Chapter 2 गोल Summary for Class 6 Hindi NCERT मल्हार
Summary of Chapter 2 गोल Class 6 Hindi
संक्षिप्त में सार
- पाठ का आरंभ खेल के मैदान में धक्का-मुक्की और नोंक-झोंक की सामान्य घटनाओं के वर्णन से होता है। मेजर ध्यानचंद 1933 के एक मैच की घटना का जिक्र करते हैं जिसमें वह 'पंजाबरेजिमेंट'की ओर से खेल रहे थे और उनका मुकाबला 'स्पेस एंड माइनस टीम'से था।
- मैच के दौरान, एक खिलाड़ी ने ध्यानचंद के सिर पर हॉकी स्टिक से वार कर दिया जिससे उन्हें मैदान छोड़ना पड़ा।
- पट्टी बांधकर वापस लौटने के बाद, ध्यानचंद ने उस खिलाड़ी को आश्वस्त किया कि वह बदला लेंगे, लेकिन उन्होंने बदला हिंसा से नहीं बल्कि शानदार खेल के द्वारा लिया।
- उन्होंने छहगोलकरके मैच जीता और अंत में उस खिलाड़ी को समझाया कि खेल में गुस्सा नहीं करना चाहिए।
- इसके बाद, ध्यानचंद अपने जीवन की शुरुआत और हॉकी में उनकी दिलचस्पी कैसे बढ़ी, इसके बारे में बताते हैं। उनका जन्म 1904 में प्रयाग में हुआ और बाद में उनका परिवार झांसी में बस गया।
- 16 साल की उम्र में वह 'ब्राह्मणरेजिमेंट'में एक साधारण सिपाही के रूप में भर्ती हो गए। वहाँ, उनके सूबेदार ने उन्हें हॉकी खेलने के लिए प्रेरित किया।
- धीरे-धीरे ध्यानचंद के खेल में निखार आया और उन्हें 1936 के बर्लिन ओलंपिक में टीम का कप्तान बनाया गया।
- उनके खेल कौशल से प्रभावित होकर लोगों ने उन्हें'हॉकीकाजादूगर'कहना शुरू कर दिया।
- ध्यानचंद की खेल भावना और टीम भावना की वजह से उन्होंने दुनियाभर में खेल प्रेमियों का दिल जीत लिया।
- बर्लिन ओलंपिक में भारतीय टीम ने स्वर्णपदकजीताऔर ध्यानचंद का मानना था कि जीत पूरे देश की होती है, न कि सिर्फ एक व्यक्ति की।
गोलपाठ कासार
यह पाठ हॉकी खेल के जादूगर मेजर ध्यानचंद के संस्मरण का एक अंश है। ‘गोल’ शब्द पढ़ते ही हमारे समक्ष गोल वस्तुओं के नाम और चित्र जैसे- गेंद, रोटी, सूरज, चाँद आदि उभर आते हैं लेकिन इस पाठ में ध्यानचंद ने हॉकी के ‘गोल’ की बात की है।
मेजर ध्यानचंद के संस्मरण की एक घटना उन्होंने अपने संस्मरण में इस घटना का उल्लेख किया है कि सन् 1933 में वे पंजाब रेजिमेंट की ओर से खेला करते थे। एक दिन ‘पंजाब रेजिमेंट’ और ‘सैंपर्स एंड माइनर्स टीम’ के महज हॉकी के खेल का मुकाबला हुआ। माइनर्स टीम के खिलाड़ी निरंतर ध्यानचंद से गेंद छीनना चाह रहे थे लेकिन हर बार असफल रहे। उनके एक खिलाड़ी को इतना गुस्सा आ गया कि उसने गुस्से में आकर ध्यानचंद के सिर में हॉकी की स्टिक मार दी।
ध्यानचंद चोट खाकर उत्साही बने रहे और पट्टी बँधवाकर फिर से खेल के मैदान में आ पहुँचे। उन्होंने अपने एक अलग ही अंदाज में उस खिलाड़ी से यह कहा कि मैं अपनी इस चोट का बदला अवश्य लूँगा । उसके बाद उन्होंने इतने जोश और उत्साह से गोल लिया कि लगातार छह गोल करके ‘सैंपर्स एंड माइनर्स टीम को बुरी तरह मात दी।
हॉकी का जादूगर – नए नाम की उपाधि प्राप्त करना- बर्लिन ओलंपिक में लोग इनके हॉकी खेलने के ढंग से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें ‘हॉकी का जादूगर’ कहना शुरू कर दिया। यह उपाधि उन्हें इसलिए भी मिली क्योंकि वे स्वयं आगे बढ़ने के साथ-साथ दूसरों को भी आगे बढ़ाना चाहते थे। ‘हॉकी’ खेल में गेंद दूसरों तक पहुँचाते ताकि उनके साथियों को भी जीतने का श्रेय मिले।
ध्यानचंद के जीवन का गुरुमंत्र – उन्होंने अपने जीवन में सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ने का गुरुमंत्र यह बताया कि लगन, साधना और खेल भावना ही मनुष्य को ऊँचाइयों की ओर लेकर जाते हैं।
मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय एवं हॉकी खेल के क्षेत्र में पदार्पण – मेजर ध्यानचंद का जन्म सन् 1904 में प्रयाग के एक साधारण परिवार में हुआ। बाद में इनका परिवार झाँसी जाकर बस गया। 16 वर्ष की आयु में ये ‘फर्स्ट ब्राह्मण रेजिमेंट’ में साधारण सिपाही के रूप में शामिल हुए। इस रेजिमेंट के सूबेदार मेजर तिवारी थे। इस रेजिमेंट का ‘हॉकी खेल’ में बड़ा नाम था ।
तिवारी जी उन्हें सदा उन्हें हॉकी खेलने के लिए प्रेरित करते रहते थे। रेजिमेंट के सभी सिपाही किसी भी समय हॉकी खेलने के लिए तैयार रहते थे। ध्यानचंद ने भी नौसिखिया खिलाड़ी की भाँति खेलना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उनके खेल में निखार आता गया और वे उच्च खिलाड़ियों की श्रेणी में आने लगे और जल्द ही बर्लिन ओलंपिक टीम के कप्तान बन गए। उस समय वे सेना में भी ‘लांस नायक’ के पद पर पहुँच चुके थे।
हॉकी प्रेमी ध्यानचंद का खेल जगत में विस्मरणीय नाम ध्यानचंद ‘हॉकी’ खेल से बहुत प्रेम करते थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा का नाम ही ‘गोल’ रखा। वे अमर खिलाड़ी हैं। सन् 1979 में ध्यानचंद चिरनिद्रा में चले गए। उनका जन्मदिन ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। भारत का सर्वोच्च खेल पुरस्कार ‘खेल रत्न’ उनके नाम पर दिया जाता है।
सारांश
मेजरध्यानचंदकापरिचय
- मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को प्रयाग (अब इलाहाबाद) में हुआ था।
- वे हॉकी के महान खिलाड़ी थे और उन्हें “हॉकी का जादूगर” कहा जाता था।
- उनका जन्मदिन “राष्ट्रीय खेल दिवस” के रूप में मनाया जाता है।
हॉकीमेंयोगदान
- मेजर ध्यानचंद ने 1936 के बर्लिन ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
- उनकी टीम ने इस ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता, और उन्होंने जर्मनी को 8-1 से हराया।
- उन्होंने अपनी शानदार हॉकी कौशल से दुनिया भर में नाम कमाया।
खेलभावना
- मेजर ध्यानचंद की खेल भावना अद्वितीय थी। वे अक्सर खुद गोल करने के बजाय अपने साथियों को पास देते थे, ताकि टीम को जीत मिल सके।
- एक मैच के दौरान, जब उन्हें चोट लगी, तो वे मैदान से बाहर चले गए। लेकिन वे पट्टी बांधकर वापस लौटे और गोल किए, जिससे उनकी दृढ़ता दिखाई दी।
प्रशिक्षणऔरशुरुआतीजीवन
- मेजर ध्यानचंद ने अपनी हॉकी की ट्रेनिंग सिक्स्थ ब्राह्मण रेजिमेंट से की।
- वे सीनियर खिलाड़ियों से सीखते थे और रात में भी प्रैक्टिस करते थे।
- उनकी मेहनत और लगन ने उन्हें हॉकी के महान खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया।
सम्मानऔरपुरस्कार
- मेजर ध्यानचंद के नाम पर भारत सरकार ने “ध्यानचंद पुरस्कार” की स्थापना की है, जो खेलों में जीवनभर की उपलब्धियों के लिए दिया जाता है।
- उन्हें खेल के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पूरे देश में सम्मानित किया गया।
मेजरध्यानचंदसेसीख
- मेजर ध्यानचंद का जीवन हमें सिखाता है कि मेहनत, लगन।
- खेल भावना से किसी भी क्षेत्र में महानता हासिल की जा सकती है।
- उन्होंने हमेशा टीम की जीत को प्राथमिकता दी और खेल को सेवा की तरह माना।
Related Study Materials
- NCERT Solutions for Chapter 2 गोल
- Summary for Class 6 Hindi Malhar
- NCERT Solutions for Class 6
- Revision Notes for Class 6