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वर्ण विच्छेद - हिंदी व्याकरण Class 9th

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वर्ण विच्छेद - हिंदी व्याकरण Class 9th Course -'B'

वर्ण-विच्छेदयानी वर्णों को अलग-अलग करना। किसी शब्द (वर्णों का समूह ) को अलग-अलग करके लिखने की प्रक्रिया को वर्ण विच्छेद कहते हैं।

वर्ण दो प्रकार के होते हैं - स्वर और व्यंजन

इसका अर्थ यह हुआ की वर्ण विच्छेद में हमें शब्दों को जो की वर्णों के समूह हैं अलग-अलग करना है या स्वर या व्यंजन को अलग-अलग करना है।

इसके लिए हमें पहले स्वरों की मात्रा से परिचित होना आवश्यक है। पहले उसे देखें-

स्वर
मात्रा (स्वर चिह्न)
इसकी कोई मात्रा नही होती
ि
ऊ 
ऋ 

वर्ण विच्छेद करते समय हमें स्वरों की मात्रा को पहचानना पड़ता है और उस मात्र के स्थान पर उस स्वर को प्रयोग में लाया जाता है।

जैसे - कोमल = क् + ओ + म् + अ + ल् + अ

इस शब्द में 'क' व्यंजन को 'ओ' के सहयोग से लिखा गया है। 'म' में 'अ' स्वर की सहायता ली गयी है चूँकि व्यंजन वर्णों के अपने मूल स्वरूप में 'अ' स्वर अंतर्निहित होता है परन्तु किसी मात्रा के लगने पर यह अंतर्निहित 'अ' हट जाता है जैसा इस शब्द में 'को' के साथ हुआ। अगला व्यंजन 'ल' भी उसी प्रकार लिखा गया है।

'अ' स्वर
कलम = क् + अ + ल् + अ + म् + अ
कथन = क् + अ + थ् + अ + न् + अ

'आ' स्वर
नाना = न् + आ + न् + आ
पाप = प् + आ + प् + अ

'इ' स्वर
किताब = क् + इ + त् + आ + ब् + अ
दिवार = द् + इ + व् + आ + र् + अ

'ई' स्वर
तीर = त् + ई + र् + अ
कहानी = क् + अ + ह् + आ + न् + ई

'उ' स्वर
चतुर = च् + अ + त् + उ र् + अ
अनुमान = अ + न् + उ + म् + आ + न् + अ

'ऊ' स्वर
चूक = च् + ऊ + क् + अ
दूर = द् + ऊ + र्  + अ

'ऋ' स्वर
गृह = ग् + ऋ + ह् + अ
अमृत = अ + म् + ऋ + त् + अ

'ए' स्वर
खेल - ख् + ए + ल् + अ
बेकार = ब् + ए + क् + आ + र्  + अ

'ऐ' स्वर
बैठक = ब् + ऐ + ठ् + अ + क् + अ
तैयार = त् + ऐ + य् + आ + र्  + अ

'ओ' स्वर
सोना = स् +ओ + न् + आ
कोयल = क् + ओ + य् + अ + ल् + अ

'औ' स्वर
कौशल = क् + औ + श् + अ + ल् + अ
सौभाग्य = स् +औ + भ् + आ + ग् + य् + अ

संयुक्त व्यंजन

क्ष = क् + ष् + अ
त्र = त् + र्  + अ
ज्ञ = ज् + ञ् + अ
श्र = श् + र्  + अ

क्ष -
क्षमा = क् + ष् + अ + म् + आ
शिक्षा = श् + इ + क् + ष् + आ

त्र -
चित्र = च् + इ + त् + र्  + अ
त्रिभुज = त् + र्  + इ + भ् + उ + ज् + अ

ज्ञ -
यज्ञ = य् + अ + ज् + ञ् + अ
ज्ञान = ज् + ञ् + आ + न् + अ

श्र -
श्रोता = श् + र् + ओ + त् + आ
श्रुति = श् + र् + उ + त् + इ

द्वित्व व्यंजन -
इस्तेमाल = इ + स् + त् + ए + म् + आ +ल् + अ
अमावस्या = अ + म् + आ + व् + अ + स् + य् + आ

अनुस्वार -
संबंध = स् + अ + म् + ब् + न् + ध् + अ
अनुस्वार की जगह उस वर्ग का पंचमवर्ण का प्रयोग होता है। 'अं' का प्रयोग भी अनुस्वार के स्थान पर किया जाता है। जैसे -
कंपन = क् + अं + प् + अ + न् + अ

अनुनासिक -
साँप = स् + आँ + प् + अ
चाँदनी = च् + आँ + द् + अ + न् + इ

'र' के विभिन्न रूप -
क्रम = क् + र् + अ + म् + अ
कर्म = क् + अ + र् + म् + अगुरु = ग् + उ + र् + उ
जरूर = ज् + अ + र् + ऊ + र्  + अ

'द' के संयुक्त रूप -
द्वारा = द् + व् + आ + र्  + आ
दृष्टि = द् + ऋ + ष् + ट् + इ
दरिद्र = द् + अ + र् + इ + द् + र्  + अ

'ह' के संयुक्त रूप -
हृदय = ह् + ऋ + द् + अ + य् + अ
चिह्न = च् + इ + ह् + न् + अ

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