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Revision Notes for पाठ 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति| Class 9 History

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Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति Revision Notes Class 9 इतिहास History

Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति Notes Class 9 Itihas is provided in this page. We have included all the important topics of chapter in the revision notes. By studying the revision notes of Socialism in Europe and the Russian Revolution, students will be able to understand the concepts of the chapter.

Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति Revision Notes Class 9 इतिहास History

Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति Notes Class 9 Itihas

Topics in the Chapter

  • सामाजिक परिवर्तन का युग
  • समाजवादी विचारधारा
  • रूसी क्रांति
  • रूस एवं जापान युद्ध
  • रूसी क्रांति के चरण
  • रूसी क्रांति का परिणाम
  • 1905 की क्रांति
  • फरवरी क्रांति
  • अप्रैल थीसिस
  • अक्टूबर क्रांति
  • गृह युद्ध

सामाजिक परिवर्तन का युग

यह दौर गहन सामाजिक और आर्थिक बदलावों का था। औद्योगिक क्रांति के दुष्परिणाम जैसे काम की लंबी अवधि, कम, मजदूरी, बेरोजगारी, आवास की कमी, साफ–सफाई की व्यवस्था ने लोगों को इस पर सोचने को विवश कर दिया।

फ्रांसीसी क्रांति ने समाज में परिवर्तन की संभावनाओं के द्वार खोल दिए।

इन्हीं संभावनाओं को मूर्त रूप देने में तीन अलग–अलग विचारधाराओं का विकास हुआ:

  1. उदारवादी
  2. रूढ़िवादी
  3. परिवर्तनवादी


1. उदारवादी

उदारवादी एक विचारधारा है जिसमें सभी धर्मों को बराबर का सम्मान और जगह मिले। वे व्यक्ति मात्र के अधिकारों की रक्षा के पक्षधर थे।

उदारवादियों के मुख्य विचार

  • अनियंत्रित सत्ता के विरोधी।
  • सभी धर्मों का आदर एवं सम्मान।
  • व्यक्ति मात्र के अधिकारों की रक्षा के पक्षधर।
  • प्रतिनिधित्व पर आधारित निर्वाचित सरकार के पक्ष में।
  • सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार के स्थान पर संपत्तिधारकों को वोट का अधिकार के पक्ष में।

 

2. रुढ़िवादी

यह एक ऐसी विचारधारा है जो पारंपरिक मान्यताओं के आधार पर कार्य करती है।

रूढ़िवादी के मुख्य विचार

  • उदारवादियों और परिवर्तनवादियों का विरोध।
  • अतीत का सम्मान।
  • बदलाव की प्रक्रिया धीमी हो।

 

3. परिवर्तनवादी

ऐसी विचारधारा जो क्रन्तिकारी रूप से सामाजिक और राजनितिक परिवर्तन चाहता है।

परिवर्तनवादियों के मुख्य विचार

  • बहुमत आधारित सरकार के पक्षधर थे।
  • बड़े जमींदारों और सम्पन्न उद्योगपतियों को प्राप्त विशेषाधिकार का विरोध।
  • सम्पत्ति के संकेद्रण का विरोध लेकिन निजी सम्पत्ति का विरोध नहीं।
  • महिला मताधिकार आंदोलन का समर्थन।


समाजवादी विचारधारा

समाजवादी विचारधारा वह विचारधारा है जो निजी सम्पति रखने के विरोधी है और समाज में सभी को न्याय और संतुलन पर आधारित विचारधारा है।

समाजवादियों के मुख्य विचार

  • निजी सम्पत्ति का विरोध।
  • सामुहिक समुदायों की रचना (रॉवर्ट ओवेन)
  • सरकार द्वारा सामुहिक उद्यमों को बढ़ावा (लुई ब्लॉक)
  • सारी सम्पत्ति पर पूरे समाज का नियंत्रण एवं स्वामित्व (कार्ल मार्क्स और प्रेडरिक एगेल्स)

 

औद्योगिक समाज और सामाजिक परिवर्तन

  • यह ऐसा समय था जब नए शहर बस रहे थे नए औद्योगिक क्षेत्र विकसित हो रहे थे रेलवे का काफी विस्तार हो चुका था। औरतो, आदमियों और बच्चों, सबको कारखानों में लगा दिया काम के घंटे बहुत लंबे होते थे। मजदूरी बहु कम मिलती थी बेरोजगारी उस समय की आम समस्या थी।
  • शहर तेजी से बसते और फैलते जा रहे थे इसलिए आवास और साफ सफाई का काम भी मुश्किल होता जा रहा था। उदारवादी और रैडिकल, दोनों ही इन समस्याओं का हल खोजने की कोशिश कर रहे थे। बहुत सारे रैडिकल और उदारवादियों के पास काफी संपत्ति थी और उनके यहां बहुत सारे लोग नौकरी करते थे।

 

यूरोप में समाजवाद का आना

  • समाजवादी निजी संपत्ति के विरोधी थे यानी व संपत्ति पर निजी स्वामित्व को सही नहीं मानते थे। उनका कहना था कि बहु सारे लोगों के पास संपत्ति तो है जिससे दूसरों को रोजगार भी मिलता है लेकिन समस्या यह है कि संपत्तिधारी व्यक्ति को सिर्फ अपने फायदे से ही मतलब रहता है वह उनके बारे में नहीं सोचता जो उसकी संपत्ति को उत्पादनशील बनाते हैं।
  • इसलिए उनका कहना है अगर संपत्ति पर किसी एक व्यक्ति के बजाय पूरे समाज का नियंत्रण हो तो सामाजिक हितों पर ज्यादा अच्छी तरह ध्यान दिया जा सकता है।
  • कार्ल मार्क्स का विश्वास था कि खुद को पूंजीवादी शोषण से मुक्त कराने के लिए मजदूरों को एक अत्यंत अलग किस्म का समाज बनाना पड़ेगा उन्होंने भविष्य के समाज को साम्यवादी (कम्युनिस्ट) समाज का नाम दिया।

समाजवाद के लिए समर्थन

  • 1870 का दशक आते–आते समाजवादी विचार पूरे यूरोप में फैल चुके थे। समाजवादियों ने द्वितीय इंटरनेशनल के नाम से एक अंतरराष्ट्रीय संस्था भी बना ली थी।
  • इंग्लैंड और जर्मनी के मजदूरों ने अपनी जीवन और कार्य स्थिति में सुधार लाने के लिए संगठन बनाना शुरू कर दिया था। काम के घंटों में कमी तथा मताधिकार के लिए आवाज उठाना शुरू कर दिया।
  • 1905 तक ब्रिटेन के समाजवादियों और ट्रेड यूनियन आंदोलनकारियों ने लेबर पार्टी के नाम से अपनी एक अलग पार्टी बना ली थी फ्रांस में भी सोशलिस्ट पार्टी के नाम से ऐसी एक पार्टी का गठन किया गया।

 

रूसी क्रांति

मार्च 1917 में राजशाही के पतन से लेकर अक्टूबर 1917 में रूस की सत्ता पर समाजवादियों के कब्जे तक की घटनाओं को रूसी क्रांति कहा जाता है।

मार्च सन 1917 की रूस की क्रान्ति विश्व इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। इसके परिणामस्वरूप रूस से ज़ार के स्वेच्छाचारी शासन का अन्त हुआ तथा रूसी सोवियत संघात्मक समाजवादी गणराज्य (Russian Soviet Federative Socialist Republic) की स्थापना हुई। यह क्रान्ति दो भागों में हुई थी – मार्च 1917 में, तथा अक्टूबर 1917 में।

रूसी क्रांति के कारण

  • निरंकुश राजतंत्र एवं स्वेच्छाचारी शासक
  • रूस में निरंकुश व दैवीय सिद्धांत पर आधारित शासन था जिसका संचालन कुलीन, वंशानुगत सामंत वर्ग के माध्यम से किया जाता था।
  • नौकरशाही वंशानुगत एवं भ्रष्ट थी तथा जनता का शोषण करने वाली थी।
  • जार निकोलस-I के शासनकाल में यह निरंकुशता अपने चरम पर पहुँच गई फलत: असंतोष और उग्र हो गया।

सामाजिक-आर्थिक विषमता

  • फ्राँस की तरह यहाँ भी सामंत व पादरियों का विशेषाधिकार युक्त वर्ग तथा किसान व मज़दूरों के रूप में अधिकारहीन वर्ग मौजूद था। इनके मध्य अत्यंत तनाव व्याप्त था।
  • इस सामाजिक-आर्थिक विषमता के विरुद्ध असंतोष देखा गया।

किसानों की दयनीय स्थिति

  • रूस में सर्वाधिक संख्या में किसान मौजूद थे किंतु उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय थी।
  • भूमि का 67% हिस्सा सामंतों के पास था तो वहीं 13% हिस्सा चर्च के पास। किसान खेतों में मज़दूरों की तरह कार्य करते थे।
  • हालाँकि वर्ष 1861 में रूस में दास प्रथा का उन्मूलन हो गया था किंतु व्यावहारिक रूप में अभी भी वह मौजूद थी।
  • इन सबके चलते किसान व मज़दूर वर्ग में भी विद्रोही भावना ने जन्म लिया।

श्रमिकों की दशा

  • रूस में औद्योगीकरण देरी से हुआ और सीमित रहा।
  • अर्थव्यवस्था में विदेशी पूंजी निवेश के कारण विदेशी पूंजीपतियों ने केवल मुनाफे पर ध्यान दिया। जिसकी वजह से श्रमिकों का अत्यधिक शोषण हुआ।
  • मज़दूरों के लिये न ही कार्य के घंटे निर्धारित थे और न ही न्यूनतम वेतन और सुविधाएँ।
  • प्रजातांत्रिक दल ने उन्हें संगठित कर क्रांति के लिये तैयार किया।


रूस एवं जापान युद्ध

  • जब जापान ने चीन के मंचूरिया क्षेत्र पर आक्रमण किया तो इसी दौरान रूसी सेना से उसकी भिड़ंत हुई और रूसी सेना पराजित हो गई।
  • इससे राजतंत्र की कमज़ोरी उजागर हो गई और पीड़ित जनता जार के विरुद्ध उठ खड़ी हुई।
  • सामाजिक, आर्थिक एवं सैनिक स्तर पर कमज़ोरी को दूर करने के लिये जनता ने एक प्रतिनिधि सदन ड्यूमा के गठन की मांग की।
  • अपनी मांगों के समर्थन में रूसी जनता ने पीटर्सबर्ग में शांतिपूर्ण जुलूस निकाला, जिस पर जार ने गोली चलवा दी जिससे जनता और उग्र हो गई तथा नागरिक अधिकारों हेतु जार को ड्यूमा के गठन की अनुमति देनी पड़ी।
  • ड्यूमा का अस्तित्व जार की इच्छा पर निर्भर था, अत: उसने बार-बार इसे नष्ट किया और लोकतंत्र कायम नहीं हो सका। अत: वर्ष 1905 की इस घटना को वास्तविक क्रांति नहीं कहा जा सकता।

तात्कालिक कारण

  • रूस ने साम्राज्यवादी लाभ लेने के उद्देश्य से मित्र राष्ट्रों के पक्ष में प्रथम विश्वयुद्ध में भागीदारी की। इसके चलते उसे निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ा-
  • रूस ने बड़ी मात्रा में सैनिकों की भर्ती तो की किंतु पर्याप्त मात्रा में हथियार उपलब्ध नहीं कराए और न ही वेतन दिया, इससे सैनिकों में असंतोष बढ़ो गया।
  • परिवहन के साधन युद्ध कार्यों में लगाए गए थे जिससे उद्योगों के परिचालन में बाधा उत्पन्न हुई और आर्थिक संकट उत्पन्न हुआ।
  • वर्ष 1916-17 में पड़े भीषण अकाल से खाद्यान्न संकट उत्पन्न हुआ जिससे जनता आक्रोशित हुई तथा अंततः यह आक्रोश रूसी क्रांति में परिणत हो गया।


रूसी क्रांति के चरण

वर्ष 1905 की क्रांति

  • 20वीं सदी के आरंभ में रूस पर जार निकोलस-II का शासन था। वह एक तानाशाह था, जिसकी नीतियाँ जनता के बीच लोकप्रिय नहीं थीं। जब रूस जापान से हार गया तो वर्ष 1905 में जार का विरोध चरम पर पहुँच गया।
  • 9 जनवरी 1905 को रूसी श्रमिकों का एक जत्था अपने बीबी बच्चों के साथ जार को ज्ञापन सौंपने के लिये निकला, लेकिन सेंट पीटर्सबर्ग में उन पर गोलियाँ बरसा दी गईं। यह घटना इतिहास में ‘ब्लडी सन्डे’ के नाम से जानी जाती है। हज़ारों की संख्या में लोग मारे गए और समूचे रूस में जार के विरुद्ध प्रदर्शन होने लगे।
  • जार निकोलस को समझौता करने के लिये विवश होना पड़ा और अक्तूबर घोषणा-पत्र तैयार किया गया, जिसमें एक निर्वाचित संसद (ड्यूमा) को शामिल करने की भी बात कही गई थी। हालाँकि बाद में जार अक्तूबर घोषणा-पत्र में किये गए वादों से मुकर गया।
  • जहाँ एक ओरजार अपने वादों पर टिका नहीं रह सका, वहीं ड्यूमा भी रूसी जनता की आकांक्षाओं पर खरी नहीं उतर पाई। जनता की परेशानियाँ ज्यों की त्यों बनी रहीं। अतः देर-सबेर दूसरी क्रांति तो होनी ही थी और कुछ इस तरह से वर्ष 1917 की क्रांति की पृष्ठभूमि तैयार हुई।

अक्तूबर 1917 की रूसी क्रांति

  • मार्च 1917 आते-आते जनता की दशा अत्यंत ही दयनीय हो गई थी। उसके पास न पहनने को कपड़े थे और न खाने को अनाज था।
  • परेशान होकर भूखे और ठंड से ठिठुरते हुए गरीब और मज़दूरों ने 7 मार्च को पेट्रोग्रेड की सड़कों पर घूमना आरंभ कर दिया। रोटी की दुकानों पर ताज़ी और गरम रोटियों के ढेर लगे पड़े थे। भूखी जनता अपने आपको नियंत्रण में नहीं रख सकी। उन्होंने बाज़ार में लूट-पाट करनी आरंभ कर दी।
  • सरकार ने सेना को उन पर गोली चलाने का आदेश दिया ताकि गोली चलाकर लूटमार करने वालों को तितर-बितर किया जा सके, किंतु सैनिकों ने गोली चलाने से साफ मना कर दिया क्योंकि उनकी सहानुभूति जनता के प्रति थी।
  • उनमें भी क्रांति की भावना प्रवेश कर चुकी थी। जार को अपना अंत नज़दीक नज़र आने लगा। ड्यूमा ने सलाह दी कि जनतांत्रिक राजतंत्र की स्थापना की जाए, लेकिन जार इसके लिये तैयार नहीं हुआ और इस तरह से रूस से राजतंत्र का खात्मा हो गया।
  • उपरोक्त निर्णय रूस में भी पश्चिमी राज्यों की तरह प्रजातांत्रिक व पूंजीवादी शासन के संकेत दे रहे थे जबकि रूस की क्रांति मज़दूरों, कृषकों, सैनिकों द्वारा प्राप्त की गई थी।
  • बोल्शेविक के नेतृत्त्व में इस सरकार का विरोध किया गया।
  • मज़दूर और सैनिकों ने मिलकर सोवियत का गठन किया। इस सोवियत ने ड्यूमा के साथ मिलकर अस्थायी सरकार का गठन किया तथा इसका प्रमुख करेंसकी बना जो मध्यवर्गीय हितों से परिचालित था।

रूसी क्रांति के नेतृत्त्व की स्थिति

  • लेनिन के नेतृत्त्व में बोल्शेविकों ने करेंसकी सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन किया और सत्ता किसान एवं मज़दूरों के हाथ में देने की बात की।
  • उसके अनुसार राज्य के उत्पादन एवं वितरण के साधनों पर मज़दूरों एवं किसानों का नियंत्रण होना चाहिये।
  • रूस को प्रथम विश्वयुद्ध में भागीदारी नहीं करनी चाहिये।
  • इसी क्रम में बोल्शेविकों ने सरकारी भवनों, रेलवे, बिजलीघरों में नियंत्रण कर लिया और करेंसकी को त्यागपत्र देना पड़ा तथा लेनिन के नेतृत्त्व में सर्वहारा का शासन स्थापित हुआ।


रूसी क्रांति का परिणाम

राजनीतिक परिणाम

  • राजतंत्र समाप्त हुआ, सर्वहारा का शासन स्थापित हो गया।
  • रूस द्वारा पूंजीवाद व उपनिवेशवाद के स्वाभाविक विरोध के कारण उसे औपनिवेशक शोषण से मुक्ति का अग्रदूत समझा गया।
  • जर्मनी के साथ बेस्टलिटोवस्क की संधि द्वारा प्रथम विश्वयुद्ध से रूस अलग हो गया।

आर्थिक परिणाम

  • रूस में उत्पादन एवं वितरण के साधनों पर राज्य का नियंत्रण स्थापित।
  • चूँकि पूंजीवादी देशों से रूस को किसी प्रकार के सहयोग की अपेक्षा नहीं थी, अत: वह वैज्ञानिक-तकनीकी विकास हेतु आत्मनिर्भरता के पथ पर अग्रसर हुआ।
  • रूस द्वारा नियोजित अर्थव्यवस्था के माध्यम से आर्थिक विकास करने के कारण वह वैश्विक आर्थिक मंदी से दुष्प्रभावित नहीं हुआ।

सामाजिक परिणाम

  • सामंत व कुलीन वर्ग की समाप्ति।
  • चर्च के शासन की समाप्ति।
  • वर्ग भेद की समाप्ति।
  • रूस में शिक्षा का प्रसार, राज्य द्वारा 16 वर्ष की उम्र तक नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान।
  • लैंगिक भेदभाव की समाप्ति।

रूसी समाज

  • 1914 में रूस और उसके साम्राज्य पर जार निकोलस का शासन था।
  • मास्को के आसपास पढ़ने वाले छात्र के अलावा आज का फिनलैंड, लातविया, लिथुआनिया, पोलैंड, यूक्रेन व बेलारूस के कुछ हिस्से रूसी साम्राज्य के अंग थे।

रूसी समाज की अर्थव्यवस्था

  • बीसवीं सदी की शुरूआत में रूस की लगभग 85 प्रतिशत जनता खेती पर निर्भर थी।
  • कारखाने उद्योगपतियों की निजी सम्पत्ति थी जहाँ काम की दशाएँ बेहद खराब थी।
  • यहाँ के किसान समय – समय पर सारी जमीन अपने कम्यून (मीर) को सौंप देते थे और फिर कम्यून परिवार की जरूरत के हिसाब से किसानों को जमीन बाँटता था।
  • रूस में एक निरंकुश राजशाही था।
  • 1904 ई . में जरूरी चीजों की कीमतें तेजी से बढ़ने लगी।
  • मजदूर संगठन भी बनने लगे जो मजदूरों की स्थिति में सुधार की माँग करने लगे।

रूस में समाजवाद

  • 1914 से पहले रूस में सभी राजनीतिक पार्टियां गैरकानूनी थी।
  • मार्क्स के विचारों को मानने वाले समाजवादियों ने 1898 में रशियन सोशल डेमोक्रेटिक वर्कर्स पार्टी का गठन किया।
  • यह एक रूसी समाजिक लोकतांत्रिक श्रमिक पार्टी थी।
  • इस पार्टी का एक अखबार निकलता था उसने मजदूरों को संगठित किया था और हड़ताल आदि कार्यक्रम आयोजित किए थे।
  • 19 वी सदी के आखिर में रूस के ग्रामीण इलाकों में समाजवादी काफी सक्रिय थे सन् 1900 में उन्होंने सोशलिस्ट रेवलूशनरी पार्टी (समाजवादी क्रांतिकारी पार्टी) का गठन कर लिया।
  • इस पार्टी ने किसानों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और मांग की की सामंतो के कब्जे वाली जमीन फॉरेन किसानों को सौंप दी जाए।

खूनी रविवार

रूसी क्रांति की शुरुआत 1905 में 22 जनवरी दिन रविवार को हुई थी। उस दौरान रूस में जार निकोलस द्वितीय का शासन था। जार निकोलस की कई नीतियों के खिलाफ मजदूरों में गुस्सा था। इसके चलते मजदूर इस दिन अपने मेहनताने और काम के घंटों जैसे मुद्दे पर प्रदर्शन कर रहे थे।

इसी दौरान पादरी गौपॉन के नेतृत्व में मजदूरों के जुलूस पर जार के महल के सैनिकों ने हमला बोल दिया। इस घटना में 100 से ज्यादा मजदूर मारे गए और लगभग 300 घायल हुए। इतिहास में इस घटना को ” खूनी रविवार के नाम से याद किया जाता है।


1905 की क्रांति

1905 की क्रांति की शुरूआत इसी घटना से हुई

  • सारे देश में उड़ताल होने लगी।
  • विश्वविद्यालय बंद कर दिए गए।
  • वकीलों, डॉक्टरों, इंजीनियरों और अन्य मध्यवर्गीय कामगारों में संविधान सभा के गठन की माँग करते हुए यूनियन ऑफ यूनियन की स्थापना कर ली।
  • जार एक निर्वाचित परामर्शदाता संसद (ड्यूमा) के गठन पर सहमत हुआ।
  • मात्र 75 दिनों के भीतर पहली ड्यूमा, 3 महीने के भीतर दूसरी ड्यूमा को उसने बर्दाश्त कर दिया।
  • तीसरे ड्यूमा में उसने रूढ़िवादी राजनेताओं को भर दिया ताकि उसकी शक्तियों पर अंकुश न लगे।

पहला विश्वयुद्ध और रूसी साम्राज्य

  • 1914 ई . में प्रथम विश्व युद्ध शुरू हो गया जो 1918 तक चला। इसमें दो खेमों केंद्रिय शक्तियाँ (जर्मनी, ऑस्ट्रिया, तुर्की) और मित्र राष्ट्र (फ्रांस, ब्रिटेन व रूस) के बीच लड़ाई शुरू हुई जिसका असर लगभग पूरे विश्व पर पड़ा।
  • इन सभी देशों के पास विशाल वैश्विक साम्राज्य थे इसलिए यूरोप के साथ साथ यह युद्ध यूरोप के बाहर भी फैल गया था। इस युद्ध को पहला विश्वयुद्ध कहा जाता है।
  • इस युद्ध को शुरू शुरू में रूसियों का काफी समर्थन मिला लेकिन जैसे – जैसे युद्ध लंबा खींचता गया ड्यूमा में मौजूद मुख्य पार्टियों से सलाह लेना छोड़ दिया उसके प्रति जनता का समर्थक कम होने लगा लोगों ने सेंट पीटर्सबर्ग का नाम बदलकर पेत्रोग्राद रख दिया क्योंकि सेंट पीटर्सबर्ग जर्मन नाम था।
  • 1914 से 1916 के बीच जर्मनी और ऑस्ट्रिया में रूसी सेनाओं को भारी पराजय झेलनी पड़ी। 1917 तक 70 लाख लोग मारे जा चुके थे पीछे हटती रूसी सेनाओं ने रास्ते में पड़ने वाली फसलों इमारतों को भी नष्ट कर डाला ताकि दुश्मन की सेना वहां टिक ही ना सके। फसलों और इमारतों के विनाश से रूस में 30 लाख से ज्यादा लोग शरणार्थी हो गए।


फरवरी क्रांति

फरवरी क्रांति के कारण

  • प्रथम विश्व युद्ध को लंबा खिंचना।
  • रासपुतिन का प्रभाव।
  • सैनिकों का मनोबल गिरना।
  • शरणार्थियों की समस्या।
  • खाद्यान्न की कमी उद्योगों का बंद होना।
  • असंख्य रूसी सैनिकों की मौत।

फरवरी क्रांति की घटनाएँ

  • 22 फरवरी को फैक्ट्री में तालाबंदी।
  • 50 अन्य फैक्ट्री के मजदूरों की हड़ताल।
  • हड़ताली मजदूरों द्वारा सरकारी इमारतों का घेराव।
  • राजा द्वारा कफ्यू लगाना।
  • 25 फरवरी को ड्यूमा को बर्खास्त करना।
  • 27 फरवरी को प्रदर्शन कारियों ने सरकारी इमारतों पर कब्जा कर लिया।
  • सिपाही एवं मजदूरों का संगठन सोवियत का गठन।
  • 2 मार्च सैनिक कमांडर की सलाह पर जार का गद्दी छोड़ना।

फरवरी क्रांति के प्रभाव

  • रूस में जारशाही का अंत।
  • सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार के आधार पर संविधान सभा का चुनाव।
  • अंतरिम सरकार में सोवियत और ड्यूमा के नेताओं की शिरकत।


अप्रैल थीसिस

महान बोल्शेविक नेता लेनिन अप्रैल 1917 में रूस लौटे। उन्होंने तीन माँगे की जिन्हें अप्रैल थीसिस कहा गया :-

  • युद्ध की समाप्ति
  • सारी जमीनें किसानों के हवाले।
  • बैंको का राष्ट्रीयकरण।


अक्टूबर क्रांति

  • फरवरी 1917 में राजशाही के पतन और 1917 के ही अक्टूबर के मिश्रित घटनाओं को अक्टूबर क्रांति कहा जाता है।
  • 24 अक्टूबर 1917 का विद्रोह शुरू हो गया और शाम ढलते – ढलते पूरा पैट्रोग्राद शहर बोल्शेविकों के नियंत्रण में आ गया। इस तरह अक्टूबर क्रांति पूर्ण हुई।
अक्टूबर क्रांति के बाद क्या बदला
  • निजी सम्पत्ति का खात्मा।
  • बैंको एवं उद्योगों का राष्ट्रीकरण।
  • जमीनों को सामाजिक सम्पत्ति घोषित करना।
  • अभिजात्य वर्ग की पुरानी पदवियों पर रोक।
  • रूस एक दलीय व्यवस्था वाला देश बन गया।
  • जीवन के हरेक क्षेत्र में सेंसरशिप लागू।
  • गृह युद्ध का आरंभ।


गृह युद्ध

क्रांति के पश्चात् रूसी समाज में तीन मुख्य समूह बन गए बोल्शेविक (रेड्स) सामाजिक क्रांतिकारी (ग्रीन्स) और जार समर्थक (व्हाइटस) इनके मध्य गृहयुद्ध शुरू हो गया ग्रीन्स और ‘व्हाइटस‘ को फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन से भी समर्थन मिलने लगा क्योंकि ये समाजवादियों से सशंकित थे।


Revision Notes for पाठ 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद| Class 9 History

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Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद Revision Notes Class 9 इतिहास History

Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद Notes Class 9 Itihas is provided in this page. We have included all the important topics of chapter in the revision notes. By studying the revision notes of Forest Society and Colonialism, students will be able to understand the concepts of the chapter.

Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद Revision Notes Class 9 इतिहास History

Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद Notes Class 9 Itihas

Topics in the Chapter

  • वन्य समाज
  • वनोन्मूलन
  • वन अधिनियम
  • वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद
  • वन विद्रोह
  • ब्लैं डाँग डिएन्स्टेन
  • जावा के जंगल

वन्य समाज

अठारहवीं शताब्दी में वन्य समाज कबीलों में बँटा हुआ था। कबीले का प्रमुख मुखिया था जिसका मुख्य कर्त्तव्य कबीले को सुरक्षा प्रदान करना था। धीरे-धीरे इन्होंने कबीलों पर अपना अधिकार जमाना शुरू कर दिया तथा अपने लिए कुछ विशेषाधिकार भी प्राप्त कर लिये।


वनों से लाभ

1. प्रत्यक्ष लाभ (Direct Benefits):

    अर्थव्यवस्था में वनों के निम्न प्रमुख प्रत्यक्ष लाभ हैं:

    • वर्तमान में देश की राष्ट्रीय आय का लगभग 19 प्रतिशत कृषि उद्योग से प्राप्त होता है। इसमें लगभग 18 प्रतिशत वन सम्पत्ति द्वारा मिलता है।
    • भारतीय वन, चरागाहों के अभाव में, लगभग 5.5 करोड़ पशुओं को चराने की सुविधा प्रदान करते हैं। पशुओं की चराई के अतिरिक्त वन प्रदेश अनेक प्रकार के कन्द-मूल फल भी प्रदान करते हैं, जिन पर ग्रामीणों की जीविका निर्भर करती है।
    • वन (forest) लगभग 73 लाख व्यक्तियों को प्रत्यक्ष रूप से दैनिक व्यवसाय देते हैं। ये लोग लकड़ी काटने, लकड़ी चीरने, वन वस्तुएँ ढोने, नाव, रस्सी, बान, आदि तैयार करने तथा गोद, लाख, राल, कन्द मूल, जड़ी बूटियाँ, दवाइयाँ आदि एकत्रित करने लगे हैं। वन क्षेत्र में लगभग 3.1 करोड़ आदिवासियों का निवास स्थान है और उनके जीवन – यापन एवं अनेक कुटीर उद्योगों का यही वन आधारभूत या महत्त्वपूर्ण साधन है।
    • वनो से सरकार को निरन्तर अधिक आय होती रही है। यह आय 1981-82 में 204 करोड़ रुपये की हुई थी जो वर्तमान में बढ़कर लगभग 3,300 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष हो गई है।
    • वनो से विविध मुख्य व गौण उपजो से निरन्तर अधिकाधिक आय प्राप्त होती रही है। गौण उपज से 1950 में 6 करोड़ रुपये, 1970 में 30 करोड़ रुपये एवं 2003 में इनसे होने वाली आय आठ गुना बढ़कर 245 करोड़ रुपये से भी अधिक हो गई। इसी भाँति वनों से मुख्य उपज के रूप में लकड़ी व बास की आय में भी तेजी से वृद्धि हुई है। यह आय 1950 में 17.2 करोड़, 1970 में 105 करोड़ रही जो वर्तमान में बढ़कर 31.000 करोड़ रुपये हो गई है। इसका एक कारण वन्य उत्पादों के मूल्यों में विश्वव्यापी भारी वृद्धि भी रहा है।
    • आम, साखू, सागवान, शीशम, देवदार, बबूल, रोहिडा, यूकेलिप्टस आदि लकड़ियों से मकान के दरवाजे, चौखट, कृषि के औजार, जहाज, रेल के डिब्बे, फर्नीचर, कई उद्योगो के सहायक पुर्जे, वाहनों के ढाँचे, आदि बनाये जाते हैं। मुलायम लकड़ियों से कागज और लुग्दी, दियासलाई, प्लाईवुड, तारपीन का तेल, गंधा – विरोजा, आदि वस्तुएँ प्राप्त की जाती है। इमारती लकड़ियों के अतिरिक्त जलाने के काम आने वाली लकड़ियाँ (धावड़ा, खैर, बबूल, आदि) वनों से ही प्राप्त होती हैं। देश से प्रतिवर्ष 65 करोड़ रुपये की लकड़ियाँ एवं लकड़ी की वस्तुएं, पैकिंग सामग्री आदि का भी निर्यात किया जाता है।

    2. अप्रत्यक्ष लाभ (Indirect Benefits)

    • वनों से नमी निकलती रहती है जिससे वायुमण्डल का तापमान सम होकर वातावरण आर्द्र वन जाता है, इससे वर्षा होती है।
    • वन क्षेत्र वर्षा के जल को स्पंज की भांति चूस लेते हैं, अत: निम्न प्रदेशों में बाढ़ के प्रकोप का भय नहीं रहता और जल का बहाव धीमा होने के कारण समीपवर्ती भूमि का क्षरण भी रुक जाता है।
    • वन प्रदेश वायु की तेजी को रोककर बहुत से भागों को शीत अथवा तेज बालू की आँधियों के प्रभाव से मुक्त कर देते हैं।
    • ये वर्षा के जल को भूमि में रोक देते हैं और धीरे – धीरे बहने देते हैं। इससे मैदानी भागों में कुओं का जल तल से अधिक नीचे नहीं पहुंच पाता।
    • वनों के वृक्षो से पत्तियाँ सूखकर गिरती है, वे धीरे – धीरे सड़ – गलकर मिट्टी में मिल जाती हैं और भूमि को अधिक उपजाऊ बना देती है।
    • वन सुन्दर एवं मनमोहक दृश्य उपस्थित करते हैं और देश के प्राकृतिक सौन्दर्य में वृद्धि करते हैं। अतएव वे देशवासियों में सौन्दर्य भावना जाग्रत करते हैं और उन्हें सौन्दर्य एवं प्रकृति – प्रेमी बनाते हैं।
    • घने वनों में कई प्रकार के कीड़े – मकोड़े तथा छोटे छोटे असंख्य जीव – जन्तु रहते हैं जिन पर बड़े जीव निर्भर रहते हैं। भारतीय वनों में कई प्रकार के शाकाहारी (नारहसिंघा, हिरन, साभर बैल, सूअर, हाथी, गैण्डा) तथा मांसाहारी (तेंदुआ, रीछ, बाघ, बघेरा, शेर) वन्य प्राणी रहते हैं। भारतीय वनों में लगभग 592 किस्म के वन्य पशु पाए जाते हैं। देश के 500 अभयारण्य, 29 बाघ संरक्षण क्षेत्र एवं 95 राष्ट्रीय उद्यानों का आधार भी वन ही है।
    • आज के बढ़ते प्रदूषण के सर्वव्यापी घातक प्रभाव से मुक्ति दिलाकर भूमि पर पर्यावरण सन्तुलन का आधार भी वन ही प्रदान कर सकते हैं। अत: यह आज भी मानव सभ्यता के पोषक एवं संरक्षक है।


    वनोन्मूलन

    • वनोन्मूलन का अर्थ है वनों के क्षेत्रों में पेडों को जलाना या काटना ऐसा करने के लिए कई कारण हैं; पेडों और उनसे व्युत्पन्न चारकोल को एक वस्तु के रूप में बेचा जा सकता है और मनुष्य के द्वारा उपयोग में लिया जा सकता है जबकि साफ़ की गयी भूमि को चरागाह (pasture) या मानव आवास के रूप में काम में लिया जा सकता है।
    • वृक्षों का वृहत पैमाने पर कटाई ‘ वनोन्मूलन ‘ कहलाता है। औपनिवेश काल में ‘ वनोन्मूलन ‘ की प्रक्रिया व्यापक तथा और भी व्यवस्थित हो गई।
    • 1700 ई . से 1995 के बीच के बीच 139 लाख वर्ग किलोमीटर जंगल विभिन्न उपयोग की वजह से साफ कर दिए गए।

    वनोन्मूलन के कारण

    • प्रारंभिक सभ्यता: प्रारंभिक सभ्यता मवेशियों के बड़े झुंड (पशुचारण), कृषि और लकड़ी के व्यापक उपयोग पर आधारित थी। जलाऊ लकड़ी ऊर्जा का एकमात्र स्रोत था। इसलिए, वनों का बड़े पैमाने पर दोहन और खंडन किया गया।
    • मानव बस्तियों: जैसे-जैसे मानव आबादी में वृद्धि हुई, मानव बस्तियों के लिए जगह बनाने के लिए जंगलों को साफ किया गया, उनके मवेशियों के लिए फसल और चारागाह। जैसे-जैसे मानव आबादी में वृद्धि हुई, मानव बस्तियों के लिए जगह बनाने के लिए जंगलों को साफ किया गया, उनके मवेशियों के लिए फसल और चारागाह। प्रक्रिया वर्तमान समय तक जारी है।
    • वनाग्नि: वे प्राकृतिक और मानवजनित दोनों हैं। आग का इस्तेमाल आदि-मानव द्वारा शिकार के लिए एक उपकरण के रूप में किया जाता था। बाद में, इसे युद्धकालीन रणनीति के रूप में नियोजित किया गया था। आग से कई वन क्षेत्र नष्ट हो जाते हैं। 1983 और 1997 के दौरान इंडोनेशिया में 4000 Km2के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर वनाग्नि लगी थी। शुष्क गर्मी के मौसम में, ऐसी आग हिमाचल प्रदेश और अन्य क्षेत्रों में आम होती है।
    • झूमिंग (स्थानांतरण खेती): जली हुई वनस्पति की राख के कारण खनिजों से समृद्ध खेती के लिए भूमि प्राप्त करने के लिए एक क्षेत्र को साफ करने के लिए यह आदिवासियों की एक स्लैश एंड बर्न प्रथा है। खेती 2-3 साल के लिए की जाती है। इसके बाद क्षेत्र को छोड़ दिया जाता है। परित्यक्त क्षेत्र खरपतवार, मिट्टी के कटाव और वनोन्मूलन के अन्य दोषों के आक्रमण का केंद्र बन जाता है।
    • उत्खनन और खनन: दोनों को आम तौर पर पहाड़ी और वनाच्छादित क्षेत्र में किया जाता है। वे वनस्पति को खराब करते हैं और वनोन्मूलन का कारण बनते हैं।
    • जलविद्युत परियोजनाएं- बिजली के उत्पादन और पानी को जमा करने के लिए पहाड़ी क्षेत्रों में बांध और जलाशयों का निर्माण किया जाता है। वे वन भूमि के बड़े क्षेत्रों को जलमग्न कर देते हैं।
    • नहरों: वन क्षेत्रों से गुजरने वाली नहरें पानी के रिसने के कारण कई पेड़ों को मार देती हैं।
    • अत्यधिक चराई: उष्ण कटिबंध में गरीब मुख्य रूप से ईंधन के स्रोत के रूप में लकड़ी पर निर्भर होते हैं जिससे वृक्षों के आवरण का नुकसान होता है और साफ की गई भूमि चराई भूमि में बदल जाती है। मवेशियों द्वारा अतिचारण से इन भूमि का और क्षरण होता है।
    • औद्योगिक उपयोग के लिए कच्चा माल: बक्से बनाने के लिए लकड़ी, फर्नीचर, रेलवे स्लीपर, प्लाईवुड, माचिस, कागज उद्योग के लिए लुगदी आदि ने जंगलों पर जबरदस्त दबाव डाला है। असम के चाय उद्योग के लिए चाय की पैकिंग के लिए प्लाइवुड की बहुत मांग है जबकि जम्मू-कश्मीर में सेब की पैकिंग के लिए देवदार के पेड़ की लकड़ी का बहुत उपयोग किया जाता है।

    वनोन्मूलन के प्रभाव (Effects of Deforestation)

    • बड़े पैमाने पर वनोन्मूलन के प्रभाव असंख्य और विविध हैं।
    • रिसाव और भूजल पुनर्भरण में कमी आई है।
    • मिट्टी का कटाव बढ़ा है।
    • बाढ़ और सूखा अधिक बारंबार हो गया है।
    • कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की खपत और ऑक्सीजन (O2) के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
    • वनों में रहने वाली प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं, जिससे अपूरणीय आनुवंशिक संसाधनों का नुकसान हो रहा है।
    • भूस्खलन और हिमस्खलन बढ़ रहे हैं।
    • मनुष्य वृक्षों और जंगली जानवरों के लाभों से वंचित रहा है।
    • बारिश का प्रतिरूप बदल रहा है।
    • वनोन्मूलन वाले क्षेत्रों में पौधों द्वारा नमी की कमी के कारण जलवायु गर्म हो गई है।
    • वन में रहने वाले लोगों के कमजोर वर्गों की अर्थव्यवस्था और जीवन की गुणवत्ता में गिरावट आई है। ईंधन की लकड़ी की कमी पहाड़ियों में महिलाओं की सबसे बड़ी समस्या है। ईंधन की लकड़ी की कमी लोगों को जानवरों का गोबर जलाने के लिए मजबूर करती है, जो अन्यथा मिट्टी को उर्वरित करने के लिए उपयोग किया जाता। यह अनुमान लगाया गया है कि गोबर जलाने से अनाज का उत्पादन इतना कम हो जाता है कि हर साल 10 करोड़ लोगों का पेट भर सके।

    भारत में वन विनाश के कारण

    • बढती आबादी और खाद्य पदार्थों की माँग के कारण पेड़ कटोती का वस्तार।
    • रेलवे लाइनो का विस्तार और रेलवे में लकड़ियों का उपयोग।
    • यूरोप में चाय, कॉफी और रबड़ कि माँग को पूरा करने के लिए प्राकृतिक वनों का एक भरी हिस्सा साफ किया गया ताकि इसका बगान बनाया जा सके।
    • वनों का विनाश प्राकतिक और मानवीय दोनों कारणों से होता है – प्राकतिक कारणों से विनष्ट वन कुछ समय पश्चात् प्रायः पुनः उग आते हैं किन्तु मानव द्वारा वनों के काटने और भूमि का उपयोग कषि, आवास, कारखाना, विद्युत संयंत्र आदि के रूप में किये जाने से वन सदा के लिए समाप्त हो जाते हैं।
    • शुष्क मौसम में वक्षों के परस्पर रगड़ते रहने के कारण वनों में आग लग जाती है जिससे कभी-कभी विस्तत क्षेत्र में वन जल कर नष्ट हो जाते हैं।
    • कभी-कभी आकाशी बिजली के सम्पर्क में आने से भी वनों में आग लगने से वक्ष जलकर नष्ट हो जाते हैं।
    • जलवायु संबंधी कारणों से वन वक्षों में रोग लग जाते हैं और वक्ष सूख कर नष्ट हो जाते हैं।
    • वक्षों की जड़ों, तनों तथा पत्तियों में कई प्रकार के कीटों के लग जाने पर भी समूहों में वक्ष सूख जाते हैं।
    • वक्षों के विनाश में शाकाहारी जंगली पशुओं का भी हाथ होता है।
    • उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में स्थानांतरणशील कषि के प्रचलन से वनों को काटकर कषि के लिए प्रति दो-तीन वर्ष के बाद नवीन भूमि प्राप्त की जाती है।
    • आदिवासियों द्वारा की जाने वाली इस कषि पद्धति के कारण वनों का विनाश होता रहता है।
    • पूर्वोत्तर भारत और मलाया के पर्वतीय भागों में प्रचलित स्थानांतरणशील कृषि वन विनाश के लिए काफी सीमा तक उत्तरदायी है।
    • जनसंख्या वद्धि निर्वनीकरण का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारण है। जनसंख्या में तीव्र वद्धि होने से भोजन, आवास, यातायात मार्ग आदि की मांगों की पूर्ति के लिए वनों को दीर्घकाल से साफ किया जाता रहा है किन्तु सर्वाधिक वन विनाश की घटनाएं बीसवीं शताब्दी में विशेषकर इसके उत्तरार्द्ध में हुई हैं। संघन जनसंख्या वाले क्षेत्र में वनों का लगभग सफाया हो चुका है।
    • तकनीकी विकास यंत्रीकरण और औद्योगीकरण के विस्तार से लकड़ी की मांग में तीव्र वद्धि हुई है। कागज, लुग्दी तथा अन्य रासायनिक उद्योगों, फर्नीचर निर्माण, भवन निर्माण, रेल डिब्बों आदि के निर्माण के लिए लकड़ी की मांग और मूल्य में वद्धि होने से वनों की अंधाधुंध कटाई की गयी है जिससे निर्वनीकरण अधिक तेजी से हुआ और अनेक प्रकार की आर्थिक एवं पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हुई हैं।
    • नगरों के विस्तार या नवीन नगरों को बसाने के लिए कारखानों तथा विद्युत संयंत्रों की स्थापना एवं विशाल जलाशयों के निर्माण आदि के उद्देश्य से वन भूमि को साफ करने से होने वाला निर्वनीकरण-वर्तमान समय की प्रमुख घटना है।

    भारत का पहला वन महानिदेशक

    डायट्रिच ब्रैंडिस को भारत का पहला वन महानिदेशक बनाया गया।

    भारतीय वन सेवा

    भारतीय वन सेवा की स्थापना 1864 में की गई।


    वन अधिनियम

    1865 में पहला वन अधिनियम बनाया गया। 1878 के वन अधिनियम के द्वारा जंगल को तीन श्रेणियों में बाँटा गया :
      1. आरक्षित
      2. सुरक्षित
      3. ग्रामीण
      • सबसे अच्छे वनों को आरक्षित वन कहा गया जहाँ से ग्रामीण अपने उपयोग के लिए कुछ भी नहीं ले सकते थे।
      • मकान बनाने के लिए या ईंधन के लिए वे सिर्फ ‘ सुरक्षित ‘ या ‘ ग्रामीण ‘ वन से ही लकडियाँ ले सकते थे वह भी अनुमति लेकर।


      वैज्ञानिक वानिकी

      • 1906 ई . में देहरादून मे ‘ इंपीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इस्टीट्यूट ‘ की स्थापना की गई जहाँ वैज्ञानिक वानिकी ‘ पद्धति की शिक्षा दी जाती थी।
      • वैज्ञानिक वानिकी ‘ एक ऐसी पद्धति थी जिसमें प्राकृतिक वनों की कटाई कर उसके स्थान पर कतारबद्ध तरीके से एक ही प्रजाति के पेड़ लगाए जाते थे। लेकिन आज यह पद्धति पूर्णतया अवैज्ञानिक सिद्ध हो गयी है।

      वन कानूनों का प्रभाव

      • लकड़ी काटना, पशुचारण कंदमूल इकट्ठा करना आदि गैरकानूनी घोषित कर दिए गए।
      • वन रक्षकों की मनमानी बढ़ गई।
      • घुमंतु खेती पर रोक।
      • घुमंतु चरवाहों की आवाजाही पर रोक।
      • जलावनी लकड़ी एकत्रित करने वाली महिलाओ का असुरक्षित होना।
      • रोजमर्रा की चीजों के लिए वन रक्षकों की दया पर निर्भर होना।
      • जंगल में रहने वाले आदिवासी समुदायों को जंगल से बेदखल होना पड़ा जिससे उनके सामने जीविका का संकट उत्पन्न हो गया।


      वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद

      औद्योगिकरण के दौर में सन् 1700 से 1995 के बीच 139 लाख वर्ग किलोमीटर जंगल यानी दुनिया के कुल क्षेत्रफल का 9.3 प्रतिशत भाग औद्योगिक इस्तेमाल, खेती – बाड़ी और इंधन की लकड़ी के लिए साफ कर दिया गया।

      जमीन की बेहतरी

      • अगर हम बात करें सन् 1600 में हिंदुस्तान के कुल भूभाग के लगभग छठे हिस्से पर खेती होती थी। लेकिन अगर हम बात करें अभी की तो यह आंकड़ा बढ़कर आधे तक पहुंच गया। जैसे – जैसे आबादी बढ़ती गई वैसे – वैसे खाद्य पदार्थों की मांग भी बढ़ती गई।
      • किसानों को जंगल को साफ करके खेती की सीमाओं का विस्तार करना पड़ा। औपनिवेशिक काल में खेती में तेजी से फैलाव आया इसकी बहुत सारी वजह थी जैसे अंग्रेजों ने व्यवसायिक फसलो जैसे पटसन, गन्ना, कपास के उत्पादन को जमकर प्रोत्साहित किया।

      पटरी पर स्लीपर

      • 1850 के दशक में रेल लाइनों के प्रसार ने लकड़ी के लिए एक नई तरह की मांग पैदा कर दी। शाही सेना के आने जाने के लिए और औपनिवेशिक व्यापार के लिए रेल लाइनें बहुत जरूरी थी।
      • इंजनों को चलाने के लिए इंधनों के तौर पर और रेल की पटरियों को जोड़े रखने के लिए ‘ स्लीपर ‘ के रूप में लकड़ी की भारी जरूरत थी।
      • एक मील लंबी रेल की पटरी के लिए 1760 – 2000 स्लीपरों की आवश्यकता पड़ती थी। भारत में रेल लाइनों का जाल 1860 के दशक से तेजी से फैला। 1890 तक लगभग 25,500 किलोमीटर लंबी लाइनें बिछाई जा चुकी थी।
      • 1946 में इन लाइनों की लंबाई 7,65,000 किलोमीटर तक बढ़ चुकी थी। रेल लाइनों के प्रसार के साथ – साथ पेड़ों को भी बहुत बड़ी मात्रा में काटा जा रहा था। अगर हम बात करें अकेले मद्रास की तो प्रेसिडेंसी में 1850 के दशक में प्रतिवर्ष 35,000 पेड़ स्लीपरों के लिए काटे गए सरकार ने आवश्यक मात्रा की आपूर्ति के लिए निजी ठेके दिए।
      • इन ठेकेदारों ने बिना सोचे समझे पेड़ काटना शुरू कर दिया। रेल लाइनों के आसपास जंगल तेजी से गायब होने लगें।


      बागान

      यूरोप में चाय और कॉफी की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए इन वस्तुओं के बागान बने और इनके लिए भी प्राकृतिक वनों का एक भारी हिस्सा साफ किया गया। औपनिवेशिक सरकार ने जंगलों को अपने कब्जे में लेकर उनको विशाल हिस्सों को बहुत सस्ती दरों पर यूरोपीय बागान मालिकों को सौंप दिए।

      व्यवसायिक वानिकी की शुरुआत

      • ब्रेडिंस नाम का एक जर्मन विशेषज्ञ था। उसने यह महसूस कराया कि लोगों कि वन का संरक्षण जरूरी है और जंगलों के प्रबंधन के लिए एक व्यवस्थित तंत्र विकसित करना होगा। इसके लिए कानूनी मंजूरी की जरूरत पड़ेगी। वन संपदा के उपयोग संबंधी नियम तय करने पड़ेंगे।
      • पेड़ों की कटाई और पशुओं को चराने जैसी गतिविधियों पर पाबंदी लगा कर ही जंगलों को लकड़ी उत्पादन के लिए आरक्षित किया जा सकेगा।
      • इस तंत्र में पेड़ काटने वाले को सजा का भागी बनना होगा। अलग – अलग प्रजाति वाले प्राकृतिक वनों को काट डाला गया और इनकी जगह सीधी पंक्ति में एक ही किस्म के पेड़ लगा दिए गए इसे बागान कहा जाता था।

      लोगों का जीवन कैसे प्रभावित हुआ

      • जहां एक तरफ ग्रामीण अपनी अलग – अलग जरूरतों जैसे इंधन, चारे व पत्तों के लिए जंगल में अलग – अलग प्रजातियों का पेड़ चाहते थे। वहीं इनसे अलग वन विभाग को ऐसे पेड़ों की जरूरत थी जो जहाजों और रेलवे के लिए इमारती लकड़ी मुहैया करा सके।
      1. ऐसी लकड़ियां जो सख्त, लंबी और सीधी हो।
      2. इसलिए सागौन और साल जैसी प्रजातियों को प्रोत्साहित किया गया और दूसरी किस्मे काट डाली गई।
      3. जंगल वाले इलाके में लोग कंदमूल फल और पत्ते आदि वन उत्पादों का अलग अलग तरीके से इस्तेमाल करते थे।
      4. दवाओं के रूप में जड़ी बूटियों के रूप में लकड़ी का इस्तेमाल होता था।
      5. हल के रूप में और खेती वाले औजार बनाने के रूप में लकड़ी का इस्तेमाल होता था।
      6. बांस से टोकरी बनाने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता था।
      इस वन अधिनियम के चलते देशभर में गांव वालों की मुश्किलें बढ़ती गई इस कानून के बाद घर के लिए लकड़ी काटना, पशुओं का चारा यह सभी रोजमर्रा की गतिविधियां अब गैरकानूनी बन गई अब उनके पास जंगलों से लकड़ी चुराने के अलावा कोई चारा नहीं बचा और पकड़े जाने की स्थिति में उन्हें वन रक्षक को की दया पर होते जो उन्हें घूस ऐंठते थे।

        शिकार की आजादी

        • जंगल संबंधी नए कानूनों ने जंगल वासियों के जीवन को एक और तरह से प्रभावित किया जंगल कानूनों के पहले जंगलों में या उनके आसपास रहने वाले बहुत सारे लोग हिरण, तीतर जैसे छोटे मोटे शिकार करके अपना जीवन यापन करते थे।
        • यह एक पारंपारिक प्रथा अब गैरकानूनी हो गई शिकार करते हुए पकड़े जाने वालों को अवैध शिकार के लिए दंडित किया जाने लगा।
        • हालांकि शिकार पर पाबंदी लगा दी गई थी परन्तु अंग्रेज अफसरों व नवाबों को अभी भी ये छूट मिली हुई थी।
        • जार्ज यूल नामक अंग्रेज अफसर ने अकेले 400 वाघो को मारा था। ये शिकार मनोरंजन के साथ – साथ अपनी प्रभुता सिद्ध करने के लिए की जाती थी।


        वन विद्रोह

        हिंदुस्तान और दुनिया भर में वन्य समुदाय ने अपने ऊपर थोपे गए बदलाव के खिलाफ बगावत की।

        बस्तर के लोग

        • बस्तर छत्तीसगढ़ के सबसे दक्षिणी छोर पर आंध्र प्रदेश, उड़ीसा व, महाराष्ट्र की सीमाओं से लगा हुआ क्षेत्र है। उत्तर में छत्तीसगढ़ का मैदान और दक्षिण में गोदावरी का मैदान है इंद्रावती नदी बस्तर के आर पार पूरब से पश्चिम की तरफ बहती है। बस्तर में मरिया और मूरिया, भतरा, हलबा आदि अनेक आदिवासी समुदाय रहते हैं।
        • अलग–अलग जबानें बोलने के बावजूद इनकी रीति रिवाज और विश्वास एक जैसे हैं। बस्तर के लोग हरेक गांव को उसकी जमीन को ‘ धरती मां ‘ की तरह मानते है। धरती के अलावा वे नदी, जंगल व पहाड़ों की आत्मा को भी उतना ही मानते हैं।
        • एक गांव के लोग दूसरे गांव के जंगल से थोड़ी लकड़ी लेना चाहते हैं तो इसके बदले में वह एक छोटा सा शुल्क अदा करते हैं।
        • कुछ गांव अपने जंगलों की हिफाजत के लिए चौकीदार रखते हैं जिन्हें वेतन के रूप में हर घर से थोड़ा – थोड़ा अनाज दिया जाता है हर वर्ष एक बड़ी सभा का आयोजन होता है जहां एक गांव का समूह गांव के मुखिया जुड़ते हैं और जंगल सहित तमाम दूसरे अहम मुद्दों पर चर्चा करते हैं।


        ब्लैं डाँग डिएन्स्टेन

        डचों ने पहले जंगलों में खेती की जमीनों पर लगान लगा दिया और बाद में कुछ गाँवों को इस शर्त पर इससे मुक्त कर दिया कि वे सामुहिक रूप से पेड़ काटने व लकड़ी ढोने के लिए भैंसे उपलब्ध कटाने का काम मुफ्त में कटेंगे। इस व्यवस्था को ‘ ब्लैं डाँग डिएन्स्टेन कहा गया।


        जावा के जंगलों में हुए बदलाव

        जावा को आजकल इंडोनेशिया के चावल उत्पादक द्वीप के रूप में जाना जाता है। भारत व इंडोनेशिया के वन कानूनों में कई समानताएं थी। 1600 में जावा की अनुमानित आबादी 34 लाख थी उपजाऊ मैदानों में ढेर सारे गांव थे लेकिन पहाड़ों में भी घुमंतू खेती करने वाले अनेक समुदाय रहते थे।

        जावा के लकड़हारे

        उनके कौशल के बगैर सागौन की कटाई कर राजाओं के महल बनाना बहुत मुश्किल था। डचों ने जब 18 वीं सदी में जंगलों पर नियंत्रण स्थापित करना शुरू कर दिया तब इन्होंने भी कोशिश की किले पर हमला करके इसका प्रतिरोध किया लेकिन इस विद्रोह को दबा दिया गया।

        जावा में डचों द्वारा वन कानून बनाने के बाद

        • ग्रामीणों का वनों में प्रवेश निषेध कर दिया गया।
        • वनों से लकड़ियों की कटाई कुछ विशेष कार्यों जैसे नाव बनाने या घन बनाने के लिए किया जा सकता था वह भी विशेष वनों से निगरानी में।
        • मवेशियों के चारण परमिट के बिना लकड़ियों की ढुलाई और वन के अंदर घोड़गाड़ी या मवेशी पर यात्रा करने पर दंड का प्रावधान था।

        सामिनों विद्रोह

        • डचों के इस कानून के खिलाफ सामिनों ने विरोध किया।
        • सुरोंतिको सामिन ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया जिनका मत था कि जब राज्य ने हवा, पानी, धरती या जंगल नहीं बनाए तो यह उस पर कर भी नहीं लगा सकते।

        विद्रोह के तरीकों में:

        1. सर्वेक्षण करने आये डचों के सामने जमीनों पर लेटना।
        2. लगान या जुर्माना न भरना।
        3. बेगार से इंकार करना।

        जावा पर जापानियों के कब्जे ठीक पहले डचों ने भस्म कर भागो नीति के तहत सागौन और आरा मशीनों के लट्ठे जला दिए ताकि वे जापानियों के हाथ न पड़े। इसके बाद जापानियों ने वनवासियों को जंगल काटने के लिए बाध्य कर अपने युद्ध उद्योग के लिए जंगलों का निर्मम दोहन किया।

        Revision Notes for पाठ 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय| Class 9 History

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        Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय Revision Notes Class 9 इतिहास History

        Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय Notes Class 9 Itihas is provided in this page. We have included all the important topics of chapter in the revision notes. By studying the revision notes of Nazism and the Rise of Hitler, students will be able to understand the concepts of the chapter.

        Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय Revision Notes Class 9 इतिहास History

        Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय Notes Class 9 Itihas

        Topics in the Chapter

        • वाइमर गणराज्य
        • वर्साय की संधि
        • राजनीतिक रैडिकलवाद और आर्थिक संकट
        • नात्सीवाद
        • हिटलर के उदय के कारण
        • जर्मनी में नात्सीवाद को लोकप्रियता
        • द्वितीय विश्व युद्ध का अंत
        • नात्सी जर्मनी में युवाओं की स्थिति
        • महिलाओं की स्थिति

        सामाजिक परिवर्तन का युग

        वाइमर गणराज्य की स्थापना

        • जर्मनी ने ऑस्ट्रियाई साम्राज्य के साथ और मित्र राष्ट्रों (इंग्लैंड, फ्रांस और रूस) के खिलाफ प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) लड़ा।
        • जर्मनी ने शुरू में फ्रांस और बेल्जियम पर कब्जा करके लाभ कमाया। हालाँकि, मित्र राष्ट्रों ने 1918 में जर्मनी और केंद्रीय शक्तियों को हराकर जीत हासिल की।
        • वीमर में एक नेशनल असेंबली की बैठक हुई और एक संघीय ढांचे के साथ एक लोकतांत्रिक संविधान की स्थापना की।
        • जून 1919 में वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर हुए जिसमें जर्मनी के ऊपर मित्र शक्तियों ने कई अपमानजनक शर्तें थोपी जैसे :-
        1. युद्ध अपराध बोध अनुच्छेद के तहत छह अरब पौंड का र्जुमाना लगाना।
        2. युद्ध में हुए क्षति के लिए सिर्फ जर्मनी को जिम्मेदार मानना।
        3. जर्मनी को सैन्यविहीन करना।
        4. सारे उपनिवेश 10% आबादी 13% भू–भाग, 75% लौह भंडार और 26% कोयला भंडार का मित्र राष्ट्रों में आपस में बाँट लेना आदि।
        • वर्साय की संधि द्वारा जर्मनी में वाइमर गणराज्य की स्थापना हुई।

        वाइमर गणराज्य के सामने आई समस्याएँ

        वाइमर संधि

        • वर्साय में हुई शांति–संधि की वजह से जर्मनी को अपने सारे उपनिवेश, तकरीबन 10 प्रतिशत आबादी, 13 प्रतिशत भूभाग, 75 प्रतिशत लौह भंडार और 26 प्रतिशत कोयला भंडार फ्रांस, पोलैंड, डेनमार्क और लिथुआनिया के हवाले करने पड़े।
        • मित्र राष्टों ने उसकी सेना भी भंग कर दी। यद्ध अपराधबोध अनुच्छेद के तहत युद्ध के कारण हुई सारी तबाही के लिए जर्मनी को ज़िम्मेदार ठहराकर उस पर छः अरब पौंड का जुर्माना लगाया गया। खनिज संसाधनों वाले राईनलैंड पर भी बीस के दशक में ज़्यादातर मित्र राष्ट्रों का ही क़ब्ज़ा रहा।

        वर्साय की संधि

        प्रथम विश्वयुद्ध के बाद पराजित जर्मनी ने 28 जून 1919 के दिन वर्साय की सन्धि पर हस्ताक्षर किये। इसकी वजह से जर्मनी को अपनी भूमि के एक बड़े हिस्से से हाथ धोना पड़ा, दूसरे राज्यों पर कब्जा करने की पाबन्दी लगा दी गयी, उनकी सेना का आकार सीमित कर दिया गया और भारी क्षतिपूर्ति थोप दी गयी।

        वर्साय की सन्धि को जर्मनी पर जबरदस्ती थोपा गया था। इस कारण एडोल्फ हिटलर और अन्य जर्मन लोग इसे अपमानजनक मानते थे और इस तरह से यह सन्धि द्वितीय विश्वयुद्ध के कारणों में से एक थी।

        आर्थिक संकट

        • युद्ध में डूबे हुए ऋणों के कारण जर्मन राज्य आर्थिक रूप से अपंग हो गया था जिसका भुगतान सोने में किया जाना था। इसके बाद, सोने के भंडार में कमी आई और जर्मन निशान का मूल्य गिर गया। आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छूने लगीं।

        राजनीतिक संकट

        • राष्ट्रीय सभा द्वारा वाडमर गणराज्य का विकास तथा सुरक्षा के रास्ते पर लाने के लिए एक नये जनतांत्रिक संविधान का निर्माण किया गया, किन्तु यह अपने उद्देश्य में असफल रहा। संविधान में बहुत सारी कमजोरियाँ थीं। आनुपातिक प्रतिनिधित्व संबंधी नियमों तथा अनुच्छेद 48 के कारण एक राजनीतिक संकट पैदा हुआ जिसने तानाशाही शासन का रास्ता खोल दिया।


        युद्ध के प्रभाव

        • युद्ध से मनोवैज्ञानिक और आर्थिक रूप से पूरे महाद्वीप पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा।
        • यूरोप कल तक कर्ज देने वालों का महाद्वीप कहलाता था जो युद्ध खत्म होते – होते कर्जदारो का महाद्वीप बन गया
        • पहले महायुद्ध ने यूरोपीय समाज और राजनीतिक व्यवस्था पर अपनी गहरी छाप छोड़ दी थी।
        • सिपाहियों को आम नागरिकों के मुकाबले ज्यादा सम्मान दिए जाने लगा।
        • राजनेता और प्रचारक इस बात पर जोर देने लगे कि पुरुषों को आक्रामक, ताकतवर और मर्दाना गुणों वाला होना चाहिए।

        राजनीतिक रैडिकलवाद और आर्थिक संकट

        • राजनीतिक रैडिकलवादी विचारों को 1923 के आर्थिक संकट से और बल मिला जर्मनी ने पहला विश्वयुद्ध मोटे तौर पर कर्ज लेकर लड़ा था।
        • युद्ध के बाद तो उसे स्वर्ण मुद्रा में हर्जाना भी भरना पड़ा। इस दोहरे बोझ से जर्मनी के स्वर्ण भंडार लगभग खत्म होने की स्थिति में पहुंच गए थे।

        vआखिरकार 1923 में जर्मनी ने कर्ज और हर्जाना चुकाने से इंकार कर दिया। इसका जवाब में फ्रांसीसियों ने जर्मनी के मुख्य औद्योगिक इलाके रूर पर कब्जा कर लिया।

        • यह जर्मनी के विशाल कोयला भंडारों वाला इलाका था। जर्मन सरकार ने इतने बड़े पैमाने पर मुद्रा छाप दी की उसकी मुद्रा मार्क का मूल्य तेजी से गिरने लगा।
        • अप्रैल में एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 24,000 मार्क के बराबर थी। जो जुलाई में 3,53,000 मार्क और अगस्त में 46,21,000 मार्क तथा दिसंबर में 9,88,60,000 मार्क हो गई।


        अति–मुद्रास्फीति

        जैसे–जैसे मार्क की कीमत गिरती गई, जरूरी चीजों की कीमत आसमान छूने लगी जर्मन समाज दुनिया भर में हमदर्दी का पात्र बनकर रह गया इस संकट को बाद में अति – मुद्रास्फीति का नाम दिया गया। जब कीमतें बेहिसाब बढ़ जाती है तो उस स्थिति को अति मुद्रास्फीति का नाम दिया जाता है।


        मंदी के साल

        • 1924 से 1928 तक जर्मनी में कुछ स्थिरता रही लेकिन यह स्थिरता मानव रेत के ढेर पर खड़ी थी।
        • जर्मन निवेश और औद्योगिक गतिविधियों में सुधार मुख्यत : अमेरिका से लिए गए अल्पकालिक कर्जो पर आश्रित था।
        • जब 1929 में शेयर बाजार धराशाई हो गया तो जर्मनी को मिल रही यह मदद भी रातों – रात बंद हो गई।
        • कीमतों में गिरावट की आशंका को देखते हुए लोग धड़ाधड़ अपने शेयर बेचने लगे 24 अक्टूबर को केवल 1 दिन में 1.3 करोड़ शेयर बेच दिए गए।
        • यह आर्थिक महामंदी की शुरुआत थी फैक्ट्रियां बंद हो गई थी, निर्यात गिरता जा रहा था, किसानों की हालत खराब थी, सट्टेबाज बाजार से पैसा खींचते जा रहे थे।
        • अमेरिकी अर्थव्यवस्था में आई इस मंदी का असर दुनियाभर में महसूस किया गया और सबसे बुरा प्रभाव जर्मन अर्थव्यवस्था पर पड़ा।
        • मजदूर या तो बेरोजगार होते जा रहे थे या उनके वेतन काफी गिर चुके थे बेरोजगारों की संख्या 60 लाख तक जा पहुंची।


        नात्सीवाद

        यह एक सम्पूर्ण व्यवस्था और विचारों की पूरी संरचना का नाम है। जर्मन साम्राज्य में यह एक विचारधारा की तरह फ़ैल गई थी जो खास तरह की मूल्य – मान्यताओं, एक खास तरह के व्यवहार सम्बंधित था।

        नाज़ीवाद, जर्मन तानाशाह एडोल्फ़ हिटलर की विचार धारा थी। यह विचारधारा सरकार और आम जन के बीच एक नये से रिश्ते के पक्ष मे थी। इस के अनुसार सरकार की हर योजना मे पहल हो परंतु फिर वह योजना जनता-समाज की भागिदारी से चले। कट्टर जर्मन राष्ट्रवाद, देशप्रेम, विदेशी विरोधी, आर्य और जर्मन हित इस विचार धारा के मूल अंग है।

        नाजीयों का विश्व दृष्टिकोण

        • राष्ट्रीय समाजवाद का उदय।
        • सक्षम नेतृत्व।
        • नस्ली कल्पनालोक (यूजोपिया)
        • जीवन परिधि (लेबेन्सत्राउम) अपने लोगों को बसाने के लिए ज्यादा से ज्यादा इलाकों पर कब्जा करना।
        • नस्लीय श्रेष्ठता शुद्ध और नार्डिक आर्यो का समाज।

        जर्मनी में हिटलर के उदय के कारण

        • वर्साय की संधि शर्ते।
        • वाइमर रिपब्लिक की कमजोरियों।
        • आमूल परिवर्तन वादियों और समाजवादियों में आपसी फूट।
        • नात्सी प्रोपेगैंडा।
        • सर्वघटाकारण का भय।
        • बेरोजगारी।
        • आर्थिक महामंदी।

        हिटलर का उदय

        हिटलर का जन्म 1889 में हुआ था और उसकी युवावस्था गरीबी में बीती थी। प्रथम विश्व युद्ध में उसने सेना की नौकरी पकड़ ली और तरक्की करता गया। युद्ध में जर्मनी की हार से वह दुखी था लेकिन वर्साय संधि द्वारा जर्मनी पर लगाई शर्तों के कारण उसका गुस्सा और बढ़ गया था।

        • हिटलर ने 1919 में वर्कर्स पार्टी की सदस्यता ली और धीरे – धीरे उसने इस संगठन पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।
        • फिर उसे सोशलिस्ट पार्टी का नाम दे दिया।
        • यही पार्टी बाद में नात्सी पार्टी के नाम से जाना गया।
        • महामंदी के दौरान जब जर्मन अर्थव्यवस्था जर्जर हो चुकी थी काम धंधे बंद हो रहे थे।
        • मजदुर बेरोजगार हो रहे थे।
        • जनता लाचारी और भुखमरी में जी रही थी तो नात्सियों ने प्रोपेगैंडा के द्वारा एक बेहतर भविष्य की उम्मीद दिखाकर अपना नात्सी आन्दोलन चमका लिया।
        • और इसी के बाद चुनावों में 32 फीसदी वोट से हिटलर जर्मन का चांसलर बना।

        हिटलर के उदय के कारण

        • आर्थिक संकट:1929 की महामंदी ने जर्मनी की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाया। बेरोज़गारी मूल्य वृद्धि, व्यापार व वाणिज्य का पतन हुआ।
        • हिटलर का व्यक्तित्व:हिटलर का प्रभावशाली व्यक्तित्व, उसका बढ़िया वक्ता होना तथा बढ़िया संगठन कर्ता होना, हिटलर के उदय में सहायक बना।
        • राजनैतिक उथल पुथल:जर्मनी के लोगों का लोकतंत्र से विश्वास उठ गया था।

        हिटलर की राजनैतिक शैली

        • वह लोगों को गोल बंद करने के लिए आडंबर और प्रदर्शन करने में विश्वास रखता था।
        • वह लोगों का भारी समर्थन दर्शाने और लोगों में परस्पर एकता की भावना पैदा करने के लिए बड़े बड़े रैलियाँ और सभाएँ करता था।
        • स्वस्तिक छपे लाल झंडे, नात्सी सैल्यूट का प्रयोग किया करता था और भाषण खास अंदाज में दिया करता था।
        • भाषणों के बाद तालियाँ भी खास अंदाज ने नात्सी लोग बजाया करते थे।
        • चूँकि उस समय जर्मनी भीषण आर्थिक और राजनीतिक संकट से गुजर रहा था इसलिए वह खुद को मसीहा और रक्षक के रूप में पेश कर रहा था जैसे जनता को इस तबाही उबारने के लिए ही अवतार लिया हो।


        जर्मनी में नात्सीवाद को लोकप्रियता

        • 1929 के बाद बैंक दिवालिया हो चुके, काम धंधे बंद होते जा रहे थे, मजदुर बेरोजगार हो रहे थे और मध्यवर्ग को लाचारी और भुखमरी का डर सता रहा था।
        • नात्सी प्रोपेगैंडा में लोगों को एक बेहतर भविष्य की उम्मीद दिखाई देती थी। धीरे – धीरे नात्सीवाद एक जन आन्दोलन का रूप लेता गया और जर्मनी में नात्सीवाद को लोकप्रियता मिलने लगी।
        • हिटलर एक जबरदस्त वक्ता था। उसका जोश और उसके शब्द लोगों को हिलाकर रख देते थे। वह अपने भाषणों में एक शक्तिशाली राष्ट्र की स्थापना, वर्साय संधि में हुई नाइंसाफी जर्मन समाज को खोई हुई प्रतिष्ठा वापस दिलाने का आश्वासन देता था।
        • उसका वादा था कि वह बेरोजगारों को रोजगार और नौजवानों को एक सुरक्षित भविष्य देगा। उसने आश्वासन दिया कि वह देश को विदेशी प्रभाव से मुक्त कराएगा और तमाम विदेशी ‘ साशिशों ‘ का मुँहतोड़ जवाब देगा।

        नात्सियों ने जनता पर पूरा नियंत्रण करने के तरीके

        • हिटलर ने राजनीति की एक नई शैली रची थी। वह लोगों को गोलबंद करने के लिए आडंबर और प्रदर्शन की अहमियत समझता था।
        • हिटलर के प्रति भारी समर्थन दर्शाने और लोगों में परस्पर एकता का भाव पैदा करने के लिए नात्सियों ने बड़ी – बड़ी रैलियाँ और जनसभाएँ आयोजित कीं।
        • स्वस्तिक छपे लाल झंडे, नात्सी सैल्यूट और भाषणों के बाद खास अंदाज में तालियों की गड़गड़ाहट।ये सारी चीजे शक्ति प्रदर्शन का हिस्सा थीं।
        • नात्सियों ने अपने धूआँधार प्रचार के जरिये हिटलर को एक मसीहा, एक रक्षक, एक ऐसे व्यक्ति के रूप में पेश किया, जिसने मानो जनता को तबाही से उबारने के लिए ही अवतार लिया था।
        • एक ऐसे समाज को यह छवि बेहद आकर्षक दिखाई देती थी जिसकी प्रतिष्ठा और गर्व का अहसास चकनाचूर हो चुका था और जो एक भीषण आर्थिक एवं राजनीतिक संकट से गुजर रहा था।

         

        लोकतंत्र का ध्वंस

        • 30 जनवरी 1933 को राष्ट्रपति हिंडनबर्ग ने हिटलर को चांसलर का पदभार संभालने का न्योता दिया यह मंत्रिमंडल में सबसे शक्तिशाली पद था सत्ता हासिल करने के बाद हिटलर ने लोकतांत्रिक शासन की संरचना और संस्थाओं को भंग करना शुरू कर दिया।
        • फरवरी महीने में जर्मन संसद भवन में हुए रहस्यमय अग्निकांड से उसका रास्ता और आसान हो गया। इसके बाद हिटलर ने अपने कट्टर शत्रु कम्युनिस्टो पर निशाना साधा ज्यादातर कम्युनिस्टों को रातो रात कंस्ट्रक्शन कैंपों में बंद कर दिया गया।
        • मार्च 1933 को प्रसिद्ध विशेषाधिकार अधिनियम (इनेबलिंग एक्ट) पारित किया गया। इस कानून के जरिए जर्मनी में बाकायदा तानाशाह स्थापित कर दी गई। नात्सी पार्टी और उससे जुड़े संगठनों के अलावा सभी राजनीतिक पार्टियों और ट्रेड यूनियनों पर पाबंदी लगा दी गई।
        • किसी को भी बिना कानूनी कार्रवाई के देश से निकाला जा सकता था या गिरफ्तार किया जा सकता था।

         

        द्वितीय विश्व युद्ध का अंत

        • द्वितीय विश्व युद्ध वर्ष 1939-45 के बीच होने वाला एक सशस्त्र विश्वव्यापी संघर्ष था।
        • इस युद्ध में दो प्रमुख प्रतिद्वंद्वी गुट धुरी शक्तियाँ (जर्मनी, इटली और जापान) तथा मित्र राष्ट्र (फ्राँस, ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और कुछ हद तक चीन) शामिल थे।
        • यह इतिहास का सबसे बड़ा संघर्ष था जो लगभग छह साल तक चला था।
        • इसमें लगभग 100 मिलियन लोग शामिल हुए थे और 50 मिलियन लोग (दुनिया की आबादी का लगभग 3%) मारे गए थे।
        • जब द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका कूद पड़ा। तो धूरी राष्ट्रों को घुटने टेकने पड़े, इसके साथ ही हिटलर की पराजय हुआ और जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहर पर अमेरिका के बम गिराने के साथ द्वितीय विश्व युद्ध का अंत हो गया।

         

        नात्सी जर्मनी में युवाओं की स्थिति

        • जर्मन और यहूदियों के बच्चे एक साथ बैठ नहीं सकते थे।
        • जिप्सयों, शारीरिक रूप से अक्षम तथा यहूदियों को स्कूल से निकाल दिया गया।
        • स्कूली पाठ्य पुस्तक को फिर से लिखा गया जहाँ 'नस्लीय भेदभाव'को बढ़ावा दिया गया।
        • 10 साल की उम्र के बच्चों को 'युगफोंक'में दाखिल करा दिया जाता था जो एक युवा संगठन था।
        • 14 साल की उम्र में सभी लड़कों को 'हिटलर यूथ'की सदस्यता अनिवार्य कर दी गई।

         

        महिलाओं की स्थिति

        • लड़कियों को अच्छी माँ और शुद्ध रक्त वाले बच्चों को जन्म देना उनका प्रथम कर्तव्य बताया जाता था।
        • नस्ल की शुद्धता बनाए रखना, यहूदियों से दूर रहना और बच्चों का नात्सी, मूल्य मान्यताओं की शिक्षा देने का दायित्व उन्हें सौंपा गया।
        • 1933 में हिटलर ने कहा: मेरे राज्य की सबसे महत्वपूर्ण नागरिक माँ है।
        • नस्ली तौर पर वांछित बच्चों को जन्म देने वाली माताओं को अस्पताल में विशेष सुविधाएँ, दुकानों में ज्यादा छूट थियेटर और रेलगाड़ी के सस्ते टिकट और ज्यादा बच्चे पैदा करने वाली माताओं को कांसे, चाँदी और सोने के लगाये दिए जाते थे।
        • लेकिन अवांछित बच्चों को जन्म देने वाली माताओं को दंडित किया जाता था। आचार संहिता का उल्लंघन करने पर उन्हें गंजा कर मुँह पर कालिख पोत पूरे समाज में घुमाया जाता था। न केवल जेल बल्कि उनसे तमाम नागरिक सम्मान और उनके पति व परिवार भी छीन लिए जाते थे।

        Revision Notes for पाठ 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे| Class 9 History

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        Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे Revision Notes Class 9 इतिहास History

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        Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे Revision Notes Class 9 इतिहास History

        Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे Notes Class 9 Itihas

        Topics in the Chapter

        • घुमंतू चरवाहा
        • गुज्जर समुदाय
        • गुज्जर बकरवाल
        • गद्दी समुदाय
        • भारत तथा विश्व में पाए जाने वाले प्रमुख घुमंतु
        • घुमंतु चरवाहों के जीवन में आए परिवर्तन
        • पठारों, मैदानों और रेगिस्तानों में घुमंतू चरवाहे
        • औपनिवेशिक शासन और चरवाहों का जीवन

        घुमंतू

        रेनके आयोग (2008) द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग 1,500 घुमंतू जनजाति और अर्ध-घुमंतू जनजातियाँ और 198 विमुक्त जनजातियाँ हैं, जिनमें लगभग 15 करोड़ भारतीय शामिल हैं। इस लेख में हम घुमंतू किसे कहते हैं और विमुक्त, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू जनजाति में अंतर क्या है जानेंगे।

        घुमंतू एक जनजाति है, उनका कोई विशेष स्थान नहीं है और वे अपने जीवन यापन के लिए घूमते रहते हैं, इसलिए उन्हें घुमंतू कहा जाता है। यह एक सामाजिक रूप से पिछड़ी जनजाति है। ये जनजातियां अभी भी सामाजिक और आर्थिक रूप से हाशिए पर हैं और इनमें से कई जनजातियां अपने बुनियादी मानवाधिकारों से भी वंचित हैं। सबसे अहम मुद्दा उनकी पहचान को लेकर है।

        इन समुदायों के सदस्यों को पीने का पानी, आश्रय और स्वच्छता आदि जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं। इसके अलावा, वे स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा जैसी सुविधाओं से वंचित हैं। विमुक्त, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू समुदायों के बारे में प्रचलित गलत और आपराधिक धारणाओं के कारण उन्हें अभी भी स्थानीय प्रशासन और पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया जाता है।

        चूंकि इन समुदायों के लोग अक्सर यात्रा पर होते हैं, इसलिए उनके पास कोई स्थायी निवास स्थान नहीं होता है। परिणामस्वरूप उनके पास सामाजिक सुरक्षा छत्र का अभाव है और उन्हें राशन कार्ड, आधार कार्ड आदि भी जारी नहीं किए जाते हैं।

        इन समुदायों के बीच जाति वर्गीकरण बहुत स्पष्ट नहीं है, कुछ राज्यों में ये समुदाय अनुसूचित जाति में शामिल हैं, जबकि कुछ अन्य राज्यों में वे अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के अंतर्गत शामिल हैं। हालाँकि, इन समुदायों के अधिकांश लोगों के पास जाति प्रमाण पत्र नहीं है और इसलिए वे सरकारी कल्याण कार्यक्रमों का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।

        वैसे लोग जो जीवन–यापन की खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान तक घूमते रहते है, घुमंतू कहलाते हैं।


        घुमंतू चरवाहा

        घुमंतू चरवाहे ऐसे लोगों को कहा जाता है, जो एक स्थान पर टिक कर नहीं रहते बल्कि अपनी जीविका के निमित्त एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते है| इन घुमंतू लोगों का जीवन इनके पशुओं पर निर्भर होता है| वह अपने पशुओं के साथ जगह-जगह घूमते है|

        वर्ष भर किसी एक स्थान पर पशुओं के लिए पेयजल और चारे की व्यवस्था सुलभ नहीं हो पाती ऐसे में यह एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमणशील रहते है| जब तक एक स्थान पर चरागाह उपलब्ध रहता है, तब यह वहाँ रहते हैं, पर बाद में चरागाह समाप्त होने पर दूसरे स्थान की और चले जाते है|

        वे लोग जो अपने मवेशियों के लिए चारे की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान तक घूमते रहते हैं उन्हें घुमंतू चरवाहा कहते हैं।

        चरवाहे

        ये लोग दूध, मांस, पशुओं की खाल व ऊन आदि बेचते हैं। कुछ चरवाहे व्यापार और यातायात संबंधी काम भी करते हैं। कुछ लोग आमदनी बढ़ाने के लिए चरवाही के साथ-साथ खेती भी करते हैं। कुछ लोग चरवाही से होने वाली मामूली आय से गुजर नहीं हो पाने पर कोई भी धंधा कर लेते हैं। वैसे लोग जो मवेशियों को पालकर अपना जीवन यापन करते हैं चरवाहे कहलाते हैं।

        भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले चरवाहा समुदाय

        1. गुज्जर समुदाय

        मूलतः उत्तराखण्ड के निवासी गुज्जर लोग गाय और भैंस पालते हैं। ये हिमालय के गिरीपद क्षेत्रों (भाबर क्षेत्र) में रहते हैं। ये लोग जंगलों के किनारे झोंपड़ीनुमा आवास बना कर रहते हैं। पशुओं को चराने का कार्य पूरुष करते हैं। पहले दूध, मक्खन और घी इत्यादि को स्थानीय बाजार में बेचने का कार्य महिलाएँ करती थीं परंतु अब ये इन उत्पादों को परिवहन के साधनों (टैंपो, मोटरसाइकिल आदि) की सहायता से निकटवर्ती शहरों में बेचते हैं। इस समुदाय के लोगों ने इस क्षेत्र में स्थायी रूप से बसना आरंभ कर दिया है परंतु अभी भी अनेक परिवार गर्मियों में अपने पशुओं को लेकर ऊँचे पर्वतीय घास के मैदानों (बुग्याल) की ओर चले जाते हैं। इस समुदाय को स्थानीय नाम ‘वन गुज्जर’ के नाम से भी जाना जाता है। अब इस समुदाय ने पशुचारण के साथ-साथ स्थायी रूप से कृषि करना भी आरंभ कर दिया है। हिमाचल के अन्य प्रमुख चरवाहा समुदाय भोटिया, शेरपा तथा किन्नौरी हैं।


        2. गुज्जर बकरवाल

        इन लोगों ने 19वीं शताब्दी में जम्मू-कश्मीर में बसना आरंभ कर दिया। ये लोग भेड़-बकरियों के बड़े-बड़े झुण्ड पालते हैं जिन्हें रेवड़ कहा जाता है। बकरवाल लोग अपने पशुओं के साथ मौसमी स्थानान्तरण करते हैं। सर्दियों के मौसम में यह अपने पशुओं को लेकर शिवालिक पहाड़ियों में चले आते हैं क्योंकि ऊँचे पर्वतीय मैदान इस मौसम में बर्फ से ढक जाते हैं इसलिए उनके पशुओं के लिए चारे का अभाव होने लगता है जबकि हिमालय के दक्षिण में स्थित शिवालिक पहाड़ियों में बर्फ न होने के कारण उनके पशुओं को पर्याप्त मात्रा में चारा उपलब्ध हो जाता है। सर्दियों के समाप्त होने के साथ ही अप्रैल माह में यह समुदाय अपने काफिले को लेकर उत्तर की ओर चलना शुरू कर देते हैं।

        पंजाब के दरों को पार करके जब ये समुदाय कश्मीर की घाटी में पहुँचते हैं तब तक गर्मी के कारण बर्फ पिघल चुकी होती है तथा चारों तरफ नई घास उगने लगती है। सितम्बर के महीने तक ये इस घाटी में ही डेरा डालते हैं और सितम्बर महीने के अंत में पुनः दक्षिण की ओर लौटने लगते हैं। इस प्रकार यह समुदाय प्रति वर्ष दो बार स्थानांतरण करता है। हिमालय पर्वत में ये ग्रीष्मकालीन चरागाहें, 2,700 मीटर से लेकर 4,120 मीटर तक स्थित हैं।


        3. गद्दी समुदाय

        हिमाचल प्रदेश के निवासी गद्दी समुदाय के लोग बकरवाल समुदाय की तरह अप्रैल और सितम्बर के महीने में ऋतु परिवर्तन के साथ अपना निवास स्थान परिवर्तित कर लेते हैं। सर्दियों में जब ऊँचे क्षेत्रों में बर्फ जम जाती है, तो ये अपने पशुओं के साथ शिवालिक की निचली पहाड़ियों में आ जाते हैं। मार्ग में वे लाहौल और स्पीति में रुककर अपनी गर्मियों की फसल को काटते हैं तथा सर्दियों की फसल की बुवाई करते हैं। अप्रैल के अंत में वे पुनः लाहौल और स्पीति पहुँच जाते हैं और अपनी फसल काटते हैं। इसी बीच बर्फ पिघलने लगती है और दरें साफ हो जाते हैं इसलिए गर्मियों में अपने पशुओं के साथ ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में पहुँच जाते हैं। गद्दी समुदाय में भी पशुओं के रूप में भेड़ तथा बकरियों को ही पाला जाता है।


        भाबर: ‘भाबर’ वह तंग पट्टी है जिसका निर्माण कंकड़ों के जमा होने से होता है जो शिवालिक की ढलान के समानांतर सिंधु एवं तिस्ता नदियों के बीच पाई जाती हैं। इस पट्टी का निर्माण पहाड़ियों से नीचे उतरते समय विभिन्न नदियों द्वारा किया जाता है। सभी नदियाँ भाबर पट्टी में आकर विलुप्त हो जाती हैं।गढ़वाल और कुमाऊँ के इलाके में पहाड़ियों के निचले हिस्से के आस – पास पाया जाने वाला सूखे जंगल के इलाके को ‘ भाबर ‘ कहा जाता है।


        बुग्याल: ऊँचे पहाड़ों पर स्थित घास के मैदानों 'को'बुग्याल कहा जाता है।

        खरीफ फसल: वह फसल जो वर्षा ऋतु के आरंभ में बोया जाता है तथा शीत ऋतु के आरंभ में काट लिया जाता है 'खरीफ'फसल कहलाता है।
        जैसे- चावल आदि।

        रवी फसल: वह फसल जो शीत ऋतु के आरंभ में बोया जाता है तथा ग्रीष्म ऋतु के आरंभ में काट लिया जाता है ‘ रवी ‘ फसल कहलाती है।
        जैसे – गेहूँ, दलहल आदि।


        भारत तथा विश्व में पाए जाने वाले प्रमुख घुमंतु

        भारत

        क्र.

        घुमंडु चरवाहों के नाम

        स्थान

        1.

        गुज्जर बकरवाल

        जम्मू कश्मीर

        2.

        गद्दी

        हिमाचल प्रदेश

        3.

        भोटिया

        उत्तराखंड

        4.

        राइका

        राजस्थान

        5.

        बंजारा

        राजस्थान, मध्य प्रदेश

        6.

        मलधारी

        गुजरात

        7.

        धंगर

        महाराष्ट्र

        8.

        कुसमा, कुरूवा, गोल्ला

        कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना

        9.

        मोनपा

        अरूणाचल प्रदेश

        विश्व

        क्र.

        घुमंडु चरवाहों के नाम

        स्थान

        1.

        मसाई

        केन्या, तंजानिया

        2.

        बेदुइस

        उत्तरी अफ्रीका

        3.

        बरबेर्स

        उत्तर पश्चिमी अफ्रीका

        4.

        तुर्काना

        उगांडा

        5.

        बोरान

        कीनिया

        6.

        मूर्स

        मोरिटानिया

        7.

        सोमाली

        सोमालिया

        8.

        नाम, जुलू

        दक्षिण अफ्रीका

        9.

        बेजा

        मिश्र, सूडान


        घुमंतू चरवाहों के भ्रमण के कारण

        • सालों भर फसल उगाने वाले कृषि क्षेत्र की कमी।
        • मवेशियों के लिए चारे और पानी की खोज।
        • विषम मौसमी दशाओं से स्वयं एवं मवेशियों को बचाने के लिए।
        • अपने उत्पादों को बचेने के लिए।


        औपनिवेशिक काल में घुमंतु चरवाहों के जीवन में आए परिवर्तन एवं उसके प्रभाव

        परिवर्तन

        • भूमिकर बढ़ाने के लिए चारागाहों का कृषि भूमि में बदलना।
        • वन कानूनों के द्वारा वनों का वर्गीकरण।
        • 1871 में अपराधी जनजाति नियम लागू किया गया।
        • आमदनी बढ़ाने के लिए, भूमि, नहर, नमक, व्यापार यहाँ तक कि जानवरों पर भी टैक्स लगा दिया गया।

        प्रभाव

        • मवेशियों की संख्या कम होती चली गई।
        • स्वतंत्र आवाजाही पर रोक तथा परमिट के बिना आने – जाने पर जुर्माने की व्यवस्था।
        • उन्हें अपराधी घोषित कर दिया गया तथा एक क्षेत्र विशेष में ही उन्हें रहने का निर्देश दिया गया।
        • स्थानीय पुलिस के सतर्क निगरानी में परमिट के आधार पर ही किये जा सकते थे।
        • प्रत्येक समूह को मवेशियों की संख्या के आधार पर पास जारी किया गया जो उन्हें चारागाहों में घुसने से पहले दिखाना पड़ता था।
        • इस प्रकार इस टैक्स व्यवस्था ने उनका जीवन और दूभर कर दिया।

        बदलावों का सामना

        • जानवरों की संख्या कम कर दी।
        • नए चरागाहों की खोज।
        • जमीन खरीद कर बसना एवं कृषि कार्य करना।
        • कुछ चरवाही छोड़ कर मजदूरी करने लगे।
        • कुछ व्यापारिक गतिविधियों में संलिप्त हो गए।
        • आवाजाही की दिशा में बदलाव।

        पहाड़ों में घुमंतू चरवाहे और उनकी आवाजाही

        • जम्मू और कश्मीर के गुज्जर बकरवाल समुदाय के लोग अपने मवेशियों के लिए चरागाहों की तलाश में भटकते – भटकते 19 वीं सदी में यहां आए थे। समय बीतता गया और वह यहीं बस गए सर्दी गर्मी के हिसाब से अलग – अलग चरागाहों में जाने लगे।
        • ठंड के समय में ऊंची पहाड़ियां बर्फ से ढक जाती थी तो वह पहाड़ों के नीचे आकर डेरा डाल लेते थे ठंड के समय में निचले इलाकों में मिलने वाली झाड़ियां ही उनके जानवरों के लिए चारा बन जाती थी।
        • जैसे ही गर्मियां शुरू होती जमी हुई बर्फ की मोटी चादर पिघलने लगती और चारों तरफ हरियाली छा जाती। यहां उगने वाली घास से मवेशियों का पेट भी भर जाता था और उन्हें सेहतमंद खुराक भी मिल जाती थी।

        गद्दी चरवाहों की आवाजाही

        • पास के ही पहाड़ों में चरवाहों का एक और समुदाय रहता था हिमाचल प्रदेश के इस समुदाय को गद्दी कहते थे।
        • यह लोग भी मौसमी उतार चढ़ाव का सामना करने के लिए इसी तरह सर्दी- गर्मी के हिसाब से अपनी जगह बदलते रहते थे। अप्रैल आते आते हुए उत्तर की तरफ चल पड़ते हैं और पूरी गर्मियां स्पीति में बिता देते थे। सितंबर तक वह दोबारा वापस चल पड़ते वापसी में वे स्पीति के गांव में एक बार फिर कुछ समय के लिए रुक जाते।


        पठारों, मैदानों और रेगिस्तानों में घुमंतू चरवाहे और उनकी आवाजाही

        चरवाहे सिर्फ पहाड़ों में ही नहीं रहते थे। वे पठारो, मैदानों और रेगिस्तान में भी बहुत बड़ी संख्या में मौजूद थे।

        धंगर

        • धंगर महाराष्ट्र का एक जाना माना चरवाहा समुदाय है। बीसवीं सदी की शुरुआत में इस समुदाय की आबादी लगभग 4,67,000 थी।
        • उनमें से ज्यादातर चरवाहे थे हालांकि कुछ लोग कंबल और चादर भी बनाते थे और कुछ लोग भैंस पालते थे। ये बरसात के दिनों में महाराष्ट्र के मध्य पंडालों में रहते थे। यह एक ऐसा इलाका था जहां बारिश बहुत कम होती थी और मिट्टी भी कुछ खास उपजाऊ नहीं थी चारों तरफ सिर्फ कटीली झाड़ियां होती थी।
        • बाजरे जैसी सूखी फसलों के अलावा यहां और कुछ नहीं उगता था अक्टूबर के आसपास धंगर बाजरे की कटाई करते थे। महीने भर पैदल चलने बाद वे कोंकण के इलाके में जाकर डेरा डाल देते थे। अच्छी बारिश और उपजाऊ मिट्टी की बदौलत इस इलाके में खेती खूब होती थी किसान भी इन चरवाहों का दिल खोलकर स्वागत करते थे।
        • जिस समय वे कोकण पहुंचते थे उसी समय वहां के किसान खरीफ की फसल काटकर अपने खेतों को रबी की फसल के लिए दोबारा उपजाऊ बनाते थे बारिश शुरू होते ही धंगर तटीय इलाके छोड़कर सूखे पठारो की तरफ लौट जाते थे क्योंकि भेड़े गीले मानसूनी हालात को बर्दाश्त नहीं कर पाती।


        बंजारा जनजाति

        बनजारा का अर्थ घुमक्कड़ है। इनका इतिहास बहुत पुराना है। किसी समय में बनजारा शब्द किसी जाति या समुदाय विशेष का परिचायक था । इस शब्द की उत्पत्ति वनज शब्द से हुई है। चरवाहों में एक जाना पहचाना नाम बंजारों का भी है बंजारे उत्तर प्रदेश, पंजाब, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के कई इलाकों में रहते थे। यह लोग बहुत दूर – दूर तक चले जाते थे और रास्ते में अनाज और चारे के बदले गांव वालों को खेत जोतने वाले जानवर और दूसरी चीजें बेचते थे।

        ये घुमक्कड़ लोग हैं और पूरे देश में घूमते रहते है| खुले आकाश के नीचे जहाँ जो जमीन इन्हें भा गई, डेरा डाल दिया जैसे- उस ज़मीं के वे ही मालिक हों, जैसे बादशाह हो । इनकी जनजातीय पहचान अब शेष नहीं रही है | जहाँ ठहर गए वहीं के हो गए। उसी स्थान की बीती, चाल -ढाल, रहन-सहन, रीती -रिवाज को अपनाने का भरपूर प्रयास करने के क्रम में इनकी जनजातीय विशेषता बहुत कम बच गयी है |

        घुमक्कड़ होने के कारण बनजारे पूरे देश में पाये जाते है| झारखण्ड में बंजारा जाति संथाल परगना के राजमहल और दुमका अनुमंडल में संकेंद्रित है। 1941 की जनगणना में इस क्षेत्र में 46 परिवारों के बीच इनकी संख्या 252 थी | गोड्डा के आस -पास बसे चारण, भाट, दशीनी, राय, कबीश्वर आदि अपने को बनजारा ही बतलाते हैं। 1956 में ही इन्हें अनुसूचित जनजाति की सूची में सम्मितित किया गया ।


        औपनिवेशिक शासन और चरवाहों का जीवन

        औपनिवेशिक शासन के दौरान चरवाहों की जिंदगी में बहुत ज्यादा बदलाव आया उनको इधर उधर आने जाने के लिए बंदीशे लगा दी और उनसे लगान भी वसूल किया जाता था और उस लगान में भी वृद्धि की गई और उनके पैसे और हुनर पर भी बहुत बुरा असर पड़ा।

        पहली बात

        • अंग्रेज सरकार चरागाहों को खेती की जमीन में तब्दील कर देना चाहते थे जमीन से मिलने वाला लगान उसकी आमदनी का एक बड़ा स्रोत था। अगर खेती का क्षेत्रफल बढ़ता तो उनकी आय में भी बढोतरी होती इतना ही नहीं कपास, गेहं और अन्य चीजों के उत्पादन में भी इजाफा होता जिनकी इंग्लैंड में बहुत ज्यादा जरूरत थी।
        • अंग्रेज अफसरों को बिना खेती की जमीन का कोई मतलब समझ में नहीं आता था उन्हें लगता था कि इस जमीन से ना तो लगान मिल रहा है ना ही उपज हो रही है तो अंग्रेज ऐसी जमीनों को बेकार मानते थे और ऐसी जमीनों को खेती के लायक बनाना जरूरी समझते थे इसीलिए उन्होंने भूमि विकास के लिए नए नियम बनाए।

        दूसरी बात

        • 19 वीं सदी के मध्य तक आते – आते देश के अलग – अलग प्रांतों में वन अधिनियम पारित किए गए। इन कानूनों की आड़ में सरकार ने ऐसे कई जंगलों को आरक्षित वन घोषित कर दिया। जहां पर देवदार या साल जैसी कीमती लकड़ियां पैदा होती थी जंगलों में चरवाहों के घुसने पर पाबंदी लगा दी गई।
        • जंगलों में चरवाहों को कुछ परंपरागत अधिकार तो दिए गए लेकिन उनका आना – जाना पर अभी भी बंदिशे लगा दी गई थी वन अधिनियमों ने चरवाहों की जिंदगी बदल डाली अब उन्हें उन जंगलों में जाने से रोक दिया गया जो पहले मवेशियों के लिए बहुमूल्य चारे का एक स्रोत थी। जिन क्षेत्रों में उन्हें प्रवेश की छूट दी गई वहां भी उन पर बहुत कड़ी नजर रखी जाती थी जंगलों में दाखिल होने के लिए उन्हें परमिट लेना पड़ता था।

        तीसरी बात

        • अंग्रेज अफसर घुमंतू किस्म के लोगों को शक की नजर से देखते थे घुमंतूओ को अपराधी माना जाता था। 1871 में औपनिवेशिक सरकार ने अपराधी जनजाति अधिनियम (Criminal Tribes Act) पारित किया इस कानून के तहत व्यापारियों और चरवाहों के बहुत सारे समुदाय को अपराधी समुदाय की सूची में रख दिया गया।
        • उन्हें कुदरती और जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया गया इस कानून के लागू होते ही ऐसे सभी समुदाय को कुछ खास बस्तियों में बस जाने का हुक्म सुना दिया गया उसको बिना परमिट आना – जाना पर रोक लगा दिया गया।

        चौथी बात

        • अपनी आमदनी को बढ़ाने के लिए अंग्रेजों ने लगान वसूलने का हर संभव रास्ता अपनाया। उन्होंने जमीन, नेहरो के पानी, नमक और यहां तक कि मवेशियों पर भी टैक्स वसूलने का ऐलान कर दिया। देश के ज्यादातर इलाकों में 19 वी सदी के मध्य से ही चरवाही टैक्स लागू कर दिया गया था।
        • प्रति मवेशी टैक्स की दर तेजी से बढ़ती चली गई और टैक्स वसूली की व्यवस्था दिनोंदिन मजबूत होती गई। 1850 से 1880 के दशक के बीच टैक्स वसूली का काम बाकायदा बोली लगाकर ठेकेदारों को सौंपा जाता था। किसी भी चारागाह में दाखिल होने के लिए चरवाहों को पहले टैक्स अदा करना पड़ता था चरवाहे के साथ कितने जानवर है और उसने कितना टैक्स चुकाया है इन सभी बातों को दर्ज किया जाता था।

        इन बदलावों ने चरवाहों कि जिंदगी को किस तरह प्रभावित किया

        • इन चीजों की वजह से चरवाहों की जिंदगी बहुत बुरी तरह प्रभावित हुई क्योंकि इन चीजों की वजह से चरागाहों की कमी पैदा हो गई। चरागाह खेतों में बदलने लगे तो बचे – कुचे चरागाहों में चरने वाले जानवरों की तादाद बढ़ने लगी।
        • चरागाहों के बेहिसाब इस्तेमाल से चरागाहों का स्तर गिरने लगा जानवरों के लिए चारा कम पढ़ने लगा फलस्वरुप जानवरों की सेहत और तादाद भी गिरने लगी चारे की कमी और जब – तब पढ़ने वाले अकाल की वजह से कमजोर और भूखे जानवर बड़ी संख्या में मरने लगे।

        चरवाहों ने इन बदलावों का सामना कैसे किया

        • कुछ चरवाहों ने तो अपने जानवरों की संख्या ही कम कर दी। बहुत सारे चरवाहे नई नई जगह ढूंढने लगे। अब उन्हें जानवरों को चराने के लिए नई जगह ढूंढनी थी अब वह हरियाणा के खेतों में जाने लगे जहां कटाई के बाद खाली पड़े खेतों में वे अपने मवेशियों को चरा सकते थे।
        • समय गुजरने के साथ कुछ धनी चरवाहे जमीन खरीद कर एक जगह बस कर रहने लगे। उनमें से कुछ नियमित रूप से खेती करने लगे जबकि कुछ व्यापार करने लगे जिन चरवाहों के पास ज्यादा पैसे नहीं थे ब्याज पर पैसे लेकर दिन काटने लगे।

        Revision Notes for पाठ 2 संविधान निर्माण| Class 9 Civics

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        Chapter 2 संविधान निर्माण Revision Notes Class 9 राजनीति विज्ञान

        संविधान निर्माण Notes for Class 9 Rajniti Vigyan is prepared by our experts. We have included all the important topics of chapter in this revision notes. By studying the revision notes of Constitutional Design in Hindi, students will be able to understand the concepts of the chapter and well as answer the questions easily.

        Chapter 2 संविधान निर्माण Revision Notes Class 9 राजनीति विज्ञान

        Chapter 1 संविधान निर्माण Notes Class 9 Loktantrik Rajniti

        Topics in the Chapter

        • दक्षिण अफ्रीका में लोकतांत्रिक संविधान
        • संविधान की जरूरत
        • भारतीय संविधान का निर्माण
        • संविधान सभा
        • भारतीय संविधान के बुनियादी मूल्य

        दक्षिण अफ्रीका में लोकतांत्रिक संविधान

        संविधान:कुछ बुनियादी मूल्य हैं जिनका पालन नागरिकों और सरकार दोनों को करना होता है, ऐसे सभी नियमों का सम्मिलित रूप संविधान कहलाता है। देश का सर्वोच्च कानून होने की हैसियत से संविधान नागरिकों के अधिकार, सरकार की शक्ति और उसके कामकाज के तौर-तरीकों का निर्धारण करता है।

        दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ संघर्ष

        रंगभेद नस्ली भेदभाव पर आधारित उस व्यवस्था का नाम है जो दक्षिण अफ्रीका में विशिष्ट तौर पर चलाई गई। दक्षिण अफ्रीका पर यह व्यवस्था यूरोप के गोरे लोगों ने लादी थी। रंगभेद की राजनीति ने लोगों को उनकी चमड़ी के रंग के आधार पर बाँट दिया । गोरे शासक, गोरों के अलावा शेष सबको छोटा और नीचा मानते थे।

        रंगभेद की शासकीय नीति अश्वेतों के लिए खासतौर से दमनकारी थी ।

        • अश्वेतों को वोट डालने का अधिकार नहीं था।
        • उन्हें गोरों की बस्तियों में रहने-बसने की इजाजत नहीं थी।
        • परमिट होने पर ही वे वहाँ जाकर काम कर सकते थे।
        • रेलगाड़ी, बस, टैक्सी, होटल, अस्पताल, स्कूल औ र कॉलेज, पुस्तकालय, सिनेमाघर, नाट्यगृह, समुद्रतट, तरणताल औ सार्वजनिक शौचालयों तक में गोरों और कालों के लिए एकदम अलग-अलग इंतजाम थे। इसे पृथक्करणकहते है
        • काले लोग गोरों के लिए आरक्षित जगह तो क्या उनके गिरजाघर तक में भी नहीं जा सकते थे।
        • अश्वेतों को संगठन बनाने और इस भेदभावपूर्ण व्यवहार का विरोध करने का भी अधिकार नहीं था ।

        भेदभाव वाली इस शासन प्रणाली का विरोध करने वाले संगठन अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस के झण्डे तले एकजुट हुए। इनमें कई मजदूर संगठन और कम्युनिस्ट पार्टी भी शामिल थी। अनेक समझदार और संवेदनशील गोरे लोग भी रंगभेद समाप्त करने केआन्दोलन में अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस के साथ आए और उन्होंने इस संघर्ष में प्रमुख भूमिका निभाई।

        एक नये संविधान की ओर

        आखिरकार, 26 अप्रैल 1994 की मध्य रात्रि को दक्षिण अफ्रीका गणराज्य का नया झण्डा लहराया गया और यह दुनिया का एक नया लोकतांत्रिक देश बन गया । रंगभेद वाली शासन व्यवस्था समाप्त हुई और सभी नस्ल के लोगों की मिली-जुली सरकार के गठन का रास्ता खुला ।

        दो वर्षों की चर्चा और बहस के बाद उन्होंने जो संविधान बनाया वैसा अच्छा संविधान दुनिया में कभी नहीं बना था। 

        दक्षिण अफ्रीका के संविधान की मुख्य विशेषताएँ निम्न प्रकार है:

        • इस संविधान में नागरिकों को जितने व्यापक अधिकार दिये हैं उतने दुनिया के किसी संविधान में नहीं दिए गए हैं। 
        • साथ ही उन्होंने यह फैसला भी किया कि मुश्किल मामलों के समाधान की कोशिशों में किसी को भी अलग नहीं किया जाएगा और न किसी को बुरा या दुष्ट मानकर बर्ताव किया जाएगा।
        • इस बात पर भी सहमति बनी कि पहले जिसने चाहे जो कुछ किया हो लेकिन अब से हर समस्या के समाधान में सबकी भागीदारी होगी।


        संविधान की जरूरत

        संविधान लिखित नियमों की ऐसी किताब है जिसे किसी देश में रहने वाले सभी लोग सामूहिक रूप से मानते है । संविधान सर्वोच्च कानून है जिससे किसी क्षेत्र में रहने वाले लोगों (जिन्हें नागरिक कहा जाता है) के बीच के आपसी सम्बन्ध तय होने के साथ-साथ लोगों और सरकार के बीच के सम्बन्ध भी तय होते है ।

        संविधान अनेक काम करता है जिनमें ये प्रमुख है :

        • यह साथ रह रहे विभिन्न तरह के लोगों के बीच जरूरी भरोसा और सहयोग विकसित करता है।
        • यह स्पष्ट करता है कि सरकार का गठन कैसे होगा और किसे फैसले लेने का अधिकार होगा ।
        • यह सरकार के अधिकारों की सीमा तय करता है और हमें बताता है कि नागरिकों के क्या अधिकार है।
        • यह अच्छे समाज के गठन के लिए लोगों की आकांक्षाओं को व्यक्त करता है।
        • जिन देशों में संविधान है वे सभी लोकतांत्रिक शासन वाले हों यह जरूरी नहीं है लेकिन जिन देशों में लोकतांत्रिक शासन है वहाँ संविधान का होना जरूरी है।


        भारतीय संविधान का निर्माण

        संविधान निर्माण का रास्ता

        • 1928 में ही मोतीलाल नेहरू और कांग्रेस के आठ अन्य नेताओं ने भारत का एक संविधान लिखा था।
        • 1931 में कराची में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में एक प्रस्ताव में यह रूपरेखा रखी गई थी कि आजाद भारत का संविधान कैसा होगा। इन दोनों ही दस्तावेजों में स्वतंत्र भारत के संविधान में सार्वभौम वयस्क मताधिकार, स्वतंत्रता और समानता का अधिकार और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की बात कही गई थी ।
        • हमारे नेताओं में इतना आत्मविश्वास आ गया था कि उन्हें बाहर के विचार और अनुभवों को अपनी जरूरत के अनुसार अपनाने में कोई हिचक नहीं हुई। हमारे अनेक नेता फ्रांसीसी क्रांति के आदर्शों, ब्रिटेन के संसदीय लोकतंत्र के कामकाज और अमेरिका के अधिकारों की सूची से काफी प्रभावित थे।
        • रूस में हुई समाजवादी क्रांति ने भी अनेक भारतीयों को प्रभावित किया और सामाजिक और आर्थिक समता पर आधारित व्यवस्था बनाने की कल्पना करने लगे थे।
        • लेकिन वे दूसरों की सिर्फ नकल नहीं कर रहे थे। हर कदम पर वे यह सवाल जरूर पूछते थे कि क्या ये चीजें भारत के लिए उपयुक्त होंगी। इन सभी चीजों ने हमारे संविधान के निर्माण में मदद की ।

        संविधान सभा

        चुने गए जनप्रतिनिधियों की जो सभा संविधान नामक विशाल दस्तावेज को लिखने का काम करती है उसे संविधान सभा कहते है।

        भारतीय संविधान सभा के लिए जुलाई 1946 में चुनाव हुए थे । संविधान सभा की पहली बैठक दिसम्ब 1946 में हुयी। इसने 26 नवम्बर 1949 को अपना काम पूरा कर लिया लेकिन संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। इसी दिन की याद में हम हर साल 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाते है।

        इस सभा द्वारा 65 साल से भी पहले बनाए संविधान को स्वीकार किया है क्योंकि:

        • संविधान सिर्फ संविधान सभा के सदस्यों के विचारों को ही व्यक्त नहीं करता है। । यह अपने समय की व्यापक सहमतियों को व्यक्त करता है।
        • संविधान को मानने का दूसरा कारण यह है कि संविधान सभा भी भारत के लोगों का ही प्रतिनिधित्व कर रही थी । उस समय सार्वभौम मताधिकार नहीं था । इसलिए संविधान सभा का चुनाव देश के लोग प्रत्यक्ष ढंग से नहीं कर सकते थे। इसका चुनाव मुख्य रूप से प्रान्तीय असेम्बलियों के सदस्यों ने ही किया था ।
        • अन्ततः जिस तरह संविधान सभा ने काम किया, वह संविधान को एक तरह की पवित्रता और वैधता देता है।संविधान सभा का काम काफी व्यवस्थित, खुला और सर्वसम्मति बनाने के प्रयास पर आधारित था।

        इस सभा में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्यों का प्रभुत्व था जिसने राष्ट्रीय आन्दोलन की अगुवाई की थी। महात्मा गांधी संविधान सभा के सदस्य नहीं थे ।


        भारतीय संविधान के बुनियादी मूल्य

        संविधान का दर्शन

        • जिन मूल्यों ने स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणा दी और उसे दिशा-निर्देश दिए तथा जो इस क्रम में जाँच परख लिये गये वे ही लोकतंत्र का आधार बने । भारतीय संविधान की प्रस्तावना में इन्हें शामिल किया गया।
        • संविधान की शुरूआत बुनियादी मूल्यों की एक छोटी-सी उद्देशिका के साथ होती है । इसे संविधान की उद्देशिका कहते हैं। 
        • मेरिकी संविधान की प्रस्तावना से प्रेरणा लेकर समकालीन दुनिया के अधिकांश देश अपने संविधान की शुरूआत एक प्रस्तावना के साथ करते है ।

        संस्थाओं का स्वरूप

        • संविधान सिर्फ मूल्यों और दर्शन का बयान भर नहीं है। । संविधान इन मूल्यों को संस्थागत रूप देने की कोशिश है।
        • यह एक बहुत ही लम्बा और विस्तृत दस्तावेज है। इसलिए समय-समय पर इसे नया रूप देने के लिए इसमें बदलाव की जरूरत पड़ती है ।
        • भारतीय संविधान निर्माताओं को लगा कि इसे लोगों की भावनाओं के अनुरूप बदलना चाहिए। इसलिए उन्होंने बदलावों को समय-समय पर शामिल करने का प्रावधान रखा । इन बदलावों को संविधान संशोधनकहते है ।


        महत्वपूर्ण शब्द:

        • अफ्रीकन राष्ट्रीय कांग्रेस: पार्टी जिसने पृथक्करण नीति के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष किया।
        • देशद्रोह:अपने राष्ट्र के खिलाफ किये जाने वाला विश्वासघात।
        • संविधान:कानून के रूप में बने हुए मौलिक नियम और सिद्धान्त ।
        • रंगभेद:विधान बनाकर काले और गोरों को अलग निवास करने की प्रणाली को रंगभेद कहते है ।
        • अनुच्छेद:नियमावली का कोई एक विशिष्ट अंग, जिसमें किसी एक विषय का विवेचन होता है
        • आमुख / प्रस्तावना: किसी पुस्तक आदि के आरम्भ का वह वक्तव्य जिससे उसकी ज्ञातव्य बातों का पता चले।
        • मसौदा / प्रारूप:लेख का वह पूर्व रूप जिसमें सुधार किया जाना हो ।

        Revision Notes for पाठ 3 चुनावी राजनीति| Class 9 Civics

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        Chapter 3 चुनावी राजनीति Revision Notes Class 9 राजनीति विज्ञान

        चुनावी राजनीति Notes for Class 9 Rajniti Vigyan is prepared by our experts. We have included all the important topics of chapter in this revision notes. By studying the revision notes of Electoral Politics in Hindi, students will be able to understand the concepts of the chapter and well as answer the questions easily.

        Chapter 3 चुनावी राजनीति Revision Notes Class 9 राजनीति विज्ञान

        Chapter 3 चुनावी राजनीति Notes Class 9 Loktantrik Rajniti

        Topics in the Chapter

        • चुनाव की जरुरत
        • भारतीय चुनाव प्रणाली
        • भारतीय चुनाव कानून 
        • भारतीय चुनाव प्रक्रिया के चरण
        • भारत में लोकतांत्रिक चुनाव

        चुनाव की जरुरत

        लोकतांत्रिक देशों में, प्रत्येक नागरिक को समान मताधिकार होता है, विभिन्न दलों और प्रत्याशियों के बीच स्वतंत्र प्रतियोगिता होती है और मतदाता समयांतराल के बाद अपना प्रतिनिधि चुनते है।

        लोकतंत्र लोगों का, लोगों द्वारा और लोगों के लिए शासन है। अधिकांश लोकतांत्रिक शासन व्यवस्थाओं में लोग अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन करते हैं।

        समयांतराल के बाद प्रतिनिधियों को चुनने की प्रक्रिया को चुनावकहते है। चुनावी प्रक्रिया लोकतांत्रिक देशों में गैर-लोकतांत्रिक देशों से भिन्न होती है। चुनाव में पसंदीदा प्रतियोगी का चुनाव किया जाता है । चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष ढंग से होते हैं।

        चुनाव को लोकतांत्रिक मानने के आधार:

        • हर किसी को चुनाव करने की सुविधा हो । यानि कि हर किसी को मताधिकार का अधिकार प्राप्त हो और हर किसी के मत का समान मोल हो ।
        • चुनाव में विकल्प हों । पार्टियों और उम्मीदवारों को चुनाव में उतरने की आजादी हो और वे मतदाताओं के लिए विकल्प पेश करें ।
        • चुनाव का अवसर नियमित अन्तराल पर मिलता रहे। नए चुनाव कुछ वर्षों में जरूर कराए जाने चाहिए।
        • लोग जिसे चाहें वास्तव में चुनाव उसी का होना चाहिए।
        • चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष ढंग से कराए जाने चाहिए जिससे लोग सचमुच अपनी इच्छा से व्यक्ति का चुनाव कर सकें।


        राजनीतिक प्रतिद्वन्द्विता: (अवगुण) दोष

        • चुनावी प्रतिद्वन्द्विता से बँटवारे जैसी स्थिति हो जाती हैं और लोग 'पार्टी पॉलिटिक्स'के फैलने की शिकायत करते हैं।
        • विभिन्न दलों के लोग और नेता अक्सर एक-दूसरे के खिलाफ आरोप लगाते है। पार्टियाँ और उम्मीदवार चुनाव जीतने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं।
        • कुछ लोगों का कहना है कि चुनावी दौड़ जीतने का यह दबाव सही किस्म की दीर्घकालिक राजनीति को पनपने नहीं देता ।
        • समाज और देश की सेवा करने की चाह रखने वाले कई अच्छे लोग भी इन्हीं कारणों से चुनावी मुकाबले में नहीं उतरते। उन्हें इस मुश्किल और बेढंगी लड़ाई में उतरना अच्छा नहीं लगता।


        राजनीतिक प्रतिद्वन्द्विता के गुण (लाभ)

        चुनाव अच्छे होते हैं क्योंकि शासक दबाव में अच्छा निष्पादन करने के लिए बाध्य होते हैं।

        • सरकार सचेत रहती है कि अगर लोगों की आशंकाओं पर खरे नहीं उतरे तो भविष्य में मतदान उसके खिलाफ होगा।
        • यही दबाव दलों और नेताओं पर होता है कि लोगों की इच्छानुसार मुद्दों को उठाया तो उनकी लोकप्रियता बढ़ेगी लेकिन यदि वे अपने कामकाज से मतदाताओं को संतुष्ट करने में असफल रहते हैं तो वे अगला चुनाव नहीं जीत सकते ।

        भारतीय चुनाव प्रणाली

        देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव हर पाँच साल बाद होते हैं। इन्हें आम चुनावकहते हैं।

        पाँच साल के बाद सभी चुने हुए प्रतिनिधियों का कार्यकाल समाप्त हो जाता है। लोकसभा और विधानसभाएँ 'भंग'हो जाती है। फिर सभी चुनाव क्षेत्रों में एक ही दिन या एक छोटे अन्तराल में अलग-अलग दिन चुनाव होते है । कई बार सिर्फ एक क्षेत्र में चुनाव होता है जो किसी सदस्य की मृत्यु या इस्तीफे से खाली हुआ होता है। इसे उपचुनावकहते है।

        चुनाव के उद्देश्य से देश को अनेक क्षेत्रों में बाँट लिया गया है। इन्हें निर्वाचन क्षेत्रकहते है। एक क्षेत्र में रहने वाले मतदाता अपने एक प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं।

        भारतीय चुनाव कानून :

        • राजनीतिक दल या प्रत्याशी मतदाता को घूस और धमकी नहीं दे सकते।
        • वे धर्म और जाति के आधार वोट नहीं माँग सकते ।
        • वे सरकारी संसाधनों का और धार्मिक स्थलों का चुनाव प्रचार के लिए उपयोग नहीं कर सकते ।
        • वे लोकसभा क्षेत्र के लिए ₹25 लाख और विधानसभा क्षेत्र के लिए 10 लाख से अधिक चुनाव में खर्च नहीं कर सकते ।
        • भारतीय संविधान सभी नागरिकों को समान मतदान का अधिकार देता है

        भारतीय चुनाव प्रक्रिया के चरण:

        • निर्वाचन क्षेत्र का परिसीमन ।
        • कुछ क्षेत्र अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित है। पिछड़ा वर्ग और महिलाओं के लिए भी आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र है।
        • लोकतांत्रिक चुनाव में मतदान की योग्यता रखने वालों की सूची चुनाव से काफी पहले तैयार कर ली जाती है और हर किसी को दे दी जाती है । इस सूची को आधिकारिक रूप से मतदाता सूची कहते हैं।
        • देश में 18 वर्ष और उससे ऊपर की उम्र के सभी नागरिक चुनाव में वोट डाल सकते हैं और उम्मीदवार बनने की न्यूनतम उम्र 25 वर्ष है।
        • चुनाव लड़ने के इच्छुक हर एक उम्मीदवार को एक नामांकन-पत्र भरना पड़ता है और कुछ रकम जमानत के रूप में जमाकरनी पड़ती है।
        • हाल में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर उम्मीदवारों से एक घोषणा-पत्र भरवाने की नयी प्रणाली शुरू हुई है । अब हर उम्मीदवार को अपने बारे में कुछ ब्यौरे देते हुए वैधानिक घोषणा करनी होती है।
        • हमारे देश में उम्मीदवारों की अंतिम सूची की घोषणा होने और मतदान की तारीख के बीच आमतौर पर दो सप्ताह का समय चुनाव प्रचार के लिए दिया जाता है।
        • चुनाव का आखिरी चरण है मतदाताओं द्वारा वोट देना। इस दिन को आमतौर पर चुनाव का दिन कहते है।

        आचार संहितामें उम्मीदवारों और पार्टियों को यह सब करने की मनाही है:

        • चुनाव प्रचार के लिए किसी धर्मस्थल का उपयोग।
        • सरकारी वाहन, विमान या अधिकारियों का चुनाव में उपयोग ।
        • चुनाव की अधिघोषणा हो जाने के बाद मंत्री किसी बड़ी योजना का शिलान्यास, बड़े नीतिगत फैसले या लोगों को सुविधाएँ देने वाले वायदे नहीं कर सकते।

        गत कुछ वर्षों से चुनावों में फोटो पहचान-पत्र की नयी व्यवस्था लागू की गयी है । सरकार ने मतदाता सूची में दर्ज सभी लोगों को यह कार्ड देने की कोशिश की है। । लेकिन मतदान के लिए यह कार्ड अभी अनिवार्य नहीं हुआ है। । वोट देने के लिए मतदाता राशन कार्ड या ड्राइविंग लाइसेंस जैसे पहचान-पत्र भी दिखा सकते है ।


        भारत में लोकतांत्रिक चुनाव

        • चुनाव प्रक्रिया के दौरान कई राजनीतिक पार्टियाँ मत पाने के गलत रास्ते अपनाती हैं। अतः कोई राजनीतिक पार्टी गलत रास्ते अपनाकर चुनाव नहीं जीत सकती ।
        • भारत में चुनाव प्रक्रिया लोकतांत्रिक है। देश में चुनाव एक स्वतंत्र और बहुत ताकतवर चुनाव आयोग द्वारा करवाए जाते हैं। चुनाव आयोगमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त होता है जिसके कई सहायक आयुक्त होते है।
        • भारत का चुनाव आयोग कई कार्यों का निष्पादन करता है। अधिसूचना की घोषणा से लेकर चुनाव परिणामों की घोषणा चुनाव आयोग द्वारा की जाती है। यानि कि यह पूरी चुनाव प्रक्रिया के संचालन के हर पहलू पर निर्णय लेता है। 
        • यह आदर्श चुनाव संहिता लागू कराता है और इसका उल्लंघन करने वाले उम्मीदवारों और पार्टियों को दण्ड देता है।
        • चुनाव के दौरान चुनाव आयोग सरकार को दिशा-निर्देश मानने का आदेश दे सकता है । इसमें सरकार द्वारा चुनाव जीतने के लिए चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग रोकना या अधिकारियों का तबादला करना भी शामिल है । चुनाव आयोग मतदान गड़बड़ी पाये जाने पर पुनर्मतदान के आदेश का अधिकार रखता है यानि कि पुनर्मतदान कराता है।
        • लोगों की सहभागिता को मतदाताओं की भीड़ से आकलित किया जा सकता है।


        महत्वपूर्ण शब्द:

        • चुनाव:किसी शासन के लिए बहुतों में एक या कुछ को प्रतिनिधि के रूप में चुनने की क्रिया ।
        • निर्वाचन क्षेत्र:वह स्थान या क्षेत्र जिसे अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार हो ।
        • निर्वाचक वर्ग:एक क्षेत्र, देश आदि के सभी मतदाता ।
        • मताधिकार:संसद, संस्था आदि के सदस्य या प्रतिनिधि का निर्वाचन करने के लिए वोट या मत देने का अधिकार ।
        • वयस्क मताधिकार:हमारे देश में 18 वर्ष या इससे ऊपर की उम्र के लोगों को मत देने के अधिकार को, वयस्क मताधिकार कहते है ।
        • चुनाव अभियान:प्रत्याशी द्वारा अपने पक्ष में मतदाता को मत देने का प्रयास करना।
        • मतदाता पहचान:पत्र मतदाता, जब मतदान करने जाते है तब परिचय पत्र बतौर साथ रखना जरूरी होता है चुनाव आचार संहिता चुनाव के दौरान सभी पार्टियों के लिए निर्धारित मानक नियम।
        • पदाधिकारी:वह व्यक्ति जो किसी पद पर नियुक्त हो औ र जिसे उस पद के सब अधिकार प्राप्त हों।
        • प्रतिरूपण:किसी वस्तु को एक स्थान से निकालकर दूसरे स्थान पर लगाने की क्रिया ।
        • निर्वाचन आयोग/चुनाव आयोग:संसदीय संस्था, जो देश में सवतंत्र औ र निष्पक्ष चुनाव कराती है

        Revision Notes for पाठ 4 संस्थाओं का कामकाज| Class 9 Civics

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        Chapter 4 संस्थाओं का कामकाज Revision Notes Class 9 राजनीति विज्ञान

        Chapter 4 संस्थाओं का कामकाज Notes for Class 9 Rajniti Vigyan is prepared by our experts. We have included all the important topics of chapter in this revision notes. By studying the revision notes of Working of Institution in Hindi, students will be able to understand the concepts of the chapter and well as answer the questions easily.

        Chapter 4 संस्थाओं का कामकाज Revision Notes Class 9 राजनीति विज्ञान

        Chapter 4 संस्थाओं का कामकाज Notes Class 9 Loktantrik Rajniti

        Topics in the Chapter

        • चुनाव की जरुरत
        • भारतीय चुनाव प्रणाली
        • भारतीय चुनाव कानून 
        • भारतीय चुनाव प्रक्रिया के चरण
        • भारत में लोकतांत्रिक चुनाव

        प्रमुख नीतिगत निर्णय कैसे लिए जाते हैं ?

        लोकतांत्रिक सरकार में, निर्णय करने की शक्ति तीन अलग-अलग शाखाओं में विभाजित है:

        1. विधायिका,
        2. कार्यपालिका
        3. न्यायपालिका

        विधायिका कानून बनाती है, कार्यपालिका उनका पालन कराती हैं और न्यायपालिका नागरिकों और सरकार के बीच उपजे विवाद को सुलझाती है।

        विधायिका द्वारा पारित किये गये नियम-कानूनों का पालन कराने वाले लोगों के समूह को कार्यपालिका कहा जाता है। न्यायपालिका न्यायाधीशों की प्रशासनिक और कानूनी विवादों को सुलझाने वाली संस्था है।

        देश के सभी न्यायालयों को सामूहिक रूप से न्यायपालिका कहते है। कोई भी मुख्य नीति निर्णय सरकारी आदेश के रूप में हस्तान्तरित होता है । सरकारी आदेश को सदैव कार्यालय ज्ञापन कहा जाता है।

        • देश में 1979 में दूसरा पिछड़ी जाति आयोग जनता पार्टी की सरकार के समय, जब मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री थे, गठित किया गया।
        • इसकी अध्यक्षता बी. पी. मंडल ने की थी और इसी कारण इसे आम तौर पर मण्डल आयोग कहते है।
        • मण्डल आयोगके अनुसार भारत सरकार के सरकारी पदों और सेवाओं में 25 फीसदी रिक्तियाँ सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (एसईबीसी) के लिए आरक्षित होंगी। इस आरक्षण मुद्दे का उन लोगों ने सख्त विरोध किया, जिनके नौकरियों के अवसर प्रभावित होने वाले थे ।

        कुछ लोगों का मानना था कि भारत में विभिन्न जातियों के बीच असमानता के कारण ही नौकरियों में आरक्षण जरूरी है। दूसरे पक्ष का मानना था कि इस निर्णय से, जो पिछड़े वर्ग के नहीं है उनके अवसर छिनेंगे। अधिक योग्यता होने पर भी उन्हें नौकरियाँ नहीं मिलेंगी। सरकारी निर्णय से उठने वाले विवाद का उच्च न्यायालय ने 'इंदिरा साहनी'एवं अन्य बनाम भारत सरकार मामला के माध्यम से सुलझाया। उच्च न्यायालय ने कहा कि पिछड़े वर्ग के अच्छी स्थिति वाले लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए।

        कोई भी लोकतंत्र तभी ठीक काम करता है जब ये संस्थाएँ अपने काम को अच्छी तरह करती है । किसी भी देश के संविधान में प्रत्येक संस्था के अधिकारों और कार्यों के बारे में बुनियादी नियमों का वर्णन होता है

        प्रधानमंत्री और कैबिनेट ऐसी संस्थाएँ हैं जो सभी महत्वपूर्ण नीतिगत फैसले करती है | मंत्रियों द्वारा किये गये फैसले को करने के उपायों के लिए एक निकाय के रूप में नौकरशाह जिम्मेदार होते है । सर्वोच्च न्यायालय वह संस्था है जहाँ नागरिक और सरकार के बीच विवाद अन्तत: सुलझाए जाते है।


        ये शब्द भी जानें

        विधानमण्डल: लोकतंत्रीय शासन में जनता के प्रतिनिधियों की वह सभा जो देश के लिए कायदे-कानून बनाती है।

        कार्यकारी: विशेष रूप से कोई कार्य करने वाला व्यक्ति।

        न्यायपालिका: न्यायपालिका एक संस्था है, जो सरकार - सरकार, सरकार औ र नागरिकों के मध्य उपजे विवादों का निपटारा करती है।

        सर्वोच्च न्यायालय: देश का सबसे उच्च श्रेणी का न्यायालय, जो सरकार औ र नागरिकों के मध्य उठे विवादों का निपटारा करता है।


        संसद

        निर्वाचित जन-प्रतिनिधियों की राष्ट्रीय सभा को संसदकहते है । राज्य स्तर पर इसे विधानसभाकहा जाता है । किसी भी देश में कानून बनाने का सबसे बड़ा अधिकार संसद को होता है ।

        • संसद नये कानून बना सकती है, मौजूदा कानूनों में संशोधन कर सकती है या मौजूदा कानून को खत्म कर सकती है। संसद में राष्ट्रीय नीति और देश के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा औ र वाद-विवाद होता है।
        • संसद राष्ट्रपति और दो सदनों से बनती है। भारत में संसद के दो सदन हैं:
          (i) राज्यसभा और,
          (ii) लोकसभा
        • राज्यसभा को कभी-कभी 'अपर हाउस'और लोकसभा को 'लोअर हाउस'कहा जाता है । हमारे संविधान में राज्यसभा को राज्यों के सम्बन्ध कुछ विशेष अधिकार दिये गये है ।
        • देश में अधिकतर मसलों पर सर्वोच्च अधिकार लोकसभा के ही पास है । लोकसभा राष्ट्रपति द्वारा भंग की जा सकती है। बजट और कानून पारित करती है जिसे राज्यसभा को रद्द करने का अधिकार नहीं है

        ये शब्द भी जानें

        संसद: निर्वाचित जन प्रतिनिधियों की राष्ट्रीय सभा ।

        राज्यसभा: भारत की संसद की 'ऊपरी सदन'।


        राजनीतिक कार्यकारी

        अधिकारियों के समूह को सामूहिक रूप से कार्यपालिका के रूप में जाना जाता है। कार्यपालिका के दो हिस्से होते हैं:

        1. राजनैतिक और,
        2. स्थायी

        जनता द्वारा खास अवधि तक के लिए निर्वाचित लोगों को राजनैतिककार्यपालिका कहते हैं। दूसरी ओर जिन्हें लम्बे समय के लिए नियुक्त किया जाता है उन्हें स्थायी कार्यपालिका या प्रशासनिकसेवक कहते हैं।

        राजनैतिक कार्यपालिका को स्थायी कार्यपालिका से ज्यादा अधिकार प्राप्त होते है यानि कि राजनैतिक कार्यपालिका शक्तिशाली होती है । क्योंकि वे नागरिकों के प्रतिनिधि होते हैं।

        • देश में प्रधानमंत्रीसबसे महत्वपूर्ण राजनैतिक संस्था है। फिर भी प्रधानमंत्री के लिए कोई प्रत्यक्ष चुनाव नहीं होता । राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को नियुक्त करते हैं। लेकिन राष्ट्रपति अपनी मर्जी से किसी को प्रधानमंत्री नियुक्त नहीं कर सकते।
        • राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत वाली पार्टी के नेता को ही प्रधानमंत्री नियुक्त करता है ।
        • प्रधानमंत्री का कार्यकाल तय नहीं होता। वह तब तक अपने पद पर रह सकता है जब तक वह पार्टी या गठबंधन का नेता है।प्रधानमंत्री की नियुक्ति के बाद राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर दूसरे मंत्रियों को नियुक्त करते हैं। 
        • प्रधानमंत्री मंत्रियों के चयन के लिए स्वतन्त्र होता है, बशर्ते वे संसद सदस्य हों ।

        मंत्रिपरिषद उस निकाय का सरकारी नाम है जिसमें सारे मंत्री होते है । इसमें अमूमन विभिन्न स्तरों के 80 मंत्री होते हैं। मंत्री तीन स्तर में बंटे होते हैं:

        1. कैबिनेट मंत्री
        2. स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्री,
        3. राज्यमंत्री

        सरकार का प्रमुख होने के नाते प्रधानमंत्री के व्यापक अधिकार होते हैं। वह कैबिनेट की बैठकों की अध्यक्षता करता है । वह विभिन्न विभागों के कार्य का समन्वय करता है । सारे मंत्री उसी के नेतृत्व में काम करते है ।

        एक ओर जहाँ प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है वहीं राष्ट्रपति राष्ट्राध्यक्ष होता है । राष्ट्रपति देश की सभी राजनैतिक संस्थाओं के काम की निगरानी करता है ताकि वे राज्य के उद्देश्यों को हासिल करने के लिए मिल-जुलकर काम करें।

        ये शब्द भी जानें

        राजनैतिक कार्यकारी: राजनेता राजनै तिक कार्यकारी होते है जो नागरिकों द्वारा एक विशेष समय के लिए चुने जाते है ।

        स्थायी कार्यकारी: जो स्थायी नियुक्ति वाले कार्यपालिका के लोगों होते हैं, उन्हें स्थायी कार्यकारीकहते हैं।

        कैबिनेट: कैबिनेट मंत्रिपरिषद का शीर्ष समूह होता है । इसमें करीब 20 मंत्री होते है |

        मंत्रिपरिषद — मंत्रियों की एक संस्था, जो सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति जिम्मेदार होती है।


        न्यायपालिका

        भारतीय न्यायपालिका में पूरे देश के लिए सर्वोच्च न्यायालय, राज्यों में उच्च न्यायालय, जिला न्यायालय और स्थानीय स्तर के न्यायालय होते हैं।

        भारत में न्यायपालिका एकीकृत है। इसका मतलब यह है कि सर्वोच्च न्यायालय देश में न्यायिक प्रशासन को नियंत्रित करता है। देश की सभी अदालतों को उसका फैसला मानना होता है।

        सर्वोच्च न्यायालय देश के नागरिकों के केन्द्र औ



        बीच, नागरिकों औ र सरकार के बीच, दो या उससे अधिक राज्य सरकारों के बीच औ र

        I

        र राज्य के बीच विवादों की सुनवाई करता है भारतीय कानून दो भागों में बँटे है — दीवानी मामले औ र फौजदारी मामले। सिविल न्यायालय भूमि, सम्पत्ति औ र अधिकारों से सम्बद्ध मामले सुनते है वहीं फौजदारी न्यायालय लूट, चोरी औ र अन्य अपराधों से सम्बद्ध मामले सुनते है ।

        न्यायपालिका, विधायिका औ र कार्यपालिका से स्वतंत्र होती है । न्यायाधिकारी सत्ताधारी पार्टी या सरकार के निर्देश पर कोई कार्य नहीं करते । सर्वोच्च न्यायालय औ र उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर करता है T न्यायाधीशों की नियुक्ति में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सलाह ली जाती है ।

        न्यायाधीशों को संसद के दोनों सदनों के दो-तिहाई बहुमत से हटाया जा सकता है I

        सर्वोच्च न्यायालय औ र उच्च न्यायालय संविधान की व्याख्या करने की शक्ति रखते है । यदि न्यायालय यह महसूस करता है कि सरकार का कोई कानून या कार्य संविधान की भावना के खिलाफ है तो उसे अवैधानिक घोषित कर सकता है। । सर्वोच्च न्यायालय

        ने यह भी फैसला दिया है कि संसद, संविधान के मूलभूत सिद्धान्तों को बदल नहीं सकती। भारतीय न्यायपालिका के अधिकार र स्वतंत्रता उसे मौलिक अधिकारों के रक्षक के रूप में काम करने की क्षमता प्रदान करते है ।

        न्यायपालिका सरकार के कार्य और कानून पर पुनर्विचार कर सकती है । भारतीय न्यायपालिका जजों को हटाने औ

        स्वतंत्र है I

        र नियुक्त करने

        सरकार के किसी कार्यकलाप से मानव अधिकार औ र लोगों की रुचि (हित) प्रभावित होती है। , तो कोई भी न्यायालय की शरण में जनहित याचिका दायर करने जा सकता है । न्यायालय सरकार औ र सक्षम अधिकारी को निर्देश दे सकता है का दुरुपयोग न करे।

        कि अपने अधिकारों

        I

        ये शब्द भी जानें

        न्यायपालिका— न्यायपालिका एक संस्था है जो न्यायाधिकारियों पर शासन औ र विवादों का निपटारा करती है जनहित याचिका—जनहित को ठेस पहुँचाने की स्थिति में, न्यायालय में, दायर मुकदमा 'जनहित याचिका'कहलाता है

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        Revision Notes for पाठ 5 लोकतांत्रिक अधिकार| Class 9 Civics

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        Chapter 5 लोकतांत्रिक अधिकार Revision Notes Class 9 राजनीति विज्ञान

        Chapter 5 लोकतांत्रिक अधिकार Notes for Class 9 Rajniti Vigyan is prepared by our experts. We have included all the important topics of chapter in this revision notes. By studying the revision notes of Democratic Rights in Hindi, students will be able to understand the concepts of the chapter and well as answer the questions easily.

        Chapter 5 लोकतांत्रिक अधिकार Revision Notes Class 9 राजनीति विज्ञान

        Chapter 5 लोकतांत्रिक अधिकार Notes Class 9 Loktantrik Rajniti

        Topics in the Chapter

        • अमेरिका द्वारा मानवाधिकारों का उल्लंघन
        • सऊदी अरब में मानवाधिकारों का उल्लंघन
        • यूगोस्लाविया (कोसोवो) में नागरिक मानवाधिकारों का उल्लंघन
        • लोकतंत्र में अधिकार
        • भारतीय संविधान में अधिकार
        • समानता का अधिकार
        • स्वतंत्रता का अधिकार
        • शोषण के खिलाफ अधिकार
        • धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
        • सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार
        • संवैधानिक उपचार का अधिकार
        • अधिकारों का बढ़ता दायरा
        • दक्षिण अफ्रीका के संविधान में नागरिकों को दिये गये कई तरह के नए अधिकार

        अधिकारों के बिना जीवन

        अमेरिका द्वारा मानवाधिकारों का उल्लंघन

        • अमेरिकी फौज ने दुनिया भर के विभिन्न स्थानों से 600 लोगों को चुपचाप पकड़ लिया। इन लोगों को गुआंतानामो बे स्थित एक जेल में डाल दिया । क्यूबा के निकट स्थित इस टापू पर अमेरिकी नौ सेना का कब्जा है।
        • अमेरिकी सरकार कहती है कि ये लोग अमेरिका के दुश्मन हैं और न्यूयार्क सितम्बर 2001 के हमलों से इनका सम्बन्ध है।
        • इन कैदियों के परिवारवालों, मीडिया के लोगों और यहाँ तक कि संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधियों को भी उनसे मिलने की इजाजत नहीं दी जाती। अमेरिकी सेना ने उन्हें गिरफ्तार किया, उनसे पूछताछ की और उसी ने फैसला किया कि किसे जेल में डालना है किसे नहीं। न तो किसी भी जज के सामने मुकदमा चला और ना ही ये कैदी अपने देश की अदालतों का दरवाजा खटखटा सके।
        • एक अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन 'एमनेस्टी इण्टरनेशनल'ने गुआंतानामो बे के कैदियों की स्थिति के बारे में सूचनाएँ इकट्ठी कीं और बताया कि उनके साथ ज्यादती की जा रही है । उनके साथ अमेरिकी कानूनों के अनुसार भी व्यवहार नहीं किया जा रहा है।
        • जिन कैदियों को अधिकारिक रूप से निर्दोष करार दिया गया था उनको भी छोड़ा नहीं गया। संयुक्त राष्ट्र द्वारा करायी गयी एक स्वतंत्र जाँच से भी इन बातों की पुष्टि हुई। संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव ने कहा कि गुआंतानामो बे जेल को बन्द कर देना चाहिए। अमेरिकी सरकार ने इन अपीलों को मानने से इंकार कर दिया ।


        सऊदी अरब में मानवाधिकारों का उल्लंघन

        • देश में एक वंश का शासन चलता है और राजा या शाह को चुनने या बदलने में लोगों की कोई भूमिका नहीं होती। 
        • शाह ही विधायिका और कार्यपालिका के लोगों का चुनाव करते हैं। जजों की नियुक्ति भी शाह करते हैं और वे उनके फैसलों को पलट भी सकते हैं।
        • लोग कोई राजनैतिक दल या संगठन नहीं बना सकते, मीडिया शाह के खिलाफ कोई खबर नहीं दे सकती।
        • कोई धार्मिक आजादी नहीं है। सिर्फ मुसलमान ही यहाँ के नागरिक हो सकते हैं। यहाँ रहने वाले दूसरे धर्मों के लोग घर के अन्दर ही पूजा-पाठ कर सकते हैं। उनके सार्वजनिक/धार्मिक अनुष्ठानों पर रोक है।
        • औरतों को वैधानिक रूप से मर्दों से कमतर का दर्जा मिला हुआ है और उन पर कई तरह की सार्वजनिक पाबंदियां लगी है। मर्दों को जल्दी ही स्थानीय निकाय के चुनावों के लिए मताधिकार मिलने वाला है  जबकि औरतों को यह अधिकार नहीं मिलेगा।


        यूगोस्लाविया (कोसोवो) में नागरिक मानवाधिकारों का उल्लंघन

        • कोसोवो पुराने यूगोस्लाविया का एक प्रान्त था जो अब टूटकर अलग हो गया है। इस प्रदेश में अल्बानियाई लोगों की संख्या बहुत ज्यादा थी पर पूरे देश के लिहाज से सर्ब लोग बहुसंख्यक थे ।
        • उग्र सर्ब राष्ट्रवाद के भक्त मिलोशेविक ने यहाँ के चुनावों में जीत हासिल की। उनकी सरकार ने कोसोवो के अल्बानियाई लोगों के प्रति बहुत ही कठोर व्यवहार किया। उनकी इच्छा थी कि देश पर सर्ब लोगों का ही पूरा नियंत्रण हो। अनेक सर्ब नेताओं का मानना था कि अल्बानियाई लोग जैसे अल्पसंख्यक या तो देश छोड़ कर चले जायें या सर्बों का प्रभुत्व स्वीकार कर लें ।
        • 74 वर्षीय बतीशा होक्सा अपनी रसोई में अपने 77 वर्षीय पति इजेत के साथ बैठी आग ताप रही थी तभी उनका दरवाजा खोलकर पाँच-छह सैनिक दनदनाते हुए अंदर आए और पूछा, "बच्चे कहाँ हैं?"उन्होंने इजेत की छाती में तीन गोलियां दाग दीं। जब उसका पति मर गया, सैनिकों ने उसकी अंगुली से शादी की अँगूठी उतार ली और उसे भाग जाने को कहा। बतीशा अभी दरवाजे से बाहर भी नहीं निकली थी कि उन्होंने घर में आग लगा दी।
        • उन हजारों अल्बानियाई लोगों के साथ हुए बर्ताव में से एक की सच्चाई है । जातीय पूर्वाग्रहों के चलते हाल के वर्षों में जो सबसे बड़ नरसंहार हुए हैं, उनमें यह सम्भवतः सबसे भयंकर था ।
        • आखिरकार मिलोशेविक की सत्ता गयी और बाद में अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में उन पर मानवता के खिलाफ अपराध का मुकदमा चला।


        लोकतंत्र में अधिकार

        हम जो दावे करते है वे तार्किक भी होने चाहिए। इसे उस पूरे समाज से भी स्वीकृति मिलनी चाहिए जिसमें हम रहते हैं। समाज जिस चीज को सही मानता है वही हमारे अधिकार होते हैं।

        • लोकतंत्र में भरण-पोषण का अधिकार अनिवार्य है।
        • लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक को वोट देने और चुनाव लड़ कर प्रतिनिधि चुने जाने का अधिकार है।
        • लोकतांत्रिक चुनाव हों इसके लिए लोगों को अपने विचारों को व्यक्त करने की, राजनैतिक पार्टी बनाने और राजनैतिक गतिविधियों की आजादी होना जरूरी है।
        • किसी अधिकार बहुसंख्यकों के दमन से अल्पसंख्यकों की रक्षा करते हैं। ये इस बात की व्यवस्था करते हैं कि बहुसंख्यक लोकतांत्रिक व्यवस्था में मनमानी न करें। अधिकार स्थितियों के बिगड़ने पर एक तरह की गारण्टी जैसे है।
        • सरकार को नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए लेकिन कई बार चुनी हुई सरकार भी अपने ही नागरिकों के अधिकारों पर हमला करती है या सम्भव है , वह नागरिक के अधिकारों की रक्षा न करे ।
        इसलिए कुछ अधिकरों को सरकार से भी ऊँचा दर्जा दिए जाने की जरूरत है ताकि सरकार भी उनका उल्लंघन न कर सके। अधिकांश लोकतांत्रिक शासन व्यवस्थाओं में नागरिकों के अधिकार संविधान में लिखित रूप में दर्ज होते हैं।


        भारतीय संविधान में अधिकार

        भारतीय संविधान हमें 6 मौलिक अधिकार प्रदान करता है। ये अधिकार भारत के संविधान की महत्वपूर्ण बुनियादी विशेषता है।

        भारतीय संविधान द्वारा दिये गये मौलिक अधिकार हैं:

        1. समानता का अधिकार,
        2. स्वतंत्रता का अधिकार,
        3. शोषण के खिलाफ अधिकार,
        4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार,
        5. सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार,
        6. संवैधानिक उपचार का अधिकार


        समानता का अधिकार

        समानता के अधिकार का अर्थ है सब पर कानून समान रूप से लागू होता है । किसी व्यक्ति का दर्जा या पद, चाहे जो हो सरकार कानून से संरक्षण के मामले में समानता के अधिकार से वंचित नहीं कर सकती। इसे कानून का राज भी कहते है।

        • कानून का राजकिसी भी लोकतंत्र की बुनियाद है। इसका अर्थ हुआ कि कोई भी व्यक्ति कानून के ऊपर नहीं है । किसी राजनेता, सरकारी अधिकारी या सामान्य नागरिक में कोई अन्तर नहीं किया जा सकता है।
        • सरकार किसी से भी केवल उसके धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकती।
        • दुकान, होटल और सिनेमाघरों जैसे सार्वजनिक स्थल में किसी के प्रवेश को रोका नहीं जा सकता। इसी प्रकार सार्वजनिक कुएँ, तालाब, स्नानघाट, सड़क, खेल के मैदान और सार्वजनिक भवनों के इस्तेमाल से किसी को वंचित नहीं किया जा सकता ।
        • सरकारी नौकरियों पर भी यही सिद्धान्त लागू होता है । सरकार में किसी पद पर नियुक्ति या रोजगार के मामले में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता है। उपरोक्त आधारों पर किसी नागरिक को रोजगार के अयोग्य नहीं करार दिया जा सकता या उसके साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता।
        • संविधान सामाजिक भेदभाव के एक बहुत प्रबल रूप, छुआछूत का जिक्र करता है और सरकार को निर्देश देता है कि वह इसे समाप्त करे। किसी भी तरह के छुआछूत को कानूनी रूप से गलत करार दिया गया है।


        स्वतंत्रता का अधिकार

        स्वतंत्रता का अधिकार का मतलब है, हमारे मामलों में किसी किस्म का दखल न होना । न सरकार का, न व्यक्तियों का। 

        भारतीय संविधान ने प्रत्येक नागरिक को कई स्वतंत्रताएँ दी हैं:

        1. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
        2. संगठन और संघ बनाने की स्वतंत्रता
        3. शांतिपूर्ण ढंग से जमा होने की स्वतंत्रता
        4. देश में कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रता
        5.  कोई भी काम करने, धंधा चुनने या पेशा करने की स्वतंत्रता
        6. देश के किसी भी भाग में रहने-बसने की स्वतंत्रता


        शोषण के खिलाफ अधिकार

        • भारतीय संविधान मनुष्य जाति के अवैध व्यापार, किसी किस्म के 'बेगार'या जबरन काम लेने का और बाल मजदूरी का निषेध करता है।


        धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार

        • हर किसी को अपना धर्म मानने, उस पर आचरण करने और उसका प्रचार करने का अधिकार है।


        सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार

        भारतीय संविधान ने अल्पसंख्यकों को सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार उपलब्ध कराये हैं जो इस प्रकार हैं:

        1. सभी अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद का शैक्षिक संस्थान स्थापित करने और चलाने का अधिकार है।
        2. किसी भी सरकारी या सरकारी अनुदान पाने वाले शैक्षिक संस्थान में किसी नागरिक को धर्म या भाषा के आधार पर दाखिला लेने से नहीं रोका जा सकता।
        3. नागरिकों मे विशिष्ट भाषा या संस्कृति वाले किसी भी समूह को अपनी भाषा और संस्कृति को बचाने का अधिकार है।


        संवैधानिक उपचार का अधिकार

        संविधान में दिये गये मौलिक अधिकार महत्वपूर्ण है, इसलिए इन्हें लागू किया जा सकता है। हमें उपर्युक्त अधिकारों को लागू कराने की माँग करने का अधिकार है, हमारे पास उन्हें लागू कराने के उपाय हैं। इसे संवैधानिक उपचारका अधिकार कहा जाता है ।

        यह अधिकार अन्य अधिकारों को प्रभावी बनाता है। सम्भव है कि कई बार हमारे अधिकारों का उल्लंघन कोई और नागरिक या कोई संस्था या फिर स्वयं सरकार ही कर रही हो। पर जब इनमें से हमारे किसी भी अधिकार का उल्लंघन हो रहा हो तो हम अदालत के जरिए उसे रोक सकते हैं, इस समस्या का निदान पा सकते हैं। अगर मौलिक अधिकारों का मामला हो तो हम सीधे सर्वोच्च न्यायालय या किसी राज्य के उच्च न्यायालय में जा सकते हैं। इसी कारण डॉ. अम्बेडकर ने संवैधानिक उपचार के अधिकार को हमारे संविधान की 'आत्मा और हृदय'कहा था ।

        न्यायालय भी व्यक्तियों या निजी संस्थाओं के खिलाफ मौलिक अधिकार के मामले में दखल दे सकती है। सर्वोच्च या उच्च न्यायालयों को मौलिक अधिकार लागू कराने के मामले में निर्देश देने, आदेश या रिट जारी करने का अधिकार है।

        मौलिक अधिकारों के हनन के मामले में कोई भी पीड़ित व्यक्ति न्याय पाने के लिए तुरन्त अदालत में जा सकता है । पर अब, अगर मामला सामाजिक या सार्वजनिक हित का हो तो ऐसे मामलों में मौलिक अधिकारों के उल्लंघन को लेकर कोई भी व्यक्ति अदालत में जा सकता है । ऐसे मामलों को 'जनहित याचिका'के माध्यम से उठाया जाता है । इसमें कोई भी व्यक्ति या समूह सरकार के किसी कानून या काम के खिलाफ सार्वजनिक हितों की रक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय या किसी उच्च न्यायालय में जा सकता है । ऐसे मामले जज के नाम पोस्टकार्ड पर लिखी अर्जी के माध्यम से भी उठाए जा सकते हैं। अगर न्यायाधीशों को लगे कि सचमुच इस मामले में सार्वजनिक हितों पर चोट पहुँच रही है तो मामले को विचार के लिए स्वीकार कर सकते हैं।


        अधिकारों का बढ़ता दायरा

        मौलिक अधिकार बाकी सारे अधिकारों के स्रोत है। हमारा संविधान और हमारे कानून हमें और बहुत सारे अधिकार देते हैं।

        साल-दर-साल अधिकारों का दायरा बढ़ता गया है। समय-समय पर अदालतों ने ऐसे फैसले दिए हैं जिनसे अधिकारों का दायरा बढ़ता गया है।

        • अब स्कूली शिक्षा हर भारतीय का अधिकार बन चुकी है। 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा दिलाना सरकार की जिम्मेदारी है।
        • संसद ने नागरिकों को सूचना का अधिकार देने वाला कानून भी पास कर दिया है। हमें सरकारी दफ्तरों से सूचना माँगने और पाने का अधिकार है।
        • हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने जीवन के अधिकार को नया विस्तार देते हुए उसमें भोजन के अधिकार को भी शामिल कर दिया है।
        • सम्पत्ति रखने का अधिकार और चुनाव में वोट देने का अधिकार एक महत्वपूर्ण संवै धानिक अधिकार है।


        दक्षिण अफ्रीका के संविधान में नागरिकों को दिये गये कई तरह के नए अधिकार

        निजता का अधिकार:इसके कारण नागरिकों और उनके घरों की तलाशी नहीं ली जा सकती, उनके फोन टेप नहीं किये जा सकते, उनकी चिट्ठी-पत्री को खोलकर पढ़ा नहीं जा सकता ।

        पर्यावरण का अधिकार:ऐसा पर्यावरण पाने का अधिकार जो नागरिकों के स्वास्थ्य या कुशलक्षेम के प्रतिकूल न हो।

        पर्याप्त आवास पाने का अधिकार ।

        स्वास्थ्य सेवाओं, पर्याप्त भोजन और पानी तक पहुँच का अधिकार; किसी को भी आपात चिकित्सा देने से मना नहीं किया जा सकता।

        दुनिया भर के मानवाधिकार कार्यकर्ता अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिज्ञा पत्र को एक मानक मानवाधिकार के रूप में देखते हैं। इनमें शामिल हैं:

        • काम करने का अधिकार:हर किसी को काम करने, अपनी जीवका का उपार्जन करने का अवसर। काम करने के सुरक्षित और स्वास्थ्यप्रद माहौ ल का अधिकार तथा मजदूरों और उनके परिवारों के लिए सम्मानजनक जीवन-स्तर लायक उचित मजदूरी का अधिकार।
        • समुचित जीवन:स्तर जीने का अधिकार में पर्याप्त भोजन, कपड़ा और मकान का अधिकार शामिल है । 
        • सामाजिक सुरक्षा और बीमा अधिकार ।
        • स्वास्थ्य का अधिकार:बीमारी के समय इलाज, प्रजनन काल में महिलाओं का खास ख्याल और महामारियों से रोकथाम ।
        • शिक्षा का अधिकार:मुफ्त एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा, उच्चतर शिक्षा तक समान पहुँच।

        महत्वपूर्ण शब्द:

        • एमनेस्टी इण्टरनेशनल:वह संगठन जो विश्व में मौलिक अधिकारों के हनन से जुड़ी खबरें और प्रतिवेदन उजागर करता है।
        • सजातीय समूह:एक ही पूर्वज की सन्तान, जो खुद को एक ही पूर्वजों का कहकर पुकारते है ।
        • सम्मन:न्यायालय का वह आज्ञा - पत्र जिसमें किसी को न्यायालय में उपस्थित होने की आज्ञा दी जाती है।
        • याचिका: वह पत्र जिसमें किसी से कुछ याचना की गई हो।
        • दलित:जो दबाकर बहुत हीन कर दिया गया हो।


        Revision Notes for पाठ 1 पालमपुर गाँव की कहानी| Class 9 Economics

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        Chapter 1 पालमपुर गाँव की कहानी Revision Notes Class 9 अर्थशास्त्र

        Chapter 1 पालमपुर गाँव की कहानी Notes for Class 9 Arthshastra is prepared by our experts. We have included all the important topics of chapter in this revision notes. By studying the revision notes of The Story of Village Palampur in Hindi, students will be able to understand the concepts of the chapter and well as answer the questions easily.

        Chapter 1 पालमपुर गाँव की कहानी Notes Class 9 Arthashastra

        Topics in the Chapter

        • उत्पादन का संगठन
        • पालमपुर में खेती
        • बहुविध फसल प्रणाली
        • हरित क्रांति
        • पालमपुर में गैर-कृषि क्रियाएँ

        उत्पादन का संगठन

        पालमपुर आस-पड़ोस के गाँवों और कस्बों से भली भाँति जुड़ाा हुआ गाँव में विभिन्न जातियों के लगभग 450 परिवार रहते हैं।

        भारत के गाँवों में खेती उत्पादन की प्रमुख गतिविधि है। अन्य उत्पादन गतिविधियों में, जिन्हें गैर कृषि क्रियाएँ कहा गया है उनमें लघु विनिर्माण, परिवहन, दुकानदारी आदि शामिल है ।

        उत्पादन का संगठन

        उत्पादन का उद्देश्य ऐसी वस्तुएँ और सेवाएँ उत्पादित करना है, जिनकी हमें आवश्यकता है।

        वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिए चार चीजें आवश्यक है ।

        • भूमि: भूमि तथा अन्य प्राकृतिक संसाधन; जैसे - जल, वन, खनिज।
        • श्रम:श्रम अर्थात् जो लोग काम करेंगे। कुछ उत्पादन क्रियाओं में जरूरी कार्यों को करने के लिए बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे कर्मियों की जरूरत होती है । दूसरी क्रियाओं के लिए शारीरिक कार्य करने वाले श्रमिकों की जरूरत होती है।
        • भौतिक पूँजी:उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर अपेक्षित कई तरह के आगत औजार, मशीन, भवन को स्थायी पूँजी कहते हैं। कच्चा माल तथा नकद पैसों को कार्यशील पूँजी कहते है ।
        • मानव पूँजी:आपको स्वयं उपभोग हेतु या बाजार में बिक्री हेतु उत्पादन करने के लिए भूमि, श्रम और भौतिक पूँजी को एक साथ करने योग्य बनाने के लिए ज्ञान और उद्यम की आवश्यकता पड़ेगी। आजकल इसे मानव पूँजी कहते है।
        उत्पादन भूमि, श्रम और पूँजी को संयोजित करके संगठित होता है, जिन्हें उत्पादन के कारक कहा जाता है।


        पालमपुर में खेती

        भूमि स्थिर है

          • पालमपुर के 75 प्रतिशत लोग अपनी आजीविका के लिए खेती पर निर्भर करते हैं।
          • इन लोगों का हित खेतों में उत्पादन से जुड़ा हुआ है।
          • पालमपुर गाँव में वास्तव में खेती में प्रयुक्त भूमि-क्षेत्र स्थिर है। | वर्ष 1960 से आज तक जुताई के अन्तर्गत भूमि क्षेत्र में कोई विस्तार नहीं हुआ है।
          • उस समय तक, गाँव की बंजर भूमि को कृषि योग्य भूमि में बदल दिया गया था।
          • भूमि मापने की इकाई हेक्टेयर है।


          क्या भूमि यह धारण कर पाएगी ?

          भूमि एक प्राकृतिक संसाधन है, अतः इसका सावधानीपूर्वक प्रयोग करने की जरूरत है।

          खेती की आधुनिक कृषि विधियों ने प्राकृतिक संसाधन आधार का अति उपयोग किया है।

          • अनेक क्षेत्रों में, हरित क्रांति के कारण उर्वरकों के अधिक प्रयोग से मिट्टी की उर्वरता कम हो गई है।
          • नलकूपों से सिंचाई के कारण भूमि जल के सतत् प्रयोग से भौम जल स्तर कम हो गया है।
          • रासायनिक उर्वरक ऐसे खनिज देते है जो पानी में घुलकर पौधे को तुरन्त प्राप्त होते है परन्तु ये मिट्टी में अधिक दिन तक सुरक्षित नहीं रहते। ये धरती में समा जाते हैं और भौम जल, नदी और झीलों को प्रदूषित करते हैं।
          • रासायनिक उर्वरक भूमि के सूक्ष्म जीवाणुओं को मारते हैं। अत: भूमि की उर्वर क्षमता समाप्त हो जाती है और रासायनिक उर्वरकों का अति उपयोग से निम्नस्तर में बदल जाती है।
          रासायनिक उर्वरक उपयोग पंजाब में सबसे अधिक होता है।


          पालमपुर के किसानों में भूमि का वितरण

            पालमपुर में खेती के काम में लगे सभी लोगों के पास खेती के लिए पर्याप्त भूमि नहीं है। गाँव के चारों ओर बिखरे हुए छोटे-छोटे खेत हैं जिस पर छोटे किसान खेती करते हैं।

            दूसरी ओर, गाँव के आधे से ज्यादा क्षेत्र में काफी बड़े आकार के प्लॉट हैं, जिन पर मझोले और बड़े 60 किसान हैं जो 2 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर खेती करते हैं। कुछ बड़े किसान हैं जिनके पास 10 हेक्टेयर या इससे अधिक भूमि है।


            श्रम की व्यवस्था

              छोटे किसान अपने परिवारों के साथ अपने खेतों में स्वयं काम करते हैं। मझोले और बड़े किसान अपने खेतों में काम करने के लिए दूसरे श्रमिकों को किराये पर लगाते हैं।

              • खेतों में काम करने के लिए श्रमिक या तो भूमिहीन परिवारों से आते हैं या बहुत छोटे प्लॉटों में खेती करने वाले परिवारों से।
              • खेतों में काम करने वाले श्रमिक या तो दैनिक मजदूरी के आधार पर कार्य करते हैं या उन्हें कार्य विशेष जैसे कटाई या पूरे साल के लिए काम पर रखा जा सकता है।
              • सरकार द्वारा खेतों में काम करने वाले श्रमिकों के लिए एक दिन का न्यूनतम वेतन ₹300 (अप्रैल 2017 में) निर्धारित है। ।


              खेतों के लिए आवश्यक पूँजी

                अधिसंख्य छोटे किसानों को पूँजी की व्यवस्था करने के लिए पैसा उधार लेना पड़ता है।

                • वे बड़े किसानों से या गाँव के साहूकारों से या खेती के लिए विभिन्न आगतों की पूर्ति करने वाले व्यापारियों से कर्ज लेते हैं।
                • ऐसे कर्जों पर ब्याज की दर बहुत ऊँची होती है। कर्ज चुकाने के लिए उन्हें बहुत कष्ट सहने पड़ते हैं।
                मझोले और बड़े किसानों को खेती से बचत होती है इसलिए वे अपने लिए आवश्यक पूँजी की व्यवस्था कर लेते हैं।


                अधिशेष कृषि उत्पादों की बिक्री

                • किसान परिवार के उपभोग के लिए कुछ गेहूँ रख लेते हैं और अधिशेष गेहूँ को बेच देते हैं।
                • बाजार में व्यापारी गेहूँ खरीदकर उसे आगे कस्बों और शहरों के दुकानदारों को बेच देते  हैं।
                • बड़े किसान खेती के अधिशेष कृषि उत्पादों को बेचते हैं और अच्छी कमाई करते हैं।
                • इस तरह वे अपनी खेती के लिए पूँजी की व्यवस्था अपनी ही बचतों से कर लेते  हैं।
                • कुछ किसान बचत का उपयोग पशु, ट्रक आदि खरीदने अथवा दुकान खोलने में भी करते  हैं।


                खेती की आधुनिक विधियाँ

                1. बहुविध फसल प्रणाली

                पालमपुर में समस्त भूमि पर खेती की जाती है। कोई भूमि बेकार नहीं छोड़ी जाती।

                • बरसात के मौसम (खरीफ) में किसान ज्वार और बाजरा उगाते हैं। इन पौधों को पशुओं के चारे के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
                • इसके बाद अक्टूबर और दिसम्बर के बीच आलू की खेती होती है।
                • सर्दी के मौसम (रबी) में खेतों में गेहूँ उगाया जाता है।
                • भूमि के एक भाग में गन्ने की खेती भी की जाती है, जिसकी वर्ष में एक बार कटाई होती है।

                पालमपुर में एक वर्ष में किसान तीन अलग-अलग फसलें इसलिए पैदा करते हैं क्योंकि वहाँ सिंचाई की सुविकसित व्यवस्था है। एक वर्ष में किसी भूमि पर एक से ज्यादा फसल पैदा करने को बहुविध फसल प्रणाली कहते हैं। यह भूमि के किसी एक टुकड़े में उपज बढ़ाने की सबसे सामान्य प्रणाली है।


                2. हरित क्रांति

                1960 के दशक के मध्य तक खेती में पारम्परिक बीजों का प्रयोग किया जाता था जिनकी उपज अपेक्षाकृत कम थी।

                • 1960 के दशक के अन्त में हरित क्रांति ने भारतीय किसानों को अधिक उपज वाले बीजों (एच. वाई. वी.) के द्वारा गेहूँ और चावल की खेती करने के तरीके सिखाए ।
                • परम्परागत बीजों की तुलना में एच. वाई. वी. बीजों से एक ही पौधों से ज्यादा मात्रा में अनाज पैदा होने की आशा थी। अधिक उपज केवल अति उपज प्रजातियों वाले बीजों, सिंचाई, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों आदि के संयोजन से ही सम्भव थी।
                • भारत में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने खेती के आधुनिक तरीकों का सबसे पहले प्रयोग किया।


                पालमपुर में गैर-कृषि क्रियाएँ

                पालमपुर में काम करने वाले केवल 25 प्रतिशत लोग कृषि के अतिरिक्त अन्य कार्य करते हैं।

                गाँव में लोग गैर-कृषि क्रियाओं के अन्तर्गत डेयरी, दुकानदारी और पहिवहन से जुड़े कार्यों में लगे हैं।

                गैर कृषि कार्यों के प्रसार के लिए यह आवश्यक है कि ऐसे बाजार हों, जहां वस्तुएँ और सेवाएँ बेची जा सकें। 

                पालमपुर में भी ऐसा ही पाया गया कि आस-पड़ोस के गाँवों, कस्बों और शहरों में दूध, गुड़, गेहूँ आदि उपलब्ध है ।

                जैसे-जैसे ज्यादा कस्बों और शहरों से अच्छी सड़कों, परिवहन और टेलीफोन से जुड़ेंगे, भविष्य में गाँवों में गैर-कृषि उत्पादन क्रियाओं के अवसर बढ़ेंगे।


                महत्वपूर्ण शब्द

                • गैर-कृषि क्रियाएँ:खेती के अलावा गाँव में होने वाली क्रियाएँ ।
                • श्रम:ऐसा काम जिसे करते-करते शरीर में शिथिलता आने लगे।
                • पूँजी:वह असल धन जो किसी के पास हो या लाभ आदि के लिए व्यापार में लगाया जाए।
                • भौतिक पूँजी:उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर अपेक्षित कई तरह के आगत।
                • स्थायी पूँजी:औजारों, मशीनों और भवनों का उत्पादन में कई वर्षों तक प्रयोग होता है और इन्हें स्थायी पूँजी कहते हैं।
                • कार्यशील पूँजी:कच्चा माल तथा नकद पैसों को कार्यशील पूँजी कहते हैं।
                • मानव पूँजी:कौशल और उनमें निहित उत्पादन के ज्ञान का भण्डार है।
                • कृषि:भूमि पर फसलें उगाने की कला।
                • भूमि की उर्वरता:भूमि की वह योग्यता जो पौधे उगाने या पौधे के जीवन के लिए जरूरी है।

                Revision Notes for पाठ 2 संसाधन के रूप में लोग| Class 9 Economics

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                Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग Revision Notes Class 9 अर्थशास्त्र

                Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग Notes for Class 9 Arthshastra is prepared by our experts. We have included all the important topics of chapter in this revision notes. By studying the revision notes of People as Resource in Hindi, students will be able to understand the concepts of the chapter and well as answer the questions easily.

                Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग Notes Class 9 Arthashastra

                Topics in the Chapter

                • लोग का संसाधन के रूप में प्रयोग
                • पुरुषों और महिलाओं के आर्थिक क्रियाकलाप
                • आर्थिक क्रियाएँ
                • जनसंख्या की गुणवत्ता
                • शिक्षा
                • स्वास्थ्य
                • साक्षरता दर
                • बेरोजगारी

                लोग का संसाधन के रूप में प्रयोग

                जब शिक्षा, प्रशिक्षण और चिकित्सा सेवाओं में निवेश किया जाता है तो वहाँ कि जनसंख्या मानव पूँजी में बदल जाती है। वास्तव में, मानव पूँजी कौशल और उनमें निहित उत्पादन के ज्ञान का स्टॉक है ।

                उत्पादक पहलू की दृष्टि से जनसंख्या पर विचार करना सकल राष्ट्रीय उत्पाद के सृजन में उनके योगदान की क्षमता पर बल देता है। 

                जब इस विद्यमान मानव संसाधन को और अधिक शिक्षा तथा स्वास्थ्य द्वारा और विकसित किया जाता है, तब हम इसे पूँजी निर्माणकहते हैं, जो भौतिक पूँजी निर्माण की ही भाँति देश की उत्पादक शक्ति में वृद्धि करता है।

                मानव पूँजी में निवेश (शिक्षा, प्रशिक्षण और स्वास्थ्य सेवा के द्वारा) भौतिक पूँजी की ही भाँति प्रतिफल प्रदान करता है।

                भारत की हरित क्रान्ति एक उदाहरण है कि किस प्रकार बेहतर उत्पादन प्रौद्योगिकी के रूप में अधिक ज्ञान रूपी आगत दुर्लभ भूमि संसाधन की उत्पादकता में वृद्धि ला सकता है।

                वास्तव में, मानव पूँजी एक तरह से अन्य संसाधनों; जैसे भूमि और भौतिक पूँजी से श्रेष्ठ है,क्योंकि मानव संसाधन भूमि और पूँजी का उपयोग कर सकता है। भूमि और पूँजी अपने आप उपयोगी नहीं हो सकते।

                एक बच्चा भी, जिसकी शिक्षा और स्वास्थ्य पर निवेश किया गया है, भविष्य में उच्च आय और समाज को वृहद योगदान के रूप में अधिक प्रतिफल दे सकता है।

                शिक्षित माँ-बाप अपने बच्चों की शिक्षा पर अधिक निवेश करते हैं, और उचित पोषण और स्वच्छता के प्रति भी सचेत होते हैं। इस तरह इस मामले में एक अच्छा चक्र बन जाता है।

                इसके विपरीत, स्वयं भी अशिक्षित और अस्वच्छता तथा सुविधावंचित स्थिति में रहने वाले माँ-बाप एक दुष्चक्र सृजित कर लेते है। जापान जैसे देशों ने मानव संसाधन पर निवेश किया है। उनके पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं था जिसके बाद भी यह एक विकसित धनी देश है। इन लोगों ने जो कुशलता और प्रौद्योगिकी विकसित की उसी से ये देश धनी/विकसित बने।


                पुरुषों और महिलाओं के आर्थिक क्रियाकलाप

                विभिन्न क्रियाकलापों को तीन प्रमुख क्षेत्रकों में विभाजित किया गया है। ये हैं, प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक।

                • प्राथमिक क्षेत्रकके अन्तर्गत कृषि, वानिकी, पशुपालन, मत्स्यपालन, मुर्गीपालन और खनन एवं उत्खनन शामिल हैं।
                • द्वितीयक क्षेत्रमें विनिर्माण शामिल है।
                • तृतीयक क्षेत्रकमें व्यापार, परिवहन, संचार, बैकिंग, बीमा, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन सेवाएँ इत्यादि शामिल किए जाते हैं। इस क्षेत्रक में क्रियाकलाप के फलस्वरूप वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है।

                ये क्रियाकलाप राष्ट्रीय आय में मूल्य-वर्धन करते हैं। ये क्रियाएँ आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं।

                आर्थिक क्रियाओं को दो भाग में विभाजित किया गया है: बाजार क्रियाएँ और गैर-बाजार क्रियाएँ।

                • बाजार क्रियाओंमें वेतन या लाभ के उद्देश्य से की गई क्रियाओं के लिए पारिश्रमिक भुगतान किया जाता है। इनमें सरकारी सेवा सहित वस्तु या सेवाओं का उत्पादन शामिल है।
                • गैर-बाजार क्रियाओंसे अभिप्राय स्व-उपभोग के लिए उत्पादन है। इनमें प्राथमिक उत्पादों का उपभोग और प्रसंस्करण तथा अचल सम्पत्तियों का स्वलेखा उत्पादन आता है।

                ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कारणों से परिवार में महिलाओं और पुरुषों के बीच श्रम का विभाजन होता है।

                परिवार के लिए दी गई सेवाओं के बदले महिलाओं को भुगतान नहीं दिया जाता। उनकी सेवाओं को राष्ट्रीय आय में नहीं जोड़ा जाता।

                संगठित क्षेत्रक में महिलाओं को शिक्षण और चिकित्सा सबसे अधिक आकर्षित करते हैं। कुछ महिलाओं ने सामान्य नौकरियों के अलावा प्रशासनिक और अन्य सेवाओं में प्रवेश किया है, जिनमें वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीय सेवा के उच्च स्तर आवश्यकता पड़ती है।

                जनसंख्या की गुणवत्ता

                जनसंख्या की गुणवत्ता निर्भर करती है:

                • साक्षरता दर
                • जीवन-प्रत्याशा से निरूपित व्यक्तियों के स्वास्थ्य
                • देश के लोगों द्वारा प्राप्त कौशल निर्माण पर

                शिक्षा

                व्यक्ति के विकास के लिए शिक्षा एक महत्वपूर्ण आगत है।

                • इसने व्यक्ति के लिए नए क्षितिज खोले।
                • नयी आकांक्षाएँ दीं।
                • जीवन के मूल्य विकसित किए।
                • समाज के विकास में भी शिक्षा का योगदान है।
                • यह राष्ट्रीय आय औ र सांस्कृतिक समृद्धि में वृद्धि करती है।
                • प्रशासन की कार्यक्षमता बढ़ाती है ।
                • प्राथमिक शिक्षा में सार्वजनिक पहुँच, धारण और गुणवत्ता प्रदान करने का प्रावधान किया गया है और इस मामले में लड़कियों पर विशेष जोर दिया गया है ।
                • प्रत्येक जिले में नवोदय विद्यालय जैसे प्रगतिनिर्धारक विद्यालयों की स्थापना की गई है।
                • बड़ी संख्या में हाई स्कूल के विद्यार्थियों को ज्ञान और कौशल से सम्बन्धित व्यवसाय उपलब्ध कराने के लिए व्यावसायिक शाखाएँ विकसित की गई है ।
                • 6 से 14 वर्ष आयु वर्ग के सभी स्कूली बच्चों को वर्ष 2010 तक प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने की दिशा में सर्वशिक्षा अभियान एक महत्वपूर्ण कदम है।
                • इसके साथ ही, प्राथमिक शिक्षा में नामांकन बढ़ाने के लिए 'सेतु-पाठ्यक्रम'और 'स्कूल लौटो शिविर'प्रारम्भ किये गये हैं।
                • कक्षा में बच्चों की उपस्थिति को बढ़ावा देने, बच्चों के धारण और उनकी पोषण स्थिति में सुधार के लिए दोपहर के भोजन की योजना कार्यान्वित की जा रही है।

                बारहवीं योजना में उच्च शिक्षा में 18-23 वर्ष आयु वर्ग के नामांकन में 25.2 प्रतिशत तक की वृद्धि 2017-18 एवं 30 प्रतिशत 2020-21 तक करने का प्रयास किया गया है।

                यह रणनीति पहुँच में वृद्धि, गुणवत्ता, राज्यों के लिए विशेष पाठ्यक्रम में परिवर्तन को स्वीकार करना, व्यावसायीकरण तथा सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग का जाल बिछाने पर केन्द्रित है ।

                योजना दूरस्थ शिक्षा, औपचारिक, अनौपचारिक, दूरस्थ तथा संचार प्रौद्योगिकी की शिक्षा देने वाले शिक्षण संस्थानों के अभिसरण पर भी केन्द्रित है।

                स्वास्थ्य

                किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य उसे अपनी क्षमता को प्राप्त करने और बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है।

                • जनसंख्या की स्वास्थ्य स्थिति को सुधारना किसी भी देश की प्राथमिकता होती है ।
                • हमारी राष्ट्रीय नीति का लक्ष्य भी जनसंख्या के अल्प सुविधा प्राप्त वर्गों पर विशेष ध्यान देते हुए स्वास्थ्य सेवाओं, परिवार कल्याण और पौष्टिक सेवा तक इनकी पहुँच को बेहतर बनाना है।
                • आयु में वृद्धि आत्मविश्वास के साथ जीवन की उत्तम गुणवत्ता का सूचक है।
                • शिशुओं की संक्रमण से रक्षा तथा माताओं के साथ बच्चों की देखभाल और पोषण सुनिश्चित करने से शिशु मृत्यु दर घटती है। भारत में कुल 381 मेडिकल कॉलेज औ 301 डेण्टल कॉलेज है। केवल चार राज्य जैसे- आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में कुल राज्यों से अधिक मेडिकल कॉलेज है ।

                साक्षरता दर

                • शिशु मृत्यु दर:शिशु मृत्यु दर से अभिप्राय एक वर्ष से कम आयु के शिशु की मृत्यु से है।
                • मृत्यु दर:मृत्यु दर से अभिप्राय एक विशेष अवधि में प्रति एक हजार व्यक्तियों के पीछे मरने वाले लोगों की संख्या से है।
                • जन्म दर:जन्म दर से अभिप्राय एक विशेष अवधि में प्रति एक हजार व्यक्तियों के पीछे जन्म लेने वाले शिशुओं की संख्या से है।


                बेरोजगारी

                बेरोजगारी उस समय विद्यमान कही जाती है, जब प्रचलित मजदूरी की दर पर काम करने के लिए इच्छुक लोग रोजगार नहीं पा सकें।

                श्रम बल जनसंख्या में वे लोग शामिल किए जाते है, जिनकी उम्न 25 वर्ष से 59 वर्ष के बीच है।

                भारत के सन्दर्भ में ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों में बेरोजगारी है तथापि, ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों में बेरोजगारी की प्रकृति में अन्तर है। ग्रामीण क्षेत्रों में मौसमी और प्रच्छन्न बेरोजगारी है। नगरीय क्षेत्रों में अधिकांशतः शिक्षित बेरोजगारी है।

                मौसमी बेरोजगारी तब होती है, जब लोग वर्ष के कुछ महीनों में रोजगार प्राप्त नही कर पाते हैं। कृषि पर आश्रित लोग आमतौर पर इस तरह की समस्या से जूझते हैं।

                • प्रच्छन्न बेराजगारी के अन्तर्गत लोग नियोजित प्रतीत होते हैं, उनके पास भूखण्ड होता है, जहाँ उन्हें काम मिलता है । ऐसा प्रायः कृषिगत काम में लगे परिजनों में होता है। किसी काम में पांच लोगों की आवश्यकता होती है, लेकिन उसमें आठ लोग लगे होते हैं। इनके तीन लोग अतिरिक्त हैं। ये तीनों उसी खेत पर काम करते हैं जिस पर पाँच काम करते हैं । इन तीनों द्वारा किया गया अंशदान पांच लोगों द्वारा किए गए योगदान में कोई बढ़ोतरी नहीं करता। खेत में पाँच लोगों के काम की आवश्यकता है और तीन अतिरिक्त लोग प्रच्छन्न रूप से बेरोजगार होते हैं।

                बेरोजगारी से जनसंसाधन की बर्बादी होती है। जो लोग अर्थव्यवस्था के लिए परिसम्पत्ति होते हैं, बेरोजगारी के कारण दायित्व में बदल जाते हैं।

                किसी अर्थव्यवस्था के समग्र विकास पर बरोजगारी का अहितकर प्रभाव पड़ता है। बेरोजगारी में वृद्धि मंदीग्रस्त अर्थव्यवस्था का सूचक है।

                सांख्यिकी रूप से भारत में बेरोजगारी की दर निम्न है । बड़ी संख्या मे निम्न आय और निम्न उत्पादकता वाले लोगों की गिनती नियोजित लोगों में की जाती है।

                • प्राथमिक क्षेत्रकमें स्वरोजगार एक विशेषता है। यद्यपि सभी लोगों की आवश्यकता नहीं होती है, फिर भी पूरा परिवार खेतों में काम करता है । इस प्रकार कृषि क्षेत्रक में प्रच्छन्न बेरोजगारी होती है।
                • कृषि अधिशेष श्रम का कुछ भाग द्वितीयक या तृतीयक क्षेत्रक में चला गया है।


                महत्वपूर्ण शब्द:

                • मानव संसाधन: कोई भी व्यक्ति और उसकी विशेष क्षमताएँ और कौशल जो संगठन के लिए सबसे बड़ा लम्बा स्थायी लाभ बनाता है।
                • आर्थिक क्रियाएँ: जो क्रियाकलाप राष्ट्रीय आय में मूल्य वर्धन करते हैं, उन्हें आर्थिक क्रियाएँ कहते है।
                • गैर-आर्थिक क्रियाएँ: जिन क्रियाओं के बदले कोई भुगतान नहीं किया जाता, उन्हें गैर आर्थिक क्रियाएँ कहते हैं।
                • बेरोजगारी:जब प्रचलित मजदूरी की दर पर काम करने के इच्छुक लोग रोजगार नहीं पा सकें।
                • प्रच्छन्न बेरोजगारी:प्रच्छन्न बेरोजगारी के अन्तर्गत लोग नियोजित प्रतीत होते हैं, परन्तु अंशदान क्षमता से कम होता है ।
                • मौसमी बेरोजगारी:मौसमी बेरोजगारी तब होती है, जब लोग वर्ष के कुछ महीनों में रोजगार प्राप्त नहीं कर पाते।

                Revision Notes for पाठ 3 निर्धनता: एक चुनौती| Class 9 Economics

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                Chapter 3 निर्धनता: एक चुनौती Revision Notes Class 9 अर्थशास्त्र

                Chapter 3 निर्धनता: एक चुनौती Notes for Class 9 Arthshastra is prepared by our experts. We have included all the important topics of chapter in this revision notes. Here, chapter 3 class 9 economics notes in hindi is available. By studying the revision notes of Poverty as a Challenge in Hindi, students will be able to understand the concepts of the chapter and well as answer the questions easily.

                Chapter 3 निर्धनता: एक चुनौती Notes Class 9 Arthashastra

                Topics in the Chapter

                • निर्धनता- परिचय, सूचक और आकलन
                • गरीबी रेखा और असुरक्षित समूह (संकेतक)
                • अन्तर्राज्यीय असमानताएँ और वैश्विक निर्धनता परिदृश्य
                • वैश्विक परिदृश्य
                • निर्धनता के कारण, निर्धनता -निरोधी उपाय और भावी चुनौतियाँ

                निर्धनता- परिचय, सूचक और आकलन

                निर्धनता का अर्थ भुखमरी और आश्रय का न होना है । निर्धनता का अर्थ साफ़ जल और सफाई सुविधाओं का अभाव भी है। इसका अर्थ नियमित रोजगार की कमी भी है तथा न्यूनतम शालीनता स्तर का अभाव भी है। अंतत: निर्धनता अर्थ है असहायता की भावना के साथ जीना।

                • शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन के लिए मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के अभाव को गरीबी कहते हैं। यह एक ऐसी स्थिति भी है जब माता-पिता अपने बच्चों को विद्यालय नहीं भेज पाते या कोई बीमार आदमी इलाज नहीं करवा पाता।
                • सामाजिक वैज्ञानिक इसे अनेक सूचकों के माध्यम से देखते हैं। सामान्यतया प्रयोग किए जाने वाले सूचक वे हैं जो आय और उपभोग के स्तर से सम्बन्धित है ।
                • सामाजिक अपवर्जन की अवधारण के अनुसार निर्धनता को इस संदर्भ में देखा जाना चाहिए कि निर्धनों को बेहतर माहौल और अधिक अच्छे वातावरण में रहने वाले सम्पन्न लोगों की सामाजिक समता से अपवर्जित रह कर केवल निकृष्ट वातावरण में दूसरे निर्धनों के साथ रहना पड़ता है। सामान्य अर्थ में सामाजिक अपवर्जन निर्धनता का एक कारण और परिणाम दोनों हो सकता है।
                • निर्धनता के प्रति असुरक्षा एक माप है जो कुछ विशेष समुदायों (जैसे किसी पिछड़ी जाति के सदस्य) या व्यक्तियों (जैसे कोई विधवा या शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्ति) के भावी वर्षों में निर्धन होने या निर्धन बने रहने की अधिक सम्भावना जताता है।
                • असुरक्षा का निर्धारण परिसम्पत्तियों, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों के रूप में जीविका खोजने के लिए विभिन्न समुदायों के पास उपलब्ध विकल्पों से होता है।
                • वास्तव में, जब सभी लोगों के लिए बुरा समय आता है, चाहे कोई बाढ़ हो या भूकम्प या फिर नौकरियों की उपलब्धता में कमी, दूसरे लोगों की तुलना में अधिक प्रभावित होने की बड़ी सम्भावना का निरूपण ही असुरक्षा है।


                गरीबी रेखा और असुरक्षित समूह (संकेतक)

                निर्धनता पर चर्चा के केन्द्र में सामान्यतया 'निर्धनता रेखा'की अवधारणा होती है। निर्धनता के आकलन की एक सर्वमान्य सामान्य विधि आय अथवा उपभोग स्तरों पर आधारित है। किसी व्यक्ति को निर्धन माना जाता है यदि उसकी आय या उपभोग स्तर किसी ऐसे 'न्यूनतम स्तर'से नीचे गिर जाए जो मूल आवश्यकताओं के एक दिए हुए समूह को पूर्ण करने के लिए आवश्यक है।

                • मूल आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए आवश्यक वस्तुएँ विभिन्न कालों एवं विभिन्न देशों में भिन्न है। अत: काल एवं स्थान के अनुसार निर्धनता रेखा भिन्न हो सकती है।
                • प्रत्येक देश एक काल्पनिक निर्धनता रेखाका प्रयोग करता है, जिसे विकास एवं उसके स्वीकृत न्यूनतम सामाजिक मानदण्डों के वर्तमान स्तर के अनुरूप माना जाता है।
                • भारत में निर्धनता रेखा का निर्धारण करते समय जीवन निर्वाह के लिए खाद्य आवश्यकता, कपड़ों, जूतों, ईंधन और प्रकाश, शैक्षिक एवं चिकित्सा सम्बन्धी आवश्कताओं आदि पर विचार किया जाता है। इन भौतिक मात्राओं को रुपयों में उनकी कीमतों से गुणा कर दिया जाता है।
                • निर्धनता रेखा का आकलन करते समय खाद्य आवश्यकता के लिए वर्तमान सूत्र वांछित कैलोरी आवश्यकताओं पर आधारित है। खाद्य वस्तुएँ जैसे- अनाज, दालें, सब्जियाँ, दूध, तेल, चीनी आदि मिलकर इस आवश्यक कैलोरी की पूर्ति करती है।
                • आयु, लिंग, काम करने की प्रकृति आदि के आधार पर कैलोरी आवश्यकताएँ बदलती रहती हैं। भारत में स्वीकृत कैलोरी आवश्यकता ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कै लोरी प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन एवं नगरीय क्षेत्रों 2000 कैलोरी प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन है।
                • कम कै लोरी की आवश्यकता के बावजूद शहरी क्षेत्रों के लिए उच्च राशि निश्चित की गई, क्योंकि शहरी क्षेत्रों में अनेक आवश्यक वस्तुओं की कीमतें अधिक होती है । भारत में निर्धनता रेखा का आकलन सामान्यतः प्रत्येक पाँच वर्ष बाद राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (एन. एस. एस. ओ.) द्वारा कराया जाता है |


                अन्तर्राज्यीय असमानताएँ और वैश्विक निर्धनता परिदृश्य

                भारत में प्रत्येक राज्य में निर्धन लोगों का अनुपात एक समान नहीं है। निर्धनता कम करने में सफलता की दर विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है।

                • कुछ राज्य जैसे मध्य प्रदेश, असम, उत्तर प्रदेश, बिहार एवं ओडिशा में निर्धनता अनुपात राष्ट्रीय अनुपात से ज्यादा है। बिहार और ओडिशा क्रमश: 33.7 और 32.6 प्रतिशत निर्धनता औसत के साथ सर्वाधिक राज्य बने हुए है।
                • इसकी तुलना में केरल, जम्मू-कश्मीर, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात और पश्चिम बंगाल में निर्धनता में उल्लेखनीय गिरावट आयी है। पंजाब और हरियाणा जैसे राज्य उच्च कृषि वृद्धि दर से निर्धनता कम करने में पारम्परिक रूप से सफल रहे हैं। केरल ने मानव संसाधन पर अधिक ध्यान दिया है।

                पश्चिम बंगाल में भूमि सुधार उपायों से निर्धनता कम करने में सहायता मिली है। आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु में अनाज का सार्वजनिक वितरण इसमें सुधार का कारण हो सकता है।

                वैश्विक परिदृश्य

                • विश्व बैंक की परिभाषा के अनुसार प्रतिदिन $1.9 से कम पर जीवन निर्वाह करने वालों को गरीब कहा जाता है। विकासशील देशों में अत्यन्त आर्थिक निर्धनता में रहने वाले लोगों का अनुपात 1990 के 36 प्रतिशत से घटकर 2015 में 10 प्रतिशत हो गया है।
                • वैश्विक निर्धनता में उल्लेखनीय गिरावट आयी है, लेकिन इसमें बहुत क्षेत्रीय भिन्नताएँ पायी जाती हैं। तीव्र आर्थिक प्रगति और मानव संसाधन विकास में वृहत निवेश के कारण चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में निर्धनता में विशेष कमी आई है।
                • सब-सहारा अफ्रीका में निर्धनता वास्तव में 2005 के 51 प्रतिशत से घटकर 2015 में 41 प्रतिशत हो गई है। रूस जैसे पूर्व समाजवादी देशों में भी निर्धनता पुनः व्याप्त हो गई है जहाँ पहले आधिकारिक रूप से कोई निर्धनता थी ही नहीं।
                • अन्तर्राष्ट्रीय निर्धनता रेखा (अर्थात् 1.9 डॉलर प्रतिदिन से नीचे की जनसंख्या) की परिभाषा के अनुसार विभिन्न देशों में निर्धनता के नीचे रहने वाले लोगों का अनुपात दर्शाती है | संयुक्त राष्ट्र के नये सतत् विकास के लक्ष्य को 2030 तक सभी प्रकार की गरीबी खत्म करने का प्रस्ताव है।


                निर्धनता के कारण, निर्धनता -निरोधी उपाय और भावी चुनौतियाँ

                भारत में व्यापक निर्धनता का मुख्य कारण ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन के दौरान आर्थिक विकास का निम्न स्तर, जनसंख्या विस्फोट, रोजगार के अवसरों की कमी, अनियमित और कम आय वाले रोजगार, भूमि औ र अन्य संसाधनों का असमान वितरण और ऋणग्रस्तता है।

                भारत सरकार की वर्तमान निर्धनता निरोधी रणनीति मोटे तौर पर दो कारकों- आर्थिक संवृद्धि को प्रोत्साहनऔर लक्षित निर्धनता निरोधीकार्यक्रमों पर निर्भर है।

                • प्रधानमंत्री रोजगार योजना, ग्रामीण रोजगार गारण्टी कार्यक्रम और स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना जैसे कई कार्यक्रम भारत सरकार ने देश में शुरू किये हैं जिनका ग्रामीण क्षेत्र में स्वरोजगार अवसर उत्पन्न करना मुख्य उद्देश्य है।
                • प्रधानमंत्री रोजगार योजना एक अन्य योजना है, जिसे 1993 में आरम्भ किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है। उन्हें लघु व्यवसाय और उद्योग स्थापित करने में सहायता दी जाती है।
                • ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम का आरम्भ 1995 में किया गया। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है। स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना का आरम्भ 1999 में किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य सहायता प्राप्त निर्धन परिवारों को स्वयं सहायता समूहों में संगठित कर बैंक ऋण और सरकारी सहायिकी के संयोजन द्वारा निर्धनता रेखा के ऊपर लाना है।
                • महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनियम 2005 (मनरेगा) का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षित करने के लिए हर घर के लिए मजदूरी रोजगार कम से कम 100 दिनों के लिए उपलब्ध कराना है । इसका उद्देश्य सतत् विकास में मदद करना ताकि सूखा, वन कटाई एवं मिट्टी के कटाव जैसी समस्याओं से बचा जा सक। इस प्रावधान के तहत एक तिहाई रोजगार महिलाओं के लिए सुरक्षित किया गया है।
                • कार्यक्रम के अन्तर्गत अगर आवेदक को 15 दिन के अन्दर रोजगार उपलब्ध नहीं कराया गया तो वह दै निक बेरोजगार भत्ते का हकदार होगा।
                अनेक बुद्धिजीवियों ने इसका समर्थन किया है कि निर्धनता की अवधारणा का विस्तार 'मानव निर्धनता'तक कर देना चाहिए। सभी को स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और रोजगार सुरक्षा उपलब्ध कराना, लैंगिक समानता तथा निर्धनों का सम्मान जैसी बड़ी चुनौति हमारे लक्ष्य होंगे।


                महत्वपूर्ण शब्द
                • गरीब: जिसके पास धन न हो या धन की कमी हो ।
                • गरीबी: गरीबी वह अवस्था है जिसमें व्यक्ति अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने में भी सक्षम नहीं होता ।
                • असुरक्षित समूह:जो लोग अपनी मूल आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ हैं, वे असुरक्षित समूह कहलाते हैं। 
                • वैश्विक निर्धनता परिदृश्य:विकासशील देशों में अत्यन्त आर्थिक निर्धनता में रहने वाले लोगों का अनुपात। 
                • अन्तर्राज्यीय असमानताएँ:भारत के प्रत्येक राज्य में निर्धन लोगों का अनुपात एक समान नहीं है।

                Revision Notes for पाठ 4 भारत में खाद्य सुरक्षा| Class 9 Economics

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                Chapter 4 भारत में खाद्य सुरक्षा Revision Notes Class 9 अर्थशास्त्र

                Chapter 4 भारत में खाद्य सुरक्षा Notes for Class 9 Arthshastra is prepared by our experts. Here, Chapter 4 class 9 economics notes in hindi are available. We have included all the important topics of chapter in this revision notes. By studying the revision notes of Food Security in India in Hindi, students will be able to understand the concepts of the chapter and well as answer the questions easily.

                Chapter 4 भारत में खाद्य सुरक्षा Notes Class 9 Arthashastra

                Topics in the Chapter

                • खाद्य सुरक्षा का परिचय
                • खाद्य असुरक्षित समूह और भारत में खाद्य सुरक्षा
                • खाद्य सुरक्षा में सहकारिता की भूमिका

                खाद्य सुरक्षा का परिचय

                खाद्य सुरक्षा का उद्देश्य है कि देश के सभी लोगों के लिए पर्याप्त खाद्य उपलब्ध हो। सभी लोगों के पास स्वीकार्य गुणवत्ता के खाद्य पदार्थ खरीदने की क्षमता हो और खाद्य की उपलब्धता में कोई बाधा न हो।

                समाज का अधिक गरीब वर्ग तो हर समय खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त हो सकता है परन्तु जब देश भूकम्प, सूखा, बाढ़, सुनामी, फसलों के खराब होने से पैदा हुए अकाल आदि राष्ट्रीय आपदाओं से गुजर रहा हो, तो निर्धनता रेखा से ऊपर के लोग भी खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त हो सकते हैं।

                किसी प्राकृतिक आपदा जैसे सूखे के कारण खाद्यान्न की कुल उपज में गिरावट आती है। इससे प्रभावित क्षेत्रों में खाद्य की कमी हो जाती है। खाद्य की कमी के कारण कीमतें बढ़ जाती हैं। कुछ लोग ऊँची कीमतों पर खाद्य पदार्थ नहीं खरीद सकते।

                अगर यह आपदा अधिक विस्तृत क्षेत्र में आती है या अधिक लम्बे समय तक बनी रहती है, तो भुखमरी की स्थिति पैदा हो सकती है। व्यापक भुखमरी से अकाल की स्थिति बन सकती है।

                • अकाल के दौरान बड़ पैमाने पर मौतें होती हैं जो भुखमरी तथा विवश होकर दूषित जल या सड़े भोजन के प्रयोग से फैले महामारियों तथा भुखमरी से उत्पन्न कमजोरी से रोगों के प्रति शरीर की प्रतिरोधी क्षमता में गिरावट के कारण होती है। भारत में जो सबसे भयानक अकाल पड़ा था, वह 1943 का बंगाल का अकाल था। इस अकाल में भारत के बंगाल प्रान्त में 30 लाख लोग मारे गये थे।
                • भारत में उड़ीसा के कालाहांडी और काशीपुर जैसे स्थान है। जहाँ अकाल जैसी दशाएँ कई वर्षों से बनी हुई है। हाल के कुछ राजस्थान के बारन जिले, झारखण्ड के पालामू जिले तथा अन्य सुदूरवर्ती क्षेत्रों में भूख के कारण लोगों की मृत्यु की सूचना मिली है।

                खाद्य असुरक्षित समूह और भारत में खाद्य सुरक्षा

                भारत में लोगों का एक बड़ा वर्ग खाद्य एवं पोषण की दृष्टि से असुरक्षित है, परन्तु इससे सर्वाधिक प्रभावित वर्गों में आर्थिक रूप से पिछड़े राज्यों के अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लोग हैं जो भूमिहीन हैं। प्राकृतिक आपदाओं; जैसे- सूखा और बाढ़ ग्रस्त में खाद्य असुरक्षा का प्रतिशत अधिक है।

                शहरी क्षेत्रों में खाद्य की दृष्टि से असुरक्षित वे परिवार हैं जिनके कामकाजी सदस्य प्रायः कम वेतन वाले व्यवसायों और अनियत श्रम-बाजारों में काम करते हैं। ये कामगार अधिकतर मौसमी कार्यों में लगे हैं और उनको इतनी कम मजदूरी दी जाती है कि मात्र जीवित रह सकते हैं।

                देश के (कुछ क्षेत्रों; जैसे- आर्थिक रूप से पिछड़े राज्य जहाँ गरीबी अधिक है, आदिवासी और सुदूर क्षेत्र, प्राकृतिक आपदाओं से बार-बार प्रभावित होने वाले क्षेत्र आदि में खाद्य की दृष्टि से असुरक्षित लोगों की संख्या आनुपतिक रूप से बहुत अधिक है।

                भुखमरी खाद्य की दृष्टि से असुरक्षा को इंगित करने वाला एक दूसरा पहलू है। भुखमरी गरीबी की एक अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, यह गरीबी लाती है। । इस तरह खाद्य की दृष्टि से सुरक्षित होने से वर्तमान में भुखमरी समाप्त हो जाती है और भविष्य में भुखमरी का खतरा कम हो जाता है।

                भुखमरी के दीर्घकालिक और मौसमीआयाम होते हैं।

                1. दीर्घकालिक भुखमरी मात्रा एवं गुणवत्ता के आधार पर अपर्याप्त आहार ग्रहण करने के कारण होती है। गरीब लोग अपनी अत्यन्त निम्न आय और जीवित रहने के लिए खाद्य खरीदने में अक्षमता के कारण दीर्घकालिक भुखमरी से ग्रस्त होते हैं।
                2. मौसमी भुखमरी फसल उपजाने और काटने के चक्र से सम्बद्ध है। यह ग्रामीण क्षेत्रों की कृषि क्रियाओं की मौसमी प्रकृति के कारण तथा नगरीय क्षेत्रों में अनियमित श्रम के कारण होती है। इस तरह की भुखमरी तब होती है, जब कोई व्यक्ति पूरे वर्ष काम पाने मे अक्षम रहता है।

                हरित क्रांति के कारण भारत खाद्यान्नों के मामले में आत्मनिर्भर हो गया है और बहुत बड़ी जनसंख्या को खाद्य सुरक्षा उपलब्ध हो गयी है । देशभर में आधुनिक कृषि और हरित क्रांति से खाद्यान्न में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है।

                भारतीय खाद्य निगम अधिशेष उत्पादन वाले राज्यों में किसानों से गेहूँ और चावल खरीदता है जिसे बफर स्टॉक के रूप में अपने पास रखता है। किसानों को उनकी फसल के लिए पहले से घोषित कीमतें दी जाती है जिसे न्यूनतम समर्थित कीमत कहा जाता है। बफर स्टॉक कमी वाले क्षेत्रों में और समाज के गरीब तबकों के लिए बाजार कीमत से कम कीमत पर अनाज उपलब्ध कराने के लिए किया जाता है।


                खाद्य सुरक्षा में सहकारिता की भूमिका

                भारत में विशेषकर देश के दक्षिणी और पश्चिमी भागों में सहकारी समितियाँ भी खाद्य सुरक्षा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। तमिलनाडु में करीब 94 प्रतिशत राशन की दुकानें सहकारी समितियों के माध्यम से चलाई जा रही है ।

                • दिल्ली में मदर डेयरी उपभोक्ताओं को दिल्ली सरकार द्वारा निर्धारित नियंत्रित दरों पर दूध और सब्जियाँ उपलब्ध कराने में तेजी से प्रगति कर रही है।
                • गुजरात में दूध तथा दुग्ध उत्पादों में अमूल एक और सफल सहकारी समिति का उदाहरण है। इसने देश में श्वेत क्रांति ला दी है।
                • इसी तरह, महाराष्ट्र में एकेडमी ऑफ डेवलपमेण्ट साइंस (ए. डी. एस.) ने विभिन्न क्षेत्रों में अनाज बैकों की स्थापना के लिए गैर-सरकारी संगठनों के नेटवर्क में सहायता की है। ए. डी. एस. गैर-सरकारी संगठनों के लिए खाद्य सुरक्षा के विषय में प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रम संचालित करती है।


                महत्वपूर्ण शब्द

                • खाद्य सुरक्षा: इसका अर्थ लोगों के लिए सदै व भोजन की उपलब्धता, पहुँच औ र उसे प्राप्त करने की सामर्थ्य से है।
                • दीर्घकालीन भुखमरी: यह मात्रा एवं गुणवत्ता के आधार पर अपर्याप्त आहार ग्रहण करने के कारण होती है।
                • बफर स्टॉक: यह स्टॉक भारतीय खाद्य निगम द्वारा अधिप्राप्त अनाज, गेहूँ और चावल का भण्डार है।
                • खाद्य असुरक्षित लोग: ये भूमिहीन, पारम्परिक दस्तकार, पारम्परिक सेवाएँ प्रदान करने वाले लोग, छोटे-मोटे काम करने वाले लोग, निराश्रित तथा भिखारी है।
                • मौसमी भुखमरी: यह ग्रामीण क्षेत्रों की कृषि क्रियाओं की मौ समी प्रकृति तथा नगरीय क्षेत्रों में अनियमित श्रम के कारण होती है।
                • न्यूनतम समर्थित कीमत: यह किसानों को उनकी फसल के लिए सरकार द्वारा पहले से घोषित कीमत होती है।
                • सहायिकी (सब्सिडी): यह वह भुगतान है जो सरकार द्वारा किसी उत्पादक को बाजार कीमत की अनुपूर्ति के लिए किया जाता है।
                • सार्वजनिक वितरण प्रणाली: भारतीय खाद्य से समाज के गरीब वर्गों में वितरित करती है निगम द्वारा अधिप्राप्त अनाज को सरकार जब विनियमित राशन दुकानों के माध्यम उसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली कहते है ।

                Notes of Ch 3 धातु एवं अधातु Class 10 विज्ञान

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                Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 3 धातु एवं अधातु विज्ञान 

                Ch 3 धातु एवं अधातु mind maps

                इस अध्याय में विषय
                • धातु एवं अधातु में अंतर
                • वायु के साथ धातु की अभिक्रिया
                • धातुओं का एनोडीकरण
                • तनु अम्लों के साथ धातु की अभिक्रिया
                • धातुओं की अन्य लवणों के साथ अभिक्रिया
                • धातुओं की अधातुओं के साथ अभिक्रिया
                • आयनिक यौगिकों के गुणधर्म
                • धातुओं की प्राप्ति
                • सक्रियता श्रेणी में निचली धातुओं का निष्कर्षण
                • सक्रियता श्रेणी के मध्य में स्थित धातुओं का निष्कर्षण
                • सक्रियता श्रेणी के शीर्ष में उपस्थित धातुओं का निष्कर्षण
                • धातुओं का परिष्करण

                Ch 3 धातु एवं अधातु Class 10 विज्ञान Notes

                धातु एवं अधातु

                वर्तमान में 118 तत्व ज्ञात हैं। इनमें 90 से अधिक धातुऐं, 22 अधातुऐं और कुछ उपधातु हैं।

                सोडियम (Na), पोटाशियम (K) मैग्नीशियम (Mg), लोहा (Fe), एलुमिनियम (Al), कैल्शियम (Ca), बेरियम (Ba) धातुऐं हैं ।

                ऑक्सजीन (O), हाइड्रोजन (H), नाइट्रोजन (N), सल्फर (S), फास्फोरस (P), फ्लूओरीन (F), क्लोरीन (Cl), ब्रोमीन (Br), आयोडिन (I), अधातुऐं हैं।


                धातुओं और अधातुओं में अंतर

                धातुऐं

                अधातुऐं

                भौतिक गुणधर्म

                क्लोरीन - गैस, आयोडीन - ठोस

                तन्य और आघातवर्ध्य

                अधातुऐं तन्य और आघातवर्ध्य नहीं होती।

                ध्वानिक और चमक दर्शाने वाली

                अधातुऐं ध्वानिक नहीं होती और चमकहीन होती हैं। आयोडीन और ग्रेफाइट में चमक होती है।

                सामान्यतः उच्च घनत्व, लेकिन सोडियम और पोटाशियम का धनत्व कम होता है।

                अधातुओं का घनत्व अपेक्षाकृत कम होता है।

                धातु ऑक्साइड क्षारीय या उमयधर्मी होते है।

                रासायनिक गुणधर्म

                अधातु ऑक्साइड की प्रकृति अम्लीय होती।

                धातुऐं तनु अम्ल से हाइड्रोजन को विस्थापित कर हाइड्रोजन गैस निर्मित करती है।

                अधातु ऑक्साइड तनु अम्ल से हाइड्रोजन को विस्थापित नहीं करती।

                धातु ऑक्साइड आयनिक होते हैं ।

                अधातु ऑक्साइड सहसंयोजी होते हैं।


                वायु के साथ अभिक्रिया

                धातु वायु में जल सकते हैं, वायु से अभिक्रिया कर सकते हैं या अप्रभावित रहते है।

                धातु + ऑक्सीजन ⟶ धातु ऑक्साइड

                • Na तथा K को आकस्मिक आग से रोकने के लिये किरोसीन तेल में डुबो कर रखा जाता है।
                • Mg, Al, Zn, Pb वायु के साथ धीरे अभिक्रिया करते हैं। इन धातुओं पर ऑक्साइड की पतली सुरक्षा परत चढ़ जाती है।
                • Mg वायु में जलने पर सफेद MgO बनाता है।
                • Fe एवं Cu वायु में गर्म करने पर प्रज्वलित नहीं होते अपितु अपने ऑक्साइड बनाते हैं। ज्वाला में लौह चूर्ण डालने पर वे तेजी से जलने लगते हैं।
                • Ag तथा Au (गोल्ड) ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया नहीं करते ।
                  2Na + O2⟶ Na2O
                  2Mg + O2⟶ 2MgO
                  2Cu + O2⟶ 2CuO (काला)

                उभयधर्मी ऑक्साइडःवे धातु ऑक्साइड जो अम्ल तथा क्षार के अभिक्रिया करने के बाद लवण एवं जल उत्पन्न करते हैं। जैसे ZnO, Al2O3

                • Al2O3 + 6HCl → 2AlCl3 + 3H2O
                • Al2O3 + 2NaOH → 2NaAlO2 + Н2О 

                (NaAlO:सोडियम एल्यूमिनेट)

                धातुओं का एनोडीकरण

                इस प्रक्रम में एल्यूमिनियम को ऐनोड और ग्रेफाइट को कैथोड बनाया जाता है। सल्फ्यूरिक अम्ल के वैदयुत अपघटन के बाद ऑक्सीजन गैस उत्पन्न होती हे। ऑक्सीजन और एल्यूमिनियम की अभिक्रिया से, धातु की बाहरी सतह पर ऑक्साइड की मोटी परत बनती है।

                जल के साथ अभिक्रियाःधातुओं एवं जल की अभिक्रिया भिन्न होती है। सभी धातुऐं जल से अभिक्रिया नहीं करती ।

                • 2K + 2H2O → 2KOH + H2
                • Ca + 2H2O → 2Ca(OH)2 + H2
                • Mg + 2H2O → Mg(OH)2 +H2

                Ca तथा Mg की जल से अभिक्रिया के दौरान उत्पन्न हाइड्रोजन गैस के बुलबुले धातु के साथ चिपक जाते हैं तथा धातु तैरना प्रारंभ कर देती है।

                • 2Al + 3H2O → Al2O3 + 3H2
                • 3Fe + 4H2O → Fe3O4 + 4H2


                तनु अम्लों के साथ अभिक्रिया

                  धातु + तनु अम्ल → लवण + हाइड्रोजन गैस


                  (i) सामान्यतःधातुऐं तनु अम्ल (HCl तथा H2SO4) के साथ अभिक्रिया कर लवण तथा हाइड्रोजन उत्पन्न करती है।

                  • Fe + 2HCl → FeCl2 + H2
                  • Mg + 2HCl → MgCl2 + H2
                  • Zn + 2HCl → ZnCl2 + H2
                  • Al + 6HC1 → 2AlCl3 + 3H2

                  कॉपर, मर्करी एवं चाँदी तनु अम्लों के साथ अभिक्रिया नहीं करते।


                  (ii) तनु नाइट्रिक अम्ल के साथ अभिक्रियाःउत्पन्न H2गैस उपचयित हो H2O उत्पन्न करती है, जब धातु नाइट्रिक अम्ल (HNO3) के साथ अभिक्रिया करते हैं । (परंतु Mg एवं Mn धातुऐं, तनु नाइट्रिक अम्ल से अभिक्रिया करने पर, H2गैस बनाती है ।)

                  ऐक्वारेजिया

                  यह 3:1 के अनुपात में सांद्र हाइड्रोक्लोरिक अम्ल एवं सांद्र नाइट्रिक अम्ल का मिश्रण होता है। यह गोल्ड और प्लैटिनम को गलाने में समर्थ होता है।


                  धातुओं की अन्य लवणों के साथ अभिक्रिया

                    धातु (क) + धातु (ख) का लवण विलयन → धातु (क) का लवण विलयन + धातु (ख)

                    • सभी धातुऐं सम- अभिक्रियाशील नहीं होती। अधिक क्रियाशील धातुऐं: अपने से कम क्रियाशील धातुओं को उनके यौगिक के विलयन या गलित अवस्था में विस्थापित करती है। यह तथ्य धातुओं की सक्रियता श्रेणी का आधार है ।
                    • सक्रियता श्रेणी:वह सूची जिसमें धातुओं को क्रियाशीलता के अवरोही क्रम में व्यवस्थित किया गया है।
                      K>Na>Ca>Mg>Al>Zn>Fe>Pb>H>Cu>Hg>Ag>Au

                    Cu + AgNO3→ Cu(NO3)2 + Ag

                    (Cu(NO3)2 का रंग नीला होता है)

                    कॉपर चाँदी से अधिक क्रियाशील होने के कारण चाँदी को विस्थापित करता है ।


                    धातुओं की अधातुओं के साथ अभिक्रिया

                    तत्वों की अभिक्रियाशीलता, संयोजकता कोश को पूर्ण करने की प्रवृति के रूप में समझी जा सकती है।

                      • धातु के परमाणु, अपने संयोजकता कोश से इलेक्ट्रान त्याग करते हैं तथा धनायन बनाते हैं।
                      • अधातु के परमाणु, संयोजकता कोश में इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर ऋणायन बनाते है। विपरीत आवेशित आयन एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं तथा मजबूत स्थिर वैद्युत बल में बँधकर आयनिक यौगिक बनाते हैं ।

                      MgCl2का निर्माण:


                      आयनिक यौगिकों के गुणधर्म

                      • कठोर तथा भंगुर।
                      • उच्च गलनांक एवं क्वथनांक।

                      मजबूत अंतर: आयनिक आकर्षण को तोड़ने के लिये ऊर्जा की पर्याप्त मात्रा में आवश्यकता।

                      सामान्यता जल में घुलनशील। किरोसीन एवं पैट्रोल में अघुलनशील।

                      गलित अवस्था तथा विलयन रूप में विद्युत के सुचालक। इन अवस्थाओं में मुक्त आयन उपलब्ध होने के कारण विद्युत प्रवाहित होती है।


                      धातुओं की प्राप्ति

                      • खनिजःपृथ्वी में प्राकृतिक रूप से उपस्थित तत्वों एवं धातु के यौगिकों को खनिज कहते हैं।
                      • अयस्कःवे खनिज जिनमें कोई विशेष धातु प्रचुर मात्रा में होती है तथा उसे निकालना सरल और लाभकारी होता है।
                      • सक्रियता श्रेणी में निचली धातुऐं स्वतंत्र अवस्था में पाई जाती है। उदाहरण, गोल्ड, सिल्वर, कॉपर। यद्यपि कॉपर तथा सिल्वर सल्फाईड तथा ऑक्साइड अयस्क के रूप में प्राप्त होते हैं।
                      • सक्रियता श्रेणी में मध्य में उपस्थित धातु प्रमुखतः सल्फाईड, ऑक्साईड तथा कार्बोनेट अयस्क के रूप में प्राप्त होते हैं। उदाहरण- Zn, Fe, Pb । अधिक क्रियाशील धातुऐं स्वतंत्र रूप से नहीं मिलती। जैसे - पोटाशियम, सोडियम, कैल्शियम।
                      • गैंगःखनिज अयस्कों में मिट्टी, रेत जैसी अशुद्धियां होती हैं, जो गैंग कहलाती है।


                      धात्विकी:अयस्क धातु प्राप्ति की क्रम-गत प्रक्रिया ।

                      • अयस्क का समृद्धिकरण/सांद्रिकरण ।
                      • सांद्रित अयस्क से धातु की प्राप्ति ।
                      • अशुद्ध से शुद्ध धातु की परिष्करण द्वारा प्राप्ति ।


                      सक्रियता श्रेणी में निचली धातुओं का निष्कर्षण

                        अयस्क को वायु में गर्म करके।

                        • सिनाबार से मर्करी की प्राप्ति
                        • कॉपर सल्फाईड द्वारा कॉपर की प्राप्ति


                        सक्रियता श्रेणी के मध्य में स्थित धातुओं का निष्कर्षण

                          धातु को ऑक्साईड अयस्क से प्राप्त करना सुलभ होता है। इसी कारणवश सल्फाईड एवं कार्बोनेट अयस्कों को ऑक्साईड अयस्क में परिवर्तित किया जाता है।

                          • अयस्क को वायु में अधिक ताप पर गर्म करना।

                            यह प्रक्रम भर्जन कहलाता है।
                          • अयस्क को सीमित वायु में अधिक ताप पर गर्म करना

                            यह प्रक्रम निस्तापन कहलाता है।
                            धातु आक्साईड का अपचयन

                          (i) कोयला प्रयोग करके: अपचयकारक के रूप में कोयला

                          (ii) विस्थापन अभिक्रिया करके: अधिक क्रियाशील धातु जैसे Na, Ca तथा Al का प्रयोग क क्रियाशील धातुओं को उनके यौगिकों से विस्थापित करने में किया जाता है।

                          उपरोक्त अभिक्रिया में लोहा गलित रूप में प्राप्त होता है, जिसका उपयोग रेल की टूटी हुई पटरियों को जोड़ने में होता है । इस प्रक्रम को थर्मिट अभिक्रिया कहते है।


                          सक्रियता श्रेणी के शीर्ष में उपस्थित धातुओं का निष्कर्षण

                          इन धातुओं की बंधुता कार्बन की अपेक्षा ऑक्सीजन के प्रति अधिक होती है।

                          इन धातुओं को वैद्युत अपघटनी अपचयन के द्वारा प्राप्त करते हैं । सोडियम को उसके गलित क्लोराइड के विद्युत अपघटन द्वारा प्राप्त करते हैं।

                          NaCl → Na+ + Cl-

                          विलयन अथवा गलित अवस्था में विद्युत प्रवाह में पश्चात् कैथोड (ऋण आवेशित) पर सोडियम निक्षेपित हो जाती है तथा ऐनोड (धन आवेशित) पर क्लोरीन मुक्त होती है।

                          • कैयोड परः Na+ + e-→ Na
                          • ऐनोड परः 2Cl-→ Cl2 + 2e-


                          धातुओं का परिष्करण

                          प्राप्त धातुओं की अशुद्वियों या अपद्रव्य को वैद्युत अपघटनी परिष्करण द्वारा हटाया जा सकता है। शुद्ध कॉपर को इस विधि से प्राप्त किया जाता है। वैद्युत अपघटनी परिष्करण में निम्नलिखित प्रयुक्त होते हैं।

                          •  ऐनोड – अशुद्ध कॉपर धातु की छड़।
                          •  कैथोड – शुद्ध कॉपर धातु की छड़।

                          विलयन: कॉपर सल्फेट के जलीय विलयन के साथ सूक्ष्म मात्रा में तनु सल्फ्यूरिक अम्ल।

                          विद्युत प्रवाह करने के पश्चात् ऐनोड में अशुद्ध धातु विद्युत अपघट्य में घुल जाती है। तथा उतनी ही मात्रा में शुद्ध कॉपर विद्युत अपघट्य से कैथोड पर निक्षेपित होती है।

                          अविलेय अशुद्धियां ऐनोड तली पर निक्षेपित होती है, जिसेऐनोड पंककहते हैं।

                          • संक्षारणःधातुऐं अपने आसपास अम्ल, आर्द्रता आदि के संपर्क में आने पर संक्षारित होती है।
                          • सिल्वर:वायु में उपस्थित सल्फर के साथ अभिक्रिया कर सिल्वर सल्फाइड बनाता है तथा वस्तु काली हो जाती है।
                          • लोहा:आर्द्र वायु में लोहे पर भूरे रंग के पत्रकी पदार्थ की परत चढ़ जाती है, जिसे जंग कहते हैं। वायु तथा आर्द्रता लोहे पर जंग लगने के लिये आवश्यक है।
                          • कॉपर: आर्द्र कार्बन डाइऑक्साइड के साथ अभिक्रिया करके हरे रंग का क्षारीय कॉपर कार्बेनेट बनाता है।
                          • संक्षारण से सुरक्षाःलोहे को जंग लगने से पेंट करके, तेल लगाकर, ग्रीस लगाकर, यशदलेपन कर, क्रोमियम लेपन द्वारा, ऐनोडीकरण या मिश्रधातु बनाकर बचाया जा सकता है।
                            लोहे एवं इस्पात को जंग से सुरक्षित रखने के लिये उनपर जस्ते (जिंक) की पतली परत चढ़ाई जाती है, इसे यशदलेपन प्रक्रम कहते हैं।
                          • मिश्रधातुःये धातु तथा अन्य धातुओं अथवा अधातुओं का समांगी मिश्रण होते हैं ।
                            सूक्ष्म मात्रा में कार्बन का मिश्रण करने पर लोहा कठोर एवं प्रबल हो जाता है।
                            लोहे में निकैल और क्रोमियम मिश्रित करने पर स्टेनलैस इस्पात प्राप्त होता है। जो कठोर एवं जंग-रोधी होता है।
                            मर्करी (पारद) को अन्य तत्वों के साथ मिश्रित करने पर अमलगम निर्मित होते है।
                          • पीतल:कॉपर एवं जिंक की मिश्रधातु ।
                          • कांसा:कॉपर एवं टिन की मिश्रधातु ।
                            इन दोनों मिश्रधातु की विद्युत चालकता एवं गलनांक शुद्ध धातु की अपेक्षा कम होता है।
                          • सोल्डर, यह सीसा और टिन (Pb एवं Sn) का मिश्रधातु है जिसका गलनांक बहुत कम होता है और इसका उपयोग विद्युत तारों को परस्पर वेल्डिंग के लिये करते हैं।

                          Notes of Ch 2 अम्ल, क्षारक और लवण Class 10 विज्ञान

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                          Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 2 अम्ल, क्षारक और लवण विज्ञान 

                          Class 10 Chapter 2 अम्ल, क्षारक और लवण विज्ञान Mind Map

                          इस अध्याय में विषय
                          • अम्ल (Acid)
                          • क्षारक (Base)
                          • सूचक (Indicators)
                          • अम्ल और क्षारकों के रासायनिक गुण
                          • धातु कार्बोनेट तथा धातु बाईकार्बोनेट की अभिक्रियाएँ
                          • अम्ल एवं क्षारक की परस्पर अभिक्रिया
                          • अम्लों के साथ धात्विक ऑक्साइडों की अभिक्रिया
                          • अधात्विक आक्साइड की क्षारकों के साथ अभिक्रिया
                          • क्षारक तथा अम्ल की प्रबलता
                          • जलीय विलयन में अम्ल और क्षारक
                          • pH स्केल
                          • सोडियम हाइड्रॉक्साइड (NaOH)
                          • विरंजक चूर्ण CaOCl2 
                          • बेकिंग सोडा NaHCO3 
                          • धोने का सोडा Na2CO3.10 H2O
                          • प्लास्टर ऑफ पेरिस CaSO4. ½H2O
                          • क्रिस्टलन का जल

                          Ch 2 अम्ल, क्षारक और लवण Class 10 विज्ञान Notes

                          कुछ महत्वपूर्ण योगिक और रासायनिक समीकरण

                          • साधारण नमक: NaCl
                          • सोडियम हाइड्रॉक्साइड: NaCl + 2H2O ⟶ NaOH + Cl2 + H2
                          • विरंजक चूर्ण: Ca(OH)2 + Cl2⟶ CaOCl2 + H2O
                          • बेकिंग सोडा: NaCl + H2O + CO2 + NH3⟶ NH4Cl + NaHCO3
                          • धावन सोडा: Na2CO3 + 10 H2O ⟶ Na2CO3. 10H2O
                          • प्लास्टर ऑफ पेरिस: CaSO4.2H2O ⟶ CaSO4.½H2O + 1½H2O
                          • जिप्सम: CaSO4. ½2H2O + 1½H2O ⟶ CaSO4.2H2O

                          अम्ल (Acid)

                          • ये स्वाद में खट्टे होते हैं ।
                          • ये नीले लिटमस को लाल रंग में बदल देते हैं।
                          • ये जलीय विलयन में H+आयन देते हैं।

                          Acid शब्द लैटिन भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ है खट्टा।

                          प्रबल अम्ल: HCl, H2SO4, HNO3

                          दुर्बल अम्ल: CH3COOH, लैक्टिक अम्ल, ऑक्सैलिक अम्ल

                          सान्द्र अम्ल:जिसमें अम्ल अधिक मात्रा में होता है, जबकि जल अल्प मात्रा में होता है।

                          तनु अम्ल:जिसमें अम्ल अल्प मात्रा में होता है, जबकि जल अधिक मात्रा में होता है।


                          क्षारक (Base)

                          • ये स्वाद में कड़वे होते हैं।
                          • ये लाल लिटमस को नीले में बदल देते हैं।
                          • ये जलीय विलयन में OH-आयन देते हैं।

                          प्रबल क्षारक: NaOH, KOH, Ca(OH)2

                          दुर्बल क्षारक: NH4OH

                          क्षार (Alkali):जल में घुलनशील क्षारक को क्षार कहते हैं। NaOH, KOH, Mg(OH)2

                          लवण (Salt):लवण, अम्ल व क्षारक की परस्पर अभिक्रिया से प्राप्त होता है।

                          उदाहरण: NaCl, KCl


                          सूचक (Indicators)

                          सूचक किसी दिए गए विलयन में अम्ल या क्षारक की उपस्थिति दर्शाते हैं। इनका रंग या गंध अम्लीय या क्षारक माध्यम में बदल जाता है।

                          सूचक के प्रकार

                          • प्राकृतिक सूचक:ये पौधों में पाए जाते हैं।
                            उदाहरण:लिटमस, लाल पत्ता गोभी, हायड्रेजिया पौधे के फूल, हल्दी
                          • कृत्रिम (संश्लेषित) सूचक:ये रासायनिक पदार्थ हैं।
                            उदाहरण: मेंथिल ऑरेंज, फिनॉल्फथेलिन
                          • गंधीय सूचक:इन पदार्थों की गंध अम्लीय या क्षारक माध्यम में बदल जाती है।
                            उदाहरण: प्याज, लौंग तेल


                          अम्ल और क्षारकों के रासायनिक गुण

                          पॉप टैस्ट:हाइड्रोजन गैस से निहित परखनली के पास जब एक जलती हुई मोमबत्ती लाई जाती है, तो पॉप की ध्वनि उत्पन्न होती है। इस टैस्ट को हाइड्रोजन की उपस्थिति दर्शाने के लिए प्रयोग करते हैं।


                          धातु कार्बोनेट तथा धातु बाईकार्बोनेट की अभिक्रियाएँ

                          1. अम्ल के साथ:

                          • अम्ल + धातु कार्बोनेट ⟶ लवण + CO2 + जल
                            2HCl + Na2CO3(s) ⟶ 2NaCl(aq) + CO2 (g) + H2O(l)
                          • अम्ल + धातु बाईकार्बोनेट ⟶ लवण + CO2 + जल
                            HCl + NaHCO3(s) ⟶ NaCl(aq) + CO2 (g) + H2O(l)

                          2. क्षारक के साथ: कोई अभिक्रिया नहीं


                          CO2की जांच टैस्ट:उत्पादित कार्बन डाइआक्साइड को चूने के पानी में प्रवाहित करने पर चूने का पानी दूधिया हो जाता है।

                          Ca(OH)2 (aq) + CO2 (g) ⟶ CaCO3(s) + H2O(I)

                          CaCO3: सफेद अवक्षेप (अविलेय)

                          अधिक मात्रा में CO2प्रवाहित करने पर :

                          CaCO3(s) + H2O(I) + CO2(g) ⟶ Ca(HCO3)2 (aq)

                          Ca(HCO3)2: जल में घुलनशील


                          अम्ल एवं क्षारक की परस्पर अभिक्रिया

                          अम्ल + क्षारक ⟶ लवण + जल

                          उदासीनीकरण अभिक्रिया: जब अम्ल द्वारा क्षारक का प्रेक्षित प्रभाव तथा क्षारक द्वारा अम्ल का प्रभाव समाप्त हो जाता है और परिणामस्वरूप लवण और जल प्राप्त होते हैं तो उदासीनीकरण अभिक्रिया होती है।

                          उदाहरण: NaOH (aq) + HCl(aq) ⟶ NaCl (aq) + H2O(l)

                          • प्रबल अम्ल + दुर्बल क्षारक ⟶ अम्लीय लवण + जल [विलयप का pH 7 से कम]
                          • दुर्बल अम्ल + प्रबल क्षारक ⟶ क्षारीय लवण + जल [विलयन का pH 7 से अधिक ]
                          • प्रबल अम्ल + प्रबल क्षारक ⟶ उदासीन लवण + जल [विलयन का pH =7]
                          • दुर्बल अम्ल + दुर्बल क्षारक ⟶ उदासीन लवण + जल [विलयन का pH = 7]


                          अम्लों के साथ धात्विक ऑक्साइडों की अभिक्रिया

                          धात्विक आक्साइड + अम्ल ⟶ लवण + जल

                          CaO + 2HCl ⟶ CaCl2 + H2O

                          धात्विक आक्साइड की प्रवृति क्षारीय होती है क्योंकि ये अम्ल के साथ क्रिया करके लवण और जल बनाते हैं।

                          उदाहरण: CuO, MgO


                          अधात्विक आक्साइड की क्षारकों के साथ अभिक्रिया

                          अधात्विक ऑक्साइड + क्षारक ⟶ लवण + जल

                          CO2 + Ca(OH)2⟶ CaCO3 + H2O

                          अधात्विक ऑक्साइड प्रवृत्ति में अम्लीय होते हैं।


                          अम्लों व क्षारकों में समानताएँ

                          जब कोई अम्ल या क्षारक जल में मिलाया जाता है तो ये तनुकृत हो जाता है। जल में मिलाने पर आयन की सांद्रता H3O+या OH-में प्रति इकाई आयतन की कमी हो जाती है।


                          क्षारक तथा अम्ल की प्रबलता

                          किसी क्षारक या अम्ल की प्रबलता उसके द्वारा उत्पन्न H+आयन या OH-आयनों की संख्या पर निर्भर करती है।

                          किसी अम्ल या क्षारक की प्रबलता हम एक सार्वभौमिक सूचक द्वारा ज्ञात कर सकते हैं।


                          जलीय विलयन में अम्ल और क्षारक

                          • जल की उपस्थिति में अम्ल H+आयन उत्पन्न कहते हैं।
                            H+आयन H3O+ (हाइड्रोनियम आयन के रूप में पाए जाते हैं।)
                            H+ + H2O ⟶ H3O+
                            HCl + H2O ⟶ H3O+ + Cl-
                          • जल की उपस्थिति में क्षारक (OH-) आयन उत्पन्न करते हैं।
                          • सभी क्षारक जल में घुलनशील नहीं होते हैं। जल में घुलनशील क्षारक को क्षार कहते हैं। सभी क्षार क्षारक होते हैं परन्तु सभी क्षारक क्षार नहीं होते ।
                          • जल के साथ अम्ल या क्षारक को मिलाते समय सावधानी बरतनी चाहिए। हमेशा अम्ल या क्षारक को ही जल में मिलाना चाहिए और लगातार इसे हिलाते रहना चाहिए, क्योंकि यह प्रक्रिया अत्यंत ऊष्माक्षेपी है।
                          • सांद्र अम्ल में जल मिलाने पर उत्पन्न हुई ऊष्मा के कारण मिश्रण आस्फलित हो कर बाहर आ सकता है तथा आप जल सकते हैं। साथ ही अत्यधिक ताप के कारण काँच का पात्र भी टूट सकता है।


                          pH स्केल

                          किसी विलयन में उपस्थित H+आयन की सांद्रता ज्ञात करने के लिए एक स्केल विकसित किया गया जिसे pH स्केल कहते हैं।

                          pH में p है 'पुसांस' (Potenz) जो एक जर्मन शब्द है, जिसका अर्थ होता है शक्ति।

                          • pH = 7 → उदासीन विलयन
                          • pH < 7 → अम्लीय विलयन
                          • pH > 7 → क्षारीय विलयन

                          यह स्केल 0 से 14 तक pH ज्ञात करने के लिए उपयोग में लाया जाता है।

                          दैनिक जीवन में pH का महत्त्व

                          पौधे एवं पशु pH के प्रति संवेदनशील होते हैं।

                          हमारा शरीर 7.0 से 7.8 pH परास (range) के बीच कार्य करता है।

                          वर्षा के जल का pH मान जब 5.6 से कम हो जाता है तो वह अम्लीय वर्षा कहलाता है।

                          मिट्टी का pH

                          अच्छी उपज के लिए पौधों को एक विशिष्ट pH परास की आवश्यकता होती है। यदि किसी स्थान की मिट्टी का pH कम या अधिक हो तो किसान उसमें आवश्यकतानुसार अम्लीय या क्षारीय पदार्थ मिलाते हैं।

                          हमारे पाचन तंत्र का pH

                          हमारा उदर (stomach) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCI) उत्पन्न करता है जो भोजन के पाचन में सहायक होता है। अपच की स्थिति में उदर अधिक मात्रा में अम्ल उत्पन्न करता है जिसके कारण उदर में दर्द व जलन का अनुभव होता है।

                          इस दर्द से मुक्त होने के लिए ऐन्टैसिड (antacid)

                          जैसे - क्षारकों का उपयोग किया जाता है जो अम्ल की अधिक मात्रा को उदासीन करता है। जैसे (मिल्क ऑफ मैग्नीशिया)

                          pH परिवर्तन के कारण दंत क्षय

                          मुँह के pH का मान 5.5 से कम होने पर दाँतों का क्षय प्रारंभ हो जाता है।

                          दाँतों का इनैमल (दन्तवल्क) कैल्शियम फॉस्फेट से बना होता है जो कि शरीर का सबसे कठोर पदार्थ होता है, यह जल में नहीं घुलता लेकिन मुँह की pH का मान 5.5 से कम होने पर संक्षारित हो जाता है। क्षारकीय दंत मंजन का उपयोग करने से अम्ल की आधिक्य मात्रा को उदासीन किया जा सकता है।

                          लवणों का pH

                          1. प्रबल अम्ल + प्रबल क्षारक ⟶ उदासीन लवण, pH = 7, eg. NaCl
                          2. प्रबल अम्ल + दुर्बल क्षारक ⟶ अम्लीय अवण, pH < 7, eg. NH4Cl
                          3. प्रबल क्षारक + दुर्बल अम्ल ⟶ क्षारकीय लवण, pH > 7 ⟶ eg. CH3COONa


                          सोडियम हाइड्रॉक्साइड (NaOH)

                          सोडियम क्लोराइड के जलीय विलयन (लवण जल) से विद्युत प्रवाहित करने पर यह वियोजित होकर सोडियम हाइड्रॉक्साइड उत्पन्न करता है। इस प्रक्रिया को क्लोर-क्षार प्रक्रिया कहते हैं।

                          2NaCl (aq) + 2 H2O(I) ⟶ 2NaOH (aq) + Cl2(g) + H2(g)

                          • ऐनोड पर ⟶ Cl2गैस
                          • कैथोड पर ⟶ H2गैस

                          कैथोड के पास NaOH विलयन बनता है ।

                          उपयोग:

                          H2⟶ ईंधन मार्गरीन

                          Cl2⟶ जल की स्वच्छता, PVC, CFC

                          HCl ⟶ इस्पात की सफाई, औषधियाँ

                          NaOH ⟶ धातुओं से ग्रीज हटाने के लिए, साबुन, कागज बनाने के लिए

                          Cl2 + NaOH ⟶ विरंजक चूर्ण घरेलू विरंजन, वस्त्र विरंजन के लिए


                          विरंजक चूर्ण CaOCl2 

                            शुष्क बुझे हुए चूने [Ca(OH)2] पर क्लोरीन की क्रिया से विरंजक चूर्ण का निर्माण होता है।

                            Ca(OH)2 + Cl2⟶ CaOCl2 + H2O

                            उपयोग:

                            1. वस्त्र उद्योग में सूती व लिनेन के विरंजन के लिए।
                            2. कागज की फैक्टरी में लकड़ी के मज्जा के विरंजन के लिए।
                            3. रासायनिक उद्योगों में एक उपचायक के रूप में ।
                            4. पीने वाले जल को जीवाणुओं से मुक्त करने के लिए रोगाणु नाशक के रूप में।


                            बेकिंग सोडा NaHCO3 

                              NaCl + H2O + CO2 + NH3⟶ NH4CI + NaHCO3

                              NaHCO3: बेकिंग सोडा

                              यह एक दुर्बल असंक्षारक क्षारक है।

                              खाना पकाते समय गर्म करने पर इसमें निम्न अभिक्रिया होती है :

                              उपयोग :

                              1. बेकिंग पाउडर बनाने में (बेकिंग सोडा + टार्टरिक अम्ल)
                              2. इस अभिक्रिया से उत्पन्न CO2के कारण पावरोटी या केक में खमीर उठ जाता है तथा इससे यह मुलायम एवं स्पंजी हो जाता है।
                              3. यह ऐन्टैसिड का एक संघटक है।
                              4. इसका उपयोग सोडा-अम्ल अग्निशामक में भी किया जाता है।


                              धोने का सोडा Na2CO3.10 H2O

                                सोडियम कार्बोनेट के पुनः क्रिस्टलीकरण से धोने का सोडा प्राप्त होता है। यह एक क्षारकीय लवण है।

                                Na2CO3 + 10H2O ⟶ Na2CO3.10 H2O

                                उपयोग :

                                1. इसका उपयोग काँच, साबुन एवं कागज उद्योगों में होता है।
                                2. इसका उपयोग बोरेक्स के उत्पादन में होता है ।
                                3. इसका उपयोग घरों में साफ-सफाई के लिए होता है।
                                4. जल की स्थायी कठोरता को हटाने के लिए इसका उपयोग होता है।


                                प्लास्टर ऑफ पेरिस CaSO4. ½H2O

                                  जिप्सम को 373 K पर गर्म करने पर यह जल के अणुओं को त्याग कर कैल्शियम सल्फेट हेमिहाइड्रेट (POP) बनाता है। यह सफेद चूर्ण है जो जल मिलाने पर पुन: जिप्सम बनकर ठोस रूप ग्रहण करता है ।

                                  CaSO4.2 H2O + 12H2O ⟶ CaSO4. 2H2O

                                  CaSO4. 2H2O : जिप्सम

                                  उपयोग:

                                  1. प्लास्टर ऑफ पेरिस का उपयोग डॉक्टर टूटी हुई हड्डियों को सही जगह पर स्थिर रखने के लिए करते हैं।
                                  2. इसका उपयोग खिलौने बनाने, सजावट का सामान बनाने के लिए किया जाता है।
                                  3. इसका उपयोग सतह को चिकना बनाने के लिए किया जाता है।


                                  क्रिस्टलन का जल

                                  लवण के एक सूत्र इकाई में जल के निश्चित अणुओं की संख्या को क्रिस्टलन का जल कहते हैं।

                                  उदाहरण:

                                  CuSO4.5H2O में क्रिस्टलन के जल के 5 अणु हैं।

                                  Na2CO3.10 H2O में क्रिस्टलन के जल के 10 अणु हैं।

                                  CaSO4.2H2O में क्रिस्टलन के जल के 2 अणु हैं।

                                  Notes of Ch 4 कार्बन एवं उसके यौगिक Class 10 विज्ञान

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                                  Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 4 कार्बन एवं उसके यौगिक विज्ञान 


                                  इस अध्याय में विषय
                                  • कार्बन एवं उनके यौगिक
                                  • सहसंयोजी यौगिकों के भौतिक गुण
                                  • कार्बन के अपररूप
                                  • कार्बन की सर्वतोमुखी प्रकृति
                                  • संतृप्त और असंतृप्त कार्बनिक यौगिक
                                  • विषम परमाणु एवं प्रकार्यात्मक समूह
                                  • कार्बन यौगिको की नाम पद्धति
                                  • कार्बन यौगिकों के रासायनिक गुणधर्म
                                  • ऐथनॉल और एथेनॉइक अम्ल
                                  • एस्टरीकरण अभिक्रिया
                                  • साबुन और अपमार्जक

                                  Ch 4 कार्बन एवं उसके यौगिक Class 10 विज्ञान Notes

                                  कार्बन एवं उनके यौगिक

                                  • कार्बन एक सर्वतोमुखी तत्व है।
                                  • कार्बन भूपर्पटी में खनिज के रूप में 0.02% उपस्थित है। वायुमंडल में यह कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में 0.03% उपस्थित है।
                                  • सभी सजीव संरचनायें कार्बन पर आधारित हैं।
                                  • कागज, प्लास्टिक, चमड़े और रबड़ में कार्बन होता है।

                                  कार्बन में सह संयोजी आबंध

                                  कार्बन की परमाणु संख्या 6 है तथा इलैक्टॉनिक विन्यास 2, 4 है।

                                  उत्कृष्ट गैस विन्यास को प्राप्त करने के लिए कार्बन का परमाणु:

                                  1. 4 इलैक्ट्रॉन प्राप्त कर सकता है, परंतु नाभिक के लिए 4 अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन धारण करना कठिन है।

                                  2. 4 इलैक्ट्रॉन छोड़ सकता है, परंतु इसके लिए अत्याधिक ऊर्जा की आवश्यकता होगी।

                                  • इस प्रकार कार्बन के परमाणु के लिए 4 इलैक्ट्रॉन प्राप्त करना या खो देना अत्यंत कठिन होता है।
                                  • कार्बन परमाणु उत्कृष्ट गैस विन्यास अन्य परमाणुओं के साथ संयोजकता इलैक्ट्रॉन की साझेदारी करके प्राप्त करता है।
                                  • H,O,N एवं Cl जैसे तत्व के परमाणु इलैक्ट्रॉन साझेदारी करने में सक्ष्म है। दोनों संयोजी इलैक्ट्रॉन दोनों परमाणुओं के बाह्य कक्षों से सम्बद्ध जाते हैं, जिससे वे निष्क्रिय गैस की संरचना प्राप्त करते हैं।


                                  H2, O2, N, अणुओं के निर्माण के चित्र:

                                  (i) H2अणु


                                  (ii) O2अणु

                                  (iii) N2अणु

                                  (iv) H2O, NH3, CO2और H2S

                                  सहसंयोजी यौगिकों के भौतिक गुण

                                  • सहसंयोजी यौगिकों के क्वथनांक एवं गलनांक कम होते हैं क्योंकि इनके बीच अन्तराअणुक बल कम होता है।
                                  • सामान्यतः ये अणु विद्युत के कुचालक होते है क्योंकि आवेशित कण नहीं बनते।

                                  कार्बन के अपररूप:

                                  (i) हीरा प्रत्येक कार्बन परमाणु चार अन्य कार्बन परमाणुओं से आबंध बनाता है।

                                  (ii) ग्रेफाइट प्रत्येक कार्बन परमाणु तीन अन्य कार्बन परमाणुओं से आबंध बनाता है। चौथा संयोजी इलैक्ट्रॉन मुक्त गति करने में सक्षम होना है। अतः ग्रेफाइड विद्युत का सुचालक है।

                                  (iii) फूलरीन सबसे छोटे फूलरीन में 60 कार्बन परमाणु होते हैं।

                                  उपयोग:

                                  • हीरा: आभूषण, तापमापी इत्यादि के निर्माण में ।
                                  • ग्रेफाइट: शुष्क स्नेहक, पेंसिल की लीड, इलैक्ट्रॉन बनाने में।

                                  इन अपररूपों के रासायिनक गुण एकसमान होते हैं लेकिन भौतिक गुणधर्म भिन्न होते हैं।

                                  हीरे तथा ग्रेफाइट में अंतर

                                  हीरा

                                  ग्रेफाइट

                                  यह कठोरतम प्राकृतिक पदार्थ है।

                                  यह कोमल होता है।

                                  हीरा विद्युत का कुचालक और ऊष्मा का सुचालक होता है।

                                  ग्रेफाइट विद्युत और ऊष्मा का सुचालक होता है।

                                  हीरा पारदर्शी होता है।

                                  ग्रेफाइट अपारदर्शी होता है।


                                  कार्बन की सर्वतोमुखी प्रकृति

                                  सहसंयाजी बंध की प्रकृति के कारण कार्बन में बड़ी संख्या में यौगिक बनाने की क्षमता है। इसके तीन कारक हैं।

                                  1. शृंखलन
                                  2. चतु: संयोजकता
                                  3. समावयवन

                                  (1) शृंखलन:कार्बन के परमाणु अपने मध्य आबंध बनाते हैं। इसी प्रकार सिलिकॉन श्रंखलन करता है। जिसमें 7 या 8 परमाणओं तक की श्रंखला होती है।

                                  (2) चतु: संयोजकता:कार्बन परमाणु की संयोजकता 4 है। जिसके कारण यह परमाणु O, H, N, S, Cl तथा अन्य तत्वों के परमाणुओं के साथ सहसंयोजी आबंध बनाने में सक्ष्म है। कार्बन परमाणु के छोटे आकार के कारण इलैट्रॉन के सहभागी युग्मों को नाभिक मजबूती से पकड़े रहता है। फलस्वरूप, ये यौगिक अतिशय रूप से स्थायी होते हैं।


                                  संतृप्त और असंतृप्त कार्बनिक यौगिक

                                  कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिकों को हाइड्रोकार्बन कहते हैं।

                                  कार्बनिक पदार्थ में द्वि-आबंध/त्रि-आबंध बनाने हेतु, कम-से-कम दो कार्बन परमाणुओं की आवश्यकता होती है। अत: एल्किन और एल्काइन समूहों के प्रथम सदस्य में दो कार्बन परमाणु होते हैं।

                                  (i) एथेन (संतृप्त हाइडोकार्बन) की इलेक्ट्रॉन बिंदु संरचना

                                  (ii) एथीन (असंतृप्त हाइड्रोकार्बन) की इलेक्ट्रॉन बिंदु संरचना (C2H6)

                                  (iii) थाइन की इलैक्ट्रॉन बिंदु संरचना


                                  कार्बन एवं हाइड्रोजन के संतृप्त यौगिकों के सूत्र एवं संरचनायें (C2H4) तालिका-1

                                  तालिका-2

                                  तालिका-3

                                  संरचना के आधार पर हाईड्रोकार्बन के उदाहरण


                                    संरचनात्मक समावयव:वे यौगिक जिनके आणविक सूत्र तो समान होते हैं पंरतु संरचना भिन्न होती हैं।

                                    उदाहरण के लिए ब्यूटेन के समावयवः

                                    विषम परमाणु एवं प्रकार्यात्मक समूह

                                    हाइड्रोकार्बन श्रृंखला में यह तत्व एक या अधिक हाइड्रोजन को इस प्रकार प्रतिस्थापि करते हैं कि कार्बन की संयोजकता संतुष्ट रहती है। ऐसे तत्वों को विषम परमाणु कहते हैं।

                                    • यह विषम परमाणु या विभिन्न परमाणुओं का समूह जो कार्बन यौगिकों को अभिक्रियाशीलता तथा विशिष्ट गुण प्रदान करते हैं, प्रकार्यात्मक समूह कहलाते हैं ।

                                    समजातीय श्रेणी

                                    • यौगिकों की वह शृंखला जिसमें कार्बन श्रृंखला में स्थित हाइड्रोजन एक ही प्रकार के प्रकार्यात्मक समूह द्वारा प्रतिस्थापित होता है उदाहरण एल्कोहल CH3OH, C2H5OH, C3H7OH, C4H9OH
                                    • समजातीय श्रेणी के उत्तरोतर सदस्यों में –CH2का अंतर तथा 14 द्रव्यमान इकाई का अंतर होता है।
                                    • इन सदस्यों को प्रकार्यात्मक समूह विशिष्टतायें प्रदान करता है फलस्वरूप ये सदस्य समान रसायनिक गुणधर्म तथा भिन्न भौतिक गुणधर्म दर्शाते हैं।
                                    • सदस्यों के अणु द्रव्यमान में अंतर होने के कारण इनके भौतिक गुणधर्मों में अंतर आता है।
                                    • अणु द्रव्यमान के बढ़ने के कारण सदस्यों का गलनांक एवं क्वथनांक बढ़ता है ।


                                    कार्बन यौगिको की नाम पद्धति

                                    • यौगिक में कार्बन परमाणुओं की संख्या ज्ञात करो ।
                                    • प्रकार्यात्मक समूह को पूर्वलग्न या अनुलग्न के साथ दर्शाओ।

                                    प्रकार्यात्मक/समूह

                                    अनुलग्न

                                    पूर्वलग्न

                                    ऐल्कील/द्वि-आबंध

                                    — ene

                                     

                                    ऐल्कील/त्रि-आबंध

                                    — yne

                                     

                                    ऐल्कॉहॉल

                                    — ol

                                     

                                    ऐल्डीहाइड

                                    — al

                                     

                                    कीटोन

                                    — one

                                     

                                    कार्बोक्सिलिक अम्ल

                                    — oic acid

                                     

                                    क्लोरीन

                                     

                                    क्लोरो


                                    यदि एक अनुलग्न लगाया जाना है तब अंत का 'e'हटाया जाता है। जैसे मेथेनॉल (Methanol)
                                    Methane – e → Methan + ol = Methanol


                                    कार्बन यौगिकों के रासायनिक गुणधर्म

                                    1. दहनः सामान्यत

                                    ये यौगिक वायु (ऑक्सीजन) में दहित होकर कार्बन डाइऑक्साइड, जल उत्पन्न करते हैं। तथा प्रचुर मात्रा में ऊष्मा एवं प्रकाश को मुक्त करते हैं।

                                      • संतृप्त हाइड्रोकार्बन वायु की प्रचुर मात्रा में जलने पर नीली ज्वाला तथा वायु की सीमित आपूर्ति में कज्जल ज्वाला उत्पन्न करते है ।
                                      • असंतृप्त हाइड्रोकार्बन का वायु में दहन करने पर कज्जली ज्वाला उत्पन्न करते हैं।
                                      • कोयले तथा पैट्रोलियम के दहन द्वारा सल्फर तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड निर्मित होते हैं जो अम्लीय वर्षा के लिये उत्तरदायी हैं ।

                                       

                                      2. ऑक्सीकरण

                                        ऑक्सीकारक के रूप में अम्लीय पोटाशियम डाइक्रोमेट तथा क्षारीय पोटाशिम परमैंगनेट का उपयोग कर एल्कोहॉल के ऑक्सीकरण के फलस्वरूप कार्बोक्सिलिक अम्ल उत्पन्न होते है।


                                        3. संकलन अभिक्रिया

                                          निकैल, पैलडियम या प्लैटिनम की उपस्थिति में असंतृप्त हाइड्रोकार्बन जो अपने द्वि-/त्रि-आबंध के कारण अधिक क्रियाशील होते हैं। हाइड्रोजन के साथ जुडकर संतृप्त हाइड्रोकार्बन निर्मित करते हैं। इस प्रक्रम को हाइड्रोजनीकरण कहते हैं।

                                          इस प्रक्रम द्वारा वनस्पति तेल को वनस्पति घी में परिवर्तित किया जाता है।

                                          इस प्रक्रम द्वारा विकृतगंधिता को धीमा किया जाता है।

                                          संतृप्त वसीय अम्ल स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हैं। भोजन पकाने के लिये असंतृप्त वसीय तेलों का उपयोग करना चाहिये।


                                          4. प्रतिस्थापन अभिक्रिया

                                            संतृप्त हाइड्रोकार्बन में, कार्बन में साथ जुड़े हाइड्रोजन को प्रकाश अथवा ऊष्मा की उपस्थिति में अन्य परमाणु का अणु से प्रतिस्थापित किया जा सकता है।


                                            महत्वपूर्ण कार्बन यौगिक: ऐथनॉल और एथेनॉइक अम्ल

                                            ऐथेनॉल

                                            गलनांक 156 K

                                            क्वथनांक 351 K

                                            एथेनॉल

                                            जल में घुलनशील

                                            जलाने वाला स्वाद

                                            तनु ऐथेनॉल के सेवन से गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं हो सकती हैं तथा शुद्ध ऐथेनॉल की थोड़ी सी मात्रा भी प्राणघातक सिद्ध हो सकती है।

                                            ऐथेनॉल के रासानियक गुणधर्म

                                            C2H5OH की सोडियम के साथ अभिक्रिया में सोडियम इथॉक्साइड तथा हाइड्रोजन उत्पन्न होती है।

                                            सांद्र H2SO4 के साथ 443K के तापमान पर ऐथेनॉल के निर्जलीकरण द्वारा एथीन उत्पन्न होती है।


                                            ऐथेनॉल के उपयोग:

                                            • वाहनों के रेडियेटर में एंटीफ्रीज के रूप में
                                            • पारदर्शी साबुन निर्माण में
                                            • अल्कोहलिक पेयों में
                                            • प्रयोगशाला में अभिकारिक रूप में
                                            • दवाओं तथा टॉनिकों में


                                            ऐथेनोइक अम्ल (CH3COOH)/ऐसिटिक अम्ल

                                            • ऐसिटिक अम्ल का 3-4% का जलीय विलयन सिरका कहलाता है।
                                            • परिशुद्ध ऐसिटिक अम्ल को ग्लैश्ल ऐसिटिक अम्ल कहते हैं।

                                            ऐथेनोइक अम्ल की अभिक्रिया तथा उत्पाद:

                                            • सोडियम (Na) के साथ: सोडियम ऐथेनोऐट एवं हाइड्रोजन गैस
                                            • सोडियम कार्बोनेट (Na2CO3) के साथ: सोडियम ऐथेनोऐट एवं कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल
                                            • सोडियम बाइकार्बोनेट (NaHCO3) के साथ: सोडियम ऐथेनोऐट, कार्बन डाइऑक्साइड एवं जल
                                            • एथेनॉल (सांद्र H2SO4की उपस्थित में) CH3– CH2– OH के साथ: ऐस्टर तथा जल

                                            एस्टरीकरण अभिक्रिया

                                            कार्बोक्सिलिक अम्ल सांद्र सल्फ्लूरिक अम्ल की उपस्थिति में एल्कोहॉल के साथ अभिक्रिया कर मृदुगंध वाले पदार्थ एस्टर बनाते है।


                                            जलीय अपघटन

                                              एस्टर, अम्ल या क्षारक के साथ अभिक्रिया करके प्रारंभिक ऐल्कोहॉल तथा कार्बोक्सिलिक अम्ल बनाते हैं।

                                              एस्टर का क्षारीय जलीय अपघटन साबुनीकरणकहलाता है।


                                              साबुन और अपमार्जक

                                              • साबुन लंबी श्रंखला वाले कार्बोक्सिलिक अम्लों के सोडियम एवं पोटाशियम लवण होते हैं।
                                              • साबुन केवल मृदु जल के साथ सफाई क्रिया करते हैं तथा कठोर जल के साथ प्रभावहीन होते हैं।
                                              • अपमार्जक:लम्बी श्रृंखला वाले कार्बोक्सिलिक अम्ल के अमोनियम एवं सल्फोनेट लवण होते हैं। अपमार्जक मृदु तथा कठोर जल के साथ सफाई प्रक्रिया सकते है |
                                              • साबुन के अणु में जलरागी एवं जलविरागी समूह होते हैं।

                                              साबुन अणु में

                                              1. जलरागी सिरा (आयनिक भाग)
                                              2. जलविरागी सिरा (लम्बी हाइड्रोकार्बन श्रृंखला)

                                              साबुन की सफाई प्रक्रिया

                                              • अधिकांश मैल तैलीय होता है तथा जलविरागी छोर इस मैल के साथ जुड़ जाता है।
                                              • जल के अणु जलरागी छोर पर साबुन के अणु को घेर लेते हैं।
                                              • फलस्वरूप साबुन के अणु मिसेली संरचना बनाते हैं।
                                              • इस प्रक्रिया में साबुन के अणु और तैलिय मैल का पायस बनता है तथा विभिन्न भौतिक विधियों जैसे पटकना, डंडे से पीटना, ब्रुश से रगड़ना आदि की सहायता से वस्त्र साफ होता है।

                                              अघुलनशील पदार्थ/स्कम

                                              • कठोर जल में प्रयुक्त मैग्नीशियम तथा कैल्शियम के लवण साबुन के जलराग भार से अभिक्रिया करके अघुलनशील पदार्थ या स्कम बनाते हैं। जिसके कारण सफाई प्रक्रिया बाधित होती है।
                                              • अपमार्जक के अणु का आवेशित सिरा कठोर जल में उपस्थित कैल्शियम एवं मैग्नीशियम आयनों को साथ अघुलनशील पदार्थ नहीं बनाते, फलस्वरूप सफाई प्रक्रिया प्रभावशाली रूप से संपन्न होती है।
                                              •  साबुन पूर्णतया जैव-निम्नकरणीय होते है। जबकि अपमार्जक नहीं । साबुन पर्यावरण हितैषी होते हैं लेकिन अपमार्जक नहीं।

                                              संक्षेप में

                                              • कार्बन सर्वतोमुखी तत्व (अधातु) है।
                                              • O, N, H तथा Cl जैसी अधातुओं के समान कार्बन का परमाणु संयोजी इलैक्टॉन की साझेदारी करता है।
                                              • शृंखलन, समावयन और चतुःसंयोजकता के फलस्वरूप कार्बन अधिक यौगिकों का निर्माण करता है।
                                              • कार्बन एकल, द्वि- और त्रि - आबध बनाता है।
                                              • कार्बन एवं हाइडोजन मिलकर हाइडोकार्बन बनाते है । जो संतृप्त या असंतृप्त हो सकते है।
                                              • संरचना के आधर पर हाइडोकार्बन सीधी श्रंखला वाले, शाखित श्रंखला वाले अथवा चक्रीय हो सकते है।
                                              • एक ही अणु में अलग-अलग संरचनात्मक व्यवस्था संभव होती है।, इसे समावयन कहते है।
                                              • हाइडोकार्बन में, विषम परमाणु हाइडोजन को प्रतिस्थापित करते है। तथा उस यौगिक की रसायनिक गुणधर्मों को निर्धारित करते हैं।
                                              • समजातीय श्रेणी में सदस्यों की रसायनिक विशिष्टतायें एकसमान तथा भौतिक गुणधर्म भिन्न होते हैं।
                                              • कार्बन आधारित वाले यौगिक अच्छे इंधन होते है ।
                                              • ऐथेनॉल एक महत्वपूर्ण यौगिक है। यह क्रियाशील धातुओं के साथ अभिक्रिया करता है। निर्जलीकरण के पश्चात् यह ऐथीन गैस बनाता है।
                                              • ऐथेनोइक अम्ल एक अन्य महत्वपूर्ण यौगिक है। यह ऐथेनॉल के साथ अभिक्रिया करके मृदु-गंध वाले एस्टर बनाता है।
                                              • सफाई प्रक्रिया के लिये साबुन एवं अपमार्जक का उपयोग होता है। अपमार्जक मृदु एवं कठोर जल के साथ प्रभावशाली रूप से सफाई अभिक्रिया करते हैं।

                                              Notes of Ch 5 जैव प्रक्रम Class 10 विज्ञान

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                                              Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 5 जैव प्रक्रम विज्ञान 

                                              Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 5 जैव प्रक्रम विज्ञान


                                              इस अध्याय में विषय
                                              • जैव प्रक्रम
                                              • स्वपोषी पोषण (Autotrophic Nutrition)
                                              • विषमपोषी पोषण (Hetrotrophic Nutrition)
                                              • अमीबा में पोषण
                                              • मनुष्य में पोषण
                                              • मानव श्वसन तंत्र 
                                              • संवहन
                                              • मानव में उत्सर्जन
                                              • वृक्क में मूत्र निर्माण प्रक्रिया

                                              Ch 5 जैव प्रक्रम Class 10 विज्ञान Notes

                                              जैव प्रक्रम

                                              वे सभी प्रक्रम जो संयुक्त रूप से जीव के अनुरक्षण का कार्य करते है, जैव प्रक्रम कहलाते हैं।

                                              जैव प्रक्रम:

                                              1. पोषण
                                              2. श्वसन
                                              3. वहन
                                              4. उत्सर्जन

                                              पोषण

                                              भोजन ग्रहण करना, पचे भोजन का अवशोषण एवं शरीर द्वारा अनुरक्षण के लिए उसका उपयोग, पोषण कहलाता है।

                                              पोषण के आधार पर जीवों को दो समूह में बाँटा जा सकता है।

                                              1. स्वपोषी पोषण
                                              2. विषमपोषी पोषण

                                              (i) स्वपोषी पोषण:पोषण का वह तरीका जिसमें जीव अपने आस-पास के वातावरण में उपस्थित सरल अजैव पदार्थों जैसे CO2, पानी और सूर्य के प्रकाश से अपना भोजन स्वयं बनाता है।
                                              उदाहरण: हरे पौधे ।

                                              (ii) विषमपोषी पोषण:पोषण का वह तरीका जिसमें जीव अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकता, बल्कि अपने भोजन के लिए अन्य जीवों पर निर्भर होता है।
                                              उदाहरण: मानव व अन्य जीव।


                                              स्वपोषी पोषण (Autotrophic Nutrition)

                                              स्वपोषी पोषण हरे पौधों मे तथा कुछ जीवाणुओं जो प्रकाश संश्लेषण कर सकते हैं, में होता है।

                                              प्रकाश संश्लेषण

                                              यह वह प्रक्रम है जिसमें स्वपोषी बाहर से लिए पदार्थों को ऊर्जा संचित रूप में परिवर्तित कर देता है। ये पदार्थ कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल के रूप में लिए जाते हैं, जो सूर्य के प्रकाश तथा क्लोरोफिल की उपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित कर दिए जाते हैं।

                                              प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री:

                                              • सूर्य का प्रकाश
                                              • क्लोरोफिल
                                              • कार्बन डाइऑक्साइड- स्थलीय पौधे इसे वायुमण्डल से प्राप्त करते हैं।
                                              • जल- स्थलीय पौधे, जड़ों द्वारा मिट्टी से जल का अवशोषण करते हैं।

                                              प्रकाश संश्लेषण के दौरान निम्नलिखित घटनाएं होती हैं:

                                              • क्लोरोफिल द्वारा प्रकाश ऊर्जा को अवशेषित करना।
                                              • प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपांतरित करना तथा जल अणुओं का हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन में अपघटन।
                                              • कार्बन डाईऑक्साइड का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन ।

                                              रंध्र (Stomata)

                                              पत्ती की सतह पर जो सूक्ष्म छिद्र होते हैं, उन्हें रंध्र (Stomata) कहते हैं।

                                              रंध्र के प्रमुख कार्य:

                                              • प्रकाश संश्लेषण के लिए गैसों का अधिकांश आदान-प्रदान इन्हीं छिद्रों के द्वारा होता है।
                                              • वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया में जल (जल वाष्प के रूप में) रंध्र द्वारा निकल जाता है।

                                              चित्र:रंध्र-पत्ती की सतह पर सूक्ष्म छिद्र श्वसन गैसों के विनिमय और वाष्पोत्सर्जन के लिए खुलते-बंद होते हैं।


                                              विषमपोषी पोषण (Hetrotrophic Nutrition)

                                              1. प्राणीसमपोषण (Holozoic):इसमें जीव संपूर्ण भोज्य पदार्थ का अंतर्ग्रहण करते हैं तथा उनका पाचन शरीर के अंदर होता है।
                                                उदाहरण: अमीबा, मानव।
                                              2. मृतजीवी पोषण (Saprophytic):मृतजीवी अपना भोजन मृतजीवों के शरीर व सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों से प्राप्त करते हैं।
                                                उदाहरण: फफूंदी, कवक।
                                              3. परजीवी पोषण (Parasitic):परजीवी, अन्य जीवों के शरीर के अंदर या बाहर रहकर, उनको बिना मारे, उनसे अपना पोषण प्राप्त करते हैं।
                                                उदाहरण: जोक, अमरबेल, जूँ, फीताकृमि।


                                              अमीबा में पोषण

                                                अमीबा → भोजन को अपने पादाभ की सहायता से घेर लेता है → खाद्य रिक्तिका → खाद्य रिक्तिका में जटिल पदार्थ का विघटन सरल पदार्थों में किया जाता है। → बचा हुआ अपच कोशिका की सतह की ओर गति करता है। → ये पदार्थ शरीर से बाहर निष्कासित कर दिया जाता है।


                                                पैरामीशियम में पोषण

                                                  पक्ष्माभ (कोशिका की पूरी सतह को ढके होते हैं) → भोजन एक विशिष्ट स्थान से ही ग्रहण किया जाता है।


                                                  मनुष्य में पोषण

                                                  1. अतंग्रहण
                                                  2. पाचन
                                                  3. अवशोषण
                                                  4. स्वांगीकरण
                                                  5. बहि: क्षेपण

                                                  आहार नाल मूल रूप से मुंह से गुदा तक विस्तारित एक लंबी नली है।


                                                  श्वसन

                                                  पोषण प्रक्रम के दौरान ग्रहण की गई खाद्य सामग्री का उपयोग कोशिकाओं में होता हैं जिससे विभिन्न जैव प्रक्रमों के लिए ऊर्जा प्राप्त होती है। ऊर्जा उत्पादन के लिए कोशिकाओं में भोजन के विखंडन को कोशिकीय श्वसन कहते हैं।

                                                  भिन्न पथों द्वारा ग्लूकोज का विखंडन

                                                  श्वसन के प्रकार:

                                                  • वायवीय श्वसन
                                                  • अवायवी श्वसन

                                                  (i) वायवीय श्वसन

                                                  • ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है।
                                                  • ग्लूकोज का पूर्ण उपचयन होता है, कार्बनडाइऑक्साइड, पानी और ऊर्जा मुक्त होती है।
                                                  • यह कोशिका द्रव्य व माइटोकान्ड्रिया में होता है।
                                                  • अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है । (36ATP)
                                                    उदारहण: मानव

                                                  (ii) अवायवी श्वसन

                                                  • ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है।
                                                  • ग्लूकोज का अपूर्ण उपचयन होता है, जिसमें एथेनॉल, लैक्टिक अम्ल, कार्बन डाइऑक्साइड और ऊर्जा मुक्त होती है।
                                                  • यह केवल कोशिका द्रव्य में होता है।
                                                  • कम ऊर्जा उत्पन्न होती है। (2ATP)
                                                    उदाहरण : यीस्ट


                                                  मानव श्वसन तंत्र 

                                                  मानव श्वसन क्रिया

                                                  • अंतः श्वसन
                                                  • उच्छवसन

                                                  (i) अंतः श्वसन

                                                  अंतः श्वसन के दौरान:

                                                  • वृक्षीय गुहा फैलती है।
                                                  • पसलियों से संलग्न पेशियां सिकुड़ती हैं।
                                                  • वक्ष ऊपर और बाहर की ओर गति करता है।
                                                  • गुहा में वायु का दाब कम हो जाता है और वायु फेफड़ों में भरती है।

                                                  (ii) उच्छवसन

                                                  • वृक्षीय गुहा अपने मूल आकार में वापिस आ जाती है।
                                                  • पसलियों की पेशियां शिथिल हो जाती हैं।
                                                  • वक्ष अपने स्थान पर वापस आ जाता है।
                                                  • गुहा में वायु का दाब बढ़ जाता है और वायु (कार्बन डाइऑक्साइड) फेफड़ों से बाहर हो जाती है।

                                                  अंत श्वसन:सांस द्वारा वायुमंडल से गैसों को अंदर ले जाना है।

                                                  उच्छवसन:फेफड़ों से वायु या गैसों को बाहर निकालना ।

                                                  स्थलीय जीव:श्वसन के लिए वायुमंडल से ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं।

                                                  जो जीव जल में रहते हैं:वे जल में विलेय ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं।


                                                  कूपिका, रक्त व उत्तकों के बीच गैसों का आदान-प्रदान


                                                  संवहन

                                                  मनुष्य में भोजन, ऑक्सीजन व अन्य आवश्यक पदार्थों की निरंतर आपूर्ति करने वाला तंत्र, संवहन तंत्र कहलाता है।

                                                  मानव संवहन तंत्र के मुख्य अवयव इस प्रकार हैं:

                                                  1. हृदय
                                                  2. रक्त नलिकाएं (धमनी व शिरा)
                                                  3. वाहन माध्यम (रक्त व लसीका)


                                                  रक्त

                                                  • कणीय अवयव (रुधिर कणिकाएं)
                                                  • द्रवीय अवयव (प्लाज्मा)

                                                  (i) कणीय अवयव (रुधिर कणिकाएं)

                                                  • लाल रक्त कणिकाएं: O2, CO2, का वहन, हीमोग्लोबिन (Hb) रक्त को लाल रंग देता है।
                                                  • श्वेत रक्त:कणिकाएं शरीर को रोग-मुक्त करने में सहायक है।
                                                  • रक्त प्लेटलैट्स:रक्त का थक्का बनाने में सहायक है।

                                                  (ii) द्रवीय अवयव (प्लाज्मा)

                                                  • पीले रंग का तरल पदार्थ जिसमें 90% जल होता है तथा शेष अवयव जैविक: प्लाज्मा प्रोटीन जैसे एलब्यूमिन, ग्लोब्यूलि अजैविक: खनिज तत्व होता है।


                                                  रक्त वाहिका

                                                  • धमनी
                                                  • शिरा

                                                  (i) धमनी

                                                  • ऑक्सीकृत रुधिर को हृदय से शरीर के विभिन्न अंगों तक ले जाती है। अपवाद फुफ्फुस-धमनी ।
                                                  • धमनी की भित्ति मोटी व अधिक लचीली होती है।
                                                  • वाल्व नहीं होते ।
                                                  • ये सतही नहीं होती, उत्तकों के नीचे पाई जाती हैं। (Deep seated)

                                                  (ii) शिरा

                                                  • शिराएं विभिन्न अंगों से अनॉक्सीकृत रुधिर एकत्र करके वापस हृदय में लाती हैं। अपवाद फुफ्फुस-शिरा
                                                  • शिरा की भित्ति कम मोटी व कम लचीली होती है।
                                                  • वाल्व होते हैं।
                                                  • ये सतही होती हैं। (Superficial)

                                                  चित्र: मानव शरीर में रुधिर परिसंचरण दर्शाने के लिए रेखाचित्र

                                                  • मानव हृदय एक पम्प की तरह होता है जो सारे शरीर में रुधिर का परिसंचरण करता है।
                                                  • अलिंद की अपेक्षा निलय की पेशीय भित्ति मोटी होती है क्योंकि निलय को पूरे शरीर में अधिक रक्तचाप से रुधिर भेजना होता है।

                                                  हृदय में उपस्थित वाल्व रुधिर प्रवाह को उल्टी दिशा में रोकना सुनिश्चित करते हैं।

                                                  लसीका:एक तरल उत्तक है, जो रुधिर प्लाज्मा की तरह ही है; लेकिन इसमें अल्पमात्रा में प्रोटीन होते हैं। लसीका वहन में सहायता करता है।

                                                  पादपों में परिवहन:

                                                  1. जाइलम
                                                  2. फ्लोएम

                                                  (i) जाइलम

                                                  • पादप तंत्र का एक अवयव है, जो मृदा से प्राप्त जल और खनिज लवणों का वहन करता है जबकि फ्लोएम पत्तियों द्वारा प्रकाश संश्लेषित उत्पादों को पौधे के अन्य भागों तक वहन करता है।
                                                  • जड़ व मृदा के मध्य आयन सांद्रण में अंतर के चलते जल मृदा से जड़ों में प्रवेश कर जाता है तथा इसी के साथ एक जल स्तंभ निर्माण हो जाता है, जो कि जल को लगातार ऊपर की ओर धकेलता है। यही दाब जल को ऊँचे वृक्ष के विभिन्न भागों तक पहुचाता है।
                                                  • यही जल पादप के वायवीय भागों द्वारा वाष्प के रूप में वातावरण में विलीन हो जाता है, यह प्रकम वाष्पोत्सर्जन कहलाता है।
                                                  • इस प्रकम द्वारा पौधों को निम्न रूप से सहायता मिलती है।

                                                  जल के अवशोषण एवं जड़ से पत्तियों तक जल तथा विलेय खनिज लवणों के उपरिमुखी गति में सहायक ।

                                                  पौधों में ताप नियमन में भी सहायक है ।

                                                  (ii) फ्लोएम: भोजन तथा दूसरे पदार्थों का स्थानांतरण (पौधों में)

                                                  • प्रकाश संश्लेषण के विलेय उत्पादों का वहन स्थानांतरण कहलाता है जो कि फ्लोएम ऊतक द्वारा होता है।
                                                  • स्थानांतरण पत्तियों से पौधों के शेष भागों में उपरिमुखी तथा अधोमुखी दोनों दिशाओं में होता है।
                                                  • फ्लोएम द्वारा स्थानातरण ऊर्जा के प्रयोग से पूरा होता है । अत: सुक्रोज फ्लोएम ऊतक में ए.टी.पी. ऊर्जा से परासरण बल द्वारा स्थानांतरित होता है।


                                                  मानव में उत्सर्जन

                                                  वह जैव प्रकम जिसमें जीवों में उपापचयी क्रियाओं में जनित हानिकारक नाइट्रोजन युक्त पदार्थों का निष्कासन होता है, उत्सर्जन कहलाता है ।

                                                  एक कोशिकीय जीव इन अपशिष्ट पदार्थों को शरीर की सतह से जल में विसरित कर देते हैं ।

                                                  मानव उत्सर्जन तंत्र में उपसिथत अंग निम्न प्रकार के हैं:

                                                  1. एक जोड़ा वृक्क (Kidney)
                                                  2. एक जोड़ा मूत्रवाहिनी (Ureter)
                                                  3. एक मूत्राशय (Bladder)
                                                  4. एक मूत्र मार्ग (Urethera)

                                                  • वृक्क में मूत्र बनने के बाद मूत्रवाहिनी से होता हुआ मूत्राशय में एकत्रित होता है।
                                                  • मूत्र बनने का उद्देश्य रुधिर में से वर्ज्य (हानिकारक अपशिष्ट) पदार्थों को छानकर बाहर करना है ।


                                                  वृक्क में मूत्र निर्माण प्रक्रिया

                                                  वृक्क की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई वृक्काणु (Nephron ) कहलाती है।

                                                  वृक्काणु मुख्य भाग इस प्रकार हैं:

                                                  1. केशिका गुच्छ (ग्लोमेरुलस): यह पतली भित्ति वाला रुधिर कोशिकाओं का गुच्छा होता है।
                                                  2. बोमन संपुट
                                                  3. नलिकाकार भाग
                                                  4. संग्राहक वाहिनी

                                                  वृक्क में उत्सर्जन की क्रियाविधि

                                                  1. केशिका गुच्छ निस्यंदन:जब वृक्क धमनी की शाखा वृक्काणु में प्रवेश करती है, तब जल, लवण, ग्लूकोज, अमीनों अम्ल व अन्य नाइट्रोजनी अपशिष्ट पदार्थ, कोशिका गुच्छ में से छनकर वोमन संपुट में आ जाते हैं।
                                                  2. वर्णात्मक पुन:अवशोषण: वृक्काणु के नलिकाकार भाग में, शरीर के लिए उपयोगी पदार्थों, जैसे ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, लवण व जल का पुनः अवशोषण होता है।
                                                  3. नलिका स्रावण:यूरिया, अतिरिक्त जल व लवण जैसे उत्सर्जी पदार्थ वृक्काणु के नलिकाकार भाग के अंतिम सिरे में रह जाते हैं व मूत्र का निर्माण करते हैं। वहां से मूत्र संग्राहक वाहिनी व मूत्रवाहिनी से होता हुआ मूत्राशय में अस्थायी रूप से संग्रहित रहता है तथा मूत्राशय के दाब द्वारा मूत्रमार्ग से बाहर निकलता है।

                                                  कृत्रिम वृक्क (Artificial Kidney)

                                                  कृत्रिम वृक्क (अपोहन):यह एक ऐसी युक्ति है जिसके द्वारा रोगियों के रुधिर में से कृत्रिम वृक्क की मदद से नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट पदार्थों का निष्कासन किया जाता है।

                                                  प्राय: एक स्वस्थ व्यस्क में प्रतिदिन 180 लीटर आरंभिक निस्यंदन वृक्क में होता है। जिसमें से उत्सर्जित मूत्र का आयतन 1.2 लीटर है। शेष निस्यंदन वृक्कनलिकाओं में पुनअवशोषित हो जाता है।

                                                  पादप में उत्सर्जन

                                                  • वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया द्वारा पादप अतिरिक्त जल से छुटकारा पाते हैं।
                                                  • बहुत से पादप अपशिष्ट पदार्थ कोशिकीय रिक्तिका में संचित रहते हैं।
                                                  • अन्य अपशिष्ट पदार्थ (उत्पाद) रेजिन तथा गोंद के रूप में पुराने जाइलम में संचित रहते हैं।
                                                  • पादप कुछ अपशिष्ट पदार्थों को अपने आसपास मृदा में उत्सर्जित करते हैं।

                                                  Notes of Ch 6 नियंत्रण एवं समन्वय Class 10 विज्ञान

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                                                  Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 6 नियंत्रण एवं समन्वय विज्ञान 



                                                  इस अध्याय में विषय
                                                  • तंत्रिका तंत्र
                                                  • तंत्रिका कोशिका (न्यूरॉन)
                                                  • मानव मस्तिष्क
                                                  • मस्तिष्क एवं मेरूरज्जु की सुरक्षा
                                                  • पौधों में समन्वय
                                                  • पादप हॉर्मोन
                                                  • जंतुओं में हॉर्मोन
                                                  • हॉर्मोन, अंत: स्रावी ग्रंथियां एवं उनके कार्य
                                                  • आयोडीन युक्त नमक

                                                  Ch 6 नियंत्रण एवं समन्वय Class 10 विज्ञान Notes

                                                  सभी सजीव अपने पर्यावरण में हो रहे परिवर्तनों के अनुरूप अनुक्रिया करते हैं। पर्यावरण में हो रहे ये परिवर्तन जिसके अनुरूप सजीव अनुक्रिया करते हैं, उद्दीपन कहलाता है। जैसे कि प्रकाश, ऊष्मा, ठंडा, ध्वनि, सुगंध, स्पर्श आदि । पौधे एवं जन्तु अलग-अलग प्रकार से उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया करते हैं।

                                                    जंतुओं में नियंत्रण एवं समन्वय

                                                    यह सभी जंतुओं में दो मुख्य तंत्रों द्वारा किया जाता है:

                                                    • तंत्रिका तंत्र
                                                    • अंतःस्रावी तंत्र


                                                    तंत्रिका तंत्र

                                                    • नियंत्रण एवं समन्वय तंत्रिका एवं पेशीय उत्तक द्वारा प्रदान किया जाता है।
                                                    • तंत्रिका तंत्र तंत्रिका कोशिकाओं या न्यूरॉन के एक संगठित जाल का बना होता है और यह सूचनाओं को विद्युत आवेग के द्वारा शरीर के एक भाग से दूसरे भाग तक ले जाता है।

                                                    ग्राही (Receptors):

                                                    ग्राही तंत्रिका कोशिका के विशिष्टीकृत सिरे होते हैं, जो वातावरण से सूचनाओं का पता लगाते हैं। ये ग्राही हमारी ज्ञानेन्द्रियों में स्थित होते हैं।

                                                    1. कान:
                                                      (i) सुनना
                                                      (ii) शरीर का संतुलन
                                                    2. आँख:
                                                      (i) प्रकाशग्राही
                                                      (ii) देखना
                                                    3. त्वचा:
                                                      (i) तापग्राही
                                                      (ii) गर्म एवं ठंडा
                                                      (iii) स्पर्श
                                                    4. नाक:
                                                      (i) घ्राणग्राही
                                                      (ii) गंध का पता लगाना
                                                    5. जीभ:
                                                      (i) रस संवेदी ग्राही
                                                      (ii) स्वाद का पता लगाना

                                                    तंत्रिका कोशिका (न्यूरॉन):यह तंत्रिका तंत्र की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है।


                                                    तंत्रिका कोशिका (न्यूरॉन) के भाग

                                                    • दुमिका:कोशिका काय से निकलने वाली धागे जैसी संरचनाएँ, जो सूचना प्राप्त करती हैं।
                                                    • कोशिका काय:प्राप्त की गई सूचना विद्युत आवेग के रूप में चलती है।
                                                    • तंत्रिकाक्ष(एक्सॉन):यह सूचना के विद्युत आवेग को, कोशिकाकाय से दूसरी न्यूरॉन की द्रुमिका तक पहुँचाता है।

                                                    अंतर्ग्रथन (सिनेप्स): यह तंत्रिका के अंतिम सिरे एवं अगली तंत्रिका कोशिका के द्रुमिका के मध्य का रिक्त स्थान है। यहाँ विद्युत आवेग को रासायनिक संकेत में बदला जाता है जिससे यह आगे संचरित हो सके।

                                                    प्रतिवर्ती क्रिया:किसी उद्दीपन के प्रति तेज व अचानक की गई अनुक्रिया प्रतिवर्ती क्रिया कहलाती है।

                                                    उदाहरण:किसी गर्म वस्तु को छूने पर हाथ को पीछे हटा लेना।

                                                    प्रतिवर्ती चाप:प्रतिवर्ती क्रिया के दौरान विद्युत आवेग जिस पथ पर चलते हैं, उसे प्रतिवर्ती चाप कहते हैं।


                                                    अनुक्रिया

                                                    यह तीन प्रकार की होती है:

                                                    1. ऐच्छिक:अग्रमस्तिष्क द्वारा नियंत्रित की जाती है।
                                                      उदाहरण: बोलना, लिखना
                                                    2. अनैच्छिक:मध्य एवं पश्चमस्तिष्क द्वारा नियंत्रित की जाती है।
                                                      उदाहरण: श्वसन, दिल का धड़कना
                                                    3. प्रतिवर्ती क्रिया:मेरुरज्जु द्वारा नियंत्रित की जाती है।
                                                      उदाहरण: गर्म वस्तु छूने पर हाथ को हटा लेना ।

                                                    प्रतिवर्ती क्रिया की आवश्यकता

                                                    कुछ परिस्थितियों में जैसे गर्म वस्तु छूने पर, पैनी वस्तु चुभने पर आदि हमें तुरंत क्रिया करनी होती है वर्ना हमारे शरीर को क्षति पहुँच सकती है। यहाँ अनुक्रिया मस्तिष्क के स्थान पर मेरुरज्जू से उत्पन्न होती है, जो जल्दी होती है।

                                                    मानव मस्तिष्क

                                                    मस्तिष्क सभी क्रियाओं के समन्वय का केन्द्र है। इसके तीन मुख्य भाग है।

                                                    1. अग्रमस्तिष्क
                                                    2. मध्यमस्तिष्क
                                                    3. पश्चमस्तिष्क

                                                    1. अग्रमस्तिष्क

                                                    यह मस्तिष्क का सबसे अधिक जटिल एवं विशिष्ट भाग है। यह प्रमस्तिष्क है।

                                                    कार्य:

                                                    • मस्तिष्क का मुख्य सोचने वाला भाग ।
                                                    • ऐच्छिक कार्यों को नियंत्रित करता है।
                                                    • सूचनाओं को याद रखना ।
                                                    • शरीर के विभिन्न हिस्सों से सूचनाओं को एकत्रित करना एवं उनका समायोजन करना।
                                                    • भूख से संबंधित केन्द्र।

                                                    2. मध्यमस्तिष्क

                                                    अनैच्छिक क्रियाओं को नियंत्रित करना।

                                                    जैसे- पुतली के आकार में परिवर्तन। सिर, गर्दन आदि की प्रतिवर्ती क्रिया ।

                                                    3. पश्चमस्तिष्क:

                                                    इसके तीन भाग हैं:

                                                    1. अनुमस्तिष्क:शरीर की संस्थिति तथा संतुलन बनाना, ऐच्छिक क्रियाओं की परिशुद्धि, उदाहरण: पैन उठाना।
                                                    2. मेडुला:अनैच्छिक कार्यों का नियंत्रण जैसे- रक्तचाप, वमन आदि।
                                                    3. पॉन्स: अनैच्छिक क्रियाओं जैसे श्वसन का नियंत्रण ।


                                                    मस्तिष्क एवं मेरूरज्जु की सुरक्षा

                                                    (i) मस्तिष्क:मस्तिष्क एक हड्डियों के बॉक्स में अवस्थित होता है। बॉक्स के अन्दर तरलपूरित गुब्बारे में मस्तिष्क होता है जो प्रघात अवशोषक का कार्य करता है।

                                                    (ii) मेरुरज्जु:मेरुरज्जु की सुरक्षा कशेरुकदंड या रीढ़ की हड्डी करती है।


                                                    तंत्रिका उत्तक एवं पेशी उत्तक के बीच समन्वय

                                                    विद्युत संकेत या तंत्रिका तंत्र की सीमाएँ

                                                    1. विद्युत संवेग केवल उन कोशिकाओं तक पहुँच सकता है, जो तंत्रिका तंत्र से जुड़ी हैं।
                                                    2. एक बार विद्युत आवेग उत्पन्न करने के बाद कोशिका, नया आवेग उत्पन्न करने से पहले, अपनी कार्यविधि सुचारु करने के लिए समय लेती है। अत: कोशिका लगातार आवेग उत्पन्न नहीं कर सकती।
                                                    3. पौधों में कोई तंत्रिका तंत्र नहीं होता ।

                                                    रासायनिक संचरण: विद्युत संचरण की सीमाओं को दूर करने के लिए रासायनिक संरचण का उपयोग शुरू हुआ।


                                                    पौधों में समन्वय

                                                    पौधों में गति:

                                                    1. वृद्धि पर निर्भर न होना।
                                                    2. वृद्धि पर निर्भर गति।

                                                    (i) उद्दीपन के लिए तत्काल अनुक्रिया

                                                    • वृद्धि पर निर्भर न होना।
                                                    • पौधे विद्युत रासायनिक साधन का उपयोग कर सूचनाओं को एक कोशिका से दूसरी कोशिका तक पहुँचाते हैं।
                                                    • कोशिका अपने अन्दर उपस्थित पानी की मात्रा को परिवर्तित कर, गति उत्पन्न करती है जिससे कोशिका फूल या सिकुड़ जाती है।
                                                      उदाहरण: छूने पर छुई-मुई पौधे की पत्तियों का सिकुड़ना ।

                                                    (ii) वृद्धि के कारण गति

                                                    ये दिशिक या अनुवर्तन गतियाँ, उद्दीपन के कारण होती है।

                                                    • प्रतान:प्रतान का वह भाग जो वस्तु से दूर होता है, वस्तु के पास वाले भाग की तुलना में तेजी से गति करता है जिससे प्रतान वस्तु के चारों तरफ लिपट जाती है।
                                                    • प्रकाशानुवर्तन: प्रकाश की तरफ गति उदाहरण- प्ररोह की प्रकाश की ओर वृद्धि
                                                    • गुरुत्वानुवर्तन:पृथ्वी की तरफ या दूर गति उदाहरण जड़ की पानी की ओर वृद्धि
                                                    • रासायनानुवर्तन :रसायन की तरफ/दूर गति पराग नली की अंडाशय की तरफ गति ।
                                                    • जलानुवर्तन: पानी की तरफ गति उदाहरण जड़ की पानी की ओर वृद्धि


                                                    पादप हॉर्मोन

                                                    ये वो रसायन है जो पौधों कि वृद्धि, विकास व अनुक्रिया का समन्वय करते हैं।

                                                    मुख्य पादप हॉर्मोन हैं:

                                                    (i) ऑक्सिन:

                                                    • शाखाओं के अग्रभाग पर बनता है।
                                                    • कोशिका की लम्बाई में वृद्धि ।
                                                    • प्रकाशानुवर्तन में सहायक ।

                                                    (ii) जिब्बेरेलिन:

                                                    • तने की वृद्धि में सहायक ।

                                                    (iii) साइटोकाइनिन:

                                                    • कोशिका विभाजन तीव्र करता है।
                                                    • फल व बीज में अधिक मात्रा में पाया जाता है।

                                                    (iv) एब्सिसिक अम्ल:

                                                    • वृद्धि संदमन।
                                                    • पत्तियों का मुरझाना।
                                                    • तनाव हॉर्मोन ।

                                                     

                                                    जंतुओं में हॉर्मोन

                                                    हॉर्मोन:ये वो रसायन है जो जंतुओं की क्रियाओं, विकास एवं वृद्धि का समन्वय करते हैं।

                                                    अंतः स्रावी ग्रन्थि:ये वो ग्रंथियाँ हैं जो अपने उत्पाद रक्त में स्रावित करती हैं, जो हॉर्मोन कहलाते हैं।


                                                    हॉर्मोन, अंत: स्रावी ग्रंथियां एवं उनके कार्य

                                                    क्र. स.

                                                    हॉर्मोन

                                                    ग्रंथि

                                                    स्थान

                                                    कार्य

                                                    1.

                                                    थायरॉक्सिन

                                                    अवटुग्रंथि

                                                    गर्दन में

                                                    कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन व वसा का उपापचय

                                                    2.

                                                    वृद्धि हॉर्मोन

                                                    पीयूष ग्रंथि (मास्टर ग्रंथि)

                                                    मस्तिष्क में

                                                    वृद्धि व विकास का नियंत्रण

                                                    3.

                                                    एड्रीनलीन

                                                    अधिवृक्क

                                                    वृक्क (Kidney) के ऊपर

                                                    B.P., हृदय की धड़कन आदि का नियंत्रण आपातकाल में

                                                    4.

                                                    इंसुलिन

                                                    अग्न्याशय

                                                    उदर के नीचे

                                                    रक्त में शर्करा की मात्रा का नियंत्रण

                                                    5.

                                                    लिंग हॉर्मोन:

                                                    टेस्टोस्टेरोन (नर में)

                                                    एस्ट्रोजन मादा में

                                                     

                                                    वृषण

                                                    अंडाशय

                                                    पेट का निचला हिस्सा

                                                    यौवनारंभ से संबंधित परिवर्तन (लैंगिक परिपक्वता)

                                                    6.

                                                    मोचक हार्मोन

                                                    हाइपोथेलमस

                                                    मस्तिष्क में

                                                    पीयूष ग्रंथि से हार्मोन के स्त्राव को प्ररित करता है।


                                                    आयोडीन युक्त नमक

                                                    अवटुग्रंथि (थॉयरॉइड ग्रंथि) को थायरॉक्सिन हॉर्मोन बनाने के लिए आयोडीन की आवश्यकता होती है। थायरॉक्सिन कार्बोहाइड्रेट, वसा तथा प्रोटीन के उपापचय का नियंत्रण करता है जिससे शरीर की संतुलित वृद्धि हो सके। अतः अवटुग्रंथि के सही रूप से कार्य करने के लिए आयोडीन की आवश्यकता होती है। आयोडीन की कमी से गला फूल जाता है, जिसे गॉयटर (घेंघा) बीमारी कहते हैं।


                                                    मधुमेह (डायबिटीज):इस बीमारी में रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ जाता है।

                                                    कारण: अग्न्याशय ग्रंथि द्वारा स्रावित इंसुलिन हॉर्मोन की कमी के कारण होता है। इंसुलिन रक्त में शर्करा के स्तर को नियंत्रित करता है।

                                                    निदान (उपचार):इंसुलिन हॉर्मोन का इंजेक्शन ।

                                                    पुनर्भरण क्रियाविधि:हॉर्मोन का अधिक या कम मात्रा में स्रावित होना हमारे शरीर पर हानिकारक प्रभाव डालता है। पुनर्भरण क्रियाविधि यह सुनिश्चित करती है कि हॉर्मोन सही मात्रा में तथा सही समय पर स्रावित हो ।

                                                    उदाहरण के लिए:रक्त में शर्करा के नियंत्रण की विधि ।

                                                    Notes of Ch 7 जीव जनन कैसे करते हैं Class 10 विज्ञान

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                                                    Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 7 जीव जनन कैसे करते हैं विज्ञान 

                                                    Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 7 जीव जनन कैसे करते हैं विज्ञान

                                                    इस अध्याय में विषय
                                                    • प्रजनन के प्रकार
                                                    • अलैंगिक प्रजनन की विधियाँ
                                                    • ऊतक संवर्धन
                                                    • कायिक संवर्धन के लाभ
                                                    • पुष्प की संरचना
                                                    • मानव में प्रजनन
                                                    • नर जनन तंत्र
                                                    • मादा जनन तंत्र
                                                    • जब अंड-कोशिका का निषेचन होता है
                                                    • जब अंड का निषेचन नहीं होता
                                                    • जनन स्वास्थ्य
                                                    • गर्भरोधन के प्रकार

                                                    Ch 7 जीव जनन कैसे करते हैं Class 10 विज्ञान Notes

                                                    जनन

                                                    जनन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सजीव अपने जैसे नए जीव उत्पन्न करते हैं । यह पृथ्वी पर जीवन की निरंतरता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

                                                    • कोशिका के केन्द्रक में पाए जाने वाले गुणसूत्रों के डी. एन. ए. (DNA - डिऑक्सीराइबो न्यूक्लीक अम्ल) के अणुओं में आनुवंशिक गुण होते हैं।
                                                    • डी. एन. ए. (DNA) प्रतिकृति बनाता है तथा नई कोशिकाएँ बनाता है। इससे कोशिकाओं में विभिन्नता उत्पन्न होती है। ये नई कोशिकाएँ एकसमान हैं परन्तु समरूप नहीं ।


                                                    विभिन्नता का महत्त्व

                                                    1. लम्बे समय तक प्रजाति (स्पीशीज) की उत्तरजीविता बनाए रखने में उपयोगी ।
                                                    2. जैव विकास का आधार ।

                                                    प्रजनन के प्रकार

                                                    1. अलैंगिक प्रजनन
                                                    2. लैंगिक प्रजनन


                                                    (i) अलैंगिक प्रजनन:

                                                    • एकल जीव नए जीव उत्पन्न करता है।
                                                    • युग्मक का निर्माण नहीं होता है।
                                                    • नया जीव पैतृक जीव के समान/समरूप होता है।
                                                    • सतत् गुणन के लिए यह एक बहुत ही उपयोगी माध्यम है।
                                                    • यह निम्न वर्ग के जीवों में अधिक पाया जाता है।

                                                    (ii) लैंगिक प्रजनन:

                                                    • दो एकल जीव (एक नर व एक मादा) मिलकर नया जीव उत्पन्न करते हैं।
                                                    • नर युग्मक व मादा युग्मक बनते हैं।
                                                    • नया जीव अनुवांशिक रूप से पैतृक जीवों के समान होता है परन्तु समरूप नहीं।
                                                    • प्रजाति में विभिन्नताएँ उत्पन्न करने में सहायक होता है।
                                                    • उच्च वर्ग के जीवों में पाया जाता है।

                                                     

                                                    अलैंगिक प्रजनन की विधियाँ

                                                    1. विखंडन
                                                    2. खंडन
                                                    3. पुनरुद्भवन (पुनर्जनन)
                                                    4. मुकुलन
                                                    5. बीजाणु समासंघ
                                                    6. कायिक प्रवर्धन

                                                    (i) विखंडन

                                                    इस प्रक्रम में एक कोशिका दो या दो से अधिक कोशिकाओं में विभाजित हो जाती है।

                                                    (क) द्विखंडन — जीव दो कोशिकाओं में विभाजित होता है।
                                                    उदाहरण: अमीबा, लेस्मानिया

                                                    (ख) बहुखंडन — जीव बहुत सारी कोशिकाओं में विभाजित हो जाता है।
                                                    उदाहरण: प्लैज्मोडियम


                                                    (ii) खंडन

                                                    इस प्रजनन विधि में सरल संरचना वाले बहुकोशिकीय जीव विकसित होकर छोटे-छोटे टुकड़ों में खंडित हो जाता है। ये टुकड़े वृद्धि कर नए जीव में विकसित हो जाते हैं।
                                                    उदाहरण: स्पाइरोगाइरा


                                                    (iii) पुनरुद्भवन (पुनर्जनन)

                                                    इस प्रक्रम में किसी कारणवश, जब कोई जीव कुछ टुकड़ों में टूट जाता है, तब प्रत्येक टुकड़ा नए जीव में विकसित हो जाता है।
                                                    उदाहरण: प्लेनेरिया, हाइड्रा


                                                    (iv) मुकुलन

                                                    इस प्रक्रम में, जीव के शरीर पर एक उभार उत्पन्न होता है जिसे मुकुल कहते हैं। यह मुकुल पहले नन्हें फिर पूर्ण जीव में विकसित हो जाता है तथा जनक से अलग हो जाता है।
                                                    उदाहरण: हाइड्रा, यीस्ट (खमीर)


                                                    (v) बीजाणु समासंघ

                                                    कुछ जीवों के तंतुओं के सिरे पर बीजाणु धानी बनती है जिनमें बीजाणु होते हैं। बीजाणु गोल संरचनाएँ होती हैं जो एक मोटी भित्ति से रक्षित होती हैं। अनुकूल परिस्थिति मिलने पर बीजाणु वृद्धि करने लगते हैं।


                                                    (vi) कायिक प्रवर्धन

                                                    कुछ पौधों में नए पौधें का निर्माण उसके कायिक भाग जैसे जड़, तना पत्तियाँ आदि से होता है, इसे कायिक प्रवर्धन कहते हैं।

                                                    (a) प्राकृतिक विधियाँ

                                                    • जड़ द्वारा – डहेलिया, शकरकंदी
                                                    • तने द्वारा – आलू, अदरक
                                                    • पत्तियों द्वारा – ब्रायोफिलम की पत्तियों की कोर पर कलिकाएँ होती हैं, जो विकसित होकर नया पौधा बनाती है।

                                                    (b) कृत्रिम विधियाँ

                                                    • रोपण - आम
                                                    • कर्तन - गुलाब
                                                    • लेयरिंग – चमेली


                                                    ऊतक संवर्धन

                                                    इस विधि में शाखा के सिरे से कोशिकाएँ लेकर उन्हें पोषक माध्यम में रखा जाता है। ये कोशिकाएँ गुणन कर कोशिकाओं के गुच्छे जिसे कैलस कहते हैं में परिवर्तित हो जाती है। कैलस को हॉर्मोन माध्यम में रखा जाता है, जहाँ उसमें विभेदन होकर नए पौधे का निर्माण होता है जिसे फिर मिट्टी में रोपित कर देते है ।

                                                    उदहारण: आर्किक, सजावटी पौधे ।

                                                     

                                                    कायिक संवर्धन के लाभ

                                                    बीज उत्पन्न न करने वाले पौधे, जैसे—केला, गुलाब आदि के नए पौधे बना सकते हैं।

                                                    • नए पौधे आनुवंशिक रूप में जनक के समान होते हैं।
                                                    • बीज रहित फल उगाने में मदद मिलती है।
                                                    • पौधे उगाने का सस्ता और आसान तरीका है।

                                                     

                                                    लैंगिक प्रजनन

                                                    • लैंगिक प्रजनन नर व मादा युग्मक के मिलने से होता है ।
                                                    • नर व मादा युग्मक के मिलने के प्रक्रम को निषेचन कहते हैं।
                                                    • संतति में विभिन्नता उत्पन्न होती है।

                                                     

                                                    पुष्पी पौधों में लैंगिक जनन

                                                    • फूल पौधे का जनन अंग है।
                                                    • एक फूल के मुख्य भाग — बाह्य दल, पंखुडी, स्त्रीकेसर एवं पुंकेसर होते हैं।

                                                     

                                                    फूल के प्रकार

                                                    1. उभयलिंगी पुष्प —स्त्रीकेसर व पुंकेसर दोनों उपस्थित होते हैं।
                                                      उदाहरण – सरसों, गुड़हल ।
                                                    2. एक लिंगी पुष्प —स्त्रीकेसर और पुंकेसर में से कोई एक ही जननांग उपस्थित होता है।
                                                      उदाहरण – पपीता, तरबूज ।

                                                     

                                                    पुष्प की संरचना


                                                    बीज निर्माण की प्रक्रिया

                                                    1. परागकोश में उत्पन्न परागकण, हवा, पानी या जन्तु द्वारा उसी फूल के वर्तिकाग्र (स्वपरागण) या दूसरे फूल के वर्तिकाग्र (परपरागण) पर स्थानांतरित हो जाते हैं।
                                                    2. परागकण से एक नलिका विकसित होती है जो वर्तिका से होते हुए बीजांड तक पहुँचती है।
                                                    3. अंडाशय के अन्दर नर व मादा युग्मक का निषेचन होता है तथा युग्मनज का निर्माण होता है।
                                                    4. युग्मनज में विभाजन होकर भ्रूण का निर्माण होता है। बीजांड से एक कठोर आवरण विकसित होकर बीज में बदल जाता है।
                                                    5. अंडाशय फल में बदल जाता है तथा फूल के अन्य भाग झड़ जाते हैं।


                                                    मानव में प्रजनन

                                                    मानवों में लैंगिक जनन होता है।

                                                    लैंगिक परिपक्वता —जीवन का वह काल जब नर में शुक्राणु तथा मादा में अंड-कोशिका का निर्माण शुरू हो जाता है। किशोरावस्था की इस अवधि को यौवनारंभ कहते हैं।

                                                     

                                                    यौवनारंभ पर परिवर्तन

                                                    1. किशोरों में एक समान-
                                                      कांख व जननांग के पास गहरे बालों का उगना ।
                                                      त्वचा का तैलीय होना तथा मुँहासे निकलना।
                                                    2. लड़कियों में-
                                                      स्तन के आकार में वृद्धि होने लगती है।
                                                      रजोधर्म होने लगता है।
                                                    3. लड़कों में-
                                                      चेहरे पर दाढ़ी-मूँछ निकलना ।
                                                      आवाज का फटना ।
                                                    ये परिवर्तन संकेत देते हैं कि लैंगिक परिपक्वता हो रही है।

                                                     

                                                    नर जनन तंत्र

                                                    (i) वृषण- वृषण उदर गुहा के बाहर वृषण कोष में उपस्थित होते हैं। वृषण कोष तापमान तुलनात्मक रूप से कम होता है, जो शुक्राणु बनने के लिए आवश्यक है।

                                                    • नर युग्मक (शुक्राणु) यहाँ पर बनते हैं।
                                                    • वृषण ग्रन्थी, टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन उत्पन्न करती है। टेस्टोस्टेरॉन के कार्य :
                                                      (i) शुक्राणु उत्पादन का नियंत्रण
                                                      (ii) लड़कों में यौवनावस्था परिवर्तन


                                                    (ii) शुक्रवाहिनी-ये शुक्राणुओं को वृषण से शिश्न तक पहुँचाती है।

                                                    (iii) मूत्रमार्ग-यह मूत्र और वीर्य दोनों के बाहर जाने का मार्ग हैं। बाहरी आवरण के साथ इसे शिश्न कहते हैं।

                                                    (iv) संबंधित ग्रंथियाँ-शुक्राशय ग्रथि तथा प्रोस्ट्रेट ग्रंथि अपने स्राव शुक्रवाहिनी में डालते हैं।

                                                    इससे—

                                                    • शुक्राणु तरल माध्यम में आ जाते हैं।
                                                    • यह माध्यम उन्हें पोषण प्रदान करता है।
                                                    • उनके स्थानांतरण में सहायता करता है। शुक्राणु तथा ग्रंथियों का स्राव मिलकर वीर्य बनाते हैं।


                                                    मादा जनन तंत्र

                                                    (i) अंडाशय: मादा युग्मक अथवा अंड-कोशिका का निर्माण अंडाशय में होता है।

                                                    • लड़की के जन्म के समय ही अंडाशय में हजारों अपरिपक्व अंड होते हैं ।
                                                    • यौवनारंभ पर इनमें से कुछ अंड परिपक्व होने लगते हैं।
                                                    • दो में से एक अंडाशय द्वारा हर महीने एक परिपक्व अंड उत्पन्न किया जाता है।
                                                    • अंडाशय एस्ट्रोजन व प्रोजैस्ट्रोन हॉर्मोन भी उत्पन्न करता है।

                                                    (ii) अंडवाहिका (फेलोपियन ट्यूब)

                                                      • अंडाशय द्वारा उत्पन्न अंड कोशिका को गर्भाशय तक स्थानांतरण करती है।
                                                      • अंड कोशिका व शुक्राणु का निषेचन यहाँ पर होता है।

                                                      (iii) गर्भाशय

                                                      • यह एक थैलीनुमा संरचना है जहाँ पर शिशु का विकास होता है।
                                                      • गर्भाशय ग्रीवा द्वारा योनि में 'खुलता हैं।


                                                      जब अंड-कोशिका का निषेचन होता है

                                                      • निषेचित अंड युग्मनज कहलाता है, जो गर्भाशय में रोपित होता है। गर्भाशय में रोपण के पश्चात् युग्मनज में विभाजन व विभेदन होता है तथा भ्रूण का निर्माण होता है।
                                                      • प्लैसेंटा:यह एक विशिष्ट उत्तक हैं जिसकी तश्तरीनुमा संरचना गर्भाशय में धंसी होती है।
                                                        इसका मुख्य कार्य —
                                                        (i) माँ के रक्त से ग्लूकोज ऑक्सीजन आदि (पोषण) भ्रूण को प्रदान करना ।
                                                        (ii) भ्रूण द्वारा उत्पादित अपशिष्ट पदार्थों का निपटान ।
                                                      • अंड के निषेचन से लेकर शिशु के जन्म तक के समय को गर्भकाल कहते हैं। इसकी अवधि लगभग 9 महीने होती है।

                                                       

                                                      जब अंड का निषेचन नहीं होता

                                                      • हर महीने गर्भाशय खुद को निषेचित अंड प्राप्त करने के लिए तैयार करता है ।
                                                      • गर्भाशय की भित्ती मांसल एवं स्पोंजी हो जाती है। यह भ्रूण के विकास के लिए जरूरी है।
                                                      • यदि निषेचन नहीं होता है तो इस भित्ति की आवश्यकता नहीं रहती। अतः यह पर्त धीरे-धीरे टूट कर योनि मार्ग से रक्त एवं म्यूकस के रूप में बाहर निकलती है।
                                                      • यह चक्र लगभग एक महीने का समय लेता है तथा इसे ऋतुस्राव अथवा रजोधर्म कहते हैं।
                                                      • 40 से 50 वर्ष की उम्र के बाद अंडाशय से अंड का उत्पन्न होना बन्द हो जाता है । फलस्वरूप रजोधर्म बन्द हो जाता है जिसे रजोनिवृति कहते हैं।

                                                       

                                                      जनन स्वास्थ्य

                                                      जनन स्वास्थ्य का अर्थ है, जनन से संबंधित सभी आयाम जैसे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं व्यावहारिक रूप से स्वस्थ्य होना।

                                                      रोगों का लैंगिक संचरण- (STD's) अनेक रोगों का लैंगिक संचरण भी हो सकता है।

                                                      जैसे:

                                                      • जीवाणु जनित: गोनेरिया, सिफलिस
                                                      • विषाणु जनित: मस्सा ( warts), HIV AIDS |
                                                        कंडोम के उपयोग से इन रोगों का संचरण कुछ सीमा तक रोकना संभव है।

                                                      गर्भरोधन– गर्भधारण को रोकना गर्भरोधन कहलाता है।

                                                      गर्भरोधन के प्रकार

                                                      (i) यांत्रिक अवरोध:शुक्राणु को अंडकोशिका तक नहीं पहुँचने दिया जाता।

                                                      उदाहरण-

                                                      • शिश्न को ढकने वाले कंडोम
                                                      • योनि में रखे जाने वाले सरवाइकल कैप

                                                      (ii) रासायनिक तकनीक:

                                                      • मादा में अंड को न बनने देना, इसके लिए दवाई ली जाती है जो हॉर्मोन के संतुलन को परिवर्तित कर देती है।
                                                      • इनके अन्य प्रभाव (विपरीत प्रभाव) भी हो सकते हैं।

                                                      (iii) IUCD (Intra Uterine contraceptive device)

                                                      लूप या कॉपर-T को गर्भाशय में स्थापित किया जाता है। जिससे गर्भधारण नहीं होता ।

                                                      (iv) शल्यक्रिया तकनीक

                                                      • नसबंधी:पुरुषों में शुक्रवाहिकाओं को रोक कर, उसमें से शुक्राणुओं के स्थानांतरण को रोकना ।
                                                      • ट्यूबेक्टोमी:महिलाओं में अंडवाहनी को अवरुद्ध कर, अंड के स्थानांतरण को रोकना ।

                                                      भ्रूण हत्या: मादा भ्रूण को गर्भाशय में ही मार देना भ्रूण हत्या कहलाता है।

                                                      एक स्वस्थ समाज के लिए, संतुलित लिंग अनुपात आवश्यक है। यह तभी संभव होगा जब लोगों में जागरूकता फैलाई जाएगी व भ्रूण हत्या तथा भ्रूण लिंग निर्धारण जैसी घटनाओं को रोकना होगा।

                                                      Notes of Ch 8 आनुवंशिकता एवं जैव विकास Class 10 विज्ञान

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                                                      Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 8 आनुवंशिकता एवं जैव विकास विज्ञान 

                                                      Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 8 आनुवंशिकता एवं जैव विकास विज्ञान

                                                      इस अध्याय में विषय
                                                      • शारीरिक कोशिका विभिन्नता (Somatic Variation)
                                                      • जनन कोशिका विभिन्नता (Gametic Variation)
                                                      • विभिन्नता के लाभ
                                                      • मेंडल का योगदान
                                                      • मेंडल द्वारा मटर के पौधे का चयन
                                                      • मेंडेल के आनुवांशिक के नियम
                                                      • लिंग निर्धारण

                                                      Ch 8 आनुवंशिकता एवं जैव विकास Class 10 विज्ञान Notes

                                                      शारीरिक कोशिका विभिन्नता (Somatic Variation)

                                                      • यह शारीरिकी कोशिका में आती है।
                                                      • ये अगली पीढ़ी में स्थानान्तरित नहीं होते
                                                      • जैव वकास में सहायक नहीं है।
                                                      • इन्हें उपार्जित लक्षण भी कहा जाता

                                                      उदाहरण: कानों में छेद करना, कुत्तों में पूँछ कटना


                                                      जनन कोशिका विभिन्नता (Gametic Variation)

                                                      • यह जनन कोशिका में आती है।
                                                      • यह अगली पीढ़ी में स्थानान्तरित होते हैं।
                                                      • जैव विकास में सहायक हैं।
                                                      • इन्हें आनुवंशिक लक्षण भी कहा जाता है।

                                                      उदाहरण: मानव के बालों का रंग, मानव शरीर की लम्बाई

                                                       

                                                      जनन के दौरान विभिन्नताओं का संचयन

                                                      विभिन्नताएँ जनन द्वारा परिलक्षित होती हैं:

                                                      (i) अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction)

                                                      • विभिन्नताएँ कम होंगी
                                                      • डी.एन.ए. प्रतिकृति के समय न्यून त्रुटियों के कारण उत्पन्न होती हैं।

                                                      (ii) लैंगिक जनन (Sexual Reproduction)

                                                      • विविधता अपेक्षाकृत अधिक होगी
                                                      • क्रास संकरण के द्वारा, गुणसूत्र क्रोमोसोम के विसंयोजन द्वारा, म्यूटेशन (उत्परिवर्तन) के द्वारा ।


                                                      विभिन्नता के लाभ

                                                      1. प्रकृति की विविधता के आधार पर विभिन्नता जीवों को विभिन्न प्रकार के लाभ हो सकते हैं।
                                                        उदाहरण- ऊष्णता को सहन करने की क्षमता वाले जीवपणुओं को अधिक गर्मी से बचने की संभावना अधिक होती है।
                                                      2. पर्यावरण कारकों द्वारा उत्तम परिवर्त का चयन जैव विकास प्रक्रम का आधार बनाता है।
                                                        स्वतंत्र (Free ear labe) एवं जुड़े कर्णपालि (Attached ear lobe) मानव समष्टि में पाए जाने वाले दो परिवर्त हैं।

                                                       

                                                      मेंडल का योगदान

                                                      मेंडल ने वंशागति के कुछ मुख्य नियम प्रस्तुत किए।

                                                      मेंडल को आनुवंशिकी के जनक के नाम से जाना जाता है । मेंडल ने मटर के पौधे के विपर्यासी (7 विकल्पी) लक्षणों का अध्ययन किया जो स्थूल रूप से दिखाई देते हैं।

                                                      मेंडल द्वारा मटर के पौधे का चयन

                                                      मेंडल ने मटर के पौधे का चयन निम्नलिखित गुणों के कारण किया:

                                                      1. मटर के पौधों में विपर्यासी विकल्पी लक्षण स्थूल रूप से दिखाई देते हैं।
                                                      2. इनका जीवन काल छोटा होता है।
                                                      3. सामान्यतः स्वपरागण होता है परन्तु कृत्रिम तरीके से परपरागण भी कराया जा सकता है।
                                                      4. एक ही पीढ़ी में अनेक बीज बनाता है।


                                                      1. एकल संकरण (मोनोहाइब्रिड)

                                                      मटर के दो पौधों के एक जोड़ी विकल्पी लक्षणों के मध्य क्रास संकरण को एकल संकर क्रास कहा जाता है।

                                                      उदाहरण – लंबे पौधे तथा बौने पौधे के मध्य संकरण

                                                      एकल संकरण Monohybrid Cross

                                                      अवलोकन

                                                      1. प्रथम संतति F1पीढ़ी में सभी पौधे लंबे थे।
                                                      2. F2पीढ़ी में 3/4 लंबे पौधे वे 1/4 बौने पौधे थे।
                                                      3. फीनोटाइप F2– 3 : 1 (3 लंबे पौधे : 1 बौना पौधा)
                                                        जीनोटाइप F2– 1 : 2:1
                                                        TT, Tt, tt का संयोजन 1 : 2 : 1 अनुपात में प्राप्त होता है।

                                                      निष्कर्ष

                                                      1. TT व Tt दोनों लंबे पौधे हैं, यद्यपि tt बौना पौधा है।
                                                      2. T की एक प्रति पौधों को लंबा बनाने के लिए पर्याप्त है। जबकि बौनेपन के लिए t की दोनों प्रतियाँ tt होनी चाहिए।
                                                      3. T जैसे लक्षण प्रभावी लक्षण कहलाते हैं, t जैसे लक्षण अप्रभावी लक्षण कहलाते हैं।

                                                       

                                                      2. द्वि-संकरण द्वि/विकल्पीय संकरण (Dihybrid Cross)

                                                      मटर के दो पौधों के दो जोड़ी विकल्पी लक्षणों के मध्य क्रास

                                                      F2

                                                      गोल, पीले बीज : 9

                                                      गोल, हरे बीज : 3

                                                      झुर्रीदार, पीले बीज : 3

                                                      झुर्रीदार, हरे बीज : 1

                                                      इस प्रकार से दो अलग अलग (बीजों की आकृति एवं रंग) को स्वतंत्र वंशानुगति होती है।


                                                      मेंडेल के आनुवांशिक के नियम

                                                      मेंडेल ने मटर पर किए संकरण प्रयोगों के निष्कर्षो के आधार पर कुछ सिद्धांतों का प्रतिपादन किया जिन्हें मेंडेल कें आनुवंशिकता के नियम कहा जाता है।

                                                      यह नियम निम्न प्रकार से हैं:

                                                      1. प्रभावित का नियम
                                                      2. पृथक्करण का नियम/विसंयोजन का नियम
                                                      3. स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम
                                                      1. प्रभाविता का नियम (Law of Dominance)

                                                      जब मेंडल ने भिन्न-भिन्न लक्षणों वाले समयुग्मजी पादपों में जब संकर संकरण करवाया तो इस क्रॉस में मेंडेल ने एक ही लक्षण प्रदर्शित करने वाले पादपों का ही अध्ययन किया। तो उसने पाया कि एक प्रभावी लक्षण अपने आप को अभिव्यक्त करता है। और एक अप्रभावी लक्षण अपने आप को छिपा लेता है। इसी को प्रभाविता कहा गया है और इस नियम को मेंडल का प्रभावता का नियम कहा जाता है।

                                                      2.पृथक्करण का नियम/विसंयोजन का नियम/युग्मकों की शुद्धता का निमय (Law of segregation or law of purity of gametes)

                                                        युग्मक निर्माण के समय दोनों युग्म विकल्पी अलग हो जाते है। अर्थात् एक युग्मक में सिर्फ एक विकल्पी हो जाता है। इसलिए इसे पृथक्करण का नियम कहते हैं।

                                                        युग्मक किसी भी लक्षण के लिए शुद्ध होते हैं।

                                                        3. स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम (Law of Independent Assortment)

                                                          यह नियम द्विसंकर संकरण के परिणामों पर आधारित है। इस नियम के अनुसार किसी द्विसंकर संरकरण में एक लक्षण की वंशगति दूसरे लक्षण की वंशागति से पूर्णतः स्वतंत्र होती है। अर्थात् एक लक्षण के युग्मा विकल्पी दूसरे लक्षण के युग्मविकल्पी से युग्मक निर्माण के समय स्वतंत्र रूप से पृथक व पुनर्व्यवस्थित होते है।

                                                          इसमें लक्षण अनुपात 9: 3:3: 1 होता है।


                                                          लक्षण अपने आपको किस प्रकार व्यक्त करते हैं?

                                                          प्रोटीन विभिन्न लक्षणों की अभिव्यक्ति को नियंत्रित करती है। (इंजाइम व हॉर्मोन)

                                                          लिंग निर्धारण

                                                          लिंग निर्धारण के लिए उत्तरदायी कारक:

                                                          • कुछ प्राणियों में लिंग निर्धारण अंडे के ऊष्मायन ताप पर निर्भर करता है।
                                                            उदाहरण: घोंघा
                                                          • कुछ प्राणियों जैसे कि मानव में लिंग निर्धारण लिंग सूत्र पर निर्भर करता है। XX (मादा) तथा XY (नर)

                                                          मानव में लिंग निर्धारण

                                                          आधे बच्चे लड़के एवं आधे लड़की हो सकते हैं। सभी बच्चे चाहे वह लड़का हो अथवा लड़की अपनी माता से X गुणसूत्र प्राप्त करते हैं । अतः बच्चों का लिंग निर्धारण इस बात पर निर्भर करता है कि उन्हें अपने पिता से किस प्रकार का गुणसूत्र प्राप्त हुआ है। जिस बच्चे को अपने पिता से X गुणसूत्र वंशानुगत हुआ है वह लड़की एवं जिसे पिता से Y गुणसूत्र वंशागत होता है, वह लड़का होता है।

                                                          Notes of Ch 9 मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार Class 10 विज्ञान

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                                                          Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 9 मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार विज्ञान 

                                                          Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 9 मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार विज्ञान


                                                          इस अध्याय में विषय
                                                          • मानव नेत्र के विभिन्न भाग एवं उनके कार्य
                                                          • निकट-दृष्टि दोष उत्पन्न होने के कारण
                                                          • दीर्घ-दृष्टि दोष दोष उत्पन्न होने के कारण
                                                          • प्रिज्म
                                                          • काँच के प्रिज्म द्वारा श्वेत प्रकाश का विक्षेपण
                                                          • वायुमंडलीय अपवर्तन
                                                          • प्रकाश का प्रकीर्णन
                                                          • Rayleigh का नियम

                                                          Ch 9 मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार Class 10 विज्ञान Notes

                                                          मानव नेत्र: यह एक अत्यंत मूल्यवान एवं सुग्राही ज्ञानेंद्रिय है। यह हमें इस अद्भुत संसार तथा हमारे चारों ओर के रंगों को देखने योग्य बनाता है।

                                                          • यह नेत्र गोलक में स्थित होते हैं।
                                                          • नेत्र गोलक का व्यास लगभग 2-3 cm होता है।

                                                          मानव नेत्र के विभिन्न भाग एवं उनके कार्य

                                                          श्वेत मंडल/कॉर्निया —यह नेत्र के अग्र भाग पर एक पारदर्शी झिल्ली है। नेत्र में प्रवेश करने वाली प्रकाश किरणों का अधिकांश अपवर्तन कॉर्निया के बाहरी पृष्ठ पर होता है।

                                                          लेंस —यह एक उत्तल लेंस है जो प्रकाश को रेटिना पर अभिसरित करता है। यह एक रेशेदार जहेलीवत पदार्थ का बना होता है। लेंस केवल विभिन्न दूरियों पर रखी वस्तुओं को रेटिना पर क्रेन्द्रित करने के लिए आवश्यक फोकस दूरी में सूक्ष्म समायोजन करता है।

                                                          परितारिका — कॉर्निया के पीछे एक गहरा पेशीय डायफ्राम होता है जो पुतली के आकार को नियंत्रित करता है।

                                                          पुतली (Pupil) —पुतली आँख में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करती है।

                                                          रेटीना —यह एक कोमल सूक्ष्म झिल्ली है जिसमें प्रकाश सुग्राही कोशिकाएं अधिक संख्या में पाई जाती हैं। प्रदीप्त होने पर प्रकाश-सुग्राही कोशिकाएँ सक्रिय हो जाती हैं तथा विद्युत सिग्नल पैदा करती हैं। ये सिग्नल दृक् तंत्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क तक पहुँचा दिए जाते हैं। मस्तिष्क इन सिग्नलों की व्याख्या करता है और हम वस्तुओं को देख पाते हैं।

                                                          दूर बिंदु (Far Point) —वह दूरतम बिंदु जिस तक कोई नेत्र वस्तुओं को सुस्पष्ट देख सकता है, नेत्र का दूर-बिंदु कहलाता है। सामान्य नेत्र के लिए यह अनंत दूरी पर होता है।

                                                          निकट बिंदु (Near point) —वह न्यूनतम दूरी जिस पर रखी कोई वस्तु बिना तनाव के अत्यधिक स्पष्ट देखी जा सकती है, उसे नेत्र का निकट बिंदू कहते हैं।

                                                          • किसी सामान्य दृष्टि के कारण वयस्क के लिए निकट बिंदू आँख से लगभग 25cm की दूरी पर होता है।
                                                          • इसे सुस्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी भी कहते हैं।

                                                          समंजन क्षमता —अभिनेत्र लेंस की वह क्षमता जिसके कारण वह अपनी फोकस दूरी को समायोजित कर लेता है समंजन कहलाती है, लेंस की वक्रता पक्ष्माभी पेशियों द्वारा निमांत्रित की जाती है।


                                                          दृष्टि दोष तथा उनका संशोधन

                                                          मोतियाबिंद —अधिक उम्र के कुछ व्यक्तियों के नेत्र का क्रिस्टलीय लेंस दूधिया तथा धुँधला हो जाता है। इस स्थिति को मोतियाबिंद कहते हैं। इसके कारण नेत्र की दृष्टि में कमी या पूर्ण रूप से दृष्टि क्षय हो जाती है।
                                                          मोतियाबिंद की शल्य चिकित्सा के बाद दृष्टि का वापस लौटना संभव होता है।


                                                          निकट-दृष्टि दोष उत्पन्न होने के कारण

                                                          निकट-दृष्टि दोष — इस दोष में व्यक्ति निकट रखी वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है परंतु दूर रखी वस्तुओं को वह सुस्पष्ट नहीं देख पाता।
                                                          ऐसे दोषयुक्त व्यक्ति का दूर-बिंदू अनंत पर न होकर नेत्र के पास आ जाता है।

                                                          1. अभिनेत्र लेंस की वक्रता का अत्यधिक होना
                                                          2. नेत्र गोलक का लंबा हो जाना ।

                                                          निवारण —इस दोष को किसी उपयुक्त क्षमता के अवतल लेंस के उपयोग द्वारा संशोधित किया जा सकता है।


                                                          दीर्घ-दृष्टि दोष दोष उत्पन्न होने के कारण

                                                          दीर्घ-दृष्टि दोष — दीर्घ-दृष्टि दोषयुक्त कोई व्यक्ति दूर की वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है परंतु निकट रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख पाता। ऐसे दोषयुक्त व्यक्ति का निकट-बिंदु सामान्य निकट बिंदु (25cm) से दूर हट जाता है।

                                                          1. अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी का अत्यधिक हो जाना ।
                                                          2. नेत्र गोलक का छोटा हो जाना ।

                                                          निवारण —इस दोष को उपयुक्त क्षमता के उत्तल लेंस का इस्तेमाल करके संशोधित किया जा सकता है।

                                                          जरा दूरदृष्टिता —आयु में वृद्धि होने के साथ-साथ मानव नेत्र में समंजन - क्षमता घट जाती है। अधिकांश व्यक्तियों का निकट-बिंदू दूर हट जाता है। इस दोष को जरा दूरदृष्टिता कहते हैं।

                                                          कारण —यह पक्ष्माभी पेशियों के धीरे-धीरे दुर्बल होने तथा क्रिस्टलीय लेंस के लचीलेपन में कमी आने के कारण उत्पन्न होता है।

                                                          निवारण —

                                                          • उत्तल लेंस के प्रयोग से।
                                                          • कभी-कभी किसी व्यक्ति के नेत्र में दोनों ही प्रकार के दोष निकट दृष्टि तथा दूर-दृष्टि दोष होते हैं ऐसे व्यक्तियों के लिए प्राय: द्विफोकसी लेंसों की आवश्यकता होती ऊपरी भाग अवतल लेंस और निचला भाग उत्तल लेंस होता है ।


                                                          दोनों नेत्रों का सिर पर सामने की ओर स्थित होने का लाभ

                                                          • इससे हमें त्रिविमीय चाक्षुकी (three dimension vision) का लाभ मिलता है।
                                                          • इससे हमारा दृष्टि-क्षेत्र विस्तृत हो जाता है।
                                                          • इससे हम धुंधली चीजों को भी देख पाते हैं।


                                                          प्रिज्म

                                                          प्रिज्म से प्रकाश अपवर्तन —प्रिज्म के दो त्रिभुजाकार आधार तथा तीन आयताकार पार्श्व-पृष्ठ होते हैं।

                                                          प्रिज्म कोण —प्रिज्म के दो पार्श्व फलकों के बीच के कोण को प्रिज्म कोण कहते हैं।

                                                          विचलन कोण —आपतित किरण एवं निर्गत किरण के बीच के कोण को विचलन कोण कहते हैं।


                                                          काँच के प्रिज्म द्वारा श्वेत प्रकाश का विक्षेपण

                                                          सूर्य का श्वेत प्रकाश जब प्रिज्म से होकर गुजरता है तो प्रिज्म श्वेत प्रकाश को सात रंगों की पट्टी में विभक्त कर देता है। यह सात रंग है- बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी तथा लाल। प्रकाश के अवयवी वर्णों के इस बैंड को स्पेक्ट्रम (वर्णक्रम) कहते हैं। प्रकाश के अवयवी वर्णों में विभाजन को विक्षेपणकहते हैं ।

                                                          इंद्रधनुष —इंद्रधनुष वर्षा के पश्चात आकाश में जल के सूक्ष्म कणों में दिखाई देने वाला प्राकृतिक स्पेक्ट्रम है। यह वायुमंडल में उपस्थित जल की बूँदों द्वारा सूर्य के प्रकाश के परिक्षेपन के कारण प्राप्त होता है। इंद्रधनुष सदैव सूर्य के विपरीत दिशा में बनता है।

                                                          जल की सूक्ष्म बूँदें छोटे प्रिज्मों की भाँति कार्य करती है। सूर्य के आपतित प्रकाश की ये बूँदें अपवर्तित तथा विक्षेपित करती हैं, तत्पश्चात इसे आंतरिक परावर्तित करती हैं, अंततः जल की बूँद से बाहर निकलते समय प्रकाश को पुनः अपवर्तित करती है। प्रकाश के परिक्षेपण तथा आंतरिक परावर्तन के कारण विभिन्न वर्ण प्रेक्षक के नेत्रों तक पहुँचते हैं।

                                                          • VIBGYOR: आपको वर्णों के क्रम याद रखने में सहायता करेगा।
                                                          • किसी प्रिज्म से गुजरने के पश्चात, प्रकाश के विभिन्न वर्ण, आपतित किरण के सापेक्ष अलग-अलग कोणों पर झुकते हैं।
                                                          • लाल प्रकाश सबसे कम झुकता है जबकि बैंगनी प्रकाश सबसे अधिक झुकता है।

                                                          आइजक न्यूटन ने सर्वप्रथम सूर्य का स्पेक्ट्रम प्राप्त करने के लिए काँच के प्रिज्म का उपयोग किया। एक दूसरा समान प्रिज्म उपयोग करके उन्होंने श्वेत प्रकाश के स्पेक्ट्रम के वर्णों को और अधिक विभक्त करने का प्रयत्न किया। किंतु उन्हें और अधिक वर्णों नहीं मिल पाए। फिर उन्होंने एक दूसरा सर्वसम प्रिज्म पहले प्रिज्म के सापेक्ष उल्टी स्थिति रखा। उन्होंने देखा कि दूसरे प्रिज्म से श्वेत प्रकाश का किरण पुंज निर्गत हो रहा है। इससे न्यूटन ने यह निष्कर्ष निकाला कि सूर्य का प्रकाश सात वर्णों से मिलकर बना है।

                                                          • अग्रिम सूर्योदय तथा विलम्बित सूर्यास्त — वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण सूर्य हमें वास्तविक सूर्योदय से लगभग 2 मिनट पूर्व दिखाई देने लगता है तथा वास्तविक सूर्यास्त के लगभग 2 मिनट पश्चात् तक दिखाई देता रहता है।
                                                          • तारों की आभासी स्थिति — पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने के पश्चात् पृथ्वी के पृष्ठ पर पहुँचने तक तारे का प्रकाश निरंतर अपवर्तित होता जाता है । वायुमंडलीय अपवर्तन उसी माध्यम में होता है जिसका क्रमिक परिवर्ती (gradually changing) अपवर्तनांक हो। क्योंकि वायुमंडल तारे के प्रकाश को अभिलंब की ओर झुका रहता है अत: क्षितिज के निकट देखने पर कोई तारा अपनी वास्तविक स्थिति से कुछ ऊँचाई पर प्रतीत होता है।

                                                          वायुमंडलीय अपवर्तन

                                                          वायुमंडलीय अस्थिरता के कारण प्रकाश का अपवर्तन वायुमंडलीय अपवर्तन कहलाता है।

                                                          वायुमंडलीय अपवर्तन के प्रभाव

                                                          1. तारों का टिमटिमाना
                                                          2. अग्रिम सूर्योदय तथा विलम्बित सूर्यास्
                                                          3. तारों का वास्तविक स्थिति से कुछ ऊँचाई पर प्रतीत होना ।
                                                          4. गरम वायु में से होकर देखने पर वस्तु की आभासी स्थिति का परिवर्तित होना ।


                                                          (i) आग के तुरंत ऊपर की वायु अपने ऊपर की वायु को तुलना में अधिक गरम हो जाती है। गरम वायु अपने ऊपर की ठंडी वायु की तुलना में कम सघन होती है तथा इसका अपवर्तनांक ठंडी वायु की अपेक्षा थोड़ा कम होता है। क्योंकि अपवर्तक माध्यम (वायु) की भौतिक अवस्थाएँ सिथर नहीं हैं। इसलिए गरम वायु में से होकर देखने पर वस्तु की आभासी स्थिति परिवर्तित होती रहती है।

                                                          (ii) तारों का टिमटिमाना —दूर स्थित तारा हमें प्रकाश के बिंदु स्रोत के समान प्रतीत होता है। चूँकि तारों से आने वाली प्रकाश किरणों का पथ थोड़ा-थोड़ा परिवर्तित होता रहता है, अतः तारे की आभासी स्थिति विचलित होती रहती है तथा आँखों में प्रवेश करने वाले तारों के प्रकाश की मात्रा झिलमिलाती रहती है। जिसके कारण कोई तारा कभी चमकीला प्रतीत होता है तो कभी धुँधला, जो कि टिमटिमाहट का प्रभाव है।


                                                            प्रकाश का प्रकीर्णन

                                                            टिंडल प्रभाव —जब कोई प्रकाश किरण का पुंज वायुमण्डल के महीन कणों जैसे धुआँ, जल की सूक्ष्म बूंदें, धूल के निलंबित कण तथा वायु के अणु से टकराता है तो उस किरण पुंज का मार्ग दिखाई देने लगता है। कोलाइडी कणों के द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन की परिघटना टिंडल प्रभाव उत्पन्न करती है।

                                                            उदाहरण:

                                                            1. जब धुएँ से भरे किसी कमरे में किसी सूक्ष्म छिद्र से कोई पतला प्रकाश किरण पुंज प्रवेश करता है तो हम टिंडल प्रभाव देख सकते हैं।
                                                            2. जब किसी घने जंगल के वितान से सूर्य का प्रकाश गुजरता है तो भी टिन्डल प्रभाव को देखा जा सकता है।


                                                            Rayleigh का नियम

                                                            λ- प्रकाश किरण की तरंग दैर्ध्य, 

                                                            प्रकीर्णित प्रकाश का वर्णन प्रकीर्णन न करने वाले कणों के आकार पर निर्भर करता है ।

                                                            1. अत्यंत सूक्ष्म कण मुख्य रूप से नीले प्रकाश को प्रकीर्ण करते हैं।
                                                            2. बड़े आकार के कण अधिक तरंगदैर्ध्य के प्रकाश को प्रकीर्ण करते हैं।
                                                            3. यदि प्रकीर्णन करने वाले कणों का साइज बहुत अधिक है तो प्रकीर्णित प्रकाश श्वेत भी प्रतीत हो सकता है।


                                                            प्रश्न 1. 'खतरे'का संकेत लाल रंग का क्यों होता है ?

                                                            उत्तर

                                                            ‘खतरे'के संकेत का प्रकाश लाल रंग का होता है। लाल रंग कुहरे या धुएँ से सबसे कम

                                                            प्रकीर्ण होता है। इसलिए यह दूर से देखने पर भी दिखाई देता है।


                                                            प्रश्न 2. स्वच्छ आकाश का रंग नीला क्यों होता है ? वायु के 'अणु तथा अन्य सूक्ष्म कणों का आकार दृश्य प्रकाश की तरंगदैर्ध्य

                                                            उत्तर

                                                            वायुमंडल में के प्रकाश की अपेक्षा छोटा है। ये कण कम तरंगदैर्ध्य के प्रकाश को प्रकीर्णित करने में अधिक प्रभावी हैं। लाल वर्ण के प्रकाश की तरंगदैर्ध्य नीले प्रकाश की अपेक्षा 1-8 गुनी है। अत: जब सूर्य का प्रकाश वायुमंडल से गुजरता है, वायु के सूक्ष्म कण लाल रंग की अपेक्षा नीले रंग को अधिक प्रबलता से प्रकीर्ण करते हैं। प्रकीर्णित हुआ नीला प्रकाश हमारे नेत्रों में प्रवेश करता है।


                                                            प्रश्न 3. ऊँचाई पर उड़ते हुए यात्रियों को आकाश काला क्यों प्रतीत होता है ?

                                                            उत्तर

                                                            क्योंकि इतनी ऊँचाई पर प्रकीर्णन सुस्पष्ट नहीं होता ।


                                                            प्रश्न 4. बादल सफेद क्यों प्रतीत होते हैं ?

                                                            उत्तर

                                                            बादल सूक्ष्म पानी की बूंदों से बने होते हैं ये सूक्ष्म बूंदों का आकार दृश्य किरणों की तरंगदैर्ध्य की सीमा से अधिक है। इसलिए जब श्वेत प्रकाश इन कणों से टकराता है तो सभी दिशा में परावर्तित या प्रकीर्ण हो जाता है। क्योंकि श्वेत प्रकाश के सभी रंग परावर्तित या प्रकीर्ण अधिकतम समान रूप से होते हैं। इसलिए हमें श्वेत रंग ही दिखाई देता है।


                                                            प्रश्न 5. ग्रह क्यों नहीं टिमटिमाते ?

                                                            उत्तर

                                                            तारों की अपेक्षा पृथ्वी के काफी नजदीक होते हैं। इसलिए उसे प्रकाश का बड़ा स्रोत माना जाता है। यदि गृह की प्रकाश के बिंदु स्रोतों का संग्रह माने तो प्रत्येक स्रोत द्वारा, हमारे आँखों में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा में कुल परिवर्तत का औसत मान शून्य होगा, जिस कारण ग्रह टिमटिमाते नहीं ।

                                                            Notes of Ch 10 विद्युत Class 10 विज्ञान

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                                                            Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 10 विद्युत विज्ञान 

                                                            Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 10 विद्युत विज्ञान


                                                            इस अध्याय में विषय
                                                            • मानव नेत्र के विभिन्न भाग एवं उनके कार्य
                                                            • निकट-दृष्टि दोष उत्पन्न होने के कारण
                                                            • दीर्घ-दृष्टि दोष दोष उत्पन्न होने के कारण
                                                            • प्रिज्म
                                                            • काँच के प्रिज्म द्वारा श्वेत प्रकाश का विक्षेपण
                                                            • वायुमंडलीय अपवर्तन
                                                            • प्रकाश का प्रकीर्णन
                                                            • Rayleigh का नियम

                                                            Ch 10 विद्युत Class 10 विज्ञान Notes

                                                            आवेश -आवेश परमाणु का एक मूल कण होता है । यह धनात्मक भी हो सकता है और ऋणात्मक भी।

                                                            समान आवेश एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं।

                                                            असमान आवेश एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं। कूलॉम (c) आवेश का SI मात्रक है ।

                                                            1 कूलॉम आवेश = 6 × 1018इलेक्ट्रानों पर उपस्थित आवेश

                                                            1 इलेक्ट्रॉन पर आवेश = 1.6 × 10-19C (ऋणात्मक आवेश)

                                                            Q = ne

                                                            • Q = कुल आवेश
                                                            • n = इलेक्ट्रॉनों की संख्या
                                                            • e = एक इलेक्ट्रॉन पर आवेश

                                                            विद्युत धारा I.आवेश के प्रवाहित होने की दर को विद्युत धारा कहते हैं।

                                                            धारा का SI मात्रक = ऐम्पियर (A)

                                                            1m A = 1 मिलि ऐम्पियर = 10-3 A

                                                            1μA = 1 माइक्रो ऐम्पियर = 10-6 A


                                                            विद्युत धारा को ऐमीटर द्वारा मापा जाता है।

                                                            ऐमीटर का प्रतिरोध कम होता है तथा हमेशा श्रेणी क्रम में जुड़ता है।

                                                            विद्युत धारा की दिशा इलेक्ट्रॉन के प्रवाहित होने की दिशा के विपरीत मानी जाती है क्योंकि जिस समय विद्युत की परिघटना का सर्वप्रथम प्रेक्षण किया था इलेक्ट्रानों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी अतः विद्युत धारा को धनावेशों का प्रवाह माना गया।

                                                            विभवांतर (V):एकांक आवेश को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक लाने में किया गया कार्य।

                                                            1 वोल्ट:जब 1 कूलॉम आवेश को लाने के लिए 1 जूल का कार्य होता है तो विभवांतर 1 वोल्ट कहलाता है ।

                                                            1V =1JC-1

                                                            वोल्ट मीटर:विभवांतर को मापने की युक्ति को वोल्टमीटर कहते है । इसका प्रतिरोध ज्यादा होता है तथा हमेशा पार्श्वक्रम में जुड़ता है।

                                                            सेल:यह एक सरल युक्ति है जो विभवांतर को बनाए रखती है।

                                                            विद्युत धारा हमेशा उच्च विभवांतर से निम्न विभवांतर की तरफ प्रवाहित होती है।


                                                            विद्युत परिपथ में सामान्यतः उपयोग होने वाले कुछ अवयवों के प्रतीक:


                                                            ओम का नियम

                                                            किसी विद्युत परिपथ में धातु के तार के दो सिरों के बीच विभवांतर उसमें प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा के समानुपाती होता है परन्तु तार का तापमान समान रहना चाहिए।

                                                            V × R

                                                            V = IR

                                                            R एक नियतांक है जिसे तार का प्रतिरोध कहते हैं।

                                                            प्रतिरोध:यह चालक का वह गुण है जिसके कारण वह प्रवाहित होने वाली धारा का विरोध करता है।

                                                            SI मात्रक, ओम (Ω) है।

                                                            जब परिपथ में से 1 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित हो रही हो तथा विभवांतर एक वोल्ट का हो तो प्रतिरोध 1 ओम कहलाता है।

                                                            धारा नियंत्रक:परिपथ में प्रतिरोध को परिवर्तित करने के लिए जिस युक्ति का उपयोग किया जाता है उसे धारा नियंत्रक कहते हैं ।


                                                            वे कारक जिन पर एक चालक का प्रतिरोध निर्भर करता है :

                                                            1. चालक की लम्बाई के समानुपाती होता है ।
                                                            2. अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
                                                            3. तापमान के समानुपाती होता है।
                                                            4. पदार्थ की प्रकृति पर भी निर्भर करता है।

                                                            विद्युत प्रतिरोधकता: 1 मीटर भुजा वाले घन के विपरीत फलकों में से धारा गुजरने पर जो प्रतिरोध उत्पन्न होता है वह प्रतिरोधता कहलाता है।


                                                            SI मात्रक Ωm (ओम मीटर)

                                                            प्रतिरोधकता चालक की लम्बाई व अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के साथ नहीं बदलती परन्तु तापमान के साथ परिवर्तित होती है ।

                                                            धातुओं व मिश्रधातुओं का प्रतिरोधकता परिसर: 10-8– 10-6 m

                                                            मिश्र धातुओं की प्रतिरोधकता उनकी अवयवी धातुओं से अपेक्षाकृत अधिक होती है।

                                                            मिश्र धातुओं का उच्च तापमान पर शीघ्र ही उपचयन (दहन) नहीं होता अतः इनका उपयोग तापन युक्तियों में होता है।

                                                            तांबा व ऐलुमिनियम का उपयोग विद्युत संरचरण के लिए किया जाता है क्योंकि उनकी प्रतिरोधकता कम होती है।


                                                            प्रतिरोधकों का श्रेणी क्रम संयोजन

                                                            जब दो या तीन प्रतिरोधकों को एक सिरे से दूसरा सिरा मिलाकर जोड़ा जाता है तो संयोजन श्रेणीक्रम संयोजन कहलाता है।

                                                            श्रेणी क्रम में कुल प्रभावित प्रतिरोध: Rs = R4 + R2 + R3

                                                            प्रत्येक प्रतिरोधक में से एक समान धाराप्रवाहित होती है।

                                                            तथा कुल विभवांतर = व्यष्टिगत प्रतिरोधकों के विभवांतर का योग।

                                                            V = V1 + V2 + V3

                                                            V1 = IR1

                                                            V2 = IR2

                                                            V3 = IR3

                                                            V1 + V2 + V3 = IR1 + IR2 + IR3

                                                            V = I(R1 + R2 + R3) [V1 + V2 + V3 = V]

                                                            IR = I(R1 + R2 + R3)

                                                            R = R1 + R2 + R3

                                                            अतः एकल तुल्य प्रतिरोध सबसे बड़े व्यक्तिगत प्रतिरोध से बड़ा है।


                                                            पार्श्वक्रम में संयोजित प्रतिरोधक

                                                            पार्श्वक्रम में प्रत्येक प्रतिरोधक के सिरों पर विभवांतर उपयोग किए गए विभवांतर के बराबर होता है। तथा कुल धारा प्रत्येक व्यष्टिगत प्रतिरोधक में से गुजरने वाली धाराओं के योग के बराबर होती है।

                                                            I = I1 + I2 + I3

                                                            एकल तुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम प्रथक ।

                                                            प्रतिरोधों के व्युत्क्रमों के योग के बराबर होता है।


                                                            श्रेणीक्रम संयोजन की तुलना में पार्श्वक्रम संयोजन के लाभ

                                                            1. श्रेणीक्रम संयोजन में जब एक अवयव खराब हो जात है तो परिपथ टूट जाता है तथा कोई भी अवयव काम नहीं करता ।
                                                            2. अलग-अलगअवयवोंमें अलग-अलग धाराकी जरूरत होती है, यहगुण श्रेणीक्रममें उपयुक्त नहीं होता है क्योंकि श्रेणीक्रम में धारा एक जैसी रहती है।
                                                            3. पार्श्वक्रम संयोजन में प्रतिरोध कम होता है।


                                                            विद्युत धारा का तापीय प्रभाव

                                                            यदि एक विद्युत् परिपथ विशुद्ध रूप से प्रतिरोधक है तो स्रोत की ऊर्जा पूर्ण रूप से ऊष्मा के रूप में क्षयित होती है, इसे विद्युत् धारा का तापीय प्रभाव कहते हैं।

                                                            ऊर्जा = शक्ति × समय

                                                            H = P×t

                                                            ⇒ H = VIt

                                                            ⇒ H = I2Rt

                                                            P = VI

                                                            V = IR

                                                            H = ऊष्मा ऊर्जा

                                                            अतः उत्पन्न ऊर्जा (ऊष्मा) = I2Rt


                                                            जूल का विद्युत धारा का तापन नियम

                                                            इस नियम के अनुसार:

                                                            1. किसी प्रतिरोध में तत्पन्न उष्मा विद्युत धारा के वर्ग के समानुपाती होती है।
                                                            2. प्रतिरोध के समानुपाती होती है।
                                                            3. विद्युत धारा के प्रवाहित होने वाले समय के समानुपाती होती है।

                                                            तापन प्रभाव हीटर, प्रेस आदि में वाँछनीय होता है परन्तु कम्प्यूटर, मोबाइल आदि में अवाँछनीय होता है।

                                                            विद्युत बल्ब में अधिकांश शक्ति ऊष्मा के रूप प्रकट होती है तथा कुछ भाग प्रकाश के रूप में उत्सर्जित होता है ।

                                                            विद्युत बल्ब का तंतु टंगस्टन का बना होता है क्योंकि-

                                                            1. यह उच्च तापमान पर उपचयित नहीं होता है ।
                                                            2. इसका गलनांक उच्च (3380° C)
                                                            3. बल्बों में रासानिक दृष्टि से अक्रिय नाइट्रोजन तथा आर्गन गैस भरी जाती है जिससे तंतु की आयु में वृद्धि हो जाती है।

                                                            विद्युत शक्ति:ऊर्जा के उपभुक्त होने की दर को शक्ति कहते हैं।

                                                            प्रतीक = P

                                                            P = VI

                                                            ⇒ P = I2R = V2/R

                                                            शक्ति का SI मात्रक 'वाट'है।

                                                            1 वाट = 1 वोल्ट × 1 ऐम्पियर

                                                            ऊर्जा का व्यावहारिक मात्रक = किलोवाट घंटा = Kwh

                                                            1 kwh = 3.6 × 106 J

                                                            1 kwh = विद्युत ऊर्जा की एक यूनिट

                                                            Notes of Ch 12 विद्युत् धारा के चुम्बकीय प्रभाव Class 10 विज्ञान

                                                            $
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                                                            Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 12 विद्युत् धारा के चुम्बकीय प्रभाव विज्ञान 

                                                            Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 12 विद्युत् धारा के चुम्बकीय प्रभाव विज्ञान


                                                            इस अध्याय में विषय
                                                            • चुम्बक के गुण
                                                            • छड़ चुम्बक का चुम्बकीय क्षेत्र
                                                            • दक्षिण (दायाँ) हस्त अंगुष्ठ नियम
                                                            • परिनालिका
                                                            • फ्लेमिंग का वाम (बाया) हस्त नियम
                                                            • विद्युत मोटर
                                                            • लेमिंग दक्षिण (दायां) हस्त नियम
                                                            • विद्युत जनित्र
                                                            • DC दिष्ट धारा जनित्र
                                                            • घरेलू विद्युत परिपथ

                                                            Ch 12 विद्युत् धारा के चुम्बकीय प्रभाव Class 10 विज्ञान Notes

                                                            चुम्बक वह पदार्थ है जो लौह तथा लौह युक्त चीजों को अपनी तरफ आकर्षित करती है।

                                                            चुम्बक के गुण :

                                                            • प्रत्येक चुम्बक के दो ध्रुव होते हैं: उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव ।
                                                            • समान ध्रुव एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं।
                                                            • असमान ध्रुव एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं।
                                                            • स्वतंत्र रूप से लटकाई हुई चुम्बक लगभग उत्तर-दक्षिण दिशा में रुकती है, उत्तरी ध्रुव उत्तर दिशा की और संकेत करते हुए ।


                                                            चुम्बकीय क्षेत्र:चुम्बक के चारों ओर का वह क्षेत्र जिसमें चुम्बक के बल का संसूचन किया जाता है।

                                                            SI मात्रक:टेस्ला (Tesla) है।

                                                            चुम्बकीय क्षेत्र में परिमाण व राशि दोनों होते हैं। चुम्बकीय क्षेत्र को दिक्सूचक की सहायता समझाया जा सकता है।

                                                            दिक्सूचक की सूई स्वतंत्र लटकी हुई एक छड़ चुम्बक होती है।

                                                            चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं के गुण:

                                                            • क्षेत्रीय रेखाएं उत्तरी ध्रुव से प्रकट होती हैं तथा दक्षिणी ध्रुव पर विलीन हो जाती हैं।
                                                            • क्षेत्र रेखाएं बंद वक्र होती हैं।
                                                            • प्रबल चुम्बकीय क्षेत्र में रेखाएँ अपेक्षाकृत अधिक निकट होती हैं।
                                                            • दो रेखाएँ कहीं भी एक-दूसरे को प्रतिच्छेद नहीं करतीं क्योंकि यदि वे प्रतिच्छेद करती हैं तो इसका अर्थ है कि एक बिंदु पर दो दिशाएँ जो संभव नहीं हैं।
                                                            • चुम्बकीय क्षेत्र की प्रबलता को क्षेत्र रेखाओं की निकटता की कोटि द्वारा दर्शाया जाता है।


                                                            छड़ चुम्बक का चुम्बकीय क्षेत्र

                                                            हैंस क्रिश्चियन ऑर्टेड:वह पहला व्यक्ति था जिसने पता लगाया था कि विद्युत धारा चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है।


                                                            दक्षिण (दायाँ) हस्त अंगुष्ठ नियम

                                                            कल्पना कीजिए कि आप अपने दाहिने हाथ में विद्युत धारावाही चालक को इस प्रकार पकड़े हुए हो कि आपका अंगूठा विद्युत धारा की ओर संकेत करता हो तो आपकी अगुलियाँ चालक के चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा बताएँगी।


                                                            सीधे चालक से विद्युत धारा प्रवाहित होने के कारण चुम्बकीय क्षेत्र:

                                                            • चुम्बकीय क्षेत्र चालक के हर बिंदु पर सकेंद्री वृतों द्वारा दर्शाया जा सकता है।
                                                            • चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम या दिक्सूचक से दी जा सकती है। ● चालक के नजदीक वाले वृत निकट-निकट होते हैं।
                                                            • चुम्बकीय क्षेत्र ∝ धारा की शक्ति ।
                                                            • चुम्बकीय क्षेत्र ∝ 1/चालक से दूरी


                                                            विद्युत धारावाही वृताकार पाश के कारण चुम्बकीय क्षेत्र :

                                                            • चुम्बकीय क्षेत्र प्रत्येक बिंदु पर संकेन्द्री वृत्तों द्वारा दर्शाया जा सकता है।
                                                            • जब हम तार से दूर जाते हैं तो वृत निरंतर बड़े होते जाते हैं।
                                                            • विद्युत धारावाही तार के प्रत्येक बिंदु से उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ पाश के केंद्र पर सरल रेखा जैसे प्रतीत होने लगती है।
                                                            • पाश के अंदर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा एक समान होती है।

                                                             

                                                             

                                                            विद्युत धारावाही वृत्ताकार पाश के चुम्बकीय क्षेत्र को प्रभावित करने वाले कारक :

                                                            • चुम्बकीय क्षेत्र ∝ चालक में से प्रभावित होने वाली धारा।
                                                            • चुम्बकीय क्षेत्र ∝ 1/चालक से दूरी ।
                                                            • चुम्बकीय क्षेत्र कुंडली के फेरों की संख्या ।

                                                            चुम्बकीय क्षेत्र संयोजित है। प्रत्येक फेरे का चुम्बकीय क्षेत्र दूसरे फेरे के चुम्बकीय क्षेत्र में संयोजित हो जाता है क्योंकि विद्युत धारा की दिशा हर वृत्ताकार फेरे में समान है।


                                                            परिनालिका

                                                            पास-पास लिपटे विद्युत रोधी तांबे के तार की बेलन की आकृति की अनेक फेरों वाली कुंडली का परिनालिका कहते हैं।

                                                              • परिनालिका का चुम्बकीय क्षेत्र छड़ चुम्बक के जैसा होता है।
                                                              • परिनालिका के अंदर चुम्बकीय क्षेत्र एक समान है तथा समांतर रेखाओं के द्वारा दर्शाया जाता है।

                                                              चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा:

                                                              • परिनालिका के बाहर - उत्तर से दक्षिण
                                                              • परिनालिका के अंदर - दक्षिण से उत्तर
                                                              • परिनालिका का उपयोग किसी चुम्बकीय पदार्थ जैसे नर्म लोहे को चुम्बक बनाने में किया जाता है।

                                                               

                                                              विद्युत चुम्बक

                                                              स्थायी चुम्बक

                                                              1. यह अस्थायी चुम्बक होता है अत: आसानी से चुम्बकत्व समाप्त हो सकता है।

                                                              1. आसानी से चुम्बकत्व समाप्त नहीं किया जा सकता।

                                                              2. इसकी शक्ति बदली जा सकती है।

                                                              2. शक्ति निश्चित होती है।

                                                              3. ध्रुवीयता बदली जा सकती है।

                                                              3. ध्रुवीयता नहीं बदली जा सकती।

                                                              4. प्रायः अधिक शक्तिशाली होते हैं।

                                                              4. प्राय: कमजोर चुम्बक होते हैं।

                                                               

                                                              चुम्बकीय क्षेत्र में किसी विद्युत धारावाही चालक पर बल

                                                              आंद्रे मेरी ऐम्पियर ने प्रस्तुत किया कि चुम्बक भी किसी विद्युत धारावाही चालक पर परिमाण में समान परन्तु दिशा में विपरीत बल आरोपित करती है।

                                                              चालक में विस्थापन उस समय अधिकतम होता है जब विद्युत धारा की दिशा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के लम्बवत् होती है ।

                                                              विद्युत धारा की दिशा बदलने पर बल की दिशा भी बदल जाती है।


                                                              फ्लेमिंग का वाम (बाया) हस्त नियम

                                                              अपने हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अंगूठे को इस प्रकार फैलाइए कि ये तीनों एक-दूसरे के परस्पर लम्बवत हों । यदि तर्जनी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा और मध्यमा चालक में प्रवाहित धारा की दिशा की ओर संकेत करती है तो अंगूठा चालक की गति की दिशा या बल की दिशा की ओर संकेत करेगा ।


                                                              विद्युत मोटर

                                                              विद्युत मोटर एक ऐसी घूर्णन युक्ति है जो विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतरित करती है। विद्युत मोटर का उपयोग विद्युत पंखों, रेफ्रिजेरेटरों, वाशिंग मशीन, विद्युत मिश्रकों MP-3 प्लेयरों आदि में किया जाता है।

                                                              विद्युत मोटर का सिद्धांत

                                                              विद्युत मोटर - विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव का उपयोग करती है। जब किसी धारावाही आयतकार कुंडली को चुम्बकीय क्षेत्रा में रखा जाता है तो कुंडली पर एक बल आरो"त होता है जिसके फलस्वरूप कुंडली और धुरी का निरंतर घुर्णन होता रहता है। जिससे मोटर को दी गई विद्युत उर्जा यांत्रिक उर्जा में रूपांतरित हो जाती है।

                                                              संरचना:

                                                              1. आर्मेचर: विद्युत मोटर में एक विद्युत रोधी तार की एक आयतकार कुंडली ABCD जो कि एक नर्म लोहे के कोड पर लपेटी जाती है उसे आर्मेचर कहते हैं।
                                                              2. प्रबल चुम्बक:यह कुंडली किसी प्रबल चुम्बकीय क्षेत्र के दो ध्रुवों के बीच इस प्रकार रखी जाती है कि इसकी भुजाएँ AB तथा CD चुम्बकीय क्षेत्रा की दिशा के लबंवत रहें।
                                                              3. विभक्त वलय या दिक परिवर्त्तक:कुंडली के दो "रे धातु की बनी विभक्त वलय को दो अर्ध भागों P तथा Q से संयोजित रहते हैं। इस युक्ति द्वारा कुंडली में प्रवाहित विद्युत धारा की दिशा को बदला या उर्तमत किया जा सकता है।
                                                              4. ब्रुश:दो स्थिर चालक (कार्बन की बनी ) ब्रुश X तथा Y विभक्त वलय P तथा Q से हमेशा स्पर्श में रहती है। ब्रुश हमेशा विभक्त वलय तथा बैटरी को जोड़ कर रखती है।
                                                              5. बैटरी:बैटरी दो ब्रुशों X तथा Y के बीच संयोजित होती है। विद्युत धारा बैटरी से चलकर ब्रुश X से होते हुए कुंडली ABCD में प्रवेश करती है तथा ब्रुश Y से होते हुए बैटरी के दूसरे टर्मिनल पर वापस आ जाती है।

                                                                मोटर की कार्यविधि :

                                                                1. जब कुंडली ABCD में विद्युत धारा प्रवाहित होती है, तो कुंडली के दोनों भुजा AB तथा CD पर चुम्बकीय बल होता है।
                                                                2. फ्लेमिंग वामटस्त नियम अनुसार कुंडली की AB भुजा पर आरो"त बल उसे अधोमुखी ध् ाकेलता है तथा CD भुजा पर बल उपरिमुखी धकेलता है।
                                                                3. दोनों भुजाओं पर बल बराबर तथा विपरित दिशाओं में लगते हैं। जिससे कुंडली अक्ष पर वामावर्त घूर्णन करती है।
                                                                4. आधे घूर्णन में Q का सम्पर्क ब्रुश X से होता है तथा P का सम्पर्क ब्रुश Y से होता है। अंत: कुंडली में विद्युत धारा उत्क्रमित होकर पथ DCBA के अनुदिश प्रवाहित होती है।
                                                                5. प्रत्येक आधे घूर्णन के पश्चात विद्युत धारा के उत्क्रमित होने का क्रम दोहराता रहता है जिसके फलस्वरूप कुंडली तथा धुरी का निरंतर घूर्णन होता रहता है।

                                                                व्यावसायिक मोटरों - मोटर की शक्ति में वृद्धि उपाय

                                                                1. स्थायी चुम्बक के स्थान पर विद्युत चुम्बक प्रयोग किए जाते है।
                                                                2. विद्युत धारावाही कुंडली में फेरों की संख्या अधिक होती है।
                                                                3. कुंडली नर्म लौह-क्रोड पर लपेटी जाती है। नर्म लौह क्रोड जिस पर कुंडली लपेटी जाती है तथा कुंडली दोनों को मिलाकर आर्मेचर कहते है।
                                                                • मानव शरीर के हृदय व मस्तिष्क में महत्वपूर्ण चुम्बकीय क्षेत्र होता है।

                                                                MRI (Megnetic Resonance Imaging):चुम्बकीय अनुनाद प्रतिबिंबन का प्रयोग करके शरीर के भीतरी अंगों के प्रतिबिम्ब प्राप्त किए जा सकते हैं।

                                                                गेल्वेनोमीटर:एक ऐसी युक्ति है जो परिपथ में विद्युत धारा की उपस्थिति संसूचित करता है। यह धारा की दिशा को भी संसूचित करता है।

                                                                वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण: जब किसी चालक को परिवर्ती चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो चालक में विद्युत धारा प्रेरित होती है। यह धारा, प्रेरित विद्युत धारा कहलाती है तथा यह परिघटना वैद्युत चुम्बकीय प्रेरणा कहलाती है।

                                                                क्रिया कलाप (1)

                                                                1. जब चुम्बक को कुंडली की तरफ लाया जाता है तो - गेल्वेनोमीटर में क्षणिक विक्षेप विद्युत धारा की उपस्थिति को इंगित करता है।
                                                                2. जब चुम्बक को कुंडली के निकट स्थिर अवस्था में रखा जाता है तो कोई विक्षेप नहीं।
                                                                3. जब चुम्बक को दूर ले जाया जाता है तो, गेल्वेनोमीटर में क्षणिक विक्षेप होता है। परन्तु पहले के विपरीत है।

                                                                क्रिया कलाप (2):

                                                                प्राथमिक कुंडली

                                                                द्वितीयक कुंडली

                                                                1. स्विच ऑन किया जाता है

                                                                1. गेल्वेनोमीटर में क्षणिक विक्षेप

                                                                2. स्थायी विद्युत धारा

                                                                2. कोई विक्षेप नहीं

                                                                3. सिवच ऑफ किया जाता है

                                                                3. गेल्वेनोमीटर में क्षणिक विक्षेप परन्तु पहले के विपरीत दिशा में

                                                                 

                                                                लेमिंग दक्षिण (दायां) हस्त नियम

                                                                अपने दाहिने हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अंगूठे को इस प्रकार फैलाइए कि तीनों एक-दूसरे के लम्बवत हों। यदि तर्जनी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा तथा अंगूठा चालक की दिशा की गति की ओर संकेत करता है तो मध्यमा चालक में प्रेरित विद्युत धारा की दिशा दर्शाती है।

                                                                यह नियम :

                                                                1. जनित्र (जनरेटर) की कार्य प्रणाली का सिद्धांत है।
                                                                2. प्रेरित विद्युत धारा की दिशा ज्ञात करने के काम आता है।


                                                                विद्युत जनित्र

                                                                विद्युत जनित्र द्वारा विद्युत उर्जा या विद्युत धारा का निर्माण किया जाता है। विद्युत जनित्रा में यांत्रिक उर्जा को विद्युत उर्जा में रूपांतरित किया जाता है।

                                                                विद्युत जनित्र का सिद्धांत :

                                                                विद्युत जनित्र में यांत्रिक उर्जा का उपयोग चुम्बकीय क्षेत्र में रखे किसी चालक को घूर्णी गति प्रदान करने में किया जाता है। जिसके फलस्वरूप विद्युत धारा उत्पन्न होती है । विद्युत जनित्र वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर कार्य करता है। एक आयताकार कुंडली ABCD को स्थायी चुम्बकीय क्षेत्रा में घुर्णन कराए जाने पर, जब कुंडली की गति की दिशा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के लम्बवत होती है तब कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न होती है। विद्युत जनित्र फ्लेमिंग के दक्षिण हस्त नियम पर आधारित है।

                                                                सरंचना :

                                                                1. स्थायी चुम्बक:कुंडली को स्थायी प्रबल चुम्बकीय क्षेत्र के दो ध्रुवों के बीच रखा जाता है।
                                                                2. आर्मेचर:विद्युतरोधी तार के अधिक फेरों वाली आयताकार कुंडली ABCD जो एक नर्म होले के क्रोड पर लपेटी जाती है उसे आर्मेचर कहते हैं।
                                                                3. वलय:कुंडली के दो सिरे दो Brass वलय R1 and R2से समायोजित होते हैं जब कुंडली घूर्णन गति करती है तो वलय R1और R2भी गति करते है।
                                                                4. ब्रुश:दो स्थिर चालक ग्रेफाइट ब्रुश B1और B2पृथक-पृथक रूप से क्रमशः वलय R1और R2को दबाकर रखती है। दोनों ब्रुश B1और B2कुंडली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत धारा को बाहरी परिपथ में भेजने का कार्य करती है।
                                                                5. धुरी:दोनों वलय R1और R2धुरी से इस प्रकार जुड़ी रहती है कि बिना बाहरी परिपथ को हिलाए वलय स्वतंत्रातापूर्वक घूर्णन गति करती है।
                                                                6. गैलवेनो मीटर:प्रेरित विद्युत धारा को मापने के लिए ब्रुशों के बाहरी सिरों को गैलवेनो मीटरmके दोनों टर्मिनलों से जोड़ा जाता है।

                                                                  कार्यविधि :

                                                                  1. एक आयताकार कुंडली ABCD जिसे स्थायी चुम्बक के दो ध्रुवों के बीच क्षैतिज रखा जाता है।
                                                                  2. कुंडली को दक्षिणावर्त घुमाया जाता है।
                                                                  3. कुंडली की भुजा AB पर की ओर तथा भुजा CD नीचे की ओर गति करती है।
                                                                  4. कुंडली चुम्बकीय क्षेत्रा रेखाओं को काटती है।
                                                                  5. फ्लेमिंग दक्षिण हस्त नियमानुसार प्रेरित विद्युत धारा AB भुजा में A से B तथा CD भुजा में C से D की ओर बहता है ।
                                                                  6. प्रेरित विद्युत धारा बा५ विद्युत परिपथ में B2से B1की दिशा में प्रवाहित होती है।
                                                                  7. अर्धघूर्णन के पश्चात भुजा CD ऊपर की ओर तथा भुजा AB नीचे की ओर जाने लगती है । फलस्वरूप इन दोनों भुजाओं में प्रेरित विद्युत धारा की दिशा परिवर्तित हो जाती है और DCBA के अनुदिश प्रेरित विद्युत धारा प्रवाहित होती है। बा५ परिपथ में विद्युत धारा की दिशा B1से B2होती है।
                                                                  8. प्रत्येक आधे घूर्णन के पश्चात बा५ परिपथ में विद्युत धारा की दिशा परिवर्तित होती है। ऐसी विद्युत धारा जो समान समय अंतरालों के पश्चात अपनी दिशा में परिवर्तन कर लेती है उसे प्रत्यावर्ती धारा कहते हैं। (संक्षेप में AC)
                                                                  9. विद्युत उत्पन्न करने की इस युक्ति को प्रत्यावर्ती विद्युत जनित्रा (AC जनित्र) कहते हैं।


                                                                  DC दिष्ट धारा जनित्र

                                                                  दिष्ट धारा प्राप्त करने के लिए विभक्त वलय प्रकार के दिक् परिवर्त्तक का उपयोग किया जाता है । इस प्रकार के दिक्परिवर्त्तक से एक ब्रुश सदैव ही उसी भुजा के सम्पर्क में रहता है। इस व्यवस्था से एक ही दिशा की विद्युत धारा उत्पन्न होती है।

                                                                  प्रत्यावर्ती धारा:जो विद्युत धारा समान समय अंतरालों के पश्चात अपनी दिशा परिवर्तित कर लेती है।

                                                                  भारत में विद्युत धारा हर 1/100 सेकंड के बाद अपनी दिशा उत्क्रमित कर लेती है।

                                                                  लाभ:प्रत्यावर्ती धारा को सुदूर स्थानों पर बिना अधिक ऊर्जा क्षय के प्रेषित किया जा सकता है।

                                                                  हानि: प्रत्यावर्ती धारा को संचित नहीं किया जा सकता ।


                                                                  दिष्ट धारा

                                                                  • जो विद्युत धारा अपनी दिशा परिवर्तित नहीं करती, दिष्ट धारा कहलाती है।
                                                                  • दिष्ट धारा को संचित कर सकते हैं।
                                                                  • सुदूर स्थानों पर प्रेषित करने में ऊर्जा का क्षय ज्यादा होता है।

                                                                  स्रोत:सेल, बेटरी, संग्रहक सेल।


                                                                  घरेलू विद्युत परिपथ

                                                                  तीन प्रकार की तारें प्रयोग में लाई जाती हैं।

                                                                  1. विद्युन्मय तार (धनात्मक) लाल विद्युत रोधी आवरण
                                                                  2. उदासीन तार (ऋणात्मक) काला विद्युत रोधी आवरण
                                                                  3. भूसंपर्क तार - हरा विद्युत रोधी आवरण

                                                                  भारत में विद्युन्मय तार तथा उदासीन तार के बीच 220 V का विभवांतर होता है।

                                                                  • खंभा → मुख्य आपूर्ति → फ्यूज → विद्युतमापी मीटर → वितरण वक्स → पृथक परिपथ

                                                                  भूसम्पर्कतार:यदि साधित्र के धात्विक आवरण से विद्युत धारा का क्षरण होता है तो यह हमें विद्युत आघात से बचाता है। यह धारा क्षरण के समय अल्प प्रतिरोध पथ प्रदान करता है।

                                                                  लघुपथन (शॉर्टसर्किट):जब अकस्मात विद्युन्मय तार व उदासीन तार दोनों सीधे संपर्क में आते हैं तो :

                                                                  • परिपथ में प्रतिरोध कम हो जाता है।
                                                                  • अतिभारण हो सकता है।

                                                                  अतिभारण:जब विद्युत तार की क्षमता से ज्यादा विद्युत धारा खींची जाती है तो यह अभिभारण पैदा करता है।

                                                                  कारण:

                                                                  1. आपूर्ति वोल्टता में दुर्घटनावश होने वाली वृद्धि।
                                                                  2. एक ही सॉकेट में बहुत से विद्युत साधित्रों को संयोजित करना।

                                                                  सुरक्षा युक्तियाँ :

                                                                  1. विद्युत फ्यूज
                                                                  2. भूसंपर्क तार
                                                                  3. मिनिएचर सर्किट ब्रेकर (M. C. B.)

                                                                  Notes of Ch 13 हमारा पर्यावरण Class 10 विज्ञान

                                                                  $
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                                                                  Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 13 हमारा पर्यावरण विज्ञान 

                                                                  Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 13 हमारा पर्यावरण विज्ञान


                                                                  इस अध्याय में विषय
                                                                  • पारितंत्र
                                                                  • आहार श्रृंखला
                                                                  • ओजोन का निर्माण
                                                                  • कचरा प्रबंधन

                                                                  Ch 13 हमारा पर्यावरण Class 10 विज्ञान Notes

                                                                  पर्यावरण का मतलब वह सभी चीजें होती हैं जो हमें घेरे रहती हैं। सभी जैविक एवं अजैविक घटक शामिल हैं।

                                                                  • जैविक व अजैविक घटकों के पारस्परिक मेल से पारितंत्र बनता है।
                                                                  • एक पारितंत्र में जीव भोजन के लिए एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं, जिससे आहार श्रृंखला व आहार जाल बनते हैं।
                                                                  • मनुष्य की गतिविधियों के कारण हमारे पर्यावरण में गिरावट आ रही हैं व समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं; जैसे—ओजोन परत का ह्रास व कचरे का निपटान ।

                                                                  पारितंत्र

                                                                  परिभाषा -एक क्षेत्र के सभी जैविक व अजैविक घटक मिलकर एक पारितंत्र का निर्माण करते हैं। इसलिए एक पारितंत्र जैविक (जीवित जीव) व अजैविक घटक; जैसे- तापमान, वर्षा, वायु, मृदा आदि से मिलकर बनता है।

                                                                  पारितंत्र के दो प्रकार होते हैं:

                                                                  1. प्राकृतिक पारितंत्र — पारितंत्र जो प्रकृति में विद्यमान हैं।
                                                                    उदाहरण – जंगल, सागर, झील ।
                                                                  2. मानव निर्मित पारितंत्र —जो पारितंत्र मानव ने निर्मित किए हैं, उन्हें मानव निर्मित पारितंत्र कहते हैं।
                                                                    उदाहरण—खेत, जलाशय, बगीचा |

                                                                  1. अजैविक घटक —सभी निर्जीव घटक, जैसे- हवा, पानी, भूमि, प्रकाश और तापमान आदि मिलकर अजैविक घटक बनाते हैं।
                                                                  2. जैविक घटक –सभी सजीव घटक; जैसे-पौधे, जानवर, सूक्ष्मजीव, फफूंदी आदि मिलकर जैविक घटक बनाते हैं ।

                                                                  आहार के आधार पर जैविक घटकों को निम्न में बाँटा गया है:

                                                                  1. उत्पादक सभी हरे पौधे, नील हरित शैवाल अपना भोजन (शर्करा व स्टार्च) अकार्बनिक पदार्थों से सूर्य की रोशनी का प्रयोग करके बनाते हैं । (प्रकाश संश्लेषण)

                                                                  2. उपभोक्ता —ऐसे जीव जो अपने निर्वाह के लिए परोक्ष या अपरोक्ष रूप से उत्पादकों पर निर्भर करते हैं।

                                                                    उपभोक्ताओं को निम्न प्रकार में बाँटा गया है:

                                                                    1. (i) शाकाहारी — पौधे व पत्ते खाने वाले; जैसे - बकरी, हिरण ।
                                                                    2. (ii) माँसाहारी — माँस खाने वाले; जैसे- शेर, मगरमच्छ ।
                                                                    3. (iii) सर्वाहारी—पौधे व माँस दोनों खाने वाले; जैसे-कौआ, मनुष्य।
                                                                    4. (iv) परजीवी—दूसरे जीव के शरीर में रहने व भोजन लेने वाले; जैसे-जूँ, अमरबेल ।

                                                                    3. अपघटक -फफूँदी व जीवाणु जो कि मरे हुए जीव व पौधे के जटिल पदार्थों को सरल पदार्थों में विघटित कर देते हैं । इस प्रकार अपघटक स्रोतों की भरपाई में मदद करते हैं।


                                                                      आहार श्रृंखला

                                                                      • आहार श्रृंखला एक ऐसी श्रृंखला है जिसमें एक जीव दूसरे जीव को भोजन के रूप में खाते हैं;
                                                                        उदाहरण → घास → हिरण → शेर
                                                                      • एक आहार श्रृंखला में, उन जैविक घटकों को जिनमें ऊर्जा का स्थानांतरण होता है, पोषीस्तर कहलाता है।
                                                                      • एक आहार श्रृंखला में ऊर्जा का स्थानांतरण एक दिशा में होता है।
                                                                      • हरे पौधे सूर्य की ऊर्जा का 1% भाग (जो पत्तियों पर पड़ता है), अवशोषित करते हैं।

                                                                      10% नियम एक पोषी स्तर से दूसरे पोषी स्तर में केवल 10% ऊर्जा का स्थानांतरण होता है जबकि 90% ऊर्जा वर्तमान पोषी स्तर में जैव क्रियाओं में उपयोग होती है और मुख्यतः ऊर्जा का पर्यावरण में ह्रास हो जाता है।

                                                                      उपभोक्ता के अगले स्तर के लिए ऊर्जा की बहुत ही कम मात्रा उपलब्ध हो पाती है, अतः आहार श्रृंखला में सामान्यत: तीन अथवा चार चरण ही होते हैं।

                                                                      जैव आवर्धन आहार श्रृंखला में हानिकारक रसायनों की मात्रा में एक पोषी स्तर से दूसरे पोषी स्तर में जाने पर वृद्धि होती है। इसे जैव आवर्धन कहते हैं।

                                                                      • ऐसे रसायनों की सबसे अधिक मात्रा मानव शरीर में होती है।

                                                                      आहार जाल -आहार श्रंखलाएं आपस में प्राकृतिक रूप से जुड़ी होती हैं, जो एक जाल का रूप धारण कर लेती है, उसे आहार जाल कहते हैं ।

                                                                      पर्यावरण की समस्याएं :पर्यावरण में बदलाव हमें प्रभावित करता है और हमारी गतिविधियाँ भी पर्यावरण को प्रभावित करती हैं। इससे पर्यावरण में धीरे-धीरे गिरावट आ रही है, जिससे पर्यावरण की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं; जैसे- प्रदूषण, वनों की कटाई ।

                                                                      ओजोन परत :ओजोन परत पृथ्वी के चारों ओर एक रक्षात्मक आवरण है जो कि सूर्य के हानिकारक पराबैंगनी प्रकाश को अवशोषित कर लेती हैं। इस प्रकार से यह जीवों की स्वास्थय संबंधी हानियाँ; जैसे- त्वचा, कैंसर, मोतियाबिंद, कमजोर परिरक्षा तंत्र, पौधों का नाश आदि से रक्षा करती है ।

                                                                      • मुख्य रूप से ओजोन परत समताप मंडल में पाई जाती है जो कि हमारे वायुमंडल का हिस्सा है। जमीनी स्तर पर ओजोन एक घातक जहर है।


                                                                      ओजोन का निर्माण

                                                                      (i) ओजोन का निर्माण निम्न प्रकाश - रासायनिक क्रिया का परिणाम है।

                                                                      O2 + O → O3 (ओजोन)

                                                                      ओजोन परत का ह्रास — 1985 में पहली बार अंटार्टिका में ओजोन परत की मोटाई में कमी देखी गई, जिसे ओजोन छिद्र के नाम से जाना जाता है।

                                                                      • ओजोन की मात्रा में इस तीव्रता से गिरावट का मुख्य कारक मानव संश्लेषित रसायन क्लोरोफ्लुओरो कार्बन (CFC) को माना गया। जिनका उपयोग शीतलन एवं अग्निशमन के लिए किया जाता है।
                                                                      • 1987 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) में सर्वानुमति बनी की सीएफसी के उत्पादन को 1986 के स्तर पर ही सीमित रखा जाए (क्योटो प्रोटोकोल) ।


                                                                      कचरा प्रबंधन

                                                                      आज के समय में अपशिष्ट निपटान एक मुख्य समस्या है जो कि हमारे पर्यावरण को प्रभावित करती है। हमारी जीवन शैली के कारण बहुत बड़ी मात्रा में कचरा इकट्ठा हो जाता है।

                                                                      कचरे में निम्न पदार्थ होते हैं

                                                                      1. जैव निम्नीकरणीय पदार्थ —पदार्थ जो सूक्ष्मजीवों के कारण छोटे घटकों में बदल जाते हैं। उदाहरण—फल तथा सब्जियों के छिलके, सूती कपड़ा, जूट, कागज आदि ।
                                                                      2. अजैव निम्नीकरण पदार्थ —पदार्थ जो सूक्ष्मजीवों के कारण घटकों में परिवर्तित नहीं होते हैं।
                                                                        उदाहरण – प्लास्टिक, पॉलिथीन, संश्लिष्ट रेशे, धातु, रेडियोएक्टिव अपशिष्ट आदि। सूक्ष्मजीव एंजाइम उत्पन्न करते हैं जो पदार्थों को छोटे घटकों में बदल देते हैं एंजाइम अपनी क्रिया में विशिष्ट होते हैं। इसलिए सभी पदार्थों का अपघटन नहीं कर सकते हैं।

                                                                      कचरा प्रबंधन की विधियाँ

                                                                      1. जैवमात्रा संयंत्र: जैव निम्नीकरणीय पदार्थ (कचरा) इस संयंत्र द्वारा जैवमात्रा व खाद में परिवर्तित किया जा सकता है।
                                                                      2. सीवेज (sewage) उपचार तंत्र:नाली के पानी को नदी में जाने से पहले इस तंत्र द्वारा
                                                                      3. संशोधित किया जाता है ।
                                                                      4. कूड़ा भराव क्षेत्र:कचरा निचले क्षेत्रों में डाल दिया जाता है और दबा दिया जाता है। (d)कम्पोस्टिंग—जैविक कचरा कम्पोस्ट गड्ढे में भर कर ढक दिया जाता है (मिट्टी के द्वारा) तीन महीने में कचरा खाद में बदल जाता है।
                                                                      5. पुनःचक्रण:अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ कचरा पुन: इस्तेमाल के लिए नए पदार्थों में बदल दिया जाता है।
                                                                      6. पुन: उपयोग:यह एक पारंपारिक तरीका है जिसमें एक वस्तु का पुन: पुन: इस्तेमाल कर सकते हैं। उदाहरण अखबार से लिफाफे बनाना ।
                                                                      7. भस्मीकरण:यह एक अपशिष्ट उपचार प्रक्रिया है जिसे थर्मल उपचार के रूप में वर्णित किया जाता है जो कचरे को राख में बदल देता है। मुख्य रूप से इसका उपयोग अस्पतालों से जैविक कचरे के निपटान के लिए उपयोग किया जाता है।

                                                                      Notes of Ch 14 प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन Class 10 विज्ञान

                                                                      $
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                                                                      Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 14 प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन विज्ञान 

                                                                      Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 14 प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन विज्ञान


                                                                      इस अध्याय में विषय
                                                                      • प्राकृतिक संसाधन के प्रकार
                                                                      • पर्यावरण को बचाने के लिए पाँच प्रकार के R
                                                                      • संपोषित विकास
                                                                      • वन एवं वन्य जीवन संरक्षण
                                                                      • दावेदार (वनों पर उनकी निर्भरता )
                                                                      • सभी के लिए जल
                                                                      • बांधों के लाभ
                                                                      • बांधों से हानियाँ
                                                                      • जल संग्रहण
                                                                      • कोयला और पेट्रोलियम
                                                                      • जीवाश्म ईंधन के प्रयोग से होने वाली हानियाँ

                                                                      Ch 14 प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन Class 10 विज्ञान Notes

                                                                      प्राकृतिक संसाधन –वे संसाधन जो हमें प्रकृति ने दिए हैं और जीवों के द्वारा इस्तेमाल किए जाते हैं। जैसे मिट्टी, वायु, जल, कोयला, पेट्रोलियम, वन्य जीवन, वन ।


                                                                      प्राकृतिक संसाधन के प्रकार

                                                                      1. समाप्य संसाधन:ये बहुत सीमित मात्रा में पाए जाते हैं और समाप्त हो सकते हैं। उदाहरण - कोयला, पेट्रोलियम।
                                                                      2. असमाप्य संसाधन:ये असीमित मात्रा में पाए जाते हैं व समाप्त नहीं होंगे। उदाहरण - वायु।

                                                                      प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन

                                                                      प्राकृतिक संसाधनों को बचाए रखने के लिए इनके प्रबंधन की आवश्यकता होती है ताकि यह अगली कई पीढ़ियों तक उपलब्ध हो सके और संसाधनों का शोषण न हो।

                                                                      पर्यावरण को बचाने के लिए राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय अधिनियम हैं ।

                                                                      गंगा कार्य परियोजना यह कार्ययोजना करोड़ों रूपयों का एक प्रोजेक्ट है। इसे सन् 1985 में गंगा स्तर सुधारने के लिए बनाया गया।

                                                                      जल की गुणवत्ता या प्रदूषण मापन हेतु कुछ कारक हैं-

                                                                        1. जल का pH जो आसानी से सार्व सूचक की मदद से मापा जा सकता है।
                                                                        2. जल में कोलिफार्म जीवाणु (जो मानव की आंत्र में पाया जाता है) की उपस्थिति जल का संदूषित होना दिखाता है।


                                                                        पर्यावरण को बचाने के लिए पाँच प्रकार के R

                                                                        इनकार

                                                                        कम उपयोग

                                                                        पुनः उपयोग

                                                                        पुन: प्रयोजन

                                                                        पुनः चक्रण

                                                                        उपयोग न आने वाली वस्तुओं को ना कहना

                                                                        वस्तुओं का कम उपयोग करना

                                                                        फेंकने के बदले वस्तु का पुनः उपयोग करना

                                                                        वस्तु को पुनः किसी अन्य कार्य के लिए उपयोग करना

                                                                        पुनः चक्रित हो जाने वाली वस्तुओं को अलग करना

                                                                        उदाहरण:-

                                                                        सामान खरीदते समय प्लास्टिक थैली को मना करना व अपने स्वयं के थैले में सामान डालो।

                                                                        उदाहरण:-

                                                                        क) आवश्यकता न होन पर पंखे व बल्ब का स्विच बंद करना।

                                                                        ख) टपकते नल को ठीक करना।

                                                                        ग) भोजन को न फेंकना।

                                                                        उदाहरण:-

                                                                        क) जिस पानी से फल व सब्जी धोए है उसे पौधों में डाल देना।

                                                                        ख) कपड़े धोने के बाद बचे पानी से फर्श व गाड़ी साफ करना।

                                                                        उदाहरण:-

                                                                        टूटे हुए चीनी मिट्टी के बर्तनों में पौधे उगाना।

                                                                        उदाहरण:-

                                                                        प्लास्टिक, काँच, धातु आदि को कबाड़ी वाले को दें।

                                                                        पुनः इस्तेमाल/उपयोग, पुनः चक्रण से बेहतर है क्योंकि इसमें ऊर्जा की बचत होती है।


                                                                        हमें संसाधनों के प्रबंधन की आवश्यकता है क्योंकि—

                                                                          1. ये बहुत ही सीमित हैं ।
                                                                          2. स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के कारण जनसंख्या में वृद्धि हो रही है और इसके कारण सभी संसाधनों की मांग में भी वृद्धि हो रही है।


                                                                          संपोषित विकास

                                                                          संपोषित विकास की संकल्पना मनुष्य की वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति और विकास के साथ-साथ भावी संतति के लिए संसाधनों का संरक्षण भी करती है।

                                                                          प्राकृतिक संसाधनों की व्यवस्था करते समय ध्यान देना होगा—

                                                                          1. दीर्घकालिक दृष्टिकोण – ये प्राकृतिक संसाधन भावी पीढ़ियों तक उपलब्ध हो सके।
                                                                          2. इनका वितरण सभी समूहों में समान रूप से हो, न कि कुछ प्रभावशाली लोगों को ही इसका लाभ हो।
                                                                          3. अपशिष्टों के सुरक्षित निपटान का भी प्रबन्ध होना चाहिए ।


                                                                          वन एवं वन्य जीवन संरक्षण

                                                                          वन, जैव विविधता के तप्त स्थल हैं । जैव विविधता को संरक्षित रखना प्राकृतिक संरक्षण के प्रमुख उद्देश्यों में से एक है क्योंकि विविधता के नष्ट होने से पारिस्थितिक स्थायित्व (ecological balance) नष्ट हो सकता है।

                                                                          जैव विविधता —जैव विविधता किसी एक क्षेत्र में पाई जाने वाली विविध स्पीशीज की संख्या है जैसे पुष्पी पादप, पक्षी, कीट, सरीसृप, जीवाणु आदि ।

                                                                          तप्त स्थल — ऐसा क्षेत्र जहाँ अनेक प्रकार की संपदा पाई जाती है ।

                                                                          दावेदार —ऐसे लोग जिनका जीवन, कार्य किसी चीज पर निर्भर हो, वे उसके दावेदार होते हैं।


                                                                          दावेदार (वनों पर उनकी निर्भरता )

                                                                          1. स्थानीय लोग:अपनी आवश्यकता के लिए वनों पर आश्रित।
                                                                          2. सरकारी वन विभाग:सरकार जिसके पास वनों का स्वामित्व हैं तथा वनों को नियंत्रित करते हैं।
                                                                          3. उद्योगपति:जो वनों से प्राप्त उत्पादों का उपयोग करते हैं।
                                                                          4. वन्य जीवन व प्रकृति प्रेमी:जो प्रकृति को बचाना चाहते हैं।

                                                                          कुछ ऐसे उदाहरण जहाँ निवासियों ने वन संरक्षण में मुख्य भूमिका निभाई है।

                                                                          (1) खेजरी वृक्ष —अमृता देवी विश्नोई ने 1731 में राजस्थान के जोधपुर के एक गाँव में खेजरी वृक्षों को बचाने के लिए 363 लोगों के साथ अपने आप को बलिदान कर दिया था।

                                                                          भारत सरकार ने जीव संरक्षण के लिए अमृता देवी विश्नोई राष्ट्रीय पुरस्कार की घोषणा की जो उनकी स्मृति में दिया जाता है।

                                                                          (2) चिपको आंदोलन –यह आंदोलन गढ़वाल के 'रेनी'नाम के गाँव में हुआ था । वहाँ की महिलाएँ उसी समय वन पहुँच गईं जब ठेकेदार के आदमी वृक्ष काटने लगे थे। महिलाएँ पेड़ों से चिपक कर खड़ी हो गईं और ठेकेदार के आदमियों को वृक्ष काटने से रोक लिया। यह आंदोलन तीव्रता से बहुत से समुदायों में फैल गया और सरकार को वन संसाधनों के उपयोग के लिए प्राथमिकता निश्चित करने पर पुन: विचार करने पर मजबूर कर दिया।

                                                                          (3)पश्चिम बंगाल के वन विभाग ने क्षयित हुए साल के वृक्षों को अराबाड़ी वन क्षेत्र में नया जीवन दिया।


                                                                          सभी के लिए जल

                                                                          • जल पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी जीवों की मूलभूत आवश्यकता है।
                                                                          • वर्षा हमारे लिए जल का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
                                                                          • भारत के कई क्षेत्रों में बाँध, तालाब और नहरें सिंचाई के लिए उपयोग किए जाते हैं।


                                                                          बांध

                                                                          बांध में जल संग्रहण काफी मात्रा में किया जाता है जिसका उपयोग सिंचाई में ही नहीं बल्कि विद्युत उत्पादन में भी किया जाता है।

                                                                          कई बड़ी नदियों के जल प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए बांध बनाए गए हैं; जैसे:

                                                                          1. टिहरी बांध नदी भगीरथी (गंगा)
                                                                          2. सरदार सरोवर बांध — नर्मदा नदी
                                                                          3. भाखड़ा नांगल बांध— सतलुज नदी ।

                                                                          बांधों के लाभ

                                                                          1. सिंचाई के लिए पर्याप्त जल सुनिश्चित करना ।
                                                                          2. विद्युत उत्पादन
                                                                          3. क्षेत्रों में जल का लगातार वितरण करना।

                                                                          बांधों से हानियाँ

                                                                          सामाजिक समस्याएँ :

                                                                          1. बड़ी संख्या में किसान एवं आदिवासी विस्थापित होते हैं ।
                                                                          2. उन्हें मुआवजा भी नहीं मिलता।

                                                                          पर्यावरण समस्याएँ :

                                                                          1. वनों का क्षय होता है।
                                                                          2. जैव विविधता को हानि होती है।
                                                                          3. पर्यावरण संतुलन बिगड़ता है।

                                                                          आर्थिक समस्याएँ:

                                                                          1. जनता का अत्यधिक धन लगता है ।
                                                                          2. उस अनुपात में लाभ नहीं होता।


                                                                          जल संग्रहण

                                                                          इसका मुख्य है भूमि एवं जल के प्राथमिक स्रोतों विकास करना ।

                                                                          • वर्षा जल संचयन –वर्षा जल संचयन से वर्षा जल को भूमि के अंदर भौम जल के रूप में संरक्षित किया जाता है।
                                                                          • जल संग्रहण भारत में बहुत प्राचीन संकल्पना है।
                                                                          कुछ पुराने जल संग्रहण के तरीके हैं—

                                                                            तकनीक

                                                                            राज्य

                                                                            खादिन, बड़े पात्र, नाड़ी

                                                                            राजस्थान

                                                                            बंधारस एवं ताल

                                                                            महाराष्ट्र

                                                                            बंथिस

                                                                            मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश

                                                                            आहार, पाइन

                                                                            बिहार

                                                                            एरिस

                                                                            तमिलनाडु

                                                                            कुल्ह

                                                                            हिमाचल प्रदेश

                                                                            बावड़ी

                                                                            दिल्ली


                                                                            भौम जल के रूप में संरक्षण के लाभ:

                                                                            1. पानी का वाष्पीकरण नहीं होता ।
                                                                            2. यह कुओं को भरता है ।
                                                                            3. पौधों को नमी पहुँचाता है।
                                                                            4. मच्छरों के जनन की समस्या नहीं होती ।
                                                                            5. यह जंतुओं के अपशिष्ट के संदूषण से सुरक्षित रहता है।


                                                                            कोयला और पेट्रोलियम

                                                                            कोयला और पेट्रोलियम अनविकरणीय प्राकृतिक संसाधन हैं। इन्हें जीवाश्म ईंधनभी कहते हैं ।

                                                                              निर्माण

                                                                              कोयला, 300 मिलियन वर्ष पूर्व पृथ्वी में वनस्पति अवशेषों के अपघटन से कोयले का निर्माण हुआ।

                                                                              पेट्रोलियम —–पेट्रोलियम का निर्माण समुद्र में रहने वाले जीवों के मृत अवशेषों के अपघटन से हुआ। यह अपघटन उच्च दाब और उच्च ताप के कारण हुआ और पेट्रोलियम के निर्माण में लाखों वर्ष लगे ।

                                                                              • कोयला और पेट्रोल भविष्य में समाप्त हो जायेंगे।

                                                                              (i) कोयला:वर्तमान दर से प्रयोग करने पर कोयला अगले 200 वर्ष तक ही उपलब्ध रह सकता है।

                                                                              (ii) पेट्रोलियम: वर्तमान दर से प्रयोग करने पर पेट्रोलियम केवल अगले 40 वर्षों तक ही मिलेगा ।


                                                                              जीवाश्म ईंधन के प्रयोग से होने वाली हानियाँ

                                                                              1. वायु प्रदूषण:कोयले और हाइड्रोकार्बन के दहन से बड़ी मात्रा में कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्पन्न होती हैं जो वायु को प्रदूषित करती हैं।
                                                                              2. बीमारियाँ:यह प्रदूषित वायु कई प्रकार की श्वसन समस्याएँ उत्पन्न करती है और कई रोग; जैसे- दमा, खाँसी का कारण बनती हैं।
                                                                              3. वैश्विक ऊष्मण:जीवाश्म ईंधनों के दहन से CO, गैस उत्पन्न होती है जो ग्रीन हाउस गैस है और विश्व ऊष्मणता उत्पन्न करती है ।
                                                                              जीवाश्म ईंधनों के प्रयोग में मितव्ययता बरतनी चाहिए ।

                                                                                1. ये समाप्य और सीमित हैं।
                                                                                2. एक बार समाप्त होने के बाद ये निकट भविष्य में उपलब्ध नहीं हो पायेंगे क्योंकि इनके निर्माण की प्रक्रिया बहुत ही धीमी होती है और उसमें कई वर्ष लगते हैं।


                                                                                जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को सीमित करने के उपाय-

                                                                                  1. जिन विद्युत उपकरणों का उपयोग नहीं हो रहा हो उनका स्विच बंद करें।
                                                                                  2. घरों में CFL का उपयोग करें जिस से बिजली की बचत हो।
                                                                                  3. निजी वाहन की अपेक्षा सार्वजनिक यातायात का प्रयोग करना।
                                                                                  4. लिफ्ट की अपेक्षा सीढ़ी का उपयोग करना।
                                                                                  5. जहाँ हो सके सोलर कुकर का प्रयोग करना।

                                                                                  Chapter 1 Chemical Reactions and Equations Competency Based Questions for Class 10 Science

                                                                                  $
                                                                                  0
                                                                                  0

                                                                                  Competency Based Questions for Class 10 Science Chapter 1 Chemical Reactions and Equations

                                                                                  According to new CBSE pattern, competency based questions as wells as Case Based Questions will be asked in the board examination. Students need to get familiar with these new types of questions in order to get good marks. We are providing CBQ questions for class 10 science chapter 1 chemical reactions and equations.

                                                                                  Chapter 1 Chemical Reactions and Equations CBQ Questions

                                                                                  Question 1. Which of the following is an example of simple displacement?

                                                                                  1. the electrolysis of water
                                                                                  2. the burning of methane
                                                                                  3. the reaction of a metal with an acid
                                                                                  4. the reaction of two salt solutions to form a precipitate

                                                                                  Answer

                                                                                  3. the reaction of a metal with an acid


                                                                                  Question 2. Which of the following is a NECESSARY condition for ALL chemical reactions?

                                                                                  1. The reactants should be in the same state.
                                                                                  2. Energy should be supplied to the reactants.
                                                                                  3. The reactants should be at the same temperature.
                                                                                  4. There should be physical contact between the reactants.

                                                                                  Answer

                                                                                  4. There should be physical contact between the reactants.


                                                                                  Question 3. Given below is the balanced chemical equation for the thermal decomposition of lead nitrate.

                                                                                  2Pb(NO3)2→ 2PbO + 4NO2 + O2

                                                                                  Which of the following information does the coefficients of PbO and NO2 in the equation (2 and 4 respectively) tell us?

                                                                                  1. the ratio of the number of moles produced of the two substances
                                                                                  2. the ratio of the number of atoms in the two substances
                                                                                  3. the ratio of the mass produced of the two substances
                                                                                  4. the ratio of the densities of the two substances

                                                                                  Answer

                                                                                  4. the ratio of the number of moles produced of the two substances


                                                                                  Question 4. The diagram below shows the set-up in which electrolysis of water takes place.

                                                                                  (a) What type of reaction takes place?

                                                                                  (b) Explain why this is an example of an endothermic reaction?

                                                                                  (c) The test tube containing hydrogen is removed carefully from the apparatus. A lit match stick is brought near the mouth of this test tube. The gas burns with an explosive "pop" sound.

                                                                                  Write a balanced chemical equation for this reaction and indicate whether energy is absorbed or released.

                                                                                  Answer

                                                                                  (a) Decomposition / Electrolytic decomposition

                                                                                  (b) Energy in the form of electrical energy is absorbed during the decomposition of water.

                                                                                  (c) Balanced equation:

                                                                                  2H2O + energy → 2H2 + O2


                                                                                  Question 5. Eight identical, iron blocks are placed on the ground in the two arrangements X and Y as shown below. The block arrangements are kept moist by sprinkling water every few hours.

                                                                                  Which of the arrangements is likely to gather more rust after ten days? Justify your answer.

                                                                                  Answer

                                                                                  - arrangement Y

                                                                                  - Rusting is a surface phenomenon.

                                                                                  - Arrangement Y has a larger surface area exposed to air.


                                                                                  Question 6. The following chemical equation does not represent a chemical reaction that can take place.

                                                                                  3 Fe (s) + 4 H2O (l) → Fe3O4 (s)

                                                                                  State what needs to be changed in the equation above for it to represent the correct reaction between Fe and H2O.

                                                                                  Answer

                                                                                  The water should be in the form of steam, not liquid.


                                                                                  Question 7. Trupti mixes an aqueous solution of sodium sulphate (Na2SO4) and an aqueous solution of copper chloride (CuCI2).

                                                                                  Will this lead to a double displacement reaction? Justify your answer.

                                                                                  Answer

                                                                                  There will be no reaction.

                                                                                  - All the ions will be in solution.

                                                                                  - There is no insoluble product formed on mixing the two solutions.


                                                                                  Question 8. Dilip was comparing combination reactions with decomposition reactions.

                                                                                  Which class of chemical substances may be the product of a decomposition reaction but NOT a product of a combination reaction?

                                                                                  Answer

                                                                                  element


                                                                                  Question 9. Write the balanced chemical equation of any one reaction that CANNOT be classified as combination, decomposition, simple displacement or double displacement.

                                                                                  Answer

                                                                                  CH4 + 2O2→ CO2 + 2 H2O

                                                                                  6 CO2 + 6 H2O → C6H12O6 + 6 O2


                                                                                  Question 10. Tina finds a paper covered with a white substance in a chemistry lab. She keeps the paper near the window of the lab and comes back to pick it up after five hours to take it home. She noticed that the white substance had turned grey.

                                                                                  (a) What could be the most likely substance on the paper that Tina found?

                                                                                  (b) The substance changed from white to grey. Write the chemical equation for this reaction.

                                                                                  (c) State ONE application of this property of the substance seen in daily life.

                                                                                  Answer

                                                                                  (a) silver chloride (AgCI)/silver bromide (AgBr)

                                                                                  (b) 2AgCl → 2Ag + Cl2

                                                                                  OR

                                                                                  2AgBr → 2Ag + Br2

                                                                                  (c) in black and white photography





                                                                                  Latest Images