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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 1- पद हिंदी

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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 1- पद क्षितिज भाग-2 हिंदी 

सूरदास

पृष्ठ संख्या: 7

प्रश्न अभ्यास 

1. गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?

उत्तर

गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में यह व्यंग्य निहित है कि उद्धव वास्तव में भाग्यवान न होकर अति भाग्यहीन हैं। वे कृष्णरूपी सौन्दर्य तथा प्रेम-रस के सागर के सानिध्य में रहते हुए भी उस असीम आनंद से वंचित हैं। वे प्रेम बंधन में बँधने एवं मन के प्रेम में अनुरक्त होने की सुखद अनुभूति से पूर्णतया अपरिचित हैं।

2. उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?

उत्तर

गोपियों ने उद्धव के व्यवहार की तुलना निम्नलिखित उदाहरणों से की है -
(1)गोपियों ने उद्धव के व्यवहार की तुलना कमल के पत्ते से की है जो नदी के जल में रहते हुए भी जल की ऊपरी सतह पर ही रहता है। अर्थात् जल का प्रभाव उस पर नहीं पड़ता। श्री कृष्ण का सानिध्य पाकर भी वह श्री कृष्ण  के प्रभाव से मुक्त हैं।
(2)वह जल के मध्य रखे तेल के गागर (मटके) की भाँति हैं, जिस पर जल की एक बूँद भी टिक नहीं पाती। उद्धव पर श्री कृष्ण का प्रेम अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाया है, जो ज्ञानियों की तरह व्यवहार कर रहे हैं।

3. गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?

उत्तर

गोपियों ने कमल के पत्ते, तेल की मटकी और प्रेम की नदी के उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं। उनका कहना है की वे कृष्ण के साथ रहते हुए भी प्रेमरूपी नदी में उतरे ही नहीं, अर्थात साक्षात प्रेमस्वरूप श्रीकृष्ण के पास रहकर भी वे उनके प्रेम से वंचित हैं ।

4. उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया?

उत्तर

गोपियाँ कृष्ण के आगमन की आशा में दिन गिनती जा रही थीं। वे अपने तन-मन की व्यथा को चुपचाप सहती हुई कृष्ण के प्रेम रस में डूबी हुई थीं। कृष्ण को आना था परन्तु उन्हों ने योग का संदेश देने के लिए उद्धव को भेज दिया। विरह की अग्नि में जलती हुई गोपियों को जब उद्धव ने कृष्ण को भूल जाने और योग-साधना करने का उपदेश देना प्रारम्भ किया, तब गोपियों की विरह वेदना और भी बढ़ गयी । इस प्रकार उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरह अग्नि में घी का काम किया। 

5. 'मरजादा न लही' के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?

उत्तर

'मरजादा न लही' के माध्यम से प्रेम की मर्यादा न रहने की बात की जा रही है। कृष्ण के मथुरा चले जाने पर गोपियाँ उनके वियोग में जल रही थीं। कृष्ण के आने पर ही उनकी विरह-वेदना मिट सकती थी, परन्तु कृष्ण ने स्वयं न आकर उद्धव को यह संदेश देकर भेज दिया की गोपियाँ कृष्ण का प्रेम भूलकर योग-साधना में लग जाएँ । प्रेम के बदले प्रेम का प्रतिदान ही प्रेम की मर्यादा है, लेकिन कृष्ण ने गोपियों की प्रेम रस के उत्तर मैं योग की शुष्क धारा भेज दी । इस प्रकार कृष्ण ने प्रेम की मर्यादा नहीं रखी । वापस लौटने का वचन देकर भी वे गोपियों से मिलने नहीं आए ।

6. कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है ?  

उत्तर

गोपियों ने कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को हारिल पक्षी के उदाहरण के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। वे अपनों को हारिल पक्षी व श्रीकृष्ण को लकड़ी की भाँति बताया है। जिस प्रकार हारिल पक्षी सदैव अपने पंजे में कोई लकड़ी अथवा तिनका पकड़े रहता है, उसे किसी भी दशा में नहीं छोड़ता। उसी प्रकार गोपियों ने भी मन, कर्म और वचन से कृष्ण को अपने ह्रदय में दृढ़तापूर्वक बसा लिया है। वे जागते, सोते स्वप्नावस्था में, दिन-रात कृष्ण-कृष्ण की ही रट लगाती रहती हैं। साथ ही गोपियों ने अपनी तुलना उन चीटियों के साथ की है जो गुड़ (श्रीकृष्ण भक्ति) पर आसक्त होकर उससे चिपट जाती है और फिर स्वयं को छुड़ा न पाने के कारण वहीं प्राण त्याग देती है।

7.  गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है ?

उत्तर

गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा ऐसे लोगों को देने की बात कही है जिनका मन चंचल है और इधर-उधर भटकता है। उद्धव अपने योग के संदेश में मन की एकाग्रता का उपदेश देतें हैं, परन्तु गोपियों का मन तो कृष्ण के अनन्य प्रेम में पहले से ही एकाग्र है। इस प्रकार योग-साधना का उपदेश उनके लिए निरर्थक है। योग की आवश्यकता तो उन्हें है जिनका मन स्थिर नहीं हो पाता, इसीलिये गोपियाँ चंचल मन वाले लोगों को योग का उपदेश देने की बात कहती हैं।

8. प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।

उत्तर

प्रस्तुत पदों में योग साधना के ज्ञान को निरर्थक बताया गया है। यह ज्ञान गोपियों के अनुसार अव्यवाहरिक और अनुपयुक्त है। उनके अनुसार यह ज्ञान उनके लिए कड़वी ककड़ी के समान है जिसे निगलना बड़ा ही मुश्किल है। सूरदास जी गोपियों के माध्यम से आगे कहते हैं कि ये एक बीमारी है। वो भी ऐसा रोग जिसके बारे में तो उन्होंने पहले कभी न सुना है और न देखा है। इसलिए उन्हें इस ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। उन्हें योग का आश्रय तभी लेना पड़ेगा जब उनका चित्त एकाग्र नहीं होगा। परन्तु कृष्णमय होकर यह योग शिक्षा तो उनके लिए अनुपयोगी है। उनके अनुसार कृष्ण के प्रति एकाग्र भाव से भक्ति करने वाले को योग की ज़रूरत नहीं होती।

9. गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए ?

उत्तर

गोपियों के अनुसार राजा का धर्म उनकी प्रजा की हर तरह से रक्षा करना तथा नीति से राजधर्म का पालन करना होता है। एक राजा तभी अच्छा कहलाता है जब वह अनीती का साथ न देकर नीती का साथ दे।

10. गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन सा परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं ?

उत्तर

गोपियों को लगता है कि कृष्ण ने अब राजनीति सिख ली है। उनकी बुद्धि पहले से भी अधिक चतुर हो गयी है। पहले वे प्रेम का बदला प्रेम से चुकाते थे, परंतु अब प्रेम की मर्यादा भूलकर योग का संदेश देने लगे हैं। कृष्ण पहले दूसरों के कल्याण के लिए समर्पित रहते थे, परंतु अब अपना भला ही देख रहे हैं। उन्होंने पहले दूसरों के अन्याय से लोगों को मुक्ति दिलाई है, परंतु अब नहीं। श्रीकृष्ण गोपियों से मिलने के बजाय योग के शिक्षा देने के लिए उद्धव को भेज दिए हैं। श्रीकृष्ण के इस कदम से गोपियों के मन और भी आहत हुआ है। कृष्ण में आये इन्ही परिवर्तनों को देखकर गोपियाँ अपनों को श्रीकृष्ण के अनुराग से वापस लेना चाहती है।

11. गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए?

उत्तर

गोपियों के वाक्चातुर्य की विशेषताएँ इस प्रकार है -
(1) तानों द्वारा (उपालंभ द्वारा)  - गोपियाँ उद्धव को अपने तानों के द्वारा चुप करा देती हैं। उद्धव के पास उनका कोई जवाब नहीं होता। वे कृष्ण तक को उपालंभ दे डालती हैं। उदाहरण के लिए -
इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।
बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए।
(2) तर्क क्षमता  - गोपियों ने अपनी बात तर्क पूर्ण ढंग से कही है। वह स्थान-स्थान पर तर्क देकर उद्धव को निरुत्तर कर देती हैं। उदाहरण के लिए -
"सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।"
सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी।
यह तौ 'सूर' तिनहि लै सौंपौ, जिनके मन चकरी।।
(3) व्यंग्यात्मकता  - गोपियों में व्यंग्य करने की अद्भुत क्षमता है। वह अपने व्यंग्य बाणों द्वारा उद्धव को घायल कर देती हैं। उनके द्वारा उद्धव को भाग्यवान बताना उसका उपहास उड़ाना था।
(4) तीखे प्रहारों द्वारा  - गोपियों ने तीखे प्रहारों द्वारा उद्धव को प्रताड़ना दी है।

12. संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइये।

उत्तर

सूरदास मधुर तथा कोमल भावनाओं का मार्मिक चित्रण करने वाले महाकवि हैं। सूर के 'भ्रमरगीत' में अनुभूति और शिल्प दोनों का ही मणि-कांचन संयोग हुआ है। इसकी मुख्य विशेषताएँ इसप्रकार हैं -

भाव-पक्ष - 'भ्रमरगीत' एक भाव-प्रधान गीतिकाव्य है। इसमें उदात्त भावनाओं का मनोवैज्ञानिक चित्रण हुआ है। भ्रमरगीत में गोपियों ने भौंरें को माध्यम बनाकर ज्ञान पर भक्ति की श्रेष्ठता का प्रतिपादन किया है। अपनी वचन-वक्रता, सरलता, मार्मिकता, उपालंभ, व्यगात्म्कथा, तर्कशक्ति आदि के द्वारा उन्होंने उद्धव के ज्ञान योग को तुच्छ सिद्ध कर दिया है। 'भ्रमरगीत' में सूरदास ने विरह के समस्त भावों की स्वाभाविक एवं मार्मिक व्यंजना की हैं।

कला-पक्ष - 'भ्रमरगीत' की कला-पक्ष अत्यंत सशक्त, प्रभावशाली और रमणीय है।

भाषा-शैली - 'भ्रमरगीत' में शुद्ध साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।

अलंकार - सूरदास ने 'भ्रमरगीत' में अनुप्रास, उपमा, दृष्टांत, रूपक, व्यतिरेक, विभावना, अतिशयोक्ति आदि अनेक अलंकारों का सुन्दर प्रयोग किया है।

छंद-विधान - 'भ्रमरगीत' की रचना 'पद' छंद में हुई है। इसके पद स्वयं में स्वतंत्र भी हैं और परस्पर सम्बंधित भी हैं।

संगीतात्म्कथा - सूरदास कवि होने के साथ-साथ सुप्रसिद्ध गायक भी थे। यही कारण है कि 'भ्रमरगीत' में भी संगीतात्म्कथा का गुण सहज ही दृष्टिगत होता है।

रचने और अभिव्यक्ति 

14. उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे; गोपियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुर्य में मुखिरत हो उठी?

उत्तर 

गोपियों के पास श्री कृष्ण के प्रति सच्चे प्रेम तथा भक्ति की शक्ति थी जिस कारण उन्होंने उद्धव जैसे ज्ञानी तथा नीतिज्ञ को भी अपने वाक्चातुर्य से परास्त कर दिया।

15. गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नज़र आता है, स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

गोपियों ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि श्री कृष्ण ने सीधी सरल बातें ना करके रहस्यातमक ढंग से उद्धाव के माध्यम से अपनी बात गोपियों तक पहुचाई है।
गोपियों का कथन कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं आजकल की राजनीति में नजर आ रहा है। आज के नेता भी अपने बातों को घुमा फिरा कर कहते हैं जिस तरह कृष्ण ने उद्धव द्वारा कहना चाहा। वे सीधे-सीधे मुद्दे और काम को स्पष्ट नही करते बल्कि इतना घुमा देते हैं कि जनता समझ नही पाता। दूसरी तरफ यहाँ गोपियों ने राजनीति शब्द को व्यंग के रूप में कहा है। आज के समय में भी राजनीति शब्द का अर्थ व्यंग के रूप में लिया जाता है।

NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 2- राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद हिंदी

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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 2- राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद क्षितिज भाग-2 हिंदी 

तुलसीदास

पृष्ठ संख्या: 14

प्रश्न अभ्यास 

1. परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए?

उत्तर

परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने पर निम्नलिखित तर्क दिए -
1. हमें तो यह असाधारण शिव धुनष साधारण धनुष की भाँति लगा।
2. श्री राम को तो ये धनुष, नए धनुष के समान लगा।
3.  श्री राम ने इसे तोड़ा नहीं बस उनके छूते ही धनुष स्वत: टूट गया।
4. इस धनुष को तोड़ते हुए उन्होंने किसी लाभ व हानि के विषय में नहीं सोचा था।
5. उन्होंने ऐसे अनेक धनुषों को बालपन में यूँ ही तोड़ दिया था। इसलिए यही सोचकर उनसे यह कार्य हो गया।

2. परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर

परशुराम के क्रोध करने पर श्री राम ने धीरज से काम लिया। उन्होंने नम्रता पूर्ण वचनों का सहारा लेकर परशुराम के क्रोध को शांत करने का प्रयास किया। परशुराम जी क्रोधी स्वभाव के थे। श्री राम उनके क्रोध पर शीतल जल के समान शब्दों व आचरण का आश्रय ले रहे थे। यही कारण था कि उन्होंने स्वयं को उनका सेवक बताया व उनसे अपने लिए आज्ञा करने का निवेदन किया। उनकी भाषा अत्यंत कोमल व मीठी थी और परशुराम के क्रोधित होने पर भी वह अपनी कोमलता को नहीं छोड़ते थे। इसके विपरीत लक्ष्मण परशुराम की भाँति ही क्रोधी स्वभाव के हैं। निडरता तो जैसे उनके स्वभाव में कूट-कूट कर भरी थी। इसलिए परशुराम का फरसा व क्रोध उनमें भय उत्पन्न नहीं कर पाता। लक्ष्मण परशुराम जी के साथ व्यंग्यपूर्ण वचनों का सहारा लेकर अपनी बात को उनके समक्ष प्रस्तुत करते हैं। तनिक भी इस बात की परवाह किए बिना कि परशुराम कहीं और क्रोधित न हो जाएँ। वे परशुराम के क्रोध को न्यायपूर्ण नहीं मानते। इसलिए परशुराम के अन्याय के विरोध में खड़े हो जाते हैं। जहाँ राम विनम्र, धैर्यवान, मृदुभाषी व बुद्धिमान व्यक्ति हैं वहीं दूसरी ओर लक्ष्मण निडर, साहसी, क्रोधी तथा अन्याय विरोधी स्वभाव के हैं। ये दोनों गुण इन्हें अपने-अपने स्थान पर उच्च स्थान प्राप्त करवाते हैं।

पृष्ठ संख्या: 15

3. लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।

उत्तर

लक्ष्मण - हे मुनि! बचपन में हमने खेल-खेल में ऐसे बहुत से धनुष तोड़े हैं तब तो आप कभी क्रोधित नहीं हुए थे। फिर इस धनुष के टूटने पर इतना क्रोध क्यों कर रहे हैं?
परशुराम - अरे, राजपुत्र! तू काल के वश में आकर ऐसा बोल रहा है। यह शिव जी का धनुष है।

4.  परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए -
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही||
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही||
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा||
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर||

उत्तर

परशुराम ने अपने विषय में ये कहा कि वे बाल ब्रह्मचारी हैं और क्रोधी स्वभाव के हैं। समस्त विश्व में क्षत्रिय कुल के विद्रोही के रुप में विख्यात हैं। वे आगे, बढ़े अभिमान से अपने विषय में बताते हुए कहते हैं कि उन्होंने अनेकों बार पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन कर इस पृथ्वी को ब्राह्मणों को दान में दिया है और अपने हाथ में धारण इस फरसे से सहस्त्रबाहु के बाहों को काट डाला है। इसलिए हे नरेश पुत्र! मेरे इस फरसे को भली भाँति देख ले।राजकुमार! तू क्यों अपने माता-पिता को सोचने पर विवश कर रहा है। मेरे इस फरसे की भयानकता गर्भ में पल रहे शिशुओं को भी नष्ट कर देती है।

5. लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताई?

उत्तर

लक्ष्मण ने वीर योद्धा की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई है -
1. वीर पुरुष स्वयं अपनी वीरता का बखान नहीं करते अपितु वीरता पूर्ण कार्य स्वयं वीरों का बखान करते हैं।
2. वीर पुरुष स्वयं पर कभी अभिमान नहीं करते। वीरता का व्रत धारण करने वाले वीर पुरुष धैर्यवान और क्षोभरहित होते हैं।
3. वीर पुरुष किसी के विरुद्ध गलत शब्दों का प्रयोग नहीं करते। अर्थात् दूसरों को सदैव समान रुप से आदर व सम्मान देते हैं।
4. वीर पुरुष दीन-हीन, ब्राह्मण व गायों, दुर्बल व्यक्तियों पर अपनी वीरता का प्रदर्शन नहीं करते हैं। उनसे हारना व उनको मारना वीर पुरुषों के लिए वीरता का प्रदर्शन न होकर पाप का भागीदार होना है।
5. वीर पुरुषों को चाहिए कि अन्याय के विरुद्ध हमेशा निडर भाव से खड़े रहे।
6. किसी के ललकारने पर वीर पुरुष कभी पीछे कदम नहीं रखते अर्थात् वह यह नहीं देखते कि उनके आगे कौन है वह निडरता पूर्वक उसका जवाब देते हैं।

6. साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।

उत्तर

साहस और शक्ति ये दो गुण एक व्यक्ति को वीर बनाते हैं। यदि किसी व्यक्ति में साहस विद्यमान है तो शक्ति स्वयं ही उसके आचरण में आ जाएगी परन्तु जहाँ तक एक व्यक्ति को वीर बनाने में सहायक गुण होते हैं वहीं दूसरी ओर इनकी अधिकता एक व्यक्ति को अभिमानी व उद्दंड बना देती है। कारणवश या अकारण ही वे इनका प्रयोग करने लगते हैं। परन्तु यदि विन्रमता इन गुणों के साथ आकर मिल जाती है तो वह उस व्यक्ति को श्रेष्ठतम वीर की श्रेणी में ला देती है जो साहस और शक्ति में अहंकार का समावेश करती है। विनम्रता उसमें सदाचार व मधुरता भर देती है,वह किसी भी स्थिति को सरलता पूर्वक शांत कर सकती है। जहाँ परशुराम जी साहस व शक्ति का संगम है। वहीं राम विनम्रता, साहस व शक्ति का संगम है। उनकी विनम्रता के आगे परशुराम जी के अहंकार को भी नतमस्तक होना पड़ा नहीं तो लक्ष्मण जी के द्वारा परशुराम जी को शांत करना सम्भव नहीं था।

7. भाव स्पष्ट कीजिए -

(क) बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी||
       पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूँकि पहारू||

उत्तर

प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस से ली गई हैं। उक्त पंक्तियों में लक्ष्मण जी द्वारा परशुराम जी के बोले हुए अपशब्दों का प्रतिउत्तर दिया गया है।

भाव - भाव यह है कि लक्ष्मण जी मुस्कराते हुए मधुर वाणी में परशुराम पर व्यंग्य कसते हुए कहते हैं कि हे मुनि आप अपने अभिमान के वश में हैं। मैं इस संसार का श्रेष्ठ योद्धा हूँ। आप मुझे बार-बार अपना फरसा दिखाकर डरा रहे हैं। आपको देखकर तो ऐसा लगता है मानो फूँक से पहाड़ उड़ाने का प्रयास कर रहे हों। अर्थात् जिस तरह एक फूँक से पहाड़ नहीं उड़ सकता उसी प्रकार मुझे बालक समझने की भूल मत किजिए कि मैं आपके इस फरसे को देखकर डर जाऊँगा।

(ख) इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं||
      देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना||

उत्तर

प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस से ली गई हैं। उक्त पंक्तियों में लक्ष्मण जी द्वारा परशुराम जी के बोले हुए अपशब्दों का प्रतिउत्तर दिया गया है।

भाव - भाव यह है कि लक्ष्मण जी अपनी वीरता और अभिमान का परिचय देते हुए कहते हैं कि हम भी कोई कुम्हड़बतिया नहीं है जो किसी की भी तर्जनी देखकर मुरझा जाएँ। मैंने फरसे और धनुष-बाण को अच्छी तरह से देख लिया है। इसलिए ये सब आपसे अभिमान सहित कह रहा हूँ। अर्थात् हम कोमल पुष्पों की भाँति नहीं हैं जो ज़रा से छूने मात्र से ही मुरझा जाते हैं। हम बालक अवश्य हैं परन्तु फरसे और धनुष-बाण हमने भी बहुत देखे हैं इसलिए हमें नादान बालक समझने का प्रयास न करें।

(ग) गाधिसू नु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
     अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ||

उत्तर

प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस से ली गई हैं। उक्त पंक्तियाँ में परशुराम जी द्वारा बोले गए वचनों को सुनकर विश्वामित्र मन ही मन परशुराम जी की बुद्धि और समझ पर तरस खाते हैं।

भाव - भाव यह है कि विश्वामित्र अपने हृदय में मुस्कुराते हुए परशुराम की बुद्धि पर तरस खाते हुए मन ही मन कहते हैं कि गधि-पुत्र अर्थात् परशुराम जी को चारों ओर हरा ही हरा दिखाई दे रहा है तभी तो वह दशरथ पुत्रों को (राम व लक्ष्मण) साधारण क्षत्रिय बालकों की तरह ही ले रहे हैं। जिन्हें ये गन्ने की खाँड़ समझ रहे हैं वे तो लोहे से बनी तलवार (खड़ग) की भाँति हैं। अर्थात् वे भगवान विष्णु के रुप राम व लक्ष्मण को साधारण मानव बालकों की भाँति ले रहे हैं। वे ये नहीं जानते कि जिन्हें वह गन्ने की खाँड़ की तरह कमज़ोर समझ रहे हैं पल भर में वे इनको अपने फरसे से काट डालेंगे। यह नहीं जानते कि ये लोहे से बनी तलवार की भाँति हैं। इस समय परशुराम की स्थिति सावन के अंधे की भाँति हो गई है। जिन्हें चारों ओर हरा ही हरा दिखाई दे रहा है अर्थात् उनकी समझ अभी क्रोध व अहंकार के वश में है।

8. पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।

उत्तर

तुलसीदास द्वारा लिखित रामचरितमानस अवधी भाषा में लिखी गई है। यह काव्यांश रामचरितमानस के बालकांड से ली गई है। इसमें अवधी भाषा का शुद्ध रुप में प्रयोग देखने को मिलता है। तुलसीदास ने इसमें दोहा, छंद, चौपाई का बहुत ही सुंदर प्रयोग किया है। जिसके कारण काव्य के सौंदर्य तथा आनंद में वृद्धि हुई है और भाषा में लयबद्धता बनी रही है। तुलसीदास जी ने अलंकारो के सटीक प्रयोग से इसकी भाषा को और भी सुंदर व संगीतात्मक बना दिया है। इसकी भाषा में अनुप्रास अलंकार, रुपक अलंकार, उत्प्रेक्षा अलंकार, व पुनरुक्ति अलंकार की अधिकता मिलती है। इस काव्याँश की भाषा में व्यंग्यात्मकता का सुंदर संयोजन हुआ है।

9. इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

तुलसीदास द्वारा रचित परशुराम - लक्ष्मण संवाद मूल रूप से व्यंग्य काव्य है। उदाहरण के लिए -
(1) बहु धनुही तोरी लरिकाईं।
      कबहुँ न असि रिसकीन्हि गोसाईं||
लक्ष्मण जी परशुराम जी से धनुष को तोड़ने का व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि हमने अपने बालपन में ऐसे अनेकों धनुष तोड़े हैं तब हम पर कभी क्रोध नहीं किया।

(2) मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर। गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर॥ परशुराम जी क्रोधित होकर लक्ष्मण से कहते है। अरे राजा के बालक! तू अपने माता-पिता को सोच के वश न कर। मेरा फरसा बड़ा भयानक है, यह गर्भों के बच्चों का भी नाश करने वाला है॥

(3) गाधिसू नु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।     अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ||
यहाँ विश्वामित्र जी परशुराम की बुद्धि पर मन ही मन व्यंग्य कसते हैं और मन ही मन कहते हैं कि परशुराम जी राम, लक्ष्मणको साधारण बालक समझ रहे हैं। उन्हें तो चारों ओर हरा ही हरा सूझ रहा है जो लोहे की तलवार को गन्ने की खाँड़ से तुलना कर रहे हैं। इस समयपरशुराम की स्थिति सावन के अंधे की भाँति हो गई है। जिन्हें चारों ओर हरा ही हरा दिखाई दे रहा है अर्थात् उनकी समझ अभी क्रोध व अहंकार के वश में है।

10. निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए -

(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।

अनुप्रास अलंकार - उक्त पंक्ति में 'ब' वर्ण की एक से अधिक बार आवृत्ति हुई है।

(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।

1. अनुप्रास अलंकार - उक्त पंक्ति में 'क' वर्ण की एक से अधिक बार आवृत्ति हुई है।
2. उपमा अलंकार - कोटि कुलिस सम बचनु में उपमा अलंकार है। क्योंकि परशुराम जी के एक-एक वचनों को वज्र के समान बताया गया है।

(ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा।
       बार बार मोहि लागि बोलावा||

1. उत्प्रेक्षा अलंकार - 'काल हाँक जनु लावा' में उत्प्रेक्षा अलंकार है। यहाँ जनु उत्प्रेक्षा का वाचक शब्द है।
2. पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार - 'बार-बार' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। क्योंकि बार शब्द की दो बार आवृत्ति हुई पर अर्थ भिन्नता नहीं है।

(घ)लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु।
     बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु||

1. उपमा अलंकार
(i) उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु में उपमा अलंकार है।
(ii) जल सम बचन में भी उपमा अलंकार है क्योंकि भगवान राम के मधुर वचन जल के समान कार्य रहे हैं।
2. रुपक अलंकार - रघुकुलभानु में रुपक अलंकार है यहाँ श्री राम को रघुकुल का सूर्य कहा गया है। श्री राम के गुणों की समानता सूर्य से की गई है।


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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 3- सवैया कवित्त हिंदी

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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 3- सवैया कवित्त क्षितिज भाग-2 हिंदी

देव

पृष्ठ संख्या: 23

प्रश्न अभ्यास 

1. कवि ने 'श्रीबज्रदूलह' किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें ससांर रूपी मंदिर दीपक क्यों कहा है?

उत्तर

देव जी ने 'श्रीबज्रदूलह' श्री कृष्ण भगवान के लिए प्रयुक्त किया है। कवि उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक इसलिए कहा है क्योंकि जिस प्रकार एक दीपक मंदिर में प्रकाश एवं पवित्रता का सूचक है, उसी प्रकार श्रीकृष्ण भी इस संसार-रूपी मंदिर में ईश्वरीय आभा का प्रकाश एवं पवित्रता का संचार करते हैं। उन्हीं से यह संसार प्रकाशित है।

2. पहले सवैये में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है?

उत्तर

1. अनुप्रास अलंकार
कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
2. रुपक अलंकार
मंद हँसी मुखचंद जुंहाई, जय जग-मंदिर-दीपक सुन्दर।

3. निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए -पाँयनि नूपुर मंजु बजैं, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।

उत्तर

भाव सौंदर्य - इन पंक्तियों में कृष्ण के अंगों एवं आभूषणों की सुन्दरता का भावपूर्ण चित्रण हुआ है। कृष्ण के पैरों की पैजनी एवं कमर में बँधी करधनी की ध्वनि की मधुरता का सुन्दर वर्णन हुआ है। कृष्ण के श्यामल अंगों से लिपटे पीले वस्त्र को अत्यंत आकर्षक बताया गया है। कृष्ण का स्पर्श पाकर ह्रदय में विराजमान सुंदर बनमाला भी उल्लसित हो रही है। यह चित्रण अत्यंत भावपूर्ण है।

शिल्प-सौंदर्य - देव ने शुद्ध साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। पंक्तियों में रीतिकालीन सौंदर्य-चित्रण का झलक है। साथ में अनुप्रास अलंकार की छटा है। श्रृंगार - रस की सुन्दर योजना हुई है।

4. दूसरे कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतुराज वसंत के बाल-रूप का वर्णन परंपरागत वसंत वर्णन से किस प्रकार भिन्न है।

उत्तर

1. दूसरे कवियों द्वारा ऋतुराज वसंत को कामदेव मानने की परंपरा रही है परन्तु देवदत्त जी ने ऋतुराज वसंत को कामदेव का पुत्र मानकर एक बालक राजकुमार के रुप में चित्रित किया है।
2. दूसरे कवियों ने जहाँ वसन्त के मादक रुप को सराहा है और समस्त प्रकृति को कामदेव की मादकता से प्रभावित दिखाया है। इसके विपरीत देवदत्त जी ने इसे एक बालक के रुप में चित्रित कर परंपरागत रीति से भिन्न जाकर कुछ अलग किया है।
3. वसंत के परंपरागत वर्णन में फूलों का खिलना, ठंडी हवाओं का चलना, नायक-नायिका का मिलना, झूले झुलना आदि होता था। परन्तु इसके विपरीत देवदत्त जी ने यहाँ प्रकृति का चित्रण, ममतामयी माँ के रुप में किया है। कवि देव ने समस्त प्राकृतिक उपादानों को बालक वसंत के लालन-पालन में सहायक बताया है।
इस आधार पर कहा जा सकता है कि ऋतुराज वसंत के बाल-रूप का वर्णन परंपरागत बसंत वर्णन से सर्वथा भिन्न है।

5. 'प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै' - इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर 

उपर्युक्त पंक्ति के द्वारा कवि ने वसंत ऋतु की सुबह के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया है। वसंत ऋतु को राजा कामदेव का पुत्र बताया गया है। बालक वसंत को प्रातःकाल गुलाब चुटकी बजाकर जगाते हैं। वसंत ऋतु में सवेरे जब गुलाब के फूल खिलते हैं तो वसंत के दिवस का प्रारंभ होता है। कहने का आशय यह है कि वसंत में प्रातः ही चारों ओर गुलाब खिल जाते हैं।

6. चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने किन-किन रूपों में देखा है? 

उत्तर

कवि देव ने आकाश में फैली चाँदनी को स्फटिक (क्रिस्टल) नामक शिला से निकलने वाली दुधिया रोशनी के समतुल्य बताकर उसे संसार रुपी
 मंदिर पर छितराते हुए देखा है। कवि देव की नज़रें जहाँ तक जाती हैं उन्हें वहाँ तक बस चाँदनी ही चाँदनी नज़र आती है। यूँ प्रतीत होता है मानों धरती पर दही का समुद्र हिलोरे ले रहा हो।उन्होंने चाँदनी की रंगत को फ़र्श पर फ़ैले दूध के झाग़ के समान तथा उसकी स्वच्छ्ता को दूध के बुलबुले के समान झीना और पारदर्शी बताया है।

7. 'प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद' - इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करते हुए बताएँ कि इसमें कौन-सा अलंकार है?

उत्तर

भाव: कवि अपने कल्पना में आकाश को एक दर्पण के रूप में प्रस्तुत किया है और आकाश में चमकता हुआ चन्द्रमा उन्हें प्यारी राधिका के प्रतिबिम्ब के समान प्रतीत हो रहा है। कवि के कहने का आशय यह है कि चाँदनी रात में चन्द्रमा भी दिव्य स्वरुप वाला दिखाई दे रहा है।

अलंकार: यहाँ चाँद के सौन्दर्य की उपमा राधा के सौन्दर्य से नहीं की गई है बल्कि चाँद को राधा से हीन बताया गया है, इसलिए यहाँ व्यतिरेक अलंकार है, उपमा अलंकार नहीं है।

8. तीसरे कवित्त के आधार पर बताइए कि कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है?

उत्तर

कवि देव ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए स्फटिक शीला से निर्मित मंदिर का, दही के समुद्र का, दूध के झाग का , मोतियों की चमक का और दर्पण की स्वच्छ्ता आदि जैसे उपमानों का प्रयोग किया है।

9. पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ बताइए।

उत्तर

रीतिकालीन कवियों में देव को अत्यंत प्रतिभाशाली कवि माना जाता है। देव की काव्यगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -
1. देवदत्त ब्रज भाषा के सिद्धहस्त कवि हैं।
2. कवित्त एवं सवैया छंद का प्रयोग है।
3. भाषा बेहद मंजी, कोमलता व माधुर्य गुण को लेकर ओत-प्रोत है।
4. देवदत्त ने प्रकृति चित्रण को विशेष महत्व दिया है।
5. देव अनुप्रास, उपमा, रूपक आदि अलंकारों का सहज स्वाभाविक प्रयोग करते हैं।
6. देव के प्रकृति वर्णन में अपारम्परिकता है। उदाहरण के लिए उन्होंने अपने दूसरे कवित्त में सारी परंपराओ को तोड़कर वसंत को नायक के रुप में न दर्शा कर शिशु के रुप में चित्रित किया है।


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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 4- आत्मकथ्य हिंदी

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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 4- आत्मकथ्य क्षितिज भाग-1 हिंदी 

जयशंकर प्रसाद

पृष्ठ संख्या: 29

प्रश्न अभ्यास 

1. कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहते हैं ?

उत्तर

कवि आत्मकथा लिखने से बचना चाहते हैं क्योंकि जीवन में बहुत सारी पीडादायक घटनाएँ हुई हैं। अपनी सरलता के कारण उसने कई बार धोखा भी खाया है। कवि के पास मात्र कुछ सुनहरे क्षणों की स्मृतियाँ ही शेष हैं जिसके सहारे वह अपनी जीवन - यात्रा पूरी कर रहा है। उन यादो को उसने अपने अंतर मन सँजोकर रखा है और उन्हें वह प्रकट करना नहीं चाहता है। कवि को लगता है की उनकी आत्मकथा में ऐसा कुछ भी नहीं हैं जिसे महान और सेवक मानकर लोग आनंदित होंगें । इन्हीं कारणों से कवि लिखने से बचना चाहते हैं।

2.  आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में 'अभी समय भी नहीं' कवि ऐसा क्यों कहता है ? 

उत्तर 

कवि कहता है कि उसके लिए आत्मकथा सुननाने का यह उचित समय नहीं है। कवि द्वारा ऐसा कहने का कारण है यह है कि कवि को अभी सुखों के के सिवाय और कोइ उपलब्धि नहीं मिल सकी है। कवि का जीवन दुःख और अभावों से भरा रहा हैं। कवि को अपने जीवन में जो बाहरी पीड़ा मिली है, उसे वह चुपचाप अकेले ही सहा है। जीवन का इस पड़ाव पर उसके जीवन के सभी दुःख तथा व्यथाएँ थककर सोई हूई है,, अर्थात बहुत मुश्किल से कवि को अपनी पुराणी वेदना से मुक्ति मिल चुकी है। आत्मकथा लिखने के लिए के लिए कवि को अपने जीवन की उन सभी व्यथाओं को जगाना होगा और कवि ऐसा प्रतीत होता है कि अभी उसके जीवन में ऐसी कोइ उपलब्धि नहीं मिली है जिसे वह लोगों के सामने प्रेरणास्वरूप रख सके। इन्हीं कारणों से कवि अपनी आत्मकथा अभी नहीं लिखना चाहता।

3. स्मृति को 'पाथेय' बनाने से कवि का क्या आशय है?

उत्तर

स्मृति को 'पाथेय' बनाने से कवि का आशय जीवनमार्ग के प्रेरणा से है। कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था, वह उसे कभी प्राप्त नहीं हुआ। इसलिए कवि स्वयं को जीवन - यात्रा से थका हुआ मानता है। जिस प्रकार 'पाथेय' यात्रा में यात्री को सहारा देता है, आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है ठिक उसी प्रकार स्वप्न में देखे हुए किंचित सुख की स्मृति भी कवि को जीवन - मार्ग में आगे बढ़ने का सहारा देता है।

4. भाव स्पष्ट कीजिए -

(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
       आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।

उत्तर

कवि कहना चाहता है कि जिस प्रेम के कवि सपने देख रहे थे वो उन्हें कभी प्राप्त नहीं हुआ। कवि ने जिस सुख की कल्पना की थी वह उसे कभी प्राप्त न हुआ और उसका जीवन हमेशा उस सुख से वंचित ही रहा। इस दुनिया में सुख छलावा मात्र है। हम जिसे सुख समझते हैं वह अधिक समय तक नहीं रहता है, स्वप्न की तरह जल्दी ही समाप्त हो जाता है।

(ख) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
       अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

उत्तर

कवि अपनी प्रेयसी के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहता है कि प्रेममयी भोर वेला भी अपनी मधुर लालिमा उसके गालों से लिया करती थी। कवि की प्रेमिका का मुख सौंदर्य ऊषाकालीन लालिमा से भी बढ़कर था।

5. 'उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की' - कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?

उत्तर

उपर्युक्त पंक्तियों से कवि का आशय निजी प्रेम का उन मधुर और सुख-भरे क्षणों से है, जो कवि ने अपनी प्रेमिका के साथ व्यतीत किये थे । चाँदनी रातों में बिताए गए वे सुखदायक क्षण किसी उज्ज्वल गाथा की तरह ही पवित्र है जो कवि के लिए अपने अन्धकारमय जीवन में आगे बढ़ने का एकमात्र सहारा बनकर रह गया । इसीलिए कवि अपने जीवन की उन मधुर स्मृतियों को किसी से बाँटना नहीं चाहता बल्कि अपने तक ही सीमित रखना चाहता है ।

6. 'आत्मकथ्य' कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।

उत्तर

'जयशंकर प्रसाद' द्वारा रचित कविता 'आत्मकथ्य' की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -
1. प्रस्तुत कविता में कवि ने खड़ी बोली हिंदी भाषा का प्रयोग किया है -
2. अपने मनोभावों को व्यक्त कर उसमें सजीवता लाने के लिए कवि ने ललित, सुंदर एवं नवीन बिंबों का प्रयोग किया है कविता में बिम्बों का प्रयोग किया है।
3. विडंबना, प्रवंचना जैसे नवीन शब्दों का प्रयोग किया गया है जिससे काव्य में सुंदरता आई है।
4. मानवेतर पदार्थों को मानव की तरह सजीव बनाकर प्रस्तुत किया गया है । यह छायावाद की प्रमुख विशेषता रही है।
5. अलंकारों के प्रयोग से काव्य सौंदर्य बढ़ गया है।

7. कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है ?

उत्तर

कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे वह अपने प्रेमिका के रूप में व्यक्त किया ह । यह प्रेमिका स्वप्न में कवि के पास आते-आते मुस्कराकर दूर चली जाती है और कवि को सुख से वंचित ही रहना पड़ता है। कवि कहता है की अपने जीवन में वह जो सुख का सपना देखा था,, वह उसे कभी प्राप्त नहीं हुआ।

रचना और अभिव्यक्ति

8. इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्त्तित्व की जो झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर

प्रसाद जी एक सीधे-सादे व्यक्तित्व के इंसान थे। उनके जीवन में दिखावा नहीं था। वे अपने जीवन के सुख-दुख को लोगों पर व्यक्त नहीं करना चाहते थे, अपनी दुर्बलताओं को अपने तक ही सीमित रखना चाहते थे। अपनी दुर्बलताओं को समाज में प्रस्तुत कर वे स्वयं को हँसी का पात्र बनाना नहीं चाहते थे। पाठ की कुछ पंक्तियाँ उनके वेदना पूर्ण जीवन को दर्शाती है। इस कविता में एक तरफ़ कवि की यथार्थवादी प्रवृति भी है तथा दूसरी तरफ़ प्रसाद जी की विनम्रता भी है। जिसके कारण वे स्वयं को श्रेष्ठ कवि मानने से इनकार करते हैं।


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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 5- उत्साह और अट नहीं रही हिंदी

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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 5- उत्साह और अट नहीं रही क्षितिज भाग-2 हिंदी 

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

उत्साह 

पृष्ठ संख्या: 35

प्रश्न अभ्यास

1. कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर 'गरजने' के लिए कहता है, क्यों?

उत्तर

कवि ने बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के लिए नहीं कहता बल्कि 'गरजने' के लिए कहा है; क्योंकि 'गरजना' विद्रोह का प्रतीक है। कवि ने बादल के गरजने के माध्यम से कविता में नूतन विद्रोह का आह्वान किया है।

2. कविता का शीर्षक उत्साहक्यों रखा गया है?

उत्तर

यह एक आह्वान गीत है। कवि क्रांति लाने के लिए लोगों को उत्साहित करना चाहते हैं। बादल का गरजना लोगों के मन में उत्साह भर देता है। इसलिए कविता का शीर्षक उत्साहरखा गया है।

3. कविता में बादल किन-किन अर्थों की ओर संकेत करता है ?

उत्तर

कविता में बादल निम्नलिखित अर्थों की ओर संकेत करता है -
1. जल बरसाने वाली शक्ति है।
2. बादल पीड़ित-प्यासे जन की आकाँक्षा को पूरा करने वाला है।
3. बादल कवि में उत्साह और संघर्ष भर कविता में नया जीवन लाने में सक्रिय है।

4. शब्दों का ऐसा प्रयोग जिससे कविता के किसी खास भाव या दृश्य में ध्वन्यात्मक प्रभाव पैदा हो, नाद-सौंदर्य कहलाता है। उत्साहकविता में ऐसे कौन-से शब्द हैं जिनमें नाद-सौंदर्य मौजूद है, छाँटकर लिखें।

उत्तर 

कविता की इन पंक्तियों में नाद-सौंदर्य मौजूद है - 
1. "घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
2. ललित ललित, काले घुँघराले,
बाल कल्पना के-से पाले
3. "विद्युत-छवि उर में" 

अट नहीं रही 

1. छायावाद की एक खास विशेषता है अन्तर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है?लिखिए।

उत्तर 

कविता के निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है कि प्रस्तुत कविता में अन्तर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाया गया है :
कहीं साँस लेते हो,
घर घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम,
पर पर कर देते हो।

2. कवि की आँख फागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही है?

उत्तर 

फागुन का मौसम तथा दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है। चारों तरफ का दृश्य अत्यंत स्वच्छ तथा हरा-भरा दिखाई दे रहा है। पेड़ों पर कहीं हरी तो कही लाल पत्तियाँ हैं, फूलों की मंद-मंद खुश्बू हृदय को मुग्ध कर लेती है। इसीलिए कवि की आँख फागुन की सुंदरता से हट नहीं रही है।

3. प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है ?

उत्तर

प्रस्तुत कविता ‘अट नहीं रही है’ में कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जी ने फागुन के सर्वव्यापक सौन्दर्य और मादक रूप के प्रभाव को दर्शाया है।पेड़-पौधे नए-नए पत्तों,फल और फूलों से अटे पड़े हैं,हवा सुगन्धित हो उठी है,प्रकृति के कण-कण में सौन्दर्य भर गया है। खेत-खलिहानों, बाग़-बगीचों, जीव-जन्तुओं, पशु-पक्षियों एवं चौक-चौबारों में फ़ागुन का उल्लास सहज ही दिखता है।

4. फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है ?

उत्तर 

फागुन में सर्वत्र मादकता मादकता छाई रहती है। प्राकृतिक शोभा अपने पूर्ण यौवन पर होती है। पेड़-पौधें नए पत्तों, फल और फूलों से लद जाते हैं, हवा सुगन्धित हो उठती है। आकाश साफ-स्वच्छ होता है। पक्षियों के समूह आकाश में विहार करते दिखाई देते हैं। बाग-बगीचों और पक्षियों में उल्लास भर जाता हैं। इस तरह फागुन का सौंदर्य बाकी ऋतुओं से भिन्न है।

5. इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य-शिल्प की विशेषताएँ बताएँ।

उत्तर

महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जी छायावाद के प्रमुख कवि माने जाते हैं। छायावाद की प्रमुख विशेषताएँ हैं- प्रकृति चित्रण और प्राकृतिक उपादानों का मानवीकरण।‘उत्साह’ और ‘अट नहीं रही है’ दोनों ही कविताओं में प्राकृतिक उपादानों का चित्रण और मानवीकरण हुआ है। काव्य के दो पक्ष हुआ करते हैं-अनुभूति पक्ष और अभिव्यक्ति पक्ष अर्थात् भाव पक्ष और शिल्प पक्ष ।इस दृष्टि से दोनों कविताएँ सराह्य हैं। छायावाद की अन्य विशेषताएँ जैसे गेयता , प्रवाहमयता , अलंकार योजना और संगीतात्मकता आदि भी विद्यमान है।‘निराला’ जी की भाषा एक ओर जहाँ संस्कृतनिष्ठ, सामासिक और आलंकारिक है तो वहीं दूसरी ओर ठेठ ग्रामीण शब्द का प्रयोग भी पठनीय है। अतुकांत शैली में रचित कविताओं में क्राँति का स्वर , मादकता एवम् मोहकता भरी है। भाषा सरल, सहज, सुबोध और प्रवाहमयी है।


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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 6- यह दंतुरहित मुस्कान और फसल हिंदी

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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 6- यह दंतुरहित मुस्कान और फसल क्षितिज भाग-2 हिंदी 
नागार्जुन

पृष्ठ संख्या: 41

प्रश्न अभ्यास 

1. बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर

बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर अत्यंत गहरा प्रभाव पड़ता है। कवि को बच्चे की मुसकान बहुत मनमोहक लगती है जो मृत शरीर में भी प्राण डाल देती है।

2. बच्चे की मुसकान और एक बड़े व्यक्ति की मुसकान में क्या अंतर है ?

उत्तर

बच्चे तथा बड़े व्यक्ति की मुसकान में निम्नलिखित अंतर होते हैं -
1. बच्चे मुस्कुराते समय किसी खास मौके की प्रतीक्षा नहीं करते हैं जबकि बड़ों के मुसकुराने की खास वजह होती है।
2. बच्चों का मुस्कुराना सभी को प्रभावित करता है परन्तु बड़ों का मुस्कुराना लोगों को प्रभावित नहीं करता है।
3. बच्चों की हँसी में निश्छलता होती है लेकिन बड़ों की मुस्कुराहट कृत्रिम भी होती है।

3. कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को किन-किन बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है ?

उत्तर

कवि नागर्जुन ने बच्चे की मुसकान के सौन्दर्य को जिन बिम्बों के माध्यम से व्यक्त किया है,वे निम्नलिखित हैं:--
1. मृतक में भी जान डाल देना ।
2. कमल का तालाब छोड़कर झोपड़ी में खिलना ।
3. बाँस या बबूल से शेफ़ालिका के फूलों का झड़ना ।
4. स्पर्श पाकर पाषाण का पिघलना
5. तिरछी नज़रों से देख कर मुसकाना।

4. भाव स्पष्ट कीजिए -
(क) छोड़कर तालाब मेरी झोपड़ी में खिल रहे जलजात।

उत्तर

प्रस्तुत काव्यांश का भाव है कि कोमल शरीर वाले बच्चे खेलते हुए बहुत आकर्षक लगते हैं।उन्हें देख ऐसा लगता है, जैसे कोई कमल का फूल तालाब में न खिलकर वहीं पर खिल गया हो।

(ख) छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल बाँस था कि बबूल ?

उत्तर

प्रस्तुत काव्यांश का भाव है कि बच्चों के स्पर्श में ऐसा जादू होता है कि कठोर प्रकृति वाले भावहीन और संवेदनाशून्य व्यक्तियों में भी सुख , आनंद और वात्सल्य-रस का संचार कर देता है।

रचना और अभिव्यक्ति

5. मुसकान और क्रोध भिन्न-भिन्न भाव हैं। इनकी उपस्थिति से बने वातावरण की भिन्नता का चित्रण कीजिए।

उत्तर

मुसकान और क्रोध परस्पर विलोम भाव हैं। मुसकान से चेहरा आकर्षक , मन में प्रसन्नता और वातावरण में उल्लास भर जाता है।मुसकान कठोर एवम् भावशून्य हृदय वाले को भी कोमल और भावयुक्त बना देती है। इसमें पराए को भी अपना बना लेने की अद्भुत क्षमता होती है। जबकि; ठीक इसके विपरीत क्रोध से चेहरा भयानक,मन अशान्त और वातावरण तनावयुक्त बन जाता है।क्रोध से हृदय कठोर और संवेदनहीन हो जाता है।लोगों में भय और आतंक उत्पन्न हो जाता है, जिससे ग़ैर तो ग़ैर अपने भी पराए बन जाते हैं।

6. दंतुरित मुसकान से बच्चे की उम्र का अनुमान लगाइए और तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर

बच्चों के दाँत मुख्यत: 9 महीने से लेकर एक साल में आने लगते हैं। कई बार इससे कम या अधिक समय भी लग जाया करता है, परन्तु यहाँ माँ उँगलियों से मधुपर्क करा रही है। अत: बच्चे बच्चे की आयु लगभग 1 वर्ष की लगती है। बच्चा अपनी निश्छल दंतुरित मुसकान से सबका मन मोह लेता है।

7. बच्चे से कवि की मुलाकात का जो शब्द-चित्र उपस्थित हुआ है उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर

कवि और वह बच्चा दोनों एक-दूसरे के लिए सर्वथा अपरिचित थे इसी कारण बच्चा उसे एकटक देखता रहता है। बच्चे ने कवि की उंगलियाँ पकड़ रखी थी और अपलक कवि को निहार रहा था। बच्चा कहीं देखते-देखते थक न जाए, ऐसा सोचकर कवि अपनी आँखें फेर लेता है। किन्तु बच्चा उसे तिरछी नज़रों से देखता है, जब दोनों की आँखें मिलती हैं तो बच्चा मुसका देता है। बच्चे की मुसकान कवि के हृदय को अच्छी लगती है। उसकी मुसकान को देखकर कवि का निराश मन खुश हो जाता है। उसे ऐसा लगता है जैसे कमल के फूल तालाब को छोड़कर उसके झोंपड़ें में खिल उठे हैं। उस मुसकान से प्रभावित संन्यास धारण कर चुका कवि पुन: गृहस्थ-आश्रम में लौट आया।

फसल

1. कवि के अनुसार फसल क्या है?

उत्तर

कवि के अनुसार फसल ढ़ेर सारी नदियों के पानी का जादू, अनेक लोगों के हाथों के स्पर्श की गरिमा तथा बहुत सारे खेतों की मिट्टी के गुण का मिला जुला परिणाम है। अर्थात् फसल किसी एक की मेहनत का फल नहीं बल्कि इसमें सभी का योगदान सम्मिलित है।

2. कविता में फसल उपजाने के लिए आवश्यक तत्वों की बात कही गई है। वे आवश्यक तत्व कौन-कौन से हैं?

उत्तर

प्रस्तुत कविता में कवि ने फसल उपजाने के लिए मानव परिश्रम, पानी, मिट्टी, सूरज की किरणों तथा हवा जैसे तत्वों को आवश्यक कहा है।

3. फसल को 'हाथों के स्पर्श की गरिमा' और 'महिमा' कहकर कवि क्या व्यक्त करना चाहता है?

उत्तर 

कवि ने फ़सल को मानव के श्रम से जोड़ा है, क्योंकि मनुष्यों के हाथों किया गया श्रम ही फ़सल को उपजाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मनुष्य यदि परिश्रम न करे तो फ़सल उग ही नहीं सकती। उनके हाथों के स्पर्श की बहुत महिमा है।ऐसा कहकर कवि मनुष्यों विशेषकर किसानों और मज़दूरों के प्रति अपना लगाव और आभार व्यक्त करता है।

4.भाव स्पष्ट कीजिए -
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!

उत्तर

प्रस्तुत पंक्तियों का तात्पर्य यह है कि फसल के लिए सूरज की किरणें तथा हवा दोनों का प्रमुख योगदान है। वातावरण के ये दोनों अवयव ही फसल के योगदान में अपनी-अपनी भूमिका अदा करते हैं। फसलों की हरियाली सूरज की किरणों के प्रभाव के कारण आती है। फसलों को बढ़ाने में हवा की थिरकन का भी योगदान रहता है।
रचना और अभिव्यक्ति

5. कवि ने फसल को हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म कहा है -

(क) मिट्टी के गुण-धर्म को आप किस तरह परिभाषित करेंगे?
(ख) वर्तमान जीवन शैली मिट्टी के गुण-धर्म को किस-किस तरह प्रभावित करती है?
(ग) मिट्टी द्वारा अपना गुण-धर्म छोड़ने की स्थिति में क्या किसी भी प्रकार के जीवन की कल्पना की जा सकती है?
(घ) मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हमारी क्या भूमिका हो सकती है?

उत्तर

(क) किसी भी फसल की उपज मिट्टी के उपजाऊ होने पर निर्भर करती है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति जितनी अधिक होगी फसल का उत्पाद भी उतना ही अधिक होगा।

(ख) वर्तमान जीवन-शैली प्रदूषण उत्पन्न करती है। प्रदूषण मिट्टी के गुण-धर्म को प्रभावित करता है। नए-नए खाद्यों के उपयोग से, प्लास्टिक के ज़मीन में रहने से, प्रदूषण से मिट्टी की उर्वरा शक्ति धीरे-धीरे नष्ट होती जा रही है और मिट्टी का मूल स्वभाव बदलकर विकृत हो जाता है। इसका बुरा प्रभाव फसल की उपज पर पड़ रहा है।

(ग) अगर मिटटी ने अपना गुण-धर्म छोड़ दिया तो धरती से हरियाली का, पेड़-पौधे और फ़सल आदि का नामोनिशान मिट जाएगा। इनके अभाव में तो धरती पर जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती ।

(घ) मिट्टी के गुण - धर्म को पोषित करने में हम महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। हम मिट्टी को प्रदूषण से बचाकर, वृक्षारोपण कर , मिट्टी के कटाव को रोकने की व्यवस्था कर ,फ़सल-चक्र चलाकर, कम से कम मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करके हम मिट्टी के गुण-धर्म का का पोषण कर सकते हैं।


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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 7- छाया मत छूना हिंदी

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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 7- छाया मत छूना क्षितिज भाग-2 हिंदी 

गिरिजाकुमार माथुर

पृष्ठ संख्या: 47

प्रश्न अभ्यास

1. कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है?

उत्तर

कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात इसलिए कही है क्योंकि यही सत्य है। कवि कहते है कि भूली-बिसरी यादें या भविष्य के सपने मनुष्य को दुखी ही करते है। हम यदि जीवन की कठिनाइयों व दु:खों का सामना न कर उनको अनदेखा करने का प्रयास करेंगे तो हम स्वयं किसी मंजिल को प्राप्त नहीं कर सकते। मनुष्य को जीवन की कठिनाइयों को यथार्थ भाव से स्वीकार उनसे मुँह न मोड़कर उसके प्रति सकारात्मक भाव से उसका सामना करना चाहिए। तभी स्वयं की भलाई की ओर एक कदम उठाया जा सकता है, नहीं तो सब मिथ्या ही है।

2. भाव स्पष्ट कीजिए -
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है, 
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।

उत्तर

प्रस्तुत पंक्ति प्रसिद्ध कवि गिरिजाकुमार माथुर द्वारा रचित ‘छाया मत छूना’ नामक कविता से ली गई है।  भाव यह है कि मनुष्य सदैव प्रभुता व बड़प्पन के कारण अनेकों प्रकार के भ्रम में उलझ जाता है, उसका मन विचलित हो जाता है। जिससे हज़ारों शंकाओ का जन्म होता है। इसलिए उसे इन प्रभुता के फेरे में न पड़कर स्वयं के लिए उचित मार्ग का चयन करना चाहिए। हर प्रकाशमयी (चाँदनी) रात के अंदर काली घनेरी रात छुपी होती है। अर्थात् सुख के बाद दुख का आना तय है। इस सत्य को जानकर स्वयं को तैयार रखना चाहिए। दोनों भावों को समान रुप से जीकर ही हम मार्गदर्शन कर सकते हैं न कि प्रभुता की मृगतृष्णा में फँसकर।

3. 'छाया' शब्द यहाँ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है? कवि ने उसे छूने के लिए मना क्यों किया है?

उत्तर

छाया शब्द से तात्पर्य जीवन की बीती मधुर स्मृतियाँ हैं। कवि के अनुसार हमारे जीवन में सुख व दुख कभी एक समान नहीं रहता परन्तु उनकी मधुर व कड़वी यादें हमारे दिमाग में स्मृति के रुप में हमेशा सुरक्षित रहती हैं। अपने वर्तमान के कठिन पलों को बीते हुए पलों की स्मृति के साथ जोड़ना हमारे लिए बहुत कष्टपूर्ण हो सकता है। वह मधुर स्मृति हमें कमज़ोर बनाकर हमारे दुख को और भी कष्टदायक बना देती है। इसलिए हमें चाहिए कि उन स्मृतियों को भूलकर अपने वर्तमान की सच्चाई को यथार्थ भाव से स्वीकार कर वर्तमान को भूतकाल से अलग रखें।

4. कविता में विशेषण के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में विशेष प्रभाव पड़ता है, जैसे कठिन यथार्थ। कविता में आए ऐसे अन्य उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी लिखिए कि इससे शब्दों के अर्थ में क्या विशिष्टता पैदा हुई?

उत्तर

1. दुख दूना - यहाँ दुख दूना में दूना (विशेषण) शब्द के द्वारा दुख की अधिकता व्यक्त की गई है।
2. जीवित क्षण - यहाँ जीवित (विशेषण) शब्द के द्वारा क्षण को चलयमान अर्थात् उसके जीवंत होने को दिखाया गया है।
3. सुरंग-सुधियाँ - यहाँ सुरंग (विशेषण) शब्द के द्वारा सुधि (यादों) का रंग-बिरंगा होना दर्शाया गया है।
4. एक रात कृष्णा - यहाँ एक कृष्णा (विशेषण) शब्द द्वारा रात की कालिमा अर्थात् अंधकार को दर्शाया गया है।
5. शरद रात - यहाँ शरद (विशेषण) शब्द रात की रंगीनी और मोहकता को उजागर कर रहा है।
6. रस बसंत - यहाँ रस (विशेषण) शब्द बसंत को और अधिक रसीला, मनमोहक और मधुर बना रहा है।

5. 'मृगतृष्णा' किसे कहते हैं, कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है?

उत्तर

गर्मी की चिलचिलाती धूप में रेत के मैदान दूर पानी की चमक दिखाई देती है हम वह जाकर देखते है तो कुछ नहीं मिलता प्रकृति के इस भ्रामक रूप को 'मृगतृष्णा' कहा जाता है। इसका प्रयोग कविता में प्रभुता की खोज में भटकने के संदर्भ में हुआ है। इस तृष्णा में फँसकर मनुष्य हिरन की भाँति भ्रम में पड़ा हुआ भटकता रहता है।

6. 'बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले' यह भाव कविता की किस पंक्ति में झलकता है?

उत्तर

क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
 इन पंक्तियों में 'बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले' का भाव झलकता है।

7. कविता में व्यक्त दुख के कारणों को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

'छाया मत छूना' कविता में कवि ने मानव की कामनाओं-लालसाओं के पीछे भागने की प्रवृत्ति को दुखदायी माना है क्योंकिं इसमें अतृप्ति के सिवाय कुछ नहीं मिलता। हम विगत स्मृतियों के सहारे नहीं जी सकते, हमें वर्तमान में जीना है। उन्हें छूकर याद करने से मन में दुख बढ़ जाता है। दुविधाग्रस्त मन:स्थिति व समयानुकूल आचरण न करने से भी जीवन में दुख आ सकता है। व्यक्ति प्रभुता या बड़प्पन में उलझकर स्वयं को दुखी करता है।


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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 8- कन्यादान हिंदी

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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 8- कन्यादान क्षितिज भाग-2 हिंदी 

ऋतुराज

पृष्ठ संख्या: 51

प्रश्न अभ्यास

1. आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना?

उत्तर

इन पंक्तियों में लड़की की कोमलता तथा कमज़ोरी को स्पष्ट किया गया है। लड़की की कोमलता को उसका सबसे बड़ा गुण माना जाता है, परन्तु लड़की की माँ उसे लड़की जैसा दिखने अर्थात् अपनी कमज़ोरी को प्रकट करने से सावधान करती है क्योंकि कमज़ोर लड़कियों का शोषण किया जाता है।

2. 'आग रोटियाँ सेंकने के लिए है।
     जलने के लिए नहीं'

(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है?

उत्तर

इन पंक्तियों में समाज द्वारा नारियों पर किए गए अत्याचारों की ओर संकेत किया गया है। वह ससुराल में घर-गृहस्थी का काम संभालती है। सबके लिए रोटियाँ पकाती है फिर भी उसे अत्याचार सहना पड़ता है। उसी अग्नि में उसे जला दिया जाता है। नारी का जीवन कष्टों से भरा होता है।

(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों ज़रूरी समझा?

उत्तर

बेटी अभी सयानी नहीं थी, उसकी उम्र भी कम थी और वह समाज में व्याप्त बुराईयों से अंजान थी। माँ यह नहीं चाहती थी कि उसके साथ जो अन्याय हुए हैं वो सब उसकी बेटी को भी सहना पड़े। इसलिए माँ ने बेटी को सचेत करना ज़रुरी समझा।

3. 'पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की'
इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभरकर आ रही है उसे शब्दबद्ध कीजिए।

उत्तर

कविता की इन पंक्तियों से लड़की की कुछ विशेषताओं पर प्रकाश पड़ता है। ये निम्नलिखित हैं -
(1) वह आदर्शवादी है, जीवन की सच्चाईयों से अंजान है।
(2) वह अभी पढ़ने वाली छात्रा ही है, उसकी उम्र कम है।
(3) वह अपने भावी जीवन की कल्पनाओं में खोई हुई है।

4. माँ को अपनी बेटी 'अंतिम पूँजी' क्यों लग रही थी?

उत्तर

माँ और बेटी का सम्बन्ध मित्रतापूर्ण होता है। माँ बेटी के सर्वाधिक निकट रहने वाली और उसके सुख-दुख की साथिन होती है। कन्यादान करते समय इस गहरे लगाव को वह महसूस कर रही है कि उसके जाने के बाद वह बिल्कुल खाली हो जाएगी। वह बचपन से अपनी पुत्री को सँभालकर उसका पालन-पोषण एक संचित पूँजी की तरह करती है। जब इस पूँजी अर्थात् बेटी का कन्यादान करेगी तो उसके पास कुछ नहीं बचेगा। इसलिए माँ को अपनी बेटी अंतिम पूँजी लगती है।

5. माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी?

उत्तर

माँ ने अपनी बेटी को विदा करते समय निम्नलिखित सीख दी -
1. माँ ने बेटी को उसकी सुंदरता पर गर्व न करने की सीख दी।
2. माँ ने अपनी बेटी को दु:ख पीड़ित होकर आत्महत्या न करने की सीख दी।
3. माँ ने बेटी को धन सम्पत्ति के आकर्षण से दूर रहने की सलाह दी।
4. नारी सरलता, भोलेपन और सौंदर्य के कारण बंधनों में न बँधे तो वह शक्तिशाली बन सकती है।
रचना और अभिव्यक्ति

6. आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है?

उत्तर

कन्या माता पिता के लिए कोई वस्तु नहीं है बल्कि उसका सम्बन्ध उनके भावनाओं से है। दान वस्तुओं का होता है। बेटियों के अंदर भी भावनाएँ होती हैं। उनका अपना एक अलग अस्तित्व होता है। विवाह के पश्चात् उसका सम्बन्ध नए लोगों से जुड़ता है परन्तु पुराने रिश्तों को छोड़ देना दु:खदायक होता है। अत: कन्या का दान कर उसे त्याग देना उचित नहीं है।


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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 9- संगतकार हिंदी

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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 9- संगतकार क्षितिज भाग-2 हिंदी 

मंगलेश डबराल


पृष्ठ संख्या: 55

प्रश्न अभ्यास 

1. संगतकार के माध्यम से कवि किस प्रकार के व्यक्तियों की ओर संकेत करना चाह रहा है ?

उत्तर

संगतकार के माध्यम से कवि किसी भी कार्य अथवा कला में लगे सहायक कर्मचारियों और कलाकारों की ओर संकेत कर रहा है। जैसे संगतकार मुख्य गायक के साथ मिलकर उसके सुरों में अपने सुरों को मिलाकर उसके गायन में नई जान फूँकता है और उसका सारा श्रेय मुख्य गायक को ही प्राप्त होता है।

2. संगतकार जैसे व्यक्ति संगीत के अलावा और किन-किन क्षेत्रों में दिखाई देते हैं ?

उत्तर

संगतकार जैसे व्यक्ति निम्नलिखित क्षेत्रों में मिलते हैं; जैसे -
1. सिनेमा के क्षेत्र में - फिल्म में अनेकों सह कलाकार, डुप्लीकेट, सह नर्तक व स्टंटमैन होते हैं।
2. भवन निर्माण क्षेत्र में -मज़दूर जो भवन का निर्माण करते हैं।

3. संगतकार किन-किन रूपों में मुख्य गायक-गायिकाओं की मदद करते हैं?

उत्तर

1. गायन के समय यदि गायक-गायिका का स्वर भारी हो तो संगतकार अपनी आवाज़ से उसमें मधुरता भर देता है।
2. जब गायन करते समय मुख्य गायक-गायिका अंतरे की जटिलता के कारण तानों में खो जाता है तो वह उसके स्थाई स्वरुप को सँभालते हुए गायन करता रहता है।
3. जब गायन करते समय मुख्य गायक-गायिका अपनी लय को लाँघकर भटक जाते हैं तो संगतकार उस भटकाव को सँभालता है।
4. तारसप्तक के गायन के समय गायक-गायिका का स्तर धीमा होने लगता है तो वह उसकी गायन में अपने स्तर को मिलाकर उसकी गति को सुर का साथ देता है।

4. भाव स्पष्ट कीजिए -
और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ़ सुनाई देती है
या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है उसे विफलता नहीं
उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।

उत्तर

प्रस्तुत पंक्तियाँ 'मंगलेश डबराल' द्वारा रचित "संगतकार" कविता से ली गई है। इसमें कवि द्वारा गायन में मुख्य गायक का साथ देने वाले संगतकार की भूमिका के महत्व को दर्शाया गया है। कवि कहता है कि संगतकार जब मुख्य गायक के पीछे-पीछे गाता है वह अपनी आवाज़ को मुख्य गायक की आवाज़ से अधिक ऊँचें स्वर में नहीं जाने देते ताकि मुख्य गायक की महत्ता कम न हो जाए। यही हिचक (संकोच) उसके गायन में झलक जाती है। वह कितना भी उत्तम हो परन्तु स्वयं को मुख्य गायक से कम ही रखता है। लेखक आगे कहता है कि यह उसकी असफलता का प्रमाण नहीं अपितु उसकी मनुष्यता का प्रमाण है कि वह शक्ति और प्रतिभा के रहते हुए स्वयं को ऊँचा नहीं उठाता,बल्कि अपने गुरु और स्वामी को महत्व देने की कोशिश करता है।

5. किसी भी क्षेत्र में प्रसिद्धि पाने वाले लोगों को अनेक लोग तरह-तरह से अपना योगदान देते हैं। कोई एक उदाहरण देकर इस कथन पर अपने विचार लिखिए।

उत्तर 

किसी भी क्षेत्र में प्रसिद्धि पाने वाले लोगों को अनेक लोग तरह-तरह से योगदान देते हैं। जैसे प्रसिद्ध गायक-गायिका जब प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं तो उसमें एक संगीत निर्देशक, गीतकार, तकनीकी साउंड डालने वाले, वाद्य यंत्र बजाने वाले, संगतकार, निर्माता का महत्वपूर्ण हाथ होता है जब तक इन सब लोगों का सहयोग प्राप्त न हो तो एक गायक-गायिका अपनी प्रतिभा का  प्रदर्शन नहीं कर सकते और इन्हीं सब के सहयोग द्वारा वह सफलता के शिखर तक पहुँच पाते हैं।

6. कभी-कभी तारसप्तक की ऊँचाई पर पहुँचकर मुख्य गायक का स्वर बिखरता नज़र आता है उस समय संगतकार उसे बिखरने से बचा लेता है। इस कथन के आलोक में संगतकार की विशेष भूमिका को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

तारसप्तक में गायन करते समय मुख्य गायक का स्वर बहुत ऊँचाई तक पहुँच जाता है। जिसके कारण स्वर के टूटने का आभास होने लगता है और इसी कारण वह अपने कंठ से ध्वनि का विस्तार करने में कमज़ोर हो जाता है। तब संगतकार उसके पीछे मुख्य धुन को दोहराता चलता है वह अपनी आवाज़ से उसके बिखराव को सँभाल लेता है।

7. सफलता के चरम शिखर पर पहुँचने के दौरान यदि व्यक्ति लड़खड़ाते हैं तब उसे सहयोगी किस तरह सँभालते हैं?

उत्तर 

सफलता पर पहुँच कर यदि व्यक्ति लड़खड़ाने लग जाता है तो इसके सहयोगी अपने सुझावों द्वारा उसके कदमों को नई दिशा देते हैं, अपने मनोबल द्वारा इसके मनोबल को सँभालते हैं तथा उसका मार्गदर्शन करते हैं। उसकी खोई आत्मशक्ति को एकत्र कर और फिर से उठने की हिम्मत देते हैं वह उसकी प्रेरणा स्रोत बन उसके जीवन में नया संबल बनते हैं।


NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 10- नेताजी का चश्मा हिंदी

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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 10- नेताजी का चश्मा क्षितिज भाग-2 हिंदी 

स्वयं प्रकाश

पृष्ठ संख्या: 64

प्रश्न अभ्यास

1. सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे ?

उत्तर

सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टन इसलिए कहते थे क्योंकि उसके अंदर देशभक्ति की भावना कूट-कूटकर भरी हूई थी। वह स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वाले सेनानियों का भरपूर सम्मान करता था| वह नेताजी की मूर्ती को बार-बार चश्मा पहना कर देश के प्रति अपनी अगाध श्रद्धा प्रकट करता था। देश के प्रति त्याग व समर्पण की भावना उसके ह्रदय में किसी भी फ़ौजी से कम नहीं थी।

2. हालदार साहब ने ड्राईवर को पहले चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना किया था लेकिन बाद में तुरंत रोकने को कहा -
(क) हालदार साहब पहले मायूस क्यों हो गए थे?
(ख) मूर्ती पर सरकंडे का चश्मा क्या उम्मीद जगाता है?
(ग) हालदार साहब इतनी - सी बात पर भावुक क्यों हो उठे? 

उत्तर 

(क) हालदार साहब पहले इसलिए मायूस क्यों हो गए थे क्योंकि वे सोच रहे थे कस्बे के चौराहे पर सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा तो अवश्य मिलेगी, परंतु उनकी आँखों पर चश्मा लगा नहीं मिलेगा। चश्मा लगानेवाला देशभक्त कॅप्टन तो मर चुका है और वहाँ अब किसी में वैसी देशप्रेम की भावना नहीं है।

(ख) मूर्ती पर सरकंडे का चश्मा यह उम्मीद जगाता है कि अभी लोगों के अंदर देशभक्ति की भावना मरी नहीं है। भावी पीढ़ी इस धरोहर को सम्हाले हुए है| बच्चों के अंदर देशप्रेम का जज्बा है, अतः देश का भविष्य सुरक्षित है|

(ग) हालदार साहब इसलिए भावुक हो उठे क्योंकि उनके मन में आई हुई निराशा की भावना अचानक ही आशा के रूप में परिवर्तित हो गयी और उनके ह्रदय की प्रसन्नता आँखों से आँसू बनकर छलक उठी। उन्हें यह विश्वास हो गया कि देशभक्ति की भावना भावी पीढ़ी के मन में भी पूरी तरह भरी हुई है। 

3. आशय स्पष्ट कीजिए -
"बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी-जवानी-ज़िंदगी सब कुछ होम देनेवालों पर भी हँसती है और अपने लिए बिकने केमौके ढूँढ़ती है।"

उत्तर

हालदार साहब बार-बार सोचते रहे कि उस कौम का भविष्य कैसा होगा जो उन लोगों की हँसी उड़ाती है जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी-जवानी-ज़िंदगी सब कुछ त्याग कर देते हैं। साथ ही वह ऐसे अवसर तलाशती रहती है, जिसमें उसकी स्वार्थ की पूर्ती हो सके, चाहे उसके लिए उन्हें अपनी नैतिकता को भी तिलांजलि क्यों न देनी पड़े। अर्थात आज हमारे समाज में स्वार्थ पूर्ती के लिए अपना ईमान तक बेच दिया जाता है।  यहाँ देशभक्ति को मुर्खता समझा जाता है।

4. पानवाले का एक रेखाचित्र प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

सड़क के चौराहे के किनारे एक पान की दुकान में एक पान वाला बैठा है। वह काला तथा मोटा है, उसके सिर पर गिने-चुने बाल ही बचे हैं। वह एक तरफ़ ग्राहक के लिए पान बना रहा है, वहीं दूसरी ओर उसका मुँह पान से भरा है। पान खाने के कारण उसके होंठ लाल तथा कहीं-कहीं काले पड़ गए हैं। उसने अपने कंधे पर एक कपड़ा रखा हुआ है जिससे रह-रहकर अपना चेहरा साफ़ करता है।

5. "वो लँगड़ा क्या जाएगा फ़ौज में। पागल है पागल!"
कैप्टन के प्रति पानवाले की इस टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया लिखिए।

उत्तर

कैप्टन के बारे में हालदार साहब द्वारा पूछे जाने पर पानवाले ने टिप्पणी की कि वो लंगड़ा फ़ौज में क्या जायगा, वह तो पागल है। पानवाले द्वारा ऐसी टिप्पणी करना उचित नहीं था। कैप्टन शार्रीरिक रूप से अक्षम था जिसके लिए वह फौज में नहीं जा सकता था। परंतु उसके ह्रदय में जो अपार देशभक्ति की भावना थी, वह किसी फौजी से कम नहीं थी। कैप्टन अपने कार्यों से जो असीम देशप्रेम प्रकट करता था उसी कारण पानवाला उसे पागल कहता था। ऐसा कहना पानवाले की स्वार्थपरता की भावना को दर्शाता है, जो सर्वथा अनुचित है।
वास्तव में तो पागलपन की हद तक देश के प्रति त्याग व समर्पण की भावना रखनेवाला व्यक्ति श्रद्धा का पात्र है, उपहास का नहीं। 

पृष्ठ संख्या: 65

रचना और अभिव्यक्ति

6. निम्नलिखित वाक्य पात्रों की कौन-सी विशेषता की ओर संकेत करते हैं -
(क) हालदार साहब हमेशा चौराहे पर रूकते और नेताजी को निहारते।
(ख) पानवाला उदास हो गया। उसने पीछे मुड़कर मुँह का पान नीचे थूका और सर झुकाकर अपनी धोती के सिरे से आँखें पोंछता हुआ बोला - साहब! कैप्टन मर गया।
(ग) कैप्टन बार-बार मूर्ति पर चश्मा लगा देता था।

उत्तर

(क) हालदार साहब का हमेशा चौराहे पर रूकना और नेताजी को निहारना यह प्रकट करता है कि उनके अंडा देशभक्ति की प्रवाल भावना थी और वे स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करनेवाले महापुरूषों का ह्रदय से आदर करते थे। नेताजी को पहनाए गए चश्मे के माध्यम से वे कैप्टन की देशभक्ति को देखकर खुश होते थे जिनके लिए उनके मन में श्रद्धा थी।

(ख) कैप्टन की मृत्यु की बात पर पानवाले का उदास हो जाना और सर झुका कर आंसूं पोछना इस बात को प्रकट करता है कि पानवाले के ह्रदय में कैप्टन के प्रति गहरी आत्मीयता की भावना थी। कहीं - न - कहीं उसके मन में भी कैप्टन की देशभक्ति के लिए श्रद्धा थी। जिसके चलते कैप्टन के मर जाने पर वह दुखी हो गया|
उपरोक्त घटना से पानवाले की संवेदनशीलता और देशप्रेम की भावना का पता चलता है।

(ग) कैप्टन द्वारा बार-बार मूर्ति पर चश्मा लगाना यह प्रकट करता है कि वह देश के लिए त्याग करने वाले लोगों के प्रति अपार श्रद्धा रखता था। उसके ह्रदय में देशभक्ति और त्याग की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी।

7. जब तक हालदार साहब ने कैप्टन को साक्षात नहीं देखा था तब तक उसके मानस पटल पर उसका कौन -सा चित्र रहा होगा, अपनी कल्पना से लिखिए। 

उत्तर

हालदार साहब ने जब तक कॅप्टन को साक्षात नहीं देखा था तब तक उनके मानस पटल पर कैप्टन की एक भारी-भरकम मज़बूत शरीर वाली रोंबदार छवि अंकित हो रही होगी। उन्हें लगता था फौज में होने के कारण लोग उन्हें कैप्टन कहते हैं।


8.  कस्बों, शहरों, महानगरों पर किसी न किसी शेत्र के प्रसिद्व व्यक्ति की मूर्ति लगाने का प्रचलन-सा हो गया है
(क) इस तरह की मूर्ति लगाने के क्या उद्देश्य हो सकते हैं?
(ख) आप अपने इलाके के चौराहे पर किस व्यक्ति की मूर्ति स्थापित करवाना चाहेंगे और क्यों?
(ग) उस मूर्ति के प्रति आपके एवं दूसरे लोगों के क्या उत्तरदायित्व होने चाहिए?

उत्तर 

(क) इस तरह की मूर्ति लगाने का प्रमुख उद्देश्य यह होता है कि उक्त महान व्यक्ति की स्मृति हमारे मन में बनी रहे। हमें यह स्मरण रहे कि उस महापुरूष ने देश व समाज के हित के लिए किस तरह के महान कार्य किये| उसके व्यक्तित्व से प्रेरणा लेकर हम भी अच्छे कार्य करें, जिससे समाज व राष्ट्र का भला हो। 

(ख) हम अपने इलाके के चौराहे पर महात्मा गांधी की मूर्ति स्थापित करवाना चाहेंगे। इसका कारण यह है कि आज के परिवेश में जिस प्रकार से हिंसा, झूठ, स्वार्थ, वैमनस्य, साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार आदि बुराइयाँ व्याप्त होती जा रही हैं, उसमें गांधीजी के आदर्शों की प्रासंगिकता और भी बढ़ गयी है। गांधीजी की मूर्ति स्थापित होने से लोगों के अंदर सत्य, अहिंसा, सदाचार, साम्प्रदायिक सौहार्द आदि की भावनाएं उत्पन्न होंगी। इससे समाज व देश का वातावरण अच्छा बनेगा। 

(ग) हमारा यह उत्तरदायित्व होना चाहिए कि हमुस मूर्ति की गरिमा का ध्यान रखें। हम न तो स्वयं उस मूर्ति का अपमान करें अथवा उसे क्षति पहुँचाएँ और न ही दूसरों को ऐसा करने दें। हम उस मूर्ति के प्रति पर्याप्त श्रद्धा प्रकट करें एवं उस महापुरूष के आदर्शों पर स्वयं भी चलें तथा दूसरे लोगों को भी चलने के लिए प्रेरित करें। 

10. निम्नलिखित पंक्तियों में स्थानीय बोली का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है, आप इन पंक्तियों को मानक हिंदी में लिखिए -
कोई गिराक आ गया समझो। उसको चौड़े चौखट चाहिए। तो कैप्टन किदर से लाएगा ? तो उसको मूर्तिवाला दे दिया। उदर दूसरा बिठा दिया।

उत्तर 

मानक हिंदी में रुपांतरित -
अगर कोई ग्राहक आ गया और उसे चौड़े चौखट चाहिए, तो कैप्टन कहाँ से लाएगा ? तो उसे मूर्तिवाला चौखट दे देता है और उसकी जगह दूसरा लगा देता है।

11. 'भई खूब! क्या आइडिया है।' इस वाक्य को ध्यान में रखते हुए बताइए कि एक भाषा में दूसरी भाषा के शब्दों के आने से क्या लाभ होते हैं?

उत्तर

एक भाषा में दूसरी भाषा के शब्दों के आने से उस भाष की भावाभिव्यक्ति की क्षमता में वृद्धि होती है। भाषा का भण्डार बढ़ता है। भाषा का स्वरुप अधिक आकर्षक हो जाता है। भाषा में प्रवाहमयता आ जाती है।
भाषा अध्यन

12. निम्नलिखित वाक्य से निपात छाती और उनसे नए वाक्य बनाइए -
(क) नगरपालिका थी तो कुछ न कुछ करती भी रहती थी।
(ख) किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर देने का निर्णय किया गया होगा।
(ग) यानी चश्मा तो था लेकिन संगमरमर का नहीं था।
(घ) हालदार साहब अब भी नहीं समझ पाए।
(गं) दो साल तक हालदार साहब अपने काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुज़रते रहे।

उत्तर

(क) कुछ न कुछ - तुम हमेशा कुछ न कुछ मांगते ही रहते हो।
(ख) को ही - राकेश को ही हमेशा अच्छे अंक मिलते हैं।
(ग) तो था - रास्ते में कोई सवारी तो थी नहीं।
(घ) अब भी - तुम अब भी बाज़ार नहीं गए।
(ङ) में - इस समय में तुम्हें अधिक मेहनत करनी चाहिए।

पृष्ठ संख्या: 66

13. निम्नलिखित वाक्यों को कर्मवाच्य में बदलिए -
(क) वह अपनी छोटी - सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से नेताजी की मूर्ति पर एक फिट कर देता है।
(ख) पानवाला नया पान खा रहा था।
(ग) पानवाले ने साफ़ बता दिया था।
(घ) ड्राईवर ने जोर से ब्रेक मारा।
(ड़) नेताजी ने देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया।
(च) हालदार साहब ने चश्मेवाले की देशभक्ति का सम्मान किया।

उत्तर

(क) उसके द्वारा अपनी छोटी - सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से नेताजी की मूर्ति पर एक फिट कर दिया जाता है।
(ख) पानवाले से नया पान खाया जा रहा था।
(ग) पानवाले द्वारा साफ़ बता दिया गया था।
(घ) ड्राईवर द्वारा जोर से ब्रेक मारा गया।
(ड़) नेताजी द्वारा देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया गया।
(च) हालदार साहब द्वारा चश्मेवाले की देशभक्ति का सम्मान किया गया। 

14. नीचे लिखे वाक्यों को भाववाच्य में बदलिए -
(क) माँ बैठ नहीं सकती।
(ख) मैं देख नहीं सकती।
(ग) चलो, अब सोते हैं।
(घ) माँ रो भी नहीं सकती।

उत्तर

(क) माँ से बैठा नहीं जाता।
(ख) मुझसे देखा नहीं जाता।
(ग) चलो अब सोया जाए।
(घ) माँ से रोया भी नहीं जाता।


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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 13- मानवीय करुणा की दिव्या चमक हिंदी

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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 13- मानवीय करुणा की दिव्या चमक क्षितिज भाग-2 हिंदी  

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

पृष्ठ संख्या: 88

प्रश्न अभ्यास 

1. फ़ादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी क्यों लगती थी ?

उत्तर

देवदार का वृक्ष आकार में लंबा-चौड़ा होता है तथा छायादार भी होता है। फ़ादर बुल्के का व्यक्तित्व भी कुछ ऐसा ही है। जीस प्रकार देवदार का वृक्ष वृहदाकार होने के कारण लोगों को छाया देकर शीतलता प्रदान करता है। ठीक उसी प्रकार फ़ादर बुल्के भी अपने शरण में आए लोगों को आश्रय देते थे। तथा दु:ख के समय में सांत्वना के वचनों द्वारा उनको शीतलता प्रदान करते थे।

2. फ़ादर बुल्के भारतीय संस्कृति के एक अभिन्न अंग हैं, किस आधार पर ऐसा कहा गया है?

उत्तर

फ़ादर बुल्के को भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग इसलिए कहा गया है क्योंकि वे बेल्जियम से भारत आकर यहाँ की संस्कृति में पूरी तरह रच-बस गए थे। वे सदा यह बात कहते थे कि अब भारत ही मेरा देश है। भारत के लोग ही उनके लिए सबसे अधिक आत्मीय थे। वे भारत की सांस्कृतिक परंपराओं को पूरी तरह आत्मसात कर चुके थे। फ़ादर हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए बहुत से प्रयास किये तथा हिंदी के समृद्धि के लिए ''ब्लू-बर्ड '' तथा ''बाइबिल'' का हिंदी रूपान्तरण भी किये। वे भारतीय संस्कृति के अनुरूप ही वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से ओतप्रोत थे।

3. पाठ में आए उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जिनसे फ़ादर बुल्के का हिंदी प्रेम प्रकट होता है?

उत्तर

फ़ादर बुल्के के हिन्दी प्रेम के कई प्रसंग इस पाठ में आये हैं, जैसे -
इलाहबाद में फादर बुल्के 'परिमल' नाम की साहित्यिक संस्था से जुड़े थे। वे वहाँ हिन्दी भाषा व साहित्य से सम्बंधित गोष्ठियों में सम्मिलित होते हुए गंभीर बहस करते थे।
वे लेखकों की रचनाओं पर अपनी स्पष्ट राय और सुझाव भी देते थें। वे सड़क पर जा रहे लेखकों के पास साइकिल से उतर कर पहुँच जाते और उनकी रचनाओं पर बात-चीत करते। फ़ादर बुल्के ने हिन्दी में शोध भी किया, जिसका विषय था - "रामकथा: उत्पत्ति और विकास।" उन्होंने एक नाटक "ब्लू - बर्ड" का हिन्दी में "नील - पंछी" के नाम से अनुवाद भी किया।
फ़ादर बुल्के राँची के सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज में हिन्दी तथा संस्कृति विभाग के विभागाध्यक्ष हो गए। वहीं उनहोंने अंग्रेज़ी - हिन्दी कोश तथा बाइबिल का अनुवाद भी तैयार किया। फ़ादर बुल्के को हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखने की बड़ी चिंता थी। वे हर मंच पर इस चिंता को प्रकट करते तथा इसके लिए अकाट्य तर्क देते। वे हिन्दी वालों द्वारा ही हिन्दी की उपेक्षा पर दुखी हो जाते।

4. इस पाठ के आधार पर फ़ादर कामिल बुल्के की जो छवि उभरती है उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर

फ़ादर बुल्के एक निष्काम कर्मयोगी थे। वे लम्बे, गोरे, भूरी दाढ़ी व नीली आँखों वाले चुम्बकिय आकर्षण से युक्त संन्यासी थे। अपने हर प्रियजन के लिए उनके ह्रदय में ममता व अपनत्व की अमृतमयी भावना उमड़ती रहती थी। उनके व्यक्तित्व में मानवीय करुणा की दिव्य चमक थी। वे अपने प्रिय जनों को आशीषों से भर देते थे। वे भारत को ही अपना देश मानते हुए यहीं की संस्कृति में रच -बस गए थे। वे हिंदी के प्रकांड विद्वान थे एवं हिंदी के उत्थान के लिए सदैव तत्पर रहते थे। उन्होंने हिंदी में पी.एच.डी की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त ''ब्लू-बर्ड ''ताठा ''बाइबिल ''का हिंदी अनुवाद भी किया। फ़ादर बुल्के अपने स्नेहीजनों के व्यक्तिगत सुख -दुख का सदा ध्यान रखते थे। वे रिश्ते बनाते थे ,तो तोड़ते नहीं थे। उनके सांत्वना भरे शब्दों से लोगों का हृदय प्रकाशित हो उठता था। अपने व्यक्तित्व की महानता के कारण ही वे सभी की श्रद्धा के पात्र थे। 

5. लेखक ने फ़ादर बुल्के को 'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' क्यों कहा है?

उत्तर 

लेखक इ फ़ादर बुल्के को ''मानवीय करूणा के दिव्य चमक ''इसलिए कहा है क्योंकि फ़ादर के हृदय में मानव मात्र के प्रति करूणा की असीम भावना विद्दमान थी। उनके मन में अपने हर एक प्रियजन के लिए ममता और अपनत्व का भावना उमड़ता रहता था। वे लोगों को अपने आशीषों से भर देते थे। उनकी आँखों की चमक में असीम वात्सल्य तैरता रहता था। वे लोगों के सुख -दुख में शामिल होकर उनके प्रति सहानुभूति प्रकट करते थे तथा उन्हें सांत्वना भी देते थे। लोगों का कष्ट उनसे देखा नहीं देखा जाता था।

6. फ़ादर बुल्के ने संन्यासी की परंपरागत छवि से अलग एक नयी छवि प्रस्तुत की है, कैसे?

उत्तर

प्राय: संन्यासी सांसारिक मोह - माया से दूर रहते हैं । जबकि फ़ादर ने ठीक उसके विपरीत छवि प्रस्तुत की है।परंपरागत संन्यासियों के परिपाटी का निर्वाहन न कर, वे सबके सुख - दुख मे शामिल होते। एक बार जिससे रिश्ता बना लेते ; उसे कभी नहीं तोड़ते । सबके प्रति अपनत्व,प्रेम और गहरा लगाव रखते थे । लोगों के घर आना - जाना नित्य प्रति काम था। इस आधार पर कहा जा सकता है कि फ़ादर बुल्क़े ने संन्यासी की परंपरागत छवि से अलग छवि प्रस्तुत की है।

7. आशय स्पष्ट कीजिए -

(क) नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है।

उत्तर

प्रस्तुत पंक्ति का आशय है कि फ़ादर बुल्के की मृत्यु पर वहाँ उपस्थित नम आँखों वाले व्यक्तियों के नामों का उल्लेख करना सिर्फ स्याही को बरबाद करना है। कहने का आशय है कि आँसू बहाने वालों की संख्या इतनी अधिक थी कि उसे गिनना संभव नहीं था।

(ख) फ़ादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है।

उत्तर

प्रस्तुत पंक्ति का आशय है कि जिस प्रकार एक उदास शांत संगीत को सुनते समय हमारा मन गहरे दुःख में डूब जाता है, वातावरण में एक अवसाद भरी निस्तब्ध शांति छा जाती है और हमारी आँखें अपने-आप ही नम हो जाती हैं, ठीक वैसी ही दशा फ़ादर बुल्के को याद करते समय हो जाती है।

पृष्ठ संख्या: 85

रचना और अभिव्यक्ति

8. आपके विचार से बुल्के ने भारत आने का मन क्यों बनाया होगा ?

उत्तर

हमारे विचार से फ़ादर बुल्क़े ने भारत के प्राचीन एवं गौरवपूर्ण इतिहास तथा यहाँ की सभ्यता-संस्कृति, जीवन-दर्शन, सत्य, अहिंसा, प्रेम, धर्म, त्याग तथा ऋषि-मुनियों से प्रभावित होकर ही भारत आने का मन बनाया होगा।

9. 'बहुत सुंदर है मेरी जन्मभूमि - रेम्सचैपल।' - इस पंक्ति में फ़ादर बुल्के की अपनी जन्मभूमि के प्रति कौन-सी भावनाएँ अभिव्यक्त होती हैं? आप अपनी जन्मभूमिके बारे में क्या सोचते हैं?

उत्तर

फ़ादर कामिल बुल्के की जन्मभूमि 'रेम्सचैपल' थी। फ़ादर बुल्के के इस कथन से यह स्पष्ट है कि उन्हें अपनी जन्मभूमि से बहुत प्रेम था तथा वे अपनी जन्मभूमि को बहुत याद करते थे।
मनुष्य कहीं भी रहे परन्तु अपनी जन्मभूमि की स्मृतियाँ हमेशा उसके साथ रहती है। हमारे लिए भी हमारी जन्मभूमि अनमोल है। हमें अपनी जन्मभूमि की सभी वस्तुओं से प्रेम है। यहीं हमारा पालन-पोषण हुआ। अत: हमें अपनी मातृभूमि पर गर्व है। हम चाहें जहाँ भी रहे परन्तु ऐसा कोई भी कार्य नहीं करेंगे जिससे हमारी जन्मभूमि को अपमानित होना पड़े।

भाषा अध्यन

12. निम्नलिखित वाक्यों में समुच्यबोध छाँटकर अलग लिखिए -
(क) तब भी जब वह इलाहाबाद में थे और तब भी जब वह दिल्ली आते थे।
(ख) माँ ने बचपन में ही घोषित कर दिया था कि लड़का हाथ से गया।
(ग) वे रिश्ता बनाते थे तो तोड़ते नहीं थे।
(घ) उनके मुख से सांत्वना के जादू भरे दो शब्द सुनना एक ऐसी रोशनी से भर देता था जो किसी गहरी तपस्या से जनमती है।
(ङ) पिता और भाइयों के लिए बहुत लगाव मन में नहीं था लेकिन वो स्मृति में अकसर डूब जाते।

उत्तर

(क) और
(ख) कि
(ग) तो
(घ) जो
(ङ) लेकिन


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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 14- एक कहानी यह भी हिंदी

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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 14- एक कहानी यह भी क्षितिज भाग-2 हिंदी

मन्नू भंडारी

पृष्ठ संख्या: 100

प्रश्न अभ्यास 

1. लेखिका के व्यक्तित्व पर किन-किन व्यक्तियों का किस रूप में प्रभाव पड़ा?

उत्तर

लेखिका के जीवन पर दो लोगों का विशेष प्रभाव पड़ा:
पिता का प्रभाव - लेखिका के जीवन पर पिताजी का ऐसा प्रभाव पड़ा कि वे हीन भावना से ग्रसित हो गई। इसी के परिमाण स्वरुप उनमें आत्मविश्वास की भी कमी हो गई थी।पिता के द्वारा ही उनमें देश प्रेम की भावना का भी निर्माण हुआ था।
शिक्षिका शीला अग्रवाल का प्रभाव- शीला अग्रवाल की जोशीली बातों ने एक ओर लेखिका के खोए आत्मविश्वास को पुन: लौटाया तो दूसरी ओर देशप्रेम की अंकुरित भावना को उचित माहौल प्रदान किया। जिसके फलस्वरूप लेखिका खुलकर स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने लगी।

2. इस आत्मकथ्य में लेखिका के पिता ने रसोई को 'भटियारखाना' कहकर क्यों संबोधित किया है?

उत्तर 

लेखिका के पिता का मानना कि रसोई का काम में लग जाने के कारण लड़कियों की क्षमता और प्रतिभा नष्ट हो जाती है। वे पकाने - खाने तक ही सीमित रह जाती हैं और अपनी सही प्रतिभा का उपयोग नहीं कर पातीं। इसप्रकार प्रतिभा को भट्टी में झोंकने वाली जगह होने के कारण ही वे रसोई को 'भटियारखाना' कहकर संबोधित करते थे।

3. वह कौन-सी घटना थी जिसके बारे में सुनने पर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हो पाया और न अपने कानों पर?

उत्तर

एक बार कॉलेज से प्रिंसिपल का पत्र आया कि लेखिका के पिताजी आकर मिलें और बताएँ की लेखिका की गतिविधियों के खिलाफ क्यों न अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए। पत्र पढ़कर पिताजी गुस्से से भन्नाते हुए कॉलेज गए। इससे लेखिका बहुत भयभीत हो गई। परन्तु प्रिंसिपल से मिलने तथा असली अपराध के पता चलने पर लेखिका के पिता को अपनी बेटी से कोई शिकायत नहीं रही। पिताजी के व्यवहार में परिवर्तन देख लेखिका को न तो अपने आँखों पर भरोसा हुआ और न ही अपने कानों पर विश्वास हुआ।

4. लेखिका की अपने पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर

लेखिका के अपने पिता के साथ अक्सर वैचारिक टकराहट हुआ करती थी -
(1) लेखिका के पिता यद्यपि स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी नहीं थे परन्तु वे स्त्रियों का दायरा चार दीवारी के अंदर ही सीमित रखना चाहते थे। परन्तु लेखिका खुले विचारों की महिला थी।
(2) लेखिका के पिता लड़की की शादी जल्दी करने के पक्ष में थे। लेकिन लेखिका जीवन की आकाँक्षाओं को पूर्ण करना चाहती थी।
(3) लेखिका का स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर भाषण देना उनके पिता को पसंद नहीं था।
(4) पिताजी का लेखिका की माँ के साथ अच्छा व्यवहार नहीं था। स्त्री के प्रति ऐसे व्यवहार को लेखिका अनुचित समझती थी।
(5) बचपन के दिनों में लेखिका के काले रंग रुप को लेकर उनके पिता का मन उनकी तरफ़ से उदासीन रहा करता था।

5. इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आंदोलन के परिदृश्य का चित्रण करते हुए उसमें मन्नू जी की भूमिका को रेखांकित कीजिए।

उत्तर

सन् 1946-47 ई. में समूचे देश में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ पूरे उफ़ान पर था। हर तरफ़ हड़तालें , प्रभात - फ़ेरियाँ, ज़ुलूस और नारेबाज़ी हो रही थी। घर में पिता और उनके साथियों के साथ होनेवाली गोष्ठियों और गतिविधियों ने लेखिका को भी जागरूक कर दिया था। प्राध्यापिका शीला अग्रवाल ने लेखिका को स्वतंत्रता - आंदोलन में सक्रिय रूप से जोड़ दिया। जब देश में नियम - कानून और मर्यादाएँ टूटने लगीं, तब पिता की नाराज़गी के बाद भी वे पूरे उत्साह के साथ आंदोलन में कूद पड़ीं। उनका उत्साह , संगठन-क्षमता और विरोध करने का तरीक़ा देखते ही बनता था। वे चौराहों पर बेझिझक भाषण, नारेबाज़ी और हड़तालें करने लगीं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भी सक्रिय भूमिका थी।

रचना और अभिव्यक्ति

6. लेखिका ने बचपन में अपने भाइयों के साथ गिल्ली डंडा तथा पतंग उड़ाने जैसे खेल भी खेले किंतु लड़की होने के कारण उनका दायरा घर की चारदीवारी तक सीमितथा। क्या आज भी लड़कियों के लिए स्थितियाँ ऐसी ही हैं या बदल गई हैं, अपने परिवेश के आधार पर लिखिए।

उत्तर

अपने समय में लेखिका को खेलने तथा पढ़ने की आज़ादी तो थी लेकिन अपने पिता द्वारा निर्धारित गाँव की सीमा तक ही। परन्तु आज स्थिति बदल गई है। आज लड़कियाँ एक शहर से दूसरे शहर शिक्षा ग्रहण करने तथा खेलने जाती हैं। ऐसा केवल भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि आज भारतीय महिलाएँ विदेशों तक, अंतरिक्ष तक जाकर दुनिया में अपने देश का नाम रौशन कर रही हैं। परन्तु इसके साथ दूसरा पहलू यह भी है की आज भी हमारे देश में कुछ लोग स्त्री स्वतंत्रता के पक्षधर नहीं हैं।

7. मनुष्य के जीवन में आस-पड़ोस का बहुत महत्व होता है। परंतु महानगरों में रहने वाले लोग प्राय: 'पड़ोस कल्चर' से वंचित रह जाते हैं। इस बारे में अपने विचार लिखिए।

उत्तर

आज मनुष्य के सम्बन्धों का क्षेत्र सीमित होता जा रहा है, मनुष्य आत्मकेन्द्रित होता जा रहा है। उसे अपने सगे सम्बन्धियों तक के बारे में अधिक जानकारी नहीं होती है। यही कारण है कि आज के समाज में पड़ोस कल्चर लगभग लुप्त होता जा रहा है। लोगों के पास समय का अभाव होता जा रहा है। मनुष्य के पास इतना समय नहीं है कि वो अपने पड़ोसियों से मिलकर उनसे बात-चीत करें।

पृष्ठ संख्या: 101

भाषा अध्यन

इस आत्मकथ्य में मुहावरों का प्रयोग करके लेखिका ने रचना को रोचक बनाया है। रेखांकित मुहावरों को ध्यान में रखकर कुछ और वाक्य बनाएँ -
(क) इस बीच पिता जी के एक निहायत दकियानूसी मित्र ने घर आकर अच्छी तरह पिता जी की लूउतारी
(ख) वे तो आगलगाकरचले गए और पिता जी सारे दिन भभकते रहे।
(ग) बस अब यही रह गया है कि लोग घर आकर थू-थूकरकेचले जाएँ।
(घ) पत्र पढ़ते ही पिता जी आग-बबूलाहो गए।

उत्तर

(क) लू उतारी - होमवर्क न करने से शिक्षक ने अच्छी तरह से छात्र की लू उतारी।
(ख) आगलगाना - कुछ मित्र ऐसे भी होते हैं जो घर में आग लगाने का काम करते हैं।
(ग) थू-थू करना - तुम्हारे इस तरह से ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने से पड़ोसी थू-थू करेंगे।
(घ) आग-बबूला  - मेरे स्कूल नहीं जाने से पिताजी आग-बबूला हो गए।


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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 15- स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन हिंदी

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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 15- स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन क्षितिज भाग-2 हिंदी 

महावीर प्रसाद दि्वेदी

पृष्ठ संख्या: 109

प्रश्न अभ्यास 

1. कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने क्या-क्या तर्क देकर स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया?

उत्तर

कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने अनेक तर्कों के द्वारा उनके विचारों का खंडन किया है -
1. प्राचीन काल में भी स्त्रियाँ शिक्षा ग्रहण कर सकती थीं। सीता, शकुंतला, रुकमणी, आदि महिलाएँ इसका उदाहरण हैं। वेदों, पुराणों में इसका प्रमाण भी मिलता है।
2. प्राचीन युग में अनेक पदों की रचना भी स्त्री ने की है।
3. यदि गृह कलह स्त्रियों की शिक्षा का ही परिणाम है तो मर्दों की शिक्षा पर भी प्रतिबंध लगाना चाहिए। क्योंकि चोरी, डकैती, रिश्वत लेना, हत्या जैसे दंडनीय अपराध भी मर्दों की शिक्षा का ही परिणाम है।
4. जो लोग यह कहते हैं कि पुराने ज़माने में स्त्रियाँ नहीं पढ़ती थीं। वे या तो इतिहास से अनभिज्ञ हैं या फिर समाज के लोगों को धोखा देते हैं।
5. अगर ऐसा था भी कि पुराने ज़माने की स्त्रियों की शिक्षा पर रोक थी तो उस नियम को हमें तोड़ देना चाहिए क्योंकि ये समाज की उन्नति में बाधक है।

2. 'स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं' - कुतर्कवादियों की इस दलील का खंडन दि्वेदीजी ने कैसे किया है, अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर

दि्वेदीजी ने कुतर्कवादियों की स्त्री शिक्षा विरोधी दलीलों का जोरदार खंडन किया है। अनर्थ स्त्रियों द्वारा होते हैं, तो पुरुष भी इसमें पीछे नहीं हैं। अतः पुरुषों के भी विद्यालय बंद कर दिए जाने चाहिए।
दूसरा तर्क यह है कि शंकुतला का दुष्यंत को कुवचन कहना या अपने परित्याग पर सीता का राम के प्रति क्रोध दर्शाना उनकी शिक्षा का परिणाम न हो कर उनकी स्वाभाविकता थी।
तीसरा तर्क व्यंग पूर्ण तर्क है - 'स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट और पुरूषों के लिए पीयूष का घूँट ! ऐसी दलीलों और दृष्टान्तों के आधार पर कुछ लोग स्त्रियों को अपढ़ रखकर भारतवर्ष का गौरव बढ़ाना चाहते हैं।

पृष्ठ संख्या: 110

3. द्विवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा विरोघी कुतर्कों का खंडन करने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया है - जैसे 'यह सब पापी पढ़ने का अपराध है। न वे पढ़तीं, न वे पूजनीय पुरूषोंका मुकाबला करतीं।' आप ऐसे अन्य अंशों को निबंध में से छाँटकर समझिए और लिखिए।

उत्तर

स्त्री शिक्षा से सम्बन्धित कुछ व्यंग्य जो द्विवेदी जी द्वारा दिए गए हैं -
1. स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट और पुरुषों के लिए पीयूष का घूँट! ऐसी ही दलीलों और दृष्टांतो के आधार पर कुछ लोग स्त्रियों को अपढ़ रखकर भारतवर्ष का गौरव बढ़ाना चाहते हैं।
2. स्त्रियों का किया हुआ अनर्थ यदि पढ़ाने ही का परिणाम है तो पुरुषों का किया हुआ अनर्थ भी उनकी विद्या और शिक्षा का ही परिणाम समझना चाहिए।
3. "आर्य पुत्र, शाबाश! बड़ा अच्छा काम किया जो मेरे साथ गांधर्व-विवाह करके मुकर गए। नीति, न्याय, सदाचार और धर्म की आप प्रत्यक्ष मूर्ति हैं!"
4. अत्रि की पत्नी पत्नी-धर्म पर व्याख्यान देते समय घंटो पांडित्य प्रकट करे, गार्गी बड़े-बड़े ब्रह्मवादियों को हरा दे, मंडन मिश्र की सहधर्मचारिणी शंकराचार्य के छक्के छुड़ा दे! गज़ब! इससे अधिक भयंकर बात और क्या हो सकेगी!
5. जिन पंडितों ने गाथा-सप्तशती, सेतुबंध-महाकाव्य और कुमारपालचरित आदि ग्रंथ प्राकृत में बनाए हैं, वे यदि अपढ़ और गँवार थे तो हिंदी के प्रसिद्ध से भी प्रसिद्ध अख़बार का संपादक को इस ज़माने में अपढ़ और गँवार कहा जा सकता है; क्योंकि वह अपने ज़माने की प्रचलित भाषा में अख़बार लिखता है।

4. पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना क्या उनके अपढ़ होने का सबूत है - पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

पुराने ज़माने की स्त्रियों द्वारा प्राकृत में बोलना उनके अपढ़ होने का प्रमाण नहीं है, क्योंकि बोलचाल की भाषा प्राकृत ही थी जिसे सुशिक्षितों द्वारा भी बोला जाता था। जिस तरह आज हिंदी जन साधारण की भाषा है। यदि हिंदी बोलना और लिखना अपढ़ और अशिक्षित होने का प्रमाण नहीं है, तो उस समय प्राकृत बोलने वाले भी अनपढ़ या गँवार नहीं हो सकते। इसका एकमात्र कारण यही है कि प्राकृत उस समय की सर्वसाधारण की भाषा थी। अत: उस समय की स्त्रियों का प्राकृत भाषा में बोलना उनके अपढ़ होने का सबूत नहीं है।

5. परंपरा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ाते हों - तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर

परम्पराएँ मानव-जीवन को सुन्दर व सुखमय बनाने के लिए होती हैं। प्रकृति ने मानव को स्त्री और पुरूष दो वर्गों में विभाजित किया है।  सृष्टि में दोनों की समान भागीदारी है। प्रकृति की ओर से कोई भेदभाव नहीं किया गया है। स्त्री हर क्षेत्र में पुरूषों की बराबरी कर रही है। स्त्री-पुरूष परस्पर मिलकर परिवार और समाज को बेहतर बना सकते हैं। इस कारण दोनों का प्रत्येक क्षेत्र में समान योगदान होता है। जहाँ तक परम्परा प्रश्न है, परम्पराओं का स्वरुप पहले से बदल गया है। अतः परम्परा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री-पुरूष की समानता को बढ़ाते हैं।

6. तब की शिक्षा प्रणाली और अब की शिक्षा प्रणाली में क्या अंतर है? स्पष्ट करें।

उत्तर

पहले की शिक्षा प्रणाली और आज की शिक्षा प्रणाली में बहुत परिवर्तन आया है। तब की शिक्षा प्रणाली में स्त्रियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता था पहले शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यार्थियों को गुरुकुल में रहना ज़रूरी था। परन्तु आज शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यालय है। पहले शिक्षा एक वर्ग तक सीमित थी। लेकिन आज किसी भी जाति के तथा वर्ग के लोग शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। आज की शिक्षा प्रणाली में स्त्री-पुरूषों की शिक्षा में अंतर नहीं किया जाता है। पहले की शिक्षा में जहाँ जीवन-मूल्यों की शिक्षा पर बल दिया जाता था वहीँ आज व्यवसायिक तथा व्यावहारिक शिक्षा पर बल दिया जाता है। गुरु-परम्परा भी लगभग समाप्त सी हो चली है।

रचना और अभिव्यक्ति

7. महावीर प्रसाद द्विवेदी का निबंध उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है, कैसे?

उत्तर

हावीरप्रसाद द्विवेदी जी ने अपने निबंध "स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन" में स्त्रियों की शिक्षा के प्रति अपने विचार प्रकट किये हैं। उस समय समाज में स्त्री शिक्षा पर प्रतिबंध था। इस निबंध में द्विवेदी जी ने स्त्रियों के भी पढ़ने-लिखने का ज़ोरदार समर्थन किया है। स्त्री-शिक्षा के विरोधियों के सभी कुतर्कों का उन्होंने बहुत ही कड़े शब्दों में खंडन किया हैं। उन्होंने पुराने ज़माने में स्त्री-शिक्षा पर प्रतिबन्ध होने की मिथ्या धारणा का सप्रमाण गलत सिद्ध किया है। स्त्री-शिक्षा को अनर्थकारी बताने के कुतर्क को भी उन्होंने अनुचित एवं गलत प्रमाणित किया है। साथ ही यह भी विचार प्रकट किया है कि स्त्री-शिक्षा के उपरान्त ही समाज की उन्नति संभव है। स्त्री को भी पुरूष के ही समान अधिकार दिये जाने की बात को तर्कपूर्ण ढंग से सिद्ध करते हुए द्विवेदी जी ने इस निबंध में अपनी उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचय दिया है।

8. दि्वेदी जी की भाषा-शैली पर एक अनुच्छेद लिखिए।

उत्तर

द्विवेदी जी ने अपने निबंध में विषयानुरूप गंभीर, सरस एवं प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग किया है। विचारपूर्ण निबंध होने के कारण इसमें उदाहरण, व्यंग एवं सामसिक शैली का प्रयोग किया गया है। इन्होंने व्याकरण तथा वर्तनी की अशुद्धियों पर विशेष ध्यान दिया। इन्होने अपने निबंध में संस्कृत निष्ठ तत्सम शब्दों, के साथ साथ देशज, तद्भव तथा उर्दू और अंग्रेजी शब्दों का भी प्रयोग किया है।

भाषा अध्यन

9. निम्नलिखित अनेकार्थी शब्दों को ऐसे वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए जिनमें उनके एकाधिक अर्थ स्पष्ट हों - चाल, दल, पत्र, हरा, पर, फल, कुल

उत्तर

चाल
राधा को पुरस्कार देना, उसकी चाल है। (चालाकी)
अपनी चाल को तेज़ करो। (चलना)

दल
उस दल का नेता बहुत अच्छे स्वभाव वाला है। (टोली)
फूल का दल बहुत कोमल है। (पंखुड़ियाँ)

पत्र
मैंने अपने भाई को एक चिट्ठी लिखी। (चिट्ठी)
पहले भोजपत्र पर लिखा जाता था। (पत्ती)

हरा
पत्तों का रंग हरा होता है। (रंग)
इतनी गर्मी होने के बाद भी तालाब का पानी अभी भी हरा-भरा है। (ताज़ा)

पर
तुमने उस पक्षी के पर क्यों काट दिए। (पंख)
तुम उसे नहीं जानते पर मैं उसे अच्छी तरह से जानती हूँ। (लेकिन)

फल
इस पेड़ के फल बहुत मीठे हैं। (खाने वाला फल)
उसके कार्य का फल बहुत बुरा था। (परिणाम)
कुल
ऊँचें कुल में जन्म लेने से कोई ऊँचा नहीं हो जाता। (वंश)
हमारे देश की कुल आबादी कितनी होगी? (पूरा)


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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 16- नौबतखाने में इबादत हिंदी

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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 16- नौबतखाने में इबादत क्षितिज भाग-2 हिंदी 

यतीन्द्र मिश्र

पृष्ठ संख्या: 122

प्रश्न अभ्यास 

1. शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है?

उत्तर

मशहूर शहनाई वादक "बिस्मिल्ला खाँ" का जन्म डुमराँव गाँव में ही हुआ था। इसके अलावा शहनाई बजाने के लिए रीड का प्रयोग होता है। रीड अंदर से पोली होती है, जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है। रीड, नरकट से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यत: सोन नदी के किनारे पाई जाती है। इसी कारण शहनाई की दुनिया में डुमराँव का महत्त्व है।

2. बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?

उत्तर 

शहनाई ऐसा वाद्य है जिसे मांगलिक अवसरों पर ही बजाया जाता है। उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ शहनाई वादन के क्षेत्र में अद्वितीय स्थान रखते हैं। इन्हीं कारणों के वजह से बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है।

3. सुषिर-वाद्यों से क्या अभिप्राय है? शहनाई को 'सुषिर वाद्यों में शाह' की उपाधि क्यों दी गई होगी?

उत्तर

सुषिर-वाद्यों से अभिप्राय है फूँककर बजाये जाने वाले वाद्ध।
शहनाई एक अत्यंत मधुर स्वर उत्पन्न करने वाला वाद्ध है। फूँककर बजाए जाने वाले वाद्धों में कोई भी वाद्ध ऐसा नहीं है जिसके स्वर में इतनी मधुरता हो। शहनाई में समस्त राग-रागिनियों को आकर्षक सुरों में बाँधा जा सकता है। इसलिए शहनाई की तुलना में अन्य कोई सुषिर-वाद्य नहीं टिकता और शहनाई को 'सुषिर-वाद्यों के शाह' की उपाधि दी गयी होगी।

4. आशय स्पष्ट कीजिए -

(क) 'फटा सुर न बख्शें। लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।

उत्तर

यहाँ बिस्मिल्ला खाँ ने सुर तथा कपड़े (धन-दौलत) से तुलना करते हुए सुर को अधिक मूल्यवान बताया है। क्योंकि कपड़ा यदि एक बार फट जाए तो दुबारा सिल देने से ठीक हो सकता है। परन्तु किसी का फटा हुआ सुर कभी ठीक नहीं हो सकता है। और उनकी पहचान सुरों से ही थी इसलिए वह यह प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर उन्हें अच्छा कपड़ा अर्थात् धन-दौलत दें या न दें लेकिन अच्छा सुर अवश्य दें।

(ख) 'मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ।'

उत्तर 

बिस्मिल्ला खाँ पाँचों वक्त नमाज़ के बाद खुदा से सच्चा सुर पाने की प्रार्थना करते थे। वे खुदा से कहते थे कि उन्हें इतना प्रभावशाली सच्चा सुर दें और उनके सुरों में दिल को छूने वाली ताकत बख्शे उनके शहनाई के स्वर आत्मा तक प्रवेश करें और उसे सुनने वालों की आँखों से सच्चे मोती की तरह आँसू निकल जाए। यही उनके सुर की कामयाबी होगी।

5. काशी में हो रहे कौन-से परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे?

उत्तर

काशी से बहुत सी परंपराएँ लुप्त हो गई है। संगीत, साहित्य और अदब की परंपर में धीरे-धीरे कमी आ गई है। अब काशी से धर्म की प्रतिष्ठा भी लुप्त होती जा रही है। वहाँ हिंदु और मुसलमानों में पहले जैसा भाईचारा नहीं है। पहले काशी खानपान की चीज़ों के लिए विख्यात हुआ करता था। परन्तु अब उनमें परिवर्तन हुए हैं। काशी की इन सभी लुप्त होती परंपराओं के कारण बिस्मिल्ला खाँ दु:खी थे।

6. पाठ में आए किन प्रसंगों के आधार पर आप कह सकते हैं कि -
(क) बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।
(ख) वे वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इनसान थे।

उत्तर

(क) बिस्मिल्ला खाँ मिली जुली संस्कृति के प्रतीक थे। उनका धर्म मुस्लिम था। मुस्लिम धर्म के प्रति उनकी सच्ची आस्था थी परन्तु वे हिंदु धर्म का भी सम्मान करते थे। मुहर्रम के महीने में आठवी तारीख के दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते थे व दालमंडी मे फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए, नौहा बजाते जाते थे।
इसी तरह इनकी श्रद्धा काशी विश्वनाथ जी के प्रति भी अपार है। वे जब भी काशी से बाहर रहते थे। तब विश्वनाथ व बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके बैठते थे और उसी ओर शहनाई बजाते थे। वे अक्सर कहा करते थे कि काशी छोड़कर कहाँ जाए, गंगा मइया यहाँ, बाबा विश्वनाथ यहाँ, बालाजी का मंदिर यहाँ। मरते दम तक न यह शहनाई छूटेगी न काशी।

(ख) बिस्मिल्ला खाँ एक सच्चे इंसान थे। वे धर्मों से अधिक मानवता को महत्व देते थे, हिंदु तथा मुस्लिम धर्म दोनों का ही सम्मान करते थे, भारत रत्न से सम्मानित होने पर भी उनमें घमंड नहीं था, दौलत से अधिक सुर उनके लिए ज़रुरी था।

7. बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख करें जिन्होंने उनकी संगीत साधना को समृद्ध किया?

उत्तर

बिस्मिल्ला खाँ के जीवन में कुछ ऐसे व्यक्ति और कुछ ऐसी घटनाएँ थीं जिन्होंने उनकी संगीत साधना को प्रेरित किया।
1. बालाजी मंदिर तक जाने का रास्ता रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से होकर जाता था। इस रास्ते से कभी ठुमरी, कभी टप्पे, कभी दादरा की आवाज़ें आती थी। इन्हीं गायिका बहिनों को सुनकर उनके मन में संगीत की ललक जागी।
2. बिस्मिल्ला खाँ जब सिर्फ़ चार साल के थे तब छुपकर अपने नाना को शहनाई बजाते हुए सुनते थे। रियाज़ के बाद जब उनके नाना उठकर चले जाते थे तब अपनी नाना वाली शहनाई ढूँढते थे और उन्हीं की तरह शहनाई बजाना चाहते थे।
3. मामूजान अलीबख्श जब शहनाई बजाते-बजाते सम पर आ जाते तो बिस्मिल्ला खाँ धड़ से एक पत्थर ज़मीन में मारा करते थे। इस प्रकार उन्होंने संगीत में दाद देना सीखा।
4. बिस्मिल्ला खाँ कुलसुम की कचौड़ी तलने की कला में भी संगीत का आरोह-अवरोह देखा करते थे।
5. बचपन में वे बालाजी मंदिर पर रोज़ शहनाई बजाते थे। इससे शहनाई बजाने की उनकी कला दिन-प्रतिदिन निखरने लगी।

रचना और अभिव्यक्ति

8. बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया?

उत्तर

बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की निम्नलिखित बातें हमें प्रभावित करती हैं -
1. ईश्वर के प्रति उनके मन में अगाध भक्ति थी।
2. मुस्लिम होने के बाद भी उन्होंने हिंदु धर्म का सम्मान किया तथा हिंदु-मुस्लिम एकता को कायम रखा।
3. भारत रत्न की उपाधि मिलने के बाद भी उनमें घमंड कभी नहीं आया।
4. वे एक सीधे-सादे तथा सच्चे इंसान थे।
5. उनमें संगीत के प्रति सच्ची लगन तथा सच्चा प्रेम था।
6. वे अपनी मातृभूमि से सच्चा प्रेम करते थे।

9. मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर

मुहर्रम पर्व के साथ बिस्मिल्ला खाँ और शहनाई का सम्बन्ध बहुत गहरा है। मुहर्रम के महीने में शिया मुसलमान शोक मनाते थे। इसलिए पूरे दस दिनों तक उनके खानदान का कोई व्यक्ति न तो मुहर्रम के दिनों में शहनाई बजाता था और न ही संगीत के किसी कार्यक्रम में भाग लेते थे। आठवीं तारीख खाँ साहब के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होती थी। इस दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते और दालमंड़ी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए, नौहा बजाते हुए जाते थे। इन दिनों कोई राग-रागिनी नहीं बजाई जाती थी। उनकी आँखें इमाम हुसैन और उनके परिवार के लोगों की शहादत में नम रहती थीं।

10. बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे, तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर

बिस्मिल्ला खाँ भारत के सर्वश्रेष्ठ शहनाई वादक थे। वे अपनी कला के प्रति पूर्णतया समर्पित थे। उन्होंने जीवनभर संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की इच्छा को अपने अंदर जिंदा रखा। वे अपने सुरों को कभी भी पूर्ण नहीं समझते थे इसलिए खुदा के सामने वे गिड़गिड़ाकर कहते - ''मेरे मालिक एक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ।'' खाँ साहब ने कभी भी धन-दौलत को पाने की इच्छा नहीं की बल्कि उन्होंने संगीत को ही सर्वश्रेष्ठ माना। वे कहते थे- ''मालिक से यही दुआ है - फटा सुर न बख्शें। लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।"
इससे यह पता चलता है कि बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे।

भाषा अध्यन

निम्नलिखित मिश्र वाक्यों के उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए -
(क) यह ज़रुर है कि शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं।
(ख) रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है।
(ग) रीड नरकट से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यत: सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है।
(घ) उनको यकीन है, कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा।
(ङ) हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है जिसकी गमक उसी में समाई है।
(च) खाँ साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही है कि पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा।

उत्तर

(क) शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। (संज्ञा आश्रित उपवाक्य)
(ख) जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है। (विशेषण आश्रित उपवाक्य)
(ग) जो डुमराँव में मुख्यत: सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। (विशेषण आश्रित उपवाक्य)
(घ) कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा। (संज्ञा आश्रित उपवाक्य)
(ङ) जिसकी गमक उसी में समाई है। (विशेषण आश्रित उपवाक्य)
(च) पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा। (संज्ञा आश्रित उपवाक्य)

पृष्ठ संख्या: 123

12. निम्नलिखित वाक्यों को मिश्रित वाक्यों में बदलिए-
(क) इसी बालसुलभ हँसी में कई यादें बंद हैं।
(ख) काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।
(ग) धत्! पगली ई भारतरत्न हमको शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं।
(घ) काशी का नायाब हीरा हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।

उत्तर

(क) यह वही बालसुलभ हँसी है जिसमें कई यादें बंद हैं।
(ख) काशी में संगीत का आयोजन होता है जो कि एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।
(ग) धत्! पगली ई भारतरत्न हमको लुंगिया पे नाहीं, शहनईया पे मिला है, ।
(घ) यह जो काशी का नायाब हीरा है वह हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।


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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 17- संस्कृति हिंदी

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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 17- संस्कृति क्षितिज भाग-2 हिंदी 

भदंत आनंद कौसल्यायन

पृष्ठ संख्या: 130

प्रश्न अभ्यास 

1. लेखक की दृष्टि में 'सभ्यता' और 'संस्कृति' की सही समझ अब तक क्यों नहीं बन पाई है?

उत्तर

लेखक की दृष्टि में सभ्यता और संस्कृति शब्दों का प्रयोग बहुत ही मनमाने ढ़ंग से होता है। इनके साथ अनेक विशेषण लग जाते हैं; जैसे - भौतिक-सभ्यता और आध्यात्मिक-सभ्यता इन विशेषणों के कारण शब्दों का अर्थ बदलता रहता है। और इन विशेषणों के कारण इन शब्दों की समझ और गड़बड़ा जाती है। इसी कारण लेखक इस विषय पर अपनी कोई स्थायी सोच नहीं बना पा रहे हैं।

2. आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज क्यों मानी जाती है ? इस खोज के पीछे रही प्रेरणा के मुख्य स्रोत क्या रहे होंगे ?

उत्तर

आग का आविष्कार अपने-आप में एक बहुत बड़ा अविष्कार है क्योंकि उस समय मनुष्य में बुद्धि शक्ति का अधिक विकास नहीं हुआ था। समय की दृष्टि से यह बहुत बड़ी खोज थी।
सम्भवत: आग की खोज का मुख्य कारण रौशनी की ज़रुरत तथा पेट की ज्वाला रही होगी। अंधेरे में जब मनुष्य कुछ नहीं देख पा रहा था तब उसे रौशनी की ज़रुरत महसूस हुई होगी, कच्चा माँस का स्वाद अच्छा न लगने के कारण उसे पका कर खाने की इच्छा से आग का आविष्कार हुआ होगा।

पृष्ठ संख्या: 131

3. वास्तविक अर्थों में 'संस्कृत व्यक्ति' किसे कहा जा सकता है?

उत्तर

वास्तविक अर्थों में 'संस्कृत व्यक्ति' उसे कहा जा सकता है जिसमें अपनी बुद्धि तथा योग्यता के बल पर कुछ नया करने की क्षमता हो। जिस व्यक्ति में ऐसी बुद्धि तथा योग्यता जितनी अधिक मात्रा में होगी वह व्यक्ति उतना ही अधिक संस्कृत होगा। जैसे-न्यूटन, न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का आविष्कार किया। वह संस्कृत मानव था। आज भौतिक विज्ञान के विद्यार्थियों को इस विषय पर न्यूटन से अधिक सभ्य कह सकते हैं, परन्तु संस्कृत नहीं कह सकते।

 4. न्यूटन को संस्कृत मानव कहने के पीछे कौन से तर्क दिए गए हैं ? न्यूटन द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतो एवं ज्ञान की कई दूसरी बारीकियों को जानने वाले लोग भीन्यूटन की तरह संस्कृत नहीं कहला सकते, क्यों ?

उत्तर

न्यूटन ने अपनी बुद्धि -शक्ति से गुरत्वाकर्षण के रहस्य की खोज की इसलिए उसे संस्कृत मानव कह सकते हैं। आज मनुष्य के पास भले ही इस विषय पर अधिक जानकारी होगी पर उसमें वो बुद्धि शक्ति नहीं है जो न्यूटन के पास थी वह केवल न्यूटन द्वारा दी गई जानकारी को बढ़ा रहा है। इसलिए वह न्यूटन से अधिक सभ्य है, संस्कृत नहीं।

5. किन महत्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सुई-धागे का आविष्कार हुआ होगा?

उत्तर

सुई-धागे का आविष्कार शरीर को ढ़कने तथा सर्दियों में ठंड से बचने के उद्देश्य से हुआ होगा आवश्यकतानुसार शरीर को सजाने की जरूरत महसूस हुई होगी इसलिए कपड़े के दो टुकडों को एक करके जोड़ने के लिए सुई-धागे का आविष्कार हुआ होगा।

6. मानव संस्कृत एक अविभाज्य वस्तु है। किन्हीं दो प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जब -
(क) मानव संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ की गई।

उत्तर

1. वर्ण व्यवस्था के नाम पर मानव संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ की जाती हैं।
2. धर्म के नाम पर भी मानव संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ की जाती हैं जिसका परिणाम हम हिंदुस्तान तथा पाकिस्तान नामक दो देश के रूप में देखते हैं।

(ख) जब मानव संस्कृति ने अपने एक होने का प्रमाण दिया।

उत्तर

1. संसार के मज़दुरों को सुखी देखने के लिए कार्ल मार्क्स ने अपना सारा जीवन दुख में बिता दिया।
2. सिद्धार्थ ने अपना घर केवल मानव कल्याण के लिए छोड़ दिया।

7. आशय स्पष्ट कीजिए -

(क) मानव की जो योग्यता उससे आत्म-विनाश के साधनों का आविष्कार कराती है, हम उसे उसकी संस्कृति कहें या असंस्कृति?

उत्तर

मानव हमेशा से ही अपनी सुरक्षा के लिए चिंतित रहा है इसलिए उसने मानवहित और आत्महित की दृष्टि से अनेकों आविष्कार किए हैं। यह आविष्कार जब मानव कल्याण की भावना से जुड़ जाता है, तो हम उसे संस्कृति कहते हैं। जब मानव की आविष्कार करने की योग्यता, भावना, प्रेरणा और प्रवृत्ति का उपयोग विनाश करने के लिए किया जाता है तब यह असंस्कृति बन जाती है। ऐसी भावनाओं को हम संस्कृति कदापि नहीं कह सकते।
रचना और अभिव्यक्ति

8. लेखक ने अपने दृष्टिकोण से सभ्यता और संस्कृति की एक परिभाषा दी है। आप सभ्यता और संस्कृति के बारे में क्या सोचते हैं, लिखिए।

उत्तर

जैसा कि लेखक ने कहा है कि आज सभ्यता और संस्कृति का प्रयोग अनेक अर्थों में किया जाता है। मनुष्य के रहन-सहन का तरीका सभ्यता के अंतर्गत आता है। संस्कृति जीवन का चिंतन और कलात्मक सृजन है, जो जीवन को समृद्ध बनाती है। सभ्यता को संस्कृति का विकसित रुप भी कह सकते हैं।

भाषा अध्यन

9. निम्नलिखित सामासिक पदों का विग्रह करके समास का भेद भी लिखिए -
गलत-सलत
आत्म-विनाश
महामानव
पददलित
हिन्दू-मुसलिम
यथोचित
सप्तर्षि
सुलोचना
उत्तर

1. गलत-सलत - गलत और सलत (द्वंद समास)
2. महामानव - महान है जो मानव (कर्म धारय समास)
3. हिंदू-मुसलिम - हिंदू और मुसलिम (द्वंद समास)
4. सप्तर्षि - सात ऋषियों का समूह (द्विगु समास)
5. आत्म-विनाश - आत्मा का विनाश (तत्पुरुष समास)
6. पददलित - पद से दलित (तत्पुरुष समास)
7. यथोचित - जो उचित हो (अव्ययीभाव समास)
8. सुलोचना - सुंदर लोचन है जिसके (कर्मधारय समास)


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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 1- माता का आँचल हिंदी

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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 1- माता का आँचल कृतिका भाग-1 हिंदी 

शिवपूजन सहाय

पृष्ठ संख्या: 8

प्रश्न अभ्यास 

1. प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है?

उत्तर

माता से बच्चे का रिश्ता ममता पर आधारित होता है जबकि पिता से स्नेहाधारित होता है । बच्चे को विपदा के समय अत्याधिक ममता और स्नेह की आवश्यकता थी। भोलानाथ का अपने पिता से अपार स्नेह था पर जब उस पर विपदा आई तो उसे जो शांति व प्रेम की छाया अपनी माँ की गोद में जाकर मिली वह शायद उसे पिता से प्राप्त नहीं हो पाती। माँ के आँचल में बच्चा स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है।

2. आपके विचार से भोलनाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है?

उत्तर

क्षण में रोना क्षण में हँसना बच्चों का स्वभाव होता है । भोलानाथ भी बच्चे की स्वाभाविक आदत के अनुसार अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलने में रूचि लेता है। उसे अपनी मित्र मंडली के साथ तरह-तरह की क्रीड़ा करना अच्छा लगता है। वे उसके हर खेल व हुदगड़ के साथी हैं। अपने मित्रों को मजा करते देख वह स्वयं को रोक नहीं पाता। इसलिए रोना भूलकर वह दुबारा अपनी मित्र मंडली में खेल का मजा उठाने लगता है। उसी मग्नावस्था में वह सिसकना भी भूल जाता है।

4. भोलनाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न है?

उत्तर

भोलानाथ और उसके साथी खेल के लिए आँगन व खेतों में पड़ी चीज़ों को ही अपने खेल का आधार बनाते हैं | उनके लिए मिट्टी के बर्तन, पत्थर, पेड़ों के फलें, गीली मिट्टी, घर के छोटे-मोटे सामान आदि वस्तुएँ होती थी जिनसे वह खेलकर खुश रहते थे | परंतु आज के बालक जो खेल खेलते हैं वे इनसे पूर्णतः भिन्न हैं | हमारे खेलने के लिए क्रिकेट का सामान, किचेन सेट, डॉक्टर सेट, तरह-तरह के वीडियो गेम, व कंप्यूटर गेम आदि बहुत सी चीज़ें हैं जो इनकी तुलना में एकदम अलग है | भोलानाथ जैसे बच्चों की खेलने की सामग्री आसानी से व सुलभता से बिना मूल्य खर्च किये ही प्राप्त हो जाती हैं जबकी आज के बच्चों की खेल सामग्री बाज़ार से खरीदना पड़ता है |

5. पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों?

उत्तर 

1. भोलनाथ जब अपने पिता की गोद में बैठा हुआ आईने में अपने प्रतिबिम्ब को देखकर खुश होता रहता है। वहीं पिता द्वारा रामायण पाठ छोड़कर देखने पर लजाकर व मुस्कुराकर आईना रख देना । यहाँ बच्चों का अपने अक्ष के प्रति जिज्ञासा भाव बड़ा ही मनोहर लगता है और उसका शर्माकर आईना रखना बहुत ही सुन्दर वर्णन है।
2. बच्चों द्वारा बारात का स्वांग रचते हुए दुल्हन को लिवा लाना व पिता द्वारा दुल्हन का घुघंट उटाने पर सब बच्चों का भाग जाना, बच्चों के खेल में समाज के प्रति उनका रूझान झलकता है तो दूसरी और उनकी नाटकीयता, स्वांग उनका बचपना।
3. बच्चे का अपने पिता के साथ कुश्ती लड़ना। शिथिल होकर बच्चे के बल को बढ़ावा देना और पछाड़ खा कर गिर जाना। बच्चे का अपने पिता की मूंछ खींचना और पिता का इसमें प्रसन्न होना बड़ा ही आनन्दमयी प्रसंग है।

6. इस उपन्यास अंश में तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति का चित्रण है। आज की ग्रामीण संस्कृति में आपको किस तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं।

उत्तर

तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति में किसी प्रकार के दिखावे अभाव था ।लोग बहुत ही सीधे-सादे हुआ करते थे ।लोग परस्पर मिल-जुल कर रहा करते थे।किसी भी पर्व -त्योहार को पूरे उत्साह के साथ मनाते थे ।गाँव में बचपन से खेल - खेल में ही वैसी सभी बातों को सिखाया जाता है जिससे बच्चे बड़े होकर अपने कार्य-क्षेत्र में प्रवीण हो सकें और व्यवहारिक भी बन सकें।
आज की ग्रामीण संस्कृति में काफी बदलाव आए हैं । अब गाँव में दूषित राजनीति के पाँव पसारने के कारण लोगों के अन्दर जाति,धर्म,सम्प्रदाय और अमीर-गरीब जैसे भेद पनप गए हैं ।आज के गाँव में लगभग सारी शहरी सुविधाएँ लोगों को प्राप्त हो रही हैं। बिजली,पानी,स्कूल,अस्पताल,सड़क और खेती के वैज्ञानिक संसाधन उपलब्ध हैं।

पृष्ठ संख्या: 9

8. यहाँ माता-पिता का बच्चे के प्रति जो वात्सल्य व्यक्त हुआ है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर

भोलानाथ के पिता अपने पुत्र के प्रति बहुत स्नेह रखते थे । सुबह से लेकर शाम तक जितना भी समय मिलता उसे वे अपने भोलानाथ के साथ बिताते थे ।भोलानाथ को सुबह जगाना,नहलाना ,अपने साथ पूजा के लिए बिठाना , पने साथ मछलियों को चारा खिलाने ले जाना और उसके खेलों में शामिल होना उनके गहरे लगाव को बताता है।
भोलानाथ की माता वात्सल्य व ममत्व से भरपूर माता है। भोलानाथ को भोजन कराने के लिए उनका भिन्न-भिन्न तरह से स्वांग रचना एक स्नेही माता की ओर संकेत करता है। जो अपने पुत्र के भोजन को लेकर चिन्तित है। दूसरी ओर उसको लहुलुहान व भय से काँपता देखकर माँ भी स्वयं रोने व चिल्लाने लगती है। अपने पुत्र की ऐसी दशा देखकर माँ काह्रदय भी दुखी हो जाता है। माँ का ममतालु मन इतना भावुक है कि वह बच्चे को डर के मारे काँपता देखकर रोने लगती है। उसकी ममता पाठक को बहुत प्रभावित करती है।

9. माता का अँचल शीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्य शीर्षक सुझाइए।

उत्तर

लेखक ने इस कहानी का नाम माँ का आँचल उपयुक्त रखा है। इस कहानी में माँ के आँचल की सार्थकता को समझाने का प्रयास किया गया है। भोलानाथ को माता व पिता दोनों से बहुत प्रेम मिला है। उसका दिन पिता की छत्रछाया में ही शुरू होता है। पिता उसकी हर क्रीड़ा में सदैव साथ रहते हैं, विपदा होने पर उसकी रक्षा करते हैं। परन्तु जब वह साँप को देखकर डर जाता है तो वह पिता की छत्रछाया के स्थान पर माता की गोद में छिपकर ही प्रेम व शान्ति का अनुभव करता है। माता उसके भय से भयभीत है, उसके दु:ख से दुखी है, उसके आँसु से खिन्न है। वह अपने पुत्र की पीड़ा को देखकर अपनी सुधबुध खो देती है। वह बस इसी प्रयास में है कि वह अपने पुत्र की पीड़ा को समाप्त कर सके। माँ का यही प्रयास उसके बच्चे को आत्मीय सुख व प्रेम का अनुभव कराता है।
इसके लिए एक उपयुक्त शीषर्क और हो सकता था माँ की ममता क्योंकि कहानी में माँ का स्नेह ही प्रधान है।

10. बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं?

उत्तर

बच्चे माता−पिता के प्रति अपने प्रेम की अभिव्यक्ति कई तरह से करते हैं :--
1. माता−पिता की गोद में बैठकर या पीठ पर सवार होकर।
2. माता−पिता के साथ विभिन्न प्रकार की बातें करके अपना प्यार व्यक्त करते हैं।
3. वे अपने माता−पिता से रो-धोकर या ज़िद करके कुछ माँगते हैं फिर बाद में अपना प्रेम अलग अलग तरीके से प्रकाशित करते हैं।  
4. माता−पिता को कहानी सुनाने या कहीं घुमाने ले जाने की या अपने साथ खेलने को कहकर ।
5. माता−पिता को अपने दोस्तों के बारे में बताकर या किसी रिश्तेदार के बारे में पूछ्कर ।

11. इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है वह आपके बचपन की दुनिया से किस तरह भिन्न है?

उत्तर 

यह कहानी उस समय की कहानी प्रस्तुत करती हैं जब बच्चों के पास खेलने के लिए अत्याधिक साधन नहीं होते थे। वे लोग अपने खेल प्रकृति से ही प्राप्त करते थे और उसी प्रकृति के साथ खेलते थे। उनके लिए मिट्टी, खेत, पानी, पेड़, मिट्टी के बर्तन आदि साधन थे।
परन्तु आज के बच्चों की दुनिया इन बच्चों से भिन्न है। आज के बच्चे टी.वी., कम्प्यूटर आदि में ही अपना समय व्यतीत करते हैं या फिर क्रिकेट, बेडमिन्टन, चाकॅलेट, पिज़ा आदि में ही अपना बचपन बिता देते हैं।


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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 2- जॉर्ज पंचम की नाक हिंदी

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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 2- जॉर्ज पंचम की नाक कृतिका भाग-2 हिंदी 

कमलेश्वर

पृष्ठ संख्या: 15

प्रश्न अभ्यास 

1. सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है वह उनकी किस मानसिकता को दर्शाती है।

उत्तर

सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है, वह उनकी गुलाम और औपनिवेशिक मानसिकता को प्रकट करती है। सरकारी लोग उस जॉर्ज पंचम के नाम से चिंतित है जिसने न जाने कितने ही कहर ढहाए। उसके अत्याचारों को याद न कर उसके सम्मान में जुट जाते हैं। सरकारी तंत्र अपनी अयोग्यता,अदूरदर्शिता, मूर्खता और चाटुकारिता को दर्शाता है।

2. रानी एलिजाबेथ के दरज़ी की परेशानी का क्या कारण था? उसकी परेशानी को आप किस तरह तर्कसंगत ठहराएँगे?

उत्तर

रानी एलिज़ाबेथ के दरजी की परेशानी का कारण रानी की वेशभूषा थी। दरजी यह सोच कर परेशान हो रहा था की भारत-पाकिस्तान और नेपाल यात्रा के समय रानी किस अवसर पर क्या पहनेंगी।
दरजी की परेशानी तर्कसंगत थी। यह इसलिए क्योंकि रानी इस यात्रा पर अपने देश का प्रतिनिधित्व कर रहीं थी। अर्थात उनके कपड़ों का उनकी मर्यादा के अनुकूल होना जरूरी था। रानी की वेशभूषा तैयार करने में यदि उससे कोई चूक हो जाती, तो उसे रानी के क्रोध का सामना करना पड़ता।

 3. 'और देखते ही देखते नयी दिल्ली का काया पलट होने लगा' - नयी दिल्ली के काया पलट के लिए क्या-क्या प्रयत्न किए गए होंगे ?

उत्तर 

दिल्ली की काया पलटने के लिए पर्यटक स्थलों का उद्धार किया गया होगा। दिल्ली की खस्ता हो चुकी सड़कों का पुर्नउद्धार किया गया होगा, पूरे दिल्ली शहर में साफ सफाई के लिए विशेष योजनाएँ तैयार की गई होगी। उन दिनों पानी या बिजली की समस्याएँ ना उत्पन्न हो उसके लिए कारगर कार्य किए गए होंगे। आंतकवादी घटनाएँ या फिर इंग्लैंड विरोधी कार्यवाही या धरने न हो उसके लिए सुरक्षा के पूरे इंतजाम किए गए होंगे।

4. आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे और खान-पान संबंधी आदतों आदि के वर्णन का दौर चल पड़ा है -

(क) इस प्रकार की पत्रकारिता के बारे में आपके क्या विचार हैं?

उत्तर

आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे और खान-पान सम्बंधि आदतों आदि के वर्णन का दौर चल पड़ा है वह न केवल अनावश्यक है, बल्की समाज की उन्नति के लिए बाधक भी है। यह एक निम्न स्तर की भटकी हुई पत्रकारिता है। पत्रकारिता लोकतंत्र का वह मुख्य स्तम्भ है, जो समाज के अधिकारों के प्रहरी के रूप में समाज तथा राष्ट्र दोनों के विकास मैं महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। किन्तु इस प्रकार की पत्रकारिता जिससे सामान्य ज्ञान नहीं बढ़ता, न ही इससे आम आदमी के जीवन में कोइ लेना-देना है, समाज को सिर्फ हानि पहुँचाती है। यह व्यक्ति-विशेष की निजी जीवन में अनुचित ताक-झाँक है जो हमारी सभ्यता व संस्कृति के विपरीत है।

(ख) इस तरह की पत्रकारिता आम जनता विशेषकर युवा पीढ़ी पर क्या प्रभाव डालती है ? 

उत्तर 

इस प्रकार की पत्रकारिता आम जनता विशेषकर युवा पीढ़ी पर अत्यंत नकारात्मक और हानिकारक प्रभाव डालती है। यह युवा पीढ़ी के चारों ओर चर्चित हस्तियों की जीवन-शैली का ऐसा भ्रम-जाल बुन देती है, जिसमें उलझकर युवा पीढ़ी और आम जनता अपने लक्ष्यों और कर्तव्यों से भटककर अपराध के दल-दल में फँस जाती है। राष्ट्र को सही दिशा में चलाने के लिए यह आवश्यक है कि पत्रकारिता का प्रत्येक विषय समस्त नागरिकों के हित में हो न की लोगों को पथ भ्रष्ट करने के लिए हो।

पृष्ठ संख्या: 16

5. जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को पुन: लगाने के लिए मूर्तिकार ने क्या-क्या यत्न किए?

उत्तर

जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को पुनः लगाने के लिए मूर्तिकार ने  सर्वप्रथम जॉर्ज पंचम की नाक के निर्माण में प्रयुक्त पत्थर को खोजने का प्रयास किया। इसके लिए उसने देश भर में जा-जाकर खोज की, पर असफल रहा। वह पत्थर विदेशी था।  उसने देश भर में घूम-घूमकर शहीद नेताओं की मूर्तियों की नाक का नाप लिया, ताकि उन मूर्तियों में से किसी की नाक को जॉर्ज पंचम की लाट पर लगाया जा सके, किंतु सभी नाकें आकार में बड़ी निकलीं।  इसके पश्चात् उसने 1942 में बिहार सेक्रेटरिएट के सामने शहीद बच्चों की मूर्ती की नाक का नाप लिया, किंतु वे भी बड़ी निकलीं। अंत में उसने जिंदा नाक लगाने का निर्णय किया।

6. प्रस्तुत कहानी में जगह-जगह कुछ ऐसे कथन आए हैं जो मौजूदा व्यवस्था पर करारी चोट करते हैं। उदाहरण के लिए 'फाईलें सब कुछ हज़म कर चुकी हैं।' 'सब हुक्कामों ने एक दूसरे की तरफ़ ताका।' पाठ में आए ऐसे अन्य कथन छाँटकर लिखिए।

उत्तर

मौजूदा व्यवस्था पर चोट करने वाले कथन निम्नलिखित हैं-
1. सभापति ने तैश में आकर कहा, "लानत है आपकी अकल पर। विदेशों की सारी चीज़ें हम अपना चुके हैं- दिल-दिमाग तौर तरीके और रहन-सहन, जब हिन्दुस्तान में बाल डांस तक मिल जाता है तो पत्थर क्यों नहीं मिल सकता?"
2. मूर्तिकार ने अपनी नई योजना पेश की "चूँकि नाक लगाना एकदम ज़रूरी है, इसलिए मेरी राय है कि चालीस करोड़ में से कोई एक ज़िदा नाक काटकर लगा दी जाए..."
3. किसी ने किसी से नहीं कहा, किसी ने किसी को नहीं देखा पर सड़के जवान हो गई, बुढ़ापे की धूल साफ़ हो गई।

7. नाक मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का द्योतक है। यह बात पूरी व्यंग्य रचना में किस तरह उभरकर आई है? लिखिए।

उत्तर

नाक, इज्जत-प्रतिष्ठा, मान-मर्यादा और सम्मान का प्रतीक है। शायद यही कारण है कि इससे संबंधित कई मुहावरे प्रचलित हैं जैसे - नाक कटना, नाक रखना, नाक का सवाल,नाक रगड़ना आदि। इस पाठ में नाक मान सम्मान व प्रतिष्ठा का द्योतक है। यह बात लेखक ने विभिन्न बातों द्वारा व्यक्त की हैं। रानी एलिज़ाबेथ अपने पति के साथ भारत दौरे पर आ रही थीं। ऐसे मौके में जॉर्ज पंचम की नाक का न होना उसकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने जैसा था। यह लोग विदेशियों की नाक को ऊँचा करने को अपने नाक का सवाल बना लेते हैं। यहाँ तक की जॉर्ज पंचम की नाक का सम्मान भारत के महान नेताओं एवं साहसी बालकों के सम्मान से भी ऊँचा था।

8. जॉर्ज पंचम की लाट पर किसी भी भारतीय नेता, यहाँ तक कि भारतीय बच्चे की नाक फिट न होने की बात से लेखक किस ओर संकेत करना चाहता है।

उत्तर

यहाँ लेखक ने भारतीय समाज के महान नेताओं व साहसी बालकों के प्रति अपना प्रेम प्रस्तुत किया है। हमारे समाज में यह विशेष आदरणीय लोग हैं। इनका स्थान जॉर्ज पंचम से सहस्त्रों गुणा बड़ा है जॉर्ज पंचम ने भारत को कुछ नहीं दिया परन्तु इन्होनें अपने बलिदान व त्याग से भारत को एक नीवं दी उसे आज़ादी दी है। इसलिए इनकी नाक जॉर्ज पंचम की नाक से सहस्त्रों गुणा ऊँची है।

9. अखबारों ने जिंदा नाक लगने की खबर को किस तरह से प्रस्तुत किया?

उत्तर

अखबारों ने इस खबर पर खास ध्यान नहीं दिया पर उन्होनें इतना लिखा की नाक का मसला हल हो गया है और राजपथ पर इंडिया गेट के पास वाली जॉर्ज पंचम की लाट कि नाक लग गई है। इसके अतिरिक्त अखबारों में नाक के विषय को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई ना ही किसी समारोह के होने की खबर को छापा गया।

10. "नयी दिल्ली में सब था... सिर्फ़ नाक नहीं थी।" इस कथन के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?

उत्तर

इस कथन के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि रानी की स्वागत तथा उनकी प्रसन्नता हेतु दिल्ली में हर प्रकार की तैयारियाँ की गयी थीं। साफ़-सफाई, सजावट, सुख-सुविधा से लेकर सुरक्षा की सभी व्यवस्था की गयी थीं, किन्तु इन सबकी बावजूद भी जॉर्ज पंचम की लाट की नाक, जो संभवतः अंग्रेजों के मान-सम्मान का प्रतीक है, नहीं थी।
इसका एक अर्थ यह होता है कि भारत में अपना शासन खो चुके अंग्रेजों के प्रति लोगों के मन में अब कोई मान-सम्मान नहीं बचा था, और साथ ही इस से हमारे प्रशासन की कमज़ोर एवं त्रुटिपूर्ण व्यवस्था का भी पता चलता है।

11. जॉर्ज पंचम की नाक लगने वाली खबर के दिन अखबार चुप क्यों थे?

उत्तर

ब्रिटिश सरकार को दिखाने के लिए किसी ज़िदा इनसान कि नाक जॉर्ज पंचम की लाट कि नाक पर लगाना किसी को पसंद नहीं आया। इसके विरोध में सभी अखबार चुप रहें। यदि वे सच छापदेते तो पूरी दुनिया क्या कहती। दुनिया के लोग जब जानते कि आज़ादी के बाद भी दिल्ली में बैठे हुक़्मरान आज भी अंग्रेजों के आगे अपनी दुम हिलाते हैं।


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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 3- साना-साना हाथ जोड़ि हिंदी

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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 3- साना-साना हाथ जोड़ि कृतिका भाग-2 हिंदी 

मधु कांकरिया

पृष्ठ संख्या: 29

प्रश्न अभ्यास 

1. झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को किस तरह सम्मोहित कर रहा था?

उत्तर

रात के अंधकार में सितारों से नहाया हुआ गंतोक लेखिका को जादुई अहसास करवा रहा था। उसे यह जादू ऐसा सम्मोहित कर रहा था कि मानो उसका आस्तित्व स्थगित सा हो गया हो, सब कुछ अर्थहीन सा था। उसकी चेतना शून्यता को प्राप्त कर रही थी। वह सुख की अतींद्रियता में डूबी हुई उस जादुई उजाले में नहा रही थी जो उसे आत्मिक सुख प्रदान कर रही थी।

2. गंतोक को 'मेहनतकश बादशाहों का शहर' क्यों कहा गया?

उत्तर

गंतोक को 'मेहनतकश बादशाहों का शहर' इसलिए कहा गया क्योंकि यहाँ के लोग बहुत मेहनती हैंऔर यह उनकी मेहनत ही है जिसकी वजह से आज भी गंतोक अपने पुराने स्वरुप को कायम रखे हुए है। पहाड़ी क्षेत्र के कारण पहाड़ों को काटकर रास्ता बनाना पड़ता है। पत्थरों पर बैठकर औरतें पत्थर तोड़ती हैं। उनके हाथों में कुदाल व हथौड़े होते हैं। कईयों की पीठ पर बँधी टोकरी में उनके बच्चे भी बँधे रहते हैं और वे काम करते रहते हैं। हरे-भरे बागानों में युवतियाँ बोकु पहने चाय की पत्तियाँ तोड़ती हैं। बच्चे भी अपनी माँ के साथ काम करते हैं। यहाँ जीवन बेहद कठिन है पर यहाँ के लोगों ने इन कठिनाईयों के बावजूद भी शहर के हर पल को खुबसूरत बना दिया है

3. कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना किन अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है?

उत्तर

सफ़ेद बौद्ध पताकाएँ शांति व अहिंसा की प्रतीक हैं, इन पर मंत्र लिखे होते हैं। यदि किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती है तो उसकी आत्मा की शांति के लिए 108 श्वेत पताकाएँ फहराई जाती हैं। कई बार किसी नए कार्य के अवसर पर रंगीन पताकाएँ फहराई जाती हैं। इसलिए ये पताकाएँ, शोक व नए कार्य के शुभांरभ की ओर संकेत करते हैं।

4. जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जनजीवन के बारे में क्या महत्वपूर्ण जानकारियाँ दीं, लिखिए।

उत्तर

जितेन नार्गे ने लेखिका को निम्नलिखित महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी -
प्रकृति-सिक्किम एक पहाड़ी इलाका है। यहाँ जगह -जगह पर पाईन और धूपी के खूबसूरत नुकीले पेड़ हैं। रास्ते वीरान,संकरे,जलेबी की तरह घुमावदार हैं। थोड़ी -थोड़ी डूडी पर झरने बह रहे हैं। घाटियों का सौंदर्य देखते ही बनता हैं। नार्गे ने बताया कि वहाँ की खुबसूरती,स्विट्ज़रलैंड की खुबसूरती से तुलना की जा सकती है।

भौगोलिक स्थिति- गंतोक से 149 किलोमीटर की दूरी पर यूमथांग है। यहाँ फूलों से लदी वादियाँ हैं। रास्ते में 'कवी लोंग स्टॉक' है,जहाँ 'गाइड' फिल्म की शूटिंग हुई थी। थोड़ा ऊपर हिमालय पर्वत है। रास्ते में 'सेवेन सिस्टर्स वाटरफॉल' है। पहाड़ी रास्तों पर फहराई गई सफ़ेद धव्जा बुद्धिस्ट की मृत्यु तथा शान्ति की प्रतिक है और रंगीन धव्जा किसी नए कार्य की शुरूआत दर्शाते हैं।

जनजीवन- यहाँ के लोग बहुत मेहनती हैं। स्त्रियाँ व बच्चे सब काम करते हैं। स्त्रियाँ स्वेटर बुनती हैं,घर संभालती हैं,खेती करती हैं,पत्थर तोड़-तोड़ कर सड़कें बनाती हैं। चाय की पत्तियाँ चुनने बाग़ में जाती हैं। बच्चों को अपनी कमर पर कपड़े में बाँधकर रखती हैं। बच्चे पढ़ने के लिए तीन-चार किलोमीटर पहाड़ी चढ़ाई चढ़कर स्कूल जाते हैं। शाम को अपनी माँओं के साथ काम करते हैं। उनका जीवन बहुत श्रमसाध्य है। उसने बताया कि सिक्किम के लोग अन्य भारतीयों की तरह घुमते चक्र में अपनी आस्थाएँ तथा अंधविश्वास रखते हैं।

पृष्ठ संख्या: 30

5. लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका को पूरे भारत की आत्मा एक-सी क्यों दिखाई दी ?

उत्तर

लेखिका सिक्किम में घूमती हुई कवी-लोंग स्टॉक नाम की जगह पर गई। लोंग स्टॉक के घूमते चक्र के बारे में जितेन ने बताया कि यह धर्म चक्र है, इसको घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं। मैदानी क्षेत्र में गंगा के विषय में ऐसी ही धारणा है। लेखिका को लगा कि चाहे मैदान हो या पहाड़, तमाम वैज्ञानिक प्रगतियों के बावजूद इस देश की आत्मा एक जैसी है। यहाँ लोगों की आस्थाएँ, विश्वास, पाप-पुण्य की अवधारणाएँ और कल्पनाएँ एक जैसी हैं। यही विश्वास पूरे भारत को एक ही सूत्र में बाँध देता है।

6. जितेन नार्गे की गाइड की भूमिका के बारे में विचार करते हुए लिखिए कि एक कुशल गाइड में क्या गुण होते हैं?

उत्तर

नार्गे एक कुशल गाइड था। वह अपने पेशे के प्रति पूरा समर्पित था। उसे सिक्किम के हर कोने के विषय में भरपूर जानकारी प्राप्त थी इसलिए वह एक अच्छा गाइड था।
एक कुशल गाइड में निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है -
1. एक गाइड अपने देश व इलाके के कोने−कोने से भली भाँति परिचित होता है, अर्थात् उसे सम्पूर्ण जानकारी होनी चाहिए।
2. उसे वहाँ की भौगोलिक स्थिति, जलवायु व इतिहास की सम्पूर्ण जानकारी होनी चाहिए।
3. एक कुशल गाइड को चाहिए कि वो अपने भ्रमणकर्ता के हर प्रश्नों के उत्तर देने में सक्षम हो।
4. एक कुशल गाइड को अपनी विश्वसनीयता का विश्वास अपने भ्रमणकर्ता को दिलाना आवश्यक है। तभी वह एक आत्मीय रिश्ता कायम कर अपने कार्य को कर सकता है।
5. गाइड को कुशल व बुद्धिमान व्यक्ति होना आवश्यक है। ताकि समय पड़ने पर वह विषम परिस्थितियों का सामना अपनी कुशलता व बुद्धिमानी से कर सके व अपने भ्रमणकर्ता की सुरक्षा कर सके।
6. गाइड को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि भ्रमणकर्ता की रूचि पूरी यात्रा में बनी रहे ताकि भ्रमणकर्ता के भ्रमण करने का प्रयोजन सफल हो। इसके लिए उसे हर उस छोटे बड़े प्राकृतिक रहस्यों व बातों का ज्ञान हो जो यात्रा को रूचिपूर्ण बनाए।
7. एक कुशल गाइड की वाणी को प्रभावशाली होना आवश्यक है इससे पूरी यात्रा प्रभावशाली बनती है और भ्रमणकर्ता की यात्रा में रूचि भी बनी रहती है।

7. इस यात्रा-वृत्तांत में लेखिका ने हिमालय के जिन-जिन रूपों का चित्र खींचा है, उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर

इस यात्रा वृतांत में लेखिका ने हिमालय के पल-पल परिवर्तित होते रुप को देखा है। ज्यों-ज्यों ऊँचाई पर चढ़ते जाएँ हिमालय विशाल से विशालतर होता चला जाता है। हिमालय कहीं चटक हरे रंग का मोटा कालीन ओढ़े हुए, तो कहीं हल्का पीलापन लिए हुए प्रतीत होता है। चारों तरफ़ हिमालय की गहनतम वादियाँ और फूलों से लदी घाटियाँ थी। कहीं प्लास्टर उखड़ी दिवार की तरह पथरीला और देखते-ही-देखते सब कुछ समाप्त हो जाता है मानो किसी ने जादू की छडी घूमा दी हो। कभी बादलों की मोटी चादर के रूप में,सब कुछ बादलमय दिखाई देता है तो कभी कुछ और। कटाओ से आगे बढ़ने पर पूरी तरह बर्फ से ढके पहाड़ दिख रहे थे। चारों तरफ दूध की धार की तरह दिखने वाले जलप्रपात थे तो वहीं नीचे चाँदी की तरह कौंध मारती तिस्ता नदी। जिसने लेखिका के ह्रदय को आनन्द से भर दिया। स्वयं को इस पवित्र वातावरण में पाकर भावविभोर हो गई जिसने उनके ह्रदय को काव्यमय बना दिया।

8. प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को कैसी अनुभूति होती है?

उत्तर

प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरुप को देखकर लेखिका को लगा कि इस सारे परिदृश्य को वह अपने अंदर समेट ले।  लेखिका चित्रलिखित सी 'माया' और 'छाया 'के अनूठे खेल को भर-भर आँखों से देखती जा रही थी। उसे लगा कि प्रकृति उसे सयानी बनाने के लिए जीवन रहस्यों करने पर तुली हुई है।  इन अद्भुत और अनूठे नजारों ने लेखिका को पल भर में ही जीवन की शक्ति का अनुभव करा दिया। उसे ऐसा लगने लगा जैसे वह देश व काल की पारापार से दूर,बहती धारा बनकर बह रही हो और उसकी मन के सारा मैल और वासनाएँ इस निर्मल धारा में बह कर नष्ट हो गई हो।

9. प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को कौन-कौन से दृश्य झकझोर गए ?

उत्तर

लेखिका हिमालय यात्रा के दौरान प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनन्द में डूबी हुई थी परन्तु जीवन के कुछ सत्य जो वह इस आनन्द में भूल चूकी थी, अकस्मात् वहाँ के जनजीवन ने उसे झकझोर दिया। वहाँ कुछ पहाड़ी औरतें जो मार्ग बनाने के लिए पत्थरों पर बैठकर पत्थर तोड़ रही थीं। उनके आटे सी कोमल काया पर हाथों में कुदाल व हथोड़े थे। कईयों की पीठ पर बच्चे भी बँधे हुए थे। इनको देखकर लेखिका को बहुत दुख हुआ कि ये हम सैलानियों के भ्रमण के लिए हिमालय की इन दुगर्म घाटियों में मार्ग बनाने का कार्य कर रही हैं। जहाँ पर जान कब जाए कोई नहीं जानता। इनके लिए यह भोजन मात्र पाने का साधन है और हमारे जैसे सौलानियों के लिए मनोरजंन का। दूसरी बार उसकी जादूई निद्रा तब टूटी जब उसने पहाड़ी बच्चों को उनसे लिफट माँगते देखा। सात आठ साल के बच्चों को रोज़ तीन−साढ़े तीन किलोमीटर का सफ़र तय कर स्कूल पढ़ने जाना पढ़ता है। स्कूल के पश्चात् वे बच्चे मवेशियों को चराते हैं तथा लकड़ियों के गट्ठर भी ढोते हैं। तीसरे लेखिका ने जब चाय की पत्तियों को चूनते हुए सिक्किमी परिधानों में ढकी हुई लड़कियों को देखा। बोकु पहने उनका सौंदर्य इंद्रधनुष छटा बिखेर रहा था। जिसने उसे मंत्रमुग्ध कर दिया था। उन्हें मेहनत करती हुई इन बालाओं का सौंदर्य असह्रय लग रहा था।

10. सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में किन-किन लोगों का योगदान होता है, उल्लेख करें।

उत्तर

सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव कराने में सबसे बड़ा हाथ एक कुशल गाइड का होता है। जो अपनी जानकारी व अनुभव से सैलानियों को प्रकृति व स्थान के दर्शन कराता है। कुशल गाइड इस बात का ध्यान रखता है कि भ्रमणकर्ता की रूचि पूरी यात्रा में बनी रहे ताकि भ्रमणकर्ता के भ्रमण करने का प्रयोजन सफल हो। अपने मित्रों व सहयात्रियों का साथ पाकर यात्रा और भी रोमांचकारी व आनन्दमयी बन जाती है। वहाँ के स्थानीय निवासियों व जन जीवन का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है। उनके द्वारा ही इस छटा के सौंदर्य को बल मिलता है क्योंकि यदि ये ना हों तो वो स्थान नीरस व बेजान लगने लगते हैं। तथा सरकारी लोग जो व्यवस्था में संलग्न होते उनका महत्त्वपूर्ण योगदान होता हैं।

11. "कितना कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती हैं।" इस कथन के आधार पर स्पष्ट करें कि आम जनता की देश की आर्थिक प्रगति में क्या भूमिका है?

उत्तर

पत्थरों पर बैठकर श्रमिक महिलाएँ पत्थर तोड़ती हैं। उनके हाथों में कुदाल व हथौड़े होते हैं। कइयों की पीठ पर बँधी टोकरी में उनके बच्चे भी बँधे रहते हैं और वे काम करते रहते हैं। हरे-भरे बागानों में युवतियाँ बोकु पहने चाय की पत्तियाँ तोड़ती हैं। बच्चे भी अपनी माँ के साथ काम करते हैं। इन्ही की भाँति आम जनता भी अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के प्रयास में जीविका रूप में देश और समाज के लिए बहुत कुछ करते हैं। सड़के, पहाड़ी मार्ग, नदियों, पुल आदि बनाना। खेतों में अन्न उपजाना, कपड़ा बुनना, खानों,कारखानों में कार्य करके अपनी सेवाओं से राष्ट्र आर्थिक सदृढ़ता प्रदान करके उसकी रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाते हैं।
हमारे देश की आम जनता जितना श्रम करती है, उसे उसका आधा भी प्राप्त नहीं होता परन्तु फिर भी वो असाध्य कार्य को अपना कर्तव्य समझ कर करते हैं। वो समाज का कल्याण करते हैं परन्तु बदले में उन्हें स्वयं नाममात्र का ही अंश प्राप्त होता है। देश की प्रगति का आधार यहीं आम जनता है जिसके प्रति सकारात्मक आत्मीय भावना भी नहीं होती। यदि ये आम जनता ना हो तो देश की प्रगति का पहिया रुक जाएगा।

12. आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति के साथ किस तरह का खिलवाड़ किया जा रहा है। इसे रोकने में आपकी क्या भूमिका होनी चाहिए।

उत्तर

आज की पीढ़ी के द्वारा प्रकृति को प्रदूषित किया जा रहा है। हमारे कारखानों से निकलने वाले जल में खतरनाक कैमिकल व रसायन होते हैं जिसे नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है। साथ में घरों से निकला दूषित जल भी नदियों में ही जाता है। जिसके कारण हमारी नदियाँ लगातार दूषित हो रही हैं। अब नदियों का जल पीने लायक नहीं रहा है। इसका जीवन्त उदाहरण यमुना नदी है। जो आज एक नाले में बदल गई है। वनों की अन्धांधुध कटाई से मृदा का कटाव होने लगा है जो बाढ़ को आमंत्रित कर रहा है। दूसरे अधिक पेड़ों की कटाई ने वातावरण में कार्बनडाइ आक्साइड की अधिकता बढ़ा दी है जिससे वायु प्रदुषित होती जा रही है। हमें चाहिए कि हम मिलकर इस समस्या का समाधान निकाले। हम सबको मिलकर अधिक से अधिक पेड़ों को लगाना चाहिए। पेड़ों को काटने से रोकने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए ताकि वातावरण की शुद्धता बनी रहे।
हमें नादियों की निर्मलता व स्वच्छता को बनाए रखने के लिए कारखानों से निकलने वाले प्रदूर्षित जल को नदियों में डालने से रोकना चाहिए। नदियों की स्वच्छता बनाए रखने के लिए, लोगों की जागरूकता के लिए अनेक कार्यक्रमों का आयोजन होना चाहिए।

13. प्रदूषण के कारण स्नोफॉल में कमी का जिक्र किया गया है। प्रदूषण के और कौन-कौन से दुष्परिणाम सामने आये हैं, लिखें।

उत्तर

प्रदूषण के कारण वायुमण्डल में कार्बनडाइआक्साइड की अधिकता बढ़ गई है जिसके कारण वायु प्रदूषित होती जा रही है। इससे साँस की अनेकों बीमारियाँ उत्पन्न होने लगी है। जलवायु पर भी इसका बुरा प्रभाव देखने को मिल रहा है जिसके कारण कहीं पर बारिश की अधिकता हो जाती है तो किसी स्थान पर सूखा पड़ जाता है। कहीं पर बारिश नाममात्र की होती है जिस कारण गर्मी में कमी नहीं होती। मौसम पर तो इसका असर साफ दिखाई देने लगा है।
गर्मी के मौसम में गर्मी की अधिकता देखते बनती है। कई बार तो पारा अपने सारे रिकार्ड को तोड़ चुका होता है। सर्दीयों के समय में या तो कम सर्दी पड़ती है या कभी सर्दी का पता ही नहीं चलता। ये सब प्रदुषण के कारण ही सम्भव हो रहा है। जलप्रदूषण के कारण स्वच्छ जल पीने को नहीं मिल पा रहा है और पेट सम्बन्धी अनेकों बीमारियाँ उत्पन्न हो रही हैं।

14. 'कटाओ' पर किसी दूकान का न होना उसके लिए वरदान है। इस कथन के पक्ष में अपनी राय व्यक्त कीजिए।

उत्तर

'कटाओ' पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है क्योंकि अभी यह पर्यटक स्थल नहीं बना। यदि कोई दुकान होती तो वहाँ सैलानियों का अधिक आगमन शुरू हो जाएगा। और वे जमा होकर खाते-पीते, गंदगी फैलाते, इससे गंदगी तथा वहाँ पर वाहनों के अधिक प्रयोग से वायु में प्रदूषण बढ़ जाएगा। लेखिका को केवल यही स्थान मिला जहाँ पर वह स्नोफॉल देख पाई। इसका कारण यही था कि वहाँ प्रदूषण नहीं था। अतः 'कटाओ 'पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए एक प्रकार से वरदान ही है।

15. प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था किस प्रकार की है ?

उत्तर

प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था नायाब ढंग से की है। प्रकृति सर्दियों में बर्फ के रूप में जल संग्रह कर लेती है और गर्मियों में पानी के लिए जब त्राहि-त्राहि मचती है,तो उस समय यही बर्फ शिलाएँ पिघलकर जलधारा बन के नदियों को भर देती है। सचमुच प्रकृति ने जल संचय की कितनी अद्भुत व्यवस्था की है।

16. देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी किस तरह की कठिनाइयों से जूझते हैं? उनके प्रति हमारा क्या उत्तरदायित्व होना चाहिए?

उत्तर

देश की सीमा पर,जहाँ तापमान गर्मी में भी माइनस 15 डिग्री सेलसियस होता है, उस कड़कड़ाती ठंड फ़ौजी पहरा देते हैं जब कि हम वहाँ पर एक मिनट भी नहीं रूक सकते। हमारे फ़ौजी सर्दी तथा गर्मी में वहीं रहकर देश की रक्षा करते रहते हैं ताकि हम चैन की नींद सो सकें। ये जवान हर पल कठिनाइयों से झूझते हैं और अपनी जान हथेली पर रखकर जीते हैं।
हमें सदा उनकी सलामती की दुआ करनी चाहिए। उनके परिवारवालों के साथ हमेशा सहानुभूति, प्यार व सम्मान के साथ पेश आना चाहिए।


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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 4- एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! हिंदी

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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 4- एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! कृतिका भाग-2 हिंदी 

शिवप्रसाद मिश्र 'रूद्र'

पृष्ठ संख्या: 41

प्रश्न अभ्यास

1. हमारी आज़ादी की लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग का योगदान भी कम नहीं रहा है। इस कहानी में ऐसे लोगों के योगदान को लेखक ने किस प्रकार उभारा है?

उत्तर

भारत की आज़ादी की लड़ाई में हर धर्म और वर्ग के लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था। इस कहानी में लेखक ने टुन्नू व दुलारी जैसे पात्रों के माध्यम से उस वर्ग को उभारने की कोशिश की है, जो समाज में हीन या उपेक्षित वर्ग के रूप में देखे जाते हैं। टुन्नू व दुलारी दोनों ही कजली गायक हैं। टुन्नू ने आज़ादी के लिए निकाले गए जलूसों में भाग लेकर व अपने प्राणों की आहूति देकर ये सिद्ध किया कि ये वर्ग मात्र नाचने या गाने के लिए पैदा नहीं हुए हैं अपितु इनके मन में भी आज़ादी प्राप्त करने का जोश है। इसी तरह दुलारी द्वारा रेशमी साड़ियों को जलाने के लिए देना भी एक बहुत बड़ा कदम था तथा इसी तरह जलसे में बतौर गायिका जाना व उसमें नाचना-गाना उसके योगदान की ओर इशारा करता है। लेखक ने इस प्रकार समाज के उपेक्षित लोगों के योगदान को स्वतंत्रता के आंदोलन में महत्त्वपूर्ण माना हैं।

2. कठोर ह्रदयी समझी जाने वाली दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर क्यों विचलित हो उठी?

उत्त्तर

दुलारी अपने कठोर स्वभाव के लिए प्रसिद्ध थी परन्तु दुलारी का स्वभाव नारियल की तरह था। वह एक अकेली स्त्री थी। इसलिए स्वयं की रक्षा हेतु वह कठोर आचरण करती थी। परन्तु अंदर से वह बहुत नरम दिल की स्त्री थी। टुन्नू, जो उसे प्रेम करता था, उसके लिए उसके ह्रदय में बहुत खास स्थान था परन्तु वह हमेशा टुन्नू को दुतकारती रहती थी क्योंकि टुन्नू उससे उम्र में बहुत छोटा था। परन्तु उसके मन में टुन्नू का एक अलग ही स्थान था उसने जान लिया था कि टुन्नू उसके शरीर का नहीं, बल्कि उसकी गायन-कला का प्रेमी था। फेंकू द्वारा टुन्नू की मृत्यु का समाचार पाकर उसका ह्रदय दर्द से फट पड़ा और आँखों से आँसूओं की धारा बह निकली। किसी के लिए ना पसीजने वाला ह्रदय आज चीत्कार कर रहा था। उसकी मृत्यु ने टुन्नू के प्रति उसके प्रेम को सबके समक्ष प्रस्तुत कर दिया उसने टुन्नू द्वारा दी गई खादी की धोती पहन ली।

3. कजली दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन क्यों हुआ करता होगा? कुछ और परंपरागत लोक आयोजनों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर 

उस समय यह आयोजन मात्र मंनोरंजन का साधन हुआ करता था। परन्तु फिर भी इनमें लोगों की प्रतिष्ठा का प्रश्न रहा करता था। इन कजली गायकों को बुलवाकर समारोह का आयोजन करवाया जाता था । अपनी प्रतिष्ठा को उसके साथ जोड़ दिया जाता था और यही ऐसे समारोहों की जान हुआ करते थे। उनकी हार जीत पर सब टिका हुआ होता था। भारत में तो विभिन्न स्थानों पर अलग−अलग रूपों में अनेकों समारोह किए जाते हैं; जैसे- उत्तर भारत में पहलवानी या कुश्ती का आयोजन, राजस्थान में लोक संगीत व पशु मेलों का आयोजन, पंजाब में लोकनृत्य व लोकसंगीत का आयोजन, दक्षिण में बैलों के दंगल व हाथी−युद्ध का आयोजन किया जाता है।

4. दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक - सांस्कृतिक दायरे से बाहर है फिर भी अति विशिष्ट है। इस कथन को ध्यान में रखते हुए दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर


दुलारी बेशक सामाजिक-सांस्कृतिक के दायरे से बाहर है। समाज के प्रतिष्ठित लोगों द्वारा इन प्रतिभावान व्यक्तियों व इनकी कलाओं को उचित सम्मान नहीं दिया गया है। लेकिन अपने व्यक्तित्व से इन्होंने अपना एक अलग नाम प्राप्त किया है, जो अतिविशिष्ट है। दुलारी की यही विशिष्टता उसे सबसे अलग करती है। ये इस प्रकार हैं -
प्रभावशाली गायिका − दुलारी एक प्रभावशाली गायिका है उसकी आवाज़ में मधुरता व लय का सुन्दर संयोजन है। पद्य में तो सवाल−जवाब करने में उसे कुशलता प्राप्त थी। उसका सामना अच्छे से अच्छा गायक भी नहीं कर पाता था।
देश के प्रति समर्पित − बेशक दुलारी प्रत्यक्ष रूप से स्वतन्त्रता संग्राम में ना कूदी हो पर वह अपने देश के प्रति समर्पित स्त्री थी।  उसने बिना हिचके फेंकू द्वारा दी रेशमी साड़ियों के बंडल को आदोलनकारियों को जलाने हेतु दे दिया।
समर्पित प्रेमिका − दुलारी एक समर्पित प्रेमिका थी। वह टुन्नू से मन ही मन प्रेम करती थी। परन्तु उसके जीते−जी उसने अपने प्रेम को कभी व्यक्त नहीं किया। उसकी मृत्यु ने उसके ह्दय में दबे प्रेम को आंसुओं के रूप में प्रवाहित कर दिया।
निडर स्त्री − दुलारी एक निडर स्त्री थी। वह किसी से नहीं डरती थी। दुलारी का अपना कोई नहीं था। वह अकेली रहती थी। अतः अपनी रक्षा हेतु उसने स्वयं को निडर बनाया हुआ था। इसी निडरता से उसने फेकूं की दी हुई साड़ी जुलूस में फेंक दी। टुन्नू की मृत्यु के पश्चात उसने अंग्रेज़ विरोधी समारोह में भाग लिया तथा गायन पेश किया।
स्वाभिमानी स्त्री − दुलारी एक स्वाभिमानी स्त्री थी। वह अपने सम्मान का समझौता करने के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी। उसने अकेले रहकर सम्मान से सर उठाकर जीना सीखा था। फेंकू की दी साड़ी भी उसने इसलिए फेंक दी थी।

5. दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय कहाँ और किस रूप में हुआ?

उत्तर

टुन्नू व दुलारी का परिचय भादों में तीज़ के अवसर पर खोजवाँ बाज़ार में हुआ था। जहाँ वह गाने के लिए बुलवाई गई थी। दुक्कड़ पर गानेवालियों में दुलारी का खासा नाम था। उससे पद्य में ही सवाल-जवाब करने की महारत हासिल थी। बड़े-बड़े गायक उसके आगे पानी भरते नज़र आते थे और यही कारण था कि कोई भी उसके सम्मुख नहीं आता था। उसी कजली दंगल में उसकी मुलाकात टुन्नू से हुई थी। उसने भी पद्यात्मक शैली में प्रश्न-उत्तर करने में कुशलता प्राप्त की थी। टुन्नू दुलारी की ओर हाथ उठकर चुनौती के रूप में ललकार उठा। दुलारी मुस्कुराती हुई मुग्ध होकर सुनती रही। टुन्नू ने दुलारी को भी अपने आगे नतमस्तक कर दिया था।

6. दुलारी का टुन्नू को यह कहना कहाँ तक उचित था - "तैं सरबउला बोल ज़िन्नगी में कब देखले लोट?...! "दुलारी से इस आक्षेप में आज के युवा वर्ग के लिए क्या संदेश छिपा है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

दुलारी का टुन्नू को यह कहना उचित था - "तैं सरबउला बोल ज़िन्दगी में कब देखने लोट?...! " क्योंकि टुन्नू अभी सोलह सत्रह वर्ष का है। उसके पिताजी गरीब पुरोहित थे जो बड़ी मुश्किल से गृहस्थी चला रहे थे। टुन्नू ने अब तक लोट (नोट) देखे नहीं। उसे पता नहीं कि कैसे कौड़ी-कौड़ी जोड़कर लोग गृहस्थी चलाते है। यहाँ दुलारी ने उन लोगों पर आक्षेप किया है जो असल ज़िन्दगी में कुछ करते नहीं मात्र दूसरों की नकल पर ही आश्रित होते हैं। उसके अनुसार इस ज़िन्दगी में कब क्या हो जाए कोई नहीं जानता। इस ज़िन्दगी में कब नोट या धन देखने को मिल जाए कोई कुछ नहीं जानता। इसलिए हर परिस्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए।

7. भारत के स्वीधनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू ने अपना योगदान किस प्रकार दिया?

उत्तर

विदेशी वस्त्रों के बाहिष्कार हेतु चलाए जा रहे आन्दोलन में दुलारी ने अपना योगदान रेशमी साड़ी व फेंकू द्वारा दिए गए रेशमी साड़ी के बंडल को देकर दिया। बेशक वह प्रत्यक्ष रूप में आन्दोलन में भाग नहीं ले रही थी फिर भी अप्रत्यक्ष रूप से उसने अपना योगदान दिया था। टुन्नू ने स्वतन्त्रता संग्राम में एक सिपाही की तरह अपना योगदान दिया था। उसने रेशमी कुर्ता व टोपी के स्थान पर खादी के वस्त्र पहनना आरम्भ कर दिया। अंग्रेज विरोधी आन्दोलन में वह सक्रिय रूप से भाग लेने लग गया था और इसी सहभागिता के कारण उसे अपने प्राणों का बालिदान देना पड़ा।

8. दुलारी और टुन्नू के प्रेम के पीछे उनका कलाकार मन और उनकी कला थी? यह प्रेम दुलारी को देश प्रेम तक कैसे पहुँचाता है?

उत्तर

दुलारी और टुन्नू के ह्रदय में एक दूसरे के प्रति अगाध प्रेम था और ये प्रेम उनकी कला के माध्यम से ही उनके जीवन में आया था। दुलारी ने टुन्नू के प्रेम निवेदन को कभी स्वीकारा नहीं परन्तु वह मन ही मन उससे बहुत प्रेम करती थी। वह यह भली भांति जानती थी कि टुन्नू का प्रेम शारीरिक ना होकर आत्मिय प्रेम था और टुन्नू की इसी भावना ने उसके मन में उसके प्रति श्रद्धा भावना भर दी थी। परन्तु उसकी मृत्यु के समाचार ने उसके ह्रदय पर जो आघात किया, वह उसके लिए असहनीय था। अंग्रेज अफसर द्वारा उसकी निर्दयता पूर्वक हत्या ने, उसके अन्दर के कलाकार को प्रेरित किया और उसने स्वतन्त्रता सेनानियों द्वारा आयोजित समारोह में अपने गायन से नई जान फूंक दी। यही से उसने देश प्रेम का मार्ग चुना।

9. जलाए जाने वाले विदेशी वस्त्रों के ढेर में अधिकाशं वस्त्र फटे-पुराने थे परंतु दुलारी द्वारा विदेशी मिलों में बनी कोरी साड़ियों का फेंका जाना उसकी किस मानसिकता को दर्शाता है?

उत्तर

आज़ादी के दीवानों की एक टोली जलाने के लिए विदेशी वस्त्रों का संग्रह कर रही थी। अधिकतर लोग फटे-पुराने वस्त्र दे रहे थे। दुलारी के वस्त्र बिलकुल नए थे। दुलारी द्वारा विदेशी वस्त्रों के ढेर में कोरी रेशमी साड़ियों का फेंका जाना यह दर्शाता है कि वह एक सच्ची हिन्दुस्तानी है, जिसके ह्रदय में देश के प्रति प्रेम व आदरभाव है। देश के आगे उसके लिए साड़ियों का कोई मूल्य नहीं है। उसके ह्रदय में उन रेशमी साड़ियों का मोह नहीं था। मोह था तो अपने देश के सम्मान का। वह उसकी सच्चे देश प्रेमी की मानसिकता को दर्शाता है।

10. "मन पर किसी का बस नहीं ; वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।" टुन्नू के इस कथन में उसका दुलारी के प्रति किशोर जनित प्रेम व्यक्त हुआ है परंतु उसके विवेक ने उसके प्रेम को किस दिशा की ओर मोड़ा?

उत्तर

टुन्नू दुलारी से प्रेम करता था। वह दुलारी से उम्र में बहुत ही छोटा था। वह मात्र सत्रह − सोलह साल का लड़का था। दुलारी को उसका प्रेम उसकी उम्र की नादानी के अलावा कुछ नहीं लगता था। इसलिए वह उसका तिरस्कार करती रहती थी। परन्तु इन वाक्यों ने जैसे एक अल्हड़ लड़के में प्रेम के प्रति सच्ची भावना देखी। उसका प्रेम शरीर से ना जुड़कर उसकी आत्मा से था। टुन्नू के द्वारा कहे वचनों ने दुलारी के ह्रदय में उसके आसन को और दृढ़ता से स्थापित कर दिया। टुन्नु के प्रति उसके विवेक ने उसके प्रेम को श्रद्धा का स्थान दे दिया। अब उसका स्थान अन्य कोई व्यक्ति नहीं ले सकता था।

11. 'एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा ! का प्रतीकार्थ समझाइए।

उत्तर

इस कथन का शाब्दिक अर्थ है कि इसी स्थान पर मेरी नाक की लौंग खो गई है, मैं किससे पूछूँ ? नाक में पहना जानेवाला लौंग सुहाग का प्रतीक है। दुलारी एक गौनहारिन है उसने अपने मन रूपी नाक में टुन्नू के नाम का लौंग पहन लिया है।
दुलारी की मनोस्थिति देखें तो जिस स्थान पर उसे गाने के लिए आमंत्रित किया गया था, उसी स्थान पर टुन्नू की मृत्यु हुई थी तो उसका प्रतीकार्थ होगा - इसी स्थान पर मेरा प्रियतम मुझसे बिछड़ गया है। अब मैं किससे उसके बारे में पूछूँ कि मेरा प्रियतम मुझे कहाँ मिलेगा? अर्थात् अब उसका प्रियतम उससे बिछड़ गया है, उसे पाना अब उसके बस में नहीं है।


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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 5- मैं क्यों लिखता हूँ? हिंदी

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NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 5- मैं क्यों लिखता हूँ? कृतिका भाग-2 हिंदी 

अज्ञेय

पृष्ठ संख्या: 45

प्रश्न अभ्यास 

1. लेखक के अनुसार प्रत्यक्ष अनुभव की अपेक्षा अनुभूति उनके लेखन में कहीं अधिक मदद करती है, क्यों?

उत्तर

लेखक के अनुसार प्रत्यक्ष अनुभव वह होता है जो हम घटित होते हुए देखते हैं परन्तु अनुभूति संवेदना और कल्पना के सहारे उस सत्य को आत्मसात् कर लेते हैं परिणामस्वरूप सामने घटित न होने वाली घटनाएँ भी आँखों के समक्ष ज्वलंत प्रकाश बन जाती हैं जिसे लिखकर ही अपनी विवशता से छुटकारा पाया जा सकता है। उसकी अनुभूति उसे लिखने के लिए प्रेरित करती है व स्वयं को जानने के लिए भी वह लिखने के लिए प्रेरित होता है। इसलिए लेखक, लेखन के लिए अनुभूति को अधिक महत्व देता है।

2. लेखक ने अपने आपको हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता कब और किस तरह महसूस किया?

उत्त

अपनी जापान यात्रा दौरान लेखक ने एक पत्थर में मानव की उजली छाया देखी। वह विज्ञान का विद्यार्थी था इस कारण समझ गया की विस्फोट के समय पत्थर के पास कोई वक्ती खड़ा होगा। विस्फोट से विसर्जित रेडियोधर्मी पदार्थ ने उस व्यक्ति को भाप बना दिया और पत्थर को झुलसा दिया। इस प्रत्यक्ष अनुभूति ने लेखक के हृदय को झकझोरदिया। इस प्रकार लेखक हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता बन गया।

3. मैं क्यों लिखता हूँ? के आधार पर बताइए कि -
(क) लेखक को कौन-सी बातें लिखने के लिए प्रेरित करती हैं?

उत्तर

लेखक अपनी आंतरिक विवशता के कारण लिखने के लिए प्रेरित होता है। उसकी अनुभूति उसे लिखने के लिए प्रेरित करती है व स्वयं को जानने के लिए भी वह लिखने के लिए प्रेरित होता है।

(ख) किसी रचनाकार के प्रेरणा स्रोत किसी दूसरे को कुछ भी रचने के लिए किस तरह उत्साहित कर सकते हैं?

उत्तर

किसी रचनाकार को उसकी आंतरिक विवशता रचना करने के लिए प्रेरित करती है। परन्तु कई बार उसे संपादकों के दवाब व आग्रह के कारण रचना लिखने के लिए उत्साहित होना पड़ता है। कई बार प्रकाशक का तकाज़ा व उसकी आर्थिक विवशता भी उसे रचना, रचने के लिए उत्साहित करती है।

4. कुछ रचनाकारों के लिए आत्मानुभूति/स्वयं के अनुभव के साथ-साथ बाह्य दबाव भी महत्वपूर्ण होता है। ये बाह्य दबाव कौन-कौन-से हो सकते हैं?

उत्तर

कोई आत्मानुभूति, उसे हमेशा लिखने के लिए प्रेरित करते हैं। फिर चाहे कुछ भी हो परन्तु इनके साथ-साथ बाह्य दबाव भी महत्वपूर्ण होते हैं। ये दबाव संपादकों का आग्रह हो सकता है या फिर प्रकाशक का तकाज़ा या उसकी स्वयं की आर्थिक स्थिति जो उसे रचना करने के लिए दबाव डालती है।

5. क्या बाह्य दबाव केवल लेखन से जुड़े रचनाकारों को ही प्रभावित करते हैं या अन्य क्षेत्रों से जुड़े कलाकारों को भी प्रभावित करते हैं, कैसे?

उत्तर

बाह्य दबाव अन्य क्षेत्रों से जुड़े कलाकारों को भी प्रभावित करते हैं। जैसे -अभिनेता, मंच कलाकार या नृत्यकार - इन पर निर्देशक का दबाव रहता है। गायक-गायिकाएँ - इन पर आयोजको और श्रोताओं का दबाव बना रहता है।मूर्तिकार - इन पर बनवाने वाले ग्राहकों की इच्छाओं का दबाव रहता है। चित्रकार - इन पर बनवाने वाले ग्राहकों की इच्छाओं का दबाव रहता है।

6. हिरोशिमा पर लिखी कविता लेखक के अंत: व बाह्य दोनों दबाव का परिणाम है यह आप कैसे कह सकते हैं ?

उत्तर

लेखक जापान घूमने गया था तो हिरोशिमा में उस विस्फोट से पीड़ित लोगों को देखकर उसे थोड़ी पीड़ा हुई परन्तु उसका मन लिखने के लिए उसे प्रेरित नहीं कर पा रहा था। हिरोशिमा के पीड़ितों को देखकर लेखक को पहले ही अनुभव हो चुका था परन्तु जले पत्थर पर किसी व्यक्ति की उजली छाया को देखकर उसको हिरोशिमा में विस्फोट से प्रभावित लोगों के दर्द की अनुभूति कराई, लेखक को लिखने के लिए प्रेरित किया। इस तरह हिरोशिमा पर लिखी कविता लेखक के अंत: व बाह्य दोनों दबाव का परिणाम है।

7. हिरोशिमा की घटना विज्ञान का भयानकतम दुरुपयोग है। आपकी दृष्टि में विज्ञान का दुरुपयोग कहाँ-कहाँ और किस तरह से हो रहा है?

उत्तर 

हमारी दृष्टि में विज्ञान का दुरुपयोग अनेक क्षेत्रों में निम्नलिखित रूप में हो रहा है -
1. विज्ञान ने यात्रा को सुगम बनाने के लिए हवाई जहाज़, गाड़ियों आदि का निर्माण किया परन्तु हमने इनसे अपने ही वातावरण को प्रदूषित कर दिया है।
2. चिकित्सा के क्षेत्र में अल्ट्रासाउंड का दुरूपयोग किया जा रहा है। गर्भ में पल रहे भ्रूण का लिंग परीक्षण कर कन्याभ्रूण की आधुनिक तकनीक से गर्भ में हत्या कर दी जा रही है।
3. इस विज्ञान की देन के द्वारा आज हम अंगप्रत्यारोपण कर सकते हैं। परन्तु आज इस देन का दुरुपयोग कर हम मानव अंगों का व्यापार करने लगे हैं।
4. विज्ञान ने कंप्यूटर का आविष्कार किया उसके पश्चात् उसने इंटरनेट का आविष्कार किया ये उसने मानव के कार्यों के बोझ को कम करने के लिए किया। हम मनुष्यों ने इन दोनों का दुरुपयोग कर वायरस व साइबर क्राइम को जन्म दिया है।
5. आज हर देश परमाणु अस्त्रों को बनाने में लगा हुआ है जो आने वाले भविष्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है।

8. एक संवेदनशील युवा नागरिक की हैसियत से विज्ञान का दुरुपयोग रोकने में आपकी क्या भूमिका है?

उत्तर 

हमारी भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है। ये कहना कि विज्ञान का दुरुपयोग हो रहा है - सही है! परन्तु हर व्यक्ति इसका दुरुपयोग कर रहा है। यह कहना सर्वथा गलत होगा। क्योंकि कुछ लोग इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए कार्य करते रहते हैं।
(1) आज हमारे अथक प्रयासों के द्वारा ही परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नहीं हो रहा है। क्योंकि हथियार लगभग सभी देशों के पास है परन्तु परमाणु संधियों द्वारा इनके प्रयोगों में रोक लगा दी गई है। हमें चाहिए हम इनका समर्थन करें।
(2) प्रदूषण के प्रति जनता में जागरुकता लाने के लिए अनेकों कार्यक्रमों व सभा का आयोजन किया जा रहा है। जिससे प्रदूषण के प्रति रोकथाम की जा सके। इन समारोहों में जाकर व लोगों को बताकर हम अपनी भूमिका अदा कर सकते हैं।
(3) अंग प्रत्यारोपण पर मीडिया के अथक प्रयास से ही अंकुश लगना संभव हो पाया है। हमें चाहिए कि उसके इस प्रयास में उसका साथ दे व जहाँ पर भी ऐसी कोई गतिविधि चल रही हो उससे मीडिया व कानून को जानकारी देकर उनका सहयोग करें।


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