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MCQ and Summary for आविन्यों Class 10 Hindi Matric Godhuli

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MCQ and Summary for आविन्यों (Aavinyo) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

आविन्यों - अशोक वाजपेयी MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. 'आविन्यों' पाठ का लेखक कौन हैं ?
(A) नलिन विलोचन शर्मा
(B) रामविलास शर्मा
(C) अशोक वाजपेयी
(D) यतीन्द्र मिश्र
उत्तर
(C) अशोक वाजपेयी

2. 'आविन्यों' पाठ गद्य की कौन-सी विद्या है ?
(A) कहानी
(B) यात्रा-वृत्तांत
(C) उपन्यास
(D) रेखा चित्र
उत्तर
(B) यात्रा-वृत्तांत

3. 'आविन्यों' किस नदी के किनारे बसा है ?
(A) गंगा
(B) नील
(C) दोन
(D) रोन
उत्तर
(D) रोन

4. 'ला शत्रूज' क्या है ?
(A) नगर
(B) गाँव
(C) ईसाई पाठ
(D) महाविद्यालय
उत्तर
(C) ईसाई पाठ

5. पिकासो क्या थे?
(A) कवि
(B) चित्रकार
(C) नाटककार
(D) उपन्यासकार
उत्तर
(B) चित्रकार

6. 'आविन्यों' की ख्याति किस रूप में हैं ?
(A) कला केन्द्र
(B) सिनेमाघर
(C) रंगमंच
(D) नदी
उत्तर
(C) रंगमंच

7. वाजपेयी ने 'ऑफिसर ऑफ द ऑर्डर ऑफ क्रॉस' सम्मान किस साल प्राप्त किया ?
(A) 1904
(B) 1924
(C) 2004
(D) 2016
उत्तर
(C) 2004

8. अशोक वाजपेयी का मूल निवास कहाँ है ?
(A) उत्तर प्रदेश
(B) बिहार
(C) झारखंड
(D) छत्तीसगढ़
उत्तर
(D) छत्तीसगढ़

9. 16 जनवरी, 1941 को अशोक वाजपेयी का जन्म छत्तीसगढ़ के किस स्थान में हुआ था ?
(A) सागर
(B) दुर्ग
(C) सतना
(D) कटनी
उत्तर
(B) दुर्ग

10. आविन्यों में उन्नीस दिनों के प्रवास के दौरान लेखक ने कितने गद्य की रचना की ?
(A) 27
(B) 28
(C) 29
(D) 30
उत्तर
(A) 27


11. 'ल मादामोजेल द आविन्यों' किसकी कृति है ?
(A) लियानार्दो द विंची
(B) पिकासो
(C) रवीन्द्रनाथ टैगोर
(D) विन्सेंट वैन गो
उत्तर
(B) पिकासो

12 ‘ला शत्रुज' का धार्मिक उपयोग कब से कब तक
(A) ग्यारहवीं सदी से फ्रेंच क्रांति तक
(B) बारहवीं सदी से फ्रेंच क्रांति तक
(C) तेरहवीं सदी से फ्रेंच क्रांति तक
(D) चौदहवीं सदी से फ्रेंच क्रांति तक
उत्तर
(D) चौदहवीं सदी से फ्रेंच क्रांति तक


आविन्यों- लेखक परिचय

अशोक वाजपेयी का जन्म 16 जनवरी 1941 ई० में दुर्ग, छत्तीसगढ़ में हुआ, किंतु उनका ‘ मूल निवास सागर, मध्यप्रदेश है । उनकी माता का नाम निर्मला देवी और पिता का नाम परमानंद वाजपेयी है । उनकी प्रारंभिक शिक्षा गवर्नमेंट हायर सेकेंड्री स्कूल, सागर से हुई । फिर सागर विश्वविद्यालय से उन्होंने बी० ए० और सेंट स्टीफेंस कॉलेज, दिल्ली से अंग्रेजी में एम० ए० किया। उन्होंने वृत्ति के रूप में भारतीय प्रशासनिक सेवा को अपनाया । वे भारतीय प्रशासनिक सेवा के कई पदों पर रहे और महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति पद से सेवानिवृत्त हुए । संप्रति, वे दिल्ली में भारत सरकार की कला अकादमी के निदेशक हैं।

अशोक वाजपेयी की लगभग तीन दर्जन मौलिक और संपादित कृतियाँ प्रकाशित हैं। ‘शहर अब भी संभावना है’, एक पतंग अनंत में’, ‘तत्पुरुष’, ‘कहीं नहीं वहीं’, ‘बहुरि अकेला’, थोड़ी सी जगह’, ‘दुख चिट्ठीरसा है’ आदि उनके कविता संकलन हैं । ‘फिलहाल, ‘कुछ पूर्वग्रह’, ‘समय से बाहर’,’कविता का गल्प’, ‘कवि कह गया है’ आदि उनकी आलोचना की पुस्तकें हैं । उनके द्वारा संपादित पुस्तकों की सूची भी लंबी है – ‘तीसरा साक्ष्य’, ‘साहित्य विनोद’, ‘कला विनोद’, ‘कविता का जनपद’, मुक्तिबोध, शमशेर और अज्ञेय की चुनी हुई कविताओं का संपादन आदि। उन्होंने कई पत्रिकाओं का भी संपादन किया है जिनमें ‘समवेत’, ‘पहचान’, ‘पूर्वग्रह’, ‘बहुवचन’ ‘कविता एशिया’, ‘समास’ आदि प्रमुख हैं । अशोक वाजपेयी को साहित्य अकादमी पुरस्कार दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान, फ्रेंच सरकार का ऑफिसर आव् द आर्डर आव् क्रॉस 2004 सम्मान आदि प्राप्त हो चुके हैं।

सर्जक साहित्यकार अशोक वाजपेयी द्वारा रचित प्रस्तुत पाठ में एक संश्लिष्ट रचनाधर्मिता की अंतरंग झलक है । यह पाठ उनके ‘आविन्यों’ नामक गद्य एवं कविता के सर्जनात्मक संग्रह से संकलित है । इसी नाम के संग्रह में उनकी सर्जनात्मक गद्य की कुछ रचनाएँ और कविताएँ हैं जिनमें से दोनों विधाओं की दो रचनाओं के साथ पुस्तक की भूमिका भी किंचित संपादित रूप में यहाँ प्रस्तुत है । आविन्यों दक्षिणी फ्रांस का एक मध्ययुगीन इसाई मठ है जहाँ लेखक ने बीस-एक दिनों तक एकांत रचनात्मक प्रवास का अवसर पाया था ।

प्रवास के दौरान लगभग प्रतिदिन गद्य और कविताएँ लिखी गईं। इस तरह हिंदी ही नहीं, भारत से भिन्न स्थान और परिवेश के एकांत प्रवास में एक निश्चित स्थान और समय से अनुबद्ध मानस के सर्जनात्मक अनुष्ठान का साक्षी यह पाठ एक वैश्विक जागरूकता और संस्कृतिबोध से परिपूर्ण रचनाकार के मानस की अंतरंग झलक पेश करते हुए यह दिखाता है कि रचनाएँ कैसे रूप-आकार ग्रहण करती हैं। कोई भी रचना महज एक शब्द व्यवस्था भर नहीं होती, उसकी निर्माण प्रक्रिया में रचनाकार की प्रतिभा, उसके जटिल मानस के साथ स्थान और परिवेश की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण होती है।


आविन्यों- पाठ परिचय

प्रस्तुत पाठ ’आविन्यों’ इसी नाम के गद्य एवं कविता के सर्जनात्मक संग्रह से संकलित है। आविन्यों दक्षिण फ्रांस का एक मध्ययुगीन ईसाई मठ हैं जहाँ लेखक ने इक्कीस दिनों तक एकान्त रचनात्मक प्रवास का अवसर पाया था। प्रवास के दौरान प्रतिदिन गद्य एवं कविताएँ लिखी थी।


आविन्यों का सारांश (Summary)

प्रस्तुत पाठ ‘ आविन्यों ‘ (Aavinyon) में अशोक वाजपेयी ने अपनी यात्रा आविन्यों के क्रम में हुए अनुभवों का वर्णन किया है।
दक्षिण फ्रांस में रोन नदी के किनारे अवस्थित आविन्यों नामक एक पुरानी शहर है, जो कभी पोप की राजधानी थी। अब गर्मियों में फ्रांस तथा यूरोप का एक प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय रंग-समारोह का आयोजन हर वर्ष होता है।
रोन नदी के दूसरी ओर एक नई बस्ती है, जहाँ फ्रेंच शासकों ने पोप की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए एक किला बनवाया था। बाद में, वहाँ ’ला शत्रूज’ काथूसियन सम्प्रदाय का एक ईसाई मठ बना, जिसका धार्मिक उपयोग चौदहवीं शताब्दी से फ्रेंच क्रांति तक होता रहा।
यह सम्प्रदाय मौन में विश्वास करता है, इसलिए सारा स्थापत्य मौन का ही स्थापत्य था। इन इमारतों पर साधारण लोगों ने कब्जा कर लिया था और रहने लगे थे।
यह केन्द्र आजकल रंगमंच और लेखन से जुड़ा हुआ है। वहाँ संगीतकार, अभिनेता तथा नाटककार पुराने-ईसाई चैम्बर्स में रचनात्मक कार्य करते हैं।
सप्ताह के पाँच दिनों में शाम को सबको एक स्थान पर रात का भोजन करने की व्यवस्था है। अन्य दिन नास्ता एवं भोजन खुद बनाकर खाते हैं। यह बेहद शांत स्थान है। लेखक को फ्रेंच सरकार के सौजन्य से ‘ला शत्रूज’ में रहकर कुछ काम करने का मौका मिला था। इसलिए यह अपने साथ हिंदी का एक टाइपराइटर, तीन-चार किताबें तथा कुछ संगीत के टेप्स लेते गये थे।
उन्नीस दिनों के प्रवास में इन्होंने 35 कविताएँ तथा 27 गद्य रचना रचनाएँ लिखी। लेखक को यह स्थान काव्य की दृष्टी से अति उपयुक्त लगा। इसी विशेषता के कारण उसने इतने कम समय में इतने अधिक लिख लिया।
उसने यह अनुभव किया कि यहाँ की हर चीझों में अद्भुत सजीवता है। इसी सजीवता, मनोरमता के फलस्वरूप इतनी कम अवधि में 35 कविताएँ तथा 27 गद्य की रचनाएँ की।
’नदी के किनारे नदी है’ तात्पर्य यह है कि एक तरफ एक छोटा सा गाँव ’वीरनब्ब’ और दूसरी तरफ आविन्यों अपनी सहजता, सुन्दरता, नीरवता तथा संवेदनशीलता पर्यटकों को इस प्रकार भाव-विभोर करते हैं कि रोन नदी का कल-कल, छल-छल धारा स्थिर किंतु किनारा शांतिमान् प्रतित होता है।
लेखक स्वयं स्वीकार करता है कि नदी के समान ही कविता सदियों से हमारे साथ रही है। जिस प्रकार जहाँ-तहाँ से जल आकर नदि में मिलते रहते हैं और सागर में समाहित होते रहते हैं, उसी प्रकार कवि के हृदय में भिन्न-भिन्न प्रकार के भाव उठते रहते हैं और वहीं भाव काव्य रूप में परिणत होते रहते हैं।
निष्कर्षतः न तो नदी रिक्त होती है और न ही कविता शब्द रिक्त होती है । तात्पर्य यह कि सहृदय व्यक्ति प्राकृतिक सुन्दरता के आकर्षण से बच नहीं सकते।


MCQ and Summary for मछली Class 10 Hindi Matric Godhuli

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MCQ and Summary for मछली (Machhali) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

मछली - विनोद कुमार शुक्ल MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. 'मछली' किस कहानीकार की रचना है ?
(A) नलिन विलोचन शर्मा
(B) प्रेमचंद
(C) अज्ञेय
(D) विनोद कुमार शुक्ल
उत्तर
(D) विनोद कुमार शुक्ल

2 'मछली' किस प्रकार की रचना है?
(A) सामाजिक
(B) मनोवैज्ञानिक
(C) ऐतिहासिक
(D) वैज्ञानिक
उत्तर
(A) सामाजिक

3. 'महाविद्यालय' पुस्तक से कौन-सी रचना संकलित है ?
(A) विष के दाँत
(B) मछली
(C) नौबतखाने में इबादत
(D) शिक्षा और संस्कृति
उत्तर
(B) मछली

4. 'मछलो' कहानी में किस वर्ग का जीवन वर्णित है ?
(A) उच्च वर्ग
(B) मध्यम वर्ग
(C) निम्न वर्ग
(D) मजदूर वर्ग
उत्तर
(B) मध्यम वर्ग

5. संतू-नरेन आपस में कौन है ?
(A) भाई-भाई
(B) चाचा-भतीजा
(C) भाई-बहन
(D) जीजा-साला
उत्तर
(A) भाई-भाई

6. विनोद कुमार शुक्ल कहानीकार उपन्यासकार के अलावा और क्या है ?
(A) कवि
(B) नाटककार
(C) आलोचक
(D) राजनेता
उत्तर
(D) राजनेता

7. 'जय-हिन्द' शुक्ल जी का क्या है ?
(A) पद्य
(B) काव्य संग्रह
(C) गद्य
(D) गद्य संग्रह
उत्तर
(B) काव्य संग्रह

8. विनोद कुमार शुक्ल कहाँ के निवासी हैं ?
(A) छत्तीसगढ़
(B) उत्तर प्रदेश
(C) मध्य प्रदेश
(D) बिहार
उत्तर
(A) छत्तीसगढ़

9. शुक्लजी के गाँव का क्या नाम है ?
(A) छत्तीसगढ़
(B) राजनाँद गाँव
(C) मसौढ़ा
(D) पटना
उत्तर
(B) राजनाँद गाँव

10. 'पेड़ का कमरा' किसकी रचना है ?
(A) विनोद कुमार शुक्ल
(B) अशोक वाजपेयी
(C) अमरकांत
(D) यतीन्द्र मिश्र
उत्तर
(A) विनोद कुमार शुक्ल


मछली- लेखक परिचय

विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 ई० में राजनांदगाँव, छत्तीसगढ़ में हुआ । । उन्होंने वृत्ति के रूप में प्राध्यापन को अपनाया । वे इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय में एसोसिएट . प्रोफेसर थे । वे दो वर्षों (1994-1996 ई०) तक निराला सृजनपीठ में अतिथि साहित्यकार भी रहे । उनका पहला कविता संग्रह ‘लगभग जयहिंद’ पहचान सीरीज के अंतर्गत 1971 में प्रकाशित हुआ। उनके अन्य कविता संग्रह हैं – ‘वह आदमी नया गरम कोट पहिनकर चला गया विचार की तरह’, ‘सबकुछ होना बचा रहेगा’ और ‘अतिरिक्त नहीं । उनके तीन उपन्यास – ‘नौकर की कमीज’, ‘खिलेगा तो देखेंगे’ और ‘दीवार में एक खिडकी रहती थी’ तथा दो कहानी संग्रह – ‘पेड़ पर कमरा’ और ‘महाविद्यालय’ भी प्रकाशित हो चुके हैं। उनके उपन्यासों का कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। इतालवी भाषा में उनकी कविताओं एवं एक कहानी संग्रह ‘पेड़ पर कमरा’ का अनुवाद हुआ है । ‘नौकर की कमीज’ उपन्यास पर मणि कौल द्वारा फिल्म का भी निर्माण हुआ है । विनोद कुमार शुक्ल को 1992 ई० में रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार, 1997 ई० में दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान और 1990 ई० में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं।

बीसवीं शती के सातवें-आठवें दशक में विनोद कुमार शुक्ल एक कवि के रूप में सामने आए थे। कुछ ही समय बाद उसी दौर में उनकी दो-एक कहानियाँ भी सामने आई थीं । धारा और प्रवाह से बिल्कुल अलग, देखने में सरल किंतु बनावट में जटिल अपने न्यारेपन के कारण . उन्होंने सुधीजन का ध्यान आकृष्ट किया था । यह खूबी भाषा या तकनीक पर निर्भर नहीं थी। इसकी जड़ें संवेदना और अनुभूति में थीं और यह भीतर से पैदा हुई खासियत थी । तब से लेकर आज तक वह अद्वितीय मौलिकता अधिक स्फुट, विपुल और बहुमुखी होकर उनकी कविता, उपन्यास और कहानियों में उजागर होती आयी है।।

प्रस्तुत कहानी कहानियों के उनके संकलन ‘महाविद्यालय’ से ली गयी है । कहानी बचपन की स्मृति के भाषा-शिल्प में रची गयी है और इसमें एक किशोर की वयःसंधिकालीन स्मृतियाँ, दृष्टिकोण और समस्याएँ हैं । कहानी एक छोटे शहर के निम्न मध्यवर्गीय परिवार के भीतर के वातावरण, जीवन यथार्थ और संबंधों को आलोकित करती हुई लिंग-भेद की समस्या को भी स्पर्श करती है। घटनाएँ, जीवन प्रसंग आदि के विवरण एक बच्चे की आँखों देखे हुए और उसी के मितकथन से उपजी सादी भाषा में हैं । कहानी का समन्वित प्रभाव गहरा और संवेदनात्मक है। कहानी अपनी प्रतीकात्मकता के कारण मन पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ती है।


मछली- पाठ परिचय

प्रस्तुत पाठ ’मछली’ कहानी संकलन ’महाविद्यालय’ से ली गई है। इस कहानी में एक छोटे शहर के निम्न मध्यमवर्गीय परिवार के भीतर के वातावरण, जीवन यर्थाथ तथा संबंधों को आलोकित करती हुई लिंग-भेद को भी स्पर्श करती है।


मछली का सारांश (Summary)

प्रस्तुत पाठ ’मछली’ संवेदना पूर्ण कहानी है। इसमें मछली के माध्यम से लोगों के मनोभाव को व्यक्त किया गया है।
बच्चे अपने पिता के साथ मछली खरीदने बाजार जाते हैं। तीन मछलीयाँ खरीदी जाती है, जिनमें एक खरीदने के वक्त ही मर गई थी। बच्चे झोले में मछलीयों को रखकर गली से होकर घर वापस लौटते हैं। बूंदे पड़ने के कारण बाजार में भीड़ घट रही थी। बच्चे भी इसलिए दौड़ रहे थे कि मछलीयाँ बिना पानी के झोले में ही न मर जाएँ। झोले में रखी तीन मछलीयों में से दो जीवित थी, उनकी तड़प के झटके बच्चे महसुस कर रहे थे।
अचानक जोरों से वर्षा होने लगी। बच्चे झोले के मुँह इसलिए फैला दिए कि मछलीयों में थोड़ा जान आ जाए, क्योंकि उनकी इच्छा थी की उनमें से एक मछली कुएँ मे पाली जाए और उसके साथ खेली जाए।
 वर्षा में दोनों भाई भींगने से थर्र-थर कांपने लगे। स्नानघर का दरवाजा बंद करके तीनों मछलीयों को बाल्टी में डाल दिया। संतू ठंड से कांप रहा था। माँ की मार के भय से दोनों भाई कमीज एवं पेंट निचोड़कर बाल्टी के पास बैठ गये। संतु बड़े प्यार से मछली की ओर देख रहा था।
बड़े भाई ने कहा इसमें से जीवित एक मछली पिताजी से मांग लेंगे। संतू मछली को छूना चाहता था, किंतु काटने के डर से नहीं छूता था। तभी लेखक ने उसे छूने को कहा। उसने सहमते हुए एक मछली को छूआ, लेकिन डर कर अपना हाथ खींच लिया।
लेखक ने बाल्टी से मछली निकाली और पुनः बाल्टी में डाल दी। इस क्रम में मछली उछली तो पानी के छींटे उन पर पड़े। संतु चौककर पीछे हट गया।
लेखक मछली की आँखों में अपना छाया देखना चाहता था क्योंकि दीदी का कहना था कि मरी हुई मछली की आँखों में झाँकने से अपनी परछाई नहीं दिखती। इसलिए पहले संतु का झाँकने को कहा, किंतु उससे कोई जवाब नहीं मिला तो लेखक मछली को अपने चेहरे के समीप लाकर देखा तो उसे उसकी आँख में धुंधली-सी परछाई दिखी, लेकिन ये परछाई थी कि मछली के आँखों का रंग था, यह समझ नहीं पाया। इसके बाद दीदी को बुलाने को कहा, लेकिन दीदी के सोने की बात सुनकर वह आश्चर्य में पड़ गया। माँ को मसाला पीसते हुए देखकर दुःखी हो गया कि मछली आज ही कट जाएगी। संतु भी उदास हो गया।
वर्षा बंद हो गई तब लेखक ने आँगन में जहाँ मछली काटी जाती थी, वहाँ धुला हुआ लकड़ी का तख्ता देखा। पास में थोड़ी चूल्हे की राख थी। स्नानघर का दरवाजा खुला हुआ था। माँ को मछली बनाना अच्छा नहीं लगता था। घर में पिताजी ही केवल मछली खाते थे। भग्गु ही मछली काटता तथा बनाता था। स्नानघर से भग्गु का मछली लाते देखकर लेखक के मन में उदासी छा गई, क्योंकि कुएँ में मछली पालने का उत्साह बुझ-सा रहा था। दीदी ने हम दोनों भाईयों को कपड़े पहनाए, बाल संवारे।
लेखक ने दीदी से कहा- ’दीदी ! आज मछली आई है। तीन हैं। एक शायद मर गयी है। उन्हें अभी भग्गु काटेगा। पहले दीदी चुप रही, फिर कमरे का दरवाजा बन्द करने की बात कहकर सो गई। भग्गु ने मछली के पूरे शरीर में राख मलकर फिर उसकी गर्दन काट डाली। तभी संतु एक मछली लेकर सरपट बाहर भागा।
भग्गु भी संतु से मछली छीनने दौड़ पड़ा। संतु दोनों हाथों से मछली को अपने पेट में छिपाए हुए था और भग्गु उससे मछली छीनने की कोशिश कर रहा था। उसे डर का था कि संतु कहीं मछली कुएँ में न डाल दें। वह पिताजी के डाँट के भय से परेशान था।
एक तरफ घर के अंदर पिताजी जोर-जोर से चिल्ला रहे थे, दूसरी ओर दीदी की सिसकियाँ बढ़ गई थी। पिताजी दहाड़कर कह रहे थे- ’भग्गु! अगर नहान घर में घुसे तो साले के हाथ-पैर तोड़कर बाहर फेंक देना। बाद में जो होगा मैं भुगत लूँगा।
भग्गु चुपचाप सिर हिलाकर चला गया। संतु डर से सहमा हुआ था और उसके कपड़े कीचड़ से गंदे हो गये थे। स्नानघर में ही नहीं, पूरे घर में मछलीयों जैसी गंध आ रही थी।

MCQ and Summary for नौबतखाने में इबादत Class 10 Hindi Matric Godhuli

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MCQ and Summary for नौबतखाने में इबादत (Naubatkhane me Ibadat) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

नौबतखाने में इबादत - यतीन्द्र मिश्र MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. नौबतखाने में इबादत' पाठ के लेखक कौन हैं ?
(A) विनोद कुमार शुक्ल
(B) यतीन्द्र मिश्र
(C) अशोक वाजपेयी
(D) अमर कांत
उत्तर
(B) यतीन्द्र मिश्र

2. बिस्मिल्ला खाँ का असली नाम क्या था ?
(A) शम्सुद्दीन
(B) सादिक हुसैन
(C) पीरबख्श
(D) अमीरुद्दीन
उत्तर
(D) अमीरुद्दीन

3. बिस्मिल्ला खाँ का जन्म कहाँ हुआ था ?
(A) काशी में
(B) दिल्ली में
(C) डुमराँव में
(D) पटना में
उत्तर
(C) डुमराँव में

4. बिस्मिल्ला खाँ रियाज के लिए कहाँ जाते थे ?
(A) बालाजी मंदिर
(B) संकटमोचन
(C) विश्वनाथ मंदिर
(D) दादा के पास
उत्तर
(A) बालाजी मंदिर

5. 'नरकट' का प्रयोग किस वाद्य-यंत्र में होता है ?
(A) शहनाई
(B) मृदंग
(C) ढोल
(D) बिगुल
उत्तर
(A) शहनाई

6. भारत सरकार ने विस्मिल्ला खाँ को किस सम्मान से अलंकृत किया ?
(A) बिहार रल
(B) भारत रत्न
(C) वाद्य रत्न
(D) शहनाई रत्न
उत्तर
(B) भारत रत्न

7. बिस्मिल्ला खाँ के पिता का क्या नाम था ?
(A) उस्ताद
(B) पैगम्बर
(C) बश
(D) उस्ताद पैगम्बर बख्श खाँ
उत्तर
(D) उस्ताद पैगम्बर बख्श खाँ

8. अमरुद्दीन भागे चलकर किस नाम में 'व्यात हुआ?
(A) बिरजू महाराज
(B) ला महाराज
(C) भिरिमल्ला खाँ
(D) इनमें सभी
उत्तर
(C) भिरिमल्ला खाँ

9. यतीन्द्र मिश्र का अयोध्या से क्या संबंध है?
(A) राम जन्म भूमि को लेकर
(B) लेखक की जन्म स्थली के कारण
(C) उत्तर प्रदेश का प्राचीन शहर के कारण
(D) त्रिवेणी तट के कारण
उत्तर
(B) लेखक की जन्म स्थली के कारण

10. नौबतखाने में इबादत साहित्य की कौन-सी विधा है ?
(A) निबंध
(B) कहानी
(C) व्यक्तिचित्र
(D) साक्षात्कार
उत्तर
(C) व्यक्तिचित्र

11. विस्मिल्ला खां के साथ किस मुस्लिम पर्व का नाम गुड़ा हुआ है ?
(A) ईद
(B) बकरीद
(C) शबे बारात
(D) मुहर्रम
उत्तर
(D) मुहर्रम


नौबतखाने में इबादत- लेखक परिचय

यतींद्र मिश्र का जन्म सन् 1977 में अयोध्या, उत्तरप्रदेश में हुआ । उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ से हिंदी भाषा और साहित्य में एम० ए० किया । वे साहित्य, संगीत, सिनेमा, नृत्य और चित्रकला के जिज्ञासु अध्येता हैं । वे रचनाकार के रूप में मूलतः एक कवि हैं । उनके अबतक तीन काव्य-संग्रह : ‘यदा-कदा’, ‘अयोध्या तथा अन्य कविताएँ’, और ‘ड्योढ़ी पर आलाप’ प्रकाशित हो चुके हैं । कलाओं में उनकी गहरी अभिरुचि है । इसका ही परिणाम है कि उन्होंने प्रख्यात शास्त्रीय गायिका गिरिजा देवी के जीवन और संगीत साधना पर एक पुस्तक ‘गिरिजा’ लिखी । भारतीय नृत्यकलाओं पर विमर्श की पुस्तक है ‘देवप्रिया’, जिसमें भरतनाट्यम और ओडिसी की प्रख्यात नृत्यांगना सोनल मान सिंह से यतींद्र मिश्र का संवाद संकलित है। यतींद्र मिश्र ने स्पिक मैके के लिए ‘विरासत 2001’ के कार्यक्रम के लिए. रूपंकर कलाओं पर केंद्रित पत्रिका ‘थाती’ का संपादन किया है। संप्रति, वे अर्द्धवार्षिक पत्रिका ‘सहित’ का संपादन कर रहे हैं । वे साहित्य और कलाओं के संवर्धन एवं अनुशीलन के लिए एक सांस्कृतिक न्यास ‘विमला देवी फाउंडेशन’ का संचालन 1999 ई० से कर रहे हैं।

यतींद्र मिश्र ने रीतिकाल के अंतिम प्रतिनिधि कवि द्विजदेव की ग्रंथावली का सह-संपादन भी किया है। उन्होंने हिंदी के प्रसिद्ध कवि कुँवरनारायण पर केंद्रित दो पुस्तकों के अलावा हिंदी सिनेमा के जाने-माने गीतकार गुलजार की कविताओं का संपादन ‘यार जुलाहे’ नाम से किया है। यतींद्र मिश्र को अबतक भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, भारतीय भाषा परिषद् युवा पुरस्कार, राजीव गाँधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार, रजा पुरस्कार, हेमंत स्मृति कविता पुरस्कार, ऋतुराज सम्मान आदि कई पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। उन्हें केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी, नयी दिल्ली और सराय, नई दिल्ली की फेलोशिप भी मिली है।

‘नौबतखाने में इबादत’ प्रसिद्ध शहनाईवादक भारतरत्न उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ पर रोचक शैली में लिखा गया व्यक्तिचित्र है । इस पाठ में बिस्मिल्ला खाँ का जीवन – उनकी रुचियाँ, अंतर्मन की बुनावट, संगीत की साधना आदि गहरे जीवनानुराग और संवेदना के साथ प्रकट हुए हैं।


नौबतखाने में इबादत- पाठ परिचय

रस्तुत पाठ ’नौबतखाने में इबादत’ प्रसिद्ध शहनाई वादक भारतरत्न उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ पर रोचक शैली में लिखा गया व्यक्तिचित्र है। इस पाठ में बिस्मिल्ला खाँ का जीवन- उनकी रुचियाँ, अंतर्मन की बुनावट, संगीत की साधना आदि गहरे जीवनानुराग और संवेदना के साथ प्रकट हुए हैं।


नौबतखाने में इबादत का सारांश (Summary)

प्रस्तुत पाठ ’नौबतखाने में इबादत’ में शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की जीवनचर्या का उत्कृष्ट वर्णन किया गया है। इन्होंने किस प्रकार शहनाई वादन में बादशाहत हासिल की, इसी का लेखा-जोखा इस पाठ में है। 1916 ई० से 1922 ई० के आसपास काशी के पंचगंगा घाट स्थित बालाजी मंदिर के ड्योढ़ी के उपासना-भवन से शहनाई की मंगलध्वनि निकलती है। उस समय बिस्मिल्ला खाँ छः साल के थे। उनके बड़े भाई शम्सुद्दीन के दोनों मामा अलीबख्श तथा सादिक हुसैन देश के प्रसिद्ध सहनाई वादक थे।
उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का जन्म डुमराँव (बिहार) में एक संगीत-प्रमी परिवार में 1916 ई0 में हुआ। इनके बचपन का नाम कमरूद्दीन था। –वह छोटी उम्र में ही अपने ननिहाल काशी चले गये और वहीं अपना अभ्यास शुरू किया। 14 साल की उम्र में जब वह बालाजी के मंदिर के नौबतखाने में रियाज के लिए जाते थे, तो रास्ते में रसूलनबाई और बतूलनबाई का घर था। इन्होंने अनेक साक्षात्कारों में कहा है कि इन्ही दोनों गायिकी-बहनों के गीत से हमें संगीत के प्रति आसक्ति हुई।
शहनाई को ’शाहनेय’ अर्थात् ’सुषिर वाद्यों में शाह’ की उपाधि दी गई है। अवधी पारंपरिक लोकगीतों और चैती में शहनाई का उल्लेख बार-बार मिलता
बिस्मिल्ला खाँ 80 वर्षों से सच्चे सुर की नेमत माँग रहें हैं तथा इसी की प्राप्ति के लिए पाँचों वक्त नमाज और लाखों सजदे में खुदा के नजदिक गिड़गिड़ाते हैं। उनका मानना है कि जिस प्रकार हिरण अपनी नाभि की कस्तूरी की महक को जंगलों में खोजता फिरता है, उसी प्रकार कमरूद्दीन भी यहीं सोचते आया है कि सातों सुरों को बरतने की तमीज उन्हें सलीके से अभी तक क्यों नहीं आई।
बिस्मिल्ला खाँ और शहनाई के साथ जिस मुस्लिम पर्व का नाम जुड़ा है, वह मुहर्रम है। इस पर्व के अवसर पर हजरत इमाम हुसैन और उनके कुछ वंशजों के प्रति दस दिनों तक शोक मनाया जाता है। इस शोक के समय बिस्मिल्ला खाँ के खानदान का कोई भी व्यक्ति न तो शहनाई बजाता है और न ही किसी संगीत कार्यक्रम में भाग लेता है।
आठवीं तारीख खाँ साहब के लिए खास महत्त्व की होती थी। इस दिन वे खड़े होकर शहनाई बजाते और दालमंडी से फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए, नौहा बजाते थे।
बिस्मिल्ला खाँ अपनी पुरानी यादों का स्मरण करके खिल उठते थे। बचपन में वे फिल्म देखने के लिए मामू, मौसी तथा नानी से दो-दो पैसे लेकर सुलोचना की नई फिल्म देखने निकल पड़ते थे।
बिस्मिल्ला खाँ मुस्लमान होते हुए भी सभी धर्मों के साथ समान भाव रखते थे। उन्हें काशी विश्वनाथ तथा बालाजी के प्रति अपार श्रद्धा थी। काशी के संकटमोचन मन्दिर में हनुमान जयन्ती के अवसर पर वे शहनाई अवश्य बजाते थे। काशी से बाहर रहने पर वे कुछ क्षण काशी की दिशा में मुँह करके अवश्य बजाते थे।
उनका कहना था – ’क्या करें मियाँ, काशी छोड़कर कहाँ जाएँ, गंगा मइया यहाँ, बाबा विश्वनाथ यहाँ, बालाजी का मन्दिर यहाँ।’ काशी को संगीत और नृत्य का गढ़ माना जाता है। काशी में संगीत, भक्ति, धर्म, कला तथा लोकगीत का अद्भुत समन्वय है। काशी में हजारों सालों का इतिहास है जिसमें पंडित कंठे महाराज, विद्याधरी, बड़े रामदास जी और मौजद्दिन खाँ थे।
बिस्मिल्ला खाँ और शहनाई एक दुसरे के पर्याय हैं। बिस्मिल्ला खाँ का मतलब बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई।
एक शिष्या ने उनसे डरते-डरते कहा- ’बाबा आपको भारतरत्न मिल चूका है, अब आप फटी लुंगी न पहना करें।’ तो उन्होंने कहा- ’भारतरत्न हमको शहनाई पर मिला है न कि लुंगी पर। लुंगीया का क्या है, आज फटी — है तो कल सिल जाएगी। मालिक मुझे फटा सूर न बक्शें।
निष्कर्षतः बिस्मिल्ला खाँ काशी के गौरव थे। उनके मरते ही काशी में । संगीत, साहित्य और अदब की बहुत सारी परम्पराएँ लुप्त हो चुकी हैं। वे दो कौमों के आपसी भाईचारे के मिसाल थे। खाँ साहब शहनाई के बादशाह थे। यही कारण है कि इन्हें भारत रत्न, पद्मभूषण, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार तथा अनेक विश्वविद्यालय की मानद उपाधियाँ मिलीं। वे नब्बे वर्ष की आयु में 21 अगस्त, 2006 को खुदा के प्यारे हो गए।

MCQ and Summary for शिक्षा और संस्कृति Class 10 Hindi Matric Godhuli

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MCQ and Summary for शिक्षा और संस्कृति (Shiksha aur Sanskriti) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

शिक्षा और संस्कृति - महात्मा गाँधी MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. 'शिक्षा और संस्कृति' पाठ के लेखक कौन हैं ?

(A) रवीन्द्रनाथ ठाकुर
(B) भीमराव अम्बेडकर
(C) मैक्समूलर,
(D) महात्मा गांधीजी
उत्तर
(D) महात्मा गांधीजी

2. 'शिक्षा और संस्कृति' शीर्षक पाठ गद्य की कौन-सा विद्या है ?
(A) निबंध
(B) गद्य काव्य
(C) रेखाचित्र
(D) साक्षात्कार
उत्तर
(A) निबंध

3. गांधीजी को 'महात्मा' किसने कहा ?
(A) जवाहरलाल नेहरू
(B) रवीन्द्रनाथ ठाकुर
(C) राजेन्द्र प्रसाद
(D) सरदार पटेल
उत्तर
(B) रवीन्द्रनाथ ठाकुर

4. गाँधीजी की दृष्टि में उदात्त और बढ़िया शिक्षा क्या है ?
(A) अहिंसक प्रतिरोध
(B) अक्षर-ज्ञान
(C) अनुवाद
(D) अंग्रेजी की शिक्षा
उत्तर
(B) अक्षर-ज्ञान

5. गाँधीजी शिक्षा का उद्देश्य क्या मानने धे?
(A) नौकरी पाना
(B) वैज्ञानिक बनना
(C) चरित्र-निर्माण
(D) यांत्रिक दक्षता
उत्तर
(C) चरित्र-निर्माण

6. टॉल्सटाय कौन थे ?
(A) रूसी लेखक
(B) चीनी लेखक
(C) अंग्रेजी लेखक
(D) फ्रेंच लेखक
उत्तर
(A) रूसी लेखक

7. गाँधी जी की हत्या किसने की?
(A) पागल ने
(B) जानवर ने
(C) विमान हादसे ने
(D) नाथूराम गोडसे ने
उत्तर
(D) नाथूराम गोडसे ने

8. महात्मा गाँधी कहाँ के आश्रम में रहते थे ?
(A) प. चम्पारण
(B) शांति निकेतन
(C) साबरमती
(D) अघोराश्रम
उत्तर
(C) साबरमती

9. पोरबंदर कहाँ स्थित है ?
(A) गुजरात में
(B) मध्य प्रदेश में
(C) बिहार में
(D) पंजाब में
उत्तर
(A) गुजरात में

10. गाँधी जी का जन्म कहाँ हुआ ?
(A) पोरबंदर
(B) मल्लिपट्टम्
(C) पोलियर
(D) अहमदाबाद
उत्तर
(A) पोरबंदर

11. गाँधीजी 1888 में पढ़ने के लिए कहाँ गए ?
(A) अमेरिका
(B) फ्रांस
(C) लंदन
(D) रूस
उत्तर
(C) लंदन

12. गाँधी जी का दक्षिण अफ्रीका प्रवास कब से कब तक था ?
(A) 1893 ई. से 1914 ई. तक
(B) 1892 ई. से 1913 ई. तक
(C) 1894 ई० से 1914 ई. तक
(D) 1893 ई. से 1913 ई. तक
उत्तर
(A) 1893 ई. से 1914 ई. तक

13. आध्यात्मिक शिक्षा से गाँधीजी का क्या अधिप्राय है ?
(A) पुस्तक की शिक्षा
(B) यंत्रों की शिक्षा
(C) बुद्धि की शिक्षा
(D) हृदय की शिक्षा
उत्तर
(D) हृदय की शिक्षा

14. महात्मा गाँधी के अनुसार उदात्त बबलिया शिक्षा क्या है?
(A) आध्यात्मिक शिक्षा
(B) यांत्रिक शिक्षा
(C) अहिंसक प्रतिरोध
(D) साक्षरता
उत्तर
(C) अहिंसक प्रतिरोध

शिक्षा और संस्कृति- लेखक परिचय

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 ई० में पोरबंदर, गुजरात में हुआ था । उनके पिता का नाम करमचंद गाँधी और माता का नाम पुतलीबाई थां । उनकी प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर और उसके आस-पास हुई । 4 दिसंबर 1888 ई० में वे वकालत की पढ़ाई के लिए । यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन यूनिवर्सिटी, लंदन गए । 1883 ई०में कम उम्र में ही उनका विवाह कस्तूरबा से हुआ जो स्वाधीनता संग्राम में उनके साथ कदम-से-कदम मिलाकर चलीं । गाँधीजी के जीवन में दक्षिण अफ्रीका (1893-1914 ई०) के प्रवास का ऐतिहासिक महत्त्व है । वहीं उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ अहिंसा का पहला प्रयोग किया ।

1915 ई० में गाँधीजी भारत लौट आए और स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े। आजादी की लड़ाई में उन्होंने. सत्य के प्रयोग किए । अहिंसा और सत्याग्रह उनका सबसे बड़ा हथियार था। उन्होंने स्वराज की माँग की, अछूतोद्धार का काम किया, सर्वोदय का कार्यक्रम चलाया, स्वदेशी का नारा दिया, समाज में व्याप्त ऊँच-नीच, जाति-धर्म के विभेदक भाव को मिटाने की कोशिश की और अंततः अंग्रेजों की गुलामी से भारत को आजादी दिलाई।।

गाँधीजी को रवींद्रनाथ टैगोर ने ‘महात्मा’ कहा । उन्हें ‘बापू’, ‘राष्ट्रपिता आदि कहकर कृतज्ञ राष्ट्र याद करता है । गाँधीजी ने ‘हिंद स्वराज’, ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ आदि पुस्तकें लिखीं। उन्होंने ‘हरिजन’, ‘यंग इंडिया’ आदि पत्रिकाएँ भी संपादित की । उनका पूरा जीवन राष्ट्र के प्रति समर्पित था । उन्होंने शिक्षा, संस्कृति, राजनीति तथा सामाजिक एवं आर्थिक पक्षों पर खूब लिखा और उनके प्रयोग के द्वारा भारतवर्ष को फिर से एक उन्नत एवं गौरवशाली राष्ट्र बनाने की कोशिश की । 30 जनवरी 1948 ई० में नई दिल्ली में एक सिरफिरे ने उनकी हत्या कर दी । गाँधीजी की स्मृति में पूरा राष्ट्र 2 अक्टूबर को उनकी जयंती मनाता है । अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनके जन्म दिवस को ‘अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

शिक्षा और संस्कृति जैसे विषय पर यहाँ ‘हरिजन’, ‘म इंडिया जैसे ऐतिहासिक पत्रों के अग्रलेखों से संकलित-संपादित राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के विचार प्रस्तुत हैं । इस पाठ में उनके क्रांतिकारी शिक्षा दर्शन के अनुरूप वास्तविक जीवन में उपयोगी, व्यावहारिक दृष्टिकोण और विचार हैं जिनके बल पर आत्मा, बुद्धि, मानस एवं शरीर के संतुलित परिष्कार के साथ मनुष्य
के नैतिक विकास के लिए जरूरी प्रेरणाएँ हैं । गाँधीजी की शिक्षा और संस्कृति की परिकल्पना. निरी सैद्धांतिक नहीं है, वह जटिल और पुस्तकीय भी नहीं है, बल्कि हमारे साधारण दैनंदिनं जीवन-व्यवहार से गहरे अर्थों में जुड़ी हुई है।


शिक्षा और संस्कृति- पाठ परिचय

प्रस्तुत पाठ में शिक्षा और संस्कृति पर महात्मा गाँधी के विचार प्रस्तुत किया गया है। लेखक ने नैतिक शिक्षा पर जोर दिया है।


शिक्षा और संस्कृति का सारांश (Summary)

प्रस्तुत पाठ ’शिक्षा और संस्कृति’ (Siksha aur Sanskriti)महात्मा गाँधी द्वारा लिखा गया है। इसमें लेखक ने सच्ची दिशा एवं भारतीय संस्कृति की विशेषताओं पर प्रकाश डाला है। लेखक वैसी शिक्षा को सच्ची शिक्षा मानता है जिसमें प्रेम से घृणा को, सत्य से असत्य को तथा कष्ट सहन से हिंसा को जीतने की शक्ति हो। लेखक की राय में सच्ची शिक्षा का अर्थ अपनी इन्द्रीयों का ठीक-ठीक उपयोग करना आनी चाहिए।
लेखक ऐसी शिक्षा प्रारंभ करने के हिमायती हैं जिसमें तालीम के साथ-साथ उत्पादन करने की क्षमता प्राप्त हो सके।
लेखक ने चरित्र निर्माण को शिक्षा का ध्येय माना है। उनका तर्क है कि इससे साहस, बल, सदाचार तथा आत्मोत्सर्ग की शक्ति का विकास करने में मदद मिलेगी। वह साक्षरता से ज्यादा महत्वपूर्ण है। लेखक का यह भी कहना है कि यदि व्यक्ति चरित्र निर्माण करने में सफल हो जाता है, तो समाज अपना दायित्व स्वयं संभाल लेगा।
संस्कृति संबंधी विषय में उनका तर्क था कि संसार की किसी भाषाओं में, जो ज्ञान का भंडार भरा है, उसे अपनी ही भाषा में प्राप्त करें।
लेखक का यह भी मानना है कि किसी दूसरी संस्कृति को जानने से पहले अपनी संस्कृति का ज्ञान होना आवश्यक है। तभी दूसरों की संस्कृति समझना उचित होगा, क्योंकि हमारी संस्कृति इतनी समृद्ध है कि दुनिया में कोई भी संस्कृति इतनी समृद्ध नहीं है।
देश के भावी संस्कृति के बारे में लेखक का कहना है कि यदि दूसरी संस्कृति का बहिष्कार किया जाता है तो अपनी संस्कृति जिंदा नहीं रह पाती। हमारी संस्कृति की विशेषता है कि हमारे पूर्वज एक-दूसरे के साथ बड़ी आजादी के साथ मिल गए। हमलोग उसी मिलावट की उपज हैं।
लेखक की सलाह है कि साहित्य में रुचि रखने वाले हमारे युवा स्त्री-पुरूष संसार की हर भाषाओं को सिखें तथा अपनी विद्वता का लाभ भारत और संसार को सुबाष चन्द्र बोस तथा रविन्द्र नाथ टैगोर की तरह दें। किंतु अपनी भाषा तथा धर्म का त्याग न करें। हमारी संस्कृति विविध संस्कृतियों के सामंजस्य की प्रतिक है। इसमें प्रत्येक संस्कृति के लिए उचित स्थान सुरक्षित है।

MCQ and Summary for राम नाम बिन बिरथे जगि जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै Class 10 Hindi Matric Godhuli

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MCQ and Summary for राम नाम बिन बिरथे जगि जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै (Ram Naam bin Birthe Jagi Janma, Jo Nar me Dukh me Dukh Nahi Maane) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

राम नाम बिन बिरथे जगि जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै - गुरु नानक MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. राम नाम बिनु बिरधे जगि जनमा' किस कवि की रचना है ?
(A) गुरु नानक
(B) गुरु अर्जुनेदव
(C) रसखान
(D) प्रेमधन
उत्तर
(A) गुरु नानक

2. गुरुनानक की रचना है
(A) अति सूधो सलेट को मारता है
(B) मो अँसुवा निहि लै बरसौ
(C) जो नर दुख में दुख नहिं माने
(D) स्वदेशी
उत्तर
(C) जो नर दुख में दुख नहिं माने

3. गुरु नानक के अनुसार किसके बिना जन्म व्यर्थ है?
(A) सम्पत्ति
(B) इष्ट मित्र
(C) पत्नी
(D) राम नाम
उत्तर
(D) राम नाम

4. ब्रह्म का निवास कहा होता है ?
(A) समुद्र में
(B) काम-क्रोधहीन व्यक्ति में
(C) स्वर्ग में
(D) आकाश में
उत्तर
(B) काम-क्रोधहीन व्यक्ति में

5. गरू कृपा की महत्ता का वर्णन किस कवि ने किया है ?
(A) घनानंद
(B) रसखान
(C) गुरु नानक
(D) सुमित्रानंदन पंत
उत्तर
(C) गुरु नानक

6. गुरु नानक किस भक्ति धारा के कवि हैं ?
(A) सगुण भक्ति धारा
(B) निर्गुण भक्ति धारा
(C) सिख भक्ति धारा
(D) किसी भी धारा के नहीं
उत्तर
(B) निर्गुण भक्ति धारा

7. तलवंडी कहाँ था?
(A) अविभाजित बंगाल
(B) अविभाजित पाकिस्तान
(C) वर्मा
(D) भूटान
उत्तर
(B) अविभाजित पाकिस्तान

8. नानक के पिता का नाम क्या था?
(A) रविचंद
(B) कालूचंद खत्री
(C) गुरदीप
(D) गुरदास
उत्तर
(B) कालूचंद खत्री

9. तलवंडी को सम्पति या कहते हैं?
(A) स्वर्ण मंदिर
(B) देवकुंड साहिब
(C) नानकाना साहिब
(D) पटना साहिब
उत्तर
(C) नानकाना साहिब

10. गुरु नानक का जन्म कब हुआ था ?
(A) 1469
(B) 1569
(C) 1669
(D) 1769
उत्तर
(A) 1469

11. गुरुनानक का जन्मस्थान कहाँ था ?
(A) तलवंडी
(B) बनतली
(C) लरकाना
(D) चंडीगढ़
उत्तर
(A) तलवंडी

12. नानक की रचनाओं का संग्रह किसने किया ?
(A) गोविन्द सिंह
(B) नामदेव
(C) अर्जुनदेव
(D) मलूक साहब
उत्तर
(C) अर्जुनदेव

13. नानक साहब 1539 ई० में किस धाम पर गए?
(A) मुंगेराश्रम
(B) बद्रीकाश्रम
(C) केदाराश्रम
(D) वाह गुरु
उत्तर
(D) वाह गुरु

14, नानक देव जी को माता जी का क्या नाम था?
(A) अर्पिता
(B) मुंदरी
(C) दीप्ति
(D) तृप्ता
उत्तर
(D) तृप्ता

15. अर्जुनदेव ने नानक जी के संग का नाम क्या दिया ?
(A) ग्रंथ
(B) गुरुग्रंथ साहिब
(C) पुराण
(D) वेद
उत्तर
(B) गुरुग्रंथ साहिब

16. अर्जुनदेव सिखों के गुरु थे ?
(A) प्रथम ,
(B) द्वितीय
(C) पाँचवें
(D) छठे ,
उत्तर
(C) पाँचवें

17. अर्जुनदेव ने कब नानक की रचनाओं का संग्रह किया ?
(A) 1504
(B) 1604
(C) 1704
(D) 1804
उत्तर
(B) 1604

18. नानक कैसे कवि थे ?
(A) संत
(B) असंत
(C) अशांत
(D) अज्ञात
उत्तर
(A) संत

19. गुरु नानक किस युग के कवि थे ?
(A) प्रथम युग के
(B) पुरा युग के
(C) प्राच् युग के
(D) मध्यम युग के
उत्तर
(A) प्रथम युग के

20. जो सुख दुःख को समान मान नानक की नजर में वही क्या है ?
(A) दानव
(B) मानव
(C) खग
(D) निशाचर
उत्तर
(B) मानव

21. किससे मुक्ति मिलती है ?
(A) प्रसाद से
(B) हरि प्रसाद से
(C) हरि तप से
(D) यज्ञ से
उत्तर
(B) हरि प्रसाद से

22. किस रस को नानक घोलकर पी लिया है ?
(A) सोम रस
(B) शक्ति रस
(C) हरिरस
(D) पादप रस
उत्तर
(C) हरिरस

23. गुरुग्रंथ साहिब किस सम्प्रदाय का पवित्र ग्रंथ था ?
(A) हिन्दुओं का
(B) वौद्धों का
(C) जैनियों का
(D) सिक्खों का
उत्तर
(D) सिक्खों का

24. रामनाम के बिना वाणी कैसी हो जाती है ?
(A) अमृत
(B) सुधा
(C) विष
(D) पानी
उत्तर
(C) विष

25. 'रहिरास' किसकी रचना है
(A) गुरु गोविन्द सिंह
(B) गुरु नानक
(C) नानक
(D) घनानंद
उत्तर
(B) गुरु नानक


राम नाम बिन बिरथे जगि जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै- लेखक परिचय

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 ई० में पोरबंदर, गुजरात में हुआ था । उनके पिता का नाम करमचंद गाँधी और माता का नाम पुतलीबाई थां । उनकी प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर और उसके आस-पास हुई । 4 दिसंबर 1888 ई० में वे वकालत की पढ़ाई के लिए । यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन यूनिवर्सिटी, लंदन गए । 1883 ई०में कम उम्र में ही उनका विवाह कस्तूरबा से हुआ जो स्वाधीनता संग्राम में उनके साथ कदम-से-कदम मिलाकर चलीं । गाँधीजी के जीवन में दक्षिण अफ्रीका (1893-1914 ई०) के प्रवास का ऐतिहासिक महत्त्व है । वहीं उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ अहिंसा का पहला प्रयोग किया ।

1915 ई० में गाँधीजी भारत लौट आए और स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े। आजादी की लड़ाई में उन्होंने. सत्य के प्रयोग किए । अहिंसा और सत्याग्रह उनका सबसे बड़ा हथियार था। उन्होंने स्वराज की माँग की, अछूतोद्धार का काम किया, सर्वोदय का कार्यक्रम चलाया, स्वदेशी का नारा दिया, समाज में व्याप्त ऊँच-नीच, जाति-धर्म के विभेदक भाव को मिटाने की कोशिश की और अंततः अंग्रेजों की गुलामी से भारत को आजादी दिलाई।


राम नाम बिन बिरथे जगि जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै का सारांश (Summary)

इस पाठ में सच्चे हृदय से राम नाम अर्थात् ईश्वर का जप करने की सलाह दी गई है तो बाह्य आडंबर, पूजा-पाठ और कर्म-काण्ड की कड़ी आलोचना की गई है। सुख-दुख में हमेशा एकसमान रहने की सलाह दी गई है।

राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा
राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा।
बिखु खावै बिखु बोलै बिनु नावै निहफलु मटि भ्रमना ।।
पुसतक पाठ व्याकरण बखाणै संधिया करम निकाल करै।
बिनु गुरुसबद मुकति कहा प्राणी राम नाम बिनु अरुझि मरै।।

अर्थ –गुरु नानक कहते हैं कि जो राम के नाम का स्मरण नहीं करता है, उसका संसार में आना और मानव शरीर पाना व्यर्थ चला जाता है। बिना कुछ बोले बिष का पान करता है तथा मयारूपी मृगतृष्णा में भटकता हुआ मर जाता है अर्थात् राम का गुणगान न करके मायाजाल में फँसा रहता है। शास्त्र-पुराण की चर्चा करता है, सुबह, शाम एवं दोपहर तीनों समय संध्या बंदना करता है। नानक लोगों से कहता है कि गुरु (भगवान) का भजन किए बिना व्यक्ति को संसार से मुक्ति नहीं मिल सकती तथा सांसारिक मायाजाल में उलझकर रह जाना पड़ता है।


डंड कमंडल सिखा सूत धोती तीरथ गबनु अति भ्रमनु करै।
राम नाम बिनु सांति न आवै जपि हरि-हरि नाम सु पारि परै।।
जटा मुकुट तन भसम लगाई वसन छोड़ि तन मगन भया।।
गुरु परसादि राखिले जन कोउ हरिरस नामक झोलि पीया।

अर्थ – ऐसे प्राणी बाहरी दिखावा के लिए डंडा, कमंडल, शिखा, जनेऊ तथा गेरुआ वस्त्र धारण कर तीर्थ यात्रा करते रहते हैं, लकिन राम नाम का भजन किए बिना जीवन में शांति नहीं मिलती है। भगवान का नाम ले लेकर पैर पुजाते हैं। वे अपने को संत कहलाने के लिए जटा को मुकुट बनाकर, शरीर में राख लगाकर, वस्त्रों को त्यागकर नग्न हो जाते हैं। संसार में जितने जीव-जन्तु हैं, उन जीवों में जन्म लेते रहते हैं। इसलिए लेखक कहते हैं कि भगवान की कृपा को ध्यान में रखकर नानक ने राम का घोल पी लिया, ताकि असार संसार से मुक्ति मिल जाए।


जो नर दुख में दुख नहीं मानै
जो नर दुख में दुख नहीं मानै।
सुख सनेह अरु भय नहिं जाके, कंचन माटी जानै।।
नहिं निंदा नहिं अस्तुति जाके, लोभ मोह अभिमाना।
हरष सोक तें रहै नियारो, नाहि मान अपमाना।।
आसा मनसा सकल त्यागि कै जग तें रहै निरासा।

अर्थ – गुरु नानक कहते हैं कि जो मनुष्य दुख को दुख नहीं मानता है, जिसे सुख-सुविधा के प्रति कोई आसक्ति नहीं है और न ही किसी प्रकार का भय है, जो सोना को मिट्टी जैसा मानता है। जो किसी की निंदा से न तो घबड़ाता है और न ही प्रशंसा सुनकर गौरवान्वित होता है। जो लाभ, मोह एवं अभिमान से परे है। जो हर्ष एवं विषाद दोनों में एक-सा रहता है, जिसके लिए मान-अपमान दोनों बराबर हैं। जो आशा-तृष्णा से मुक्त होकर सांसारिक विषय-वासनाओं से अनासक्त रहता है।


काम क्रोध जेहि परसे नाहिन तेहि घट ब्रह्म निवासा।।
गुरु कृपा जेहि नर पै कीन्हीं तिन्ह यह जुगति पिछानी।
नानक लीन भयो गोबिन्द सो ज्यों पानी संग पानी।।

अर्थ – जिसने काम-क्रोध को वश में कर लिया है, वैसे मनुष्य के हृदय में ब्रह्म का निवास होता है। अर्थात् जो मनुष्य राग-द्वेष, मान-अपमान, सुख-दुख, निंदा-स्तुति हर स्थिति में एक समान रहता है, वैसे मनुष्य के हृदय में ब्रह्म निवास करते हैं।
गुरु नानक का कहना है कि जिस मनुष्य पर ईश्वर की कृपा होती है, वह सांसारिक विषय-वासनाओं से स्वतः मुक्ति पा जाता है। इसीलिए नानक ईश्वर के चिंतन में लीन होकर उस प्रभु के साथ एकाकार हो गये। यानी आत्मा परमात्मा से मिल गई, जैसे पानी के साथ पानी मिलकर एकाकार हो जाता है।

MCQ and Summary for प्रेम-अयनि श्री राधिका, करील के कुंजन ऊपर वारौं Class 10 Hindi Matric Godhuli

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MCQ and Summary for प्रेम-अयनि श्री राधिका, करील के कुंजन ऊपर वारौं (Prem-Ayani Shree Radhika, karil ke Kunjan Upar Vaaro) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

प्रेम-अयनि श्री राधिका, करील के कुंजन ऊपर वारौं - रसखान MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. रसखान किस काल के कवि थे ?
(A) रीति काल
(B) आदि काल
(C) मध्य काल
(D) आधुनिक काल
उत्तर
(A) रीति काल

2. रसखान दिल्ली के बाद कहाँ चले गए ?
(A) बनारस
(B) ब्रजभूमि
(C) महरौली
(D) हस्तिानापुर
उत्तर
(B) ब्रजभूमि

3. रसखान की भक्ति कैसी थी ?
(A) सगुण
(B) निर्गुण
(C) नौगुण
(D) सहस्रगुण
उत्तर
(A) सगुण

4. रसखान ने 'प्रेम-अयनि' किसे कहा है ?
(A) कृष्ण
(B) सरस्वती
(C) राधा
(D) यशोदा
उत्तर
(C) राधा

5. रसखान के "चित्तचोर' कौन है ?
(A) इन्द्र
(B) श्रीकृष्ण
(C) कामदेव
(D) कंचन
उत्तर
(B) श्रीकृष्ण

6. रसखान ब्रज के वन-बागों पर क्या न्योछावर करने को तैयार हैं ?
(A) सैकड़ों स्वर्ण महल
(B) सैकड़ों इन्द्रलोक
(C) तीनों लोक
(D) स्वर्ग लोक
उत्तर
(C) तीनों लोक

7. 'प्रेम-अयनि श्री राधिका' के कवि कौन थे ?
(A) गुरु नानक
(B) गुरु अर्जुनेदव
(C) रसखान
(D) प्रेमधन
उत्तर
(C) रसखान

8. रसखान ने राधिका को क्या कहा है ?
(A) प्रेम पंथ
(B) प्रेम रोग
(C) प्रेम पदार्थ
(D) प्रेम प्रसंग
उत्तर
(A) प्रेम पंथ

9. रसखान के अनुसार प्रेम का खजाना कौन हैं ?
(A) राधा
(B) कृष्ण
(C) गोपियाँ
(D) गाएँ
उत्तर
(A) राधा

10. रसखान ने साक्षात् प्रेम स्वरूप किसे माना है ?
(A) राधा को
(B) कृष्ण को
(C) गोपियों को
(D) ग्वाल बाल को
उत्तर
(B) कृष्ण को

11. रसखान के प्रीतम कौन है?
(A) आनंद
(B) राधा
(C) नंदकिशोर
(D) मोहन पिता
उत्तर
(C) नंदकिशोर

12. रसखान के मन रूपी माणिक को किसने चुरा लिया है ?
(A) राधा ने
(B) श्रीकृष्ण ने
(C) गोपियों ने
(D) ग्वाल बालों ने
उत्तर
(B) श्रीकृष्ण ने

13. रसखान ने किस मार्ग की दीक्षा ली थी ?
(A) संतमार्ग
(B) पुष्टिमार्ग
(C) धर्म मार्ग
(D) शांति मार्ग
उत्तर
(B) पुष्टिमार्ग

14. कावरी का अर्थ है?
(A) लाठी
(B) इंडा
(C) कम्बल
(D) कमर
उत्तर
(C) कम्बल

15. 'प्रेमवाटिका' एवं सुजान रसखान किसकी कृतियाँ है?
(A) तुलसी
(B) मीरा
(C) जयदेव
(D) रसखान
उत्तर
(D) रसखान

16. नन्दलाल का व्यक्तित्व कैसा है ?
(A) लप
(B) सूक्ष्म
(C) विराट
(D) अज्ञात
उत्तर
(C) विराट

17. ब्रजभूमि के प्रति रसखान की क्या धारणा है?
(A) श्रद्धा
(B) अविश्वास
(C) स्वप्न
(D) अगाध श्रद्धा
उत्तर
(C) स्वप्न

18, श्रीकृष्ण की सुविधा के लिए सदा कौन तत्पर रहती हैं ?
(A) आठ सिद्धियाँ
(B) नव मिथियाँ
(C) दोनों
(D) सभी गलत है
उत्तर
(C) दोनों

19. कृष्णा  का रंग कैसा है ?
(A) काला
(B) गोरा
(C) प्रेम पूरित
(D) भाव पूरित
उत्तर
(C) प्रेम पूरित

20. कवि ने राधा-कृष्णा की प्रेम वाटिका को क्या माना है ?
(A) माली
(B) मालिन
(C) माली और मालिन
(D) सभी गलत है
उत्तर
(C) माली और मालिन

21. रसखान के रचनाकाल के समय किसका राज्यकाल था ?
(A) अकबर
(B) हुमायूँ
(C) जहाँगीर
(D) औरंगजेब
उत्तर
(C) जहाँगीर


प्रेम-अयनि श्री राधिका, करील के कुंजन ऊपर वारौं- लेखक परिचय

रसखान के जीवन के संबंध में सही सूचनाएँ प्राप्त नहीं होती, परंतु इनके ग्रंथ ‘प्रेमवाटिका’ (1610 ई०) में यह संकेत मिलता है कि ये दिल्ली के पठान राजवंश में उत्पन्न हुए थे और इनका रचनाकाल जहाँगीर का राज्यकाल था । जब दिल्ली पर मुगलों का आधिपत्य हुआ और पठान वंश पराजित हुआ, तब ये दिल्ली से भाग खड़े हुए और ब्रजभूमि में आकर कृष्णभक्ति में तल्लीन हो गए । इनकी रचना से पता चलता है कि वैष्णव धर्म के बड़े गहन संस्कार इनमें थे । यह भी अनुमान किया जाता है कि ये पहले रसिक प्रेमी रहे होंगे, बाद में अलौकिक प्रेम की ओर आकृष्ट होकर भक्त हो गए । ‘दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता’ से यह पता चलता है कि गोस्वामी विट्ठलनाथ ने इन्हें ‘पुष्टिमार्ग’ में दीक्षा दी । इनके दो ग्रंथ मिलते हैं – ‘प्रेमवाटिका और सुजान रसखान’ । प्रमवाटिका में प्रेम-निरूपण संबंधी रचनाएँ हैं और ‘सुजान रसखान’ में कृष्ण की भक्ति संबंधी रचनाएँ ।

रसखान ने कृष्ण का लीलागान पदों में नहीं, सवैयों में किया है । रसखान सवैया छंद में सिद्ध थे। जितने सरस, सहज, प्रवाहमय सवैये रसखान के हैं, उतने शायद ही किसी अन्य हिंदी कवि के हों । रसखान का कोई सवैया ऐसा नहीं मिलता जो उच्च स्तर का न हो । उनके सवैयों की मार्मिकता का आधार दृश्यों और बायांतर स्थितियों की योजना में है । वहीं रसखान के संवैयों के ध्वनि प्रवाह भी अपूर्व माधुरी में है। ब्रजभाषा का ऐसा सहज प्रवाह अन्यत्र दुर्लभ है । रसखान सूफियों का हृदय लेकर कृष्ण की लीला पर काव्य रचते हैं । उनमें उल्लास, मादकता और उत्कटता तीनों का संयोग है । इनकी रचनाओं से मुग्ध होकर भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने कहा था -“इन मुसलमान हरिजनन पै, कोटिन हिन्दू क्यारिखें ।

सम्प्रदायमुक्त कृष्ण भक्त कवि रसखान हिंदी के लोकप्रिय जातीय कवि हैं । यहाँ ‘रसखान रचनावली’ से कुछ छन्द संकलित हैं – दोहे, सोरठा और सवैया । दोहे और सोरठा में राधा-कृष्ण के प्रेममय युगल रूप पर कवि के रसिक हृदय की रीझ व्यक्त होती है और सवैया में कृष्ण और उनके ब्रज पर अपना जीवन सर्वस्व न्योछावर कर देने की भावमयी विदगता मुखरित है।


प्रेम-अयनि श्री राधिका, करील के कुंजन ऊपर वारौं का सारांश (Summary)

प्रस्तुत पाठ में रसखान के दो पद संकलित है। प्रथम पद दोहे और सोरठा छंद में है जिसमें राधा और कृष्ण के प्रेममय युगल रूप का अति हृदयहारी वर्णन है। इसमें राधा-कृष्ण के मनोहर रूप पर कवि के हृदय की आकर्षण व्यक्त हुई है जबकि दुसरे पद में कवि हर स्थिति में ब्रज में जीना चाहता है। इसमें ब्रज के प्रति कवि का भावपूर्ण समर्पण व्यक्त है।


प्रेम- अयनि श्री राधिका
प्रेम-अयनि श्री राधिका, प्रेम-बरन नँदनंद।
प्रेम-बाटिका के दोऊ, माली-मालिन-द्वन्द्व।।
मोहन छबि रसखानि लखि अब दृग अपने नाहिं।
अँचे आवत धनुस से छूटे सर से जाहिं।।
रसखान कवि कहते हैं कि राधा प्रेमस्वरूपा है तो श्रीकृष्ण प्रेमरूप है। ये दोनों प्रेमरूपी वाटिका के माली-मालिन के समान हैं। कवि ने जब से इन दोनों को देखा है, उनकी आँखें उन्हीं दोनों को देखती रहती है। क्षण भर के लिए आते हैं और जैसे धनुष से बाण छूटता है, उसी प्रकार आते-जाते रहते हैं।


मो मन मानिक लै गयो चितै चोर नँदनंद।
अब बे मन मैं का करूँ परी फेर के फंद।।
प्रीतम नन्दकिशोर, जा दिन तै नैननि लग्यौ।
मन पावन चितचोर, पलक ओट नहिं करि सकौं।
श्रीकृष्ण ने उसके मन को चुरा लिया है जिस कारण मन इच्छा रहित हो गए हैं। वह इस प्रेम के जाल में बुरी तरह फँस गए हैं। रसखान अपनी विवशता प्रकट करते हुए कहते हैं कि जिस दिन से उनके दर्शन हुए हैं, उसने मन चुरा लिया है। हर क्षण कृष्ण एवं राधा के रूप सौन्दर्य को अपलक देखते रहते हैं।


करील के कुंजन ऊपर वारौं
या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर की तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि नवोनिधि को सुख नन्द की गाइ चराई बिसारौं।।
कवि रसखान अपने हार्दिक अभिलाषा प्रकट करते हुए कहते हैं कि श्रीकृष्ण की लाठी और कंबल पर तीनों लोक के राज्य का त्याग कर दूँ। नंद बाबा की गाय चराने का अवसर मिल जाए तो आठों प्रकार की सिद्धियों तथा नव-निधियों के सुखों का त्याग करने में मुझे कष्ट महसूस नहीं होगा।


रसखानी कबौं इन आँखिन सौं ब्रज के बनबाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक रौ कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।।
कवि का कहना है कि जब से ब्रज के वनों, निकुंजों, तालाबों तथा करील के सघन कुँजों को अपनी आँखों से देखा हूँ, तब से इच्छा होती है कि ऐसे मनोहर निकुंजों की सुन्दरता के समक्ष करोड़ों सुनहरे महल तुच्छ प्रतीत होतें हैं अर्थात् ऐसे मूल्यवान् महलों को छोड़कर जहाँ कृष्ण रासलीला करते थे, वहीं निवास करूँ।

MCQ and Summary for अति सूधो सनेह को मारग है, मो अँसुवानिहिं लै बरसौ Class 10 Hindi Matric Godhuli

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MCQ and Summary for अति सूधो सनेह को मारग है, मो अँसुवानिहिं लै बरसौ (Ati Sadho Sneh Ko Marag Hai, Mo Asuvanihi Lai Barso) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

अति सूधो सनेह को मारग है, मो अँसुवानिहिं लै बरसौ - घनानंद MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)


1. 'अति सूधो सनेह को भारग है' के कवि कौन हैं ?
(A) गुरु नानक
(B) घनानंद
(C) रामधारी सिंह 'दिनकर'
(D) सुमित्रानंदन पंत
उत्तर
(B) घनानंद

2. 'घनानंद' किस काल के कवि थे ?
(A) आदिकाल
(B) भक्तिकाल
(C) रीतिकाल
(D) छायावादी युग
उत्तर
(C) रीतिकाल

3. घनानंद किस भाषा के अच्छे जानकार थे?
(A) उर्दू
(B) अंग्रेजी
(C) संस्कृत
(D) फारसी
उत्तर
(D) फारसी

4. घनानंद किस भाषा के कवि है ?
(A) मगही
(B) ब्रज
(C) खड़ी
(D) संस्कृत
उत्तर
(A) मगही

5. घनानंद का जन्म हुआ था
(A) 1689 ई० में
(B) 1589 ई. में
(C) 1789 ई० में
(D) 1989 ई. में
उत्तर
(A) 1689 ई० में

6. घनानंद की हत्या कब कर दी गई?
(A) 1539 ई० में
(B) 1639 ई. में
(C) 1739 ई० में
(D) 1839 ई. में
उत्तर
(C) 1739 ई० में

7. घनानंद किस चीज की पीर के गायक थे।
(A) विरह
(B) दु:ख
(C) प्रेम
(D) वात्सल्य
उत्तर
(C) प्रेम

8. घनानंद के अनुसार प्रेम का मार्ग कैसा है?
(A) अत्यंत सीधा
(B) सरल
(C) अत्यंत सीधा एवं सरल
(D) सभी गलत हैं
उत्तर
(C) अत्यंत सीधा एवं सरल

9. सवैया आर घनाक्षरी के लिए प्रसिद्ध रचनाकार निम्नलिखित में कौन है?
(A) मीरा बाई
(B) तुलसी दास
(C) कबीर दास
(D) घनानंद
उत्तर
(A) मीरा बाई

10. सुजान कौन थी ?
(A) कवि
(B) रंगकर्मी
(C) नर्तकी
(D) रानी
उत्तर
(C) नर्तकी

11. प्रेम मार्ग के पथिक को प्रेम मार्ग पर चलते समय किस चीज का भावश्यकता नहीं रहती है ?
(A) लाठी की
(B) भाले की
(C) जूते की
(D) चतुराई की
उत्तर
(D) चतुराई की

12. कवि ने 'परजन्य' किसे कहा है ?
(A) कृष्ण
(B) सुजान
(C) बादल
(D) हवा
उत्तर
(C) बादल


अति सूधो सनेह को मारग है, मो अँसुवानिहिं लै बरसौ- लेखक परिचय

रीतियुगीन काव्य में घनानंद रीतिमुक्त काव्यधारा के सिरमौर कवि हैं । इनका जन्म 1689 ई० के आस-पास हुआ और 1739 ई० में वे नादिरशाह के सैनिकों द्वारा मारे गये । ये तत्कालीन मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीले के यहां मीरमुंशी का काम करते थे। ये अच्छे गायक और श्रेष्ठ कवि थे । किवदंती है कि सुजान नामक नर्तकी को वे प्यार करते थे । विराग होने पर ये वृंदावन चले गये और वैष्णव होकर काव्य रचना करने लगे । सन् 1939 में जब नादिरशाह ने दिल्ली पर आक्रमण किया तब उसके सिपाहियों ने मथुरा और वृंदावन पर भी धावा बोला । बादशाह का मीरमुंशी जानकर घनानंद को भी उन्होंने पकड़ा और इनसे जर, जर, जर (तीन बार सोना, सोना, सोना) माँगा । घनानंद ने तीन मुट्ठी धूल उन्हें यह कहते हुए दी, ‘रज, रज, रज’ (धूल, धूल, धूल) । इस पर क्रुद्ध होकर सिपाहियों ने इनका वध कर दिया।

घनानंद ‘प्रेम की पीर’ के कवि हैं। उनकी कविताओं में प्रेम की पीड़ा, मस्ती और वियोग सबकुछ है । आचार्य शुक्ल के अनुसार, “प्रेम मार्ग का ऐसा प्रवीण और धीर पथिक तथा जबाँदानी का ऐसा दावा रखने वाला ब्रजभाषा का दूसरा कवि नहीं हुआ है।” वियोग में सच्चा प्रेमी जो वेदना सहता है, उसके चित्त में जो विभिन्न तरंगे उठती हैं, उनका चित्रण घनानंद ने किया है। घनानंद वियोग दशा का चित्रण करते समय अलंकारों, रूढ़ियों का सहारा लेने नहीं दौड़ते, वे बाह्य चेष्टाओं पर भी कम ध्यान देते हैं । वे वेदना के ताप से मनोविकारों या वस्तुओं का नया आयाम, अर्थात् पहले न देखा गया उनका कोई नया रूप-पक्ष देख लेते हैं। इसे ही ध्यान में रखकर शुक्ल जी ने इन्हें ‘लाक्षणिक मूर्तिमत्ता और प्रयोग वैचित्र्य’ का ऐसा कवि कहा जैसे कवि उनके पौने दो सौ वर्ष बाद छायावाद काल में प्रकट हुए।

घनानंद की भाषा परिष्कृत और शुद्ध ब्रजभाषा है । इनके सवैया और घनाक्षरी अत्यंत प्रसिद्ध हैं । घनानंद के प्रमुख ग्रंथ हैं – ‘सुजानसागर’, ‘विरहलीला’, ‘रसकेलि बल्ली’ आदि।

रीतिकाल के शास्त्रीय युग में उन्मुक्त प्रेम के स्वच्छंद पथ पर चलने वाले महान प्रेमी कवि घनानंद के दो सवैये यहाँ प्रस्तुत हैं । ये छंद उनकी रचनावली ‘घनआनंद’ से लिए गए हैं। प्रथम छंद में कवि जहाँ प्रेम के सीधे, सरल और निश्छल मार्ग की प्रस्तावना करता है, वहीं द्वितीय छंद में मेघ की अन्योक्ति के माध्यम से विरह-वेदना से भरे अपने हृदय की पीड़ा को अत्यंत कलात्मक रूप में अभिव्यक्ति देता है । घनानंद के इन छंदों से भाषा और अभिव्यक्ति कौशल पर उनके असाधारण अधिकार को भी अभिव्यक्ति होती है।


अति सूधो सनेह को मारग है, मो अँसुवानिहिं लै बरसौ का सारांश (Summary)

प्रस्तुत पाठ में घनानंद के दो छंद संकलित है। प्रथम छंद में कवि ने प्रेम के सीधे, सरल और निश्छल मार्ग के विषय में बताया है। तो द्वितीय छंद में विरह वेदना से व्यथित अपने हृदय की पीड़ा को कलात्मक रंग से अभिव्यंजित किया है।


अति सूधो सनेह को मारग है
अति सूधो सनेह का मारग है जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं।
तहाँ साँचे चलैं तजि आपनपौ झुझुकैं कपटी जे निसाँक नहीं।।

कवि घनानंद कहते हैं कि प्रेम का मार्ग अति सीधा और सुगम होता है जिसमें थोड़ा भी टेढ़ापन या धूर्तता नहीं होती है। उस पथ पर वहीं व्यक्ति चल सकता है जिसका हृदय निर्मल है तथा अपने आप को पूर्णतः समर्पित कर दिया है।


‘घनआनँद‘ प्यारे सुजान सुनौ यहाँ एक तैं दूसरो आँक नहीं।
तुम कौन धौं पाटी पढ़े हौ कहौ मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं।।

कवि घनानंद कहते हैं- हे सज्जन लोगों ! सुनो, सगुण और निर्गुण से कोई तुलना नहीं है। तुमने तो ऐसा पाठ पढ़ा है कि मन भर लेते हो किन्तु छटाँक भर नहीं देते हो। अतः कवि का कहना है कि गोपियाँ कृष्ण-प्रेम में मस्त होने के कारण उधो की बातों पर ध्यान नहीं देती, बल्कि प्रेम की विशेषता पर प्रकाश डालती हुई कहती है कि भक्ति का मार्ग सुगम होता है, ज्ञान का मार्ग कठिन होता है।


मो अँसुवानिहिं लै बरसौ
परकाजहि देह को धारि फिरौ परजन्य जथारथ ह्वै दरसौ।
निधि-नीर सुधा की समान करौ सबही बिधि सज्जनता सरसौ।।
कवि घनांनद कहते हैं कि दूसरे के उपकार के लिए शरीर धारण करके बादल के समान फिरा करो और दर्शन दो। समुद्र के जल को अमृत के समान बना दो तथा सब प्रकार से अपनी सज्जनता का परिचय दो।


‘घनआनँद‘ जीवनदायक हौ कछू मेरियौ पीर हिएँ परसौ।
कबहूँ वा बिसासी सुजान के आँगन मो अँसुवानिहिं लै बरसौ।।
कवि घनानंद का आग्रह है कि उनकी हार्दिक पीड़ा का अनुभव करते हुए उन्हें जीवन रस प्रदान करो, ताकि वह कभी भी अपनी प्रेमिका सुजान के आँगन में उपस्थित हो कर अपने प्रेमरूपी आँसु की वर्षा करें।

MCQ and Summary for स्वेदशी Class 10 Hindi Matric Godhuli

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MCQ and Summary for स्वेदशी (Swadeshi) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

स्वेदशी - प्रेमघन प्रश्नोत्तर

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. 'स्वदेशी' किस कवि की रचना है ?
(A) घनानंद
(B) सुमित्रानंदन पंत
(C) रामधारी सिंह 'दिनकर'
(D) प्रेमघन
उत्तर
(D) प्रेमघन

2. 'प्रेमघन' किसका उपनाम है ?
(A) सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन
(B) सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
(C) बदरी नारायण चौधरी
(D) वीरेन डंगवाल
उत्तर
(C) बदरी नारायण चौधरी

3. प्रेमघन किस युग के कवि थे ?
(A) आदिकाल
(B) भक्तिकाल
(C) भारतेन्दु युग
(D) छायावादी युग
उत्तर
(C) भारतेन्दु युग

4. कवि 'प्रेमधन' के अनुसार भारत में आज कौन-सी वस्तु दिखाई नहीं पड़ती?
(A) भारतीयता
(B) कदाचारिता
(C) पत्रकारिता
(D) अंग्रेजी भाषा
उत्तर
(A) भारतीयता

5. आजकल भारत के लोग किस भाषा में बोलना पसन्द करते हैं ?
(A) हिन्दी
(B) मातृभाषा
(C) अंग्रेजी
(D) फ्रेंच
उत्तर
(C) अंग्रेजी

6. इन दिनों भारत के बाजार किन वस्तुओं से भरे पड़े हैं ?
(A) चीनी
(B) पाकिस्तानी
(C) विदेशी
(D) अफगानी
उत्तर
(C) विदेशी

7. भारत के लोगों को अब क्या भाने लगा है ?
(A) विदेशी रहन-सहन
(B) देसी घी
(C) परदेशी
(D) आतंक
उत्तर
(A) विदेशी रहन-सहन

8. प्रेमघन का जन्म 1855 ई० में कहाँ हुआ था ?
(A) मिर्जापुर में (उत्तर प्रदेश)
(B) बलिया (उत्तर प्रदेश)
(C) मसौढ़ा (बिहार)
(D) सतना (मध्य प्रदेश)
उत्तर
(A) मिर्जापुर में (उत्तर प्रदेश)

9. प्रेमघन की मृत्यु कब हुई ?
(A) 1911
(B) 1922
(C) 1933
(D) 1944
उत्तर
(A) 1911

10. प्रेमघन की पठित रचना का नाम है।
(A) विदेशी
(B) स्वदेशी
(C) पश्चाताप
(D) पद्मावती
उत्तर
(B) स्वदेशी

11. किस देश में हिन्दू, मुस्लिम और ईसाई को देखकर पहचान करना मुश्किल है ?
(A) पाकिस्तान में
(B) बांग्लादेश में
(C) भारत में
(D) चीन में
उत्तर
(C) भारत में

12. भारतीय अब कैसे कपड़े पहनना पसंद करते हैं ?
(A) देशी
(B) पश्चिमी सभ्यता के
(C) आधुनिक फैशन के
(D) पुराने पहनावे (धोती-कुर्ता)
उत्तर
(C) आधुनिक फैशन के

13. भारतीय हिन्दू अब किस भाषा का प्रयोग कम करते हैं ?
(A) अंग्रेजी
(B) संस्कृत
(C) हिन्दी
(D) फारसी
उत्तर
(C) हिन्दी

14. भारत में कहीं भी क्या दृष्टिगोचर नहीं हो रही है ?
(A) पाश्चात्य संस्कृति
(B) भारतीयता
(C) आदि संस्कृति
(D) लोक लज्जा
उत्तर
(B) भारतीयता

15. आज भारतीयों की बुद्धि विदेशी क्यों हो गई है ?
(A) विदेशी भाषा पढ़कर
(B) धोती छोड़कर
(C) पतलून पहनने से
(D) संस्कृत छोड़ने से
उत्तर
(B) धोती छोड़कर

16. स्वदेशी कविता में किस बात का उल्लेख है ?
(A) देश-दशा
(B) दरिद्रता
(C) भावुकता
(D) कठोरता
उत्तर
(A) देश-दशा

17. भारतीयता की क्या पहचान है ?
(A) ढीले-ढाले धोती
(B) पतलून
(C) अचकनयुक्त पैजामा
(D) घाघरा
उत्तर
(A) ढीले-ढाले धोती

18. कवि ने 'स्वदेशी' कविता में ‘डफाली' किसे कहा है ?
(A) नृप को
(B) दास-वृत्ति की चाहने वाले को
(C) अंग्रेजों को
(D) दासों को
उत्तर
(B) दास-वृत्ति की चाहने वाले को

19. आज हिन्दुस्तानी कहाँ की बनी वस्तुओं से घृणा करने लगे हैं ?
(A) चीन निर्मित
(B) अमेरिका निर्मित
(C) इंग्लैंड निर्मित
(D) हिन्दुस्तान निर्मित
उत्तर
(B) अमेरिका निर्मित

20. हिन्दुस्तान के लोगों को क्या सुनकर लज्जा आने लगी है ?
(A) हिन्दुस्तानी होना
(B) जनता
(C) गरीब
(D) परतंत्र
उत्तर
(A) हिन्दुस्तानी होना

21. स्वदेशी कविता कब लिखी गई थी?
(A) स्वतंत्र काल में
(B) भारत की परतंत्रता काल में
(C) हड़प्पा सभ्यता में
(D) सभी सही हैं
उत्तर
(B) भारत की परतंत्रता काल में

22. आज की भारतीय जनता मेहनत से ज्यादा भरोसा किस चीज पर कर रही है ?
(A) चाकरी पर
(B) धर्म पर
(C) चोरी पर
(D) पलायनवाद पर
उत्तर
(A) चाकरी पर

23. 'प्रेमघन' अपना आदर्श किसे मानते थे ?
(A) महात्मा गाँधी
(B) विवेकानंद
(C) रवीन्द्रनाथ टैगोर
(D) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
उत्तर
(D) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र


स्वेदशी- लेखक परिचय

प्रेमघन जी भारतेन्दु युग के महत्त्वपूर्ण कवि थे । उनका जन्म 1855 ई० में मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ और निधन 1922 ई० में। वे काव्य और जीवन दोनों क्षेत्रों में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को अपना आदर्श मानते थे । वे निहायत कलात्मक एवं अलंकृत गद्य लिखते थे। उन्होंने भारत के विभिन्न स्थानों का भ्रमण किया था। 1874 ई० में उन्होंने मिर्जापुर में ‘रसिक समाज’ की स्थापना की। उन्होंने ‘आनंद कादंबिनी’ मासिक पत्रिका तथा ‘नागरी नीरद’ नामक साप्ताहिक पत्र का संपादन किया । वे साहित्य सम्मेलन के कलकत्ता अधिवेशन के सभापति भी रहे । उनकी रचनाएँ ‘प्रेमघन सर्वस्व’ नाम से संग्रहीत हैं।

प्रेमघन जी निबंधकार, नाटककार, कवि एवं समीक्षक थे । ‘भारत सौभाग्य’, ‘प्रयाग रामागमन’ उनके प्रसिद्ध नाटक हैं। उन्होंने ‘जीर्ण जनपद’ नामक एक काव्य लिखा जिसमें ग्रामीण जीवन का यथार्थवादी चित्रण है । प्रेमघन ने काव्य-रचना अधिकांशत: ब्रजभाषा और अवधी में की, किंतु युग के प्रभाव के कारण उनमें खड़ी बोलीं का व्यवहार और गद्योन्मुखता भी साफ दिखलाई पड़ती है । उनके काव्य में लोकोन्मुखता एवं यथार्थ-परायणता का आग्रह है । उन्होंने राष्ट्रीय स्वाधीनता की चेतना को अपना सहचर बनाया एवं साम्राज्यवाद तथा सामंतवाद का विरोध किया ।

‘प्रेमघन सर्वस्व’ से संकलित दोहों का यह गुच्छ ‘स्वदेशी’ शीर्षक के अंतर्गत यहाँ प्रस्तुत है। इन दोहों में नवजागरण का स्वर मुखरित है। दोहों की विषयवस्तु और उनका काव्य-वैभव इसके शीर्षक को सार्थकता प्रदान करते हैं । कवि की चिंता और उसकी स्वरभंगिमा आज कहीं
अधिक प्रासंगिक है।


स्वेदशी का सारांश (Summary)

भारत सौभाग्य तथा प्रयाग रामागमन इनके प्रसिद्ध नाटक हैं। इन्होनें ‘जीर्ण जनपद‘ नामक नाटक लिखा जिसमें ग्रामीण जीवन का यर्थाथवादी चित्रण है।
कविता परिचय- प्रस्तुत कविता ‘स्वदेशी‘ प्रेमघन द्वारा लिखित रचनाएँ ‘प्रेमघन सर्वस्व‘ से संकलित है। इन दोहों में नवजागरण का स्वर मुखरित है। दोहों की विषय-वस्तु और काव्य वैभव कविता के स्वदेशी भाव को स्पष्ट करते हैं। कवि की चिंता आज के परिवेश में भी प्रासंगिक है।


सबै बिदेसी वस्तु नर, गति रति रीत लखात।
भारतीयता कछु न अब भारत म दरसात।।
कवि प्रेमघन कहते हैं कि पराधीनता के कारण सर्वत्र विदेशी वस्तुएँ ही दिखाई पड़ती हैं। लोगों के चाल-चलन तथा रीति-रिवाज बदल गए हैं। दुःख है कि लोगों में भारतीयता की भावना मर गई है। देश-प्रेम की भावना देश में कहीं भी दिखाई नहीं देती।


नुज भारती देखि कोउ, सकत नहीं पहिचान।
मुसल्मान, हिंदू किधौं, कै हैं ये क्रिस्तान।।
पढ़ि विद्या परदेश की, बुद्धि विदेशी पाय।
चाल-चलन परदेश की, गई इन्हैं अति भाय।।
कवि कहता है कि अंग्रजी शासनकाल में हिंदु-मुसलमान दोनों के रहन-सहन, खान-पान, विद्या-व्यवसाय, चाल-चलन तथा आचरण बदल गए हैं। विदेशी भाषा पढ़ने के कारण अपनी संस्कृति, भाषा सबका त्याग कर विदेशी चाल-चलन अपना लिए हैं।

 
ठटे विदेशी ठाट सब, बन्यो देश विदेस।
सपनेहूँ जिनमें न कहुँ, भारतीयता लेस।।
बोलि सकत हिंदी नहीं, अब मिलि हिंदू लोग।
अंगरेजी भाखन करत, अंग्रेजी उपभोग।।
कवि ‘प्रेमघन‘ देश की दुर्दशा देखकर कहते हैं कि अंग्रेजी शासन के कारण भारतीयों का संस्कार विदेशी हो गया है। स्वदेशी वस्तुएँ नष्ट कर दी गई हैं। विदेशी वस्तुओं तथा भाषा के प्रचार के कारण कहीं भी भारतीयता के लक्षण दिखाई नहीं पड़ते। सभी अपनी सुख-सुविधा के प्राप्ति के लिए अंग्रजी भाषा का व्यवहार करते हैं।


अंगरेजी बाहन, बसन, वेष रीति औ नीति।
अंगरेजी रुचि, गृह, सकल, बस्तु देस विपरित।।
हिन्दुस्तानी नाम सुनि, अब ये सकुचि लजात।
भारतीय सब वस्तु ही, सों ये हाय घिनात।।
कवि ‘प्रेमघन‘ जी कहते हैं कि अंग्रेजी शासनकाल में भारतीयों की मनोदशा इतनी दूषित हो गई है कि वे भारतीय वस्तुओं का उपयोग करना छोड़ विदेशी वस्तुओं का उपयोग करने लगे हैं। इनका हर कुछ विदेशी रंग में रंग चूका है। वे अपने को हिंदुस्तानी कहने में संकुचित महसुस करते हैं तथा स्वदेशी वस्तु देखकर नाक-भौं सिकोड़ने लगते हैं।


देस नगर बानक बनो, सब अंगरेजी चाल।
हाटन मैं देखहु भरा, बसे अंगरेजी माल।।
जिनसों सम्हल सकत नहिं तनकी, धोती ढीली-ढीली।
देस प्रंबध करिहिंगे वे यह, कैसी खाम खयाली।।
कवि कहते हैं कि भारतीय हाट-बाजारों में अंग्रेजी भर दिए गये हैं। भारतीय इन वस्तुओं के व्यवसायी बन गए। देश में निर्मित वस्तुओं का लोप हो गया है। देश की कमान वैसे लोगों के हाथ में है, जों स्वयं ढुलमुल विचार के हैं, जिन्हें स्वयं पर भरोसा नहीं है।


दास-वृति की चाह चहूँ दिसि चारहु बरन बढ़ाली।
करत खुशामद झूठ प्रशंसा मानहुँ बने डफाली।।
कवि आश्चर्य प्रकट करते हुए कहते हैं कि ऐसे खोटे विचार वालों से देश की सुरक्षा का आशा करना कितना हास्यपद है। क्योंकि सभी जाति के लोग अपनी आजीविका के लिए खुशामद में झूठी प्रशंसा का ढोल पीटने लगे हैं।


MCQ and Summary for भारतमाता Class 10 Hindi Matric Godhuli

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MCQ and Summary for भारतमाता (Bharatmata) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

भारतमाता - सुमित्रानंदन पंत प्रश्नोत्तर

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. 'भारतमाता' किस कवि की कविता हैं ?
(A) कुँवर नारायण
(B) प्रेमघन
(C) रामधारी सिंह 'दिनकर'
(D) सुमित्रानंदन पंत
उत्तर
(D) सुमित्रानंदन पंत

2. 'भारतमाता' किस प्रकार की कविता है ?
(A) रहस्यवादी
(B) यथार्थवादी
(C) प्रगतिवादी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(B) यथार्थवादी

3. 'भारत माता' शीर्षक कविता किस संग्रह से ली गई है ?
(A) ग्राम्या
(B) चिदम्बरा
(C) लोकायतन
(D) गुंजन
उत्तर
(A) ग्राम्या

4. भारत माता कहाँ खड़ी है ?
(A) वृक्ष के नीचे
(B) गंगा के पास
(C) यमुना किनारे
(D) मुम्बई में
उत्तर
(A) वृक्ष के नीचे

5. भारत माता कविता में कवि ने किसे अशिक्षित, मूढ, असभ्य, निरस्त्र और निर्धन कहकर सम्बोधित किया है ?
(A) अंग्रेजों को
(B) गुलामों को
(C) भारतीयों को
(D) प्रवासियों को
उत्तर
(C) भारतीयों को

6. भारत के खेतों में क्या उगता है ?
(A) मिट्टी
(B) चाँदी
(C) सोना
(D) हीरा
उत्तर
(C) सोना

7. भारत माता के माथे पर जो रेखाएँ उभरी हैं, वे किस बात से उभरी है ?
(A) सुख से
(B) दु:ख से
(C) चिंता से
(D) बेवफाई से
उत्तर
(C) चिंता से


8. भारत माता पर किसने अधिकार जमा लिया है ?
(A) विदेशियों ने
(B) स्वदेशियों ने
(C) अपनों ने
(D) मेघों ने
उत्तर
(A) विदेशियों ने

9. गंगा-यमुना का जल भारत माता के क्या हैं?
(A) आँख
(B) आँसू
(C) शरीर
(D) मैल
उत्तर
(B) आँसू

10. भारत माता का आँचल कैसा है ?
(A) स्वच्छ
(B) कीचड़ से सना
(C) धूल-धूसरित
(D) रक्त रंजित
उत्तर
(C) धूल-धूसरित

11. भारतमाता का आँचल क्या है ?
(A) सूती वस्त्र
(B) उनी वस्त्र
(C) रेशमी वस्त्र
(D) श्याम-खेत
उत्तर
(D) श्याम-खेत

12. भारतमाता कहाँ निवास करती हैं ?
(A) शहरों में
(B) देवालयों में
(C) ईस्ट इंडिया के ऑफिस में
(D) गाँवों में
उत्तर
(D) गाँवों में

13. प्रस्तुत कविता जब लिखी गई उस समय भारत की आबादी कितनी थी।
(A) सवा करोड़
(B) तीस करोड़
(C) एक करोड़
(D) सभी सत्य है
उत्तर
(B) तीस करोड़

14. छायावाद के आधार स्तंभों में प्रमुख नाम है
(A) रामधारी सिंह दिनकर
(B) सुभद्रा कुमारी चौहान
(C) सुमित्रानंदन पंत
(D) रवीन्द्र नाथ टैगोर
उत्तर
(C) सुमित्रानंदन पंत

15. 'पंत' किस वाद के प्रवर्तक हैं ?
(A) छायावाद
(B) भक्तिवाद
(C) रौद्र रस
(D) वीभत्स रस
उत्तर
(A) छायावाद

16. भारत माता शीर्षक कविता में किसका मानवीकरण किया गया है?
(A) भारत का
(B) भारतीयता का
(C) भारतीयों का
(D) अंग्रेजों का
उत्तर
(A) भारत का

17. भारत माता कविता में भारत का कैसा चित्र प्रस्तत किया गया।
(A) आदर्श
(B) काल्पनिक
(C) यथातथ्य का
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(C) यथातथ्य का

18. जातीय अस्मिता की दृष्टि से इतिहास का प्रवाह कैसा है ?
(A) विच्छिन्न
(B) अविच्छिन्न
(C) विच्छिन्न और अविच्छिन्न दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(C) विच्छिन्न और अविच्छिन्न दोनों

19. भारत माँ के श्रेष्ठ मुख की तुलना कवि ने किससे की है ?
(A) सूर्य
(B) कंचन
(C) पुष्प
(D) छायायुक्त चंद्र
उत्तर
(D) छायायुक्त चंद्र


भारतमाता- लेखक परिचय

सुमित्रानंदन पंत का जन्म सन् 1900 में अलमोड़ा जिले के रमणीय स्थल कौसानी (उत्तरांचल) में हुआ था । जन्म के छह घंटे बाद ही माता सरस्वती देवी का देहान्त हो गया । पिता गंगादत्त पंत कौसानी टी स्टेट में एकाउंटेंट थे । पंतजी की प्राथमिक शिक्षा गाँव में हुई और फिर बनारस से उन्होंने हाईस्कूल की शिक्षा पायी । वे कुछ दिनों तक कालाकांकर राज्य में भी रहे । उसके बाद आजीवन वे इलाहाबाद में रहे 1 29 दिसंबर 1977 ई० में उनका निधन हो गया।

पंतजी का आरंभिक काव्य प्रकृति प्रेम और शिशु सुलभ जिज्ञासा को लेकर प्रकट हुआ । उनकी आरंभिक रचनाएँ प्रकृति और सौंदर्य के प्रेमी कवि की संवेदनशील अभिव्यक्तियों से परिपूर्ण हैं।

पंतजी प्रवृत्ति से छायावादी हैं, परंतु उनके विचार उदार मानवतावादी हैं । उन्होंने प्रसाद और निराला के समान छंदों और शब्द योजना में नवीन प्रयोग किए । पंतजी की प्रतिभा कलात्मक सूझ से सम्पन्न है, अतः उनकी रचनाओं में एक विलक्षण मृदुता और सौष्ठव मिलता है । युगबोध के अनुसार अपनी काव्यभूमि का विस्तार करते रहना पंत की काव्य-चेतना की विशेषता है । वे प्रारंभ में प्रकृति सौंदर्य से अभिभूत हुए, फिर मानव सौंदर्य से । मानव सौंदर्य ने उन्हें समाजवाद की ओर आकृष्ट किया । समाजवाद से वे अरविन्द दर्शन की ओर प्रवृत्त हुए। वे मानवतावादी कवि थे, जो मानव इतिहास के नित्य विकास में विश्वास करते थे । वे अतिवादिता एवं संकीर्णता के घोर विरोधी रहे । उनका अंतिम काव्य ‘लोकायतन’ है जो उनके परिपक्व चिंतन को समेट देता है। उनकी प्रमुख काव्यकृतियाँ हैं – ‘उच्छ्वास’, ‘पल्लव’, ‘वीणा’, ‘ग्रंथि’, ‘गुंजन’, ‘युगांत’, ‘युगवाणी’, ‘ग्राम्या’, ‘स्वर्णधूलि’, ‘स्वर्णकिरण’, ‘युगपथ’, ‘चिदंबरा’ आदि । पंतजी ने नाटक, आलोचना, कहानी, उपन्यास आदि भी लिखा । ‘चिदंबरा’ पर उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ’ भी मिला।

प्रकृति सौंदर्य की कविता के लिए विख्यात कवि की रचनाओं में यह कविता हिंदी की यथार्थवादी कविता के एक नये उन्मेष. की तरह है। प्रख्यात छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत की यह प्रसिद्ध कविता उनकी कविताओं के संग्रह ‘ग्राम्या’ से संकलित है । यह कविता आधुनिक हिंदी के उत्कृष्ट प्रगीतों में शामिल की जाती है । अतीत के गरिमा-गान द्वारा अब तक भारत का ऐसा चित्र खींचा गया था जो ऐतिहासिक चाहे जितना रहा हो, वर्तमान को देखते हुए वास्तविक प्रतीत नहीं होता था । धन-वैभव, शिक्षा-संस्कृति, जीवनशैली आदि तमाम दृष्टियों से पिछड़ा हुआ, धुंधला और मटमैला दिखाई पड़ता यह देश हमारा वही भारत है जो अतीत में कभी सभ्य, सुसंस्कृत, ज्ञानी और वैभवशाली रहा था। कवि यहाँ इसी भारत का यथातथ्य चित्र प्रस्तुत करता है।


भारतमाता का सारांश (Summary)

रस्तुत कविता ‘भारतमाता‘ पंत जी की कविताओं का संग्रह ‘ग्राम्या‘ से संकलित है। इसमें भारत के दुर्दशा का चित्रण किया गया है।


भारतमाता ग्रामवासिनी
खेतों में फैला है श्यामल
धूल-भरा मैला-सा आँचल
गंगा-यमुना में आँसू-जल
मिट्टी की प्रतिमा
उदासिनी।
कवि पंत जी भारतीय ग्रामीणों की दुर्दशा का चित्र प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि भारत की आत्मा गाँवों में निवास करती है। जहाँ खेत सदा हरे-भरे रहते हैं किंतु यहाँ के निवासी शोषण की चक्की में पिसकर मजबूर दिखाई देते हैं। गंगा-यमुना के जल उनकी व्यथा के प्रतिक हैं। सीधे-साधे किसान अपनी दयनीय दशा के कारण अपने दुर्भाग्य पर आँसु बहा रहे हैं और उदास हैं।

 
दैन्य जड़ित अपलक नत चितवन,
अधरों में चिर नीरव रोदन,
युग-युग के तम से विषण्ण मन
वह अपने घर में
प्रवासिनी।
पंतजी भारतमाता के उन कर्मठ सपूत किसानों की दयनीय दशा एवं दुःखपूर्ण जीवन की करूण-कहानी प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि जमींदारों एवं सूदखोर साहूकारों के शोषण ने इन्हें अति गरीब, चेतनाशून्य बना दिया है। अपने मजबूरी के कारण अपने ऊपर हो रहे अन्याय को सिर झुकाए अपलक देखने को मजबूर हैं। वे अपनी अंदर की पीड़ा अन्दर-ही-अन्दर सहने को मजबूर हैं। सदियों की त्रासदी ने उनके जीवन को निराश बना दिया है। वे अपने घर में अपने अधिकारों से वंचित है।

 
तीस कोटि संतान नग्न तन,
अर्ध क्षुधित, शोषित, निरस्त्रजन,
मूढ़, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन,
नत मस्तक
तरु-तल निवासिनी।
अंग्रेजी शासन की क्रुरता के कारण भारतमाता की तीस करोड़ संतान अर्द्धनग्न तथा अर्द्धपेट खाकर जीवन व्यतित करने को विवश हैं। इनमें प्रतिकार और विरोध करने की शक्ति नहीं है। वे मूर्ख, असभ्य, अशिक्षित, गरीब, पेड़ के नीचे गर्मी, वर्षा तथा जाड़ा का कष्ट सहन करते हैं।

 
स्वर्ण शस्य पर-पद-तल लंठित,
धरती-सा सहिष्णु मन कुंठित,
क्रंदन कंपित अधर मौन स्मित,
राहु ग्रसित
शरदेन्दु हासिनी।
कवि पंत जी कहते हैं कि जिनकी पकी फसल सोने के समान दिखाई पड़ती है, पराधीनता के कारण वे शोषण के शिकार हैं। वे उनके हर अपमान, शोषण, अत्याचार आदि को सहन करते हुए धरती के समान सहनशील बने हुए हैं। अर्थात् वे अपने जुल्मों का विरोध न करके चुपचाप सहन कर लेते हैं। वे क्रुर शासन से इतने भयभीत हैं कि खुलकर रो भी नहीं सकते। देशवासियों की ऐसी दुर्दशा और विवशता देखकर कवि दुःख से भर जाता है कि जिस देश के वीरों की गाथा संसार में शरदपूर्णिमा की चाँदनी के समान चमकती थी, आपसी शत्रुता के कारण आज ग्रहण लगा अंधकारमय है।

 
चिंतित भृकुटि क्षितिज तिमिरांकित,
नमित नयन नभ वाष्पाच्छादित,
आनन श्री छाया-शशि उपमित,
ज्ञान-मूढ़
गीता प्रकाशिनी।
कवि पंतजी कहते हैं कि अंग्रेजों के अत्याचार एवं शोषण से लोग उदास, निराश और हताश हैं, यानी वातावरण में घोर निराशा छायी हुई है। देशवासियों की ऐसी मन की स्थिति पर कवि आश्चर्य प्रकट करते हुए कहते हैं कि जिसके मुख की शोभा की उपमा चन्द्रमा से दी जाती थी, या फिर जहाँ गीता जैसे प्ररणादायी ग्रंथ की रचना हुई थी, उस देश के लोग अज्ञानता और मूर्खता के कारण गुलाम हैं।

 
सफल आज उसका तप संयम
पिला अहिंसा स्तन्य सुधोपम,
हरती जन-मन-भय, भव-तम-भ्रम,
जग-जननी
जीवन-विकासिनी।
कवि सफलता पर आशा प्रकट करते हुए कहते हैं कि अहिंसा जैसे महान मंत्र का संदेश देकर लेगों के मन का भय, अज्ञान एवं भ्रम का हरण कर भारतमाता की स्वतंत्रता की प्राप्ति का संदेश दिया।

MCQ and Summary for जनतंत्र का जन्म Class 10 Hindi Matric Godhuli

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MCQ and Summary for जनतंत्र का जन्म (Jantantra ka Janm) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

जनतंत्र का जन्म - रामधारी सिंह दिनकर MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. 'जनतंत्र का जन्म' के कवि कौन हैं ?
(A) कुँवर नारायण
(B) रामधारी सिंह दिनकर
(C) प्रेमधन
(D) सुमित्रानंदन पंत
उत्तर
(B) रामधारी सिंह दिनकर

2. दिनकर के काव्य का मूल स्वर क्या है ?
(A) ओज एवं राष्ट्रीय चेतना
(B) श्रृंगार
(C) प्रकृति और सौंदर्य
(D) रहस्यवाद
उत्तर
(A) ओज एवं राष्ट्रीय चेतना

3. जनतंत्र में कवि के अनुसार राजदण्ड क्या होंगे ?
(A) ढाल और तलवार
(B) फूल और भौरे
(C) फावड़े और हल
(D) बाघ और भालू
उत्तर
(C) फावड़े और हल

4. कवि के अनुसार जनतंत्र के देवता कौन हैं ?
(A) नेता
(B) शिक्षक
(C) किसान-मजदूर
(D) मंत्री
उत्तर
(C) किसान-मजदूर

5. भारत सरकार ने दिनकर को कौन-सा अलंकरण प्रदान किया ?
(A) पद्म श्री
(B) भारत रत्न
(C) अशोक चक्र
(D) पद्म विभूषण
उत्तर
(D) पद्म विभूषण

6. भारत में जनतंत्र की स्थापना कब हुई ?
(A) 1947 ई.
(B) 1977 ई.
(C) 1950 ई.
(D) 1967 ई.
उत्तर
(C) 1950 ई.

7. भाषा सम्राट निम्नलिखित में किसे कहा जाता है ?
(A) रामधारी सिंह दिनकर को
(B) सुमित्रानंदन पंत को
(C) सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को
(D) सभी गलत हैं
उत्तर
(A) रामधारी सिंह दिनकर को

8. सिमरिया घाट का संबंध है।
(A) पंत से
(B) दिनकर से
(C) गाँधी से
(D) जय प्रकाश से
उत्तर
(B) दिनकर से

9. 'जनतंत्र का जन्म' किसके द्वारा रचित है?
(A) दिनकर
(B) पंत
(C) नागार्जुन
(D) विद्यापति
उत्तर
(A) दिनकर

10. कवि ने किसके लिए सिंहासन खाली करने का आह्वान किया है ?
(A) राजा हेतु
(B) धनवान के लिए
(C) रंक हेतु
(D) जनता के लिए
उत्तर
(D) जनता के लिए

11. समय की धारा को बदल देने की क्षमता किसमें होती है?
(A) देश में
(B) जनता में
(C) विदेश में
(D) संतों में
उत्तर
(B) जनता में

12. जनतंत्र में स्वामी कौन है?
(A) राजा
(B) रानी
(C) प्रजा (जनता)
(D) राजपुत्र
उत्तर
(C) प्रजा (जनता)

13. अब जनता की भृकुटी टेढ़ी होती हैं तब क्या होता है?
(A) दर्द शुरू होता है
(B) खुशी की लहर दौड़ने लगती है
(C) क्रांति का आरंभ हो जाता है
(D) सभी गलत हैं
उत्तर
(C) क्रांति का आरंभ हो जाता है

14. ओज एवं राष्ट्रीय चेतना का स्वर प्रदान करने वाले कवि है
(A) पंत
(B) तुलसी
(C) कबीर
(D) दिनकर
उत्तर
(D) दिनकर

15. जनतंत्र का दूसरा नाम है
(A) राजतंत्र
(B) सामंतवाद
(C) पूँजीवाद
(D) प्रजातंत्र
उत्तर
(D) प्रजातंत्र

16. दिनकर की किस कृति के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला है ?
(A) रश्मिरथी
(B) संस्कृति के चार
(C) उर्वशी
(D) रेणुका
उत्तर
(C) उर्वशी

17. मिट्टी की अबोध मूरतें कौन हैं ?
(A) नेता
(B) जनता
(C) अधिकारी
(D) मंत्री
उत्तर
(B) जनता


जनतंत्र का जन्म- लेखक परिचय

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 ई० में सिमरिया, बेगूसराय (बिहार) में हुआ और निधन 24 अप्रैल 1974 ई० में । उनकी मां का नाम मनरूप देवी और पिता का नाम रवि सिंह था । दिनकर जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव और उसके आस-पास हुई । 1928 ई० में उन्होंने मोकामा घाट रेलवे हाई स्कूल से मैट्रिक और 1932 ई० में पटना कॉलेज से इतिहास में बी० ए० ऑनर्स किया । वे एच० ई० स्कूल, बरबीघा में प्रधानाध्यापक, जनसंपर्क विभाग में सब-रजिस्ट्रार और सब-डायरेक्टर, बिहार विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर एवं
भागलपुर विश्वविद्यालय में उपकुलपति के पद पर रहे।

दिनकर जी जितने बड़े कवि थे, उतने ही समर्थ गद्यकार भी । उनकी भाषा कुछ भी छिपाती – नहीं, सबकुछ उजागर कर देती है । उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं – ‘प्रणभंग’ ‘रेणका’ ‘हंकार’ ‘रसवंती’, ‘कुरुक्षेत्र’, रश्मिरथी’, ‘नीलकुसुम’, ‘उर्वशी’, ‘परशुराम की प्रतीक्षा’, ‘हारे को हरिनाम’ आदि । (काव्य-कृतियाँ) एवं ‘मिट्टी की ओर’, ‘अर्धनारीश्वर’, ‘संस्कृति के चार अध्याय’, ‘काव्य की भूमिका’, ‘वट पीपल’, ‘शुद्ध कविता की खोज’, ‘दिनकर की डायरी’ आदि (गद्य कृतियाँ) । दिनकर जी को ‘संस्कृति के चार अध्याय’ पर साहित्य अकादमी एवं ‘उर्वशी’ पर ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुए। उन्हें भारत सरकार की ओर से ‘पद्मविभूषण’ से भी सम्मानित किया गया था। वे राज्यसभा के सांसद भी रहे।

दिनकर जी उत्तर छायावाद के प्रमुख कवि हैं । वें भारतेन्दु युग से प्रवहमान राष्ट्रीय भावध रा के एक महत्त्वपूर्ण आधुनिक कवि हैं। कविता लिखने की शुरुआत उन्होंने तीस के दशक में ही कर दी थी, किंतु अपनी संवेदना और भावबोध से वे चौथे दशक के प्रमुख कवि के रूप में ही पहचाने गये। उन्होंने प्रबंध, मुक्तक, गीत-प्रगीत, काव्यनाटक आदि अनेक काव्यशैलियों में सफलतापूर्वक उत्कृष्ट रचनायें प्रस्तुत की हैं। प्रबंधकाव्य के क्षेत्र में छायावाद के बाद के कवियों में उनकी उपलब्धियाँ सबसे अधिक और उत्कृष्ट हैं। भारतीय और पाश्चात्य साहित्य का उनका अध्ययन-अनुशीलन विस्तृत एवं गंभीर है । उनमें इतिहास और सांस्कृतिक परंपरा की गहरी चेतना है और समाज, राजनीति, दर्शन का वैश्विक परिप्रेक्ष्य-बोध है जो उनके साहित्य में अनेक स्तरों पर व्यक्त होता है।

राष्ट्रकवि दिनकर-की प्रस्तुत कविता आधुनिक भारत में जनतंत्र के उदय का जयघोष है। सदियों की देशी-विदेशी पराधीनताओं के बाद.स्वतंत्रता प्राप्ति हुई और भारत में जनतंत्र की प्राण-प्रतिष्ठा हुई । जनतंत्र के ऐतिहासिक और राजनीतिक अभिप्रायों को कविता में उजागर करते हुए कवि यहाँ एक नवीन भारत का शिलान्यास सा करता है जिसमें जनता ही स्वयं सिंहासन पर आरूढ़ होने को है । इस कविता का ऐतिहासिक महत्त्व है।


जनतंत्र का जन्म का सारांश (Summary)

सदियों की ठंठी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के जनतंत्र का जन्म काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन काव्य पंक्तियों के द्वारा कवि दिनकर ने कहा है कि सदियों की ठंढी और बुझी हुई राख में सुगबुगाहट दिखायी पड़ रही है कहने का भाव यह है कि क्रांतिकारी की चिनगारी अब भी अपनी गरमी के साथ प्रज्ज्वलित रूप ले रही है। मिट्टी यानी जनता सोने का ताज पहनने के लिए आकुल-व्याकुल है। राह छोड़ो, समय साक्षी है -जनता के रथ के पहियों की घर्घर आवाज साफ सुनायी पड़ रही है। अरे शोषकों! अब भी चंतो और सिंहासन खाली करो—देखो, जनता आ रही है।

उन पंक्तियों के द्वारा आधुनिक भारतीय लोकतंत्र की व्याख्या करते हुए जनता के महत्व को कवि ने रेखांकित किया है। कवि जनता को ही लोकतंत्र के लिए सर्वोपरि मानता है। वह जन प्रतिनिधियों से चलनेवाले लोकतंत्र की विशेषताओं का वर्णन करता है। सदियों से पीड़ित, शोषित, दमित जनता के सुलगते-उभरते क्रांतिकारी विचारों तथा भावनाओं से सबको अवगत कराते हुए सचेत किया है। उसने उसे नमन करने और समय-चक्र को समझने के लिए विवश किया है।


जनता? हाँ, मिट्टी की अबोध मूरतें वही,
जाड़े-पाले की कसम सदा सहनेवाली,
जब अंग-अंग में लगे साँप हो चूस रहे,
तब भी न कभी मुँह खोल दर्द कहनेवाली।

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक जनतंत्र का जन्म काव्य पाठ से ली गयी हैं। इन काव्य पंक्तियों के द्वारा कवि दिनकर ने जनता की प्रशंसा में काव्य-रचना किया है। कवि कहता है कि जनता सचमुच में मिट्टी की अबोध मूरतें ही हैं। जनता की पीड़ा व्यक्त नहीं की जा सकती। वह जाड़े की रात में जाड़ा-पाला को सामान्य ढंग से जीते हुए जीती है उसकी कसक को वह हिम्मत के साथ सह लेती है।

तनिक भी आह नहीं करती। ठंढ से कंपकपाता शरीर, लगता है कि हजारों साँप डंस रहे हैं, कितनी पीड़ा व्यथा को सहकर वह जीती है, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। इतनी पीड़ा, दुःख को सहकर भी वह अपनी व्यथा कभी व्यक्त नहीं करती। कवि ने जनता की हिम्मत और कष्ट सहने की आदत को कितनी मार्मिकता के साथ व्यक्त किया है।

इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने भारतीय जनजीवन की आर्थिक विपन्नता और मानसिक पीड़ा को अभिव्यक्ति दी है। उसने भारत की गरीबी, बेकारी, अभावग्रस्तता का सटीक वर्णन किया है। उसकी यानी जनता की बेबसी, बेकारी, लाचारी और शारीरिक पीड़ा, भोजन-वस्त्र, आवास की कमी की ओर सबका ध्यान आकृष्ट किया है। कवि का कोमल हृदय भारतीय जन की दयनीय अवस्था से पीड़ित है। वह उसके लिए ममत्व रखता है और भविष्य में उसकी महत्ता की ओर इंगित भी करता है।


जनता? हाँ, लंबी-बड़ी जीभ की बही कसम,
“जनता, सचमुच ही, बड़ी वेदना सहती है।”
“सो ठीक, मगर, आखिर, इस पर जनमत क्या है ?”
“है प्रश्न गूढ़ जनता इस पर क्या कहती है ?”

प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘जनतंत्र का जन्म’ काव्य पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों में कवि के कहने का भाव यह है कि जनता असह्य वेदना को सहकर जीती है। जीवन में वह उफ तक नहीं करती। कवि शपथ लेकर कहता है कि लंबी-चौड़ी जीभ की बातों पर विश्वास किया जाय। कसम के साथ यह कहना है कि कवि की पीड़ा को शब्दों द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता है। जनमत का सही-सही अर्थ क्या है ? कवि राजनीतिज्ञों से पूछता है और जानना चाहता है। यह प्रश्न बड़ा गंभीर और प्रासंगिक है। ऐसी अपनी विषम स्थिति पर जनता की क्या सोच है ? राजनेताओं की डींग भरी बातों में कहीं उनकी पीड़ा या वेदना का जिक्र है क्या ?

इन पंक्तियों के द्वारा कवि जनता को पीड़ा, उसकी विपन्नता, कसक और उत्पीड़न भरी जिन्दगी की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करते हुए चेतावनी देता है और लोकतंत्र का मजाक उड़ाने से मना करता है।


“मानो, जनता हो फूल जिसे एहसास नहीं,
जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में;
अथवा कोई दुधमुंही जिसे बहलाने के
जन्तर-मन्तर सीमित हों चार खिलौनों में।’

प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘जनतंत्र का जन्म’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने जनता को फूल के समान नहीं समझने और देखने को कहा है। कवि का भाव जनता के प्रति बड़ा ही पवित्र है। वह कहता है कि जनता फूल नहीं है कि जब चाहो दोनों में सजा लो और जहाँ चाहो वहाँ रख दो। जनता दुधमुंही बच्ची भी नहीं है कि उसे बरगला कर काम बना लोगे। वह झूठी-मूठी बातों से भरमाई नहीं जा सकती। तंत्र-मंत्र रूपी खिलौनों से भी वश में नहीं की जा सकती। जनता का हृदय सेवा और प्रेम से ही जीता जा सकता है। अतः, जनता को समादर के साथ उचित तरजीह और अधिकार मिलना चाहिए। उसके हक की रक्षा होनी चाहिए। सम्मान और सहभागिता भी सही होनी चाहिए।


लेकिन, होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढ़ाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘जनतंत्र का जन्म’ काव्य पाठ से ली गयी हैं। इस कविता में जनता की अजेय शक्ति का वर्णन किया गया है। जनता के पास अपार शक्ति है। जनता जब हुँकार भरती है तब भूकंप हो जाता है। बवंडर उठ खड़ा होता है। जनता के हुँकार : के समक्ष सभी नतशिरे हो जाते हैं।
जनता की राह को आज तक कौन रोक सका है ? सुनो, जनता रथ पर सवार होकर आ रही है, उसकी राह छोड़ दो और सिंहासन खाली करो कि जनता आ रही है।

इन पंक्तियों में जनता की शक्ति और उसके उचित सम्मान की रक्षा हो, इस पर कवि जोर देता है। कवि जनता का अधिक शक्ति के साथ उसके सम्मान और उसके लिए पथ-प्रशस्त करने की भी सलाह देता है। इस प्रकार जनता के प्रति कवि उदार भाव रखता है वह समय का साक्षी है। इसीलिए भविष्य के प्रति आगाह करते हुए जनता के उचित सम्मान की सिफारिश करता है।


हँकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
साँसों के बल से ताज हवा में उड़ता है;
जनता की रोके राह, समय में ताव कहाँ ?
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है।

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘जनतंत्र का जन्म’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों में कवि के कहने का आशय है कि जनता की हुँकार से, जनता की ललकार से, राजमहलों की नींवें उखड़ जाती हैं। मूल भाव है कि जनता और जनतंत्र के आगे राजतंत्र का अर्थ कोई मोल नहीं?

जनता की साँसों के बल से राजमुकुट हवा में उड़ जाते हैं-गूढार्थ हुआ कि जनता ही राजा को मान्यता प्रदान करती है और वही राजा का बहिष्कार या समाप्त भी करती है।

जन-पथ को कौन अबतक रोक सका है ? समय में वह ताव या शक्ति कहाँ जो जनता की राह को रोक सके। महा कारवाँ के भय से समय भी दुबक जाता है। जनता जैसा चाहती है, समय भी वैसी ही करवट बदल लेता है। जनता के मनोनुकूल समय बन जाता है। यहाँ मूल भाव यह है कि किसी भी तंत्र की नियामक शक्ति जनता है। उसका महत्त्व सर्वोपरि है।


अब्दों, शताब्दियों, सहस्त्राब्द का अंधकार
बीता; गवाक्ष अम्बर के दहके जाते हैं;
यह और नहीं कोई, जनता के स्वप्न अजय
चीरते तिमिर का वक्ष उमड़ते आते हैं।

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘जनतंत्र का जन्म’ नामक काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों में कवि के कहने का मूलभाव यह है कि वर्षों, सैकड़ों वर्षों, हजारों वर्षों बीता हुआ अंधकाररूपी समय बीत गया। अंबर चाँद-तारे प्रज्ज्वलित होकर धरती पर उतर रहे हैं। यह कोई दूसरा नहीं है। ये तो जनता के स्वप्न हैं जो अंधकार के वक्ष को चीरते हुए ध रा पर अवतरित हो रहे हैं। यहाँ प्रकृति के रूपों में भी कवि जनता के विजयारोहण का गान कर रहा है। जनता में अजेय शक्ति है। वह महाप्रलय और महाविकास की जननी है। उसके सामने सभी चीजें शक्तिहीन हैं, शून्य हैं। जनता का स्वतंत्रता में सर्वाधिक महत्त्व है।


सबसे विराट जनतंत्र जगत का आ पहुंचा,
तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तैयार करो;
अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘जनतंत्र का जन्म’ नामक काव्य पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों में कवि के कहने का मुल भाव यह है कि भारत में लोकतंत्र का उदय हो रहा है। भारत स्वाधीन हो चुका है। यहाँ लोकतंत्र की स्थापना हो रही है। यहाँ की तैंतीस करोड़ जनता के हित की बात है। शीघ्र सिंहासन तैयार करो और जनता का अभिषेक कर सिंहासन पर बिठाओ ! आज राजा की अगवानी या अभ्यर्थना करने की जरूरत नहीं। आज प्रजा को पूजने और सिंहासनारूढ़ करने की जरूरत है।

आज का शुभ दिन तैंतीस करोड़ जनता के सिर पर राजमुकुट रखने का है। आशय कहने का है कि जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा शासन ही लोकतंत्र है। अतः, लोकतंत्र की अगवानी, पूजा, अभ्यर्थना तथा उसे मान्यता मिलनी चाहिए।


आरती लिए तू किसे ढूंढता है मूरख,
मंदिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में ?
देवता कहीं सड़कों पर मिट्टी-तोड़ रहे,
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में।

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “जनतंत्र का जन्म” काव्य-पाठ से ली गयी हैं। कवि के कहने का मूल भाव यह है कि आज हम आरती उतारने के लिए इतना व्यग्र हैं, मूर्ख बनकर किसे हम ढूँढ रहे हैं ?

मंदिरों, राजमहलों, तहखानों में अब देवता या राजा नहीं बसते हैं। आज के देवता हैं जनता। जनता को पाने के लिए सड़कों पर, खेतों में, खलिहानों में जाना होगा क्योंकि वहीं वे श्रम करते हुए मिलेंगे।

कहने का अर्थ यह है कि लोकतंत्र में जनता ही सब कुछ होती है। सारी शक्तियाँ उसी में निहित हैं। वही देवता है, वही राजा है वही लोकतंत्र है। अतः, उसे पाने के लिए गाँवों में, खेतों में, खलिहानों में, सड़कों पर जाना होगा। उसका तो वही मंदिर है, राजमहल है, तहखाना है। जनता . लोकतंत्र की शक्ति-पुंज है।


फावड़े और हल राजदंड बनने को हैं,
धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है।
दो राह, समय के रथ का घर्धर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

प्रस्तुत काव्य पक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘जनतंत्र का जन्म’ नामक काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग जनता के साथ जुड़ा हुआ है लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि होती है। वही सत्ता को चलाती है। वही सत्ता की रक्षा करती है। वही सत्ता के लिए संघर्ष करती है।

लोकतंत्र का राजदंड कोई राजपत्र-कोई हथियार या भिन्न प्रकार का औजार नहीं है। लोकतंत्र का मूल राजदंड है-जनता का हल और कुदाला क्योंकि इसी के द्वारा वह धरती से सोना पैदाकर लोकतंत्र को सबल और सुसंपन्न बनाती है अब कुदाल और हल ही राजदंड के प्रतीक बनेंगे। ध रती की धूसरता का श्रृंगार आज सोना कर रहा है यानी धूल में ही स्वर्ण-कण छिपे हुए हैं
उनका रूप भले ही भिन्न-भिन्न हो। रास्ता शीघ्र दो, देखो, समय के रथ का पहिया घर्धर आवाज करते हुए आगे को बढ़ता जा रहा है। सिंहासन शीघ्रता से खाली करो, देखो जनता स्वयं आ रही है। इन पंक्तियों का गूढार्थ है कि जनता ही जनतंत्र की रक्षा, निर्माता और पोषक है।

MCQ and Summary for हिरोशिमा Class 10 Hindi Matric Godhuli

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MCQ and Summary for हिरोशिमा (Hiroshima) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

हिरोशिमा - स० ही० वात्स्यायन MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. 'हिरोशिमा' के कवि कौन हैं ?
(A) रामधारी सिंह 'दिनकर'
(B) कुँवर नारायण
(C) सच्चिदानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'
(D) जीवनानंद दास
उत्तर
(C) सच्चिदानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'

2. 'अज्ञेय' किसका उपनाम है?
(A) सच्चिदानंद वात्स्यायन
(B) रामधानी सिंह
(C) बदरी नारायण चौधरी
(D) वीरेन डंगवाल
उत्तर
(A) सच्चिदानंद वात्स्यायन

3. 'हिरोशिमा' कहाँ है ?
(A) जापान में
(B) म्यांमार में
(C) कोरिया में
(D) चीन में
उत्तर
(A) जापान में

4. 'हिरोशिमा' कविता में सूरज की संज्ञा किसे दी गई है ?
(A) जापान बम को
(B) अणुबम को
(C) हाइड्रोजन बम को
(D) रडार को
उत्तर
(B) अणुबम को

5. 'अज्ञेय' किस काव्य-धारा के कवि हैं ?
(A) रहस्यवाद
(B) छायावाद
(C) नकेनवाद
(D) प्रयोगवाद
उत्तर
(D) प्रयोगवाद

6. किस काव्य-संकलन क प्रकाशन से हिन्दी में नयी हवा के झोंके आए?
(A) तार-सप्तक
(B) हरी घास पर क्षण भर
(C) चक्रवाल
(D) इन दिनों
उत्तर
(A) तार-सप्तक

7. अज्ञेय किस काल के प्रमुख कवि हैं ?
(A) भक्ति
(B) प्राचीन
(C) आधुनिक
(D) स्वर्णकाल
उत्तर
(C) आधुनिक

8. हिरोशिमा में क्या हुआ ?
(A) अणु बम विस्फोट
(B) निर्माण कार्य
(C) उत्थान कार्य
(D) सभी
उत्तर
(A) अणु बम विस्फोट

9. 'हिरोशिमा' कविता में किसका सजीव चित्रण हुआ है ?
(A) बम का
(B) मानवयी विभिषिका का
(C) टैंक का
(D) तलवारों का
उत्तर
(B) मानवयी विभिषिका का

10. 'हिरोशिमा' शीर्षक कविता के रचनाकार हैं?
(A) अज्ञेय
(B) पंत
(C) दिनकर
(D) मीरादेवी
उत्तर
(A) अज्ञेय

11. अणुबम विस्फोट से क्या हुआ ?
(A) अपार जन विकास
(B) अपार जन हानि
(C) (A) एवं (B) दोनों में
(D) सभी गलत है
उत्तर
(B) अपार जन हानि

12. अणुबम किसने बनाया ?
(A) दानवों ने
(B) मानवों ने
(C) महर्षियों ने
(D) जानवरों ने
उत्तर
(B) मानवों ने

13. हिरोशिमा पर बम किसने गिराया ?
(A) कोरिया ने
(B) चीन ने
(C) अमेरिका ने
(D) अफ्रीका ने
उत्तर
(C) अमेरिका ने

14. हिरोशिमा में मानव का साक्षी क्या है ?
(A) मानव द्वारा गिराया गया अणुबम
(B) वहाँ की स्थापत्य कला
(C) शांति स्तूप
(D) परमाणु संयंत्र
उत्तर
(A) मानव द्वारा गिराया गया अणुबम

15. हिरोशिमा में बम गिराये जाने के बाद वातावरण में क्या सुनाई देने लगा?
(A) चीत्कार
(B) कोहराम
(C) चीत्कार और कोहराम
(D) सभी गलत है
उत्तर
(C) चीत्कार और कोहराम

16. बम गिराने के बाद लोग क्या करने लगे ?
(A) सोने लगे
(B) रोने लगे
(C) हँसने लगे
(D) जान-बचाने भागने लगे
उत्तर
(D) जान-बचाने भागने लगे

17. कौन लोक कल्याणकारी भाव रखता है ?
(A) सूर्य
(B) बम
(C) विज्ञान
(D) शिला
उत्तर
(A) सूर्य

18. हिरोशिमा का मूल अस्तित्व किसने मिटा दिया?

(A) सूरज ने
(B) अणु बम ने
(C) वैज्ञानिकों ने
(D) प्रगति ने
उत्तर
(C) वैज्ञानिकों ने

19. अज्ञेय का जन्म कब हुआ ?
(A) 1910 ई.
(B) 1911 ई.
(C) 1912 ई०
(D) 1913 ई०
उत्तर
(B) 1911 ई.

20. 'हिरोशिमा' कविता किसका चित्रण करती है ?
(A) प्राचीन सभ्यता की खुशहाली का
(B) आधुनिक सभ्यता के विकास का
(C) प्राचीन सभ्यता की मानवीय विभीषिका का
(D) आधुनिक सभ्यता की दुर्दात मानवीय विभीषिका का
उत्तर
(D) आधुनिक सभ्यता की दुर्दात मानवीय विभीषिका का


हिरोशिमा कवि परिचय

अज्ञेय का जन्म 7 मार्च 1911 ई० में कसेया, कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) में हुआ, किंतु उनका मूल निवास कर्तारपुर (पंजाब) था। अज्ञेय की माता व्यंती देवी थीं और पिता डॉ० हीरानंद शास्त्री एक प्रख्यात पुरातत्त्वेत्ता थे । अज्ञेय की प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ में घर पर हुई। उन्होंने मैट्रिक 1925 ई० में पंजाब विश्वविद्यालय से, इंटर 1927 ई० में मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से, बी० एससी० 1929 ई० में फोरमन कॉलेज, लाहौर से और एम० ए० (अंग्रेजी) लाहौर से किया ।

अज्ञेय बहुभाषाविद् थे। उन्हें संस्कृत, अंग्रेजी, हिन्दी, फारसी, तमिल आदि अनेक भाषाओं का ज्ञान था । वे आधुनिक हिंदी साहित्य के एक प्रमुख कवि, कथाकार, विचारक एवं पत्रकार थे । उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं – काव्य : भग्नदूत’, ‘चिंता’, ‘इत्यलम’, ‘हरी घास पर क्षण भर’, ‘बावरा अहेरी’, ‘आँगन के पार द्वार’, ‘कितनी नावों में कितनी बार’, ‘सदानीरा’ आदि; कहानी संग्रह : ‘विपथगा’, ‘जयदोल’, ‘ये तेरे प्रतिरूप’, ‘छोड़ा हुआ रास्ता’, ‘लौटती पगडडियाँ’ आदि; उपन्यास : ‘शेखर : एक जीवनी’, ‘नदी के द्वीप’, ‘अपने-अपने अजनबी’, यात्रा-साहित्यः अरे यायावर रहेगा याद’, ‘एक बूँद सहसा उछली’; निबंध : ‘त्रिशंकु’, ‘आत्मनेपद’, ‘अद्यतन’, ‘भवंती’, ‘अंतरा’, ‘शाश्वती’ आदि; नाटक : ‘उत्तर प्रियदर्शी’; संपादित ग्रंथ : ‘तार सप्तक’, ‘दूसरा सप्तक’, ‘तीसरा सप्तक’, ‘चौथा सप्तक’, ‘पुष्करिणी’, ‘रूपांबरा’ आदि । अज्ञेय ने अंग्रेजी में भी मौलिक रचनाएँ की और अनेक ग्रंथों के अनुवाद भी किए । वे देश-विदेश के अनेक विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफेसर रहे । उन्हें साहित्य अकादमी, ज्ञानपीठ, नुगा (युगोस्लाविया) का अंतरराष्ट्रीय स्वर्णमाल आदि अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए । 4 अप्रैल 1987 ई० में उनका देहांत हो गया ।

अज्ञेय हिंदी के आधुनिक साहित्य में एक प्रमुख प्रतिभा थे। उन्होंने हिंदी कविता में प्रयोगवाद का सूत्रपात किया । सात कवियों का चयन कर उन्होंने ‘तार सप्तक’ को पेश किया और बताया कि कैसे प्रयोगधर्मिता के द्वारा बासीपन से मुक्त हुआ जा सकता है । उनमें वस्तु, भाव, भाषा, शिल्प आदि के धरातल पर प्रयोगों और नवाचरों की बहुलता है।

आधुनिक सभ्यता की दुर्दात मानवीय विभीषिका का चित्रण करनेवाली यह कविता एक अनिवार्य प्रासंगिक चेतावनी भी है । कविता अतीत की भीषणतम मानवीय दुर्घटना का ही साक्ष्य नहीं है, बल्कि आणविक आयुधों की होड़ में फंसी आज की वैश्विक राजनीति से उपजते संकट की आशंकाओं से भी जुड़ी हुई है । आधुनिक कवि अज्ञेय की प्रस्तुत कविता उनकी समग्र कविताओं के संग्रह ‘सदानीरा’ से यहाँ संकलित है ।


हिरोशिमा का सारांश (Summary)

रस्तुत कविता में आधुनिक सभ्यता की मानवीय विभीषिका का चित्रण किया गया है। यह कविता ‘अज्ञेय‘ की ‘सदानीरा‘ कविता संग्रह से संकलित है।

एक दिन सहसा
सुरज निकला
अरे क्षितिज पर नहीं,
नगर के चौकः
धूप बरसी
पर अंतरिक्ष से नहीं,
फटी मिट्टी से
कवि कहता है कि एक दिन सबेरे प्रकाश दिखाई पड़ा। यह प्रकाश क्षितिज से निकलते सूरज का नहीं, बल्कि शहर के मध्य में अमेरिका द्वारा गिराए गए बम का था। लोग गर्मी से जलने लगे। यह धूप की गर्मी नहीं थी। यह गर्मी बम विस्फोट से उत्सर्जित किरणों की थी। गर्मी फटी धरती की थी।


छायाएँ मानव-जन की
दिशाहीन
सब ओर पड़ी-वह सुरज
नहीं उगा था पूरब में, वह
बरसा सहसा
बीचो-बीच नगर के :
काल-सूर्य के रथ के
पहियों के ज्यों अरे टुटकर
बिखर गये हो
दशों दिशा में।
कवि कहता है कि मनुष्य की छायाएँ दिशाहिन हो गई। प्रकाश छिटने लगा, लेकिन यह प्रकाश सूर्य का नहीं, बल्कि मानव के नृशंसता का था, जिसमें मानवता झुलस रही थी। कवि कहता है कि यह नगर के मध्य में मृत्यु रूपी सूर्य के टुटे हुए अरे का प्रकाश था। अतः बम फटते हि विध्वंसक पदार्थ मौत बनकर दशों दिशाओं में नाचने लगे।


कुछ छन का वह उदय-अस्त
केवल एक प्रज्वलित छन की
दृश्य सोख लेने वाली दो पहरी
फिर ?
छायाएँ मानव-जन की
नहीं मिटी लंबी हो-हो कर :
मानव ही सब भाप हो गये।
छायाएँ तो अभी लिखी हैं।
झुलसे हुए पत्थरों पर
उजड़ी सड़कों की गच पर।
कवि कहता है कि बम गिरने के बाद कुछ छन में ही विनाशलीला का दृश्य मन्द पड़ने लगा। दोपहर तक सारी लीला खत्म हो गई तथा मानव शरीर भाप बनकर वातावरण में मिल गया, परन्तु यह दुर्घटना आज भी झुलसे हुए पत्थरों और उजड़ी हुई सडकों पर के रूप में निशानी है।


मानव का रचा हुआ सुरज
मानव को भाप बनाकर सोख गया।
पत्थर पर लिखी हुई यह
जली हुई छाया
मानव की साखी है।
मानव के द्वारा बनाया गया बम मानव को ही भाप में बदलकर मिटा दिया। पत्थर पर लिखी हुई वह जलती छाया अर्थात् विकृत रूप मानव के नृशंसता का गवाह है।


हिरोशिमा - व्याख्या

एक दिन सहसा
सूरज निकला
अरे क्षितिज पर नहीं,
नगर के चौक
धूप बरसी
पर अन्तरिक्ष से नहीं,
फटी मिट्टी से।

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘हिरोशिमा’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग हिरोशिमा पर गिराये गये बम से हैं।
कवि कहता है कि अचानक एक दिन चौक पर सूरज का विस्फोट हुआ। उस सूरज ने क्षितिज पर नहीं, पूरब में नहीं बल्कि चौक पर अपनी तीखी धूप से जन-जीवन को तहस-नहस कर दिया।

अंतरिक्ष से सूरज नहीं निकला था। बम विस्फोट से धरती दहल गयी थी और उसकी आंतरिक संरचना में उथल-पुथल मच गयी थी। यहाँ कवि ने नये प्रयोगों द्वारा शब्दों के माध्यम से मानवीय क्रूरतम् पक्षों को उद्घाटित किया है। हिरोशिमा पर बम विस्फोट भयंकर मानवीय दुर्घटना थी। आज के आणविक आयुध की होड़ में हम कितने क्रूर हो गए हैं। इस सृष्टि के विनाश में सदैव तत्पर रहते हैं। वैश्विक राजनीति के कारण अनेक संकट की आशंकाएँ बनी रहती हैं। सृष्टि का पालनकर्ता सूर्य नहीं बल्कि सृष्टि का विनाशक सूर्य धरती पर उगा था। कहने का मूल भाव है कि मनुष्य ही आज सबसे खतरनाक जीव हो गया है। वह दिन-रात विध्वंसक कार्यों में संलग्न रहता है।

उसी के काले कारनामों में हिरोशिमा पर बरसाया गया बम भी था जो सृष्टिकाल का भयंकर विस्फोट था। अपार धन-जन और संस्कृति की हानि हुई थी। इन पंक्तियों में सूर्य को प्रतीक रूप में कवि ने प्रयोग किया है। कवि ने मानव के विध्वंसकारी रूप का वर्णन किया है। कैसे हम वैसे विनाशकारी सूर्य की कल्पना और सृजन कर रहे हैं जो सारी सृष्टि का विनाशक सिद्ध हो रहा है।


छायाएँ मानव-जन की
दशाहीन
सब ओर पड़ीं-वह सूरज
नहीं उगा था पूरब में, वह
बरसा सहसा
बीचों-बीच नगर के
काल-सूर्य के रथ के
पहियों के ज्यों अरे टूट कर
बिखर गये हों
दसों दिशा में।

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक हिरोशिमा काव्य-पाठ से ली गयी हैं।
इन पंक्तियों का प्रसंग हिरोशिमा पर बरसाए गए बम और उससे हुए अपार धन-जन के महाविनाश से है। कवि ने अपनी काव्य-पक्तियों में अपने भावों को व्यक्त करते हुए कहा है कि जब बम विस्फोट हुआ था उस समय चारों तरफ अफरा-तफरी मच गयी थी—कुहराम मच गया था। लोग जान बचाने के लिए दिशाहीन होकर जिधर-जिधर भाग रहे थे। अपनी प्राण रक्षा के लिए आकुल-व्याकुल दिख रहे थे। वह सूरज पूरब में उगकर नहीं आया था-धरती पर। वह अचानक शहर के बीचोंबीच में गिरा। लगता था कि कालरूपी सूर्य के रथ के पहिये धूरी के साथ टूटकर बिखर गये हों।

इन पंक्तियों में सूर्य को प्रतीक मानते हुए बम की विध्वंसकारी लीलाओं, उससे हुई अपार धन-जन की हानि, मानवीय पीड़ाओं का यथार्थ और पीडादायी वर्णन हुआ है। यह कवि के जीवन : की सबसे बड़ी दर्दनाक घटना है आज आदमी अपनी क्रूरता की सीमाओं को लाँघ गया है और स्वयं के महाविनाश में लगा हुआ है।


कुछ क्षण का वह उदय-अस्त।
केवल एक प्रज्वलित क्षण की
दृश्य सोख लेनेवाली दोपहरी।
फिर?
छायाएँ मानव जन की
नहीं मिटीं लम्बी हो-होकर;
मानव ही सब भाप हो गए।
छायाएँ तो अभी लिखी हैं
झुलसे हुए पत्थरों पर
उजड़ी सड़कों की गच पर।

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘हिरोशिमा’ नामक काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग हिरोशिमा पर गिराये गए बम से है जिससे अपार धन-जन की हानि हुई थी।

कवि कहता है कि बम विस्फोट काल में कुछ क्षण तक स्तब्धता छा गयी थी। चारों तरफ धुआँ ही धुआँ और विस्फोटक पदार्थों से धरती पट गयी थी। प्रतीत होता था कि यह दोपहरी प्रज्ज्वलित क्षण के दृश्यों को सोख लेगी। कहने का मूल भाव यह है कि दोपहर का सूर्य ज्यादा गरमी वाला होता है। उसने यानी सूर्यरूपी बम ने जन-जन के अस्तित्व को मिटा दिया था क्षणभर के लिए।

MCQ and Summary for एक वृक्ष की हत्या Class 10 Hindi Matric Godhuli

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MCQ and Summary for एक वृक्ष की हत्या (Ek Vriksh ki Hatya) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

एक वृक्ष की हत्या - कुंवर नारायण MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. कुंवर नारायण कैसे कवि हैं ?
(A) रहस्यवादी
(B) छायावादी
(C) हालावादी
(D) संवेदनशील
उत्तर
(D) संवेदनशील

2. एक वृक्ष की हत्या के कवि कौन हैं?
(A) अज्ञेय
(B) पंत
(C) कुँवर नारायण
(D) जीवनानंद दास
उत्तर
(C) कुँवर नारायण

3. 'एक वक्ष की हत्या' किस काव्य-संग्रह से संकलित है ?
(A) इन्हीं दिनों
(B) हम-तुमा
(C) आमने-सामने
(D) चक्रव्यूह
उत्तर
(A) इन्हीं दिनों

4. कंवर नारायण आधुनिक युग की किस काव्य-धारा के कवि है?
(A) प्रगतिवादी
(B) प्रयोगवादी
(C) यथार्थवादी
(D) नयी कविता
उत्तर
(D) नयी कविता

5. एक वृक्ष की हत्या में वृक्ष को किस रूप में कवि ने प्रस्तुत किया है?
(A) वृक्ष के रूप में
(B) घर के रूप में
(C) मानव के रूप में
(D) पशु के रूप में
उत्तर
(C) मानव के रूप में

6. कुंवर नारायण ने पेड़ की डाल की तुलना किससे की है ?
(A) लाठी से
(B) राइफल से
(C) भाला से
(D) तोप से
उत्तर
(B) राइफल से

7. वृक्षों के काटने का भयंकर परिणाम क्या होगा?
(A) धूप
(B) बादल
(C) मानव सभ्यता का विनाश
(D) बाढ़
उत्तर
(C) मानव सभ्यता का विनाश

8. निम्नांकित में कौन आधुनिक कवि है ?
(A) कुँवर नारायण
(B) तुलसीदास
(C) सूरदास
(D) प्रेमघन
उत्तर
(A) कुँवर नारायण

9. कुँवर नारायण किसके कवि है ?
(A) दया
(B) अपनत्व
(C) संवेदना
(D) ईर्ष्या
उत्तर
(C) संवेदना

10. प्रस्तुत कविता में कौन अर्थालंकार है?
(A) उपमा
(B) उपमेय
(C) रूपक
(D) उपमान
उत्तर
(C) रूपक

11. वृक्ष हमारे क्या हैं ?
(A) धरोहर
(B) पालतू
(C) भाई
(D) कुटुम्ब
उत्तर
(B) पालतू

12. वृक्ष और कवि के मध्य जो संवाद हो रहा था, वह कैसा था ?
(A) वेगात्मक
(B) भावात्मक
(C) संज्ञाशून्य
(D) विवादास्पद
उत्तर
(A) वेगात्मक

13. वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से कैसी समस्या उत्पन्न होगा ?
(A) पर्यावरण प्रदूषण
(B) पानी की उपलब्धता
(C) खरतपवार नियंत्रण
(D) रेगिस्तान में कमी
उत्तर
(A) पर्यावरण प्रदूषण

14. प्रस्तुत पाठ में चौकीदार कौन है ?
(A) बूढ़ा वृक्ष
(B) नव पल्लव
(C) गेहूं की फसल
(D) भिंडी का पौधा
उत्तर
(A) बूढ़ा वृक्ष

15. कवि ने घर के पास वाले वृक्ष को किस संज्ञा से मंडित किया है ?
(A) छाया
(B) शीतलता
(C) चौकीदार
(D) खाट
उत्तर
(C) चौकीदार

16. 'एक वृक्ष की हत्या' में कवि शहर को किससे बचाने की बात करता है ?
(A) लुटेरों से
(B) देश के दुश्मनों से
(C) नादिरों से
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(C) नादिरों से

17. 'एक वृक्ष की हत्या' कविता किस काव्य-संग्रह से संकलित है ?
(A) दीपशिखा
(B) ग्राम्या
(C) इन दिनों
(D) चिंता
उत्तर
(C) इन दिनों


एक वृक्ष की हत्या -कवि परिचय

कुँवर नारायण का जन्म 19 सितंबर 1927 ई० में लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था । कुँवर ।’ नारायण ने कविता लिखने की शुरुआत सन् 1950 के आस-पास की । उन्होंने कविता के अलावा चिंतनपरक लेख, कहानियाँ और सिनेमा तथा अन्य कलाओं पर समीक्षाएँ भी लिखीं हैं, किंतु कविता उनके सृजन-कर्म में हमेशा मुख्य रही । उनको प्रमुख रचनाएँ हैं – ‘चक्रव्यूह’, ‘परिवेश : हम तुम’, ‘अपने सामने’, ‘कोई दूसरा नहीं’, ‘इन दिनों’ (काव्य संग्रह); ‘आत्मजयी’ (प्रबंधकाव्य): ‘आकारों के आस-पास’ (कहानी संग्रह); ‘आज और आज से पहले’ (समीक्षा) : ‘मेर साक्षात्कार’ (साक्षात्कार) आदि । कुँवर नारायण जी को अनके पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं जो इस प्रकार हैं – ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘कुमारन आशान पुरस्कार’, ‘व्यास सम्मान’, ‘प्रेमचंद पुरस्कार’, ‘लोहिया सम्मान’, ‘कबीर सम्मान’ आदि ।

कुँवर नारायण पूरी तरह नगर संवेदना के कवि हैं । विवरण उनके यहाँ नहीं के बराबर है, पर वैयक्तिक और सामाजिक ऊहापोह का तनाव पूरी व्यंजकता के साथ प्रकट होता है । आज का समय और उसकी यांत्रिकता जिस तरह हर सजीव के अस्तित्व को मिटाकर उसे अपने लपेटे में ले लेना चाहती है, कुँवर नारायण की कविता वहीं से आकार ग्रहण करती है और मनुष्यंता और सजीवता के पक्ष में संभावनाओं के द्वार खोलती है। नयी कविता के दौर में, जब प्रबंधकाव्य का स्थान लंबी कविताएँ लेने लगी, तब कुँवर नारायण ने ‘आत्मजयी’ जैसा प्रबंधकाव्य रचकर भरपूर प्रतिष्ठा प्राप्त की । उनकी कविताओं में व्यर्थ का उलझाव, अखबारी सतहीपन और वैचारिक धुंध के बजाय संयम, परिष्कार और साफ-सुथरापन है । भाषा और विषय की विविधता उनकी कविताओं के विशेष गुण माने जाते हैं। उनमें यथार्थ का खुरदुरापन भी मिलता है और उसक सहज सौंदर्य भी।

तुरंत काटे गए एक वृक्ष के बहाने पर्यावरण, मनुष्य और सभ्यता के विनाश की अंतर्व्यथा को अभिव्यक्त करती यह कविता आज के समय की अपरिहार्य चिंताओं और संवेदनाओं का रचनात्मक अभिलेख है । यह कविता कुँवर नारायण के कविता संग्रह ‘इन दिनों से संकलित है।


एक वृक्ष की हत्या का सारांश (Summary)

प्रस्तुत कविता में कवि ने एक वृक्ष के बहाने पर्यावरण, मनुष्य और सभ्यता के विनाश की अन्तर्व्यथा पर मार्मिक विचार प्रकट किया है।


अबकी घर लौटा तो देखा वह नहीं था-
वहीं बूढ़ा चौकीदार वृक्ष
जो हमेशा मिलता था घर के दरवाजे पर तैनात।
कवि कहता है कि जब वह प्रदेश से घर लौटा तो अपने घर के सामने वाले पुराने पेड़ को न देखकर सोच में पड़ गया कि आखिर वह पेड़ गया कहाँ ? क्योंकि जब कभी घर आता था तो उस पेड़ को चौकीदार की तरह तैनात पाता था।


पुराने चमड़े का बना उसका शरीर
वही सख्त जान
झुर्रियांदार खुरदुरा तना मैलाकुचैला,
राइफिल-सी एक सूखी डाल,
एक पगड़ी फूलपत्तीदार,
पाँवों में फटापुराना जूता,
चरमराता लेकिन अक्खड़ बल-बूता
वह पेड़ अधिक दिनों के होने के कारण अपना हरापन खो चूका था। डालें सूख गई थीं, पत्ती झड़ गये थे। लेकिन पेड़ का उपरी भाग फूल-पत्ती से युक्त था जो पगड़ी के समान प्रतित हो रहा था। पेड़ पुराना होने के कारण उसका तना खुरदुरा था। हर विषम परिस्थितियों में वह पेड़ निर्भीक होकर बहादुर के समान वहाँ खड़ा रहता था।

 
धूप में बारिश में
गर्मी में सर्दी में
हमेशा चौकन्ना
अपनी खाकी वर्दी में
कवि कहता है कि वह बुढ़ा वृक्ष गर्मी, सर्दी तथा बरसात में हमेशा चौकीदार की तरह खाकी वर्दी में अर्थात् छाल नष्ट होने के कारण हल्के-पीले रंग का दिखाई पड़ता था।


दूर से ही ललकारता ‘‘ कौन ? ‘‘
मैं जवाब देता, ‘‘ दोस्त ! ‘‘
और पल भर को बैठ जाता
उसकी ठंढी छाँव में
दरअसल शुरू से ही था हमारे अन्देशों में
कहीं एक जानी दुश्मन
कवि कहता है कि जब वह पेड़ के समीप पहुँचता था कि दूर से ही वह चौकिदार के समान सावधान करता था। तात्पर्य यह कि जैसे चौकिदार आनेवालों से जानकारी लेने के लिए पूछता है, वैसे ही वह पेड़ कवि से जानना चाहता है तब कवि अपने को उसका दोस्त कहते हुए उस पेड़ की शीतल छाया में बैठकर सोचने लगता है कि कहीं संवेदनहीन मानव स्वार्थपूर्ति के लिए इसे काट न दें।

 
कि घर को बचाना है लुटेरों से
शहर को बचाना है नादिरों से
देश को बचाना है देश के दुश्मनों से
कवि कहता है कि घर को बचाना है लुटेरों से, शहर को बचाना होगा हत्यारा से तथा देश को बचाना होगा देश के दुश्मनों से अर्थात् घर, शहर तथा देश तभी सुरक्षित रहेंगें, जब वृक्षों की रक्षा होगी।

 
बचाना है –
नदियों को नाला हो जाने से
हवा को धुँआ हो जाने से
खाने को जहर हो जाने से :
बचाना है – जंगल को मरूस्थल हो जाने से,
बचाना है – मनुष्य को जंगल हो जाने से।
कवि आगे कहता है कि नदियों को नाला बनने से, हवा को धुँआ बनने से तथा खाने को जहर बनने से बचाना होगा। इतना हि नहीं जंगल को मरूस्थल तथा मनुष्य को जंगल हो जाने से बचाना होगा। तात्पर्य यह कि पेड़-पौधों की रक्षा नहीं किया जायेगा तो मानव-सभ्यता नहीं बचेगा। इसलिए हम सब किसी मिलकर पर्यावरण को बचाना होगा।


एक वृक्ष की हत्या - व्याख्या

अबकी घर लौटा तो देखा वह नहीं था
वही बूढ़ा चौकीदार वृक्ष
जो हमेशा मिलता था घर के दरवाजे पर तैनात।

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “एक वृक्ष की हत्या” नामक काव्य-पाठ से ली गयी हैं।
इन पंक्तियों का प्रसंग गाँव के एक बूढ़े वृक्ष की हत्या से जुड़ा हुआ है।

बहुत दिनों के बाद जब कवि घर यानी अपने गाँव लौटा तो उसे बड़ा अचरज हुआ। कवि के घर के दरवाजे पर चौकीदार के रूप में तैनात जो बूढ़ा वृक्ष था, वह नहीं था। वृक्ष की हत्या हो चुकी थी।

इन पंक्तियों के माध्यम से कवि वृक्ष के प्रति गहरी संवेदना प्रकट करता है। उसकी उस वृक्ष के साथ आत्मीयता बढ़ गयी थी। वृक्ष घर का चौकीदार था। वह बूढ़ा हो चुका था। आज उसका नहीं होना कवि के लिए पीडादायक था।

एक बूढ़े वृक्ष की हत्या के माध्यम से कवि ने मानवीय जीवन की विसंगतियों पर भी सम्यक् प्रकाश डाला है। आज मनुष्य कितना क्रूर और निष्ठुर बन गया है। अपनी ही जड़ें काटने लगता है। इस कविता में बूढ़े वृक्ष की हत्या यानी संस्कृति की हत्या, बुजुर्गों के प्रति अनादर और अनास्था का भाव परिलक्षित होता है। हम चौकीदार सदृश बूढ़े वृक्ष या घर के बूढ़े किसी का भी सम्मान और सद्व्यवहार नहीं कर रहे हैं। ऐसा क्या हो गया है। वृक्ष हमारी संस्कृति, सभ्यता, अभिभावक, चौकीदार आदि के प्रतीक के रूप में आया है। इन पंक्तियों में कवि ने एक वृक्ष को प्रतीक मानकर जो संवेदनात्मक भाव प्रकट किया है, वह वंदनीय है, प्रशंसनीय है।


“पुराने चमड़े का बना उसका शरीर
वही सख्त जान
झुर्रियोंदार खुरदुरा तना मैला-कुचैला
राइफिल-सी एक सूखी डाल,
एक पगड़ी फूल-पत्तीदार,
पाँवों में फटा पुराना जूता,
चरमराता लेकिन अक्खड़ बल-बूता।”

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के एक वृक्ष की आत्महत्या’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग बूढ़े वृक्ष की शारीरिक संरचना से जुड़ा हुआ है।

कवि ने बूढ़े वृक्ष का मानवीकरण कर उसमें जीवंतता का दर्शन कराया है। जिस प्रकार बूढ़ा आदमी उम्र की ढलान पर अपने सौंदर्य को खो देता है, ठीक उसी प्रकार बूढ़े वृक्ष की भी स्थिति है। बूढ़े वृक्ष का शरीर सख्त हड्डियों का ढाँचा है। उसके छिलके पुराने चमड़े की तरह दिखते हैं। पूरे तन में पपड़ियाँ पड़ गयी हैं। चेहरे और सारे शरीर में झुर्रियाँ दिखायी पड़ती हैं। शरीर में खुरदुरापन आ गया है। पुराना हो जाने के कारण शरीर मैला-कुचैला-सा दिखता है। सौंदर्य खत्म हो चुका है। उसकी सूखी डाल राइफिल की तरह दिखती है। फूल और पत्तियों से युक्त पगड़ी पहने हुए वृक्ष का रंग-रूप लगता है मानो कोई चौकीदार सदेह खड़ा है। उसकी जड़ें फटी हुई हैं, दरकी हुई हैं-लगता है कि बूढ़े वृक्ष ने अपने पाँवों में फटा-पुराना जूता पहन रखा हो। वह जूता चरमर-चरमर करता है। वृक्ष ऐसे खड़ा है लगता है कि वह अक्खड़ता के साथ अपने . बल-बूते खड़ा है।

उक्त काव्य पक्तियों में कवि ने बूढ़े वृक्ष का चित्रण एक बूढ़े झुरींदार खुरदरे चेहरेवाले, मैले-कुचैले कपड़े पहने मनुष्य से किया है। उसने वृक्ष को मानव के रूप में चित्रित कर उसकी उपयोगिता और महत्ता को सिद्ध किया है। बूढ़ा वृक्ष हमारे लिए घर का बूढ़ा अभिभावक है। उसकी उपयोगिता और जीवंतता हमारे लिए अत्यंत आवश्यक है। वह हमारी संस्कृति का, सभ्यता का, कर्तव्यनिष्ठता का, अभिभावक का, लोकहित का संरक्षण करता है, पोषण करता है, रक्षा करता है। अतः, वह बूढ़ा वृक्ष मात्र वृक्ष ही नहीं है वह पहरूआ है अभिभावक हैं, घर का चौकस समझदार और भरोसेमंद संरक्षक है।


धूप में बारिश में
गर्मी में सर्दी में,
हमेशा चौकन्ना
अपनी खाकी वर्दी में

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘एक वृक्ष की हत्या’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग एक बूढ़े वृक्ष को चौकीदार के रूप में चित्रित किए जाने से जुड़ा हुआ है।

कवि कहता है कि कोई भी मौसम हो, धूप अथवा बारिश हो, चाहे गर्मी या सर्दी का माह हो, बूढ़े वृक्ष को देखकर लगता है कि वह हमेशा सतर्कता के साथ, निडरता और तत्परता के साथ, खाकी-रूपी वर्दी में सबकी रखवाली में खड़ा है। कवि की ऐसी कल्पना से लगता है कि बूढा वृक्ष एक मामूली वृक्ष नहीं है। बल्कि वह युगों-युगों से हमारी सुरक्षा का प्रहरी है। हमारी संस्कृति का पोषक है। हर मौसम में एक विश्वसनीय, ईमानदार पहरेदार के रूप में हमारी रक्षा कर रहा है।


दूर से ही ललकारता, “कौन?”
मैं जवाब देता, “दोस्त !”
और पल भर को बैठ जाता
उसकी ठंढी छाँव में।

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘एक वृक्ष की हत्या’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग एक बूढ़े वृक्ष और कवि के बीच के संबंध से संबंधित है।

जब कभी कवि अपने घर लौटता था तो बूढ़ा वृक्ष दूर से ही ललकारते हुए पूछता था— ठहरो, बोलो तुम कौन हो? कवि जवाब देता था मैं तुम्हारा दोस्त ! तब कवि घर की ओर पग बढ़ाता था। यहाँ मानवीय संबंधों, पहरेदार के रूप में अपनी कर्त्तव्यनिष्ठता के प्रति दृढ रहने कवि और बूढ़े वृक्ष के बीच के आत्मीय संबंधों आदि का पता चलता है। कवि की कल्पना ने बूढ़े वृक्ष को अभिभावक, चौकीदार पहरूओ के रूप में चित्रित कर मानवीयता प्रदान किया है। यहाँ बूढ़ा वृक्ष निर्जीव नहीं सजीव है। उसमें चेतना है, कर्तव्यनिष्ठता है, आत्मीयता है।


“दरअसल शुरू से ही था हमारे अन्देशों में
कहीं एक जानी दुश्मन
कि घर को बचाना है लुटेरों से
शहर को बचाना है नादिरों से
देश को बचाना है देश के दुश्मनों से।”

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘एक वृक्ष की हत्या’ नामक काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग कवि और एक बूढ़े वृक्ष की हत्या से संबंधि त है। कवि मन ही मन कल्पना करता है कि यह बूढा वृक्ष हमारा पहरूआ है। वह उसे सजीव मानव के रूप में देखता है, चित्रित करता है। कवि के मन में पूर्व से ही संशय बैठा हुआ है कि हमारे चारों ओर शत्रुओं की तादाद अच्छी है, उनसे अपनी सुरक्षा के साथ घर, शहर और देश को भी बचाना है क्योंकि बाह्य शत्रुओं से तो देश की रक्षा जरूरी ही है। देश के भीतर जो शत्रु हैं उनसे भी लड़ते हुए अस्तित्व की रक्षा करनी है।

कवि यहाँ आंतरिक शत्रुओं की ओर इंगित करते हुए उनसे सावधान रहने की सलाह देता है। कवि का मन पारखी है, वह अपनी पैनी नजर से घर में, शहर में, देश में, रह रहे शत्रुओं को पहचानने की क्षमता रखता है, उनसे दूर रहकर, सचेत रहकर सावधानीपूर्वक अस्तिव और अस्मिता की रक्षा की जा सकती है। भीतरी शत्रुओं से बचाव सर्वाधिक जरूरी है। वे अपने स्वार्थ और संकीर्णताओं के चलते हमारी संस्कृति, प्रगति और आपसी शांति को भंग कर देंगे। कवि की पीड़ा, सोच अत्यंत ही प्रासंगिक है। देश तभी सबल, सुरक्षित रहेमा, शहर सुरक्षित तभी रहेगा जब घर शांतिमय, सुविकसित रूप में रहेगा। यहाँ कवि ने सूक्ष्म रूप से हमारी राष्ट्रीय समस्याओं पर ध्यान केन्द्रित करते हुए भीतरी शत्रुओं से सावधान रहने को कहा है।


“बचाना है
नदियों को नाला हो जाने से
हवा को धुआँ हो जाने से।
खाने को जहर हो जाने से।”

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘एक वृक्ष की हत्या काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग कवि के द्वारा सुझाए गए उपायों से है। हम कैसे अपने अस्तित्व, इतिहास और अस्मिता की रक्षा कर सकते हैं ?

उक्त काव्य पक्तियों के माध्यम से कवि ने कहा है कि ऐ राष्ट्रवीरों ! सचेत हो जाओ। बाहरी शत्रुओं से ज्यादा भीतरी शत्रुओं से सांस्कृतिक संकट छहराने का खतरा ज्यादा है। अगर समय रहते हम नहीं चेते, नहीं संभले तो नदियाँ नाला के रूप में परिवर्तित हो जाएंगी, हवा शुद्ध न रहकरधुआँ के रूप में वायुमंडल में पसर जाएगी। आज हमारे जो भोज्य पदार्थ हैं वे जहरीले हो जाएंगे। बदलते जीवन-मूल्यों, पर्यावरण के दूषित स्वरूप एवं आंतरिक अव्यवस्थाओं के कारण सबका अस्तित्व संकट में पड़ गया है। कहीं इस जहरीले वातावरण में हम भी जहरीला न बन जायें। अतः, समय रहते सचेत और जागरूक होना आवश्यक है ताकि गहराते संकट से हम बच सकें।


बचाना है-जंगल को मरुस्थल
हो जाने से,
बचाना है-मनुष्य को जंगली
हो जाने से।

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘एक वृक्ष की हत्या’ से ली गयी हैं। इन काव्य पंक्तियों का प्रसंग हमारी प्रकृति, राष्ट्र और मानव से जुड़ा हुआ है। कवि ने कविताओं के माध्यम से सभी को सतर्क और जागरूक होने का संदेश दिया है।

कवि कहता है कि जंगल की रक्षा अत्यावश्यक है। जंगल नहीं रहेगा तो हमारी संस्कृति – सुरक्षित नहीं रहेगी न इतिहास ही सुरक्षित रहेगा। सृष्टि का भी विनाश हो जाएगा। मनुष्य भी जंगली रूप को पुनः अख्तियार कर लेगा। मानव और जंगल एक-दूसरे के पूरक हैं। दोनों का रहना संस्कृति और सभ्यता के विकास के लिए बहुत जरूरी है। जंगल में ही मनुष्य वास करता था।
धीरे-धीरे जंगली स्वरूप को बदला और आज विकास के पथ पर दिनोंदिन अग्रसर होता जा रहा है।

अतः कवि अंत में जोरदार शब्दों में कहता है कि जंगल को रेगिस्तान बनाने से, हे मानवों ! बचाओ। अगर जंगल का अस्तित्व मिटा तो तुम्हारा भी अस्तित्व समाप्त हो जाए। अतः, कवि की दृष्टि में जंगल और जीवन दोनों का स्वस्थ, सुरक्षित और हरा-भरा रहना आवश्यक है। जंगल और मानव का अटूट संबंध युगों-युगों से रहा है, आगे भी रहेगा।

MCQ and Summary for हमारी नींद Class 10 Hindi Matric Godhuli

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MCQ and Summary for हमारी नींद (Hamari Neend) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

हमारी नींद - वीरेन डंगवाल MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. 'हमारी नींद' के रचयिता कौन हैं?
(A) सुमित्रानंदन पंत
(B) वीरेन डंगवाल
(C) रामधारी सिंह 'दिनकर'
(D) कुँवर नारायण
उत्तर
(B) वीरेन डंगवाल

2. वीरेन डंगवाल किस विचारधारा के कवि हैं ?
(A) जनवादी
(B) रहस्यवादी
(C) रीतिवादी
(D) सूफी
उत्तर
(A) जनवादी

3. 'हमारी नींद' में 'नींद' किसका प्रतीक है ?
(A) गफलत
(B) बेहोशी
(C) पागलपन
(D) मदहोशी
उत्तर
(A) गफलत

4. 'दुश्चक्र में सृष्टा' पुस्तक पर वीरेन डंगवाल को कौन-सा पुरस्कार प्राप्त हुआ?
(A) ज्ञानपीठ
(B) सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार
(C) साहित्य अकादमी
(D) नोबेल पुरस्कार
उत्तर
(C) साहित्य अकादमी

5. 'हमारी नींद' कैसी कविता है ?
(A) समकालीन
(B) नकेनवादी
(C) हालावादी
(D) छायावादी
उत्तर
(A) समकालीन

6. कवि वीरेन डंगवाल के अनुसार जीवन में महत्वपूर्ण क्या है ?
(A) सुख
(B) नींद
(C) भ्रमण
(D) संघर्ष
उत्तर
(D) संघर्ष

7. वीरेन डंगवाल की काव्य भाषा कैसी है ?
(A) आधुनिक
(B) खड़ी बोली
(C) देशी ठाटयुक्त
(D) सभी गलत है
उत्तर
(C) देशी ठाटयुक्त

8. मानव कब विकास करता है ?
(A) अनाचार के आगे अडिग रहकर
(B) अनाचारी बनकर
(C) आतातायी बनकर
(D) महात्मा बनकर
उत्तर
(A) अनाचार के आगे अडिग रहकर

9. समाज के दुश्मनों के बिछाए जाल निम्नलिखित में कौन है ?
(A) भाग्य
(B) पूजा
(C) पाठ
(D) उपर्युक्त तीनों
उत्तर
(D) उपर्युक्त तीनों

10. आज लोग किस प्रकार का जीवन जी रहे हैं ?
(A) गदहे का
(B) मक्खियों की तरह
(C) मच्छर बनकर
(D) सभी जगह
उत्तर
(B) मक्खियों की तरह

11. जो लोग देवी जागरण करते हैं, उनका उद्देश्य क्या रहता है ?
(A) अमीरी से छुटकारा
(B) गरीबी से छुटकारा
(C) चोरों का भय
(D) रतजग्गा
उत्तर
(B) गरीबी से छुटकारा

12. बीज कहाँ अंकुरता है ?
(A) धरती में
(B) पानी में
(C) हवा में
(D) धूप में
उत्तर
(A) धरती में

13. दैनिक अमर उजाला के वीरेन डंगवाल क्या हैं ?
(A) संपादक
(B) प्रूफरीडर
(C) फोटो ग्राफर
(D) संपादकीय सलाहकार
उत्तर
(D) संपादकीय सलाहकार

14. यथार्थ पहचानने का विशेष ढंग किसमें है
(A) नींद में
(B) जागति में
(C) वीरेन डंगवाल में
(D) अंकर में
उत्तर
(C) वीरेन डंगवाल में

15. सृष्टि की स्वाभाविक प्रक्रिया है
(A) भूख
(B) नींद
(C) श्वास
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर
(D) उपर्युक्त सभी

16. 'हमारी नींद' कविता का संदेश क्या है?
(A) संघर्षहीन रहो
(B) संघर्षमुक्त जीवन
(C) संघर्ष ही जीवन है
(D) पलायनवादी सोच रखना
उत्तर
(C) संघर्ष ही जीवन है

17. डंगवाल किस प्रकार के परिवर्तन के कवि हैं ?
(A) मनुवादी
(B) जनवादी
(C) अत्याचारी
(D) निरीह प्राणी
उत्तर
(B) जनवादी

18. वीरेन डंगवाल को किस कृति के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है?
(A) इसी दुनिया में
(B) दुष्चक्र में सृष्टा
(C) पहल पुस्तिका
(D) कवि ने कहा
उत्तर
(B) दुष्चक्र में सृष्टा

19. परदेश की विद्या पढ़ने का क्या परिणाम हुआ ?
(A) सबकी बुद्धि भारतीय हो गई
(B) सबकी बुद्धि विदेशी हो गई
(C) सबकी बुद्धि आध्यात्मिक हो गई
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर
(B) सबकी बुद्धि विदेशी हो गई

20. गरीब बस्तियों में क्या हुआ ? :
(A) कई शिशु पैदा हुए
(B) दंगे, आगजनी और बमबारी
(C) धमाके से देवी जागरण
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(C) धमाके से देवी जागरण


हमारी नींद कवि परिचय

प्रमुख समकालीन कवि वीरेन डंगवाल का जन्म 5 अगस्त 1947, ई० में कीर्तिनगर, टिहरी-गढ़वाल, उत्तरांचल में हुआ । मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, कानपुर, बरेली, नैनीताल में शुरुआती शिक्षा प्राप्त करने के बाद डंगवाल जी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम० ए० किया और यहीं से आधुनिक हिंदी कविता के मिथकों और प्रतीकों पर डी० लिट् की उपाधि पायी । वे 1971 ई० से बरेली कॉलेज में अध्यापन करते रहे । डंगवाल जी हिंदी और अंग्रेजी में पत्रकारिता भी करते हैं। उन्होंने इलाहाबाद से प्रकाशित अमृत प्रभात’ में कुछ वर्षों तक ‘घूमता आईना’ शीर्षक . से स्तंभ लेखन भी किया । वे दैनिक ‘अमर उजाला’ के संपादकीय सलाहकार भी हैं। ]

कविता में यथार्थ को देखने और पहचानने का वीरेन डंगवाल का तरीका बहुत अलग, अनूठा और बुनियादी किस्म का है । सन् 1991 में प्रकाशित उनका पहला कविता संग्रह ‘इसी दुनिया में आज भी उतना ही प्रासंगिक और महत्त्वपूर्ण लगता है । उन्होंने कविता में समाज के साध परण जनों और हाशिये पर स्थित जीवन के जो विलक्षण ब्यौरे और दृश्य रचे हैं, वे कविता में और कविता से बाहर भी बेचैन करने वाले हैं । उन्होंने कविता के मार्फत ऐसी बहुत-सी वस्तुओं और उपस्थितियों के विमर्श का संसार निर्मित किया है जो प्रायः ओझल और अनदेखी थीं। उनकी कविता में जनवादी परिवर्तन की मूल प्रतिज्ञा है और उसकी बुनावट में ठेठ देसी किस्म के, खास और आम, तत्सम और तद्भव, क्लासिक और देशज अनुभवों की संश्लिष्टता है।

वीरेन डंगवाल को ‘दुष्चक्र में स्रष्टा’ काव्य संग्रह पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। उन्हें ‘इसी दुनिया में’ पर रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार मिला । उन्हें श्रीकांत वर्मा स्मृति पुरस्कार और कविता के लिए शमशेर सम्मान भी प्राप्त हो चुका है । डंगवाल जी ने विपुल परिमाण में अनुवाद कार्य भी किए हैं। तुर्की के महाकवि नाजिम हिकमत की कविताओं के अनुवाद उन्होंने ‘पहल पुस्तिका’ के रूप में किया । उन्होंने विश्वकविता से पाब्लो नेरुदा, वर्ताल्त ब्रेख्त, वास्को पोपा, मीरोस्लाव होलुब, तदेऊष रूजेविच आदि की कविताओं के अलावा कुछ आदिवासी लोक कविताओं के भी अनुवाद किए ।

समसामयिक कवि वीरेन डंगवाल की कविताओं के संकलन ‘दुष्चक्र में स्रष्टा’ से उनकी कविता ‘हमारी नींद’ यहाँ प्रस्तुत है । सुविधाभोगी आराम पसंद जीवन अथवा हमारी बेपरवाहियों के बाहर विपरीत परिस्थितियों से लगातार लड़ते हुए बढ़ते जानेवाले जीवन का चित्रण करती है यह कविता।


हमारी नींद का सारांश (Summary)

प्रस्तुत कविता ‘हमारी नींद‘ को वीरेन डंगवाल की काव्य संकलन ‘दुष्चक्र में स्रष्टा‘ से लिया गया है। इसमें सुविधा भोगी आराम पसंद जीवन अथवा हमारी बेपरवाहीयां के बाहर विपरित परिस्थितियों से लगातार लड़ते-बढ़ते जानेवाले जीवन का चित्रण करती है।

मेरी निंद के दौरान
कुछ इंच बढ़ गये पेड़
कुछ सुत पौधे
अंकुर ने अपने नाम मात्र
कोमल सिंगो सें
धकेलना शुरू की
बीज की फुली हुई
छत, भीतर से।
कवि कहते हैं कि मनुष्य सुविधा भोगी बनकर आराम की नींद सोता है लेकिन प्रकृति विकास क्रम को अनवरत जारी रखती है। हमारे नींद के दौरान कुछ इंच पेड़ तथा कुछ सुत पौधे बढ़ जाते हैं। बीज अंकुरित होकर अपनी कोपलों को धकेलना शुरू कर देता है।


एक मक्खी का जीवन-क्रम पुरा हुआ
कई शिशु पैदा हुए, और उनमें से
कई तो मारे गए
दंगे, आगजनी और बमबारी में ।
कवि एक मक्खी के माध्यम से दीन-हीन लोगों के जीवन के दशा के विषय में कहता है कि उसके बच्चे दीनता के कारण या तो मर गये अथवा अत्याचारियों के कोप के शिकार हो गये, जो दंगे आगजनी और बमबारी में मारे गये।


गरीब बस्तीयों में भी
धमाके से हुआ देवी जागरण
लाउडस्पीकर पर।
पुनः कवि कहते हैं कि जहाँ झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले गरीब लोग हैं जो केवल किसी तरह से अपने पेट की आग शांत करने के अपेक्षा कुछ नहीं जानते हैं वहाँ भी विलासी लोग देवी जागरण तथा अन्य ढ़ोंगी कार्यक्रम की आड़ में लाउडस्पीकर बजवाकर ठगने का कार्य करते हैं।


याने साधन तो सभी जुटा लिए हैं अत्याचारियों ने
मगर जीवन हठिला फिर भी
बढ़ता ही जाता आगे
हमारी निंद के बावजूद
कवि कहते हैं कि अत्याचारी सूख-भोग के सारे साधन जमा करने के बावजूद अपने हठी स्वभाव के कारण अन्याय बंद करना नहीं चाहते। उनका जुल्म बढ़ता ही जा रहा है।


और लोग भी है, कई लोग हैं
अभी भी
जो भूले नहीं करना
साफ और मजबुत
इनकार।
कवि कहते हैं कि आज भी वैसे अनेक लोग हैं जो अपनी सुविधा का त्याग करना नहीं चाहते तो जनता अत्याचारियों के जुल्म का विरोध करने से इनकार करना नहीं भूलती।


हमारी नींद - व्याख्या

मेरी नींद के दौरान
कुछ इंच बढ़ गए पेड़
कुछ सूत पौधे
अंकुर ने अपने नाममात्र कोमल सींगों से
धकेलना शुरू की
बीज की फूली हुई
छत, भीतर से।

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी प नुस्तक के ‘हमारी नींद’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन काव्य पंक्तियों का प्रसंग कवि की नींद से जुड़ा हुआ है जिसमें नींद के माध्यम से एक पेड़ के सृजन एवं विकास-क्रम की चर्चा है। कवि सपने देखता है। सपने में पेड़ कुछ इंच बढ़ गए हैं—कुछ छोटे-छोटे पौधे पेड़ पुत्र के रूप में विकसित हो रहे हैं। अंकुर अपने स्वरूप में कैसे बदलाव क्रमानुसार लाता है, उसकी व्याख्या कवि ने अपनी कविता में किया है। बीज जब अंकुरित होते हैं, धीरे-धीरे फूल के रूप में छतनुमा आकार ग्रहण करते हैं। भीतर से बीज का अंकुरित रूप विकसित होकर पौधे-पेड़ के रूप में अपने विराट अस्तित्व को प्राप्त कर लेता है।

कवि की नींद कितनी सुखद है इसकी व्याख्या स्वयं कवि ने किया है। जैसे मनुष्य का जीवन-क्रम है—ठीक वैसा ही बीज-पौधे-पेड़ का है। कवि ने नींद में देखे गए सपने के माध्यम से पेड़ के जन्म से लेकर विकसित रूप तक का सूक्ष्म चित्रण करते हुए मानवीय जीवन से उसके संबंधों को व्याख्यायित किया है। जैसे मानव के भीतर कई विचार मंथन के द्वारा एक आकार रूप ग्रहण करता है। ठीक उसी प्रकार बीजरूप भी अंकुरण के द्वारा विराटता को प्राप्त करता है। इस कविता में प्रकृति की सृजन-प्रक्रिया का चित्रण हुआ है।


एक मक्खी का जीवन-क्रम पूरा हुआ
कई शिशु पैदा हुए और उनमें से
कई तो मारे भी गए
दंगे, आगजनी और बमबारी में।

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘हमारी नींद’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन काव्य पक्तियों का संबंध मक्खी के जीवन-क्रम, शिशु-प्रजनन, आगजनी, बमबारी से जुड़ा हुआ है।

कवि कहता है कि एक मक्खी का जीवन-क्रम धीरे-धीरे पूर्णता को प्राप्त करता है। कई शिशु पैदा होते हैं और उनमें से कई मार दिये भी जाते हैं-दंगों द्वारा, आगजनी द्वारा और बमबारी द्वारा। यहाँ मक्खी के जीवन क्रम को मानव के जीवन क्रम को तुलनात्मक रूप में दिखाया गया है। मनुष्य आज अपने जीवन-क्रम ने विकास की सीढ़ियों पर दूर-दूर तक पहुँचाया है। हमारे बच्चे भी सृजन-प्रक्रिया से गुजरते हुए विकास की सीढ़ियों पर चढ़ते हैं। आज चारों तरफ कितनी भयावह स्थिति है। कहीं दंगे हो रहे हैं, कहीं आगजनी हो रही है, कहीं बमबारी हो रही है। पूरी मानवता आज कराह रही है। आज चारों तरफ अराजक स्थिति है। सभी असुरक्षित हैं। जीवन को खतरे से बचाकर विकास-पथ की ओर ले चलने में आज काफी कठिनाइयाँ हो रही हैं।


गरीब बस्तियों में भी
धमाके से हुआ देवी जागरण
लाउा पीकर पर।

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “हमारी नींद” नामक काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन काव्य पंक्तियों का प्रसंग दीन-हीन जन के अंध-विश्वासों, देवी-जागरण और धूम-धमाका से है। कवि कहता है कि गरीब बस्तियों में भी देवी-जागरण के बहाने धूम-धमाका, लाउडस्पीकर को बजाना आदि कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। ये दीन-जन अपनी यथार्थ स्थिति से रू-ब-रू न होकर भटके हुए हैं। भावुकता एवं अंधविश्वास में समय और शक्ति का अपव्यय करते हैं। इनमें अपनी गरीबी, बेबसी-लाचारी के प्रति चेतना नहीं जगी है। ये कोरे अंधविश्वास और नकलची जीव ! अभी भी जी रहे हैं। इनमें सारी शक्तियाँ तो हैं किन्तु चेतना के अभाव में अपने लक्ष्य से भटके हुए हैं। कवि गरीबों, उनकी बस्तियों, उनके कार्यक्रमों के प्रति ध्यान आकृष्ट करता है। उनके जीवन की विसंगतियों का सही चित्रण प्रस्तुत कर कवि ने सच्चाई से हमें अवगत कराया है।


याने साधन तो सभी जुटा लिए हैं अत्याचारियों ने
मगर जीवन हठीला फिर भी
बढ़ता ही जाता आगे
हमारी नींद के बावजूद।

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “हमारी नींद” काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन कविताओं का प्रसंग हमारे मानवीय जीवन के अनेक पक्षों से जुड़ा है। समाज में रह रहे अनेक किस्म के लोगों, उनके रहन-सहन और क्रियाकलापों से संबंधित है। कवि कहता है कि अनेक तरह के साधन-संसाधन को लोगों ने जुटा लिया है। अत्याचारियों ने अपने अत्याचार से, ‘ शोषण दमन से सबको त्रस्त कर रखा है। किन्तु जीवन की गति भी कहाँ अवरुद्ध हो रही है। वह तो अपनी गति में अग्रसर है। जीवन तो संघर्ष का ही नाम है। उसे जीवटता के साथ जीने में ही मजा है। जीवन सदैव प्रगति-पथ पर आगे की ओर ही बढ़ता गया है, भले ही उसके मार्ग में क्यों न अनेक बाधाएँ खड़ी हों। जीवन हठधर्मी होता है। उसमें दृढ़-संकल्प शक्ति निहित होती है। लाख नींद बाधा बनकर खड़ी हो किन्तु यात्रा-क्रम कभी रुका है क्या ? सीमित लोगों के पास संसाधन सिमटे हुए हैं। विषमता के बीच जीवन को जीते हुए लक्ष्य के शिखर तक पहुँचाना है। कवि सामाजिक विसंगतियों के बीच जीते हुए लड़ते हुए आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रहा है।


और लोग भी हैं, कई लोग हैं
अभी भी
जो भूलें नहीं करता
साफ और मजबूत
इनकार।

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “हमारी नींद” काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग समाज के आमलोगों से जुड़ा है, जिन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी को सृजन कर्म में लगाया है।

इस धरा पर उन अत्याचारियों के अलावा दूसरे लोग भी हैं जो अभी भी अपने साफ और मजबूत इरादों के साथ भूलों को स्वीकार करते हैं इनकार नहीं करते हैं। उनके भीतर नैतिकता, ईमानदारी, कर्मठता और साहस विद्यमान है। समाज के ये तपे-तपाये लोग हैं जिन्होंने समाज के लिए, राष्ट्र के लिए, लोकहित के लिए मजबूत इरादों के साथ संघर्ष किया है, संघर्ष कर रहे हैं। समाज के ये अगली पंक्ति के लोग हैं जिनमें त्याग, करुणा, दया और सहनशक्ति भरी हुई है। इस प्रकार समाज के शोषक वर्ग के अलावा एक सृजन वर्ग भी है जो अपनी कर्तव्यनिष्ठता के साथ, संकल्पशक्ति के साथ समाज-निर्माण, राष्ट्र निर्माण में लगा हुआ है।

MCQ and Summary for अक्षर-ज्ञान Class 10 Hindi Matric Godhuli

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MCQ and Summary for अक्षर-ज्ञान (Akshar Gyan) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

अक्षर-ज्ञान - अनामिका MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. 'अक्षर ज्ञान' किस कवि की रचना है ?
(A) सुमित्रानंदन पंत
(B) रामधारी सिंह 'दिनकर'
(C) रेनर मारिया रिल्के
(D) अनामिका
उत्तर
(D) अनामिका

2. अनामिका किस काल की कवियित्री  हैं ?
(A) रीतिकाल
(B) भक्तिकाल
(C) समकालीन
(D) आदिकाल
उत्तर
(C) समकालीन

3. चौखट में बेटे का क्या नहीं अँटता ?
(A) क
(B) ख
(C) ग
(D) घ
उत्तर
(A) क

4. बच्चा कहाँ आकर थमक जाता है ?
(A) 'ख' पर
(B) 'ग' पर
(C) 'घ' पर
(D) 'ङ' पर
उत्तर
(D) 'ङ' पर

5. कवियित्री अनामिका के अनुसार सृष्टि की विकास-कथा के प्रथमाक्षर क्या है?
(A) सफलता की खुशी में
(B) विफलता के आँसू
(C) मुक्ति की खोज
(D) सुख की प्राप्ति
उत्तर
(B) विफलता के आँसू

6. काव्य-रचना के अलावा अनामिका किन विधाओं में सक्रिय हैं ?
(A) गद्य लेखन और आलोचना
(B) नाट्य-लेखन
(C) पत्रकारिता
(D) उपन्यास-लेखन
उत्तर
(A) गद्य लेखन और आलोचना

7. बेटे ने किसकी पहल पर अक्षर ज्ञान को प्रारंभ किया ?
(A) गुरु की
(B) पिता की
(C) माता की
(D) दादा की
उत्तर
(C) माता की

8. हमारी सृष्टि का स्वरूप कैसा है ?
(A) अत्यंत लघु
(B) सूक्ष्म
(C) दीर्घ
(D) अत्यंत विराट
उत्तर
(D) अत्यंत विराट

9. मां ने बेटे को अक्षर ज्ञान किसपर कराया ?
(A) कॉपी पर
(B) किताब पर
(C) स्लेट पर
(D) ब्लैक बोर्ड पर
उत्तर
(C) स्लेट पर

10. 'गिरिजा कुमार माथुर' पुरस्कार किसे मिला है ?
(A) अजित डोभाल
(B) हरिशंकर परसाई
(C) अनामिका
(D) शरतचंद्र
उत्तर
(C) अनामिका

11. कवियित्री ने विकास कथा का प्रथमाक्षर किसे माना है ?
(A) विफलता के आँसू को
(B) सफलता की मुस्कुराहट को
(C) शांति को
(D) उल्लास को
उत्तर
(A) विफलता के आँसू को

12. बच्चे की आँखों से आँसू क्यों निकलते हैं?
(A) अज्ञानता से
(B) डर से
(C) विद्यालय से
(D) 'ङ' न लिखने की विफलता से
उत्तर
(D) 'ङ' न लिखने की विफलता से

13. अनामिका की रचनाओं में कैसा बोध होता है ?
(A) प्राचीन
(B) आधुनिक
(C) प्राक्
(D) समसामयिक
उत्तर
(D) समसामयिक

14. अनामिका की कविता किस लिए जानी जाती हैं ?
(A) वंचितों की सहानुभूति हेतु
(B) ओज के लिए
(C) दया के लिए
(D) क्षमा के लिए
उत्तर
(A) वंचितों की सहानुभूति हेतु

15. अनामिका का जन्म किस स्थान में हुआ ?
(A) मुजफ्फरपुर (बिहार)
(B) मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश)
(C) मुजफ्फराबाद (पाकिस्तान)
(D) मुजफ्फरनगर (मेरठ)
उत्तर
(A) मुजफ्फरपुर (बिहार)

16. 'शायद' अव्यय का प्रयोग अनामिका जी ने किस अर्थ में किया है ?
(A) कदाचित
(B) संभवतः
(C) (A) एवं (B) दोनों
(D) सभी गलत है
उत्तर
(A) कदाचित

17. खालिस बेचैनी किसकी है ?
(A) 'क' लिखने की
(B) 'ख' लिखने की
(C) 'ग' लिखने की
(D) 'ङ' लिखने की
उत्तर
(A) 'क' लिखने की

18. कवियित्री अनामिका का जन्म कब हुआ?
(A) 1961 ई.
(B) 1962 ई.
(C) 1963 ई.
(D) 1965 ई.
उत्तर
(A) 1961 ई.

19. सृष्टि की विकास-कथा का प्रथमाक्षर क्या है ?
(A) सफलता की पहली मुस्कान
(B) विफलता के परिणामस्वरूप उत्पन्न क्रोध
(C) विफलता पर छलके आँसू
(D) सफलता पर उमड़ा उत्साह
उत्तर
(C) विफलता पर छलके आँसू


अक्षर-ज्ञान कवियित्री परिचय

समकालीन हिंदी कविता में अपनी एक अलग पहचान रखनेवाली कवयित्री अनामिका का जन्म 17 अगस्त 1961 ई० में मुजफ्फरपुर, बिहार में हुआ । उनके पिता श्यामनंदन किशोर हिंदी के गीतकार और बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष थे । अनामिका ने दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम० ए० किया और वहीं से पीएच० डी० की उपाधि पायी। सम्प्रति, वे सत्यवती कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में प्राध्यापिका हैं।
अनामिका कविता और गद्य लेखन में एकसाथ सक्रिय हैं । वे हिंदी और अंग्रेजी दोनों में लिखती – हैं। उनकी रचनाएँ हैं – काव्य संकलन : ‘गलत पते की चिट्ठी’, ‘बीजाक्षर’, ‘अनुष्टुप’ आदि आलोचना : ‘पोस्ट-एलिएट पोएट्री’, ‘स्त्रीत्व का मानचित्र’ आदि । संपादन : ‘कहती हैं औरतें’ ‘(काव्य संकलन) । अनामिका को राष्ट्रभाषा परिषद् पुरस्कार, भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, गिरिजा कुमार माथुर पुरस्कार ऋतुराज साहित्यकार सम्मान आदि प्राप्त हो चुके हैं।

एक कवयित्री और लेखिका के रूप में अनामिका अपने वस्तुपरक समसामयिक बोध और संघर्षशील वंचित जन के प्रति रचनात्मक सहानुभूति के लिए जानी जाती हैं । स्त्री विमर्श में सार्थक हस्तक्षेप करने वाली अनामिका अपनी टिप्पणियों के लिए भी उल्लेखनीय हैं।

प्रस्तुत कविता समसामयिक कवियों की चुनी गई कविताओं की चर्चित शृंखला ‘कवि ने कहा’ से यहाँ ली गयी है । प्रस्तुत कविता में बच्चों के अक्षर-ज्ञान की प्रारंभिक शिक्षण-प्रक्रिया के कौतुकपूर्ण वर्णन-चित्रण द्वारा कवयित्री गंभीर आशय व्यक्त कर देती हैं।


अक्षर-ज्ञान का सारांश (Summary)

प्रस्तुत कविता समसामयिक कवियों की चुनी गई कविताओं की चर्चित श्रृंखला ‘कवि ने कहा‘ से संकलित है। इसमें बच्चों के अक्षर-ज्ञान की प्रारंभिक शिक्षण-प्रक्रिया के कौतुकपूर्ण वर्णन चित्रण द्वारा कवियित्री गंभीर आशय व्यक्त करती है।

चौखटे में नहीं अँटता
बेटे का ‘क‘
कबुतर ही है न-
फुदक जाता है जरा-सा !
कवियित्री अनामिका बच्चों के अक्षरज्ञान के बारे में कहती है कि जब माता-पिता बच्चों के अक्षर सिखाना आरंभ करते हैं तब बाल्यावस्था के कारण बच्चा बड़ी कठिनाई से ‘क‘ वर्ण का उच्चारण कर पाता है।


पंक्ति से उतर जाता है
उसका ‘ख‘
खरगोस की खालिस बेचैनी में !
गमले-सा टूटता हुआ उसका ‘ग‘
घड़े-सा लुढ़कता हुआ उसका ‘घ‘।
इसके बाद ‘ख‘ वर्ण की बारी आती है। इस प्रकार ‘ग‘ तथा ‘घ‘ वर्ण भी सिखता है। लेकिन अबोधता के कारण बच्चा इन वर्णों को क्रम से नहीं बोल पाता। कभी ‘क‘ कहना भूल जाता है तो कभी ‘ख‘। तात्पर्य यह कि व्यक्ति का प्रारंभिक जीवन सही-गलत के बीच झूलता रहता है। जैसे ‘क, ख, ग, घ‘ के सही ज्ञान के लिए बेचैन रहता है।

 
‘ङ‘ पर आकर थमक जाता है
उससे नहीं सधता है ‘ङ‘ ।
‘ङ‘ के ‘ड‘ को वह समझता है ‘माँ‘
और उसके बगल के बिंदू (.) को मानता है
गोदी में बैठा ‘बेटा‘
कवियित्री कहती है कि अक्षर-ज्ञान की प्रारंभिक शिक्षा पानेवाला बच्चा ‘क‘ वर्ग के पंचमाक्षर वर्ण ‘ङ‘ का ‘ट‘ वर्ग का ‘ड‘ तथा अनुस्वार वर्ण को गोदी में बैठा बेटा मान लेता है। बच्चा को लगता है कि ‘ड‘ वर्ण के आगे अनुस्वार लगने के कारण ‘ङ‘ वर्ण बन गया।

 
माँ-बेटे सधते नहीं उससे
और उन्हें लिख लेने की
अनवरत कोशिश में
उसके आ जाते हैं आँसु।
पहली विफलता पर छलके आँसु ही
हैं सायद प्रथमाक्षर
सृष्टि की विकास- कथा के।
कवियित्री कहती हैं कि बच्चा ‘ङ‘ वर्ण का सही उच्चारण नहीं कर पाता है। वह बार-बार लिखता है, ताकि वह उसकी सही उच्चारण कर सके, लेकिन अपने को सही उच्चारण करने में असमर्थ जानकर रो पड़ता है। तात्पर्य यह कि अक्षर-ज्ञान जीवन की विकास-कथा का प्रथम सोपान है।


अक्षर-ज्ञान - व्याख्या

चौखटे में नहीं अँटता
बेटे का ‘क’
कबूतर ही है न-
फुदुक जाता है जरा-सा!
पंक्ति से उतर जाता है
उसका ‘ख’
खरगोश की खालिस बेचैनी में !
गमले-सा टूटता हुआ उसका ‘ग’
“घड़े-सा लुढ़कता हुआ उसका ‘घ’
“ड’ पर आकर थमक जाता है
उससे नहीं सधता है ‘ङ’।

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘अक्षर-ज्ञान’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन काव्य पंक्तियों का प्रसंग मनुष्य के बचपन में अक्षर-ज्ञान से है। कवयित्री का कहना है कि बेटा इतना अबोध है कि उसका ‘क’ बनाये गए कोष्ठकों यानी चौखटे में नहीं अँटता है। ‘क’ से कबूतर की संज्ञा देते हुए बच्चा लिखता है बच्चे में और कबूतर में समानता झलकती है। दोनों फुदकने, कूदने, स्वछंद विचरण करने की अवस्था में हैं। दोनों की प्रकृति मिलती-जुलती है। ‘क’ लिखने के क्रम में कोष्ठक से अक्षर इधर-उधर बढ़ जाता है। जिस प्रकार कबूतर स्थिर नहीं सका ठीक उसी प्रकार ‘क’ भी कोष्ठक में नहीं अँटता। कोठे से बाहर इधर-उधर बढ़ जाता है वह कोठे की सीमा-रेखा को लाँघ जाता है। ‘ख’ भी खरगोश की तरह लिखता है ‘ख’ लिखने में भी खरगोश सदृश वह खेसा करता है जिससे ठीक कोई में वह नहीं अँटता।

‘ग’ भी वह ऐसा लिखता है मानो टूटे हुए गमले को दिखाता हो ! वह घड़े की तरह लुढ़कते रूप में ‘घ’ लिखता है। कहने का मूल भाव यह है कि बचपन तो बचपन होता है। उसमें अबोधता, अल्पज्ञता और मासूमियत होती है। चंचलता और निर्मलता का भाव होता है। कबूतर, खरगोश और घड़ा, ये ऐसे प्रतीक रूप हैं जिनसे बच्चे का मनोविज्ञान जुड़ा हुआ है। अक्षर-ज्ञान के क्रम में इन पक्षियों, जंतुओं और पात्रों से उसके बाल-मन पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। यहाँ मनोवैज्ञानिक भाव दिखाये गए हैं। बचपन में बच्चा कैसे अक्षर-ज्ञान की ओर उन्मुख होता है और धीरे-धीरे अक्षर-ज्ञान से परिचित होता है। ‘ङ’ पर उसके हाथ रुक जाते हैं। वह ‘ङ’ लिखने में दिक्कतों का अनुभव करता है। बच्चा ङ को माँ और उससे सटं शून्य को बेटा का रूप मानकर अक्षर-ज्ञान सीखता है।

इस अक्षर-ज्ञान द्वारा कवयित्री ने सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक भावों, हमारी सृष्टि की क्षमता का सूक्ष्म चित्रण, सृजन की महत्ता और माँ-बेटे के रिश्ते को ‘ङ’ अक्षर के माध्यम से प्रदर्शित किया है, व्याख्यायित किया है। यहाँ सरल भाव के साथ गूढ़ भावार्थ भी कविता में निहित है। इसमें बचपन से लेकर सृष्टि की सूक्ष्म व्याख्या भी कवयित्री ने अक्षर-ज्ञान के माध्यम से हमें करायी है। इसमें मनोवैज्ञानिक स्थितियों का सूक्ष्म चित्रण भी है।


ङ के ‘ड’ को वह समझता है ‘माँ’
और उसके बगल के बिन्दु (.) को मानता है
गोदी में बैठा ‘बेटा’
माँ-बेटे सधते नहीं उससे
और उन्हें लिख लेने की
अनवरत कोशिश में
उसके आ जाते हैं आँसू।
पहली विफलता पर छलके ये आँसू ही
हैं शायद प्रथमाक्षर
सृष्टि की विकास-कथा के।

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के अक्षर-ज्ञान काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग बच्चे के अक्षर-ज्ञान के साथ सृष्टि की सृजन-प्रक्रिया से भी है। यहाँ अक्षर-ज्ञान का वर्णन तो हुआ ही है—माँ-बेटे के बीच के कोमल संबंधों की सूक्ष्म व्याख्या भी की गयी है। कवयित्री अक्षर-ज्ञान के बहाने बच्चे के उर्वर मस्तिष्क के प्रति भी हमें आकृष्ट करती है। यहाँ ‘ङ’ अक्षर-ज्ञान के सिलसिले में बच्चा को माँ के रूप में देखता है तथा ङ के पेट में जो (.) बिन्दु है उसे बेटा मानता है। कवयित्री की सूक्ष्म एवं पैनी दृष्टि की दाद देनी होगी। बच्चे को अक्षर-ज्ञान के साथ सृष्टि के सृजनकारी रूपों से भी परिचय कराती है। यहाँ एक साथ दो ज्ञान उपलब्ध कराकर सज्ञान बनाना अत्यंत ही चिंतन का विषय है।

माँ-बेटे के कोमल एवं प्राकृतिक संबंधों को एक अक्षर ‘ङ’ के माध्यम से व्यक्त कर कवयित्री ने अपनी काव्य प्रतिभा के साथ तेजस्विता का भी परिचय दिया है। माँ बेटे को बार-बार अक्षर-ज्ञान कराकर उसे सिद्ध रूप में स्थिर कर देना चाहती है लेकिन बच्चा अबोध और चंचल है। बार-बार कोशिश के बावजूद भी वह थक जाता है। कभी रोने लगता है। यह उसकी विफलता के आँसू हैं। लेकिन इन आँसुओं में, प्रथमाक्षर-ज्ञान में सृष्टि की विकास-कथा भी छिपी हुई है। अंध युग से अपनी यात्रा को अबाध गति से ले चलते हुए मनुष्य आज यहाँ तक आया है। उसका बचपन उसकी प्रौढ़ता में ढल चुका है। उसका ‘क’ उसकी कुशलता के रूप में दिखायी पड़ता है।
आज वह धीरे-धीरे चलकर विकास-यात्रा के लक्ष्य शिखर तक पहुँच पाया है। उसको इस यात्रा में अनेक यंत्रणाओं, संघर्षों को झेलना पड़ा है।

MCQ and Summary for लौटकर आऊँगा फिर Class 10 Hindi Matric Godhuli

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MCQ and Summary for लौटकर आऊँगा फिर (Laut aaunga Fir) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

लौटकर आऊँगा फिर - जीवनानंद दास MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. जीवनानंद दास बांग्ला के किस काल के प्रमुख कवि है?
(A) आदिकाल
(B) मध्यकाल
(C) रवीन्द्रनाथ काल
(D) रवीन्द्रोत्तर काल
उत्तर
(D) रवीन्द्रोत्तर काल

2. कौन सी कविता के रचयिता जीवनानंद दास है ?
(A) अक्षर ज्ञान
(B) लौटकर आऊँगा फिर
(C) हमारी नीद
(D) भारतमाता
उत्तर
(B) लौटकर आऊँगा फिर

3. 'लौटकर आऊँगा फिर' कविता में कवि का कौन सा भाव प्रकट होता है ?
(A) मातृभूमि-प्रेम
(B) धर्म-भाव
(C) संसार की नश्वरता
(D) मातृ-भाव
उत्तर
(A) मातृभूमि-प्रेम

4. "वनलता सेन" किस कवि की श्रेष्द रचना है?
(A) रवीन्द्रनाथ ठाकुर
(B) जीवनानंद दास
(C) नजरूल इस्लाम
(D) जीवानंद
उत्तर
(B) जीवनानंद दास

5. 'लौटकर आऊँगा फिर' का प्रमुख वर्ण्य-विषय क्या है ?
(A) बंगाल की प्रकृति
(B) बंगाल की संस्कृति
(C) बंग संगीत
(D) बंग-भंग
उत्तर
(A) बंगाल की प्रकृति

6. जीवनानंद दास कैसे कवि है ?
(A) रीतिवादी
(B) प्रगतिवादी
(C) यथार्थवादी
(D) आधुनिक
उत्तर
(C) यथार्थवादी

7. रविंद्रनाथ ठाकुर कौन थे?
(A) बंगाल के चर्चित कवि
(B) बंगाल के मुख्यमंत्री
(C) बंगाल के राज्यपाल
(D) बंगाल के शासक
उत्तर
(A) बंगाल के चर्चित कवि

8. जीवनानंद की कौन-सी कविता रवीन्द्रोलर युग की श्रेष्ठ कविता मानी जाती है?
(A) बनलता सेन
(B) वनलता प्रेम
(C) आलोक पृथ्वी
(D) झरा पालक
उत्तर
(A) बनलता सेन

9. कवि ने फटे पाल से क्या दर्शाने की कोशिश की है?
(A) नावों की स्थिति
(B) मछली मारने की विवशता
(C) मल्लाहो की गरीबी
(D) बंगाल को फटेहालो
उत्तर
(D) बंगाल को फटेहालो

10. जमीन पर चावल फेंकने से कवि का क्या तात्पर्य है ?
(A) बंपाल चावल का कटोर है
(B) बंगाल में आवश्यकता से अधिक चावल उपजता है
(C) बंगाल में पशु-पक्षी सभी के लिए चावल उपलब्ध है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर
(A) बंपाल चावल का कटोर है

11. 'लौटकर फिर आऊँगा' कविता में किस काल का वर्णन है ?
(A) प्रात:काल का
(B) ब्रह्म बेला का
(C) भोर समय का
(D) संध्या समय का
उत्तर
(D) संध्या समय का

12. बंगाल से किसे बेपनाह लगाव है ?
(A) जीवनानंद को
(B) फसलों को
(C) धान की फसल को
(D) मछलियों को
उत्तर
(A) जीवनानंद को

13. जीवनानंद दास बंगाल की धरती पर क्यों लौटकर आना चाहते हैं?
(A) बंगाल की आबोहवा उन्हें अच्छी लगती है
(B) बंगाल की धरती उनकी मातृभूमि है
(C) बंगाल में उन्हें नींद अच्छी आती है
(D) वे सिर्फ बंग्ला भाषा समझ एवं बोल पाते है
उत्तर
(B) बंगाल की धरती उनकी मातृभूमि है

14. कवि कहाँ लौटना चाहता है ?
(A) बिहार में
(B) स्वर्ग में
(C) नरक में
(D) बंगाल की धरती पर
उत्तर
(D) बंगाल की धरती पर

15. जीवनानंद दास की किस कविता को प्रवुद्ध आलोचकों द्वारा रवींद्रोत्तर युग की श्रेष्ठतम प्रेम कविता की
संज्ञा दी गई है ?
(A) मनविंहगम
(B) वनलता सेन
(C) रूपसी बंगला
(D) झरा पालक
उत्तर
(B) वनलता सेन

16. 'लौटकर आऊँगा फिर' कविता किस कवि द्वारा भाषांतरित की गई है ?
(A) जीवनानंद दास
(B) विनोद कुमार शुक्ल
(C) प्रयाग शुक्ल
(D) कुँवर नारायण
उत्तर
(C) प्रयाग शुक्ल


लौटकर आऊँग फिर कवि परिचय

बाँग्ला के सर्वाधिक सम्मानित एवं चर्चित कवियों में से एक जीवनानंद दास का जन्म 1899 ई० में हुआ था । रवीन्द्रनाथ के बाद बाँग्ला साहित्य में आधुनिक काव्यांदोलन को जिन लोगों ने योग्य नेतृत्व प्रदान किया था, उनमें सबसे अधिक प्रभावशाली एवं मौलिक कवि जीवनानंद दास ही हैं । इन कवियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती के रूप में था रवीन्द्रनाथ का स्वच्छंदतावादी काव्य । स्वच्छंदतावाद से अलग हटकर कविता की नई यथार्थवादी भूमि तलाश करना सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य था । इस कार्य में अग्रणी भूमिका जीवनानंद दास की रही । उन्होंने बंगाल के जीवन में रच-बसकर उसकी जड़ों को पहचाना और उसे अपनी कविता में स्वर दिया। उन्होंने भाषा, भाव एवं दृष्टिकोण में नई शैली, सोचं एवं जीवनदृष्टि को प्रतिष्ठित किया ।

सिर्फ पचपन साल की उम्र में जीवनानंद दास का निधन एक मर्मांतक दुर्घटना में हुआ, सन् 1954 में । तब तक उनके सिर्फ छह काव्य संकलन प्रकाशित हुए थे – ‘झरा पालक’, ‘धूसर पांडुलिपि’, ‘वनलता सेन’, ‘महापृथिवी’: ‘सातटि तागर तिमिर’ और ‘जीवनानंद दासेर श्रेष्ठ कचिता’ ! उनके अन्य काव्य संकलन ‘रूपसी बांग्ला’,’बला अबेला कालबेला’, ‘मनविहंगम’ और ‘आलोक पृथिवी’ निधन के बाद प्रकाशित हुए । उनके निधन के बाद लगभग एक सौ कहानियाँ और तेरह उपन्यास भी प्रकाशित किए गये ।

‘वनलता संन’ काव्यग्रंथ की ‘वनलता सेन’ शीर्षक कविता को प्रबुद्ध आलोचकों द्वारा रवींद्रोत्तर युग की श्रेष्ठतम प्रेम कविता की संज्ञा दी गयी है । वस्तुतः यह कविता बहुआयामी भाव-व्यंजना का उत्कृष्ट उदाहरण है । निखिल बंग रवींद्र साहित्य सम्मेलन के द्वारा ‘वनलता सेन’ को 1952 ई० में श्रेष्ठ काव्यग्रंथ का पुरस्कार दिया गया था ।

यहाँ समकालीन हिंदी कवि प्रयाग शक्ल द्वारा भाषांतरित जीवनानंद दास की कविता प्रस्तुत है। यह कवि की अत्यंत लोकप्रिय और बहुप्रचारित कविता है । कविता में कवि का अपनी मातृभूमि तथा परिवेश से उत्कट प्रेम अभिव्यक्त होता है। बंगाल अपने नैसर्गिक सम्मोहन के साथ चुनिंदा चित्रों में सांकेतिक रूप से कविता में विन्यस्त है । इस नश्वर जीवन के बाद भी इसी बंगाल में एक बार फिर आने की लालसा मातृभूमि के प्रति कवि के प्रेम की एक मोहक भंगिमा के रूप में सामने आती है।


लौटकर आऊँगा फिर का सारांश (Summary)

प्रस्तुत कविता ‘लौटकर आऊँगा फिर‘ कवि प्रयाग शुक्ल द्वारा भाषांतरित जीवनानंद दास की कविता है। इसमें कवि का अपनी मातृभूमि तथा परिवेश का उत्कट प्रेम अभिव्यक्त है। कवि ने इस कविता में एक बार फिर जन्म लेने की लालसा प्रकट कर अपनी मातृभूमि के प्रति श्रद्धा प्रकट की है।


खेत हैं जहाँ धान के, बहती नदी
के किनारे फिर आऊँगा लौटकर
एक दिन बंगाल में; नहीं शायद
होऊँगा मनुष्य तब, होऊँगा अबाबील
कवि कहता है कि धान के खेत वाले बंगाल में, बहती नदी के किनारे, मैं एक दिन लौटूँगा। हो सकता है मनुष्य बनकर न लौटूँ । अबाबील होकर


या फिर कौवा उस भोर का-फुटेगा नयी
धान की फसल पर जो
कुहरे के पालने से कटहल की छाया तक
भरता पेंग, आऊँगा एक दिन!
या फिर कौआ होकर, भोर की फूटती किरण के साथ धान के खेतों पर छाए कुहासे में, कटहल पेड़ की छाया में जरूर आऊँगा।


बन कर शायद हंस मैं किसी किशोरी का;
घुँघरू लाल पैरों में;
तैरता रहुँगा बस दिन-दिन भर पानी में-
गंध जहाँ होगी ही भरी, घास की।
किसी किशोरी का हंस बनकर, घुँघरू जैसे लाल-लाल पैरों में दिन-दिन भर हरी घास की गंध वाली पानी में, तैरता रहुँगा।


आऊँगा मैं। नदियाँ, मैदान बंगाल के बुलायेंगे-
मैं आऊँगा। जिसे नदी धोती ही रहती है पानी
से इसी सजल किनारे पर।
बंगाल की मचलती नदियाँ, बंगाल के हरे भरे मैदान, जिसे नदियाँ धोती हैं, बुलाएँगे और मैं आऊँगा, उन्हीं सजल नदियों के तट पर।


शायद तुम देखोगे शाम की हवा के साथ उड़ते एक उल्लु को
शायद तुम सुनोगे कपास के पेड़ पर उसकी बोली
घासीली जमीन पर फेंकेगा मुट्ठी भर-भर चावल
शायद कोई बच्चा – उबले हुए !
हो सकता है, शाम की हवा में किसी उड़ते हुए उल्लु को देखो या फिर कपास के पेड़ से तुम्हें उसकी बोली सुनाई दें। हो सकता है, तुम किसी बालक को घास वाली जमीन पर मुट्ठी भर उबले चावल फेंकते देखो


देखोगे रूपसा के गंदले-से पानी में
नाव लिए जाते एक लड़के को – उड़ते फटे
पाल की नाव !
लौटते होंगे रंगीन बादलों के बीच, सारस
अँधेरे में होऊँगा मैं उन्हीं के बीच में
देखना !
या फिर रूपसा नदी के मटमैले पानी में किसी लड़के को फटे-उड़ते पाल की नाव तेजी से ले जाते देखो या फिर रंगीन बादलों के मध्य उड़ते सारस को देखो, अंधेरे में मैं उनके बीच ही होऊँगा। तुम देखना मैं आऊँगा जरूर।


लौटकर आऊँगा फिर - व्याख्या

खेत हैं जहाँ धान के, बहती नदी
के किनारें फिर आऊँगा लौटकर
एक दिन बंगाल में; नहीं शायद
होऊँगा मनुष्य तब, होऊँगा अबाबील
या फिर कौवा उस भोर का- फूटेगा नयी
धान की फसल पर जो
कुहरे के पालने से कटहल की छाया तक
भरता पेंग, आऊँगा एक दिन !

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “लौटकर आऊँगा फिर” काव्य पाठ से ली गयी हैं। इन काव्य पंक्तियों का प्रसंग कवि की बंगाल के प्रति अनुरक्ति से है।
उपर्युक्त काव्य पंक्तियों के माध्यम से कवि कहता है कि बंगाल में एक दिन पुनः लोटकर मैं आऊंगा। नदी के किनारे जो धान के खेत हैं, उनका दर्शन करूंगा। संभव है उस समय मैं भले ही मनुष्य के रूप में नहीं, भले ही कौवा या अबाबील के रूप में ही सही बनकर आऊंगा। – उस भोर का मौसम कितना सुखद होगा जब नयी धान की फसल का दर्शन होगा? कुहरे के बीच कटहल की छाया तक कदमों को बढ़ाते हुए अवश्य आऊँगा। एक दिन अवश्य आऊँगा।

अपनी उपर्युक्त कविता में कवि ने बीते दिनों की स्मृति को याद किया है। संभव है—यह कविता बंगला-देश या बंगाल प्रांत बनने के क्रम में लिखी गयी हो। बंगाल में धान की खेती काफी होती है। कवि अतीत के भूले-बिसरे दिनों की यादकर प्रकृति के साथ अपना संबंध स्थापित करना चाहता है। कवि को नदी से प्रेम है, कवि को धान के खेतों से प्रेम है। कवि के भीतर जीवंतता विद्यमान है तभी तो वह कौवा जैसा उड़ना चाहता है। अबाबील बनना चाहता है उसे भोर प्रिय है। उसे नयी धान की फसलों से प्यार है। कुहरे के बीच वह हिम्मत नहीं हारता। कटहल की छाया यानी जीवन के अवसान काल तक भी वह हार नहीं मानना चाहता। बल्कि पेंग भरता, कदम बढ़ाता आने का वचन देता है। वह एक दिन पुनः अवश्य आएगा, मातृभूमि के प्रति प्रेम, प्रकृति के प्रति प्रेम, जीव-जंतुओं के प्रति प्रेमभाव इस कविता में वर्णित है। कवि अतीत के बीते दिनों की याद कर पुनः मातृभूमि का दर्शन करने के लिए आने का वचन देता है।


बनकर शायद हंस मैं किसी किशोरी का,
धुंघरू लाल पैरों में,
तैरता रहूँगा बस दिन-दिन भर पानी में-
गंध जहाँ होगी ही भरी, घास की।
आऊँगा मैं। नदियाँ, मैदान बंगाल के बुलाएँगे
मैं आऊंगा जिसे नदी धोती ही र
हती है पानी
से-इसी हरे सजल किनारे पर।
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘लौटकर आऊंगा फिर’ काव्य पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग बंगाल भूमि, वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य से जुड़ा हुआ है।

कवि कहता है कि मैं हंस बनकर बंगाल भूमि पर आऊँगा। वहाँ की किशोरियों के लाल-लाल गुलाबी पैरों में घुघरु की रून-झन आवाज को सुनूँगा, उनका दर्शन करूँगा। दिन-भर वहाँ की नदियों में हंस बनकर तैरूंगा। हरी-भरी घास जडित मैदानों के बीच विचरण करूंगा। वहाँ की धरती की गंध से स्वयं को सुवासित करूंगा। बंगाल की नदियाँ वहाँ के मैदान मुझे अवश्य बुलाएंगे। मैं भी उनका दर्शन करने अवश्य आऊंगा। नदी अपने स्वच्छ और निर्मल पानी से किनारे बसे हुए मैदानों, खेतों, पेड़ों को सींचती रहती है। उनके दु:ख-दर्द को धोती रहती है। नदी के किनारे बसे हुए गांव, वहाँ की सजल आँखों का भी दर्शन करूंगा।

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ बंगाल भूमि के सौंदर्य, नदियों का, निवासियों का, घास के मैदानों का दर्शन करने एक न एक दिन कवि अवश्य आएंगा। कवि बंगाल भूमि के प्रति काफी संवेदना रखता है।


शायद तुम देखोगे शाम की हवा के साथ उड़ते एक उल्लू को
शायद तुम सुनोगे कपास के पेड़ पर उसकी बोली
घासीली जमीन पर फेंकेगा मुट्ठी भर-भर चावल
शायद कोई बच्चा-उबले हुए !
देखोगे, रूपसा के गंदले-से पानी में
नाव लिए जाते एक लड़के को-उड़ते
फटे पाल की नाव!
लौटते होंगे रंगीन बादलों के बीच, सारस
अंधेरे में होऊंगा मैं उन्हीं के बीच में
देखना!

प्रस्तुत काव्य पक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “लौटकर आऊंगा फिर” काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग बंगाल भूमि की प्राकृतिक सुषमाओं से जुड़ा हुआ है। कवि कहता है कि जब तुम बंगाल की भूमि पर उतरोगे तो शाम की हवा में उड़ते हुए उल्लू का दर्शन करोगे। संभव हो, तुम उल्लू की बोली भी कपास के पेड़ पर सुनोगे। वहाँ की घास से ढंकी हुई जमीन पर तब उबले हुए चावल के दाने कोई नन्हा बच्चा फेंकेगा।
कवि अपनी आँखों से देखता है कि उड़ते हुए फटे पाल की नाव के साथ गंदले पानी के रूप-रंग का एक लड़का नाव को नदी के बीच लिए जा रहा है।

कवि पुनः कहता है कि रंगीन बादलों के बीच से संध्याकाल में सारसों के झंड लौटते हुए दिखेंगे। अंधेरा होने को है। उसी बीच मैं भी मिलूंगा। इन काव्य पंक्तियों के द्वारा कवि बंगाल भूमि की, वहाँ के पक्षियों की, बादलों की, हवाओं नाव के गंदे लड़के की चर्चा कर एक ऐसा
दृश्य उपस्थित करता है जो मन को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। कवि प्रकृति प्रेमी है। उसे प्रकृति से अटूट प्रेम है वह प्रकृति के बीच जीना चाहता है। वह प्रकृति की गोद में विचरण करना चाहता है।


MCQ and Summary for मेरे बिना तुम प्रभु Class 10 Hindi Matric Godhuli

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MCQ and Summary for मेरे बिना तुम प्रभु (Mere Bina Tum Prabhu) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

मेरे बिना तुम प्रभु - रेनर मारिया रिल्के MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. रेनर मारिया रिल्के किस देश के कवि हैं ?
(A) इंगलैण्ड
(B) जर्मनी
(C) चीन
(D) जापान
उत्तर
(B) जर्मनी

2. 'मेरे बिना तुम प्रभु' किस कवि की रचना है ?
(A) जीवनानंद दास
(B) रवीन्द्रनाथ ठाकुर
(C) रेनर मारिया रिल्के
(D) वीरेन डंगवाल
उत्तर
(A) जीवनानंद दास

3. कवि रिल्के के अनुसार मनुष्य के बिना किसका अस्तित्व न रहेगा?
(A) ईश्वर
(B) पर्वत
(C) प्रकृति
(D) हवा
उत्तर
(A) ईश्वर

4. कवि रिल्के के अनुसार ईश्वर को सर्वशक्तिमान के रूप में किसने प्रतिष्ठित किया है ?
(A) ईश्वर ने
(B) सृष्टि ने
(C) मनुष्य ने
(D) इनमें से किसी ने नहीं
उत्तर
(C) मनुष्य ने

5. रिल्के की काव्य-शैली कैसी है?
(A) गीतात्मक
(B) प्रतीकात्मक
(C) भावात्मक
(D) कथात्मक
उत्तर
(A) गीतात्मक

6. रिल्के ने काव्य के अतिरिक्त और किन-किन विधाओं में रचना की है
(A) आलोचना और व्यंग्य
(B) कहानी और उपन्यास
(C) निबंध और नाटक
(D) जीवनी और यात्रा वर्णन
उत्तर
(B) कहानी और उपन्यास

7. 'मेरे बिना तुम प्रभु' शीर्षक कविता के अनुवादक कौन हैं ?
(A) धर्मवीर भारती
(B) प्रागसेन
(C) अमिताभ बच्चन
(D) अमर्त्य सेन
उत्तर
(A) धर्मवीर भारती

8. रिल्के का अवदान किस साहित्य में अत्यधिक है?
(A) जर्मन
(B) भारतीय
(C) यूरोपीय
(D) ईरानी
उत्तर
(C) यूरोपीय

9. रिल्के का उपन्यास है ___
(A) द नोट बुक ऑफ माल्टे लॉरिड्स
(B) लाइफ एंड साँग्स
(C) एडवेण्ट और लॉरेस
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर
(A) द नोट बुक ऑफ माल्टे लॉरिड्स

10. 'मेरे बिना तुम प्रभु' शीर्षक कविता किससे संकलित हैं ?
(A) अक्षांश से
(B) देशांतर से
(C) कर्क से
(D) मिथुन से
उत्तर
(B) देशांतर से

11. भगवान का अस्तित्व किस पर निर्भर है ?
(A) मूर्ति पर
(B) भक्त पर
(C) मंदिर पर
(D) पुजारी पर
उत्तर
(B) भक्त पर


मेरे बिना तुम प्रभु कवि परिचय

रेनर मारिया रिल्के का जन्म 4 दिसंबर 1875 ई० में प्राग, ऑस्ट्रिया (अब जर्मनी) में हुआ था । इनके पिता का नाम जोसेफ रिल्के और माता का नाम सोफिया था । इनकी शिक्षा-दीक्षा अनेक बाधाओं को पार करते हुए हुई । इन्होंने प्राग और म्यूनिख विश्वविद्यालयों में शिक्षा पायी । कला और साहित्य में आरंभ से ही इनकी गहरी अभिरुचि थी। संगीत, सिनेमा आदि अनेक कलाओं में इनकी गहरी पैठ थी । कविता के अतिरिक्त इन्होंने गद्य भी पर्याप्त लिखा । इनका एक उपन्यास ‘द नोटबुक ऑफ माल्टे लॉरिड्स ब्रिज’ और ‘टेल्स ऑफ आलमाइटी’ कहानी संग्रह प्रसिद्ध हैं। इनके प्रमुख कविता संकलन हैं – ‘लाइफ एण्ड सोंग्स’, ‘लॉरेस सेक्रिफाइस’, ‘एडवेन्ट’ आदि । इनका निधन 29 दिसंबर 1926 ई० में हुआ।

रिल्के का रचनात्मक अवदान बहुत बड़ा है । इन्होंने आधुनिक यूरोप के साहित्य को अपने गहरे भावबोध तथा संवेदनात्मक भाषा और शिल्प से काफी प्रभावित किया। इनकी काव्य शैली गीतात्मक है और भावबोध में रहस्योन्मुखता है।

प्रसिद्ध हिंदी कविधर्मवीर भारती द्वारा भाषांतरित इस महान जन कवि की कविता यहाँ प्रस्तुत है । यह कविता विश्व कविता के भाषांतरित संकलन ‘देशांतर’ से ली गयी है । रिल्के का आधुनिक विश्व कविता पर प्रभाव बताया जाता है । रिल्के मर्मी इसाई कवियों जैसी पवित्र आस्था के आस्तिक कवि थे, जिनकी कविता में रहस्यवाद के आधुनिक स्वर सुने जाते हैं। प्रस्तुत कविता इस तथ्य की एक दुर्लभ साखी पेश करती है। बिना भक्त के भगवान भी एकाकी और निरुपाय हैं। उनकी भगवत्ता भी भक्त की सत्ता पर ही निर्भर करती है । व्यक्ति और विराट सत्य एक-दूसरे पर निर्भर हैं । प्रेम के धरातल पर अत्यंत पावनतापूर्वक यह कविता इस सत्य को अभिव्यक्त करती है।


मेरे बिना तुम प्रभु कवि परिचय

प्रस्तुत कविता ‘मेरे बिना तुम प्रभु‘ धर्मवीर भारती के द्वारा हिंदी भाषा में अनुवादित जर्मन कविता है। कवि का मानना है कि बिना भक्त के भगवान भी एकाकी और निरुपाय है। उनका अस्तित्व भक्त की सŸा पर निर्भर करती है। भक्त और भगवान एक-दूसरे पर निर्भर है।

जब मेरा अस्तित्व न रहेगा, प्रभु, तब तुम क्या करोगे ?
जब मैं – तुम्हारा जलपात्र, टूटकर बिखर जाऊँगा ?
जब मैं तुम्हारी मदिरा सूख जाऊँगा या स्वादहिन हो जाऊँगा ?
मैं तुम्हारा वेश हुँ, तुम्हारी वृति हुँ
मुझे खो कर तुम अपना अर्थ खो बैठोगे ?
कवि कहता है कि हे प्रभु ! जब मैं नहीं रहुँगा तो तुम्हारा क्या होगा ? तुम क्या करोगे ? मैं ही तुम्हारा जलपात्र हुँ, जिससे तुम पानी पीते हो। अगर टूट गया तो या जिससे नशा होता है, तो मेरे द्वारा प्राप्त मदिरा सुख जाएगी अथवा स्वादहीन हो जाएगी। वास्तव में, मैं ही तुम्हारा आवरण हूँ वृŸा हूँ। अगर नहीं रहा तो तुम्हारी महता ही समाप्त हो जाएगी।


मेरे बिना तुम गृहहीन निर्वासित होगे, स्वागत-विहीन
मैं तुम्हारी पादुका हूँ, मेरे बिना तुम्हारे
चरणों में छाले पड़ जाएँगे, वे भटकेंगे लहूलुहान !


मेरे प्रभु, मैं नहीं रहा तो तुम गृहविहीन हो जाओगे। कौन करेगा तुम्हारी पूजा-अर्चना ? वास्तव में, मैं ही तुम्हारी पादुका हुँ जिसके सहारे जहाँ जाता हुँ तुम जाते हो अन्यथा तुम भटकोगे।


तुम्हारा शान्दार लबादा गिर जाएगा
तुम्हारी कृपा दृष्टि जो कभी मेरे कपोलों की
नर्म शय्या पर विश्राम करती थी
निराश होकर वह सुख खोजेगी
जो मैं उसे देता था-
कवि कहता है कि मुझसे ही तुम्हारी शोभा है। मेरे बिना किस पर कृपा करोगे ? कृपा करने का सुख कौन देगा ? मेरे बिना तुम्हार सुख-साधन विलुप्त हो जाऐंगे, जो मैं तुम्हें देता था।


दूर की चट्टानों की ठंढी गोद में
सूर्यास्त के रंगों में घुलने का सुख
प्रभू, प्रभू मुझे आशंका होती है
मेरे बिना तुम क्या करोगे ?
कवि कहता है कि जब मैं नहीं रहुँगा तो संध्याकालीन अस्त होते सूर्य की सुन्दर लालिमा का वर्णन आखिर कौन करेगा ? क्योंकि उस समय सारा वन प्रांत सूर्य की विखर रही लाल किरणों के संयोग से अद्भुत प्रतीत होता है। इसलिए कवि को आशंका होती है कि मैं नहीं रहा तो तुम क्या करोगे।


मेरे बिना तुम प्रभु का सारांश (Summary)

जब मेरा अस्तित्व न रहेगा, प्रभु, तब तुम क्या करोगे?
जब मैं-तुम्हारा जलपात्र, टूटकर बिखर जाऊँगा?
जब मैं तुम्हारी मदिरा सूख जाऊँगा या स्वादहीन हो जाऊँगा ?

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “मेरे बिना तुम प्रभु” काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग ईश्वर और कवि के बीच या ईश्वर और मनुष्य के बीच के संवाद से संबंधित है। कवि कहता है कि हे प्रभु ! जब मैं ही नहीं रहूँगा तब तुम क्या करोंगे?

मनुष्य के बिना ईश्वर का महत्त्व शून्य हो जाएगा। मनुष्य कहता है कि मैं जलपात्र हूँ और हे प्रभु ! तुम जल हो। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। अगर जलपात्र नहीं रहे तो जल का अस्तित्व और स्थान कहाँ रहेगा। जल बिना जलपात्र का भी महत्त्व शून्य रहेगा। यहाँ भी दोनों एक-दूसरे के लिए आवश्यक हैं। मनुष्य ने स्वयं को मदिरा के रूप में व्यक्त किया है। अगर मदिरा सूख जाएगी या स्वादहीन हो जाएगा तब क्या होगा। कौन तुम्हारा नाम लेगा? उपर्युक्त काव्य पंक्तियों में कवि ने मनुष्य और ईश्वर के बीच के अटूट संबंधों की व्याख्या करते हुए दोनों के अस्तित्व और महत्त्व को सिद्ध किया है। दोनों एक-दूसरे के लिए बने हैं। दोनों का संबंध अटूट और अनोखा है।


मैं तुम्हारा वेश हूँ, तुम्हारी वृत्ति हूँ
मुझे खोकर तुम अपना अर्थ खो बैठोगे?

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “मेरे बिना तुम प्रभु” काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग ईश्वर और मनुष्य के बीच के संबंध से जुड़ा हुआ है। कवि कहता है कि हे प्रभु ! मैं तुम्हारा वेश हूँ। मैं तुम्हारी वृत्ति हूँ। कहने का अर्थ यह है कि ईश्वर का प्रतिरूप ही मनुष्य है और उसकी कृति का प्रतिरूप भी मनुष्य ही है।

अगर मनुष्य का अस्तित्व मिट गया तो ईश्वर का अर्थ भी नहीं रहेगा। बिना नर के नारायण का महत्त्व कहाँ ? इस प्रकार इन काव्य पंक्तियों के द्वारा कवि ने मनुष्य और ईश्वर के बीच के अटूट और प्रगाढ़ संबंधों को रेखांकित किया है।


मेरे बिना तुम गृहहीन निर्वासित होगे, स्वागत-विहीन
मैं तुम्हारी पादुका हूँ, मेरे बिना तुम्हारे
चरणों में छाले पड़ जाएंगे, वे भटकेंगे लहुलुहान!

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “मेरे बिना तुम प्रभु” काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग ईश्वर और मनुष्य के बीच के संवाद से जुड़ा है।
कवि कहता है कि मनुष्य के बिना ईश्वर गृहविहीन हो जाएगा। उसे निर्वासित जीवन बिताना पड़ेगा। कोई उसका स्वागत करनेवाला नहीं रहेगा।
मनुष्य ईश्वर के चरणों की पादुका है। बिना पादुका के ईश्वर के पैरों में छाले पड़ जाएंगे। ईश्वर के पैर लहुलुहान होकर यत्र-तत्र भटकेंगे।

इन काव्य पंक्तियों में मनुष्य का ईश्वर के प्रति यथोचित सम्मान का भाव प्रदर्शित किया गया है। ईश्वर के प्रति मनुष्य की आस्था युगों-युगों से जुड़ी हुई है। मनुष्य ने ही ईश्वर को मंदिरों, मस्जिदों, गिरिजाघरों में स्थापित किया है। उनकी पूजा-अभ्यर्थना एवं वंदना की है। उसने उनके पैरों को धोया है। चारों शीश को झुकाया है। अतः, बिना मनुष्य के ईश्वर का महत्त्व मिट जाएगा। कोई भी नाम लेनेवाला या पूजा-वंदना करनेवाला नहीं रहेगा। यहाँ मनुष्य और ईश्वर के बीच के अकाट्य संबंधों को दर्शाया गया है।


तुम्हारा शानदार लबादा गिर जाएगा
तुम्हारी कृपादृष्टि जो कभी मेरे कपोलों की
नर्म शय्या पर विश्राम करती थी
निराश होकर वह सुख खोजेगी
जो मैं उसे देता था

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “मेरे बिना तुम प्रभु” नामक काव्य पाठ से ली गयी हैं। इन काव्य पंक्तियों के द्वारा मनुष्य और ईश्वर के बीच प्रगाढ़ संबंध को रेखांकित किया गया है।

कवि कहता है कि तुम्हारा नामरूपी शानदार लबादा सभी मनुष्यों ने धारण किया है वह गिर जाएगा। कहने का भाव यह है कि नाम लेनेवाला ही जब नहीं रहेगा तब तुम्हारा नाम स्वत: लुप्त हो जाएगा।

कवि कहता है कि ईश्वर की कृपादृष्टि सदैव मनुष्य को मिली है। उसके कपालों की नर्म : शय्या यानी कोमल मस्तिष्क में ईश्वर का नाम अंकित था। वह मस्तिष्क के भीतर विश्राम की अवस्था में विराजमान था। जब तुम्हारी कृपादृष्टि निराशा के कुहरे में ढंक जाएगी तब वह सुख के लिए व्यग्र हो उठेगी वह सुख अलभ्य हो जायेगा। कहने का मूल आशय यह है कि ईश्वर भक्ति में मनुष्य सृष्टिकाल से एकनिष्ठ भाव से लगा हुआ है। लेकिन यह भावना जब संशय के घेरे में फिर जायेगी तो क्या होगा? न ईश्वर रहेगा न मानव रहेगा। दोनों का अस्तित्व और महत्व समाप्त हो जायेगा।

कवि ने इन पंक्तियों में ईश्वर के नाम, उसकी कृपा दृष्टि और सुख-शांति के बीच जीने की ललक, चेष्टा को सूक्ष्मता से रेखांकित किया है।
उपर्युक्त काव्य पंक्तियों में मनुष्य और ईश्वर के बीच सूक्ष्म संबंधों को व्याख्यायित किया गया है। आत्मा और परमात्मा के बीच के सूक्ष्म तत्वों की अगर ध्यान आकृष्ट किया जाता है।


दूर की चट्टानों की ठण्डी गोद में
सूर्यास्त के रंगों में घुलने का सुख।

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “मेरे बिना तुम प्रभु” काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का संबंध कवि और प्रकृति के बीच के.सूक्ष्म संबंधों से है। कवि कहता है कि दूर-दूर तक चट्टानें जो पड़ी हुयी हैं वह गोद भी शीतलता से युक्त है। कहने का भाव यह है कि पत्थर भी पिघलकर तरलता में बदल सकते हैं और उनके भीतर संवेदना को जगाया जा सकता है। पाषाण में भी हृदय होता है। उनमें भी ऊष्मा और ठण्डापन विद्यमान रहता है।

सूर्यास्त के समय जो ललायी रहती उसके घुलनशील रूप का दर्शन मन मोह लेता है और एक अलग ही सुख प्रदान करता है। सूर्यास्त, सूर्य की ललिमायुक्त किरणों, पत्थरों में विद्यमान तरलता ईश्वर के रूप का दर्शन कराते हैं। इन चीजों में प्रकृति की मनोहर छवि का दर्शन होता है। यहाँ भी द्विअर्थी रूप दिखाई पड़ता है। अवसान के समय मनुष्य और ईश्वर दोनों का मिलन बिंदु ज्ञानवर्द्धक और यथार्थ का बोध कराता है। ठीक उसी प्रकार सूर्यास्त के समय प्रकाश की किरणें जो सुख देती हैं, वे चट्टानों में भी तरलता पैदा कर देती हैं। इन पंक्तियों में प्राकृतिक दृश्यों के सहारे मानवीय संवेदना, सुख, आनंद प्रकृति के साथ के संबंधों को उकेरा गया है।


प्रभु, प्रभु मुझे
आशंका होती है
मेरे बिना तुम क्या
करोगे?

प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “मेरे बिना तुम प्रभु” काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग प्रकृति और मनुष्य के बीच के अनन्य संघर्षों से है।
कवि कहता है कि हे प्रभु मेरे मन में संशय उठता है कि जब धरती पर इन्सान नहीं रहेगा तो तुम्हारी आवश्यकता रह जायेगी क्या? तुम्हारा महत्व घट जायेगा। मुझे तुम्हारे अस्तित्व पर संकट आ जाने के खतरे से घड़बड़ाहट हो रही है।

उपर्युक्त पाठ पंक्तियों में कवि ने ईश्वर के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। जब मानव रहेगा तभी ईश्वर का भी नाम रहेगा। बिना सृष्टि के सृजनकर्ता का क्या महत्वा सृष्टि और सृजनकर्ता दोनों का रहना आवश्यक है, आत्मा को परमात्मा से अलग नहीं किया जा सकता है।

उक्त पंक्तियों में नर की महत्ता के साथ नारायण की महत्ता का भी उल्लेख किया गया है। धरती जबतक रहेगी तबतक नर रहेगा और नर रहेगा तभी नारायण भी रहेंगे।

MCQ and Summary for दही वाली मंगम्मा Class 10 Hindi Matric Varnika

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MCQ and Summary for दही वाली मंगम्मा (Dahi Wali Mangamma) Class 10 Hindi Varnika Part 2 Bihar Board

दही वाली मंगम्मा - श्रीनिवास MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. दही वाली मंगम्मा के रचयिता है
(A) सात कौड़ी होता
(B) ईश्वर पेटलीकर
(C) श्रीनिवास
(D) प्रेमचन्द
उत्तर
(C) श्रीनिवास

2. श्री निवास ____ साहित्यकार हैं |
(A) गुजराती
(B) कन्नड़
(C) राजस्थानी
(D) तमिल
उत्तर
(B) कन्नड़

3. मंगम्मा बरसों से बारी में ____ दिया करती थी।
(A) दूध
(B) चावल
(C) मछली
(D) दही
उत्तर
(D) दही

4. नंजम्मा मंगम्मा की कौन थी?
(A) बेटी
(B) माँ
(C) पुत्रवधू
(D) सास
उत्तर
(C) पुत्रवधू

5. श्रीनिवास का पूरा नाम ______ है।
(A) सावर दइया
(B) सुजाता
(C) आरती वेंकटेश अय्यंगर
(D) सात कोड़ी होता
उत्तर
(C) आरती वेंकटेश अय्यंगर

6. मंगम्मा कहाँ की रहने वाली थी ?
(A) रामपुर
(B) बैकटपुर
(C) बेंकटपुर (बेंगलूर)
(D) वर्द्धमान
उत्तर
(C) बेंकटपुर (बेंगलूर)

7. मंगम्मा और बहु के झगड़े का कारण क्या था ?
(A) पैसा रुपया
(B) दही बेचने का काम
(C) आलस
(D) पोते की पिटाई
उत्तर
(D) पोते की पिटाई

8. मंगम्मा किस प्रदेश के गाँव की भारतीय नारी है ?
(A) उत्तर प्रदेश के
(B) कर्नाटक के
(C) पश्चिम बंगाल के
(D) दिल्ली के
उत्तर
(C) पश्चिम बंगाल के

9. मंगम्मा की बहु का क्या नाम था ?
(A) नजम्मा
(B) नजमा
(C) जायरीन
(D) अम्म
उत्तर
(A) नजम्मा

10. दही कौन बेचा करती थी?
(A) मंगम्मा
(B) निवास
(C) रंगप्प
(D) पप्पाती
उत्तर
(A) मंगम्मा

11. गाँव में जुआरी कौन था?
(A) मंगम्मा
(B) रंगप्पा
(C) पप्पात
(D) जर्खा
उत्तर
(B) रंगप्पा

12. झगड़ा करने से क्या बढ़ती है ?
(A) उमर
(B) तेवर
(C) खून
(D) दौलत
उत्तर
(A) उमर

13. सासु बहू की लड़ाई में मंगम्मा के बेटे ने किसका साथ दिया ?
(A) माँ का
(B) पुत्र का
(C) पत्नी का
(D) गाँव वालों का
उत्तर
(C) पत्नी का

14. बहु ने सास से समझौता क्यों कर लिया ?
(A) प्रेम से
(B) मजबूरी से
(C) शोक से
(D) रुपये-पैसो को कारण
उत्तर
(A) प्रेम से

15. कौ लालची और लम्पट किस्म का आदमी था ?
(A) मगम्मा
(B) पप्पाती
(C) रंगप्पा
(D) इनमें सभी
उत्तर
(C) रंगप्पा

16. इस कहानी की कथा वाचिका कहाँ रहती है ?
(A) पटना में
(D) मध्य प्रदेश में
(C) बंगाल में
(D) बैंगलूर में
उत्तर
(D) बैंगलूर में

17. 'बी आर नारायण' ने किसी कहानी का अनुवाद किया है ?
(A) ढहते विश्वास
(B) दही वाली मंगम्मा
(C) नगर
(D) माँ
उत्तर
(B) दही वाली मंगम्मा


दही वाली मंगम्मा कवि परिचय

श्रीनिवास जी का पूरा नाम मास्ती वेंकटेश अय्यंगार है । उनका जन्म 6 जून 1891 ई० में कोलार, कर्नाटक में हुआ था । श्रीनिवास जी का देहावसान हो चुका है । वे कन्नड़ साहित्य के सर्वाधिक प्रतिष्ठित रचनाकारों में एक हैं। उन्होंने कविता, नाटक, आलोचना, जीवन-चरित्र आदि साहित्य की प्रायः सभी विधाओं में उल्लेखनीय योगदान दिया। साहित्य अकादमी ने उनके कहानी संकलन ‘सण्णा कथेगुलु’ को सन् 1968 में पुरस्कृत किया । उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। यह कहानी ‘कन्नड़ कहानियाँ’ (नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया) से साभार ली गयी है । इस कहानी का अनुवाद बी० आर० नारायण ने किया है।


दही वाली मंगम्मा का सारांश (Summary)

मंगम्मा अवलूर के समीप वेंकटपुर की रहनेवाली थी और रोज दही बेचने बंगलूर आती थी। वह आते-जाते मेरे पास बैठती और अपनी बातें करती थी।
एक दिन वह मेरे बच्चे को देखकर अपना पुत्र और पति की कहानी कहकर पति को अपनी ओर आकृष्ट करने की रहस्यमयी बातें कहने लगी। आदमी को अपने वश में रखने का तीन-चार अपना अनुभवपूर्ण गुर भी बताया।
पन्द्रह दिन बाद मंगम्मा आई और रोती हुई अपना गृह-कलह तथा बेटा-बहु से अलग होने की दुःखद कहानी सुनाई। इस प्रकार बेटे बहु से विरक्त होकर अपने जोड़े हुए पैसे को अपने साज श्रृंगार पर खर्च करने लगी। इस से वह कुछ लोगों के आलोचना के पात्र भी बन गई। बहु भी उसकी जैकेट पर ताना कसने लगी और बात बढ़ने पर दिए गये गहने भी लौटाने को तैयार हो गई।
झगड़े का कारण तो पोते की पीटाई थी लकिन मूल-रूप में सास-बहू की अधिकार सम्बन्धी ईर्ष्या थी । औरत को अकेली जानकर कुछ लोग उसके धन और प्रतिष्ठा पर भी आँखे उठाते थे। रंगप्पा भी ऐसा ही किया, जिसे बहू के पैनी निगाहों ने ताड़ लिया। उसने पोते को उसके पास भेजने का एक नाटक किया। अब मंगम्मा भी पोते के लिए बाजार से मिठाई खरिदकर ले जाने लगी। एक दिन कौवे ने उसके माथे से मिठाई की दाना ले उड़ा। अंधविश्वास के कारण मंगम्मा भयभीत हो उठी। जिसे माँ जी ने बड़े कुशलता से निवारण किया।
बहू के द्वारा नाटकीय ढ़ंग से पोते को दादी के पास भेजने का बहू का मंत्र बड़ा कारगर हुआ। दूरी बढ़ने से भी प्रेम बढ़ता है। मानसिक तनाव घटता है। हुआ भी ऐसा ही। मंगम्मा को भी बहू में सौहार्द, बेटे और पोते में स्नेह नजर आने लगी। बड़े-बूढ़ों ने भी समझाया।
बहू ने मंगम्मा का काम अपने जिम्मे ले लिया। एक दिन दही बेचने के क्रम में नंजम्मा (बहू) आई और मुझे सारी बातें बताई। उसने परिवार का जमा पैसा लुट जाने के भय के कारण बहू बड़ी कुशलता से पुनः परिवार में शांति स्थापित कर लिया। और फिर पहले की तरह रहने लगी।
अंत में लेखक इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि सास और बहू में स्वतंत्रता की होड़ लगी है। उसमें माँ बेटे और पति पत्नि है। माँ बेटे पर से अपना अधिकार नही छोड़ना चाहती है तो बहू पति पर अपना अधिकार जमाना चाहती है। यह सारे संसार का ही किस्सा है।

MCQ and Summary for ढहते विश्वास Class 10 Hindi Matric Varnika

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MCQ and Summary for ढहते विश्वास (Dhahate Viswas) Class 10 Hindi Varnika Part 2 Bihar Board

ढहते विश्वास - सातकोड़ी होता MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. 'ढहते विश्वासके रचयिता _____ है
(A) साँवर दइया
(B) सुजाता
(C) सातकोड़ी होता
(D) श्रीनिवास 
उत्तर
(C) सातकोड़ी होता

2. सातकोड़ी होता कथाकार है
(A) तमिल
(B) राजस्थानी
(C) गुजराती
(D) उड़िया
उत्तर
(D) उड़िया

3. लक्ष्मी लक्ष्मण की कौन थी ?
(A) माँ
(B) बेटी
(C) सास
(D) पत्नी
उत्तर
(D) पत्नी

4. लक्ष्मण कहाँ रहता था ?
(A) दिल्ली
(B) भुवनेश्वर
(C) आगरा
(D) कोलकाता
उत्तर
(D) कोलकाता

5. लोग हाँफते हुए कहाँ दौड़ने लगे ?
(A) नदी की ओर
(B) सड़क की ओर
(C) टीले की ओर
(D) गाँव की ओर
उत्तर
(C) टीले की ओर

6. 'ढहते विश्वासकहानी में राजेन्द्र मिश्रा क्या है?
(A) अनुवादक
(B) सम्पादक  
(C) (A) एवं (B) दोनों
(D) सभी गलत हैं
उत्तर
(C) (A) एवं (B) दोनों

7. 'ढहते विश्वासकैसी कहानी है ?
(A) मंगही
(B) उड़िया
(C) भोजपुरी
(D) गढ़वाली
उत्तर
(B) उड़िया

8. 'ढहते विश्वासकहानी की नायिका कौन है ?
(A) माँ
(B) मंगम्मा
(C) लक्ष्मी
(D) गजम्मा
उत्तर
(C) लक्ष्मी

9. उड़ीसा में बाढ़ की विभीषिका का वर्णन किस कहानी में किया गया है ?
(A) ढहते विश्वास
(B) दही वाली मंगम्मा
(C) माँ  
(D) नगर
उत्तर
(A) ढहते विश्वास

10. हीराकुण्ड बाँध किस नदी पर है ?
(A) महानदी
(B) गोदावरी
(C) गंगा
(D) ब्रह्मपुत्र
उत्तर
(A) महानदी

11. इंसान कब ठगा जाता है ?
(A) जब सोया रहता है
(B) जब गरीब रहता है
(C) जब बार-बार विश्वास करता है
(D) सभी असत्य है
उत्तर
(C) जब बार-बार विश्वास करता है

12. बाढ़ की पानी सुबह तक कहाँ पहुँच गया था ?
(A) एरसमा
(B) परसमा
(C) कुच्छिल
(D) हीराकुण्ड
उत्तर
(A) एरसमा

13. लक्ष्मी के बड़े बेटे का क्या नाम था?
(A) अक्षय
(B) अमर
(C) अच्युत
(D) अखिलेश
उत्तर
(C) अच्युत

14. कटक से कौन लौटा जिसने महानदी की बाद के बारे में बतलाया?
(A) रंगप्पा
(B) गुणनिधि
(C) वेदनिधि
(D) वरूणानिधि
उत्तर
(B) गुणनिधि

15. लक्ष्मी जब ससुराल आई तब किस नदी ने दाब साधा था ?
(A) कृष्णा
(B) सोन
(C) दलेइ
(D) बाणगंगा
उत्तर
(C) दलेइ

16. ढहते विश्वास कस-भाषा से अनुदित है ?
(A) कन्नर
(B) तमिल
(C) उडिया
(D) गुजराती
उत्तर
(C) उडिया

ढहते विश्वास लेखक परिचय

सातकोड़ी होता उड़िया के एक प्रमुख कथाकार हैं । इनका जन्म 29 अक्टूबर 1929 ई० में मयूरभंज, उड़ीसा में हुआ था । अबतक इनकी एक दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। होता जी भुवनेश्वर में भारतीय रेल यातायात सेवा के अंतर्गत रेल समन्वय आयुक्त व उड़ीसा सरकार के वाणिज्य एवं यातायात विभाग में विशेष सचिव तथा उड़ीसा राज्य परिवहन निगम के अध्यक्ष रह चुके हैं । इनके कथा साहित्य में उड़ीसा का जीवन गहरी आंतरिकता के साथ प्रकट हुआ है । यह कहानी राजेन्द्र प्रसाद मिश्र द्वारा संपादित एवं अनूदित ‘उड़िया की चर्चित कहानियाँ’ (विभूति प्रकाशन, दिल्ली) से यहाँ साभार संकलित है।


ढहते विश्वास का सारांश (Summary)

प्रस्तुत कहानी ‘ढहते विश्वास‘ चिंतन प्रधान कहानी है। इसमें कहानीकार सातकोड़ी होता ने उड़ीसा के जन-जीवन का चित्र प्रस्तुत किया है। कहानी एक ऐसे परिवार की आर्थिक दुर्दशा से शुरू होती है, जिसका मुखिया लक्ष्मण कलकŸा में नौकरी करता है, किन्तु उसकी कमाई से परिवार का भरण-पोषण नहीं हो पाता। इसलिए उसकी पत्नि तहसीलदार साहब के घर छिटपुट काम करके उस कमी को पूरा करती है। उसके पास एक बिघा खेत भी है, लकिन बाढ़, सूखा तथा तुफान के कारण वह खेत दुख का कारण बन जाता है।
कई दिनों से लगातार वर्षा होते देखकर लक्ष्मी इस आशंका भयाक्रांत हो गई कि इस बार भी बाढ़ आएगी। तूफान से घर टूट गया था। कर्ज लेकर किसी प्रकार घर की मरम्मत कराती है। तूफान और सूखा से त्रस्त होते हुए भी हल किराए पर लेकर खेती करवाती है। सूखा होने के कारण धान के अंकुर जल गये, फिर भी हार न मानकर बारिश होने पर रोपनी करने का इंतजार किसान कर रहे थे। लकिन लगातार वर्षा होने के कारण बाढ़ आने की चिंता ने लोगों की निन्द हराम कर दी थी। लक्ष्मी का घर देवी नदी के बाँध के निचे था। लक्ष्मी उसी समय ससुराल आई थी, जब दलेई बाँध टुटा था। बाढ़ की भयंकरता के कारण लोगों की खुशी तुराई के फूल की तरह मुरझा गई। चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था। उस दर्दनाक स्थिति की अनुभूति लक्ष्मी को हो चुकी थी।
इसलिए वह यह सोचकर सिहर उठती है कि यदि पुनः दलेई बाँध टूट जाए तो इस विपिŸा का सामना वह कैसे कर पाएगी, क्योंकि तूफान और सूखा ने कमर तोड़ दी है। पति परदेश में है। तीन बच्चे हैं।
लक्ष्मी वर्षा की निरंतरता से भीषण बाढ़ आने की बात सोचकर दुखी हो रही थी। उसके पति लक्ष्मण कलकŸा की नौकरी से कुछ पैसे भेज देता था और वह स्वयं तहसीलदार का छिटपुट काम करके बच्चों के साथ अपना भरण-पोषण कर रही थी। भूमि की छोटा टुकड़ा तो प्रकृति-प्रकोप से ही तबाह रहता है।
दलेई बाँध टूटने की विभीषिका तो वह पहले ही देख चुकी थी। वह भयानक अनुभूति रह-रहकर जाग उठती थी। तूफान, सूखा और बाढ़ इन तीन-तीन प्राकृतिक विपदाओं से कौन रक्षा करें ? बाँध की सुरक्षा के लिए ग्रामीण युवक स्वयंसेवी दल बनाकर बाँध की सुरक्षा में संलग्न थे। लक्ष्मी भी बड़े लड़के को बाँध पर भेजकर दो लड़कीयों और एक साल के लड़का के साथ घर पर है।
पूर्व में ऐसी भयानक स्थिति को देखकर भी लोग यहाँ खिसके नहीं। सायद इसी प्रकार नदियों के किनारे नगर और जनपद बनते गये। लक्ष्मी भी पूर्व के आधार पर कुछ चिउड़ा बर्तन-कपड़ा संग्रह कर लिया। गाय, बकरीयों के पगहा खोल दिया।
पानी ताड़ की ओर बढ़ा और शोर मच गया। ग्रामीण युवक काम में जुटे थे और लोगों में जोश भर रहे थे तथा लोगों को ऊँचे पर जाने का निर्देश भी दे रहे थे। सब लोगों का विश्वास आशंका में बदल गया। लोग काँपते पैरों से टीले की ओर भागे। स्कूल में भर गये। देवी स्थान भी भर गया। लोग हतास थे अब तो केवल माँ चंडेश्वरी का ही भरोसा है।
लक्ष्मी भी आशा छोड़कर जैसे-तैसे बच्चों को लेकर भाग रही थी क्योंकि बाँध टूट गया था और बाढ़ वृक्ष घर सबों को जल्दी-जल्दी लील रही थी। शिव मंदिर के समीप पानी का बहाव इतना बढ़ गया कि लक्ष्मी बरगद की जटा में लटककर पेड़ पर चढ़ गयी। वह कब बेहोश हो गई। कोई किसी की पुकार सुननेवाला नहीं। टीले पर लोग अपने को खोज रहे थे। स्कुल भी डुब चुका था। अतः लोग कमर भर पानी में किसी तरह खड़े थे।
लक्ष्मी को होश आने पर उसका छोटा लड़का लापता था। वह रो-चिल्ला रही थी, पर सुननेवाला कौन था ? लोगों का विश्वास देवी-देवताओं पर से भी उठ गया क्योंकि इन पर बार-बार विश्वास करके लोग ठगे जा रहे हैं। लक्ष्मी ने पुनः पिछे देखा पर उसकी दृष्टि शून्य थी। फिर भी एक शिशु शव को उसने पेड़ की तने पर से उठा लिया और सीने से लगा लिया, जबकि वह उसके पुत्र का शव नहीं था।

MCQ and Summary for माँ Class 10 Hindi Matric Varnika

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MCQ and Summary for माँ (Maa) Class 10 Hindi Varnika Part 2 Bihar Board

माँ - ईश्वर पेटलीकर MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. माँ कहानी है?
(A) राजस्थानी
(B) गुजराती
(C) तमिल
(D) उडिया
उत्तर
(B) गुजराती

2. माँ कहानी के रचनाकार कौन है ?
(A) साँवर दइया
(B) श्रीनिवास
(C) ईश्वर पेटलीकर
(D) सुजाता
उत्तर
(C) ईश्वर पेटलीकर


3. मंगु जन्म से ही कैसी है?
(A) अंधी
(B) बहरी
(C) पागल
(D) गूंगी
उत्तर
(C) पागल

4. माँ की कितनी संतानें थी?
(A) तीन
(B) दो
(C) पाँच
(D) चार
उत्तर
(D) चार

5. मंगु को अस्पताल ले जाते समय माँ कैसी थी ?
(A) प्रसन्न
(B) उदास
(C) पागल
(D) उद्विग्न
उत्तर
(D) उद्विग्न

6. माँ कहानी की नायिका कैसी नारी है ?
(A) सहनशील
(B) झगड़ालू
(C) पागल
(D) सभी सत्य है
उत्तर
(A) सहनशील

7. मंगु की माँ की कितनी संतानें थीं?
(A) 1
(B) 2
(C) 3
(D) 4
उत्तर
(D) 4

8. मंगु जिस अस्पताल में भर्ती की जाती है, उसके कर्मचारी कैसे थे ?
(A) लापरवाह
(B) कर्त्तव्य-परायण
(C) घूसखोर
(D) वाकपटु
उत्तर
(B) कर्त्तव्य-परायण

9. मंगु की देखभाल कौन करती थी?
(A) उसकी बहनें
B) उसके भाई
(C) उसके चाचा
(D) उसकी माँ
उत्तर
(D) उसकी माँ

10. मंगु की माँ अस्पताल में उसे भरती क्यों नहीं करना चाहती थी?
(A) अस्पताल में उसकी देखभाल ठीक से न हो पाती
(B) डॉक्टर जल्लाद की तरह थे
(C) अस्पताल में गंदगी का अम्बार था
(D) वहाँ की नर्से झगड़ालू थीं
उत्तर
(A) अस्पताल में उसकी देखभाल ठीक से न हो पाती

11. भूतनी कहने पर परिचारिका _____
(A) उत्तेजित नहीं होती
(B) दुःखी हो जाती
(C) रोने लगती
(D) उत्तेजित हो जाती
उत्तर
(A) उत्तेजित नहीं होती

12. कुसुम कौन थी?
(A) गाँव की लड़की
(B) गाँव की पागल लड़की
(C) दोनों सत्य है
(D) सभी असत्य हैं
उत्तर
(C) दोनों सत्य है

13. ईश्वर पेटलीकर किस भाषा के बहुप्रशंसित रचनाकार हैं ?
(A) गुजराती
(B) असमिया
(C) तमिलनाडु
(D) कन्नड़
उत्तर
(A) गुजराती

14. मंगु के अलावा उसकी माँ की कितनी संतानें थीं?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) एक
उत्तर
(B) तीन


माँ लेखक परिचय

ईश्वर पेटलीकर गुजराती के लोकप्रिय कथाकार हैं । इनके कथा साहित्य में गुजरात का समय और समाज, नये-पुराने मूल्य, दर्शन और कला आदि रच-पककर एक नई आस्वादकता के साथ उपस्थित होते हैं । ‘खून की सगाई’ इनकी प्रसिद्ध कहानी है और ‘काला पानी’ इनका लोकप्रिय उपन्यास है । साहित्य के अलावा श्री पेटलीकर सामाजिक-राजनीतिक जीवन में भी सक्रिय रहे हैं। इनकी दर्जनों पुस्तकें पुरस्कृत और बहुप्रशंसित हो चुकी हैं । यह कहानी गोपालदास नागर द्वारा संपादित एवं अनूदित कहानी संग्रह ‘माँ’ से साभार संकलित है।


माँ का सारांश (Summary)

मंगु को पागलों की अस्पताल में भर्ती कराने की सलाह लोग जब उसकी माँ को देते तो वह एक ही जवाब देती- माँ होकर सेवा नहीं कर सकती तो अस्पताल वाले क्या करेंगे ?
जन्मजात पागल और गूंगी मंगु को जिस तरह पालती-पोसती सेवा करती उसे देखकर सभी माँ की प्रशंसा करते। मंगु के अलावा माँ को तीन संतानें थी। दो पुत्र और एक पुत्री। बेटी ससुराल चली गई थी और पुत्र पढ़-लिखकर शहरी हो गये थे। उनके बाल-बच्चे थे। जब सभी गाँव आते तो माँ उनको भी प्यार करती किन्तु बहुओं को संतोष नहीं होता। वे जलने लगती। कहती- ‘मंगु को झुठा प्यार-दुलार कर माँ ने ही अधिक पागल बना दिया है।
आदत डाली होती तो पाखाना-पेशाब का तो ख्याल रखती। डाँट से तो पशु भी सीख लेते हैं। बेटी भी ऐसे हीं बाते सुनाती। पुत्र माँ के भाव को समझते थे इसलिए कुछ नहीं कहते थे।
इसी बीच कुसुम अस्पताल गई और दूसरे महीने ही ठीक हो गई। फिर भी डॉक्टरों के कहने पर एक महिना और रही। गाँव आई तो सभी देखने दौड़े। अब लोग कहने लगे- ‘माँ जी, एक बार अस्पताल में मंगु को भर्ती करा के देखो जरूर अच्छी हो जाएगी‘ इस बार माँ ने विरोध नहीं किया। बड़े बेटे को चिट्ठी भेजवाई। लकिन रात की नींद उड़ गई, मन का चैन छिन गया। कैसे रहेगी मंगु अस्पताल में ? कुछ भी तो सऊर नहीं इसे। चिट्ठी पाकर बड़ा बेटा आ गया। मजिस्ट्रेट से जरूरी कागज तैयार करवाये।
माँ को लगा कि बेटा भी मंगु से छुटकारा चाहता है जो जल्दी-जल्दी करवा रहा है। आखिर जाने का दिन आ गया। उस रात माँ को नींद नही आई। जब मंगु को लेकर घर से बाहर निकलने लगी तो जैसे ब्रह्माण्ड का बोझ उस पर आ गया।
माँ भारी कदमों से अस्पताल में दाखिल हुई। मुलाकात का समय था। एक पागल अपने पति से लिपट गई । बोली- ई भूतनियाँ मुझे अच्छे कपड़े नहीं देतीं उसकी परिचारिका ने हँसकर कहा- ‘खा लो, मैं सब दुँगी‘ माँ को विश्वास हो गया कि ये सब लोग दयालु हैं।
डॉक्टर और मेट्रन आ गई। मंगु का कागज देखा। बेटे ने कहा- ‘मेरी मंगु का ठीक से ख्याल रखिएगा।‘ मेट्रन ने कहा- आपको चिंता करने की जरूरत नहीं। बीच में ही माँ ने कहा- बहन ! यह एकदम पागल है, कोई न खिलाए तो खाती नहीं…..टट्टी की भी सुध नहीं……रोशनी में उसे नींद नहीं आती। कहते-कहते माँ रो पड़ी।
सभी लोग उसकी रूलाई से संजीदा हो गए। मेट्रन ने कहा- धीरज रखें। यह भी कुसुम की तरह ठीक हो जाएगी। यहाँ रात को चार-पाँच बार बिछावन की जाँच होती है। जो सोते नहीं उन्हें दवा देकर सुलाया जाता है। जो खुद नहीं खाते उन्हें मुँह में खिलाया जाता है। माँ की बेकली के आगे मेट्रन की शक्ति लुप्त हो गई।
मंगु को छोड़ माँ-बेटे जब बाहर आए तो दोनों के चेहरे पर शोक के बादल थे। रास्ते भर माँ रोती रही। रात भर माँ यही सोचती रही कि मंगु क्या कर रही होगी ? इतनी ठंड में किसी ने उसे कुछ ओढ़ाया होगा या नहीं ? मंगु के बिना आज माँ का विछावन सुना लगा। बाहर बेटे को भी नींद नहीं आ रही थी। सोच रहा था कि मैं मंगु को अच्छी तरह पालूँगा।
सुबह जब चक्की की आवाज शुरू हुआ तो एक चिख सुनाई पड़ी-‘दौड़ो रे दौड़ो ! मेरे मंगु को मार डाला।‘ बेटा चारपाई से उछल पड़ा। माँ मंगु के श्रेणी में मिल गई थी।

MCQ and Summary for नगर Class 10 Hindi Matric Varnika

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MCQ and Summary for नगर (Nagar) Class 10 Hindi Varnika Part 2 Bihar Board

 नगर - सुजाता MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. 'नगर' कहानी के कथाकार कौन हैं
(A) साँवर दइया
(B) सुजाता
(C) ईश्वर पेटलीकर
(D) श्रीनिवास
उत्तर
(B) सुजाता


2. कहानीकार सुजाता का असली नाम क्या है?
(A) श्रीनिवास
(B) महादेवी वर्मा
(C) सातकोड़ी होता
(D) एस. रंगराजन
उत्तर
(D) एस. रंगराजन


3. सुजाता किस भाषा कथाकार हैं?
(A) कन्नड़
(B) गुजराती
(C) उड़िया
(D) तमिल
उत्तर
(D) तमिल

4. बल्लि अम्मला क्या नहीं जानती थी?
(A) पढ़ना
(B) बोलना
(C) खेलना
(D) लड़ना
उत्तर
(A) पढ़ना

5. पहले दिन पाप्पाति को क्या था ?
(A) सिरदर्द
(B) जुकाम
(C) बुखार
(D) कै-दस्त
उत्तर
(B) जुकाम

6. 'नगर' कहानी के अनुवादक कौन है?
(A) के. ए. जमुना
(B) बी० के. जमुना
(C) सी० जमुना
(D) डी० पी० यमुना
उत्तर
(A) के. ए. जमुना


7. सुजाता किस भाषा की कहानीकार हैं?
(A) तमिल
(B) द्रविड़
(C) कन्नड़
(D) उर्दू
उत्तर
(A) तमिल

8. वल्लि अम्माल की लड़की का क्या नाम था ?
(A) सुजाता
(B) यमुना
(C) जमुना
(D) पाप्पाति
उत्तर
(D) पाप्पाति

9. आधुनिक मदुरै का प्राचीन काल में क्या नाम था ?
(A) मथरा
(B) मदुरा
(C) मदोरा
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर
(B) मदुरा

10. पाप्माति को कौन-सा रोग था ?
(A) टिटनेस
(B) हैजा
(C) कैंसर
(D) मेनिनजाइटिस
उत्तर
(D) मेनिनजाइटिस

11. 'नगर' कहानी किस भाषा से अनुदित है ?
(A) उड़िया
(B) तमिल
(C) गुजराती
(D) कन्नड़
उत्तर
(B) तमिल

12. पाप्पाति की उम्र क्या थी?
(A) 10 वर्ष
(B) 11 वर्ष
(C) 12 वर्ष
(D) 14 वर्ष
उत्तर
(C) 12 वर्ष


नगर लेखक परिचय

सुजाता का वास्तविक नाम एस० रंगराजन है । इनका जन्म 3 मई 1935 ई० में चेन्नई, तमिलनाडु में हुआ । अपनी रचना-शैली तथा विषय-वस्तु के द्वारा इन्होंने तमिल कहानी में उल्लेखनीय बदलाव किए । इनकी रचनाएँ खूब लोकप्रिय हुईं। इन्होंने कुछ अभिनेय नाटक भी लिखे । इनके कुछ उपन्यासों पर चलचित्र भी बने । इनकी पच्चीस से अधिक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें करैयेल्लान शेण्बकप्पू’, ‘कनवुत् तोलिरशालै’ आदि उपन्यास काफी चर्चित और सम्मानित हुए । यह कहानी ‘आधुनिक तमिल कहानियाँ’ (नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया) से यहाँ साभार संकलित है । इस कहानी के अनुवादक के० ए० जमुना हैं।


नगर का सारांश (Summary)

प्रस्तुत कहानी ‘नगर‘ व्यंग्य प्रधान कहानी है। इसमें कहानीकार ने नगरीय अव्यवस्था पर कटाक्ष किया है किस प्रकार ग्रामीण भोली-भाली जनता के साथ नगर में उपेक्षा एवं बदसलूकी होती है। यह कहानी एक ऐसी लड़की से संबंधित है, जो आज ही मदुरै आई है। उसकी माँ वल्लिअम्माल अपनी पुत्री पाप्पाति के साथ मदुरै स्थित बड़े अस्पताल के बहिरंग रोगी विभाग के बाहर बरामदे पर बैठी प्रतिक्षा कर रही थी। उसकी पुत्री को बुखार था। गाँव के प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र के डॉक्टर ने उसकी जाँच कर उसे एडमिट करवा देने को कहा। वल्लिअम्माल अनपढ़ थी।
वह इतना भी नहीं जानती थी कि पेसेंट किसे कहते हैं ? फिर भी उसे विभिन्न दफतरों में चिट लेकर जाने को कहा जाता है। डॉक्टर के आदेश की अवहेलना कर उसकी पुत्री को एडमिट नहीं किया जाता है। तंग आकर वह वहाँ से विदा हो जाती है। दुसरे दिन जब बड़े डॉक्टर पाप्पाति को अनुपस्थित देखकर जानकारी लेते हैं तो पता चलता है कि वह वहाँ से विदा हो चुकी है। इससे स्पष्ट होता है कि नगर की व्यवस्था अति अस्त-व्यस्त हो गई है, जहाँ पैसे पर खेल होता है। गरीब एवं ग्रामीण के लिए कोई जगह नहीं है।
मदुरै के एक बड़े अस्पताल में वल्लि अम्माल अपनी लड़की पाप्पति के साथ बहिरंग विभाग के बरामदे में बैठी प्रतिक्षा कर रही थी। पाप्पाति को बुखार था। उसे लेकर गाँव के प्राइमरी हेल्थ सेंटर गई तो डॉक्टर ने कहा- ‘एक्यूट केस ऑफ मेनिनजाइटिस‘ फिर बारी-बारी से दुसरे डॉक्टरों ने देखा। बड़े डॉक्टर ने एडमिट करने को कहा। वल्लिअम्माल ने बड़े डॉक्टर की ओर दखकर पूछा- ‘बाबुजी बच्ची अच्छी हो जाएगी न ?‘
डॉक्टर ने कहा- ‘पहले एडमिट करवा लें। इस केस को मैं स्वयं दंखुँगा।‘ डॉ0 धनशेखरण श्रीनिवासन को सारी बात समझाकर बड़े डॉक्टर के पिछे दौड़े। श्रीनिवासन ने वल्लिअम्माल से कहा- ये ले । इस चिट को लेकर सिधे चली जाओ। सीढ़ियों के ऊपर कुर्सी पर बैठे सज्जन को देना। बच्ची को लेटी रहने दो।
वल्लिअम्माल चिट लेकर सीधे चली गई। कुर्सी खाली पड़ी थी। थोड़ी देर बाद सज्जन अपने भांजे को भर्ती करा कर लौटे। सब को लाइन लगाने को कहा। आधे घंटे के बाद वल्लिअम्माल से कहा- इस पर डॉक्टर का दस्तखत नहीं है। दस्तखत करवा कर लाओ। फिर वेतन आदि के बारे में पूछकर चिट देकर कहा- इसे लेकर सीधे जाकर बाएँ मुड़ना। तीर का निशान बना होगा। 48 नंबर कमरे में जाना।
वल्लिअम्माल को कुछ समझ में नहीं आया। इधर-उधर घूमकर एक कमरे के पास पहुँची। वहाँ के एक आदमी ने चिट ले ली। कुछ देर बाद पाप्पाति का नाम पढ़कर कहा-
इसे यहाँ क्यों लाई ? ले, इसे लेकर सीधे चली जा। और अपने काम में लग गया। वहाँ बड़ी भीड़ थी। एक आदमी ने चिट रखकर आधे घंटे बाद नाम पुकार कर कहा- इस समय जगह नहीं है। कल सवेरे साढ़े सात बजे आना।
वल्लिअम्माल भागी चक्कर काटकर सीढ़ी के पास पहुँची। बगल का दरवाजा बंद था। इसी में उसकी बेटी स्ट्रेचर पर पड़ी दिखाई दी। पास वाले आदमी से गिड़गिड़ा कर बोली- दरवाजा खोलिए। मेरी बेटी अंदर है। उसने कहा सब बंद हो चुका है, तीन बजे आना। इसी बीच एक आदमी ने कुछ पैसे देकर दरवाजा खुलवाया। वल्लि अम्माल भीतर दौड़ी गई और पाप्पाति को कलेजे से लगाए बाहर आई। फिर बेंच पर बैठकर खुब रोई। इसे समझ में नहीं आ रहा था कि अगले सुबह तक क्या करें ? फिर सोचा इसे मामुली बुखार ही तो है। वापस चलती हुँं। वैद्य जी को दिखा दुँगी। माथे पर खड़िया मिट्टी का लेप कर दुँगी और अगर पाप्पाति ठिक हो गई तो वैदीश्वरण जी के मंदिर जाकर भगवान को भेंट चढाऊँगी। वल्लिअम्माल का साईकिल रिक्शा बस अड्डे की ओर बढ़ चला।

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