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NCERT Solutions for Class 11th: पाठ 8 - आधारिक संरचना

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NCERT Solutions for Class 11th: पाठ 8 - आधारिक संरचना (Aadharik Sanrachna) Bhartiya Arthvyavastha Ka Vikash

पृष्ठ संख्या 164

अभ्यास

1. आधारिक संरचना की व्याख्या कीजिए|

उत्तर

संरचनात्मक सुविधाएँ, भौतिक सुविधाएँ व सार्वजनिक सेवाओं का एक नेटवर्क है| इनके साथ सहयोग करने के लिए सामाजिक आधारिक संरचना का होना समान रूप से महत्वपूर्ण है| देश के आर्थिक विकास में यह एक महत्वपूर्ण आधार है| इन सेवाओं में सड़क, रेल, बन्दरगाह, हवाईअड्डे, बाँध, बिजली घर, तेल व गैस, पाईपलाइन, दूरसंचार सुविधाएँ, स्कूल-कॉलेज सहित देश की शैक्षिक व्यवस्था, अस्पताल व स्वास्थ्य व्यवस्था, सफाई, पेयजल और बैंक, बीमा व अन्य वित्तीय संस्थाएँ तथा मुद्रा प्रणाली शामिल हैं|

2. आधारिक संरचना को विभाजित करने वाले दो वर्गों की व्याख्या कीजिए? दोनों एक-दूसरे पर कैसे निर्भर हैं?

उत्तर

आधारिक संरचना को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है: सामजिक और आर्थिक| ऊर्जा, परिवहन और संचार आर्थिक श्रेणी में आते हैं जबकि शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास सामाजिक आधारिक संरचना की श्रेणी में आते हैं|
आर्थिक संरचना आर्थिक विकास में मदद करता है, जबकि सामाजिक आधारभूत संरचना जीवन स्तर की गुणवत्ता को बढ़ाती है और यह अर्थव्यवस्था के कल्याण में वृद्धि करती है| दोनों आधारिक संरचना अर्थव्यवस्था की समृद्धि में योगदान देते हैं| आर्थिक संरचना की मदद से प्राप्त आर्थिक विकास मानव विकास के बिना अपूर्ण है जिसे सामाजिक आधारिक संरचना के माध्यम से प्राप्त किया जाता है| इस प्रकार दोनों आधारिक संरचना एक दूसरे पर निर्भर है|

3. आधारिक संरचना उत्पादन का संवर्द्धन कैसे करती है?

उत्तर

आधुनिक औद्योगिक अर्थव्यवस्था, कृषि परिवहन, संचार और सामाजिक क्षेत्र की कार्यक्षमता आधारिक संरचना सुविधाओं पर निर्भर करती है| यह उत्पादन लागत को कम कर उत्पादकों के लाभ को बढ़ाता है तथा उत्पादन में वृद्धि करता है|

4. किसी देश के आर्थिक विकास में आधारिक संरचना योगदान करती है? क्या आप सहमत हैं? कारण बताइए|

उत्तर

हाँ,, किसी देश के आर्थिक विकास में आधारिक संरचना योगदान करती है| संरचनात्मक सुविधाएँ एक देश के आर्थिक विकास में उत्पादन के तत्वों वृद्धि करके और उसकी जनता के जीवन की गुणवत्ता करके अपना योगदान करती है| आधारिक संरचना वस्तुओं और कच्चे माल के परिवहन को सुनिश्चित करता है जिससे संसाधनों के बर्बादी को कम किया जा सकता है और मानव पूँजी के निर्माण से दुर्लभ संसाधनों का कुशलतम उपयोग हो सकता है जो उत्पादकता को बढ़ाता है| यह निवेश के लिए अनुकूल परिस्थिति प्रदान करता है| इससे लोगों की अस्वस्थता में भी कमी आती है|

5. भारत में ग्रामीण आधारिक संरचना की क्या स्थिति है?

उत्तर

भारत में ग्रामीण आधारिक संरचना अपर्याप्त रूप से स्थित है| विश्व में अत्यधिक तकनीकी उन्नति के बावजूद ग्रामीण महिलाएँ अपनी ऊर्जा की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु फसल का बचा-खुचा, गोबर और जलाऊ लकड़ी जैसे जैव ईंधन का आज भी उपयोग करती हैं| ईंधन, जल और एनी बुनियादी आवश्यकताओं के लिए उन्हें दूर-दूर तक जाना पड़ता है| 2001 की जनगणना के आँकड़ें यह बताते हैं कि ग्रामीण भारत में केवल 56 प्रतिशत परिवारों में बिजली की सुविधा है, जबकि 43 प्रतिशत परिवारों में आज भी मिट्टी के तेल का उपयोग होता है| ग्रामीण क्षेत्र में लगभग 90 प्रतिशत परिवार खाना बनाने में जैव-ईंधन का इस्तेमाल करते हैं| केवल 24 प्रतिशत ग्रामीण परिवार में लोगों को नल का पानी उपलब्ध है| लगभग 76 प्रतिशत लोग कुआँ, टैंक, तालाब, झरना, नदी, नहर आदि जैसे पानी के खुले स्रोतों से पानी पीते हैं| ग्रामीण इलाकों में केवल 20 प्रतिशत लोगों को सफाई की सुविधाएँ प्राप्त थीं|

6. ‘ऊर्जा’ का महत्व क्या है? ऊर्जा के व्यावसायिक और गैर-व्यावसायिक स्रोतों में अंतर कीजिए|

उत्तर

किसी राष्ट्र की विकास प्रक्रिया में ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्थान है, साथ ही यह उद्योगों के लिए भी अनिवार्य है| अब इसका कृषि और उससे संबंधित क्षेत्रों जैसे खाद, कीटनाशक और कृषि-उपकरणों के उत्पादन और यातायात में उपयोग भारी स्तर पर हो रहा है| घरों में इसकी आवश्यकता भोजन बनाने, घरों को प्रकाशित करने और गर्म करने के लिए होती है|

व्यावसायिक स्रोतगैर-व्यावसायिक स्रोत
(i) ऊर्जा के वे स्रोत जो कुछ कीमत पर उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध होते हैं, उन्हें ऊर्जा का व्यावसायिक स्रोत कहा जाता है|(i) ऊर्जा के वैसे स्रोत जो सामान्यतः उपभोक्ताओं के लिए प्रकृति में स्वतंत्र रूप से उपलब्ध होते हैं उन्हें ऊर्जा का गैर-व्यावसायिक स्रोत कहते हैं|
(ii) व्यावसायिक ऊर्जा का उपयोग व्यावसायिक कार्यों में किया जाता है|(ii) गैर-व्यावसायिक ऊर्जा का उपयोग घरेलू कार्यों में किया जाता है|
(iii) उदाहरण के लिए- कोयला, पेट्रोल बिजली, प्राकृतिक गैस इत्यादि|(iii) इसके उदाहरण हैं: ईंधन के लिए लकड़ी, कृषि का कूड़ा-कचरा और सूखा गोबर आते हैं|

7. विद्युत् के उत्पादन के तीन बुनियादी स्रोत कौन-से हैं?

उत्तर

विद्युत् के उत्पादन के तीन बुनियादी स्रोत तापीय ऊर्जा, पनबिजली तथा परमाणु ऊर्जा हैं|

8. संचारण और वितरण हानि से आप क्या समझते हैं? उन्हें कैसे कम किया जा सकता है|

उत्तर

संचारण और वितरण हानि आपूर्ति के स्रोतों तथा वितरण की स्थिति के बीच संचरण के समय हुए घाटे को कहा जाता है| इसे बेहतर प्रबंधन द्वारा, संचारण तथा वितरण की बेहतर तकनीक का उपयोग और बिजली की चोरी से बचाकर कम किया जा सकता है|

9. ऊर्जा के विभिन्न गैर-व्यावसायिक स्रोत कौन-से हैं?

उत्तर

ऊर्जा के विभिन्न गैर-व्यावसायिक स्रोत जलाऊ लकड़ी, कृषि का कूड़ा-कचरा और सूखा गोबर हैं|

10. इस कथन को सही सिद्ध कीजिए कि ऊर्जा के पुनर्नवीनीकृत स्रोतों के इस्तेमाल से ऊर्जा संकट दूर किया जा सकता है?

उत्तर

ऊर्जा के गैरनवीकरणीय स्रोतों के उपयोग से देश के निरंतर आर्थिक विकास के लिए खतरा पैदा किया है तथा ऊर्जा संकट उत्पन्न हुआ है| ऊर्जा के अधिकांश व्यावसायिक स्रोत जिनका हम उपयोग कर रहे हैं सीमित है| इन संसाधनों की उपभोग दर उनके उत्पादन दर से अधिक है, परिणामस्वरूप संसाधन शीघ्र समाप्त हो जाते हैं| वहीं दूसरी ओर, नवीकरणीय संसाधनों को पुनः प्राप्त किया जा सकता है| ये असीमित हैं तथा मानव क्रियाओं से प्रभावित नहीं होते जैसे, सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा| इसलिए ऊर्जा के नवीकरणीय संसाधनों का खोज कर तथा मौजूदा सस्ती प्रौद्योगिकी का उपयोग कर ऊर्जा संकट को दूर किया जा सकता है|

11. पिछले वर्षों के दौरान ऊर्जा के उपभोग प्रतिमानों में कैसे परिवर्तन आया है?

उत्तर

पिछले कुछ वर्षों दौरान ऊर्जा के उपभोग प्रतिमानों में बहुत परिवर्तन आया है| ऊर्जा के प्राथमिक स्रोतों जैसे, कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस के उपयोग में महत्वपूर्ण परिवर्तन आया है| 1953-54 से 2004-05 के दौरान इस ऊर्जा का गैर-व्यावसायिक उपयोग 36% से 76% तक बढ़ गया है| कोयले की कुल उपभोग में वृद्धि के बावजूद इसके प्रत्यक्ष अंतिम उपभोग के प्रतिशत में कमी आई है| वर्ष 1980-81 में इसकी खपत 9 5 करोड़ टन से बढ़कर 2008-09 में 355 मिलियन टन हो गई| समय के साथ, कृषि क्षेत्र में बिजली के उपभोग में वृद्धि हुई है जबकि अन्य क्षेत्रों की तुलना में यह औद्योगिक क्षेत्र में सबसे ज्यादा रही है|

12. ऊर्जा के उपभोग और आर्थिक संवृद्धि की दरें कैसे परस्पर संबंधित है?

उत्तर

किसी देश के विकास में ऊर्जा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है| परिवहन, संचार, औद्योगिक उत्पादन जो किसी देश के आर्थिक संवृद्धि के लिए अनिवार्य होता है, उसे ऊर्जा की आवश्यकता होती है| एक अध्ययन के अनुसार, सकल घरेलू उत्पाद के 8 प्रतिशत विकास दर की प्राप्ति के लिए लगभग 12 प्रतिशत बिजली की आपूर्ति होनी चाहिए|

13. भारत में विद्युत् क्षेत्रक किन समस्याओं का सामना कर रहा है?

उत्तर

भारत में विद्युत् क्षेत्रक निम्नलिखित समस्याओं का सामना कर रहा है:
• भारत की वर्तमान बिजली उत्पादन क्षमता 9 प्रतिशत की प्रतिवर्ष आर्थिक क्षमता अभिवृद्धि के लिए पर्याप्त नहीं है| भारत की व्यावसयिक ऊर्जा पूर्ति 7 प्रतिशत की दर से बढ़ने की आवश्यकता है|
• राज्य विद्युत् बोर्ड जो विद्युत् वितरण करते हैं, की हानि पाँच सौ विलियन से ज्यादा है| इसका कारण संप्रेषण और वितरण का नुकसान, बिजली की अनुचित कीमतें और अकार्यकुशलता है|
• अनेक क्षेत्रों में बिजली की चोरी होती है जिससे राज्य विद्युत् निगमों को और भी नुकसान होता है|
• भारत के विभिन्न भागों में बिजली की ऊँची दरें और लंबे समय तक बिजली गुल होने की समस्या भी व्याप्त है|
• भारत के थर्मल पावर स्टेशन, जो कि भारत के बिजली क्षेत्र के आधार हैं, कच्चे माल और कोयले की पूर्ति में कमी का सामना कर रहे हैं|

14. भारत में ऊर्जा संकट से निपटने के लिए किये गए सुधारों पर चर्चा कीजिए|

उत्तर

भारत में ऊर्जा संकट से निपटने के लिए निम्नलिखित सुधार किए गए हैं:

• पावर क्षेत्रक का निजीकरण: पहले, सरकार को बिजली उत्पादन तथा वितरण में एकाधिकार प्राप्त था| वर्तमान में, सरकार पावर क्षेत्रक का निजीकरण के लिए सहमत हुई है|

• बिजली संचारण का निजीकरण: भारत सरकार ने संयुक्त उद्योग में संचारण नेटवर्क के निर्माण के लिए टाटा पावर और पॉवरग्रीड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया को मंजूरी दी है|

• 2012 तक सभी के लिए बिजली: ऊर्जा मंत्रालय ने भारत में प्रति व्यक्ति 1000 किलोवाट (इकाई) ऊर्जा के उपभोग के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए ‘2012 तक सभी के लिए बिजली’ का उद्देश्य स्थापित किया है| यह 8 प्रतिशत प्रतिवर्ष के आर्थिक विकास की प्राप्ति के उद्देश्य से किया गया है| इस लक्ष्य का मुख्य उद्देश्य बिजली की गुणवत्ता में सुधार लाना, बिजली उद्योगों की व्यावसायिक व्यवहार्यता में सुधार करना तथा सभी के लिए बिजली उपलब्ध करवाना है|

• विनियमन तंत्र की स्थापना: विद्युत् विनियमन आयोग अधिनियम, 1998 के तहत 19 राज्यों में राज्य विद्युत् विनियमन आयोग (SERC) के साथ केन्द्रीय विनियमन आयोग (CERC) की स्थापना की गई है| ये आयोग और प्राधिकरण विद्युत् की दरों को विनियमित करते हैं तथा कार्यकुशलता और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देते हैं|

• प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को प्रोत्साहन: 2012 तक सभी के लिए बिजली के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, ऊर्जा मंत्रालय ने ऊर्जा क्षेत्र में 250 अरब अमेरिकी डॉलर निवेश (एफडीआई तथा संयुक्त घरेलू निवेश) का लक्ष्य रखा है|

• APDRP (एक्सलरेटिड पावर डिवेलपमेंट एंड रिफॉर्म प्रोग्राम): एपीडीआरपी वर्ष 2000-01 में वित्तीय व्यवहार्यता में सुधार लाने, प्रसारण और वितरण के नुकसान को कम करने और कम्प्यूटरीकरण के माध्यम से पारदर्शिता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू किया गया है|

• जागरूकता: सरकार ने लोगों को परंपरागत संसाधनों का कम उपयोग करने के लिए करने के लिए, नवीकरणीय संसाधनों के इस्तेमाल में वृद्धि और लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया है| आठवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान, सरकार ने राष्ट्रीय ऊर्जा दक्षता कार्यक्रम (NEEP) स्थापित किया है जिसका उद्देश्य पेट्रोलियम उत्पादों का संरक्षण है|

• उत्पादकता में सुधार: भारत सरकार मौजूदा बिजली उत्पादन उद्योगों की उत्पादकता में सुधार के उपायों पर बल दे रही है|

15. हमारे देश की जनता के स्वास्थ्य की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

उत्तर

स्वास्थ्य से हमारा मतलब केवल बीमारियों का न होना ही नहीं है, बल्कि यह अपनी कार्य-क्षमता प्राप्त करने की योग्यता भी है| किसी की सुख-समृद्धि का मापदंड है| स्वास्थ्य राष्ट्र की समग्र संवृद्धि और विकास से जुड़ी एक पूर्ण प्रक्रिया है| किसी राष्ट्र के लोगों के स्वास्थ्य दशा का निर्धारण शिशु मृत्यु दर, जीवन प्रत्याशा और पोषण स्तर के साथ-साथ संक्रामक और असंक्रामक रोगों की घटनाओं जैसे सूचकों द्वारा करते हैं| जीवन प्रत्याशा दर केवल 67 वर्ष है जो वैश्विक मानकों के मुकाबले कम है| शिशु मृत्यु दर और बाल मृत्यु दर अब भी भारत में उच्चतर हैं, हालांकि पिछले कुछ वर्षों में इसमें गिरावट देखी गई है| भारत में लगभग 60 प्रतिशत जन्म अभी भी प्रशिक्षित परिचारिकाओं के बिना होता है|

16. रोग वैश्विक मार (GBD) क्या है?

उत्तर

रोग वैश्विक मार (GBD) एक सूचक है जिसका प्रयोग विशेषज्ञ किसी विशेष रोग के कारण असमय मरने वाले लोगों की संख्या के साथ-साथ रोगों के कारण असमर्थता में बिताये सालों की संख्या जानने के लिए करते हैं|

17. हमारी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की प्रमुख कमियाँ क्या हैं?

उत्तर

हमारी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की प्रमुख कमियाँ निम्नलिखित हैं:
• स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं का असमान वितरण: स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में असमान रूप से वितरित की जाती हैं| 70 प्रतिशत जनसंख्या वाले ग्रामीण क्षेत्रों में भारत के केवल 1/5 अस्पताल स्थित हैं| ग्रामीण भारत के पास कुल दवाखानों के लगभग आधे दवाखाने ही हैं| सरकारी अस्पतालों में लगभग 6.3 लाख बेड में से ग्रामीण इलाकों में केवल 30 प्रतिशत बेड उपलब्ध है| ग्रामीण इलाकों में स्थापित प्राथमिक चिकित्सा केन्द्रों में एक्स-रे या खून की जाँच जैसी सुविधाएँ नहीं है, जबकि किसी शहरी के लिए ये बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल का निर्माण करती है|

• संक्रामक रोग: भारत में एचआईवी एड्स तथा सार्स रोग जैसी संक्रामक बीमारियों का खतरा छाया हुआ है| इन सभी जानलेवा बीमारियों ने मानव पूँजी को अस्थिर किया है जिससे आर्थिक विकास बाधित हुई है|

• कुप्रबंधन: ग्रामीण क्षेत्रों के स्वास्थ्य देखभाल केन्द्रों में प्रशिक्षित तथा कुशल कर्मियों की कमी है| इसलिए, ग्रामीणों को शहरी स्वास्थ्य देखभाल केन्द्रों में जाना पड़ता है| यह स्थिति उचित सड़कों और परिवहन के अन्य लागत प्रभावी साधनों की अनुपस्थिति में और भी खराब हो जाती है|

• आधुनिक तकनीकों तथा सुविधाओं की कमी: सरकारी स्वास्थ्य केंद्र आमतौर पर रक्त परीक्षण, एक्स-रे जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित होते हैं। इन केंद्रों में आधुनिक तकनीकों और चिकित्सा सुविधाओं जैसे सीटी-स्कैन, सोनोग्राफी आदि की कमी है| इन सेवाओं का लाभ उठाने के लिए लोगों को निजी अस्पतालों पर निर्भर होना पड़ता है, जो अत्यधिक शुल्क लेते हैं|

• निजीकरण: सरकार द्वारा पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों और अन्य चिकित्सा सुविधाओं को उपलब्ध कराने की असमर्थता ने निजी क्षेत्र का मार्ग प्रशस्त किया| निजी कंपनियों को लाभ की प्राप्ति के उद्देश्य से स्थापित किए जाता है जो केवल उच्च आय वर्ग की जरूरत को पूरा करता है, न कि कम आय अथवा गरीब वर्ग की| यह स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र के निजीकरण के कारण होता है| निजी अस्पताल सरकारी अस्पतालों के मुकाबले मरीज़ों को अधिक आकर्षित करते हैं क्योंकि सरकारी अस्पताल सुविधाओं से वंचित हैं।

18. महिलाओं का स्वास्थ्य गहरी चिंता का विषय कैसे बन गया है?

उत्तर

भारत की जनसंख्या का लगभग आधा भाग महिलाओं का है| देश मर शिशु-लिंग अनुपात में 2011 की जनगणना के अनुसार 2001 में 927 से 914 की गिरावट, भ्रूण हत्या की बढ़ती घटनाओं की ओर इशारा करती है| 15 वर्ष से कम लगभग 3,00,000 लड़कियाँ न केवल शादीशुदा हैं बल्कि कम से कम एक बच्चे की माँ भी है| 15 से 49 आयु समूह में शादीशुदा महिलाओं में 50 प्रतिशत से ज्यादा रक्ताभाव और रक्तक्षीणता से ग्रसित हैं| यह बीमारी लौह-न्यूनता के कारण होती है जिसके परिणामस्वरूप गर्भपात भारत में स्त्रियों की अस्वस्थता और मौत का एक बहुत बड़ा कारण है| इसलिए, महिलाओं का स्वास्थ्य गहरी चिंता का विषय बन गया है|

19. सार्वजनिक स्वास्थ्य का अर्थ बतलाइए| राज्य द्वारा रोगों पर नियंत्रण के लिए उठाए गए प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों को बताइए|

उत्तर

प्रतिरोधक दवाओं, स्वास्थ्य शिक्षा, संक्रमक रोगों पर नियंत्रण, स्वच्छता उपायों का प्रयोग और पर्यावरणीय संकट की जांच द्वारा किसी समाज के स्वास्थ्य की रक्षा और उसमें सुधार के विज्ञान तथा व्यवहार को सार्वजनिक स्वास्थ्य कहा जाता है|
हाल के कुछ वर्षों में, भारत ने विभिन्न स्तरों पर एक व्यापक स्वास्थ्य आधारिक संरचना को विकसित किया है| गाँव के स्तर पर सरकार ने अनेक प्रकार के अस्पतालों की वयवस्था की है| भारत में ऐसे अस्पतालों- तकनीकी रूप से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHCS) की संख्या भी अधिक है जो कि स्वैच्छिक संस्थाओं और निजी क्षेत्रक द्वारा चलाए जा रहे हैं| इन अस्पतालों को मेडिकल, दवा और नर्सिंग कॉलेजों में प्रशिक्षित चिकित्सा और अर्द्ध-चिकित्साकर्मी संचालित करते हैं| स्वास्थ्य सेवाओं की संख्या में महत्वपूर्ण विस्तार हुआ है| 1951-2013 के बीच सरकारी अस्पतालों और दवाखानों की संख्या 9300 से बढ़कर 45,200 हो गई और अस्पतालों तकनीकी रूप से प्राथमिक स्वास्थ्य केद्रों के बेड 1.2 रने 6.3 लाख हो गये| 1951 -2013 के दौरान नर्सिंमकर्मिंयों को संख्या 0.18 से 23.44 लाख हो गई जबकि एलोपैथी डॉक्टरों की संख्या 0. 62 से 9.2 लाख हो गई| स्वास्थ्य आधारिक संरचना के विस्तार से चेचक, और स्नायुक रोगों का उन्मुलन और पोलियो तथा कुष्ठ रोग का पूर्ण उन्मूलन हो गया है|

20. भारतीय चिकित्सा की छह प्रणालियों में भेद कीजिए|

उत्तर

भारतीय चिकित्सा की छह प्रणालियाँ- आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध, प्राकृतिक चिकित्सा और होम्योपैथी हैं|

21. हम स्वास्थ्य सुविधा कार्यक्रमों की प्रभावशीलता कैसे बढ़ा सकते हैं?

उत्तर

स्वास्थ्य एक आवश्यक सार्वजनिक सुविधा और एक बुनियादी मानवाधिकार है| सभी नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ प्राप्त हो सकती हैं, यदि सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएँ विकेन्द्रित हों| इसका मतलब यह है कि इन स्वास्थ्य सेवाओं को उपलब्ध कराने का अधिकार केन्द्रीय से स्थानीय अधिकारियों के हाथों सौंप देना चाहिए| रोगों से दीर्घकालीन संघर्ष में सफलता शिक्षा का प्रसार तथा कार्यकुशल स्वास्थ्य आधारिक संरचना पर निर्भर करती है| इसीलिए,स्वास्थ्य और सफाई के प्रति जागरूकता पैदा करना और कार्यकुशल व्यवस्थाएँ प्रदान करना आवश्यक है| इस प्रक्रिया से दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्रों की भूमिका की अवहेलना नहीं की जा सकती| इसके अलावा, कम लागत पर गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सुविधाएँ प्रदान करने से इसकी योग्यता और लोकप्रियता को बढ़ावा मिल सकता है| स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रमों को प्रभावशील बनाने के लिए अस्पतालों की संख्या बढ़ाना, चिकित्सा सुविधाओं के आधुनिकीकरण, आधारिक संरचना के विकास, डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात में सुधार करना और भारत में चिकित्सा महाविद्यालयों की संख्या में वृद्धि करना चाहिए| ग्रामीण इलाकों में चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता और विकास की अभी भी कमी है| इसके अलावा, स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं को सभी के लिए सुविधाजनक और सस्ती बनाने के लिए निजी चिकित्सा केन्द्रों द्वारा लगाए गए अत्यधिक शुल्क की जांच के लिए कुछ नियम होना चाहिए|

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