्ती का पता तब चलता था जब रात का काम समाप्त करने के बाद एक टूटी खाट पर बैठ जाता तथा नेपाली टोपी पहनकर आइना में बंदर की तरह मुँह देखता और कुछ देर तक खेलने के बाद वह धीमे स्वर में गुनगुनाने लगता था। उसके पहाड़ी गाने से घर में मीठी उदासी फैल जाती थी। उसकी गीत को सुनकर लेखक को लगता कि जैसे कोई पहाड़ की निर्जनता में अपने किसी बिछड़े हुए साथी को बुला रहा हो।

लेखक अपने को ऊँचा तथा मोहल्ले के लोगों को तुच्छ मानने लगे, क्योंकि उनके यहाँ नौकर था। बहादुर की वजह से घर के सभी लोग आलसी हो गए। मामूली काम के लिए बहादुर की पुकार होने लगी। जिससे बहादुर को घर में हमेशा नाचना पड़ता था। बड़ा लड़का किशोर ने अपना सारा काम बहादुर को सौंप दिए। वह नौकर को बड़े अनुशासन में रखना चाहता था। इसलिए काम में कोई गड़बड़ी होती तो उसको बुरी-बुरी गालियाँ देता और मारता भी था।

समय बीतने के साथ ही लेखक के मनोस्थिति भी बदल जाती है। अब बहादुर को नौकर की दृष्टि से देखा जाता है। उसे अपना भोजन स्वयं बनाने के लिए मजबूर किया जाता है। रोटी बनाने से इंकार करने पर निर्मला से मार खाता है।

इतना हि नहीं, कभी-कभी एक गलती के लिए निर्मला तथा किशोर दोनों मारते थे, जिस कारण बहादुर से अधिक गलतियाँ होने लगी। लेखक यह सोचकर चुप रहने लगे कि नौकर-चाकर के साथ मारपीट होना स्वभाविक है।

 इसी बीच एक दूसरी घटना घट जाती है। लेखक के घर कोई रिश्तेदार आता है। उनके भोजन के लिए रोहु मछली और देहरादूनी चावल मंगाया जाता है। नास्ता- पानी के बाद बातों की जलेबी छनने लगती है। अचानक उस रिश्तेदार की पत्नी रूपये गुम होने की बात कहकर घर में भूचाल उत्पन्न कर देती है। बहादुर के सिर दोष मढ़ा जाता है।

लेखक को विश्वास नहीं होता, क्योंकी बहादुर ने जब इधर-उधर पैसे पड़ा देखता तो उठाकर निर्मला के हाथ में दे दिया करता था।

किंतु रिश्तेदार के यह कहने पर की नौकर-चाकर चोर होते हैं, लेखक ने उससे कड़े स्वर में पुछा- तुमने यहाँ से रूपये उठाये थे ? उसने निर्भीकतापूर्वक उत्तर दिया, ’नहीं बाबुजी’। बहादुर का मुँह काला पड़ गया, लेखक ने उसके गाल पर एक तमाचा जड़ दिया कि ऐसा करने से बता देगा। उसकी आँखों से आँसु गिरने लगे। इसी समय रिश्तेदार साहब ने बहादुर का हाथ पकड़कर दरवाजे की ओर घसीट कर ले गए, जैसे पुलिस को देने जा रहे हों। फिर भी उसने पैसे लेने की बात स्वीकार नहीं की तो निर्मला भी अपना रोब जमाने के लिए दो-चार तमाचे जड़ दिए।

इस घटना के बाद बहादुर काफी डाँट-मार खाने लगा। किशोर उसकी जान के पिछे पड़ गया था। एक दिन बहादुर वहाँ से भाग निकला।

लेखक जब दफ्तर से लौटा तो घर में उदासी छाई हुई थी। निर्मला चुपचाप आँगन में सिर पर हाथ रख कर बैठी थी। आँगन गंदा पड़ा था। बर्तन बिना मले रखे हुए थे। सारा घर अस्त-व्यस्त था। बहादुर के जाते ही सबके होश उड़ गये थे। निर्मला अपने बदकिस्मती का रोना रो रही थी।

लेखक बहादुर का त्याग देखकर भौंचक्का रह जाता है, क्योंकि उसने अपना तनख्वाह, वस्त्र, विस्तर तथा जुते सब कुछ वहीं छोड़ गया था, जिससे बहादुर के अंदर के दर्द का पता चलता है। वह गरीब होते हुए भी आत्म अभिमानी था। मार तथा गाली-गलौज के कारण ही वह माँ से दुखी था तथा उसने घर का त्याग किया था।

MCQ and Summary for परंपरा का मूल्यांकन Class 10 Hindi Matric Godhuli

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MCQ and Summary for परंपरा का मूल्यांकन (Parampara ka Mulyankan) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

परंपरा का मूल्यांकन - रामविलास शर्मा MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. रामविलास शर्मा निम्नांकित में क्या हैं ?
(A) आलोचक
(B) कवि
(C) नाटककार
(D) साहित्यकार
उत्तर
(A) आलोचक


2. 'परम्परा का मूल्यांकन' के लेखक कौन हैं ?
(A) नलिन विलोचन शर्मा
(B) अशोक वाजपेयी
(C) रामविलास शर्मा
(D) भीमराव अंबेडकर
उत्तर
(C) रामविलास शर्मा

3. 'परम्परा का मूल्यांकन' निबंध किस पुस्तक से संकलित हैं ?
(A) भाषा और समाज
(B) परम्परा का मूल्यांकन
(C) भारत की भाषा समस्या
(D) प्रेमचन्द और उनका युग
उत्तर
(B) परम्परा का मूल्यांकन

4. दूसरों की नकल कर लिखा गया साहित्य कैसा होता है ?
(A) उत्तम
(B) मध्यम
(C) अधम
(D) व्यंग्य
उत्तर
(C) अधम

5. रैफल, लियोनार्दो दि विंची और ऐंजलो किसकी देन हैं ?
(A) इंगलैण्ड की
(B) फ्रांस की
(C) इटली की
(D) यूनान की
उत्तर
(C) इटली की

6. शेक्सपीयर कौन थे ?
(A) नाटककार
(B) कहानीकार
(C) उपन्यासकार
(D) निबंधकार
उत्तर
(A) नाटककार

7. रामविलास शर्मा का जन्म कब हुआ था ?
(A) 10 अक्टूबर, 1912
(B) 10 मार्च, 1970
(C) 15 अगस्त, 1945
(D) 10 दिसम्बर, 2001
उत्तर
(A) 10 अक्टूबर, 1912

8. रामविलास शर्मा की रचनाओं के केन्द्र-बिन्दु हैं ___
(A) देशभक्ति
(B) मार्क्सवाद
(C) देशभक्ति एवं मार्क्सवाद
(D) सभी गलत है
उत्तर
(C) देशभक्ति एवं मार्क्सवाद

9. रामविलास जी के गाँव का नाम है
(A) ऊँच गाँव
(B) सानी
(C) ऊँच गाँव सानी
(D) सभी गलत है
उत्तर
(C) ऊँच गाँव सानी

10. साहित्य की परम्परा का पूर्ण ज्ञान किस व्यवस्था में सम्भव है ?
(A) सामन्तवादी व्यवस्था
(B) पूँजीवादी व्यवस्था
(C) समाजवादी व्यवस्था
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर
(C) समाजवादी व्यवस्था


परंपरा का मूल्यांकन- लेखक परिचय

हिन्दी आलोचना के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर डॉ० रामविलास शर्मा का जन्म उन्नाव (उ० प्र०) के एक छोटे-से गाँव ऊँचगाँव सानी में 10 अक्टूबर 1912 ई० में हुआ था । उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से 1932 ई० में बी० ए० तथा 1934 ई० में अंग्रेजी साहित्य में एम० ए० किया। एम० ए० करने के बाद 1938 ई० तक शोधकार्य में व्यस्त रहे । 1938 से 1943 ई० तक उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में अध्यापन कार्य किया । उसके बाद वे आगरा के बलवंत राजपूत कॉलेज चले आए और 1971 ई० तक यहाँ अध्यापन कार्य करते रहे । बाद में आगरा विश्वविद्यालय के कुलपति के अनुरोध पर वे के० एम० हिंदी संस्थान के निदेशक बने और यहीं से 1974 ई० में सेवानिवृत्त हुए । 1949 से 1953 ई० तक रामविलास जी भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के महामंत्री भी रहे । उनका निधन 30 मई 2000 ई० को दिल्ली में हुआ।

हिंदी गद्य को रामविलास शर्मा का योगदान ऐतिहासिक है । तर्क और तथ्यों से भरी हुई साफ पारदर्शी भाषा रामविलास जी के गद्य की विशेषता है। उन्हें भाषाविज्ञान विषयक परंपरागत दृष्टि को मार्क्सवाद की वैज्ञानिक दृष्टि से विश्लेषित करने तथा हिंदी आलोचना को वैज्ञानिक दृष्टि प्रदान करने का श्रेय प्राप्त है, । देशभक्ति और मार्क्सवादी चेतना रामविलास जी का केंद्र-बिंदु है। उनकी लेखनी से वाल्मीकि और कालिदास से लेकर मुक्तिबोध तक की रचनाओं का मूल्यांकन प्रगतिवादी चेतना के आधार पर हुआ है । उन्हें न केवल प्रगति विरोधी हिंदी आलोचना की कला एवं साहित्य विषयक भ्रांतियों के निवारण का श्रेय है, बल्कि स्वयं प्रगतिवादी आलोचना द्वारा उत्पन्न अंतर्विरोधों के उन्मूलन का गौरव भी प्राप्त है।

रामविलास जी ने हिंदी में जीवनी साहित्य को एक नया आयाम दिया । उन्हें ‘निराला की साहित्य साधना’ पुस्तक पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हो चुका है । उनकी अन्य प्रमुख रचनाओं के नाम हैं – ‘आचार्य रामचंद्र शुक्ल और हिंदी आलोचना’, ‘भारतेन्दु हरिश्चंद्र’, ‘प्रेमचंद और उनका युग’, ‘भाषा और समाज’, ‘महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण’ ‘भारत की भाषा समस्या’, ‘नयी कविता और अस्तित्ववाद’, ‘भारत में अंग्रेजी राज और मार्क्सवाद’, ‘भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिंदी’, ‘विराम चिह्न’, ‘बड़े भाई’ आदि ।

पाठ के रूप में यहाँ रामविलास जी का निबंध प्रस्तुत है – ‘परंपरा का मूल्यांकन’ । यह निबंध इसी नाम की पुस्तक से किंचित संपादन के साथ संकलित है । यह निबंध समाज, साहित्य और परंपरा के पारस्परिक संबंधों की सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक मीमांसा एकसाथ करते हुए रूपाकार ग्रहण करता है । परंपरा के ज्ञान, समझ और मूल्यांकन का विवेक जगाता यह निबंध साहित्य की सामाजिक विकास में क्रांतिकारी भूमिका को भी स्पष्ट करता चलता है । नई पीढ़ी में यह निबंध परंपरा और आधुनिकता की युगानुकूल नई समझ विकसित करने में एक सार्थक हस्तक्षेप करता है।


परंपरा का मूल्यांकन- पाठ परिचय

प्रस्तुत पाठ ‘परम्परा का मूल्यांकन’ इसी नाम की पुस्तक से संकलित है। इसमें लेखक ने समाज, साहित्य तथा परंपरा से संबंधों की सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक मीमांसा पर विचार किया है। यह निबंध परंपरा के ज्ञान, समझ और मूल्यांकन का विवेक जगाता साहित्य की सामाजिक विकास में क्रांतिकारी भूमिका को भी स्पष्ट करता चलता है। अतः यह निबंध नई पीढ़ी में परंपरा और आधुनिकता को युग के अनुकूल नई समझ विकसित करने में सराहनीय सहयोग करता है।


परंपरा का मूल्यांकन का सारांश (Summary)

प्रस्तुत पाठ ‘परम्परा का मूल्यांकन’ ख्यातिप्राप्त आलोचक रामविलास शर्मा द्वारा लिखित है। इसमें लेखक ने प्रगतिशील रचनाकारों के विषय में अपना विचार प्रकट किया है।
लेखक का मानना है कि क्रांतिकारी साहित्य-रचना करनेवालों के लिए साहित्य की परम्परा का ज्ञान होना अति आवश्यक है क्योंकि साहित्यिक-परम्परा के ज्ञान से ही प्रगतिशील आलोचना का विकास होता है और साहित्य की धारा बदली जा सकती है। तथा नए प्रगतिशील साहित्य का निर्माण किया जा सकता है।
मनुष्य आर्थिक जीवन के अलावा एक प्राणि के रूप में भी जीवन व्यतीत करता है। साहित्य विचारधारा मात्र नहीं है।
साहित्य में विकास प्रक्रिया चलती रहती है। जैसे-जैसे समाज का विकास होता है वैसे-वैसे साहित्य का भी। व्यवहार में देखा जाता है कि 19 वीं तथा 20 वीं सदी के कवि क्या भारत के, क्या यूरोप के, ये तमाम कवि अपने पूर्ववर्ती कवियों की रचनाओं का मनन करते हैं, उनसे सिखते हैं और नई परम्पराओं को जन्म देते हैं।
दूसरों को नकल करके लिखा गया साहित्य अधम कोटि का होता है और सांस्कृतिक असमर्थता का सूचक होता है। लेकिन उतम कोटि का साहित्य दूसरी भाषा में अनुवाद किए जाने पर अपना कलात्मक-सौन्दर्य खो देता है। तात्पर्य यह कि ऐसे साहित्य से कला की आवृति नहीं हो सकती। जैसे- अमेरिका अथवा रूस ने एटम बम बनाए, लेकिन शेक्सपियर के नाटकों जैसी चीज दुबारा लेखन इंगलैड में भी नहीं हुआ।
19वीं सदी में शेली तथा वायरन ने अपनी स्वाधीनता के लिए लड़ने वाले यूनानीयों को एकात्मकता की पहचान करने में सहयोग किया था। भारतीयों ने भी अपनी स्वाधीनता संग्राम के दौरान इस एकात्मकता को पहचाना।
मानव समाज बदलता है और अपनी अस्मिता कायम रखता है, क्योंकि जो तत्व मानव समुदाय को एक जाति के रूप में संगठित करता है। साहित्य पंरपरा के ज्ञान के कारण ही पूर्वी एवं पश्चिमी बंगाल के लोग सांस्कृतिक रूप से एक हैं। कोई भी देश बहुजातिय तथा बहुभाषी होने के बावजूद जब उस देश पर कोई मुसीबत आती है तो उस समय वह राष्ट्रीय अस्मिता समर्थ प्रेरक बनकर लोगों को मुसीबत से लड़ने में सहयोग करती है।
जैसे- हिटलर के आक्रमण के समय रूसी जाति ने बार-बार अपने साहित्य परंपरा का स्मरण किया। टॉल्स्टाय सोवियत समाज में पढ़े जाने वाले साहित्य के महान साहित्यकार हैं तो रूसी जाति के अस्मिता को सुदृढ़ एवं पुष्ट करने वाले साहित्यकार भी हैं।
1917 ई0 के रूसी क्रांति के पहले वहाँ रूसी तथा गैर-रूसी थे, किन्तु इस क्रांति के बाद रूसी तथा गैर रूसी जातियों के संबंधों में बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ। सभी जातियाँ एक हो गई। फिर भी जातियों का मिला-जुला इतिहास जैसा भारत का है, वैसा सोवियत संघ का नहीं है।
यूरोप के लोग यूरोपियन संस्कृति की बात करते हैं, लेकिन यूरोप कभी राष्ट्र नहीं बना।
राष्ट्रीयता की दृष्टी से भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ राष्ट्रीय एक जाति द्वारा दूसरी जाति पर थोपी नहीं गई, बल्कि वह संस्कृति तथा इतिहास की देन है।
इस संस्कृति के निर्माण में देश के कवियों का महान योगदान है। रामायण एवं महाभारत इस देश की संस्कृति की एक कड़ी है। जिसके बिना भारतीय साहित्य की एकता भंग हो जाएगी।
लेखक का तर्क है कि यदि जारशाही रूस समाजवादी व्यवस्था कायम होने पर नवीन राष्ट्र के रूप में पुनर्गठित हो सकता है तो भारत में समाजवादी व्यवस्था कायम होने पर यहाँ की राष्ट्रीय अस्मिता पहले से कितना पुष्ट होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है। अतः समाजवाद हमारी राष्ट्रीय आवश्यकता है।
पूँजीवादी व्यवस्था में शक्ति का अपवाह होता है। देश के साधनों का समुचित उपयोग समाजवादी व्यवस्था में ही होता है।
देश की निरक्षर निर्धन जनता जब साक्षर होगी तो वह रामायण तथा महाभारत का ही अध्ययन नहीं करेगी, अपितु उत्तर भारत के लोग दक्षिण भारत की कविताएँ तथा दक्षिण भारत के लोग उत्तर भारत की कविताएँ बड़े चाव से पढ़ेंगे। दोनों में बड़े पैमाने पर सांस्कृतिक आदान-प्रदान होगा। तब अंग्रेजी भाषा प्रभुत्व जमाने की भाषा न होकर ज्ञानार्जन की भाषा होगी।
हम अंग्रेजी ही नहीं, यूरोप की अनेक भाषाओं का अध्ययन करेंगे। एशिया के भाषाओं के साहित्य से हमारा गहरा परिचय होगा, तब मानव संस्कृति की विशाल धारा में भारतीय साहित्य की गौरवशाली परम्परा का नवीन योगदान होगा।

MCQ and Summary for जित-जित मैं निरखत हूँ Class 10 Hindi Matric Godhuli

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MCQ and Summary for जित-जित मैं निरखत हूँ (Jit-Jit Main Nirkhat Hu) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

जित-जित में निरखत हूँ - पं० बिरजू महाराज MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. बिरजू महाराज की ख्याति किस रूप में हैं ?
(A) शहनाईवादक
(B) नर्तक
(C) तबलावादक
(D) संगीतकार
उत्तर
(B) नर्तक

2. बिरजू महाराज किस शैली के नर्तक हैं ?
(A) कथक
(B) मणिपुरी
(C) कुचिपुड़ी
(D) कारबा
उत्तर
(A) कथक

3. बिरजू महाराज का संबंध किस घराने से हैं?
(A) लखनऊ
(B) डुमराँव
(C) बनारस
(D) किसी भी नहीं
उत्तर
(A) लखनऊ

4. 'जित-जित मैं निरखत हूँ' पाठ का संबंध किससे है ?
(A) शंभु महाराज
(B) लच्छू महाराज
(C) बिरजू महाराज
(D) किशन महाराज
उत्तर
(C) बिरजू महाराज

5. बिरजू महाराज को संगीत नाटक अकाली मा किस में मिला?
(A) 37 वर्ष
(B) 27 वर्ष
(C) 47 वर्ष
(d) 57 वर्ष
उत्तर
(B) 27 वर्ष

6. "जित-जित मैं निरखत हूँ" पाठ साहित्य की कौन सी विधा है ?
(A) ललित निबंध
(B) कहानी
(C) कविता
(D) साक्षात्कार
उत्तर
(D) साक्षात्कार

7. रश्मि वाजपेयी किसकी शिष्या थी ?
(A) कुमार गंदर्भ की
(B) डॉ. सुमन की
(C) विध्यवासिनी देवी की
(D) पं० बिरणू महाराज की
उत्तर
(D) पं० बिरणू महाराज की

8. 'नटरंग' की संपादिका कौन है ?
(A) रश्मि वाजपेयी
(B) महादेवी वर्मा
(C) फणीश्वरनाथ 'रेणु'
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(A) रश्मि वाजपेयी

9. "जित-जित मैं निरखत हूँ" पाठ में बिरजू महाराज का क्या प्रस्तुत किया गया है ?
(A) कविता
(B) लेख
(C) जीवन-वृत्त
(D) कहानी
उत्तर
(C) जीवन-वृत्त

10. पंडित बिरजू महाराज लखनऊ घराने की किस पीढ़ी के कलाकार हैं ?
(A) छठी पीढ़ी
(B) सातवीं पीढ़ी
(C) नौवीं पीढ़ी
(D) आठवीं पीढ़ी
उत्तर
(B) सातवीं पीढ़ी

11. पं० बिरजू महाराज का जन्म कब हुआ?
(A) 4 फरवरी, 1938
(B) 4 फरवरी, 1937
(C) 4 फरवरी, 1936
(D) 4 फरवरी, 1935
उत्तर
(A) 4 फरवरी, 1938


जित-जित मैं निरखत हूँ का सारांश (Summary)

प्रस्तुत पाठ “जित-जित मैं निरखत हूँ” ( Jit Jit Main Nirkhat Hun ) में साक्षात्कार के माध्यम से पंडित बिरजू महाराज की जीवनी, उनका कला-प्रेम तथा नृत्यकला के क्षेत्र में उनकी महान उपलब्धि पर प्रकाश डाला गया है।
बिरजू महाराज का जन्म 4 फरवरी,1938 ई0 को लखनऊ के जफरीन अस्पताल में हुआ था। ये अपने माता-पिता के अंतिम संतान थे। इनका जन्म तीन बहनों के लम्बे अंतराल के बाद हुआ था। इनके जन्म के समय इनके माता की उम्र 28 वर्ष के करीब थी तथा बड़ी बहन 15 साल की थी। इनके पिता प्रख्यात नर्तक थे। इन्हें नृत्यकला विरासत में मिली थी। ये अपने पिताजी के साथ रामपुर के नवाब के दरबार में नृत्य-कार्यक्रम में जाया करते थे।
छः साल के उम्र में ही बिरजूजी नवाब साहब के प्रिय हो गये। इसलिए इन्हें अपने पिता के साथ वहाँ जाना पड़ता था तथा नाचना पड़ता था। इतनी कम उम्र में ही इनकी तनख्वाह निश्चित कर दी गई थी। इस नौकरी से छुट्टी पाने की इच्छा प्रकट की तो नवाब साहब ने फरमान जारी कर दिया कि यदि लड़का नहीं रहेगा तो पिता को भी नौकरी से हटा दिया जायेगा।
इस आदेश से पिताजी ने खुश होकर हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाया– तथा मिठाइयाँ भी बाँटी।
बिरजू महारज कहते हैं कि उन्हें नृत्य कला की तालीम कुछ क्लास में, कुछ लोगों द्वारा कहते, सुनते तथा देखकर सिखा। इसके साथ ही जहाँ- जहाँ पिताजी जाते थे, उनके साथ जाया करता था और कार्यक्रम में भाग लेता था।
पिता की मृत्यु 54 साल की उम्र में लु लगने के कारण हो गई। वे सहनशील व्यक्ति थे। अपना दुःख किसी को कहना पसंद नहीं करते थे। वे अतिप्रिय व्यक्ति थे।
पिता की मृत्यु के बाद माँ को दुःखी देखकर उदास रहने लगा, क्योंकि उनके मरते ही खराब दीन शुरु हो गये। भोजन-वस्त्र का घोर अभाव हो गया। शम्भू चाचा के शौकिया मिजाज के कारण कर्ज में डुब गये। उसी समय चाचा जी के दो बच्चों की मृत्यु भी हो गई। बच्चों की इस मृत्यु से हताश होकर वे अम्मा को डाइन कहने लगे। इसलिए मैं माँ को लेकर नेपाल चला गया। इसके बाद मुजफ्फरपुर गया। फिर अम्मा बाँस बरेली इसलिए ले गई कि वहाँ नाचेगा तो इनाम मिलेगा।
ऐसी हालत में आर्यानगर में 50 रुपये के दो ट्यूशन की। इस प्रकार 50 रुपये में काम करके किसी तरह पढ़ता रहा। सीताराम नामक लड़के को डांस सिखाता और वह उन्हें पढ़ा देता था। अर्थाभाव में ठीक ढंग से पढ़ाई नहीं हो पाई। नौकरी भी नहीं मिलती थी। पिताजी के समय से ही चाचाजी अलग रहते थे। दादी के साथ उनका अच्छा व्यवहार नहीं था।
चौदह साल की उम्र में पुनः लखनऊ आ गया और कपिला जी के सहयोग से संगीत भारती में काम करना आरंभ कर दिया। वहाँ निर्मला जी से मुलाकात हुई। उन्होनें कथक डांस करने की सलाह दी। मैंने नौकरी छोड़कर भारतीय कला मंदिर में क्लास करने लगा। वहाँ पूरे मन से तालीम सिखी। मेरी तालीम देखकर महाराज की तरफ वहाँ की लड़कीयाँ आकर्षित होने लगी।
ऑल बंगाल म्यूजिक कांफ्रेंस, कलकत्ता के नाच मेरे भाग्योदय की। वहाँ काफी प्रसंशा मिली। तमाम अखबारों ने मेरे कार्यक्रम की प्रसंशा की। ईश्वर की कृपा से कलकत्ता, बम्बई, मद्रास सभी जगह मेरी इज्जत होने लगी।
27 साल की उम्र में संगीत नाटक अकादमी अवार्ड मिला। मैं जर्मनी, जापान, हांगकांग, लाओस, बर्मा की यात्रा की, लेकिन एक बार अमेरिका में दो-चार जगह कार्यक्रम प्रस्तुत किया तो एक जगह वहाँ हाँफते हुए एक आदमी ने मेरे पास आया। मैंने कहा- मेरे साथ फोटो खिंचाना है क्या तुम्हें ? यस-यस अब लड़का बेहाल हो गया। इस प्रकार पाकिस्तान में कोई खातून थीं पूरे हॉल में उनकी आवाज आई सुब्हान अल्लाह। मतलब मेरे नाच के आशिक बहुत हैं। मेरे आशिक भी हैं।
बिरजू महाराज कहते हैं कि मुझे ऊँचाई तक ले जाने में अम्मा का बहुत बड़ा हाथ है। वहीं बुजुर्गों की तारीफ करके मुझे उत्साहित करती थीं। वहीं वाकई में गुरु और माँ थी।

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