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पाठ 2 - वन और वन्य जीव संसाधन भूगोल के नोट्स| Class 10th

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पठन सामग्री और नोट्स| पाठ 2 - वन और वन्य जीव संसाधन भूगोल (van avm vany jivan sansaadhan) Bhugol Class 10th

इस अध्याय में विषय-सूची

• परिचय
• भारत में वनस्पतिजात और प्राणीजात
• जातियों का वर्गीकरण
• वनस्पतिजात और प्राणिजात के रिक्तिकरण के कारण
• भारत में वन एवं वन्यजीवन का संरक्षण
• वन एवं वन्यजीवन के प्रकार और वितरण
• समुदाय और वन संरक्षण

परिचय

• हमारी पृथ्वी जीवधारियों, सूक्ष्म-जीवाणुओं से लेकर बैक्टीरिया, जोंक से लेकर वटवृक्ष, हाथी और ब्लू व्हेल तक का घर है।

भारत में वनस्पतिजात और प्राणिजात

• भारत, जैव विविधता के सन्दर्भ में विश्व के सबसे समृद्ध देशों में से एक है और विश्व की सारी उपजातियों की 8 प्रतिशत संख्या (लगभग 16 लाख) पाई जाती है।
• अनुमानतः भारत में 10 प्रतिशत वन्य वनस्पतिजात और 20 प्रतिशत स्तनधारियों के लुप्त होने का खतरा है|
 इनमें से कई उपजातियाँ तो नाजुक अवस्था में हैं और लुप्त होने के कगार पर हैं| इनमें चीता, गुलाबी सिर वाला बत्तख, पहाड़ी कोयल आदि शामिल हैं।

जातियों का वर्गीकरण

अंतर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ के अनुसार निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है-
→ सामान्य जातियाँ- जातियाँ जिनकी संख्या जीवित रहने के लिए सामान्य मानी जाती हैं जैसे- पशु, साल, चीड़ और कृन्तक आदि।
→ संकटग्रस्त जातियाँ- ऐसी जातियाँ जिनके लुप्त होने का खतरा है, जैसे- काला हिरण, मगरमच्छ, भारतीय जंगली गधा आदि।
→ सुभेद्य जातियाँ- ये वे जातियाँ हैं जिनकी संख्या घट रही हैं और यदि इनकी संख्या पर विपरीत प्रभाव डालने वाली परिस्थितियाँ नहीं बदली जातीं हैं और इनकी संख्या घटती रहती हैं तो यह संकटग्रस्त जातियों की श्रेणी में शामिल हो जाएँगी, जैसे- नीली भेंड़, एशियाई हाथी, गंगा नदी की डॉल्फिन इत्यादि।
→ दुर्लभ जातियाँ- इन जातियों की संख्या बहुत कम है और इनको प्रभावित करने वाली विषम परिस्थितियाँ नहीं परिवर्तित होती तो यह संकटग्रस्त जातियों की श्रेणी में आ सकती हैं।
→ स्थानिक जातियाँ- इस प्रकार की जातियाँ प्राकृतिक या भौगोलिक सीमाओं से अलग विशेष क्षेत्रों में पाई जाती हैं, जैसे- अंडमानी टील, निकोबारी कबूतर, अंडमानी जंगली सुअर और अरूणाचल के मिथुन आदि|
→ लुप्त जातियाँ- ये वे जातियाँ हैं जो इनके रहने के आवासों में खोज करने पर अनुपस्थित पाई गयी हैं, जैसे- एशियाई चीता, गुलाबी सिरवाली बत्तख।

वनस्पतिजात और प्राणिजात के रिक्तिकरण के कारण

• मनुष्य प्रकृति को संसाधनों में परिवर्तित कर वनों तथा वन्यजीवन से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लकड़ी, छाल, पत्ते, रबड़, दवाईयाँ, भोजन, ईंधन, चारा, खाद इत्यादि प्राप्त करता है जिसने वन और वन्यजीवन को नुकसान पहुँचाया है।

• वनस्पतिजात और प्राणिजात के रिक्तिकरण के निम्नलिखित कारण हैं-
→ बड़ी विकास परियोजनाएँ
→ स्थानान्तरी खेती
→ खनन
→ पशुचारण एवं ईंधन
→ अत्यधिक जनसंख्या


• जैव विविधता को कम करने वाले कारक:
→ वन्य जीव के आवास का विनाश
→ जंगली जानवरों को मारना व आखेटन
→ पर्यावरणीय प्रदूषण
→ विषाक्तीकरण
→ दावानल

भारत में वन एवं वन्य जीवन का संरक्षण

• संरक्षण से पारिस्थितिकी विविधता बनी रहती है तथा हमारे जीवन साध्य संसाधन- जल, वायु और मृदा बने रहते हैं।

• पर्यावरण संरक्षकों ने राष्ट्रीय वन्य जीवन सुरक्षा कार्यक्रम की पुरजोर माँग पर भारतीय वन्यजीवन (रक्षण) अधिनियम 1972 में लागू किया गया जिसमें वन्य-जीवों के आवास रक्षण के अनेक प्रावधान थे।
→ इस कार्यक्रम का उद्देश्य बची हुई संकटग्रस्त जातियों के बचाव, शिकार प्रतिबंधन, वन्यजीव आवासों का कानूनी रक्षण तथा जंगली जीवों के व्यापार पर रोक लगाना था।
→ केन्द्रीय सरकार व कई राज्य सरकारों ने राष्ट्रीय उद्यान और वन्य जीव पशुविहार स्थापित किए।
→ केन्द्रीय सरकार ने कई परियोजनाओं की भी घोषणा की जिनका उद्येश्य गंभीर खतरे में पड़े कुछ विशेष वन प्राणियों को रक्षण प्रदान करना था। इन प्राणियों में बाघ, एक सींग वाला गैंडा, कश्मीरी हिरण अथवा हंगुल, तीन प्रकार के मगरमच्छ- स्वच्छ जल मगरमच्छ, लवणीय जल मगरमच्छ और घड़ियाल, एशियाई शेर और अन्य प्राणी शामिल हैं।

• 1973 में भारत सरकार ने बाघों के संरक्षण के लिए ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ की शुरुआत की जिसका उद्येश्य बाघ जैसे संकटग्रस्त जाति को बचाना था।

• वन्य जीवन अधिनियम 1980 और 1986 के तहत् सैंकड़ों तितलियों, पतंगों, भृंगों और एक ड्रैगनफ्लाई को भी संरक्षित जातियों में शामिल किया गया है।

• 1991 में पौधों की भी 6 जातियाँ पहली बार इस सूची में रखी गयी।

वन और वन्य जीव संसाधनों के प्रकार और वितरण

• भारत में अधिकतर वन और वन्य जीवन या तो प्रत्यक्ष रूप में सरकार के अधिकार क्षेत्र में हैं या वन विभाग अथवा अन्य विभागों के जरिये सरकार के प्रबंधन में है।

• वनों को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा गया है:
→ आरक्षित वन- वन और वन्य प्राणियों के संरक्षण में आरक्षित वनों को सर्वाधिक मूल्यवान माना जाता है। देश में आधे से अधिक वन क्षेत्र आरक्षित वन घोषित किये गये हैं।
→ रक्षित वन- इन वनों को और अधिक नष्ट होने से बचाने के लिए इनकी सुरक्षा की जाती है। देश के कुल वन क्षेत्र का एक तिहाई हिस्सा रक्षित है।
→ अवर्गीकृत वन- अन्य सभी प्रकार के वन और बंजरभूमि जो सरकार, व्यक्तियों और समुदायों के स्वामित्व में होते हैं, अवर्गीकृत वन कहलाते हैं।

समुदाय और संरक्षण

• वन हमारे देश में कुछ मानव प्रजातियों के आवास भी हैं।
→ भारत के कुछ क्षेत्रों में स्थानीय समुदाय दीर्घकाल में अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर अपने आवास स्थलों के संरक्षण में जुटे हैं।

• सरिस्का बाघ रिजर्व में राजस्थान के गावों के लोग वन्य जीव रक्षण अधिनियम के तहत वहाँ से खनन कार्य बंद करवाने के लिए संघर्षरत हैं।

• हिमालय में प्रसिद्ध 'चिपको आन्दोलन' कई क्षेत्रों में वन कटाई रोकने में कामयाब रहा है।
→ यह भी दिखाया कि स्थानीय पौधों की जातियों को प्रयोग करके सामुदायिक वनीकरण अभियान को सफल बनाया जा सकता है।

• टिहरी में किसानों का बीज बचाओ आन्दोलन और नवदानय ने दिखा दिया है कि रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के बिना भी विविध फसल उत्पादन द्वारा आर्थिक रूप से व्यवहार्य कृषि उत्पादन संभव है।

• भारत में संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रम की शुरुआत 1988 में हुई जब उड़ीसा राज्य ने संयुक्त वन प्रबंधन का पहला प्रस्ताव पास किया। इसके अंतर्गत क्षरित वनों के बचाव के लिए कार्य किया जाता है और गाँव के स्तर पर संस्थाएं बनाई जाती हैं जिसमें ग्रामीण और वन विभाग के अधिकारी संयुक्त रूप में कार्य करते हैं।


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